(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सर, जी सर और सर जी…“।)
अभी अभी # 352 ⇒ सर, जी सर और सर जी… श्री प्रदीप शर्मा
कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें आप देशकाल और भाषा के दायरे में नहीं बांध सकते। आदमी जहां जाता है, वहां अपनी भाषा साथ ले जाता है, लेकिन जब वापस आता है, तो कुछ छोड़कर आता है, और कुछ लेकर जाता है। शायद इसीलिए भाषा और संस्कृति का भी आपस में गहरा संबंध होता है।
अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए, लेकिन वे साथ में हमारी भाषा और संस्कृति का कुछ हिस्सा भी साथ गए। अच्छाई को कौन देश और दायरे के बंधन में बांध पाया है। भाषा भी बड़ी सरल और मासूम होती है, बड़ी आसानी से परिस्थिति के अनुसार ढल जाती है।।
हमारे श्रीमान, महाशय, जनाब कब सर हो गए, हमें पता ही नहीं चला। सरकारी स्कूल के उपस्थित महोदय, समय के साथ प्रेजेंट सर और येस मेम हो गए। अगर आप श्री रविशंकर लिखते हैं, तो मन में सितार बजने लगता है, और अगर श्रीश्री रविशंकर लिखते हैं, तो आपके अंदर सुदर्शन क्रिया शुरू हो जाती है।
आजादी के पहले सर उपाधि भी होती थी। याद कीजिए सर जगदीशचंद्र बसु, सर यदुनाथ सरकार और सर शादी लाल। सरकार शब्द में सर का कितना योगदान है, यह शोध का विषय हो सकता है, क्योंकि हमारे यहां तो राज होता था, राजा महाराजा होते थे, उनके राज्य होते थे।।
आजादी के बाद, बोलचाल में भी सर ऐसा सरपट दौड़ा कि फिर उसने कहीं रुकने का नाम ही नहीं लिया। छोटा अफसर हो, बड़े बाबू हों या चपरासी, सब सर के आसपास ही सर सर कहते फिरते रहते थे। दफ्तर में आते वक्त गुड मॉर्निंग सर, और जाते वक्त, गुड नाईट सर मानो प्रोटोकॉल हो गया हो।
पता ही नहीं चला कि सर कब, जी सर हो गया। हां में हां मिलाना ही तो जी सर, जी सर होता है। वैसे भी नौकरशाही में तो जी सर, तकिया कलाम ही हो चला है। बात बात में जी सर सुनकर बड़ी कोफ्त होने लगती है।।
तीतर के दो आगे तीतर की तरह, सर के भी आगे जी लग जाता है तो कभी पीछे जी। दफ्तर का जी सर, कब घर में आते ही सर जी हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। कॉलेज के प्रोफेसर को भी तो हम सर ही कहते हैं। थीसिस अधूरी पड़ी है, सर को फुर्सत नहीं है। कभी परीक्षा तो कभी चुनाव और शिक्षा के सेमिनार अलग। जब भी घर पर फोन करो, यही जवाब मिलता है, सर जी तो अभी आए ही नहीं।
शिक्षा के क्षेत्र में तो वैसे भी सरों का ही बोलबाला है। प्राइमरी के भी सर और यूनिवर्सिटी के भी सर, सब सर बराबर। कोचिंग इंस्टीट्यूट में तो गुप्ता सर, माहेश्वरी सर और बंसल सर। सभी टॉप के सर, और क्या टॉप का रिजल्ट।।
होटल में सर जी आप क्या लेंगे तो ठीक, लेकिन जब ऑटो वाला भी पूछता है, सर जी, कहां जाना है, तो मन में अच्छा ही लगता है। जो अपनापन, प्रेम और सम्मान सर जी में है, वह जी सर में कहां..!!
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत: हमको कुछ तो करना होगा…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 184 ☆
☆ नवगीत: हमको कुछ तो करना होगा… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ?
☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (29 अप्रैल से 5 मई 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
आज हर व्यक्ति है जानना चाहता है कि आगे भविष्य में उसको सफलताएं कब मिलेगी। उसका स्वास्थ्य कब ठीक रहेगा। वह क्या-क्या कार्य करें और क्या-क्या कार्य न करें जिससे उसकी शत-प्रतिशत सफलताएं मिल सके। इन्हीं बातों को ध्यान देते हुए 29 अप्रैल से 5 मई 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 के वैशाख कृष्ण पक्ष की तृतीया से वैशाख कृष्ण पक्ष की द्वादशी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल को प्रस्तुत किया जा रहा है। पंडित अनिल पाण्डेय का आप सभी को नमस्कार।
इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में धनु राशि में रहेगा। 30 अप्रैल को 8:12 दिन से चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करेगा। 2 तारीख को 11:42 दिन से वह कुंभ राशि में गोचर करेगा और 4 मई को 2 :11 दिन से वह मीन राशि का हो जाएगा।
इस पूरे सप्ताह सूर्य और बुध मीन राशि में रहेंगे। मंगल और शनि कुंभ राशि में रहेंगे। इसी प्रकार शुक्र पूरे सप्ताह मेष राशि में रहेगा। राहु पूरे सप्ताह मीन राशि में बक्री रहेगा। बुध प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा और 1 मई को 5:30 शाम से वृष राशि में प्रवेश करेगा। गुरु प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा तथा 1 मई को 5:30 शाम से वृष राशि में प्रवेश करेगा।
इस सप्ताह 3 मई को अन्नप्राशन का मुहूर्त है। विवाह, नामकरण, व्यापार आदि का कोई मुहूर्त सप्ताह नहीं है।
इस सप्ताह 5 मई को सूर्योदय से 6:06 शाम तक सर्वार्थ सिद्ध योग रहेगा।
आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।
मेष राशि
अविवाहित जातकों के विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। पिताजी के पेट में समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। व्यापार भी ठीक चलेगा। धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध में तनाव आ सकता है। कार्यालय में आपको कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हो पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई उत्तम है। 30 अप्रैल और 1 मई को आप जो भी कार्य करेंगे अधिकांश कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी। 5 मई को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गुरुवार के दिन रामचंद्र जी या कृष्ण भगवान के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करें और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
वृष राशि
इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। अगर आप प्रयास करेंगे तो धन की मात्रा बढ़ जाएगी। कार्यालय में आपको सामान्य प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। भाग्य से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। आपके स्वास्थ्य में रक्त संबंधी समस्या आ सकती है। आपको अपनी संतान से इस सप्ताह सहयोग प्राप्त नहीं होगा। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। माता जी और पिताजी दोनों के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए दो, तीन और चार तारीख शुभ है। 2, 3 और 4 तारीख में आपके अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। आपको 30 और 1 तारीख को सतर्क रहना चाहिए। अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
मिथुन राशि
इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य से अच्छा रहेगा। माता जी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रह सकता है। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको थोड़ी बहुत मदद मिलेगी। कचहरी के कार्यों में आपको रिस्क नहीं लेना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई फलदायक हैं। इन दोनों तारीखों में आपको कई सफलताएं प्राप्त हो सकती हैं। 30 अप्रैल और 1 मई को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। अन्यथा आप असफल रहेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
