English Literature – Poetry ☆ – Adieu… – ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Ministser of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present his awesome poem AdieuWe extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.  

☆ Adieu…?

Always keep your passion alive at

the forefront of your journey

Do look ignorant but you must

have the news of the entire town…

*

Even if your eyes are set on the sky,

Keep your feet firmly on ground

Let anyone decide the matter, but you

must keep your point forcefully…

*

Your eyes keep staring at me constantly

You must keep an eye on your eyes…

Who knows when’ll it be time to leave

You must be ready for final adieu..!

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बीज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – बीज ? ?

धरती जन्मती है

घने अरण्य,

हरी घास

कच्ची दूब

सुरभित पुष्प..,

 

धरती उपजाती है

स्वादिष्ट कंदमूल,

पौष्टिक अनाज,

फलों से लदी लताएँ

बुुुुभुक्षा की सारी संभावनाएँ..,

 

धरती बलात पैदा करती है

केमिकल से सने अनाज

पेस्टिसाइड से भीगी तरकारियाँ

संस्करित के नाम पर संकरित फल

खुशबू की राह तकते फूल..,

 

धरती उछालती है

असीम समंदर

मीठी नदियाँ

ताल-तलैया

प्यास बुझाती झील-कुइयाँ..,

धरती उगलती है

सुनामी

ज्वालामुखी

ज़हरीली गैस

और भूकंप भी..,

 

जानते हो न,

‘धृ’ धातु से बनती है धरती

‘धरिणी’ धारण करती है,

जो ‘धरती’ है,

वही धरती है,

जो निगलती है

वही उगलती है..,

 

सुनो,

कुछ समय

अब भी शेष है,

विचार कर लो

धरती क्या निगले

ताकि क्या उगल सके..,

बीज तुम्हारे हाथ है,

तुम सुन रहे हो न मनुष्य..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 5 – गीत – नव चिंतन है नवल चेतना… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – गीत – नव चिंतन है नवल चेतना

? रचना संसार # 5 – गीत – नव चिंतन है नवल चेतना…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 

मन तुरंग उड़ता ही जाता

डालो भले नकेल।

 *

कभी पढ़े कबीर की साखी,

कभी पढ़े वह छंद।

तृषित हृदय की प्यास बुझाता,

पीकर मधु मकरंद।।

अंग-अंग में बजती सरगम,

चलती प्रीति गुलेल।

 *

संकल्पों की सीढ़ी चढ़ता,

हों कितने अवरोध।

हर चौखट पे अमिय ढूँढ़ता,

करता है अनुरोध।।

चढ़कर अनुपम शुचिता डोली,

नवल खेलता खेल।

 *

नव चिंतन है नवल चेतना,

शब्द-शक्तियाँ साथ।

शब्दकोश करता समृद्ध भी,

सजे गीत हैं माथ।।

मधुरिम नवरस अलंकरण की,

चलती जैसे रेल।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 357 ⇒ प्रेम की किताब… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रेम की किताब।)

?अभी अभी # 357 ⇒ प्रेम की किताब? श्री प्रदीप शर्मा  ?

प्रेम भले ही ढाई अक्षर का हो,कोई किताब ढाई अक्षर की नहीं होती। स्कूल में सबक सिखाया जाता है,प्रेम नहीं। अगर सबक याद ना हो,तो सबक बड़े प्रेम से सिखाया जाता है। छड़ी पड़े छमछम और विद्या आए धमधम। हमारे लिए पढ़ना मजबूरी थी। हमारी शैतानियों से परेशान होकर हमें स्कूल भेजा जाता था,बच्चा कुछ पढ़ लिख लेगा,अच्छा इंसान बन जाएगा।

सुना है आजकल बच्चों को स्कूल में बड़े प्यार से पढ़ाया जाता है। अब अमर घर नहीं जाता,जैक एंड जिल किसी हिल पर जाता है। हमने पढ़ा,माता पिता की सेवा करना हमारा धर्म है,चोरी करना पाप है। और हमारे बच्चों ने पढ़ा ;

Johny Johny yes papa.

