हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #222 – 109 – “तुम भी तो थे इश्किया अंजाम से बाबस्ता…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुम भी तो थे इश्किया अंजाम से बाबस्ता…” ।)

? ग़ज़ल # 109 – “तुम भी तो थे इश्किया अंजाम से बाबस्ता…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

आँखें मिलीं जब वो आये थे नज़र मुझे,

नहीं रही इसके बाद की कुछ खबर मुझे।

*

मैं अनजान खिलाड़ी थी इश्क़ के खेल की,

तुमने ही तो पढ़ाया था ज़ेर ओ ज़बर मुझे।

*

मैं भी तो सातवें आसमान पर तैर रही थी,

उसके बाद ही आई थी जन्नत नज़र मुझे।

*

तुम भी तो थे इश्किया अंजाम से बाबस्ता,

अब पूछते हो क्यों नहीं रहती सबर मुझे।

*

अब ये बेकार की तकरार किसलिए जनाब,

अब रहने दो अपने आग़ोश में बसर मुझे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संकल्प ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संकल्प ? ?

अपनी सुविधा,

अपना गणित,

समीकरणों का

स्वानुकूल फलित,

सुविधाजीवी जब

बाएँ मुड़ रहे हों,

समझौते ठुकराने का

विवेक जगाए रखना

दाएँ मुड़ने का अपना

संकल्प बनाए रखना।

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 11:03 बजे, 1 फरवरी 2024

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘संतृप्त…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Insatiable Cravings…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “संतृप्त.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि –  संतृप्त ? ?

दुनिया को जितना देखोगे,

दुनिया को जितना समझोगे,

दुनिया को जितना जानोगे,

दुनिया को उतना पाओगे,

अशेष लिप्सा है दुनिया,

जितना कंठ तर करेगी,

तृष्णा उतनी ही बढ़ेगी,

मैं अपवाद रहा

या शायद असफल,

दुनिया को जितना देखा,

दुनिया को जितना समझा,

दुनिया में जितना उतरा,

तृष्णा का कद घटता गया,

भीतर ही भीतर एक

संतृप्त जगत बनता गया!

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 12:25 बजे, 16.6.2019)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Insatiable Cravings…  ~??

?

The more you see the world,

The more you understand it,

More you know the world,

More you unravel the truth…

*

Insatiable thirst is this world,

More it quenches the thirst,

More it accentuates it further…

But I remained an exception

*

Height of Trishna –the cravings

has been decreasing, ever since…

A treasure of contended world

is being created deep inside me..!

?

~ Pravin Raghuvanshi

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 99 ☆ गीत ☆ ।। माता पिता सु सम्मान की हर तदबीर बेटी से है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 99 ☆

☆ गीत ☆ ।। माता पिता सु सम्मान की हर तदबीर बेटी से है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

मां बाप के सुख की होती लकीर बेटी है।

मात पिता सम्मान की तकदीर बेटी से है।।

[2]

जिसके आंगन बेटी वहां पड़ी प्रभु छाया है।

रौनक बसती उस घर जहां बेटी का साया है।।

प्रेम स्नेह विश्वास की होती   नजीर बेटी है।

मां बाप के सुख की होती   लकीर बेटी है।।

[3]

परिवार के दुःख दर्द में पहले रोती बेटी है।

भाइयों के लिए त्याग में पहले होती बेटी है।।

माता पिता खुश रखने की तरकीब बेटी है।

मां बाप के सुख की होती लकीर बेटी है।।

[4]

दो परिवारों को एक सूत्र में बांधती बेटी है।

दोनों घरों का ही सुख दुःख बांटती बेटी है।।

मां बाप लिए कोशिश भी होकर फकीर बेटी है।

मां बाप के सुख की होती   लकीर बेटी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 162 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “क्रोध…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “क्रोध। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “क्रोध” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

क्रोध न हल देता झगड़ों का क्रोध सदा ही आग लगाता।

जहाँ उपजता उसके संग ही सारा ही परिवेश जलाता ॥

 *

मन अशांत कर देता सबका कभी न बिगड़ी बात बनाता ।

जो चुप रहकर सह लेता सब उसको भी लड़ने भड़काता ॥

 *

हल मिलते हैं चर्चाओं से आपस की सच्ची बातों से।

रोग दवा से ही जाते हैं हों कैसे भी आघातों से ॥

प्रेमभाव या भाईचारा आपस में विश्वास जगाता।

वही सही बातों के द्वारा सब उलझे झगड़े निपटाता ॥

 *

इससे क्रोध त्याग आपस का खोजो तुम हल का कोई साधन

जिससे आपस का विरोध-मतभेद मिटे विकास अनुशासन ॥

 *

काम करो ऐसा कुछ जिससे हित हो सबका आये खुशियाँ।

कहीं निरर्थक भेद बढ़े न रहे न दुखी कभी भी दुखियाँ ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #218 ☆ भावना के दोहे – मन मयूर ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे… मन मयूर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 218 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – मन मयूर ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