कर्क राशि
इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा सामान्य रहेगी। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत दिक्कत आ सकती है। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में कमी होगी। आपको अपनी संतान से कोई विशेष सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई शुभ परिणाम देने वाले हैं। आपको अपने कार्यों को 30 अप्रैल और 1 जून को करना चाहिए जिससे आपको सफलता मिल सके सके। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पांच बार जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
सिंह राशि
भाग्य आपका सामान्य रूप से साथ देगा। आपको गर्दन या कमर में दर्द की शिकायत हो सकती है। आपको अपनी संतान से पर्याप्त सुख प्राप्त होगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है। छोटी-मोटी दुर्घटनाओं का भी योग है। धन आने की मात्रा में कमी आ सकती है। पिताजी और माताजी दोनों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए दो, तीन और 4 मई लाभदायक है। दो-तीन और 4 मई को आपके अधिकांश कार्य हो जाएंगे। 4 मई को दोपहर के बाद तथा 5 मई को आपको सतर्क रहकर ही कोई कार्य करना है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
कन्या राशि
इस सप्ताह कन्या राशि के अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम संबंध आएंगे। अगर आप थोड़ा सा भी प्रयास करेंगे तो विवाह तय हो जाएगा तथा हो भी सकता है। दुश्मनों पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं। परंतु नए दुश्मन भी बनेंगे। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। आपको ब्लड प्रेशर डायबिटीज या खून की कोई अन्य बीमारी भी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई सफलता देने वाले हैं। 29 अप्रैल को आपके अधिकांश कार्य सफल होंगे। 4 मई को 2:12 दोपहर के बाद से 5 मई को आपके सभी कार्य भी संपन्न हो सकते हैं। कृपया इन समयावधियों में कार्य करने का प्रयास करें। दो तीन और चार मई को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
तुला राशि
अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह बहुत उत्तम है। उनके विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। आपको गले का विकार भी हो सकता है। आपके जीवन साथी, माताजी और पिताजी सभी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। आपको इस सप्ताह भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। संतान से आपको मदद मिल सकती है। संतान आपका सहयोग करेगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 4 मई के दोपहर से 5 मई तक का समय कम अच्छा है। आपको इस समय में सावधान रहना चाहिए और सचेत होकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
वृश्चिक राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। आपके जीवनसाथी के पेट में कोई समस्या हो सकती है। छोटी-मोटी दुर्घटना का योग है। भाग्य से कोई विशेष सहायता नहीं मिल पाएगी। संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए दो-मई के दोपहर के बाद से और तीन और चार तारीख के दोपहर तक का समय की उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
धनु राशि
इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। जनता में आपका यश फैलेगा। आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। खर्चे में कमी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। आपको संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। संतान की उन्नति होगी। आपके पेट में परेशानी हो सकती है। भाग्य से आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 4 तारीख के दोपहर के बाद से 5 तारीख तक शुभ समय है। इस संबंध इस समय में आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
मकर राशि
आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपके जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। संतान से आपको कम सहयोग मिलेगा। सन्तान को परेशानी हो सकती है। आपको भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई लाभदायक है। 30 अप्रैल और 1 मई को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। 29 अप्रैल को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
कुंभ राशि
इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति होगी। आपको धन की प्रति अच्छे और बुरे दोनों रास्तों से होगी। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में थोड़ी कमी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। उनको पेट की परेशानी हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। भाग्य से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। कचहरी के कार्यों में किसी प्रकार के रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए 2 तारीख की दोपहर के बाद से लेकर 4 तारीख की दोपहर तक का समय उत्तम है। इस समय में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता मिल सकती है। 30 अप्रैल, 1 मई और 2 मई के दोपहर तक का समय आपके लिए थोड़ा कम ठीक है। आपको कोई भी कार्य सतर्क होकर करना चाहिए। आपको चाहिए कि इस सप्ताह गुरुवार का व्रत रखें और प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मीन राशि
इस सप्ताह आपका व्यापार अच्छा चलेगा। धन प्राप्त होने का उत्तम योग है। कचहरी के कार्यों में आप गति सामान्य रहेगी। आपके सुख में कमी होगी। आपको छोटी-मोटी दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त हो पाएगी। आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। माता जी और पिताजी स्वस्थ रहेंगे। भाई और बहनों के साथ आपके संबंध में टकराव हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई उत्तम है। 29 अप्रैल और 5 मई को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता मिलेगी। 30 अप्रैल और 1 मई को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए अन्यथा आपको अपने कार्यों में असफलता प्राप्त हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गुरुवार का व्रत करें और प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।
☆ देसी डोळे परी निर्मिसी… — लेखक – श्री श्रीनिवास बेलसरे ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆
देसी डोळे परी निर्मिसी, तयापुढे अंधार…
भारतीय चित्रपटसृष्टीतील सर्वात जुना सिनेमा मराठी होता ही गौरवास्पद बाब चित्रपटांबद्दलच्या चर्चेत अनेकदा दुर्लक्षित राहते. तो होता खुद्द दादासाहेब फाळके यांनी १९१३ साली दिग्दर्शित केलेला ‘राजा हरिश्चंद्र’. तो मूकपट होता तर पहिला मराठी बोलपट आला १९३२साली, स्व. व्ही. शांताराम यांनी दिग्दर्शित केलेला ‘अयोद्ध्येचा राजा.’
