हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 10 ☆ आदमी तो आदमी है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आदमी तो आदमी है।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 10 ☆ आदमी तो आदमी है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कुछ पुकारो

नाम कोई भी रखो

आदमी तो आदमी है।

 

जाति मज़हब

दगा दंगे

फसादों में

बँट गया है

अस्मिता से

और अपनी

ज़िंदगी से

कट गया है

 

ख़ालीपन को

लाख कितना ही भरो

लगता कुछ न कुछ कमी है।

 

भीड़ बनकर

हादसों में

जीता मरा

आजकल है

शक्ल ओढ़े

जुलूसों की

चल रहा हो

बेदखल है

 

यहाँ जब भी

मसीहा बनकर चलो

सलीब ढोना लाज़मी है।

 

सिर्फ़ सुनना

कुछ न कहना

चुप्पियों का

ज़हर पीता

भाग पढ़ता

स्वप्न गढ़ता

ले उमीदें

रोज़ जीता

 

सतह छोड़ो

ज़रा गहराई में उतरो

हर तरफ़ काई जमी है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 66 ☆ वृक्ष की पुकार… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपकी एक विचारणीय कविता – “वृक्ष की पुकार

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 66 ✒️

?  वृक्ष की पुकार… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

रुकती हुई ,

सांसो के मध्य ,

कल सुना था मैंने ,

कि तुमने कर दी ,

फिर एक वृक्ष की ,

” हत्या “

इस कटु सत्य का ,

हृदय नहीं ,

कर पाता विश्वास ,

” राजन्य “

तुम कब हुए ,नर पिशाच ।।

 

अंकित किया ,एक प्रश्न ?

क्यों ? केवल क्यों ?

इतना बता सकते हो ,

तो बताओ ?क्यों त्यागा ,

उदार जीवन को ?

क्यों उजाड़ा ,

रम्य वन को ?क्यों किया ,

हत्याओं का वरण ?

अनंत – असीम ,जगती में

क्या ? कहीं भी ना ,

मिल सकी ,तुम्हें शरण ? ।।

 

अच्छा होता

तुम ,अपनी

आवश्यकताएं ,

तो बताते ,

शून्य ,- शुष्क ,

प्रदूषित वन जीवन ,

की व्यथा देख ,

रोती है प्रकृति ,

जो तुमने किया ,

क्या वही थी हमारी नियति ?।।

 

शैशवावस्था में तुम्हें ,

छाती पर बिठाए ,

यह धरती ,

तुम्हारे चरण चूमती ,

रही बार-बार ,

रात्रि में जाग – जाग

कर वृक्ष ,

तुम्हें पंखा झलते रहे बार-बार,

तब तुम बने रहे ,

सुकुमार ,

अपनी अनन्त-असीम ,

तृष्णाओं के लिए ,

प्रकृति पर करते रहे

अत्याचार ।।

 

हम शिला की

भांति थे ,

निर्विकार ,

तुम स्वार्थी –

समयावादी,

और गद्दार ,

तभी वृद्ध ,

तरुण – तरुओं,

पर कर प्रहार ,

आयु से पूर्व ,

उन्हें छोड़ा मझधार ,

रिक्त जीवन दे ,

चल पड़े

अज्ञात की ओर ,

बनाने नूतन ,

विच्छन्न प्रवास ।।

 

किस स्वार्थ वश किया ,

यह घृणित कार्य ?

क्या इतना सहज है ,

किसी को काट डालना ,

काश !

तुम कर्मयोगी बनते ,

प्रकृति के संजोए ,

पर्यावरण को बुनते ,

प्रमाद में  विस्मृत कर ,

अपना इतिहास ,

केवल बनकर रह

लगए ,उपहास ।।

 

काश !तुमने सुना होता ,

धरती का ,करुण क्रंदन ,

कटे वृक्षों का ,

टूट कर बिखरना ,

गिरते तरु की चीत्कार ,

पक्षियों की आंखोंका ,सूनापन ,

आर्तनाद करता , आकाश ,

तब संभव था ,कि तुम फिर ,

व्याकुल हो उठते ,

पुनः उसे ,रोपने के लिए ।।

 

अपना इतिहास ,

बनाने का करते प्रयास ,

तब तुम ,वृक्ष हत्या ,

ना कर पाते अनायास ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता – प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है

तेरा शुक्रिया है प्रभु तेरा शुक्रिया है

प्रकृति ने…

 

