हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#156 ☆ कविता – नारद व्यथा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता नारद व्यथा…)

☆  तन्मय साहित्य # 156 ☆

☆ नारद व्यथा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

एक बार नारद जी व्याकुल हो

बोले भगवान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।

 

अब तो हमें लगे हैं डर

विचरण करते आकाश में

चश्मा दूरबीन नहीं

न पैराशूट हमारे पास में

शोर मचाते हुए विमान

भटकते रहते इधर-उधर

कब वे टकरा जाए हमसे

मन में शंका खास है

डर है वीणा टूट न जाए

मानव वायुयान से

हमें बचा लो हे नारायण….

 

धरती पर जाऊँ तो

वन-पेड़ों का नाम निशान नहीं

सूख गए तालाब सरोवर

नदी कुओं में जान नहीं

कहाँ करूँ विश्राम घड़ी भर

किस पनघट जलपान करूं

पिज्जा बर्गर की पीढ़ी में

राम नहीं रहमान नहीं

देव! न भिक्षा मिलती है

अब नारायण के गान से

मुझे बचा लो हे नारायण ….

 

लोहे कंक्रीट और सीमेंट से

जनता सब बेहाल है

कृषि भूमि पर सड़क भवन

बाजार दमकते मॉल है

हे प्रभु तुम्हीं बताओ

कैसे पृथ्वी पर में भ्रमण करूं

जितने खतरे हैं ऊपर

उतने नीचे भ्रम जाल हैं

कब तक आँखें मूँदे बैठें

नव विकसित विज्ञान से

मुझे बचा लो हे नारायण….

 

बड़े-बड़े घोटाले होते

इंसानों के देश में

डाकू और अय्याश घूमें

फ़क़ीर संतो के वेश में

जिसकी लाठी भैंस उसी की

यही न्याय अब होता है

रहा नहीं विश्वास परस्पर

इस बदले परिवेश में

अब तो यूँ लगता है भगवन

छूटा तीर कमान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 46 ☆ गीत – गीत गुनगुनाऐंगे… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत गीत गुनगुनाऐंगे…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 45 ✒️

? गीत – गीत गुनगुनाऐंगे…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

शब्द थरथराऐंगे ,

भाव जाग जाएंगे ।

डूब के हम अश्कों में ,

गीत – गुनगुनाऐंगे ।।

 

तुमको मान देवता ,

पूजा किए हैं उम्र भर ,

पत्थरों के बुत पे हम ,

अब ना सिर झुका आएंगे ।।

शब्द…

 

सेज पर बिछी कली ,

तुम ना चैन पाओगे ।

पक्षी अर्धरात्रि को ,

मिलकर चहचहाऐंगे ।।

शब्द…

 

अध खुली आंखों के ,

स्वप्न टूट जाए ना ।

वहीं घरोंदे रेत पर ,

फ़िर से हम बनाएंगे ।।

शब्द…

 

लौट आओ एक बार ,

तुम मेरी पुकार पर ।

ले लो आज इम्तहां ,

ना कभी सताएंगे ।।

शब्द…

 

खींच कर ले आएगी ,

सलमा प्यार की लगन ।

उन हसीन लम्हों में ,

मिलकर मुस्कुराएंगे ।‌।

शब्द…

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 57 – मनोज के दोहे…. दीप ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 57 – मनोज के दोहे…. दीप 

1 रोशनी

दीवाली की रोशनी, बिखराती उजियार।

प्रखर रश्मियाँ दीप की, करे तमस संहार ।।

2 उजियार

हिन्दू-संस्कृति है भली, नहीं किसी से बैर।

फैलाती उजियार जग, माँगे सबकी खैर।।

3 जगमग

जगमग दीवाली रही, देश कनाडा यार।

आतिशबाजी देख कर, लगा भला त्यौहार।।

4 तम

तम घिरता ही जा रहा, सीमा के उस पार।

चीन-पाक आतंक का, कैसे हो उपचार।।

5 दीप

दीप-मालिके कर कृपा, फैला दे उजियार।

सद्भभावों की भोर हो, खुलें प्रगति के द्वार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दस्तक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – दस्तक ??

तक़लीफ़देह है

बार-बार दरवाज़ा खोलना;

जानते हुए कि

कोई दस्तक नहीं दे रहा,

ज़्यादा तक़लीफ़देह है

हमेशा दरवाज़ा बंद रखना;

जानते हुए कि

कोई दस्तक दे रहा है,

बार-बार; लगातार!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 112 – गीत – हे राम ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – हे राम।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 112 – गीत – हे राम ✍

राम राम  जय जय राम

राम राम  जय सीता राम

दशरथ नंदन

दनुज निकंदन

टेर लगाते चातक वंशी

लेकर तेरा नाम

हे राम । हे राम हे राम।

पंकज लोचन

हे दुख मोचन

रोम रोम में रचा हुआ है

एक तुम्हारा नाम।

हे राम । हे राम हे राम।

हे रघुनंदन

अलख निरंजन

तुम ही हो सुखधाम

हे राम हे राम

जय राम जय राम।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 114 – “काजल लगी आँख में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –काजल लगी आँख में।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 114 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “काजल लगी आँख में” || ☆