परदेशात गाजलेल्या भारतीय चित्रपटांबद्दलच्या चर्चेतही अनेकदा असेच होते. आपल्याला वाटते मराठी चित्रपट म्हणजे फक्त महाराष्ट्रात चालणारे सिनेमा. राजकपूरचा ‘मेरा नाम जोकर’ रशियात लोकप्रिय झाल्याने केवळ तोच परदेशात जास्त लोकप्रिय झालेला अभिनेता होता असा सर्वसाधारण समज असतो. पण मराठी सिनेमांचाही गौरवशाली इतिहास आहेच. दुर्दैवाने त्याचा तितका गवगवा झालेला नाही.
आता ‘प्रपंच’ असे अत्यंत घरगुती नाव असलेला मराठी सिनेमा चक्क चीनमध्ये प्रचंड लोकप्रिय झाला होता हे कुणाला खरे वाटेल का? पण ते सत्य आहे. हल्लीसारखा तेंव्हा चीन स्वस्त पण तकलादू वस्तूंसाठी किंवा त्याच्या राक्षसी विस्तारवादासाठी प्रसिद्ध नव्हता! तेंव्हा चीन प्रसिद्ध होता तो प्रचंड लोकसंख्या आणि विचित्र मांसाहारी पदार्थांच्या सवयींसाठी!
तिथले सरकार कम्युनिस्टांचे, त्यामुळे एखादी समस्या समोर आली की तिचा इलाज लगेच करण्याचे धोरण. आपल्यासारखे ‘याला काय वाटेल?’ ‘तो काय म्हणेल?’ ‘बाबू गेनूसारखी न्यायव्यवस्थाच समस्यानिवारणाच्या रस्त्यात आडवी पडेल का?’ हे प्रश्न त्या सरकारला कधीच पडत नसत. त्यांनी लोकसंख्या नियंत्रणासाठी तातडीने पाउले उचलायची म्हणून आधी प्रबोधनाचे अभियान सुरु केले! आणि हेच कारण होते आपला ‘प्रपंच’(१९६१) चीनमध्ये लोकप्रिय होण्यामागचे.
प्रपंचमध्ये दिग्दर्शकांनी त्याकाळी बहुतेक कुटुंबांत असलेल्या अपत्यांचा अतिरिक्त संख्येचा विषय हाताळला होता. चीनी सरकारला ही बाब आवडली. म्हणून त्यांनी लगेच संपूर्ण सिनेमा चीनी भाषेत डब करून घेतला! मग चीनी लोकांनी तो थियेटरबाहेर अक्षरश: मोठमोठ्या रांगा लावून पाहिला.
त्याचे असे झाले. गदिमांनी लिहिलेल्या कथेवर देव आनंदने ‘एक के बाद एक’ (१९६०) नावाचा सिनेमा काढला. अर्थात हिरो होते देव आनंद. त्याने सोबत शारदाला घेतले आणि दिग्दर्शनाचे काम राजऋषी यांच्याकडे सोपवले. सिनेमा साफ पडला. अनेकांच्या मते, देव आनंदने गदिमांच्या कथेत खूप बदल केले होते.
मग गदिमांनी त्या कथानकावर एक कादंबरी लिहिली. ती गोविंद घाणेकरांना आवडली आणि त्यातून निघाला प्रपंच! दिग्दर्शक ठरले मधुकर पाठक आणि कलावंत होते सीमा देव, आशा भेंडे, सुलोचना लाटकर, कुसुम देशपांडे, अमर शेख, श्रीकांत, शंकर घाणेकर, जयंत धर्माधिकारी.
कथा, पटकथा, संवाद सगळे गदीमांचेच होते. सिनेमा गाजला. त्याला सर्वोत्कृष्ट चित्रपटाचे राष्ट्रीय पारितोषिक ‘स्वर्णकमल’ मिळाले. याशिवाय सर्वोत्तम फिचर फिल्मसाठीचे ‘गुणवत्ताधारक सिनेमाचे’ तिस-या क्रमांकाचे प्रमाणपत्रही मिळाले.
प्रपंचमध्ये गदिमांनी लिहिलेले एक भजनवजा गीत होते. आजही ते रसिकांच्या मनात अजरामर आहे. सुधीर फडकेंनी अतिशय भावूकपणे गायलेल्या या गाण्याला संगीतही त्यांचेच होते. विषय मात्र वेगळाच होता. जसे आपले काही संत महाराष्ट्राचे कुलदैवत असलेल्या विठूरायाला काहीही बोलू शकतात, कधी तर शिव्याही देतात आणि तरीही त्यांचे त्यांच्या ईश्वराशी असलेले अत्यंत लडिवाळ नाते तसेच टिकून राहते तसे हे गाणे होते. यात गदिमा विठ्ठलाला फक्त कुंभार म्हणून थांबले नव्हते, त्यांनी त्याला ‘वेडा कुंभार’ म्हणून घोषित केले होते!