रो रो के कहते है वृक्ष ये सारे

हम ही जगत के अंत और सहारे

निर्णय तुम्हारा है, काटो या बचालो

हरा भरा रख कर जीवन संभालो

 

हम ही तुम्हें अमृत पान कराते

औषधि देकर सबकी जान बचाते

फल फूल हवा ताज़ा हम तुम्हें देते

प्रेम रंग की खुशबू हम महकाते।

 

जन जन से रिश्ता है प्यारा हमारा

शुद्ध प्राणवायु देकर जीवन संवारा

कुल्हाड़ी ,कटारी से, हमको ना काटो

सावन के महीना में, हम ही झुलाते

 

बहुत मुश्किलों से तुमने, हमको है पाला

हमें काट कर खुद को, मुसीबत में डाला

मत करो जुल्म अब, धरा रो रही है

प्राकृतिक शीतलता से दुनिया, मुक्त हो रही है

 

दिन रात एक करके काटकर रुलाया

रक्तस्राव से भीगा है तना अब हमारा

तेज आंधियों ने भी हमको है तोड़ा

धरती से अलग करके, दूर हमको छोड़ा

 

आओ बचालो हमको रक्षक हम तुम्हारे

जीने की सांसें हम ही, जीने के सहारे

लेलो प्रतिज्ञा यारो, पर्यावरण सुरक्षा का

यही एक जरिया है खुद को स्वस्थ रखने का।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 06 – हम बेघर बञ्जारे हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – हम बेघर बञ्जारे हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 06 – हम बेघर बञ्जारे हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

जन्मजात हम रहे घुमन्तू

हम बेघर बन्जारे हैं

ठिगधर अपना नहीं ठिकाना

जहाँ जगह मिल जाती खाली

वहीं विवश हो तम्बू ताना

व्याकुल अनपढ़ भूखे बच्चे

हम अपने उद्यम के सच्चे

यद्यपि कर्मठ कर्मवीर हम

पर विपदा के मारे हैं

दौलत ने हमको दुत्कारा

यूँ तो रहे उपेक्षित लेकिन

हमें स्वार्थियों ने पुचकारा

जब चुनाव के दिन आते हैं

तब हम भी पूछे जाते हैं

जिन्हें जिताते रहे हमेशा

हम उनसे ही हारे हैं

रहा पीठ पर पूरा डेरा

अपना भी कुछ स्वाभिमान है

किन्तु आपदाओं ने घेरा

हम पर अँधियारे का पहरा

उजयारा तो दुश्मन ठहरा

आँच आन पर यदि आये तो

बन जाते अंगारे हैं

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 82 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 82 – मनोज के दोहे…

 

1 साक्षी

सनकी प्रेमी दे गया, सबके मन को दाह।

दृश्य-कैमरा सामने, साक्षी बनी गवाह।

2 शृंगार

नारी मन शृंगार का, पौरुष पुरुष प्रधान।

दोनों के ही मेल से, रिश्तों का सम्मान।।

3 पाणिग्रहण

संस्कृति में पाणिग्रहण,नव जीवन अध्याय।

शुभाशीष देते सभी, होते देव सहाय।।

4 वेदी

अग्निहोत्र वेदी सजी, करें हवन मिल लोग।

ईश्वर को नैवेद्य फिर, सबको मिलता भोग।।

5 विवाह

मौसम दिखे विवाह का, सज-धज निकलें लोग।

मंगलकारी कामना, उपहारों का योग ।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रश्न ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – प्रश्न ??

प्रश्न है,

प्रकृति के केंद्र में

आदमी है या नहीं,

इससे भी बड़ा प्रश्न है,

आदमी के केंद्र में

प्रकृति है या नहीं?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तन्‍हा लैंप पोस्‍ट और बेंच” ☆ श्री संजय सरोज ☆

श्री संजय सरोज 

(सुप्रसिद्ध लेखक श्री संजय सरोज जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर, (स्टेट-जी एस टी ) के पद पर कार्यरत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  भावप्रवण कविता  – तन्‍हा लैंप पोस्‍ट और बेंच)

☆ कविता ☆ ? तन्‍हा लैंप पोस्‍ट और बेंच ??