Eating sugar no papa.

Telling lies no papa.

Open your mouth.

Ha!

Ha!

कहां एक ओर छड़ी हाथ में,और गुस्से से,चलो अपना हाथ आगे करो और कहां इधर प्यार से,बेटा,जरा अपना मुंह तो खोलो।।

किताबों से प्रेम हमें यूं ही नहीं हुआ। बहुत पढ़े और बहुत मार खाई। आखिर गिरते पड़ते कॉलेज पहुंच ही गए। वहां किताबों में प्रेम पत्र भी रखे जाते थे,और किताबों और नोट्स का आदान प्रदान भी होता था। होते थे कुछ प्रतिभाशाली छात्र जो लड़कियों की दिल की किताब भी पढ़ लेते थे।

हमने कभी प्रेम का सबक ठीक से याद नहीं किया,इसलिए हमेशा किताबों में ही सिर गड़ाए रखा।

जीवन में किताबी ज्ञान कभी काम नहीं आता। कॉलेज के कई चेहरे आज भी याद हैं,जो वास्तव में ढाई अक्षर प्रेम का पढ़ पाए,और उन्होंने बिना मंगनी के ही,झट पंडित के सामने सात फेरे ले लिए और जो हमारे जैसा किताबों में ही उलझा

रहा,उसने जो जीवन में मिल गया,उसी को मुकद्दर समझ लिया। नसीब अपना अपना।।

कुछ ऐसे पढ़ाकू लड़के भी थे,जो कभी लड़कियों की तरफ आंख भी उठाकर नहीं देखते थे,लेकिन किसी प्रेम दीवानी को उनकी यह अदा ही भा गई,और वह हमेशा के लिए उनकी हो गई। शायर टाइप लड़के और लड़कियों के कॉलेज में जाकर वाद विवाद प्रतियोगिता में भाषण देने वाले कई वक्ता साथी भी आखिर बलि के बकरे बन ही गए। तब शायद फिल्म जूली का यह गीत,उनके लिए ही लिखा गया था ;

दिल क्या करे,

जब किसी से,

प्यार हो जाए

दोपहर के मैटिनी शोज़ इनके लिए प्रेम की प्रयोगशाला साबित होते थे। मैं तुझसे मिलने आई,कॉलेज जाने के बहाने। कब पानी सर से ऊपर निकल जाता, कुछ पता ही नहीं चलता था।

जो आज भी प्रेम की किताब खुली रखना जानते हैं, वे कोचिंग सेंटर,व्यावसायिक प्रतिष्ठान और आईटी कंपनीज़ में भी अवसर को हाथ से नहीं गंवाते और अगर दिल के दरवाजे पर आपने नो एंट्री की तख्ती ही लगा रखी है, तो फिर तो आपका भगवान ही मालिक है। ऐसे किताबी कीड़ों के लिए प्रेम पंडित यही राय दे सकते हैं ;

घूंघट के पट खोल रे

तोहे पिया मिलेंगे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #230 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 230 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

द्वारे मालन बेचती,  भांति भांति के फूल।

ईश्वर को अर्पित किए, श्रद्धा के अनुकूल।

*

खुश होकर माला गुथी, श्रद्धा लिए अपार।

कृपा दृष्टि रखना प्रभु, हे करना आगार।।

*

चुनती मालन फूल है, धन्य हुए वो बाग।

भेंट मंदिरो में करे, खुलते उसके भाग।।

*

रंग बिरंगे फूल का, बने जतन से हार।

बेंच रही है रोज वो, बैठी प्रभु के द्वार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #212 ☆ गीत – उन्हें तसव्वुर हो ना हो मगर… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना – उन्हें  तसव्वुर हो ना हो मगर आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 212 ☆

☆ गीत – उन्हें  तसव्वुर  हो  ना हो  मगर… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

