हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 70 ☆ ।। यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक  ☆ ।। यह छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ज्ञान बुद्धि विनम्रता   तेरे  आभूषण हैं।

सत्यवादिता प्रभु  आस्था तेरे भूषण हैं।।

मत राग द्वेष कुभावना    धारण करना।

ईर्ष्या और घृणा कुमति भी     दूषण हैं।।

[2]

आत्म विश्वास से खुलती सफल राह है।

सब कुछ संभव यदि जीतने की चाह है।।

व्यवहार कुशलता  बनती उन्नति साधक।

बाधक बनती हमारी नफरतऔर डाह है।।

[3]

मत पालो क्रोध  प्रतिशोध  बन जाता है।

मनुष्य स्वयं जलता औरों को जलाता है।।

प्रतिशोध का  अंत  पश्चाताप  से है होता।

कभी व्यक्ति प्रायश्चित भी नहीं कर पाता है।।

[4]

विचार आदतों से ही चरित्र निर्माण होता है।

इसीसे तुम्हारा व्यक्तित्व चित्र निर्माण होता है।।

तभी बनती तुम्हारी   लोगों के दिल में जगह।

गलत राह पर केवल दुष्चरित्र निर्माण होता है।।

[5]

बस छोटी सी जिंदगी प्रेम के लिए भी कम है।

नफरत बन  जाती   जैसे लोहे की जंग   है।।

बदला लेने में बर्बाद नहीं  करें इस वक्त को।

तेरा सही रास्ता ही लायेगा सफलता का रंग है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 134 ☆ बाल गीतिका से – “भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित बाल साहित्य ‘बाल गीतिका ‘से एक बाल गीत  – “भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ बाल गीतिका से – “भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

भगवान हमें प्यार का वरदान दीजिये ।

औरों के कष्ट का सही अनुमान दीजिये ॥

 

दुनिया में भाई-भाई से हिलमिल के सब रहें

है द्वेष जड़ लड़ाई की – यह ज्ञान दीजिये ॥

 

होता नहीं लड़ाई से कुछ भी कभी भला

सुख-शांति के निर्माण का अरमान दीजिये ॥

 

निर्दोष मन औ’ शुद्ध भावनाओं के लिये

हर व्यक्ति को सबुद्धि औ’ सद्ज्ञान दीजिये ॥

 

दुनिया सिकुड़ के  आज हुई एक नीड़ सी

इस नीड़ के कल्याण का विज्ञान दीजिये ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जंगल: दो कविताएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय कविताएं – जंगल: दो कविताएँ-)

☆ लघुकथा ☆ जंगल: दो कविताएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

एक

आग से धरती बनी

धरती पर जंगल उगे

जंगल में परिन्दे आए

और जानवर

फिर जंगल में वनमानुष आए

फिर आया आदमी

और आदमी के बाद

जंगल में कुछ नहीं आया ।

दो

जंगल सरकार का है

जंगल की लकड़ी तस्करों की

जंगल के प्राणी बाघों के हैं

जंगल का पानी कारख़ानों का

जंगल में रहने वालों का

कुछ भी नहीं जंगल में ।

 

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अवसरवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अवसरवाद ??

बित्ता भर करता हूँ,

गज भर बताता हूँ,

नगण्य का अनगिन करता हूँ,

जब कभी मैं दाता होता हूँ..,

 

सूत्र उलट देता हूँ,

बेशुमार हथियाता हूँ,

कमी का रोना रोता हूँ,

जब कभी मैं मँगता होता हूँ..,

 

धर्म, नैतिकता, सदाचार,

सारा कुछ दुय्यम बना रहा,

आदमी का मुखौटा जड़े पाखंड

दुनिया में अव्वल बना रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

💥 अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #184 ☆ भावना की कुंडलियाँ… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना की कुंडलियाँ…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 184 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना की कुंडलियाँ… ☆

मन की आंखों में बसा, बस तेरा ही प्यार।

देख तुझे पढ़ने लगे, आँखों का अखबार।।

आँखों का अखबार, पढ़ें फिर तुमको जानें।

मन ही मन में ठान, बात दिल की पहचानें।।

कहे भावना बात, सुनी बातें सब जन की।

तुम हो मेरी जान, बात कहता हूँ मन की।।

दिल से ही कहने लगी, धड़कन  दिल का हाल।

मन बेकाबू हो रहा, मिलने को तत्काल।।

मिलने को तत्काल, सनम तुम  आओ कैसे।

लिया तुम्हें है जान, नहीं हो  सपने जैसे।।

कहे भावना बात, रोज ये दिल की तुमसे ।

मन की मन से जान, बात कहते हैं दिलसे।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #170 ☆ “एक पूर्णिका … बेटा” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – एक पूर्णिका … बेटा”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 170 ☆

