हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 114 ☆ गीत – आँसू तुम हो सरलम निश्छल… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 114 ☆

☆ गीत – आँसू तुम हो सरलम निश्छल… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

आँसू तुम हो सरलम निश्छल

झरना – सा बह जाते हो।

प्रेम उमड़ता जब आँखों में

जाने क्या कह जाते हो।।

 

कभी दिव्यता की सुधियों में

कभी क्रोध की ज्वाला बन

जीवन की सच्चाई तुम हो

कभी हँसे तुम ग्वाला बन

 

श्रद्धा के तुम पुष्प सुगंधित

पीर यूँ ही सह जाते हो।

प्रेम उमड़ता जब आँखों में

जाने क्या कह जाते हो।।

 

तन्हाई में दीवारों से

क्या – क्या बातें चलती हैं

कभी ईश को करते अर्पण

कभी शाम – सी ढलती हैं

 

तुम हो नदियों जैसे पावन

सागर में मिल जाते हो।

प्रेम उमड़ता जब आँखों में

जाने क्या कह जाते हो।।

 

मीत कभी तो कभी प्रीत हो

यादों के तारे बनकर

सागर – सा तुम बहे निरन्तर

भूली – बिसरी धुन सुनकर

 

शेष बचा क्या, सब है तर्पण

राह नई दिख लाते हो।

प्रेम उमड़ता जब आँखों में

जाने क्या कह जाते हो।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में नारी आदर्श सीता – भाग – 1 ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में नारी आदर्श सीता – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

श्री सीता रामाभ्याम् नम:

“चारों वेद पुरान अष्टदश, छहों शास्त्र सब ग्रन्थन को रस” जिसमें है उस रामचरित मानस के रचियता कवि श्रेष्ठ तुलसीदास की विनम्रता तो देखिए-कहते हैं इस ग्रंथ की रचना उन्होंने केवल स्वान्त:-सुखाय की है। वास्तव में मानस एक ऐसा अनुपम और अद्भुत ग्रंथ है कि इसमें जिसका मानस जितनी गहरी डुबकी लगा सकता है उसे उतने ही रत्न मिल सकते हैं और उन रत्नों में जो आभा है वह बहुरंगी है जो दिनों दिन और उज्ज्वल होती जाती है। यह भक्त शिरोमणि महाकवि तुलसीदास के बस की ही बात है कि उन्होंने अपने अनन्य आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के शील और गुणों का वर्णन करते हुए ऐसी कथा धारा प्रवाहित की है कि जिसमें अवगाहन कर कौये, कोयल और बगुले, हंस बन जाते हैं-

काक होहिं पिक बकहि मराला ऐसा उनने स्वत: कहा है किन्तु अपने लिए कहते हैं कि-

कवि न होऊँ नहि वचन प्रबीनू, सकल कला सब विधाहीनू।

और  

भनिति भदेश, वस्तु भलि वरनी, राम कथा जग मंगल करनी।

इससे ही स्पष्ट है कि राम कथा की रचना-रामचरित मानस की रचना का उद्ïदेश्य लोग-मंगल ही अधिक है, आत्म मंगल कम।

यह तो सच है कि इसकी रचना की प्रेरणा उन्हें उनकी भगवान राम में अनन्त श्रद्धा, भक्ति और विश्वास से उपजी। साथ ही दैवी प्रेरणा से भी। किन्तु रचनाकार को सामायिक सामाजिक परिस्थितियाँ भी अभिव्यक्ति के लिए आधार अवश्य देती हंै और उनसे प्रभावित कवि हृदय अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है।

जिस समय तुलसी दास जी थे भारत वर्ष में विधर्मियों का राज्य था। सीमित धनी सामंत वर्ग वैभव विलास में मस्त एक बड़े निर्धन वर्ग का शोषण कर रहा था। हिन्दु समाज उनसे त्रस्त था, बेसहारा था, दुखी था। तुलसीदास जी ने स्वत: गरीबी और उपेक्षा का दुख भोगा था तरह तरह के ‘दैहिक दैविक भौतिक ताप’ से पीडि़त समाज को एक ऐसी शक्ति और संबल की जरूरत थी जिससे दुखी जीवन को निराशा के अंधकार में आशा के प्रकाश की किरण मिल सके। अत: निर्गुण निराकार ब्रह्मï की उपासना की अपेक्षा उन्हें साकार, सबल, सरलहृदय, दुष्टों का दलन करने वाले, दीन-हीनों को प्रेम से गले लगाने वाले धुनर्धारी भगवान राम की भक्ति, जो सहज ही अधिक आकर्षक और आनंददायी है, को प्रतिपादित की, और भक्तवत्सल राम की मर्यादा,  पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित प्रतिमा को जनमन में बैठा ‘निर्बल के बल राम’ का गुणगान किया, समाज को ढाढ़स बँधाया और आदर्श प्रस्तुत किया जो कालजयी है। और आज भी अनुकरणीय है और भविष्य में भी मानवता का पथप्रदर्शक बना रहेगा।