गीत प्यार  के हम  गाने लगे  हैं

देखो हम अब  मुस्कुराने लगे हैं

*

दिल में डेरा है अब हसरतों  का

ख्वाब कई  हम सजाने  लगे  हैं

*

पंख लग गये अरमानों के बहुत

कबूतर  प्रेम  के  उड़ाने  लगे हैँ

*

उन्हें  तसव्वुर  हो  ना हो  मगर

याद हमें वो हरदम आने लगे हैँ

*

दास्तां इश्क़ की इस कद्र फैली

लोग चुपके से बतियाने लगे हैँ

*

जिनको सहूर नहीं आशिक़ी का

पाठ इश्क़ का वही पढ़ाने लगे हैँ

*

इश्क़ जब सच्चा होता है संतोष

वहाँ आशियाने जगमगाने लगे हैँ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – श्रमिकों की वंदना ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – श्रमिकों की वंदना  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

श्रमिकों का नित ही है वंदन,जिनसे उजियारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खींच रहे हैं भारी बोझा,पर बिल्कुल ना हारे।

ठिलिया,रिक्शा जिनकी रोज़ी,वे ही नित्य सहारे।।

मेहनत की खाते हैं हरदम,धनिकों पर धिक्कारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खेत और खलिहानों में जो,राष्ट्रप्रगति के वाहक ।

अन्न उगाते,स्वेद बहाते,जो सचमुच फलदायक ।।

श्रम के आगे सभी पराजित,श्रम का जयकारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

सड़कों,पाँतों,जलयानों को,जिन ने नित्य सँवारा।

यंत्रों के आधार बने जो,हर बाधा को मारा।।

संघर्षों की आँधी खेले,साहस जिन पर वारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

ऊँचे भवनों की नींवें जो,उत्पादन जिनसे है।

हर गाड़ी,मोबाइल में जो,अभिवादन जिनसे है।।

स्वेद बहा,लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 220 ☆ महाराष्ट्र गौरव… ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निशा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी ☆

प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

? कवितेचा उत्सव ?

निशा… ☆ प्रा डॉ जी आर प्रवीण जोशी

शुभ्र शुक्र चांदणी

 उजळे नभांगणी

चंद्रासह रोहिणी

एकांतात मोहिनी

*

रात चैत्र पुनवेची

रात राणी बहरली

गंध मंद मादकता

मुग्ध कळी उमलली

*

स्पर्शातील कोमलता

लाज गाली हासली

 हात हाती मुलायम

 नाजूकता बहरली

*

शुभ्र दाट चांदणे

केतकीचें हसणे

मोराचे पद लालित्य

सुखात त्या भिजणे

*

सर्व काही तेच तेच

सृष्टीचे खरे स्वरूप

अनादी आंनत युगे

मानवीय ते रूप

© प्रो डॉ प्रवीण उर्फ जी आर जोशी

ज्येष्ठ कवी लेखक

मुपो नसलापुर ता रायबाग, अंकली, जिल्हा बेळगाव कर्नाटक, भ्रमण ध्वनी – 9164557779 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ दे डाय रिच ! – लेखक : श्री जयंत विद्वांस ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

? विविधा ?

☆ दे डाय रिच ! – लेखक : श्री जयंत विद्वांस ☆ श्री सुनील देशपांडे 

(नकोशा मालमत्ता)…

एकीकडे तरुण पिढी स्थावर मालमत्तांपासून दूर चालली आहे, तर दुसरीकडे ज्येष्ठ अजूनही स्थावर मालमत्तामध्ये मनाने गुंतून पडलेले आहेत.

फक्त स्वत:साठीच राहायला घर नव्हे, तर आपल्या मुलांसाठीसुद्धा घरे ज्येष्ठांनी घेऊन ठेवली आहेत.

ज्यांची पुढची पिढी महाराष्ट्राच्याही बाहेर नव्हे तर परराष्ट्रात आहे, अशांसाठीसुद्धा पालकांनी आपल्या आयुष्यातील पै-पै जमवून घरे घेतली आहेत.

त्यांच्यापुढील पिढय़ांना या घरांमध्ये काडीचाही रस नाही. या मालमत्तांकडे बघण्यासाठी वेळ नाही. पुढची पिढी खूप व्यवहारी आहे.