 ☆ “एक पूर्णिका … बेटा☆ श्री संतोष नेमा ☆

बात  हमारी  मान  लो  बेटा

लोगों कों  पहचान लो  बेटा

कौन है अपना कौन  पराया

अपने  से  ही जान लो  बेटा

बड़े- बूढ़ों की बात सुनो  तुम

गाँठ  बड़ी  सी बाँध लो  बेटा

राह  धर्म  की  चलना  हरदम

दिल में अब यह ठान लो बेटा

काम-क्रोध मद लोभ से बचना

अपने  मन  में  आन  लो  बेटा

सोच-समझ  कर बोलो हमेशा

मुख  में  मीठी  जुवान लो बेटा

खूब  करो  माँ-बाप  की   सेवा

कर्मों    पर   संज्ञान   लो   बेटा

सपने  सभी  साकार  करो  तुम

ऐसी   ऊँची   उड़ान   लो   बेटा

पाना   यदि   “संतोष”. तुम्हें   है

हाथ  में  काम  महान  लो   बेटा

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “साथ तुम्हारा…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “साथ तुम्हारा…☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।

तुमसे बढ़कर और नहीं, तुझ तक जीवन सारा हो।।

 

मेरे प्रियवर, मेरे साथी,

चाहत है बस तेरी

तुझ तक सीमित मेरा जीवन,

और भावना मेरी

हर पल साथ तुम्हारा हो, बस तुझ पर दिल हारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

गहन तिमिर में तू उजियारा,

है वसंत की बेला

तू केवल लगती मलयानिल,

दुनिया जगे झमेला

पास रहे तू हर पल मेरे, वरना दिल बेचारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

तू जीवन की धवल चाँदनी,

सुखद एक अहसास

सभी ओर तो रोदन दिखता,

तू केवल विश्वास

सूरज-चाँद उगें जीवन में , सब कुछ तुझ पर वारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

भजन-आरती तुझमें दिखते,

गुरुवाणी का गायन

परभाती की रौनक तुझमें,

राम-राम अभिवादन

पूरणमासी प्यार तुम्हारा, बहती गंगा धारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आमरण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आमरण ??

दो समूहों के बीच

वाद-विवाद,

मार-पीट,

दंगा-फसाद,

फिर सुना-

बीच बचाव करनेवाला

निर्दोष मारा गया

दोनों तरफ के

सामूहिक हमले में..,

सोचता हूँ

यों कब तक

रोज़ मरता रहूँगा मैं..?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 162 ☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 162 ☆

☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

राधाकृष्णन थे गुरू, अदभुत उन का ज्ञान।

पाँच सितंबर जन्मदिन, करे देश सम्मान।।

 

श्रेष्ठ विचारक, वक्ता, रखा दार्शनिक ज्ञान।

उत्कृष्ट लेखनी से बने, मानव एक महान।।

 

ईश्वर के प्रिय भक्त थे, बाँटा जग को प्यार।

सत्य बोलकर ही सदा, कभी न मानी हार।।

 

शिक्षक बनकर देश का, सदा बढ़ाया मान।

किया समर्पित स्वयं को, बाँटा सबको ज्ञान।।

 

प्रतिभा की सदमूर्ति थे, नहीं किया अभियान।

सदा पुण्य करते रहे, और बढ़ाई शान।।

 

लड़े सदा अज्ञान से, किया दूर अँधकार।

मिटा कुरीति ज्ञान से, किया सदा उद्धार।।

 

खुशी, प्रेम सत बाँटकर, करें सभी हम याद।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सदा रहे निर्विवाद।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #184 – कविता – जब से ताबीज़ गले में बाँधा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  “जब से ताबीज़ गले में बाँधा…”)

☆  तन्मय साहित्य  #184 ☆

☆ जब से ताबीज़ गले में बाँधा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

वो बात साफ साफ कहता है   

जैसे नदिया का नीर बहता है।

 

अड़चनें राह में आये जितनी

मुस्कुराते हुए वो सहता है।

 

अपने दुख दर्द यूँ सहजता से

हर किसी से नहीं वो कहता है।

 

हर समय सोच के समन्दर में

डूबकर खुद में मगन रहता है।

 

बसन्त में बसन्त सा रहता

पतझड़ों में भी सदा महका है।

 

इतनी गहराईयों में रहकर भी

पारदर्शी सहज सतह सा है।

 

शीत से काँपती हवाओं में

जेठ सा रैन-दिवस दहता है।

 

जब से ताबीज़ गले में बाँधा

उसी दिन से वो शख्स बहका है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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