(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 191☆ अस्तित्व
बिरले होते हैं जो मुँह में सोने का चम्मच लेकर पैदा हों। अधिकांश लोग अपने जीवन में संघर्ष करते हैं। समय साक्षी है कि संघर्षशील व्यक्ति कठोर परिश्रम करता है। शनै:-शनै: अपने जीवन के भौतिक स्तर को ऊँचा ले जाता है। किसी से भी बात कीजिए, हरेक के पास उसके संघर्ष की गाथा मिलेगी।
जीवन के इस संघर्ष को पर्वतारोहण से जोड़कर आसानी से समझा जा सकता है। पहाड़ चढ़ना अर्थात लगातार ऊँचाई की ओर बढ़ना, पैर लड़खड़ाना, पाँव सूजना, साँस फूलना, अंतत: शिखर पर पहुँचकर आनंद से उछलना।
यहाँ तक तो हर कहानी एक-सी है। असली परीक्षा शिखर पर पहुँचने के बाद आरम्भ होती है। शिखर संकरा होता है, नुकीला और पैना होता है। यहाँ पहुँचने की तुलना में यहाँ टिके रहना बड़ी बात है।
मनुष्य का इतिहास या वर्तमान ऐसे किस्सों से भरा पड़ा है जो बताते हैं कि जो जितनी गति से शिखर पर पहुँचे, उससे अनेक गुना अधिक वेग से लुढ़कते हुए रसातल में आ पहुँचे। मनुष्य जाति का अनुभव है कि धन, बल, कीर्ति के शिखर पर बैठा व्यक्ति जब फिसलना आरंभ करता है तो चढ़ने में जितना समय लगा था, उसका दो प्रतिशत समय भी उसे नीचे गिरने में नहीं लगता।
ऐसा क्यों होता है? यहीं दर्शन प्रवेश करता है, मनुष्य नाम के दोपाये को सजीव जगत में उच्च स्थान दिलानेवाली मनुष्यता प्रासंगिक हो उठती है। अधिकांश मामलों में अहंकार और मैं-मैं की रट से शिखर का ग्लेशियर पिघलने लगता है और बेतहाशा लुढ़कता मनुष्य सब कुछ खो देता है।
विचार करें तो पहाड़ की चोटी पर पहुँचना अर्थात प्रदूषण तजना, अपने फेफड़ों में शुद्ध प्राणवायु भरना। सामान्यत: अपने मानसिक प्रदूषण से व्यक्ति उबर नहीं पाता। अहंकार का मद, स्वयं को ऊँचा मानने का मिथ्याभिमान शिखर को स्वीकार्य नहीं। फलस्वरूप अपने ही कर्मों के बोझ से मनुष्य लुढ़कने लगता है।
प्रमाद का शिकार होकर शिखर खो देना मानव जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है। अपनी रचना ‘अस्तित्व’ का स्मरण हो आता है,
पहाड़ की ऊँची चोटियों के बीच
अपने कद को बेहद छोटा पाया,
पलट कर देखा,
काफी नीचे सड़क पर
कुछ बिंदुओं को हिलते डुलते पाया,
ये वही राहगीर थे,
जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया था,
ऊँचाई पर हूँ, ऊँचा हूँ,
सोचकर मन भरमाया,
एकाएक चोटियों से साक्षात्कार हुआ,
भीतर और बाहर एकाकार हुआ,
ऊँचाई पर पहुँच कर भी,
छोटापन नहीं छूटा
तो फिर क्या छूटा?
शिखर पर आकर भी
खुद को नहीं जीता
तो फिर क्या जीता?
पर्वतों के साये में,
आसमान के नीचे,
मन बौनापन अनुभव कर रहा था,
पर अब मेरा कद
चोटियों को छू रहा था..!