केवळ एखाद्या भारतीय धर्मातच शक्य असलेले भक्त आणि देवातले गंमतीशीर प्रेमळ नाते या गाण्यात फुलवले असल्याने आकाशवाणीवर सकाळच्या भक्ती संगीताच्या कार्यक्रमात अख्ख्या महाराष्ट्राने हे गाणे असंख्य वेळा ऐकले आहे. गदिमांचे ते शब्द होते-
“फिरत्या चाकावरती देसी मातीला आकार, विठ्ठला, तू वेडा कुंभार.”
विश्वाचा ‘हा जगड्व्याळ पसारा त्या निर्मिकाने कशासाठी निर्माण केला असेल?’ असा प्रश्न प्रत्येक चिंतनशील मनाला कधी ना कधी पडलेलाच असतो. गदिमांनी तोच काव्यरूपाने खुलवून आपल्यापुढे ठेवला आहे. ते करताना त्यांच्यातला भारतीय अध्यात्माची सखोल जाण असलेला विद्वान लपत नाही. मानवी शरीर हे पंच महाभूतातून निर्माण झाले आहे हे सत्य कविवर्य अगदी कुणालाही सहज समजेल इतके सोपे करून सांगतात. मग विठ्ठलाला म्हणतात तू ही मानवी मडकी निर्माण करून त्यांची रास रचून ठेवतोस, त्यांची संख्या तरी केवढी! अक्षरश: अमर्याद! –
माती पाणी, उजेड वारा, तूच मिसळसी सर्व पसारा, आभाळच मग ये आकारा. तुझ्या घटांच्या उतरंडीला नसे अंत ना पार.
त्यात पुन्हा भारतीय अध्यात्माने सांगितलेले सर्व प्राणीयोनीतले मानवी जन्माचे महत्वही ते ‘आभाळच मग ये आकारा’ असे म्हणून सूचित करतात. तू एकाच साच्यातून आम्हाला घडवतोस तरीही प्रत्येकाचे नशीब वेगळेच असते. कुणा भाग्यवान माणसाच्या मुखात भगवान श्रीकृष्णासारखे लोणी पडते तर कुणा दुर्दैवी व्यक्तीच्या तोंडात निखारे पडतात. ही टोकाची विषमता, हा वरून तरी आम्हाला वाटणारा घोर अन्याय तू का सुरू ठेवतोस? बाबा, सगळे तुझे तुलाच माहित!
घटाघटांचे रुप आगळे, प्रत्येकाचे दैव वेगळे, तुझ्याविणा ते कोणा न कळे. मुखी कुणाच्या पडते लोणी, कुणा मुखी अंगार.
जाता जाता गदिमा हेही सांगतात की अगणित कल्पांपासून देव ‘निर्मिती, वर्धन आणि विनाशाचे’ तेच काम करत आला आहे. ना त्याच्या निर्मितीला अंत, ना विनाशाला! जर सगळे नष्टच करायचे आहे तर मग ‘हे सगळे नसते उद्योग तू करतोसच कशाला’? असे एखाद्या धीट अभंगकर्त्याप्रमाणे ते विठ्ठलाला विचारतात-
‘तूच घडविसी, तूच फोडीसी, कुरवाळीसी तू, तूच ताडीसी. न कळे यातून काय जोडीसी, देसी डोळे परी निर्मिसी, तयापुढे अंधार.’
निरीश्वरवादाचा आधारच विश्वाची वरवर वाटणारी अर्थहीनता आहे. बुद्धी असलेल्या सर्वांनाच पडू शकणारे प्रश्न गदिमांनी विचारले आहेत. पण ते कुणा भणंग संशयवाद्यांचे वितंडवाद घालण्याचे मुद्दे नाहीत. ते एका भाविकाने आपल्या निर्माणकर्त्यासमोर निरागसपणे ठेवले प्रश्न आहेत. गाण्याचे शेवटचे वाक्य आपल्या डोळ्यासमोर निरागस अंध व्यक्तींचे अर्धवट संकोची स्मितहास्य असलेले, अश्राप चेहरे आणते. मन गलबलते. देवाचा रागही येतो. पण तिथेच तर मेख आहे.
त्याने डोळे दिलेत आणि त्यापुढे अंधारही दिलेला आहे तो कशाला? खरे तर तेच प्रश्नाचे उत्तर आहे. निर्मात्याने आपल्या अपत्यापुढे मुद्दाम ठेवलेले ते रोचक आव्हान आहे. नुसते डोळे असून थोडाच कुणी डोळस ठरतो? मानवाने आयुष्याचा सदुपयोग करून अंतिम ज्ञानाची प्राप्ती करावी म्हणून तर समोर अज्ञानाचा अंधार ठेवला आहे. चर्मचक्षु असोत नसोत, आपणच पुरुषार्थ करून आपले ज्ञानचक्षु जागृत करणे, सत्य जाणून घेणे यासाठीच तर सगळा उपद्व्याप असायला हवा. गदीमांनी उदाहरण जरी अंध व्यक्तीचे घेतले असले तरी हेतू माणसाचे अज्ञान स्पष्ट करणे हा आहे. त्यातूनच सत्य जाणून घेण्याचे मानवी जीवनाचे अंतिम ध्येय अधोरेखित करणे हा त्यांचा हेतू आहे. आणि तोच तर गाण्याचा संदेश आहे.
लेखक : श्री श्रीनिवास बेलसरे
मो. 7208633003
संग्राहक : अनंत केळकर
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
तीन वरसात एकडाव भरणारी म्हसोबची जत्रा अगदी तोंडावर येऊनश्यान ठेपल्याली. तस गावच पोलीस पाटील मल्लप्पा काळजीत हुतच ! त्यांनी गजू ला ताबडतोब बोलवून घेतला अन लगोलग गजुला, गावच सरपंच शिवगोंडा पाटील कड निरोप धाडला. गजू पटलांच्या वाड्यावर लै जुना गडी. पन कामात इमानदार ! त्यानं कैक वर्स वाड्याव काम केल्याल. तडक चावडीवर पंचांना निरोप द्याय गेला.