नीचे को, छज्जे से कोई

झाँका करता है ।

मेरे प्रतिमानों को अक्सर

आँका करता है ॥

 

उधर जहाँ पत्तों के

मनहर झूमर हैं लटके ।

जिनसे छनकर धूप

चकत्ते दिखते हैं हटके ।

 

उन्हें धरा के आँचल पर

चुपचाप हवाओं से ।

लहरा कर दिन के गौरव

में टाँका करता है ।

 

मधुछन्दा दोपहर दिखा

कर  बुन्दे कानों के

काजल लगी आँख में

भरकर, बिम्ब मकानों के

 

ज्योंकि बजाज बैठ गद्दी पर

दिन भर की विक्री

का आदर करता ,जैसे वह

माँ का करता  है

 

साथ खडा है पेड़ मगन

जैसे कि चरवाहा

अपने में हो मस्त गा रहा

मीठा मनचाहा

 

और पोटली में लाये

उस चना चबैने को

पूरा तन्मय होकर के

ज्यों फाँका करता है

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कमाल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – कमाल ??

नाराज़ हो मुझसे,

उसने पूछा…,

मैं हँस पड़ा,

कमाल है;

वह नाराज़ हो गई मुझसे..!!!

© संजय भारद्वाज

प्रात: 9.06 बजे, 27.10.20

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 104 ☆ # एक दीप… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# एक दीप…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 104 ☆

☆ # एक दीप… # ☆ 

इस दीपावली में दीप जलाइए

जग को आलोकित कीजिये  

 

एक दीप

अंधकार रूपी

तम, द्वेष, ईर्ष्या, नफरत और

हिंसा

को दूर करने के लिए

 

एक दीप

पर्यावरण के

बढ़ते विनाश को

रोकने के लिए

 

एक दीप

शहर में फैली हुई गंदगी

को दूर कर

तन और मन की

सफाई के लिए

 

एक दीप

उस महामानव के लिए

जिसने तुम्हें

जीने की राह दिखाई

 

एक दीप

उस गुरु के लिए

जिसने तुम्हें ज्ञान दिया

 

एक दीप

अपने माता पिता के लिए

जिन्होंने अपना सर्वस्व

तुम पर न्योछावर किया

श्रेष्ठ इंसान, सुपुत्र

बनाने के लिए

 

एक दीप

उन तमाम लोगों के लिए

जिन्होंने तुम्हें

जीवन के किसी ना किसी

मोड़ पर

कभी ना कभी

प्रभावित किया हो

 

एक दीप

उन निर्धन, असहाय

शोषित, पीड़ित, वंचित

समाज के लिए

 

एक दीप

उस झोपड़ी के द्वार पर

जहां से तुम ने कभी

अपने जीवन की

शुरुआत की थी /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 115 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 115 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 115) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 115 ?

☆☆☆☆☆

रुह की प्यास बुझा दी

तेरी   क़ुरबत  ने,

तू कोई झील है, झरना है,

घटा  है, क्या  है  तू..!

नाम होठों पे तेरा आए

तो  राहत  सी  मिले,

तू तसल्ली है, दिलासा है,

दुआ  है, क्या  है तू…

☆☆

Your intimacy has quenched

the thirst of the soul…

Are you a lake, a waterfall, or

hanging clouds, what’re you…!

Coming of your name on lips

what a respite does it give,

Are you a consolation, a solace,

Or a prayer, what are you…!

☆☆☆☆☆ 

ख़्यालों को किसी आहट

की उम्मीद रहती है…

निगाहों को किसी सूरत

की आस रहती है…

तेरे बगैर किसी चीज़

की कमी तो नहीं

मगर तेरे बगैर तबियत

उदास सी रहती है…!

☆☆

Thoughts always expect

someone’s footsteps…

Eyes keep on longing to

see someone’s face…

Though nothing lacks in

the life without you…

But then, without you, mood

always remains sombre!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 114 ☆ बुन्देली नवगीत –  लछमी मैया! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  बुन्देली नवगीत – लछमी मैया!…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 114 ☆ 

☆ बुन्देली नवगीत –  लछमी मैया! ☆

लछमी मैया!

माटी का कछु कर्ज चुकाओ

*

देस बँट रहो,

नेह घट रहो,

लील रई दीपक खों झालर

नेह-गेह तज देह बजारू

भई; कैत है प्रगतिसील हम।

हैप्पी दीवाली

अनहैप्पी बैस्ट विशेज से पिंड छुड़ाओ

*

मूँड़ मुड़ाए

ओले पड़ रए

मूरत लगे अवध में भारी

कहूँ दूर बनवास बिता रई

अबला निबल सिया-सत मारी

हाय! सियासत

अंधभक्त हौ-हौ कर रए रे

तनिक चुपाओ

*

नकली टँसुए

रोज बहाउत

नेता गगनबिहारी बन खें

डूब बाढ़ में जनगण मर रओ

नित बिदेस में घूमें तन खें

दारू बेच;

पिला; मत पीना कैती जो

बो नीति मिटाओ

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

 

१०-४-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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