हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆ # विधुर का जीवन # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# विधुर का जीवन #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 160 ☆

☆ # विधुर का जीवन #

सुबह सुबह पार्क की बेंच पर

वह बैठा रहता है

मुझे देख मुस्कुरा कर

गुड़ मार्निंग कहता है

उसकी चेहरे की झुर्रियों में

गजब की उष्मा है

आंखों पर मोटे ग्लास का

चश्मा है

अधपके काले सफेद बाल हैं 

लंगड़ाते हुए उसकी चाल है

सबसे गर्म जोशी से

हाथ मिलाता है

अपने दर्द को भूलकर

खूब खिलखिलाता है

मैंने एक दिन पूछा-

भाई! क्या हाल है ?

इस उम्र में यह ऊर्जा  

वाकई कमाल है

वह बोला-

क्या कहें

किससे कहें

अपने दुःख हैं 

बेहतर है खुद ही सहें 

साहब –

बीमार पत्नी

कुछ साल पहले चल बसी

छिन गई तबसे हमारी हंसी

बहू बेटों के साथ रहते हैं

क्या कहें

क्या क्या सहते हैं

तीन बहू बेटों ने

मेरे दिन-रात

ऐसे बांटा है

नाश्ता, लंच, डिनर

फिर लंबा सन्नाटा है

साहब –

अगर पहले पति मर जायें

तो परिवार के साथ

पत्नी रम जाती है

परंतु पहले अगर पत्नी मर जाये

तो आदमी की जिंदगी

थम जाती है

लगता है कि 

उधारी की

जिंदगी जी रहा हूँ 

हंसते हंसते

अकेलेपन का

जहर पी रहा हूँ 

साहब –

पत्नी बिना बुढ़ापा

कांटों भरी शैय्या है

विधुर का जीवन तो

 बिन मांझी की नैया है  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 170 ☆ सॉनेट ~ शारदा स्तुति ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी सरस्वती वंदना शारदा स्तुति )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 170 ☆

☆ सॉनेट ~ शारदा स्तुति ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

शारद! वीणा मधुर बजाओ

कुमति नाश कर सुमति मुझे दो

कर्म धर्ममय करूँ सुगति हो

मैया! मन मंदिर में आओ।

अपरा सीखी, सत्य न पाया

माया मोह भुला भटकाते

नाते राह रोक अटकाते

माता! परा ज्ञान दो, आओ

जन्म जन्म संबंध निभाओ

सुत को अपनी गोद बिठाओ

अंबे! नाता मत बिसराओ

कान खींच लो हँस मुस्काओ

झट से रीझो पुलक रिझाओ

जननी! मुझको आप बनाओ

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२.५.२०२२ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 171 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 171 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 171) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 171 ?

☆☆☆☆☆

Temporal Habitude

जमाने का चलन

मालूम नहीं मुझे कि मिट्टी ने है

रंग बदला या  है कोई और वजह

तमाम उम्र अपनापन बो  कर  भी

अकेलापन ही काटते रहते हैं हम..!

☆☆ 

Knoweth not if the soil has changed

its colour or for some other reasons

Despite sowing the camaraderie, lifelong

Why do we, keep reaping aloofness!

☆☆☆☆☆

 ☆ Enigmatic Waves ☆ 

जिस नजाकत से लहरें

पैरों को छूती है ….

यकीन नही होता इन्होंने कभी

कश्तियाँ डूबाई होगी…

☆☆

The tenderness with which the

waves caressed my feet…

Jus can’t believe that sometimes

they only sank the boats…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Resolute Loyalty… ☆ 

भले ही साथ रहे सारा ज़माना

बहती हवाओं के साथ…

मगर हमारी वफादारी तो हमेशा

चिरागों के साथ ही रहेगी…!

☆☆

Let the the entire world side 

with  the  blowing  winds,

But my loyalty will always

remain with the lamp only..!

☆☆☆☆☆

Fulfilled Expectations☆ 

मुझे यकीन था कि एक दिन

तुम मुझे भूल जाओगे,

मुबारक हो कि तुम मेरी

उम्मीद पर खरे उतरे…

☆☆ 

I was sure that one day

you would forget me…

I’m glad that you’ve lived

upto my expectations..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – भाषा  ? ?

‘ब’ का ‘र’ से बैर है,

‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता,

‘द’ जाने क्या सोच

‘श’,‘म’ और ‘न’ से

दुश्मनी पाले है,

‘अ’ अनमना-सा

‘ब’ और ‘न’ से

अनबन ठाने है,

स्वर खुद पर रीझे हैं,

व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,

‘मैं’ की मय में

सारे मतवाले हैं,

है तो हरेक वर्ण

पर वर्णमाला का भ्रम पाले है,

येन केन प्रकारेण

इस विनाशी भ्रम से

बाहर निकाल पाता हूँ,

शब्द और वाक्य बन कर

मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11: 55 बजे, 16.12.18 )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मन की अदालत… ☆ सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी ☆

सुश्री नीता कुलकर्णी

☆ मन की अदालत ☆ सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी ☆

आईने के सामने खडी थी मैं

इतने में आवाज आयी

आजकल कैसा चल रहा है?

 

 वैसा कुछ खास नहीं 

 

नई किताब लायी नहीं 

पूरानी अलमारी से निकाली नहीं 

 

इतना समय नहीं मिलता

मोबाईल….

 

हाँ हाँ ….रहेने दो

मुझे मालुम है

 

नया कुछ कंठस्थ किया है?