मल्लप्पा पाटील अंकली गावचं लै बडी असामी, मोठं जंक्शन परस्थ ! गडी सहा फूट उंच आडदांड बांधा, गव्हाळ रंग दुटंगी धोतार, बाराबंदी, डोईस मोठा फेटा, फेट्याचा शेमला लांबलचक मागून डाव्या खांद्यावर म्होर आलेला, नाक फेंदारलेलं, नाकाखाली ह्ये लफ्फेदर मिश्या, मिश्याना पीळ, कानां म्होर कल्ले, गडी निबार, खर कडक शिस्तीचा ! घरी नोकर चाकर, जमीन जुमला, ऐसपैस टोलेजंग वाडा, गाई म्हसरांची मोठी दावण, अस सगळं मोठं काम हुत.
गजु सरपंचांना पाटलांचा निरोप देऊन आला, अन म्हणाला ” तुम्हाला सरपंचांनी टकोटक बोलावलं ” तस पाटील बी लगेच उठलं, पटका गुंडाळून शेमला पुढं टाकला व सुपारी कातरुन दाढत धरली, पान पण चुना लावुन तोंडात टाकलं वर अब्दार तामकुची चिमट टाकली घोड्यावर मांड टाकून चावडी जवळ केलीच.
चावडीत गेल्या गेल्या समदी लोक उभारून पाटलासनी नमस्कार केली. आतल्या खोलीत पाटील गेलं, शिवगोंडा पुढं येऊन अदबीने नमस्कार केला व बैठक बसली. तस सरपंचांनी चहाची ऑर्डर सोडली, डायरेक्ट मुद्द्याला हात घालत सरपंच म्हणलं ” काय बी काळजी करू नगा पाटील साहेब !
म्या आजच मिटिंग बोलावतो व जतरची समदी तयारी करून घेतो. अस म्हणल्याव पाटलांचा जीव भांड्यात पडला. चहापाणी झालं तस सरपंच म्हणलं फकस्त तुम्ही बळी द्यायचा रेडा तयार ठेवा. जत्रा भन्नाट भरवितो. पाटील आलं तस घोड्यावरन गेलं.
सांच्याला समद्या पंचांना अवतांण दिल तशी लगोलग समदी जमा झाली.
समद्याना विषय माहीत हुताच ! फकस्त कामाची वाटणी तेवडी शिल्लक हुती.
चहा पाणी झालं तस, सरपंचांनी समद्या कामाची वाटणी बी आधीच करून ठेवल्याली हुती. फकस्त त्यांना ते काम सांगायचं हुत.
तस त्यांनी प्रत्येक पंचाला ते ते काम सोपवलं व मिटिंग सम्पली.
गण्या उठला अन म्हनला पंच रेड्याच काय ? त्यावर शिवगोंडा म्हनले रेड्याचा मान खायम पाटलांच्याकडे अस्तुया नव्ह ? तस न्हाय म्हणायचं मला गणू विनाकारण खाकरत म्हनला, एक रेडा माझ्या बी घरी हाय नव्ह ! मुद्दाम त्याला मी बाजार दाखवला न्हाय.
शिवगोंडा- मग तस जाऊन पाटलासनी सांग की. हाय काय न्हाय काय.
गणू – तस नव्ह पंच तुम्ही संगीतल्याल जरा येगल पडतंय ! पंच हसत म्हनलं जा जा सांगतु मी त्यांना !
त्यावर गणू म्हनलं न्हाई म्हंजी त्यांना तसा सांगावा द्या की, म्हंजी दुसरीकडं बाजार हिंडाय नगो त्यासनी.
ते बी खरच म्हणा ! अस पंच म्हटले अन समदीजन उठून जतरच्या कामाला लागली.
गावच्या गटारी साफ करायला यल्लप्पा, मल्लपा रुजू झाले. रस्ता साफ कराया गावकुसाबाहेरच्या बायका कामाला लागल्या.
इजेच्या डांबवर नवीन बलब घालण्यात आले.
गावात डांगरा पेटवून, समद्याना कळवण्यात आलं.
म्हसोबाच्या देवळा म्होर स्वच्छता करण्यात आली. आजूबाजूला मंडप घालून कनाती बांधण्यात आल्या.
बैलगाडीत हौद घालून पिण्याच्या पाण्याची सोय करण्यात आली. जवळपासच्या गावात आवतान धाडण्यात आलं. माहेरवाशिणी अन पै पाव्हन जमलं तस वाहनांन येऊ लागली ! गावात समदीकडे फरफर्या लावण्यात आल्या म्हसोबाच्या देवळाला बाहेरून आतून रंगरंगोटी करण्यात आली. गावात कस निस्ता उत्साह संचारला व्हतंच ! पोर बाळ रस्त्यावर हिंदडू लागली. दिवस जवळ येईल तस. प्रत्येकानं मागून घेतलेला नवस फेडीत व्हता.
म्हसोबाचा पुजारी रात अन दिस भर बसू लागला ! त्याला मदत घरच्याची बी मिळू लागली ! भानुदास पुजारी वयान तस म्हातर पन तस त्यांच्या अंगाकड बघितलं तर जाणवत नव्हतं! धोतर अन गळ्यात मुंडीछाट कपाळावर भंडारा ! त्याची कैक डोई म्हसोबाच्या सेवा करण्यात गेल्याली ! चेहऱ्यावर कायम हसत बोलणं. त्याला देवस्थानची दहा एकर जमीन बी कसून खात व्हता. तस त्याला काय बी कमी नव्हतंच !