माझे एक अशील वयाच्या पंचाऐंशीव्या वर्षी वारले. पत्नीचे आधीच निधन झाले होते. एक मुलगा लंडनमध्ये आणि दुसरा न्यूझीलंडमध्ये रहातो. त्यांचे त्या देशाचे राष्ट्रीयत्व आहे. दोघांनाही वडिलांनी घेतलेल्या घरामध्ये स्वारस्य नव्हते. वडिलांनी इच्छापत्रानुसार सर्व मालमत्ता दोन्ही मुलांत समप्रमाणात देण्याचे लिहून ठेवले होते. मी इच्छापत्रानुसार व्यवस्थापक होतो. दोन्ही मुलांना सर्व मालमत्ता आपल्या नावावर करून घेण्यास, नंतर विकण्यास वेळ नव्हता. दोघांनी माझ्या नावाने कुलमुखत्यार पत्र (पॉवर ऑफ अ‍ॅटर्नी) बनवून दिले. सर्व मालमत्ता विकून येणारे पैसे विशिष्ट खात्यात जमा करून त्यांच्या देशात पाठवण्यास सांगितले.

ज्येष्ठ नागरिक आपल्या वास्तूंमध्ये भावनात्मकदृष्टय़ा गुंतलेले असतात, तशी तरुण पिढी नसते.

एका क्लाएंटने त्यांच्या निवृत्तीपश्चात राहण्यासाठी कोकणात घर बांधले होते. आई-वडिलांच्या पश्चात त्या मालमत्तेच्या सात/बारा उताऱ्यावर नावे लावण्यास मुलांना वेळ नव्हता. खेडय़ात जाऊन सरकारी अधिकाऱ्यांबरोबर कागदपत्रांची पूर्तता करणे कटकटीचे वाटत होते. हे सोपस्कार करून मिळणाऱ्या पशांमध्ये रस नव्हता. कारण त्यांचे उत्पन्न भरपूर होते. म्हणून वडिलांनाच त्यांच्या पश्चात, कोठे आड जागी घर बांधले म्हणून दूषणे देत होते.

आपली पारंपरिक दुसरी गुंतवणूक सोने-नाणे आणि चांदीच्या वस्तूंमध्ये असते. आणि ती सांभाळणे जोखमीचे असल्याने ती बँकेच्या लॉकरमध्ये ठेवली जाते. बँकेत ठेवल्याने त्याचा वापर संपतो आणि लॉकरचे भाडे व लॉकरसाठी द्यावी लागणारी ठेव रक्कम यांनी आपण बँकेला श्रीमंत करत असतो.

आमच्या लहानपणी सोन्याचा भाव अमुक होता. आज तो इतका वाढला, असे आपण म्हणतो. आपण मधली वर्षे मोजत नाही. सोन्याच्या गुंतवणुकीमध्ये दीर्घ मुदतीत परतावा फक्त सात टक्के असतो. वस्तू घडणावळ आणि वस्तू मोडताना होणारी घट विचारात घेतल्यास तो अजून कमी होतो.

तसेच होणाऱ्या नफ्यावर कॅपिटल गेन टॅक्स भरावा लागतो तो वेगळाच.

सोन्या-चांदीतली गुंतवणूक ही खूपदा भावनात्मक जास्त असते. त्याचा व्यावहारिक विचार केला जात नाही.

मग सोने घेताना शुद्ध सोने घेऊन ठेवण्याऐवजी मुली-सुनांसाठी दागिने किंवा नातवंडांसाठी दागिने या स्वरूपात केली जाते.

खूपदा जुन्या पद्धतीचे दागिने नवीन पिढीस आवडत नाहीत. मग ते मोडून नवीन डिझाइनचे बनविले जातात. यात पुन्हा घट आणि घडणावळ जाते.

आज बाजारांत फेरफटका मारल्यास सर्वात जास्त दुकाने मोबाइलची नंतर सोने-चांदी, कपडेलत्ते, ओषधे, खाण्याचे पदार्थ यांची असतात. त्या तुलनेत वाणसामानाची फार कमी असतात. ज्यात नफा प्रचंड ती दुकाने जास्त. स्वाभाविकपणे त्यात ग्राहकाचा फायदा कमीच होणार.