अपने कद को चोटियों जैसा ऊँचा करने के लिए छोटेपन से मुक्त होना ही होगा। अस्तित्व के उन्नयन के लिए बड़प्पन से युक्त होना ही होगा।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए
अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “क्यों?”।)
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नून बिन सब सून“।)
अभी अभी # 46 ⇒ नून बिन सब सून… श्री प्रदीप शर्मा
आज का कान्वेंटी ज्ञान,नून को गुड आफ्टरनून वाला नून और सून को कम सून वाला सून भले ही समझ ले, लेकिन जिन्होंने मुंशी प्रेमचंद का नमक का दारोगा पढ़ा है,और जिन्हें गांधीजी के नमक सत्याग्रह की जानकारी है,वे नून तेल का महत्व अच्छी तरह से जानते हैं । सून भी सूना का ही अपभ्रंश है, नमक बिना भी कहीं इंदौर का नमकीन बना है ।
कहने को हमारे शरीर में सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं,लेकिन ज़िंदा रहने और स्वस्थ रहने के लिए हमें नमक का सहारा लेना ही पड़ता है । अधिक नमक के हानिकारक परिणामों से पूरी तरह से परिचित होते हुए भी हमारे जीवन में नमक का एक अहम स्थान है ।।
कल मेरा गला खराब हो गया था,मुंह से बोल नहीं निकल रहे थे । थोड़ा हल्दी नमक से गरारा किया,तो गला खुला । भोजन में अगर चुटकी भर नमक न हो,तो भोजन स्वादिष्ट नहीं बनता । जो पहले किसी का नमक खा लेते थे,वे नमक का कर्ज अदा करते थे । आजकल सिर्फ नमक की कीमत अदा करते हैं । सलीम जावेद पहले संवाद लेखक हुए हैं, जिन्होंने फिल्म शोले में गब्बर सिंह के मुख से एक स्वास्थ्य संबंधी संदेश इस तरह प्रसारित किया ;
सरदार ! मैंने आपका नमक खाया है । तो ले,अब, बीपी की, गोली खा ।।
इस धरती पर केवल इंसान ही ऐसा प्राणी है जो कपड़े पहनता है,और भोजन पकाकर खाता है । शेर जंगल का राजा है,फिर भी नंगा रहता है, और अपने हाथ से शिकार करता है,और बिना पकाए,नून तेल ,पुष्प ब्रांड मसाले बिना ही खा लेता है । कैसी डायनिंग टेबल और शाही थाली । जब कि एक आम आदमी सूट बूट पहनकर जेब में एक 500 का नोट रख बढ़िया सी होटल में शाही पनीर और बिरयानी खाकर मूंछ और पेट पर हाथ फेर लेता है । शेर फिर भी शेर है, और आदमी,बेचारा आदमी ।
आप चाहे किसी भी चीज का अचार डालो, अथवा ज़िन्दगी भर पापड़ बेलो, नून बिन सब सून । बिना तेल का, बिना मिर्ची का,अचार तो बन सकता है,लेकिन बिना नमक के नहीं । जिस तरह आज मुलायमसिंह की कहीं दाल नहीं गल रही, बिना नमक के कभी अचार भी नहीं गलता ।।
नमक तो नमक होता है,नमक से हड्डियां गलती भी हैं, और मजबूत भी होती है । आप किसी का भी नमक खाएं, कम ही खाएं । क्योंकि नमक का कर्ज भी अदा करना पड़ता है । आप मिर्ची तो खा भी सकते हो,और किसी को लगा भी सकते हो,लेकिन नमक किसी को नहीं लगाया जाता । जले पर नमक छिड़क ना हमें पसंद नहीं । हल्दी की रस्म तो सुनी है,कभी नमक की रस्म नहीं सुनी ।
वैसे खाने में नमक मिर्ची की जोड़ी भाई बहन की जोड़ी लगती है । सिका हुआ भुट्टा हो तो नमक, नींबू से काम चल जाता है । जाम और जामुन पर अगर नमक मिर्ची नहीं बुरकी हो,तो मज़ा नहीं आता । दही बड़ा तो गार्निश ही नमक मिर्ची और भुने हुए जीरे के साथ होता है ।।
नमक की महिमा जितनी मुंह में पानी लाती है, मात्रा बढ़ जाने पर आजकल बी पी भी उतना ही बढ़ाती है । स्वास्थ्य के रखवाले,नमक के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं । आयोडीन गया भाड़ में,अगर स्वस्थ रहना हो,तो सेंधा नमक का ही सेवन करें ।
मुझे याद है,खड़े नमक और खड़ी मिर्ची से मां मेरी नज़र उतारा करती थी । तब घरों में सिगड़ी हुआ करती थी । अंगारों पर जब नमक मिर्ची डाली जाती थी,तब अगर मिर्ची की धांस नहीं आई,मतलब नज़र लगी है,और अगर मिर्ची की धांस है,तो नज़र नहीं । जब से मां गई है,मुझे किसी की नजर ही नहीं लगी । मॉम बिन सब सून ।।
(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)
☆ सपना चौधरी ने कान में हरियाणा का बढ़ाया गौरव ☆
सपना चौधरी को कान फिल्म फेस्टिवल में आमंत्रित किये जाने से हरियाणा का गौरव बढ़ गया, इसमें कोई शक नहीं। बेशक साधारण ठुमके लगाते लगाते सपना असाधारण बनती चली गयी। मामूली वीडियोज से सपना को टीवी चैनलों के न्यौते आने लगे खासकर होली के अवसर पर! फिर वह बिग बाॅस तक पहुंची। इस तरह अब सपना कान तक पहुंच गयी! सपना को अपने पिता के निधन के बाद डांस ही एक सहारा लगा जिससे वह अपने परिवार की कमाऊ बेटी बन गयी। बीच में एक गाने के विवाद में उसे पीजीआई, रोहतक दाखिल करवाना पड़ा और वह कुछ समय डिप्रेशन में रही लेकिन फिर हिम्मत बटोरकर डांस शोज करने लगी और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। वैसे राजनीति में भी कदम रखने की कोशिश की और एक ही दिन में कभी प्रियंका चौधरी तो कभी मनोज तिवारी के साथ दिखी। राजनीति सपना को रास नहीं आई और वह अपनी ही दुनिया में फिर से मस्त हो गयी! सपना की हिम्मत और संघर्ष को सलाम!
