हिन्दी साहित्य – कविता ☆ महानगर ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कविता  ☆ महानगर ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

महानगर में चांदनी

पेड़ों के पत्तों से छनकर

धरती पर नहीं मुस्कुराती

दूधिया ट्यूबलाइटस के पीछे

छिप कर खूब रोती है ।

 ☆

महानगर की भीड़ में

दिल में बस

एक ही चाहत रही

मुझको कोई

मेरे गांव के नाम से

पुकार ले ,,,

 ☆

महानगर में आके

मैंने ऐसे महसूस किया

जैसे किसी ने मछली को

पानी से अलग किया ।

महानगर में कोयल ने

आम के झुरमुट में

बहुत मीठी आवाज में गाया

शोर होड और दौड के बीच

उसकी मीठी आवाज

किसी ने न सुनी

इसलिए वह बेचारी बहुत सिसकी

बहुत सिसकी

☆ 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 4 (86-88)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (86-88) ॥ ☆

 

किया विश्वजित यज्ञ फिर दिया सकल धन दान

सच सज्जन की सकल निधि परहित मेघ समान ॥ 86॥

 

यज्ञ बाद सब कैद नृप जो थे प्रिय से दूर,

हृदय हार का दुख लिये जीवन में मजबूर

निज सचिवों की राय से दे आकस्मिक मोड,

रघु ने सबको ग्रहगमन हेतु दिया तब छोड़ ॥ 87॥

 

छत्र कुलिश ध्वज आदि फिर पाने की ले आश

जाते विनत प्रणाम हित जाये रघु के पास

चरम युगुल में शीश रखा सबने किया प्रणाम,

सिर के पुष्प पराग से करते चरण ललाम ॥ 88॥

चतुर्थ सर्ग समाप्त

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की#58 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #58 –  दोहे 

आंसू बहते रात दिन, चिथड़ा हुआ नसीब ।

कोई धनी धोरी नहीं, कितना सही गरीब।।

 

आंसू बहते हैं मगर के, पहचानेगा कौन।

नेता आंसू बाज हैं, तुरत बदलते ‘टोन’।।

 

आंसू को मोती कहें, और आंख को सीप।

उसकी उतनी अहमियत, जितना रहे समीप।।

 

गर्व गरूरी को लगे, तृण भी तीर समान ।

इसीलिए तो कर रहे, आंसू का अपमान।।

 

कोहिनूर है आंख का, आंसू है अनमोल ।

तीन लोक की संपदा, सके न इसको तोल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 58 – खोजते हैं दूर तक सम्भावनायें …. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवणअभिनवगीत – “खोजते हैं दूर तक सम्भावनायें ….। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 58 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ खोजते हैं दूर तक सम्भावनायें …. ☆

ये फटे घुटने

तुम्हारी जीन्स के

स्नेह बिन सन्दर्भ

सोया बीन्स के

 

खोजते हैं दूर

तक सम्भावनायें

बताते हैं परस्पर

की भावनायें

 

जो नवीना प्रथाओं

में बदलते हैं

मुक्त जैसे आचरण

हों टीन्स के

 

कुछ अनिर्णित

बिन्दु हैं सभाओं में

तैरते जो विफल

होती हवाओं में

 

बिन खुले बाजार

भावों से अनिश्चित

मूल्यअनगढ लगें

खुदरा मीन्स के

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

22-09-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्दब्रह्म ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शब्दब्रह्म ?

जंजालों में उलझी

अपनी लघुता पर

जब कभी लज्जित होता हूँ,

मेरे चारों ओर

उमगने लगते हैं

शब्द ही शब्द,

अपने विराट पर

चकित होता हूँ..!

आजका दिन ‘विराट’ हो।

©  संजय भारद्वाज

(12.19 बजे, 15.11.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #48 ☆ जमीन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक  समसामयिक भावप्रवण कविता “# जमीन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 48 ☆

☆ # जमीन # ☆ 

आकाश में उड़ने वाले

पक्षियों के घोंसले भी

जमीन पर ही होते हैं

हाथ ठेले पर, दिनभर

पसीना बहाने वालें मजदूर

रात को जमीन या

हाथ ठेले पर ही सोते हैं

मीठे मीठे स्वादिष्ट फल खाकर

उनके बीज या पौधे

जमीन में ही लगाते है

भूख मिटाने वाले अनाज

कृषि भूमि मे ही तो बोते हैं

अपनी जिंदगी विपन्नता में

जीने वाले लोग

अपनी गृहस्थी जमीन पर ही

जमाते हैं

समस्याओं से हारे हुए लोग

जमीन पर ही तो

अपना सर पटकते है

वर्षा की रिमझिम फुहारें

धरती के तपते तन-मन को

बरसात में भिगोते है

प्रेमी युगल माटी की

सौंधी सौंधी खुशबू में

मस्त होकर

एक दूसरे में समाते है

हम जमीन पर ही

जन्म लेते है

हम जमीन में ही

दफ़न होते हैं

यह जमीन हमारे

जीवन का आधार है

इसमें संसार की

सारी खुशियां अपार है

फिर भी हम ऊंचाईयों पर ही

क्यों रहना चाहते हैं?