देवा म्होर रोज वाजत गाजत लोक येत अन आपला बोलेला नवस पुरा करत ! मग कोण देवाच्या नावं गाय सोडीत कोण वासरू ! कोण बैल ! अस हे रोज चाल्याल हुतच!
रस्त्याच्या दोन्ही बाजून जागा मिळेल तस दुकान सजत व्हतीच ! त्यात देवा म्होर नारळ, कपूर, उदबत्त्या, प्रसाद म्हणून बेंड बत्तास, पेढे चिरमुर ! त्याला लागून देवाच्या मूर्तीच अन टाक असल्याला दुकान ! त्यांच्या खालत देवच फोटू असल्याला फ्रेमच दुकान ! मग ओळींन बांगड्यांची दुकान त्याच्या खालोखाल भांड्याची दुकान, मग शेवटी मुलांच्या खेळण्याची दुकान.
बाजूला मोठं पटांगण त्यात मुलांना बसायला पाळण ! गोल फिरत्याल घोड खुर्च्या. अन घसरगुंडी !
अस समदी जत्रा भरल्याली !
लागून पाच सात होटेल चहाच गाडे, भेळ, वडा पाव, त्यातच गारेगारची सायकल, रंगीबेरंगी बर्फाचा गोळा, उसाचा रस, सोडालेमनच दुकान ! अस हे समद वरश्या परमान झ्याक जुळून आल्याली जत्रा.
त्यात हावसे नवसे गवसे लोक हिंडत व्हतीच ! बाया बापड्या लेकरं चिल्ल पिल्लं समदी जण मजा घेत व्हते.
शाळेच्या माग तमाश्या पण आलेला, येक टुरिंग टाकीज पण बसकण मारल्याली व्हतीच की ! जे जे पाहिजे ते ते वरसा प्रमान झाल्याल व्हत ! आता फकस्त भंडारा उधळयाच व्हता, रेड्याचा बळी दिला की झालं ! जतरा पार पडणार व्हती.
घरोघरी पक्वांन्न शिजत व्हती, त्याचा वास गल्लीतन फिरत व्हता. जत्रेचा मुख्य दिवस उजाडला. जो तो आनंदात व्हता, ठेवणीतील कपड घालुनश्यान जो तो घरातील निवद देऊन येत व्हता. गर्दी ज्याम वाढल्याली, भंडारा जो तो उधळत व्हता, समदी रस्ते, गल्ल्या पिवळधमक झाल्याल !
काठोकाठ भरलेल्या व्हत्या ! हाताखाली घरची समदीजन मदत करत व्हतीच. तरी बी लोकांना आवरण जिकिरीचं झालं व्हत ! आवंदा तर गर्दी इपरित जमल्याली. समदिकड भांडऱ्यांन पिवळा चिखल झाल्याला ! भंडारा अन नारळाचं पाणी घ्या की !
सांच्याला रेड्याचा बळी बरुबरीन सहा वाजता द्यायचा व्हता ! चालरीतच तशी व्हती. हिकडं गण्याचा रेडा गावच्या पाटलांनी चांगली बोली देऊन इकत घेतला हुता ! त्यापायी गण्याबी लै खुषीत हुता !
त्या रेड्याला स्वच्छ धुवून श्यान पाठीवर झुल घाटलेली ! गळ्यात मोठा झडूंच्या फुलांचा हार ! घातला. डोईला भंडारा फासलेला गळ्यात दोन्ही बाजूला दोरखंड बांधलेलं.
दोघा रामोश्यानी त्याला गच्च धरलेल् ! त्याला गावातून मिरवत नन्तर मग देवीम्होर बळी द्यायचा व्हता !
शेवटचा घास म्हणून पाटलीनबाई आल्या, त्याला पाच पुरणाच्या पोळ्या खाऊ घातल्या ! बादलीभर पाणी पाजलं अन त्याला पाच सवाष्णीन ओवाळल !
दुपारचं 3 वाजता पाटलांचा रेडा वाड्या भैर पडला ! म्होर ढोल ताशा, अन सुंदरी वाजवणार कोर्वी लोक हुतच ! त्याच्या म्होर धनगराच् ढोल पथक ! त्याच्या म्होर गावठी बँड वाजवणंर लोक ! मध्येच कोणतरी नाचत हुता, त्याच्या अंगावर चिरमुर अन चिल्लर टाकली जात हुती !
भंडारा तर पोत्यानी फेकला जात व्हता !
मिरवणूक एकेक गल्ली तुन भैर पडत हुती मध्येच काही घरातल्या बायका रेड्याला पुरण पोळी चारवत हुत ! अशी ही जंत्री कसबस गावातून मिरवत देवाम्होर आली तवा सांच्याला दिवस मावळतीला कलला व्हता.
सांच्याला सहाला काही अवधी हुता, तस म्हसोबा म्होर रेड्याला उभं केलं ! सगळी कडे शांतता पसरली ! वाद्य बँड ढोल समद बंद पडल ! भानुदास पुजारी लगबगीनं म्होर झाला. त्यानं रेड्याच्या पायावर पाणी घातलं. म्हसोबच्या अंगावरील हार रेड्याच्या गळ्यात घातला ! बुट्टी भरून ठेवलेल्या निवदाच्या पुरण पोळ्या रेड्याला खायला दिल्या. त्याच्या अंगावरची झुल काढून त्याच्या वर समदिकड भंडारा उधळला ! तस इतर जमलेल्या लोकांनी बी इतका भंडारा उधळला की, रेडा बिथरला ! अन एकदम मानेला जोरात हिसका दिला ! तस त्याला दोरखंडानी धरलेलं रामोशी उत्तान पडलं ! त्यांच्या डोळ्यात भंडारा गेल्यान त्यांना बी काय झालं ते कळलं न्हाय ! जनावर बिथरल्याल त्यांनी जी मुसंडी मारली ती दहापाच जणांना तुडवून अंगात वार शिरल्यावनी पळून गेल ! — त्याच्या माग गावाची लोक काही पैलवान पळत व्हत पण —- ते कुठं पळून गेल ते शेवट पत्तर कळलं नाही ! पूजाऱ्याला तर भोवळ आली अन ते एका कोपऱ्यात पडलं !