रेणु हुसैन के काव्य संग्रह का विमोचन :प्रसिद्ध कवयित्री रेणु हुसैन के नवप्रकाशित काव्य संग्रह ‘घर की औरतें और चांद’ का विमोचन नयी दिल्ली के साहित्य अकादमी के रवींद्र सभागार में आयोजित किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक व प्रसिद्ध रचनाकार लीलाधर मंडलोई ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तो प्रसिद्ध कवि लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्यातिथि रहे। इनके अतिरिक्त नरेश शांडिल्य, सुमन केशरी, अनिल जोशी, कमलेश भारतीय, सागर स्यालकोटी आदि ने काव्य संग्रह पर अपने विचार रखे और शुभकामनायें दीं। ममता किरण ने संचलन किया जबकि प्रारम्भ में रेणु हुसैन ने अपनी रचना प्रक्रिया के साथ साथ कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ किया। अनेक साहित्यकार मौजूद रहे।
केहर शरीफ का जाना : पंजाब के बलाचौर के अपने पुराने मित्र और पिछले लम्बे समय से जर्मनी में बसे केहर शरीफ हमारे बीच नहीं रहे। बीमारी के चलते इन्हें जर्मनी के अस्पताल में दाखिल किया गया था लेकिन कुछ काम न आया। पंजाबी पत्रकारिता, अनुवाद और वामपंथी विचारक के रूप में केहर शरीफ की पहचान बनी हुई थी। विदेश में रहते भी उनके आलेख पंजाबी समाचारपत्रों में आते रहते थे। अलविदा केहर शरीफ!
सदीनामा का प्रवासी साहित्य विशेषांक :जीतेंद्र जीतांशु और मीनाक्षी सांगानेरिया के संपादन में सदानीरा पत्रिका का प्रवासी साहित्य विशेषांक प्रकाशित किया गया हे। इसका विमोचन भारतीय भाषा परिषद, कोलकात्ता में किया गया। सीमित साधनों में भी इस विशेषांक को निकलने पर बधाई।
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ?
☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (22 मई से 28 मई 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
आज की चौपाई है:-
जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
अर्थ – हे हनुमान जी आपने बाल्यावस्था में ही हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल जानकर खा लिया था। आपने भगवान राम की अंगूठी अपने मुख में रखकर विशाल समुद्र को लाँघ गए थे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। संसार में जितने भी दुर्गम कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।
इन चौपाइयों के बार-बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-
हनुमान चालीसा की इन चौपाईयों से सूर्यकृपा विद्या, ज्ञान और प्रतिष्ठा मिलती है। दूसरी और तीसरी चौपाई के बार-बार वाचन से महान से महान संकट से मुक्ति मिलती है और सभी समस्याओं का अंत होता है।
चौपाइयों के पाठ से पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए आपको उपरोक्त चौपाइयों का पाठ मन क्रम और वचन से एकाग्र होकर करना चाहिए।
मैं अब आपको 22 मई से 28 मई 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के जेष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया से जेष्ठ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तक के सप्ताह के ग्रहों के गोचर और राशिफल के बारे में बताऊंगा।
इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में मिथुन राशि में रहेगा। उसके उपरांत 24 मई को 7:33 प्रातः से कर्क राशि में प्रवेश करेगा। 26 मई को 7:14 रात से वह सिंह राशि में प्रवेश कर सप्ताह के अंत तक सिंह राशि में ही रहेगा। इसके अलावा पूरे सप्ताह सूर्य वृषभ राशि में, मंगल कर्क राशि में, बुध, गुरु और राहु मेष राशि में, शनि कुंभ राशि में और शुक्र मिथुन राशि मैं गोचर करेंगे।
आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।
मेष राशि
इस सप्ताह आपको कुछ अच्छे और कुछ खराब परिणाम के साथ रहना है। आपका व्यापार ठीक ठाक चलेगा। आपका स्वास्थ्य जैसा है वैसा ही रहेगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। माताजी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। आपके सुख में कमी आएगी। भाग्य आपका कम साथ देगा। आपको किसी भी कार्य को करने में काफी परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 मई उत्तम है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
वृष राशि
इस सप्ताह आपको धन की अच्छी प्राप्ति हो सकती है। स्वास्थ्य में थोड़ी गिरावट आएगी। मानसिक दबाव बढ़ेगा। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य आपका मामूली साथ दे सकता है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको कई सफलताएं मिल सकती हैं। आपके शत्रु आपसे इस सप्ताह पराजित हो सकते हैं। 22 और 23 मई को छोड़कर सप्ताह के बाकी सभी दिनों में आपको अपने भाई बहनों से सहयोग प्राप्त हो सकता है। 27 और 28 मई आपके लिए उत्तम है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मिथुन राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो आपके विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में कामयाबी मिलेगी। 26, 27 और 28 तारीख को आपको कुछ आर्थिक नुकसान हो सकता है। कृपया सावधान रहें। बाकी दिनों में धन आने का योग है। आपके संतान से भी आपको सहयोग प्राप्त होगा। कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होने की कम उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 मई उत्तम और लाभप्रद है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राहु की शांति हेतु जाप करवाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
कर्क राशि
इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में काफी सफलता मिलेगी। आपके द्वारा किए गए खर्चे में कमी आएगी। धन लाभ हो सकता है। अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है। आपके माताजी को कष्ट हो सकता है। आपके सुख में कमी आएगी। आपके संतान को लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख उत्तम और लाभप्रद है। 22 और 23 तारीख को आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार का व्रत करें और मंगलवार को ही हनुमान जी के मंदिर में जाकर तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
सिंह राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके शत्रु आप से पराजित होंगे। कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। व्यय में कमी आएगी। आय बढ़ेगी। धन आने का योग है। भाग्य थोड़ा बहुत साथ देगा। आपको अपने अधिकारी की नाराजगी सहनी पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 मई उत्तम और लाभदायक हैं। 24 25 और 26 मई को आपको सावधान रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए। 22 और 23 मई को आपको धन लाभ हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
कन्या राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। मानसिक क्लेश हो सकता है। भाग्य से आपको बहुत-बहुत नहीं मिलेगा। कार्यालय में आपकी तारीफ होगी। नए-नए शत्रु बन सकते हैं। धन आने का अच्छा योग है। धन प्राप्त करने के लिए आपको भी प्रयास करना पड़ेगा। धन किसी भी दिन आ सकता है। आप के गुस्से में वृद्धि हो सकती है। आपके संतान की उन्नति होगी। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख उत्तम फलदायक हैं। 27 और 28 तारीख को आपको सावधान होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
तुला राशि
