हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #163 – 49 – “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं…”)

? ग़ज़ल # 49 – “ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मैंने तो सच कहा तुम्हें बहाने लगे,

इश्क़ है तुम्हें कहने में ज़माने लगे।

नज़दीक आओ ज़रा पी लें इन्हें,

वस्ल में  ये आँसू क्यों बहाने लगे।

ख़्वाब में तेरे जागते हुए सोते हैं,

सोने दो यार  क्यों जगाने लगे।

हम समझे थे  तुम्हें नातजुर्वेकार,

बातों में यार तुम बड़े सयाने लगे।

बेकार का झगड़ा है  ये वस्ल-जुदाई,

शुकूं मिला जाम पे जाम चढ़ाने लगे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘शब्दकोश’… श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Paradoxical Dictionary…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “शब्दकोश   .  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना 

?  शब्दकोश ??

वह लिखती रही विरह,

मैं बाँचता रहा मिलन,

चलो शोध करें,

दृष्टि बदलने से

शब्द का अर्थ

बदल जाता है क्या?

…और पता नहीं कैसे

मेरे पास बदले अर्थों का

एक शब्दकोष

संचित हो गया है..!

© संजय भारद्वाज

 English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi
? Paradoxical Dictionary ??

She kept writing

about the separation,

and I professed

about the union…

Let’s brainstorm,

if changing the vision,

changes the meaning

of the word?

…And, I don’t know

as to how I have got

a huge dictionary of

changed meanings…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – परिसीमा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – परिसीमा ??

उभरते हैं

फ़र्श पर ,

दीवार पर

भित्तिचित्र,

माँडने-पगल्ये

लोकशैली,

मॉडर्न आर्ट,

आदिम से लेकर

अधुनातन अभिव्यक्ति,

झट मोबाइल कैमरा

क्लिक करता हूँ,

बाल उत्साह से

परिणाम निरखता हूँ,

अपनी बेचारगी पर

खीज़ उठता हूँ,

इमेज के नाम पर

कोरा फर्श, कोरी दीवार,

जब देखता हूँ,

तब…,

सूक्ष्म और

स्थूल का अंतर

जान जाता हूँ,

मन की आँख से

दिखते चित्र

कैप्चर नहीं कर सकता कैमरा

मान जाता हूँ….!

© संजय भारद्वाज

संध्या 6:27 बजे, 10.10.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 40 ☆ मुक्तक ।। भाई बहन के अटूट बंधन का प्रतीक भाई दूज का पर्व ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।भाई बहन के अटूट बंधन का प्रतीक भाई दूज का पर्व।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 40 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।भाई बहन के अटूट बंधन का प्रतीक भाई दूज का पर्व।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।। 1।।
भाई बहन के प्रेम स्नेह, का प्रतीक है भाई दूज।

एक तिलक की ताकत का, का यकीन है भाई दूज।।

सदियों से यही विश्वास, चलता चला आया है।

इसी अटूट बंधन की एक, लकीर है भाई दूज।।

।। 2।।
बहुत अनमोल पवित्र रिश्ता, भाई बहन का होता है।

बहन के हर दुख सुख में, भाई बहुत ही रोता है।।

रक्षा बंधन या त्यौहार हो, यह भाई दूज का।

जो निभाता नहीं ये रिश्ता वो, अपना सब कुछ खोता है।।

।।3।।
निस्वार्थ निश्चल प्रेम का एक, उदाहरण है भाई दूज का दर्प।

अनमोल रिश्तों की लड़ी का, उदाहरण है भाई दूज का गर्व।।

भावना संवेदना का प्रतीक, यह एक टीका और तिलक।

भाई बहन के अमूल्य रिश्तों, काआइना है भाईदूज का पर्व।।

।।4।।
रोली चावल चंदन टीके का, थाल सजा कर लाई हूं।

अपने प्यारे भैया की मूरत, दिल में बसा कर लाई हूं।।

‘मेरे भैया रक्षा करना मेरी सारी, उम्र कि सौगंध तुमको देनी है।

एक तिलक में प्यार का सारा, संसार लगा कर लाई हूं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 106 ☆ गजल – “समय…”☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गजल – “समय…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #106 ☆  गजल – “समय…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जग में सबको हँसाता है औ’ रूलाता है समय