सिया-राम मय सब जग जानी करऊँ प्रणाम जोरि जुग पाणीÓ कहकर उन्होंने कण कण में घट घट में जगत्जननी सीता सहित भगवान श्री राम का निवास प्रतिपादित कर भगवान की भक्ति को ‘कलि मल हरनीÓ ‘संसय विहग उड़ावनहारीÓ सब भाँति हितकारी और एकमेव आश्रयस्थल प्रतिपादित किया है।

कहा है-

‘एक भरोसों एक बल एक आस विश्वास

श्याम सरोरुह राम घन चातक तुलसी दास’

इस पृष्ठ भूमि में यदि हम देखें तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम और जगत्जननी सीता के जीवन के माध्यम से जो आदर्श मानस में प्रस्तुत किये गये हैं वे मनमोहक, अजर अमर और युग युग जनहितकारी व कल्याणकारी हैं। वे 4-5 सौ वर्षों पूर्व के तत्कालीन समाज के लिये जितने अनुकरणीय थे, आज भी हैं, और शायद आज के तीव्र गति से पाश्चात्य विचार धारा से प्रभावित, परिवर्तन शील समाज में, जब हर क्षेत्र में अपने को मॉडर्न प्रदर्शित करने की लडक़े-लड़कियों में होड़ सी लगी है और भी अधिक प्रासंगिक और आवश्यक है। हमारी भारतीय संस्कृति को और इसकी मर्यादाओं को बनाये रखने में जिसकी प्रशंसा हमसे शायद अधिक विदेशी करते हैं और भौतिकता से ऊबकर आध्यात्मिकता की ओर आशाभरी दृष्टि से जोहते हैं।

भारतीय दर्शन में अद्र्ध नारीश्वर की अवधारणा है। व्यक्तित्व की पूर्णता पति-पत्नी की एकरूपता और समरसता में है और यही  दृष्टि गृहस्थ जीवन की कुशलता, सफलता और आनन्द के लिए आवश्यक है। नर और नारी एक दूसरे के लिए समर्पित हों तो सुख ही सुख है। इसलिए भारतीय मान्यता पत्नी को अद्र्धागिनी, सहधर्मिणी, गृहस्वामिनी का दर्जा देता है। पाश्चात्य मान्यता में इससे बहुत भिन्न है वे शायद अधिक से अधिक सहचरी व पर्यंंकï शायिनी मानते हैं। यदि नारी को पति की समर्पित अद्र्धागिनी, गृहस्वामिनी के रूप में प्रतिष्ठित होना है तो उसके लिए बचपन से उसकी वैसी ही ट्रेनिंग और तैयारी की जानी चाहिए तो उसका कोई आदर्श तो होना चाहिए। मानस में वह आदर्श सीता के जीवन चरित्र में मिलता है।

क्रमशः …

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 30 ☆ गीत – नीर युद्ध हो जायेगा…… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत है एक विचारणीय गीत  नीर युद्ध हो जायेगा… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 30 ✒️

? गीत – नीर युद्ध हो जायेगा… — डॉ. सलमा जमाल ?

हे मानव तुम अब भी सम्भलो ,

नष्ट करो ना जल को ।

बिन पानी धरती जब सूखे ,

याद करो उस पल को ।।

 

बनके पपीहा भटकोगे तुम ,

पीहू पीहू बोलोगे ,

बून्द – बूंद को सब तरसेंगे ,

वन – वन में डोलोगे ,

बार-बार खोलकर देखोगे ,

सूखे हुए नल को ।

हे मानव ————————- ।।

 

जल का आदर करना सीखो ,

यह दुनिया में अनमोल ,

दूर नहीं वह दिन जब पानी ,

पाओगे तौल – तौल ,

जल समस्या में अपनाओ ,

तुम  संरक्षण के हल को ।

हे मानव ————————- ।।

 

 पानी गर हो गया ख़त्म तो ,

नीर युद्ध हो जाएगा ,

लहू – लुहान होगा मानव ,

सब अशुद्ध हो जाएगा ,  

‘ सलमा ‘अभी समय है चेतो ,

क्या होगा फिर कल को ।

हे मानव ————————- ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 37 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 37 – मनोज के दोहे

यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।

जितना उसे सहेजता, प्रतिफल मिलता साथ।।

 

जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार

लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।

 

हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान

कूएँ का मेंढक सदा, रखे यही बस शान।।

 

सच्चा साथी मन बने, समझो नहीं अनाथ।

निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम मिलता साथ।।

 

चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।

गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।

 

राह चुने अच्छी सदा,  जीवन में है भोर।

गलत राह में जब बढ़े, तम का बढ़ता शोर ।।

 

दिखे जगत में बहुत हैं, भाँति-भाँति के लोग।

तृप्त पेट को ही भरें, मिलता मोहन-भोग।।

 

अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।

विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।

 

चलो आपके साथ हैं, कदम बढा़ते साथ।

सच्चा रिश्ता है वही, थामे सुख दुख हाथ।।

 

मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।

सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।

 

रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।

देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।

 

अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।

रिश्ता सच्चा है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – चिरंजीव ??

महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में वटसावित्री आज पूर्णिमा को मनाई जाती है। आज वटवृक्ष का पूजन होता है। इस संदर्भ में कोरोनाकाल में जन्मी यह कविता देखिए-

लपेटा जा रहा है

कच्चा सूत

विशाल बरगद

के चारों ओर,

आयु बढ़ाने की

मनौती से बनी

यह रक्षापंक्ति,

अपनी सदाहरी

सफलता की गाथा

सप्रमाण कहती आई है,

कच्चे धागों से बनी

सुहागिन वैक्सिन,

अनंतकाल से

बरगदों को

चिरंजीव रखती आई है..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सृजन शब्द – माँ ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 150 से अधिक पुरस्कारों / सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ सृजन शब्द – माँ ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

जीवन में अस्तित्व की पहचान है माँ ।

धरती से अंबर तक प्रेम महान है माँ ।।

 

धरा पर ईश्वर का रूप अनोखा है माँ ।

दुख को समेटे सुख लेखा है माँ ।।

 

चारों धाम की पुन्य प्रताप दयाला है माँ ।

जीवन के विष में अमृत प्याला है माँ ।।

 

 चाँद तारे सूरज पूरा आसमान है माँ ।

पृथ्वी प्रकृति सृष्टि सी अरमान है माँ ।।

 

जिंदगी की धूप में ठंडी छाँव है माँ ।

प्रेमिल ममता का सुंदर गाँव है माँ ।।

 

सरिता सी बहती शीतल धारा है माँ ।

सभ्यता संस्कृति अर्पित सारा है माँ ।।

 

जीवन में पहला ज्ञान का भंडार है माँ ।

अतुल्य स्नेह की अमूल्य धरोहर है माँ ।।

 

बैचैन सी दुनिया में आत्मसंतुष्टि है माँ ।

नि:स्वार्थ भाव से तत्पर वृष्टि है माँ ।।

 

ममतामयी आँचल की सौगात है माँ ।

हर पल प्रेमिल हृदय बरसात है माँ ।।

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

मंडला, मध्यप्रदेश 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लोग ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

(ई-अभिव्यक्ति में युवा साहित्यकार श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल जी का हार्दिक स्वागत है। आप लखनऊमें पले बढ़े और अब पुणे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। आपको बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी कविताएं लिखने का शौक है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता लोग।)

 ☆ कविता ☆ लोग ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

अच्छे लोग

बुरे लोग

मतलबी लोग

दिलदार लोग

भीड़ बढ़ाते लोग

और फिर भी तनहा रह जाते लोग

शोर मचाते लोग

और फिर खामोश हो जाते वही लोग

तेज़ भागते लोग

ठहरे ठहरे से लोग

उदास लोग

उम्मीद बढ़ाते लोग

भरोसेवाले लोग

और धोखा खाये लोग

 

