डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कहने दो बस कहने दो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 142 – कहने दो बस कहने दो…  ✍

सम्बोधन की डोर न बाँधो, मुझे मुक्त ही रहने दो।

जो कुछ मन में उमड़ रहा है, कहने दो बस कहने दो।

 

अनायास मिल गये सफर में

जैसे कथा कहानी

भूली बिसरी यादें उभरी

जैसे बहता पानी

मत तोड़ो तुम नींदे मेरी, अभी खुमारी रहने दो।

 

बात बात में हँसी तुम्हारी

झलके रूप शिवाला

अलकें ऐसी लगतीं जैसे

पाया देश निकाला

रूप तुम्हारा जलती लौ सा, अभी और कुछ दहने दो।

 

कहाँ रूप पाया है रूपसि

करता जो मदमाता

कितना गहरा हृदय तुम्हारा

कोई थाह न पाता

अभी न बाँधों सम्बन्धों में, स्वप्न नदी में बहने दो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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