झालं जो त्यो गण्याचा नावानं बोंब मारत व्हता ! एवढमातूर खर !
☆ स.न.वि.वि. … लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री सुहास रघुनाथ पंडित☆
सुरुवातीला स.न.वि.वि. असे लिहिल्यामुळे मी काही सांगतोय किंवा कशाबद्दल तरी आमंत्रण देतोय, असे कदाचित वाटू शकेल.
पण अशी सुरुवात करुन लिहिण्याचा मोह आवरला गेला नाही.
हल्ली लग्नपत्रिका, आमंत्रण पत्रिका यावरच असे लिहिलेले बघायला मिळते. एरवी असे शब्द लिहिले जात होते, हे सुध्दा विसरायला झाले आहे. उतारवयात स्मरणशक्ती कमी होते म्हणून काही गोष्टी विसरायला होतात. पण आता असे शब्द वाचण्यात आणि लिहिण्यात येत नसल्याने विसरायला झाले आहेत.
खरंच मोबाईलसारख्या सहज संभाषण करता येणाऱ्या वस्तू उपलब्ध झाल्यामुळे, नवनवीन शोधामुळे, काही गोष्टी सोप्या झाल्या असल्या, तरीही पत्रलेखन मात्र जवळपास बंदच झाल्यामुळे पत्रात लिहिले जाणारे काही शब्द लुप्त झाल्यासारखे वाटतात.
आज सहज अशा काही शब्दांची आठवण झाली…….
||• श्री •||• लिहून पत्राची सुरुवात.
*श्री.रा.रा. – श्रीमान राजमान्य राजश्री.
*स.न.वि.वि. – सप्रेम नमस्कार विनंती विशेष.
तीर्थरुप आई / बाबा.
*शि.सा.न. – शिरसाष्टांग नमस्कार.
या सारखे शब्द वाचायलाच मिळेनासे झाले आहेत.
कळविण्यास आनंद होतो की… असे लिहून पत्राची सुरुवात झाली, तर पुढे आनंदाची बातमी आहे, म्हणून पत्र अक्षरशः अधिरतेने वाचले जायचे. (दोन वेळेस)
पत्राच्या शेवटी लिहिले जाणारे…
– कळावे, लोभ असावा.
– आपला.
– तुझाच/ तुझीच (किती रोमँटिक!)
– आपला आज्ञाधारक
– मो.न.ल.अ.उ.आ. छो.गो. पा. : मोठ्यांना नमस्कार, लहानांना अनेक उत्तम आशिर्वाद छोट्यांना गोड पापा, असे लिहून तान्हुल्यांची सुध्दा आवर्जून आठवण ठेवली जायची. यात गोड पापा असे वाचतांना सुध्दा खरेच लहानांचा गोड पापा घेतला जातोय असा भास व्हायचा.
हे आणि या सारखे शब्द शाईच्या पेनासारखेच झाकण (टोपण) लावून जवळपास कायमचे बंद झाले आहेत असे वाटते.
त्यामुळेच असे आपलेपणा जपणारे शब्द पेनने कागदावर उतरण्याचे थांबलेच नाहीत, तर बंद झाले आहेत.
पत्र लिहून संपविताना एखादी गोष्ट आठवली तर ता.क (ताजा कलम) असे लिहून उरलेल्या जागेत ती मावेल अशा अक्षरात लिहीली जायची. त्यात सुध्दा गंमत वाटायची.
कदाचित शाईमुळेच त्या शब्दात आपलेपणाचा ओलावा येत असावा. नंतर बॅाल पॅाईंट पेनमुळे तो ओलावा कमी होत गेल्याचे जाणवले.
आता तर मोबाईलवरच टाईप केल्याने ओलावा सुध्दा काही वेळा कृत्रिम वाटायला लागतो. खरेच या शाईने लिहिलेल्या अशा शब्दात एक आपलेपणाचा गोडवा होता.
पत्राची सुरुवात यापैकी कशानेही झाली, तरीही ते सुद्धा वाचलेच जायचे. आजच्या ई मेल, व्हॅाटसअप, फेसबुक च्या जमान्यात या शब्दांची मजा हरवली आहे.
पत्रांच्या ऐवजी आता ई-मेल येतात. यात सुध्दा, Dear, Sir/Madam, Respected Sir/Madam अशी सुरुवात आणि Regards, Yours असे लिहून शेवट होतो. यात आपलेपणा जाणवतच नाही. कार्यालयीन आणि कोरडे वाटतात हे शब्द. त्यात नात्यातला ओलावा नाहिच. Yours faithfully यापैकी फेथफुली वर तर मला फुलीच (X) माराविशी वाटते.
यातही स.न.वि.वि. सारखेच नुसतेच GM, GN असे लिहिण्याची सवय आहे. पण सुप्रभात, शुभ रात्री, शुभ रजनीची मजा GM (गम) GN (गन) मध्ये नाही.
आजकाल फोनवरच बोलणे (त्यातही काही वेळा व्हिडिओ कॅाल) होत असल्याने साष्टांग नमस्कार, आशिर्वाद, गोड पापा अशा शब्दांच्या ऐवजी मग “काय? कसे काय? बाकी सगळे ठीक आहेत ना?” असे बाकी (चे) विचारुनच नात्यांची शिल्लक (बाकी) विचारली जाते, किंवा पाहिली जाते.
पत्र आले की आनंद व्हायचाच पण मोठे पत्र (अंतर्देशीय) आले की ते व्यवस्थित उघडून (खरेतर फोडून) रविवारच्या पुरवणीसारखे त्याचे वाचन व्हायचे. पण आता हे सगळे हरवले आहे असे वाटते.