और जाने कितने विशेषणों द्वारा

और जाने कितने पर्यायों द्वारा बखाने गए

पर फिर भी अपरिभाषित लोग

 

पर समय बीतते बीतते

सिर्फ लोग रह जातें है

 

 न पर्याय न विशेषण

सिर्फ लोग रह जातें हैं ॥

© केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

पुणे मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 92 – गीत – नील झील से नयन तुम्हारे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 92 – गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…✍

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पांखी सा मेरा मन है।

 

संशय की सतहों पर तिरते  जलपांखी का मन अकुलाया। संकेतों के बेहद देखकर

नील-झील के तट तक आया।

 

 दो  झण हर तटवर्ती को लहर नमन करती है लेकिन-

 

 गहराई का गांव अजाना मजधारों के द्वार बंद है ।

शव सी ठंडी हर घटना पर अभियोजन के आगिन छंद है।

संबंधों की सत्य कथा को

इष्ट तुम्हारा संबोधन है।

*

 कितनी बार कहा- मैं हारा लेकिन तुम अनसुनी किए हो। डूब डूब कर उतर आता हूं संदेशों की सांस दिए हो।

 

वैसे तो संयम की  सांकल चाहे जब खटका दूं लेकिन-

कूला कूल लहरों पर क्या वश जाने कब तटस्थता वर ले। वातावरण शरण आया है -एक सजल समझौता कर लें-

 

 बहुवचनी हो पाप भले ही किंतु प्रीति का एकवचन है।

*

मैं कदंब की नमीत डाल सा सुधियों की जमुना के जल में।

देख रहा हूं विकल्प तृप्ति को अनुबंधों के कोलाहल में।

 

आशय  का अपहरण अभी तक

कर लेता खुद ही लेकिन

 

 विश्वासों के बिंब विसर्जित आकांक्षा के अक्षत-क्षत हैं रूप शशि का सिंधु समेंटे  सम्मोहन हत लोचन लत हैं। दृष्टि क्षितिज में तुम ही तुम हो दरस की जैसे वृंदावन हैं ।

 

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पाखी सा मेरा मन है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 94 – “कालजयी-आराधन…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कालजयी-आराधन …”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 94 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कालजयी-आराधन”|| ☆

क्या -क्या सम्हालते

 

कितनी ही यादों के-

विनती-फरियादों के

पाँवों में लगे – लगे

सूख गये आलते

 

रीत गये संसाधन कालजयी आराधन

वक्ष की उठानों के

बिम्ब कई सालते

 

घुँघराले बालों के

इतर रखे आलों के

पूरब के राग सभी

पश्चिम में ढालते

 

कंगन पानी -पानी

चिन्तित है रजधानी

और क्या नया किस्सा

आँखों में पालते

 

शीशे के बने हुये

चंदोबे तने हुये

परदों में रेशम की

डोर कभी डालते

 

रानी पटरानी सब

लाल हरी धानी सब

सहम गई शाम कहीं

दीपक को बालते

 

चित्त के चरित्र सभी

अपनो के मित्र सभी

तसवीरों में शायद

खुदको सम्हालते

 

भोर क्या हुई सहमी

ठहरी गहमा -गहमी

दूर नहीं हो पाये

आपके मुगालते

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-06-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 85 ☆ # बारिश की याद आती है # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बारिश की याद आती है #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 85 ☆

☆ # बारिश की याद आती है # ☆ 

भीषण गर्मी में

‘ लू ‘ के थपेड़े

भटक रहे सब

सर को ओढ़े

तपन, जब

तनको झुलसाती है

तब बारिश की याद आती है

 

दिनभर चिलचिलाती धूप है

पसीना बहाती खूब है

छांव भी,जब तरसाती है

तब बारिश की याद आती है

 

गर्मी में लगती कितनी प्यास है

शीतल जल की मनमे आस है

प्यास, जब पल पल तड़पाती है

तब बारिश की याद आती है

 

पशु-पक्षी तृष्णा के मारे

जल के लिए है व्याकुल सारे

कभी कभी जल बिन

जब परिंदों को मौत आती है

तब बारिश की याद आती है

 

प्यासी धरती तड़प रही है

प्रियत्तम से मिलने धड़क रही है

वर्षा की फुहारें,

जब धरती में समाती है

तब बारिश की याद आती है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print