क्या जमीन पर रहने वाले

हमसे कमतर होते है ?

यह जमीन ही अपने जड़ों की

असली पहचान है

गर पैरों से जमीन फिसली

तो वह भटका हुआ इंसान है 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 4 (81-85)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (81-85) ॥ ☆

 

रघु ने लोहित पार की – सुन ज्योतिषपुर राज

काँपे चयनित वृक्ष से गज बंधन के काज ॥ 81॥

 

डरा देख दुर्दिन समझ रघु के रथ की धूल

तब फिर करता युद्ध वन्या सेना के प्रतिकूल ॥ 82॥

 

कामरूप नृप भेंट देै अनुपम भट गजराज

की शरणागत प्रार्थना रघु से रखने लाज ॥ 83॥

 

स्वर्ण सिंहासन पर बिठा रत्नपुष्प से पूज

रघु चरणों  पै आ झुका कामरूप का भूप ॥ 84॥

 

छत्रहीन राजाओं के सिर पर रथरज डाल

लौटे कर के दिग्विजय हो रघुराज निहाल ॥ 85॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 60 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 60 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 60) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 60 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

खामोश रहने का

अपना ही मजा है,

नींव के पत्थर…

कभी बोला नहीं करते…

 

Being silent

has its own fun,

Foundation stones

never speak…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

काश सीख पाते हम भी,

मीठे झूठ बोलने का हुनर

कड़वे सच ने तो  ना जाने

कितने लोग हमसे छीन लिए..!

 

Wish I could also learn the

art  of  telling  sweet  lies…

Knoweth not how many people did

the  bitter  truth  snatch  from  me..!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ना तुमसे मिलने की आस है

ना ही तुम्हें पाने की प्यास है,

फिर भी तुम्हारे प्यार का जुनून है

ये देता मेरे दिल को बड़ा सुकून है …!

 

Neither any hope is there of meeting you

Nor is any urge left to have you, still,

The passionate obsession of your love

gives serene tranquility to my heart ….!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कितना आसान है कह देना

कि मैं भूल  जाऊँ  तुम्हें,

क्या जिस्म से भी कभी रूह

यूँ आसानी से निकलती है…

 

How easy it is to say

that I must forget you,

Does  the  soul  ever  

leave the body easily!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 60 ☆ सलिल न बन्धन बाँधता …. ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण कविता ‘सलिल न बन्धन बाँधता …. । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 60 ☆ 

सलिल न बन्धन बाँधता …. ☆ 

*

मुक्तक

नित्य प्रात हो जन्म, सूर्य सम कर्म करें निष्काम भाव से।

संध्या पा संतोष रात्रि में, हो विराम नित नए चाव से।।

आस-प्रयास-हास सँग पग-पग, लक्ष्य श्वास सम हो अभिन्न ही –

मोह न व्यापे, अहं न घेरे, साधु हो सकें प्रिय! स्वभाव से।।

*

दोहे

सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।

चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।

*

अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।

मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।

*

उठे, बरस, बह फिर उठे, यही ‘सलिल’ की रीत।

दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।

*

स्नेह संतुलन साधकर, ‘सलिल’ धरा को सींच।

बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।

*

क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।

गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।

*

जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।

व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।

*

नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।

‘सलिल’ प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।

*

हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।

सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 4 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (76-80) ॥ ☆

गज की रस्सी से छिली देवदारू की छाल

कहती थी सेना के वे गज थे उच्च विशाल ॥ 76॥

 

फिर गिरिवासी दलों से रघु की हुई मुठभेड़

लगे बाण – पाषाण मिल चिनगारी के ढेर ॥ 77॥

 

रघु बाणों ने दलों को किया दीन श्रीहीन

गववाई किन्नरों से भुजबल -कीर्ति नवीन ॥ 78॥

 

जित ‘ उत्सव – संकेत’ गण लाये जोे उपहार

नृप गिरि दोनों ने लखा हाथों का व्यवहार ॥ 79॥

 

रावण उत्थित शिखर पर कीर्ति पताका गाड़

रघु गिरि से आये उतर बल से उसे पंछाड़ ॥ 80॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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