हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सदानीरा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सदानीरा ? ?

देख रहा हूँ

गैजेट्स के स्क्रिन पर गड़ी                                        

‘ड्राई आई सिंड्रोम’

से ग्रसित पुतलियाँ,

आँख के पानी का सूखना;

जीवन में उतर आया है,

अब कोई मृत्यु

उतना विचलित नहीं करती,

काम पर आते-जाते

अंत्येष्टि-बैठक में

सम्मिलित होना;

एक और काम भर रह गया है,

पास-पड़ोस,

नगर-ग्राम,

सड़क-फुटपाथ पर

घटती घटनाएँ

केवल उत्सुकता जगाती हैं,

जुगाली का

सामान भर जुटाती हैं,

आर्द्रता के अभाव में

दरक गई है

रिश्तों की माटी,

आत्ममोह और

अपने इर्द-गिर्द

अपने ही घेरे में

बंदी हो गया है आदमी,

कैसी विडम्बना है मित्रो!

घनघोर सूखे का

समय है मित्रो!

नमी के लुप्त होने के

कारणों की

मीमांसा-विश्लेषण,

आरोप-प्रत्यारोप,

सिद्धांत-नारेबाजी,

सब होते रहेंगे

पर एक सत्य याद रहे-

पाषाण युग हो

या जेट एज,

ईसा पूर्व हो

या अधुनातन,

मनुष्यता संवेदना की

मांग रखती है,

अनपढ़ हों

या ‘टेकसेवी’,

आँखें सदानीरा ही

अच्छी लगती हैं..!

© संजय भारद्वाज

(8.2.18, प्रात: 9:47 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #40 ☆ कविता – “हमें बेवफा न समझना…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 40 ☆

☆ कविता ☆ “हमें बेवफा न समझना…☆ श्री आशिष मुळे ☆

हमें बेवफा न समझना

हम तलाश जो कर रहे है

तुम अब तुम नहीं रही

हम तुम्हें ही ढूंढ़ रहे है

 *

कितनी जिंदा थी तुम

ये सोच कर मर जाते है हम

अब सामने दिखती नहीं

ये देखकर खो जाते है हम

 *

कभी इसमे कभी उसमे

तुम झलक दिखलाती हो

ए मेरे इश्क़ की दास्तां

यूं टुकड़ों में क्यों मिलती हो

 *

जिस्म तो आज भी तुम्हारा

मगर रूह अब तुम्हारी नहीं

हमने प्यार रूह से किया था

तुम्हारे जिस्म से नहीं

 *

था एक जमाना तुम्हारी रोशनी का

जब सूरज डूबता नहीं था

आज भी खोई किरणों से रोशन

चांद भी कभी बेवफा नहीं था

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 197 ☆ बाल पहेली कविता – बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 197 ☆

☆ बाल पहेली कविता – बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 जिसको आज बचाना हमको

उसमें रहते हाथी शेर।

कंद – मूल फल मिलते उसमें

किस्म – किस्म के होते पेड़।।

 *

जिसमें रहे चालाक लोमड़ी

जिसमें रहता है चीता।

रहे भेड़िया और तेंदुआ

कोई नहीं पढ़े गीता।।

 *

जो विवेक और बल से जीए

वह ही उसमें रहे सुरक्षित।

जो समूह में मिल जुल रहता

रहे मजे से वही सुमित।।

 *

लंगूरों की धमाचौकड़ी

उसमें रहते सेई , अजगर।

सदा आग से उसे बचाएँ

वह ही ऑक्सीजन का घर।।

 *

बोलो बच्चो क्या हम कहते

हिंदी में क्या – क्या हैं नाम?

अंग्रेजी में क्या हम कहते

वह सबके ही आता काम।।

  

उत्तर – जंगल,वन,कानन, अरण्य हिन्दी में और अंग्रेजी में फोरेस्ट कहते हैं।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #223 – कविता – ☆ रोयें कैसे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता रोयें कैसे…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #223 ☆

☆ रोयें कैसे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

सब के सम्मुख रोयें कैसे

मौन सिसकते सोयें कैसे।

*

खारे आँसू नमक हो गए

बिना प्रेम जल धोयें कैसे।

*

आना जाना है उस पथ से

उसमें काँटे बोयें कैसे।

*

खेत काट ले जाते कोई

घर में धान उगोयें कैसे।

*

अंतस में जो घर कर बैठी

उन यादों को खोयें कैसे।

*

एक अकेलापन अपना है

इसमें शूल चुभोयें कैसे।

*

जब निद्रा ही नहीं रही तो

सपने कहाँ सँजोएँ कैसे।

*

सबके बीच बैठकर बोलो

अपने नैन भिगोयें कैसे।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 47 ☆ फागुन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “फागुन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 47 ☆ फागुन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

