श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता नारद व्यथा…)

☆  तन्मय साहित्य # 156 ☆

☆ नारद व्यथा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

एक बार नारद जी व्याकुल हो

बोले भगवान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।

 

अब तो हमें लगे हैं डर

विचरण करते आकाश में

चश्मा दूरबीन नहीं

न पैराशूट हमारे पास में

शोर मचाते हुए विमान

भटकते रहते इधर-उधर

कब वे टकरा जाए हमसे

मन में शंका खास है

डर है वीणा टूट न जाए

मानव वायुयान से

हमें बचा लो हे नारायण….

 

धरती पर जाऊँ तो

वन-पेड़ों का नाम निशान नहीं

सूख गए तालाब सरोवर

नदी कुओं में जान नहीं

कहाँ करूँ विश्राम घड़ी भर

किस पनघट जलपान करूं

पिज्जा बर्गर की पीढ़ी में

राम नहीं रहमान नहीं

देव! न भिक्षा मिलती है

अब नारायण के गान से

मुझे बचा लो हे नारायण ….

 

लोहे कंक्रीट और सीमेंट से

जनता सब बेहाल है

कृषि भूमि पर सड़क भवन

बाजार दमकते मॉल है

हे प्रभु तुम्हीं बताओ

कैसे पृथ्वी पर में भ्रमण करूं

जितने खतरे हैं ऊपर

उतने नीचे भ्रम जाल हैं

कब तक आँखें मूँदे बैठें

नव विकसित विज्ञान से

मुझे बचा लो हे नारायण….

 

बड़े-बड़े घोटाले होते

इंसानों के देश में

डाकू और अय्याश घूमें

फ़क़ीर संतो के वेश में

जिसकी लाठी भैंस उसी की

यही न्याय अब होता है

रहा नहीं विश्वास परस्पर

इस बदले परिवेश में

अब तो यूँ लगता है भगवन

छूटा तीर कमान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
3 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments