सुश्री प्रिया कोल्हापुरे

(सुप्रसिद्ध मराठी लेखिका सुश्री प्रिय कोल्हापुरे जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत।)

☆ कविता ☆ ? ख़ुशी ??☆ सुश्री प्रिया कोल्हापुरे ☆

सुलझे सुलझे सारे सिरे

फिर से उलझ जाते है

दो बूंद खुशी से तेरे

हम अक्सर खुश हो जाते हैं

 

खुशी तो मेहमानों सी

कभी कभी ही आती हैं

दुःख ने डेरा जमा लिया है

शायद रब की यही ख्वाहिश है

 

दर्द अब दर्द सा नही लगता

हमसफर अपना सा लगता हैं

गुस्ताखियो का ही शौक पालू

रेहमत पाने से तेरी अच्छा है

 

खुशी के लिए जिंदगी से झगड़ा

बेवजह सा अब लगता है

सुकून से जनाजे पर सोऊ

ये ख़्वाब सुहाना लगता हैं

 

©  सुश्री प्रिया कोल्हापुरे 

अकोला

मो 97621 54497

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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