तन्हा लैंप पोस्ट,

जिसकी पीली मद्धम रोशनी,

जज्ब हो गई है नीचे काली सड़क में ।

 

काली सड़क जो ठहर गई है,

गुम हो गई है,

आगे कहीं जाके।

 

तन्हा बेंच ,

जिस पर किए थे पीढ़ियों ने वादे,

बुने थे सपने, पिरोए थे मोती ।

 

जिस पर पड़े हैं ,

अब कुछ सूखे फूल, पत्तियां,और गर्द।

इस इंतजार में ,

कि बरसात हो और धुल जाएं खुद लैंप और बेंच ।

 

इस इंतजार में ,

कि पीढ़ियां करें फिर वादे,                                 

बुने सपने और पिरोए मोती ।

और गवाह बनें लैंप पोस्ट और बेंच फिर से…

©  श्री संजय सरोज 

नोयडा

मो 72350 01753

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 142 – कहने दो बस कहने दो… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कहने दो बस कहने दो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 142 – कहने दो बस कहने दो…  ✍

सम्बोधन की डोर न बाँधो, मुझे मुक्त ही रहने दो।

जो कुछ मन में उमड़ रहा है, कहने दो बस कहने दो।

 

अनायास मिल गये सफर में

जैसे कथा कहानी

भूली बिसरी यादें उभरी

जैसे बहता पानी

मत तोड़ो तुम नींदे मेरी, अभी खुमारी रहने दो।

 

बात बात में हँसी तुम्हारी

झलके रूप शिवाला

अलकें ऐसी लगतीं जैसे

पाया देश निकाला

रूप तुम्हारा जलती लौ सा, अभी और कुछ दहने दो।

 

कहाँ रूप पाया है रूपसि

करता जो मदमाता

कितना गहरा हृदय तुम्हारा

कोई थाह न पाता

अभी न बाँधों सम्बन्धों में, स्वप्न नदी में बहने दो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – टिटहरी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – टिटहरी ??

भीषण सूखे में भी

पल्लवित होने के प्रयास में

जस- तस अंकुर दर्शाती

अपने होने का भास कराती

आशाओं को, अंगुली थाम

नदी किनारे छोड़ आता हूँ।

 

आशाओं को

अब मिल पायेगा

पर्याप्त जल और

उपजाऊ जमीन।

 

ईमानदारी से मानता हूँ

नहीं है मेरा सामर्थ्य

नदी को खींचकर

अपनी सूखी जमीन तक लाने का,

न कोई अलौकिक बल

बंजर सूखे को

नदी किनारे बसाने का।

 

वर्तमान का असहाय सैनिक सही

भविष्य का परास्त योद्धा नहीं हूँ,

ये पिद्दी-सी आशाएँ

ये ठेंगु-से सपने

पलेंगे, बढ़ेंगे,

भविष्य में बनेंगे

सशक्त, समर्थ यथार्थ,

एक दिन रंग लायेगा

मेरा टिटहरी प्रयास।

 

जड़ों के माध्यम से

आशाओं के वृक्ष

सोखेंगे जल, खनिज

और उर्वरापन..,

अंकुरों की नई फसल उगेगी

पेड़ दर पेड़ बढ़ते जाएँगे,

लक्ष्य की दिशा में

यात्रा करते जाएँगे।

 

मैं तो नहीं रहूँगा

पर देखना तुम,

नदी बहा ले जाएगी

सारा नपुंसक सूखा,

नदी कुलाँचें भरेगी

मेरी जमीन पर,

सुदूर बंजर में

जन्मते अंकुर

शरण लेंगे

मेरी जमीन पर,

और हाँ..,

पनपेंगे घने जंगल

मेरी जमीन पर..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

💥 अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ख़ुशी ☆ सुश्री प्रिया कोल्हापुरे ☆

सुश्री प्रिया कोल्हापुरे

(सुप्रसिद्ध मराठी लेखिका सुश्री प्रिय कोल्हापुरे जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत।)

☆ कविता ☆ ? ख़ुशी ??☆ सुश्री प्रिया कोल्हापुरे ☆

सुलझे सुलझे सारे सिरे

फिर से उलझ जाते है

दो बूंद खुशी से तेरे

हम अक्सर खुश हो जाते हैं

 

खुशी तो मेहमानों सी

कभी कभी ही आती हैं

दुःख ने डेरा जमा लिया है

शायद रब की यही ख्वाहिश है

 

दर्द अब दर्द सा नही लगता

हमसफर अपना सा लगता हैं

गुस्ताखियो का ही शौक पालू

रेहमत पाने से तेरी अच्छा है

 

खुशी के लिए जिंदगी से झगड़ा

बेवजह सा अब लगता है

सुकून से जनाजे पर सोऊ

ये ख़्वाब सुहाना लगता हैं

 

©  सुश्री प्रिया कोल्हापुरे 

अकोला

मो 97621 54497

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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