आपका स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। 24, 25 और 26 तारीख को कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। परंतु बाकी दिनों में आप अपने कार्यालय में सतर्क रहें। भाग्य आपका पूरा साथ देगा। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। संतान की उन्नति हो सकती है। छोटी मोटी दुर्घटना भी हो सकती है। कृपया इनसे सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख फलदायक है। इन तारीखों में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आप सफल रहेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप दुर्घटनाओं से बचने के लिए प्रातः काल स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल लेकर उसमें अक्षत और लाल पुष्प डालकर भगवान सूर्य को सूर्य मंत्रों के साथ अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
वृश्चिक राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परंतु कमर और गर्दन में दर्द हो सकता है या नसों की कोई बीमारी हो सकती है। इस सप्ताह 22 और 23 तारीख छोड़कर बाकी सभी दिन भाग्य आपका साथ देगा। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। नए नए शत्रु बन सकते हैं। आपके क्रोध की मात्रा में वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख परिणाम दायक है। 22 और 23 तारीख को आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
धनु राशि
अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह अत्यंत उत्तम है। विवाह के सुंदर प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपको अपनी संतान से उत्तम सहयोग प्राप्त होगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में आपको परेशानी आएगी। धन के लाभ में कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख शुभ परिणाम दायक हैं। आपको 24, 25 और 26 को सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
मकर राशि
इस सप्ताह आपको उत्तम स्वास्थ्य के साथ में धन राशि की भी प्राप्ति होगी। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी बाधा आ सकती है। उनको ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या खून संबंधी कोई बीमारी हो सकती है। कृपया ब्लड प्रेशर की आवश्यक रूप से जांच करवा लें। इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। कोई नई संपत्ति भी खरीद सकते हैं। घर में कोई मंगलकार्य भी हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 मई लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
कुंभ राशि
स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सप्ताह ठीक रहेगा। गर्दन कमर या नसों का रोग इस वर्ष आपको हो सकता है। लंबी दूरी की यात्रा का भी योग है। संतान से आपको अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। 22, 23, 24 25 और 26 तारीख को आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख उत्तम है। आपको 24 25 और 26 को सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रूद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मीन राशि
यह सप्ताह आपके लिए ठीक है। आपके सुख में वृद्धि होगी। जनता में आपका मान सम्मान बढ़ेगा। शत्रुओं पर आपको विजय प्राप्त हो सकती है। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। थोड़ी मात्रा में धन भी आ सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख उत्तम है। 24, 25 और 26 तारीख को आपके संतान को लाभ प्राप्त होगा। अगर आप छात्र हैं तो 24, 25 और 26 तारीख को आपको सफलता भी प्राप्त हो सकती है। 27 और 28 तारीख को आपको सतर्क रह कर कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
आपसे अनुरोध है कि इस साप्ताहिक राशिफल का उपयोग करें और हमें इसके प्रभाव के बारे में बताएं।
मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।
आपण एखाद्या परिचित किंवा अपरिचित घरात पाय टाकला तर कोणता अनुभव यायला हवा? त्या घरातील माणसांनी किमान “या” असं म्हणावं!पेलाभर पाणी द्यावं.अपरिचित असू तर कोण? कुठले? अशी साधी चौकशी करावी.बरं घर म्हंटल्यावर त्या घरातील माणसांच्या बोलण्याचा, हसण्याचा, मुलांच्या ओरडण्याचा, भांडणाचा आवाज तरी कानावर पडायला नको का? पण हल्ली घरात आवाज असतो तो दूरदर्शन चा. घरं कशी अबोल झाल्यासारखी वाटतात.घरात माणसं असून ही एक वेगळीच शांतता जाणवते.या शांततेला कुठला चेहरा आहे हेही अनाकलनीय असतं.मंदीराच्या गाभा-यात जाणवणारी शांतता, ध्यान विपश्यना अशा साधनेत अनुभवायला मिळणारी शांतता,प्रचंड दडपणाखाली निर्माण झालेली शांतता किंवा एखाद्या वनराईतून संथपणे वाहणा-या नदीकाठ ची शांतता या प्रत्येक प्रसंगात, क्षणात जाणवणा-या शांततेला तिचा स्वतःचा एक चेहरा आहे, हे आवर्जून जाणवतं. पण घरात माणसं असून ही निर्माण झालेली शांतता अनुभवतांना तिचा चेहरा एकदम अनोळखी वाटायला लागतो.
आठवणीतल्या घरातलं लहानपण आठवलं की एक गोष्ट लक्षात येते की पूर्वी एकत्र कुटुंब पद्धती…त्यामुळेच घर कसं भरलेलं वाटायचं.मुलांची भांडणं झाली की आजी आजोबांचं कोर्ट! हट्ट पुरविणारे ही तेच! संध्याकाळी ” शुभं करोती ” म्हणजे मुलांच्या हजेरीची वेळ!संस्कृत मधील अनेक श्लोक, स्तोत्र पाठ करवून घ्यायची जबाबदारी आजोबांकडे.आणि गोष्ट सांगून मनोरंजन आजीकडे.सतत पाहुणे आणि येणा-या जाणा-यांचा राबता!त्यामुळे घरात माणसं असल्याचं जाणवायचं. घर चैतन्याचं आवार वाटायचं.आता अशी घरं आठवणीत गेलीत. पूर्वी घरात ‘आम्ही’ होतो, आता घरात ‘मी’ वास्तव्य करतांना दिसतो.’मी’ ‘मी’ मध्ये संवाद कसा होणार? गप्पा कशा रंगणार?