लिया फागुन

दिया फागुन

रंग भर- भर

जिया फागुन।

*

लिए गठरी

चैतुआ आ

मेंड़ पर बैठा

बरस अगले

लौट आना

रंग ले ऐंठा

*

जब पुकारे

हुलस कोयल

पिया फागुन।

पिया फागुन

*

दिन तपेगा

छांव भीतर

धूप झाँकेगी

प्यास लेकर

नीर गगरी

द्वार आयेगी

*

फिर भिगाना

प्रीति आँगन

हिया फागुन

हिया फागुन।

*

धुंध ओढे़

शहर सपना

आँख में पाले

लहर नदिया

नाव गिनती

तटों के छाले

*

फिर अकेले

चुप्पियों ने

जिया फागुन

सिया फागुन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सितम कितने भी कर ले ज़िन्दगीं तू… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “सितम कितने भी कर ले ज़िन्दगीं तू“)

✍ सितम कितने भी कर ले ज़िन्दगीं तू… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नहीं चाहत जिसे लालो- गुहर की

करें हम ज़िक्र उस इक मोतबर की

हुस्ने मतला

 *

भुला कर चाहतें सब अपने घर की

लगा बाज़ी वतन को अपने सर की

 *

मसाइल दहर के हल कर रहा है

नहीं जिसको खबर अपने ही घर की

 *

सितम कितने भी कर ले ज़िन्दगीं तू

न टूटेगी कभी हिम्मत बशर की

 *

समर देता है मारे संग जो भी

अजब फ़ितरत है यारो  ये शज़र की

 *

न ख़ुश इंसां न ख़ुश दैरो-हरम अब

बड़ी बदरंग है रंगत नगर की

 *

सुबूत इसका मेरी बरबादियाँ है

न मुझसे पूछ साज़िश हमसफ़र की

 *

हुकूमत की अताएँ आम ठहरी

ज़रूरत अब किसे इल्मो-हुनर की

 *

तने वीरान डालें दूर छिटकी

खबर लाओ जरा कोई उधर की

 *

दुआ उसको अरुण क्यों दे रहा है

सज़ा-ए-हिज़्र दी जो उम्र भर की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 46 – क्या बाँकी, चंचल चितवन के… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – क्या बाँकी, चंचल चितवन के…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 46 – क्या बाँकी, चंचल चितवन के… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

उसके अधरों पर कम्पन है 

प्रेम-रोग से व्याकुल मन है

*

जिसे देख ले, खिले कमल-सा 

क्या बाँकी, चंचल चितवन है

*

एक नजर में, भरी भीड़ में 

पलक झुकाकर किया नमन है

*

पल में, छुअन गुलाबी तन की 

मीठी-सी, दे गई चुभन है

*

पियो रूप, रस, गंध दूर से 

नागों से लिपटा, चंदन है

*

सूखें फूल, गंध उड़ जाये 

यह, शाश्वत जीवन-दर्शन है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 122 – सास-ससुर, माता-पिता… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सास-ससुर, माता-पिता…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 122 – सास-ससुर, माता-पिता…

 

 

बहू अगर बेटी बने, सब रहते खुशहाल ।

दीवारें खिचतीं नहीं, हिलमिल गुजरें साल ।।

सास अगर माता बने, बढ़ जाता है मान ।

जीवन भर सुख शांति से, घर की बढ़ती शान ।।

 *

सास बहू के प्रेम में, छिपा अनोखा का राज ।

रिद्धि सिद्धि समृद्धि का, रहता सिर पर  ताज ।।

 *

खुले दिलों से सब मिलें, ना कोई खट्टास ।

वातायन जब खुला हो, सुख शान्ति का वास।।

 *

रिश्तों का यह मेल ही, खुशियों की बरसात ।

दूर हटें संकट सभी, सुख की बिछे बिसात।।

 *

सास-ससुर, माता-पिता, दोनों एक समान ।

कोई भी अन्तर नहीं, कहते वेद पुरान ।।8

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अनहद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अनहद ? ?

एक लहर आती है,

एक लहर लौटती है,

फिर नई लहर आती है,

फिर नई लहर लौटती है,

आना, लौटना,

पाना, तजना,

समय के प्रवाह में

नित्य का चोला बदलना,

लहरों के निनाद में

सुनाई देता अनहद नाद,

अनादि काल से

समुद्र कर रहा

श्रीमद्भगवद्गीता का

सस्वर पाठ…!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 181 – सुमित्र के दोहे… फागुन ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपके अप्रतिम दोहे – याद के संदर्भ में दोहे।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 181 – सुमित्र के दोहे… फागुन ✍

तितली भौरा फूल रस, रंग बिरंगे ख्वाब ।

फागुन का मतलब यही, रंगो भरी किताब ।।

*

औगुनधर्मी देह में, गुनगुन करती आग।

 फागुन में होता प्रकट, अंतर का अनुराग ।।

*

फागुन बस मौसम नहीं, यह गुण-धर्म विशेष।

फागुन में केवल चले ,मन का अध्यादेश ।। 

*

कोयल कूके आम पर ,वन में नाचे मोर।

मधुवंती -सी लग रही, यह फागुन की भोर।। 

*

मन महुआ -सा हो गया ,सपने हुए पलाश।

जिसको आना था उसे ,मिला नहीं अवकाश।।

*

क्वारी आंखें खोजती ,सपनों के सिरमौर।

चार दिनों के लिए है ,यह फागुन का दौर।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