॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (86-88) ॥ ☆

 

किया विश्वजित यज्ञ फिर दिया सकल धन दान

सच सज्जन की सकल निधि परहित मेघ समान ॥ 86॥

 

यज्ञ बाद सब कैद नृप जो थे प्रिय से दूर,

हृदय हार का दुख लिये जीवन में मजबूर

निज सचिवों की राय से दे आकस्मिक मोड,

रघु ने सबको ग्रहगमन हेतु दिया तब छोड़ ॥ 87॥

 

छत्र कुलिश ध्वज आदि फिर पाने की ले आश

जाते विनत प्रणाम हित जाये रघु के पास

चरम युगुल में शीश रखा सबने किया प्रणाम,

सिर के पुष्प पराग से करते चरण ललाम ॥ 88॥

चतुर्थ सर्ग समाप्त

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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