 

जी नहीं 

 

नीचे देखना बंद करो

ऑंखें मिलाकर बातें करो

 

लग रहा था जैसे कटघरे में खडी हूँ 

 

तुम्हारे सामने क्या आयी

तुम तो बस..

मेरी गलतियाँ निकालने लगे

 

ऑंखे तो अपने आप भर गयी..

 

अरे पगली समझ भी जाओ

घर में और कोई बडा है क्या

एक मैं जो हूँ..

तुमसे सच्ची बात करता हूँ 

वरना तुम आगे बढना भूल जाओगी

 

चलो अब  मुस्कुराओ

आज के लिए इतना काफी है

 

मै गुस्से में थी..

लेकिन सोचने लगी..

अरे ये सच भी तो है..

 

बाद में समझ गयी

अरे हाँ….

 

आईने जैसा सच्चा मित्र नहीं  है..

उसका फैसला कभी गलत नहीं  होगा

 

आजकल…

एक अजीब सी बात हो गई है

मेरे उपर ही मेरा  मुकदमा चल रहा है

आरोपी  भी मैं और जज भी मैं 

 

लेकिन ..

अब मजा आने लगा है

 

तुम भी कर लो उसी से दोस्ती

आजकल मेरी हो गयी है

मैं खुश हूँ 

आप भी रहोगे …

 

इतने में आवाज आयी

 अगली तारीख में फिर सुनवाई होगी

 

जी हाँ..

हाजिर हो जाऊंगी… 

© सुश्री नीता चंद्रकांत कुलकर्णी

मो 9763631255

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 159 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “परीक्षाओं से डर मत मन…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “परीक्षाओं से डर मत मन। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “परीक्षाओं से डर मत मन” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धरा को जब तपा दिनभर प्रखर रवि झुलस देता है

तभी चंदा की शीतल चाँदनी की रात होती है।

क्षितिज तब जब कभी नभ को सघन घन घेर लेते हैं

कड़कती बिजलियाँ, तब ही सुखद बरसात होती है।

डुबा चुकता है जब बस्ती उतरता बाढ़ का पानी

हमेशा धैर्य से ही सब दुखों की मात होती है।

निराशा के अँधेरों में कोई जब डूब जाता है

अचानक द्वार पै कोई खुशी बात होती है ॥

परीक्षाओं से डर मत मन ये तो हिम्मत बढ़ाती है

सही जीवन की इनके बाद ही शुरुआत होती है।

नहीं होता किसी के साथ जब कोई अँधेरे में तो

तब हरदम अंजाने उसके हिम्मत साथ होती है॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆ मुक्तक ☆ ।।युग पुरूष स्वामी विवेकानंद जी की जयंती (12 जनवरी)।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।युग पुरूष स्वामी विवेकानंद जी की जयंती (12 जनवरी)।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।। राष्ट्रीय युवा दिवस।।

[1]

अल्प आयु में ही दिया था, अमर दर्शन इतिहास।

देश भारत को किया था, सर्व विश्व सुविख्यात।।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के, वे सर्वसिद्ध अनुयायी।

स्वामी विवेकानंद नाम से, हुए विश्व में विख्यात।।

[2]

युवा पीढ़ी की सोच अध्यात्म, का अनुपम मेल।

शिकागो सम्मेलन में चली, विचारों की अदभुत रेल।।

नवभारत निर्माण संकल्प, लिया यौवनकाल में ही।

नरेंद्र बने स्वामी विवेकानंद था, दर्शन का अलौकिक खेल।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – दोहों में स्वामी विवेकानंद – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ – दोहों में स्वामी विवेकानंद  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे 

प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम।

स्वामी जी तुम हो सदा, लिए विविध आयाम।।

स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार।

अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।।

जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप।

बिखराई नव रोशनी, दी मानव को  धूप।।

सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, तेज अपरिमित माप।

काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।।

गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर।

तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।।

त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग।

खिले संत तुमसे सदा, नवजीवन के रंग।।

था सामाजिक जागरण,  सरोकार, अनुबंध।

नित्य, सतत् आती रही, कर्मठता की गंध।।

सुर, लय थे, तुम ताल हो, बने धर्म की तान।

गुरुवर तुम तो शिष्य का, हो नित ही यशगान।।

मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव।

गुरुवर तुमसे धर्म को, सौंपा पावन ताव।।

वंदन, अभिनंदन करूँ, थे गुरुवर तुम नित्य।

थे तुम खिलती चाँदनी, दमके बन आदित्य।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आहत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आहत ? ?

आहत हूँ

पर क्या करूँ,

जानता था

सारी आशंकाएँ मार्ग की,

सो समूह के आगे

चलता रहा,

डग भरने से चोटें

घिसटने से खरोंचेेंं,

पीछे चलनेवालों के घात,

पीछे खींचनेवालों के आघात,

रास्ता दिखाने वालों के पास

आहत होने के सिवा

कोई विकल्प भी तो

नहीं होता ना..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #215 ☆ भावना के दोहे – शीत का प्रभाव ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपके भावप्रवण दोहे शीत का प्रभाव)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 215 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे –  शीत का प्रभाव… ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

आस – पास बैठे सभी, जलता तेज अलाव।

ताप रहे है बैठकर, है शीत का प्रभाव।।

बैठे सभी चर्चा चले,  बना लिया है झुंड।

काम सभी के रुक गए, दिखे सभी के मुंड।।

आँच कहीं भी मिल रही, ताप रहे हैं हाथ।

जाड़ा अब तो कट रहा,  मिले सभी का साथ।।

 

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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