सुख औ’ दुख को बताता है औ’ मिटाता है समय।

 

चितेरा एक है यही संसार के श्रृंगार का

नई खबरों का सतत संवाददाता है समय।

 

बदलती रहती है दुनियाँ समय के संयोग से

आशा की पैंगों पै सबकों नित झुलाता है समय।

 

भावनामय कामना को दिखाता नव रास्ता

साध्य से हर एक साधक को मिलाता है समय।

 

शक्तिशाली है बड़ा रचता नया इतिहास नित

किन्तु जाकर फिर कभी वापस न आता है समय।

 

सिखाता संसार को सब समय का आदर करें

सोने वालों को हमेशा छोड़ जाता है समय।

 

है अनादि अनन्त फिर भी है बहुत सीमित सदा

जो इसे है पूजते उनको बनाता है समय।

 

हर जगह श्रम करने वालों को है इसका वायदा

एक बार ’विदग्ध’ उसको यश दिलाता है समय।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –चुनाव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – चुनाव ??

कुछ नहीं देती

भावुकता,

कुछ नहीं देती

कविता,

जीने का

सामान करना सीखो,

जीवन में

सही चुनाव करना सीखो,

एक पलड़े पर

दुनियादारी रखी,

दूसरे पर

कविता धर दी,

सही चुनने की सलाह

सुन ली,… और

मैंने अपने लिए

कविता चुन ली..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:24 बजे, 23 जून 2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #156 ☆ अधूरा इश्क़… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अधूरा इश्क़।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 156 – साहित्य निकुंज ☆

☆ अधूरा इश्क़ ☆

अधूरा इश्क़ अधूरा न रहेगा।

संगीत बन सांसों में बहेगा।

ख्वाबों में जब से तेरा आना हुआ

जिंदगी का हर पल सुहाना हुआ

लगता है अधूरा इश्क होगा पूरा

जिंदगी में होगा फिर सबेरा

इस अहसास से मिली है जान

नहीं है हम इससे अनजान।

आरजू है मेरी होगी कल्पना साकार

करना है सिर्फ प्रेम का इजहार

अधूरा इश्क़ अधूरा न रहेगा

संगीत बन सांसों में बहेगा।

 

तुझसें मिलने की खुशी है दुगनी

अंतर्मन में है प्यार की बानगी

तेरी सांसें मेरे जीने का आधार है

फिर भी कहता हूं तू ही मेरा प्यार है।

तुझको देखे हो गया एक जमाना

बिन मुहब्बत के ये हुआ खंडहर

हो गया है अब पुराना

आओ आकर करो इसे आबाद

बचा लो इसे होने से बरबाद

फिर ये

अधूरा इश्क़ अधूरा न रहेगा

संगीत बन सांसों में बहेगा।

 

हाथ रखो गिनों तुम धड़कन

धड़कता है मेरे लिए तेरा मन

जैसे राधिका है श्याम का आधार

है वह जन्म जन्मांतर का प्यार

मिला है उनका अंतर्मन

सार्थक है उनका जीवन

नहीं मिलकर भी मिल गए

एक दूजे में समाहित हो गए

पूजे जाते है राधे कृष्ण है एक

जोड़ी है उनकी सबसे अनेक

तुम भी समझो कहती हूं

फिर ये

अधूरा इश्क अधूरा नहीं रहेगा

संगीत बन सांसों में बहेगा।।

 