अधिक काय लिहू?
कळावे…
आपला नम्र
लेखक : अज्ञात
संग्राहक : सुहास रघुनाथ पंडित
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈
☆ विजयी पांडुरंग – लेखक : अज्ञात ☆ सौ. मंजिरी येडूरकर ☆
पैठण गावात जे नाथांचं मंदिर आहे , त्यांच्या देवघरात सर्वात वर तुळशीचं माळ घातलेली पांडुरंगाची मूर्ती आहे. ती सदैव फुल वस्त्र अलंकाराने झाकलेली असते त्यामुळे मूर्तीचे फक्त मुखकमल दर्शन होत असते.
वास्तविक या मूर्तीचे एक वेगळे वैशिष्ट्य आहे._____
आपण सहसा पांडुरंगाची मूर्ती दोन्ही हात कमरेवर ठेवून उभा असलेला पांडुरंग पाहतो पण या मूर्तीत पांडुरंगाचा डावा हात कमरेवर आहे तर उजवा हात कमरेच्या खाली आहे पण समोरच्या बाजूला उघडणारा तळवा किंवा तळहात दिसतो…. म्हणून त्याला” विजयी पांडुरंग” असे म्हणतात.
या विजयी पांडुरंग कसा याची एक सुंदर आख्यायिका आहे ,हा भगवंत नाथांना प्रासादिक रुपाने मिळालेला आहे ही मूर्ती दीड फूट उंचीची आणि अडीच किलो वजनाची पंचधातूंपासून बनवलेली मूर्ती आहे. कर्नाटकातील राजा रामदेवराय हा पंढरपूरच्या पांडुरंगाचा उपासक होता त्यामुळं यानं मंदिर बांधलं आणि सोनाराकरवी पंचधातूंची मूर्ती बनवून घेतली आणि त्याची प्राणप्रतिष्ठा करणार तोच पांडुरंग दृष्टांत देऊन त्यांना म्हणाला “माझी ही मूर्ती तू इथे स्थापलीस तर मी इथे राहणार नाही आणि माझ्या इच्छे विरुद्ध तू तसं केलंस तर तुझा निर्वंश होईल “मग राजाने विचारले की या मूर्ती चे काय करू तेव्हा पांडुरंग म्हणाला की पैठणच्या नाथ महाराजांना नेऊन दे…
त्यानंतर राजाने ती मूर्ती वाजत गाजत पैठणला आणली तेव्हा नाथ महाराज मंदिरात असलेल्या खांबाला टेकून प्रवचन सांगत होते. ते ज्या खांबाला टेकून पुराण सांगायचे त्या खांबाला पुराण खांब असे म्हणतात. राजा रामदेवराय नाथांचे प्रवचन संपेपर्यंत थांबले आणि त्यांनी ही मूर्ती तुमच्याकडे कशी किंवा का आणली हे सर्व नाथांना सांगितले आणि त्यामुळे भगवंतांना तुमच्याकडे ठेवून घ्या असे सांगितले…
त्यावर नाथांनी मूर्तीला नमस्कार केला आणि म्हणाले की तू राजाच्या घरी राहणारा आहेस माझ्याकडे तुझी रहायची इच्छा आहे पण राजा सारखे पंचपक्वान्न माझ्याकडे तुला मिळणार नाहीत, तेव्हा या भगवंताच्या पायाखालच्या विटेवर अक्षरं उमटली “दास जेवू घाला न.. घाला” म्हणजे हे नाथ महाराज मी तुझ्याकडे दास म्हणून आलोय तू जेवायला दे अथवा न दे मी तुझ्याजवळ राहणार आहे . हे ही या मूर्तीच एक वैशिष्ट्य सांगता येते की विटेवर अजूनही ही उमटलेली अक्षरे आहेत.
प्रत्यक्ष भगवंत घरी आले म्हणल्यावर पूर्वी पाहुणचार म्हणून कोणी बाहेरून आले की गुळ पाणी दिले जायचे पण प्रत्यक्ष भगवंत आलेत म्हटल्यावर त्यांनी आपल्या पत्नीला आवाज दिला. त्यांचे नाव गिरीजाबाई होते त्यांचा पाहुणचार म्हणून बाईंनी चांदीच्या वाटीत लोणी आणि खडीसाखर आणलं नि नाथांच्या समोर धरलं. हे लोणी घेण्यासाठी म्हणून भगवंतांनी आपला उजवा हात कमरेवरचा काढून पुढे केला नि लोणी चाटले नंतर तो हात लोणचट म्हणजेच थोडा लोणी लागलेला असल्याने परत कमरेवर ठेवताना हात व्यवस्थित कमरेवर ठेवला नाही. म्हणून त्या मूर्तीचा हात असा आहे आणि या मूर्तीच दुसरं वैशिष्ट्य असं आहे की आजही प्रत्येक एकादशीला अभिषेकासाठी मूर्ती खाली घेतली जाते तेव्हा संपूर्ण अभिषेकानंतर मूर्तीला पिठीसाखरेने स्वच्छ पुसलं जातं तेव्हा हाताला ही पुसलं जातं तेव्हा त्या हातावरून हात फिरवला तर आजही लोण्याचा चिकटपणा जाणवतो.
याच भगवंतांनी नाथांच्या घरी कावडीने पाणी वाहिले. मूर्तीच्या खांद्यावर पाणी वाहिल्याचे घट्टे आजही दिसतात अशा तीन वैशिष्ठ्याने नटलेली ही विजयी पांडुरंगाची मूर्ती आहे…!
प्रस्तुती : मंजिरी येडूरकर
☆
लेखक : अज्ञात
प्रस्तुती – सौ.मंजिरी येडूरकर
लेखिका व कवयित्री, मो – 9421096611
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