नवीन पिढी जोखीम नको म्हणून खरे दागिने घालण्यापेक्षा खोटे घालणे पसंत करते. शेवटी खोटे जास्तच चकाकते. 😀

सोन्याची मागणी चीन आणि भारत देशात सर्वात जास्त आहे. इतर देशांत सोने दागिन्यांच्या स्वरूपात फार थोडय़ा प्रमाणात खरेदी केले जाते.

गुंतवणूक म्हणून इतर देशांत सोने शुद्ध स्वरूपात बाळगले जाते. बाजारातील सोन्याच्या भावातील चढ उतारानुसार त्याची खरेदी-विक्री केली जाते.

गुंतवणुकीच्या संकल्पना बदलत चालल्या आहेत. जुन्या योजनांचा परतावा पुढील काळात अजून कमी होण्याची शक्यता आहे. तो वेळीच समजून घ्या व पर्यायी गुंतवणूक योजना निवडणे क्रमप्राप्त ठरेल.

तिसरी भावनात्मक गुंतवणूक मुलांचे उच्चशिक्षण.

मुलांच्या उच्चशिक्षणासाठी आपल्या हौस-मौजेवर काट मारून प्रसंगी कर्ज काढतात. मुलं नोकरीला लागली की ते कर्ज फेडतात. मुलं परदेशात असतील तर हे कर्ज खूपदा आई-वडीलच फेडतात. याच्या पुढे जाऊन काही ज्येष्ठ आपल्या नातवंडांसाठी शिक्षणाची सोय म्हणून आयुर्वमिा पॉलिसी किंवा इतर गुंतवणूक करत असतात.

असेच एका ज्येष्ठ क्लाएंटला गुंतवणूक करताना विचारले,

‘‘काका, मुलांच्या शिक्षणासाठी कर्ज काढले. आता नातवासाठी गुंतवणूक का करता?’’ त्यांनी उत्तर दिले, ‘‘शिक्षणाचा खर्च दिवसेंदिवस खूप वाढतोय. तेवढीच नातवाच्या शिक्षणासाठी माझी थोडीशी मदत.’’

मी त्यांना म्हटले, ‘‘नातवाच्या शिक्षणासाठी गरज किती रकमेची असेल, याचा अंदाज आहे का? आणि तुमच्या मुलाने नातवाच्या शिक्षणासाठी यापूर्वीच ‘एसआयपी’ गुंतवणूक सुरू केली आहे. ती रक्कम त्याच्या शिक्षणासाठी भरपूर होईल.

नातवाच्या नावाने लाखभर रुपये ठेवण्यापेक्षा तुम्ही दोघे चांगल्या पर्यटनाला जाऊन या.’’

त्यावर ते म्हणाले, ‘‘ही रक्कम नातवाच्या वाढदिवसाची भेट म्हणून आता तरी गुंतवा. नंतरच्या वेळचे नंतर पाहू.’’

आपली मानसिकता कशी आहे. आपल्याला मुलांकडून पसे घ्यायला त्यातसुद्धा लग्न झालेल्या मुलीकडून पसे घ्यायला कमीपणा वाटतो. पण नातवंडांची सोय पाहणे जबाबदारीचे वाटते.

आयुष्यभर मुलांचा विचार केला आणि म्हातारपणी नातवंडांचा विचार करता.

आपले आयुर्मान वाढते आहे. आपले खर्च वाढते आहेत. याचा विचार करा. कायम दुसऱ्यांचा विचार करण्यात स्वत:ची हौस-मौज विसरू नका. आयुष्य स्वत:साठी जगा.

असे म्हणतात की *भारतीय लोक आयुष्यभर गरिबीत (कष्टांत) राहतात आणि पुढल्या पिढीला श्रीमंत करतात..

दे डाय रीच!*

© श्री सुनील देशपांडे

नाशिक मो – 9657709640 ईमेल  : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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