व्याकुल मन ये कर रहा, पाऊँ तेरा साथ।

पकडूँगा अब एक दिन, गोरी तेरा हाथ।।

*

विधि – विधान से मिल गया, तेरा ही उपहार।

साथ रहेगा हमेशा, तेरा मेरा प्यार।।

*

पलक खोलकर दिन गया, बीत गई है रात।

आशा के आकाश से, खूब हुई बरसात।।

*

खोल रहे संदूक को, दिखे पुराने चित्र।

बीती यादें बंद है, प्यारे -प्यारे मित्र।।

*

देखो इस संदूक को, रखना तुम संभाल।

जब -जब आऊँ याद मैं, खोल लेना हर हाल।।

*

मन मयूरी नाच रहा, मरुथल में बरसात।

रोम -रोम कलियाँ खिली, महके सारी रात।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #199 ☆ अवध में आये श्री रघुवीर… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रस्तुत है अवध में आये श्री रघुवीरआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 199 ☆

☆ अवध में आये श्री रघुवीर.. ☆ श्री संतोष नेमा ☆

अवध  में  आये श्री रघुवीर

दरस बिन आये चैन न धीर

*

हम सदियों से  राह  निहारें

प्रभु चरणन में  प्रेम  जुहारें

मिटी वर्षों  की  संचित  पीर

अवध  में  आये श्री  रघुवीर

*

गली – गली  अरु द्वारे -द्वारे

खूब   सजे   हैँ   वंदन  बारे

द्रवित नयनों से  बरसे  नीर

अवध  में  आये  श्री रघुवीर

*

सीता संग  लक्ष्मण भी आए

भक्त   पवनसुत   हैँ   हर्षाए

बाँटते  हैं  सब  मिसरी  खीर

अवध  में  आये  श्री  रघुवीर

*

द्वार  खड़ा  “संतोष”   पुकारे

लगा  रहा  प्रभु  के  जयकारे

वंदना    करते    सरयू    तीर

अवध  में  आये   श्री  रघुवीर

*

दरश बिन होता हृदय  अधीर

अवध  में  आये  श्री   रघुवीर

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजातशत्रु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अजातशत्रु ? ?

उगते सूरज को

अर्घ्य देता हूँ;

पश्चिम रुष्ट हो जाता है,

डूबते सूरज को

नमन करता हूँ;

पूरब विरुद्ध हो जाता है,

मैं कितना भी चाहूँ

रखना समभाव,

कोई न कोई

पाल ही लेता है वैरभाव,

तब कालचक्र ने सिखाया,

अनुभव ने समझाया-

प्रथम या मध्यम पुरुष

निर्धारित नहीं कर सकता,

उत्तम पुरुष की आँख में

बसती है अजातशत्रुता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #32 ☆ कविता – “शिकस्त-ए-गुलशन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 32 ☆

☆ कविता ☆ “शिकस्त-ए-गुलशन…☆ श्री आशिष मुळे ☆

न जाने क्यों आजकल

हिंमत नहीं होती हैं

हार और जीत में

ग़म या ख़ुशी नहीं होती हैं

 *

चाहत की राह पर

जिंदगी चलती है

मुकाम पर न जानें

हसीं क्यों गायब होती हैं

 *

उम्र उम्र की

कहानी अलग अलग है

न जानें क्यों इस मुकाम पर

किताबों के पन्ने खाली है

 *

सोचू उन खाली पन्नों में

कही छिपे गुल खिलेंगे

वो उन्हें मगर अभी खिलने नहीं देंगे

कफ़न पर मेरे सैकड़ों उछालेंगे

 *

कैसी तेरी दुनियां, कैसी राह-ए-जिंदगी

या इलाही…ये कैसी उम्र शिकस्ती

जब इश्क था तब समझ नहीं

और आज समझ है, तो मोहब्बत नहीं…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 192 ☆ गीत – सर्दियाँ अब आ गई हैं  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 192 ☆

☆ गीत – सर्दियाँ अब आ गई हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

धूप पाकर मन खिलेगा,

सर्दियाँ अब आ गई हैं।

याद बचपन की मिली है,

मस्तियाँ – सी छा गई हैं।।

 *

ओढ़ चादर दूधिया – सी

खिलखिलाता आज मौसम।

भोर हल्की बर्फ लेकर

झिलमिलाता आज मौसम।

 *

लौट जाएँ रश्मियाँ जब,

मन लगे बहला गई हैं।।

 *

मौन व्रत की साधना में

ये हवाएँ लवलीन हैं।

प्रियतमा की याद में या,

सच हो रहीं गमगीन हैं।।

 *

प्रकृति सुधामय हो रही,

बुलबुलें कुछ गा गई हैं।।

 *

दिन हैं छोटे , रात लंबी

बढ़ते चलें अपने सफर ।

मौन रातें सरसरातीं

थरथराती है हर डगर।

 *

रंग बदले रोज मौसम

चन्द्र-किरणें भा गई हैं।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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