मीरा भी थीं कृष्ण की दीवानी

थीं राजघराने की राजपूतानी

कृष्ण कृष्ण छाए हर ओर

कृष्ण के बिना नहीं दूसरा छोर

हुई वे भी कृष्ण में समाहित

कर दिया अंतर्मन समर्पित

तुम भी समझो कहती हूं

तुमको देखते ही बहती है जलधार।

इश्क अधूरा ना रहे कर लो  मुझसे प्यार।

अधूरा इश्क अधूरा नहीं रहेगा

संगीत बन सांसों में बहेगा।।

अधूरा इश्क़ ..।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #143 ☆ सन्तोष के दोहे…चाँद ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “सन्तोष के दोहे…चाँद। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 143 ☆

 ☆ सन्तोष के दोहे…चाँद ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बाँटे शीतल चाँदनी, दाग रखे खुद पास

रोशन करता जहां को, किये बिना कुछ आस

 

लिखते कवि,शायर सभी, देकर उपमा खूब

सदा देखते चाँद में, सपनों का महबूब

 

करती खूब शिकायतें, दे देकर संदेश

बिरहन ताके चाँद को, पिया गए परदेश

 

ईद दिवाली, होलिका,  करवा का त्योहार

सभी निहारें चाँद को, विनती करें पुकार

 

तनहा तारों में रहे, किंतु अलग पहचान

घटता, बढ़ता समय से, सदा चाँद का मान

 

हर क्रम में है एक तिथि, एक अमावस रात

आभा पूर्ण बिखेरता,दे पूनम सौगात

 

सही धर्म निरपेक्षता, सिखलाता सारंग

सबको ही प्यारे लगें, विविध कला के रंग

 

लहरें सागर में उठें, आते हैं तूफान

संचालित ये चन्द्र से, जाने सकल जहान

 

सूर्य,चन्द्र की चाल ही, ज्योतिष का आधार

ग्रहण सभी हम मापते, ग्रह-नक्षत्र विचार

 

साझा करते चाँद से, व्याकुल मन की बात

झर कर कहती चाँदनी,काबू रख जज़्बात

 

चंदा मामा ले चले, तारों की बारात

हर्षित होता बालमन, देख दूधिया रात

 

शरद पूर्णिमा यामिनी, सुंदर दिखे शशांक

सुधा बाँटता सभी को,रहता याद दिनांक

 

देख सँवरती यामिनी,रचा कृष्ण ने रास

षोडस कला बिखेर कर,शशि उर है उल्लास

 

उज्ज्वल शीतल चाँदनी, उजियारे के गीत

कम होती रवि की तपन, दस्तक देती शीत

 

मन को लगें लुभावने, सभी चाँद के रूप

देते हैं “संतोष” ये, मिलती ख़ुशी अनूप

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विधान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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? संजय दृष्टि – विधान ??

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

© संजय भारद्वाज

21.10.20, रात्रि 10:09

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 133 ☆ एक दीया जलाना है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 133 ☆

☆ एक दीया जलाना है… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

एक दीया जलाना है

          प्यारमयी प्रकाश का

एक दीया जलाना है

         अंधकार के विनाश का

 

एक दीया जलाना है

         उपकार का विश्वास का

एक दीया जलाना है

          सत्कार रास  हास का

 

एक दीया जलाना है

          अपने वीर जवानों का

एक दीया जलाना है

          सच्चे प्रिय इंसानों का

 

एक दीया जलाना है

          नफरत और भेद मिटाने का

एक दीया जलाना है

         हिंदी राष्ट्र भाषा बनाने का

 

एक दीया जलाना है

           मित्रों में प्रेम बढ़ाने का

एक दीया जलाना है

           मन के शत्रु हटाने का

 

एक दीया जलाना है

            मन को गीत सुनाने का

एक दीया जलाना है

           उपवन बाग लगाने का

 

एक दीया जलाना है

          धरती को स्वर्ग बनाने का

एक दीया जलाना है

           सपनों में खो जाने का

 

एक दीया जलाना है

         आलस को राह दिखाने का

एक दीया जलाना है

          अच्छी सोच बनाने का

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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