या ‘मी’ मुळे हल्ली शेजारधर्म ही उरला नाही. फ्लॅट पद्धतीत आपल्या आजूबाजूला, वर खाली घरं असली तरी त्या घरांचा आपल्या घराशी संपर्क नसतो. माणसांची सलगी नसते. नावही माहीत नसतात.फक्त जाता येता ओळख असल्याचं दाखवायचं… बळजबरीनं हसायचं. शेजारधर्म हा एकोपा वाढवणारा, सहकार्याची भावना जागवणारा असतो. नात्याची वीण घट्ट करणारा असतो. पण सा-याच घरात ‘मी’. मग दोष कुणाला द्यायचा?’मी ‘ आणि ‘मी’ चं मैत्र झालंयं का कधी? ‘मी’ ला ‘आपण’ मध्ये विरघळून जायला हवं तेव्हाच मैत्र निर्माण होतं. घर केवढं आहे याला महत्व नाही.फक्त त्यात माणसं असावीत.माणसा-माणसात आत्मीयता जिव्हाळा असावा. घरातून बाहेर गेलेल्याला घराची ओढ वाटावी.इतरांच्या सुखासाठी स्वतःतला ‘मी’ विरघळविण्याची सवय असावी. अशी माणसाला माणसांची ओढ, माणसाला घराची ओढ, घरांना घराची ओढ निर्माण झाली की ” हे विश्वचि माझे घर” म्हणणारा, ज्ञानोबा एखाद्या घरातून विश्वकल्याणाचं स्वप्न घेऊन बाहेर पडेल.कुणी सांगावं?
“बरे झाले साठे काका तुम्ही फोन करून आलात, नाहीतर नेमके तुम्ही यायचे आणि आम्ही कुठेतरी बाहेर गेलेलो असायचो.” सुहासने साठे काकांचे अगदी हसून स्वागत गेले. त्यांना त्यांची आवडती आरामखूर्ची बसायला दिली.
“अगं मंजिरी पाणी आणतेस का? आणि हो चहा टाक साठे काकांसाठी, कमी साखरेचा बरं का.” आतल्या खोलीत कार्यालयातले काम घरी करत बसलेल्या मंजिरीला त्याने आवाज दिला.
“तसे महत्वाचेच काम होते, म्हणून फोन करून आलो होतो.” जरा स्थिरावल्यावर व पेलाभर पाणी पोटात गेल्यावर साठे काकांनी विषय काढला.
“अगं मंजिरी आधी चहा टाक, काका किती दिवसांनी आपल्या घरी आले आहेत.” साठे काका का आले असतील या विचारांत तिथेच उभ्या मंजिरीला त्याने जागे केले.
“थांब मंजिरी, मी जे सांगणार आहे ते तूही ऐकणे महत्वाचे आहे. तर बरं का सुहास, तुझ्या वडिलांनी शेवटच्या काळात माझ्याकडे एक पत्र दिले होते. ते गेल्यावर मी ते पत्र तुला वाचून दाखवावे अशी त्यांची इच्छा होती.”
काकांनी कुठल्याशा पत्राचा विषय काढताच सुहास आणि मंजिरी एकमेकांकडे प्रश्नार्थक नजरेने पाहू लागले.
“इतका विचार करायचे कारण नाही, हे काही मृत्यूपत्र नाही. त्यांना फक्त त्यांच्या मनातला विचार तुला सांगायचा होता. आधी तुझ्या नोकरीच्या धावपळीमुळे तर शेवटी दवाखान्यातल्या धावपळीमुळे त्याला तुझ्याशी नीटसे बोलता आले नव्हते. पण बहुधा त्याला त्याची वेळ जवळ आल्याचे आधीच कळाले असावे, म्हणून त्याने हे पत्र खूप आधी लिहून ठेवले होते. फक्त माझ्या हातात शेवटच्या काळात दिले.” आता साठे काकांनी दीर्घश्वास घेतला. त्यांच्या डोळ्यांच्या कडा पाणावल्या होत्या. त्यांनी आणखी घोटभर पाणी घेतले.
“काका असे काय आहे त्या पत्रात की जे त्यांना माझ्या जवळ किंवा मंजिरीच्या जवळ बोलता नाही आले.” सुहासच्या मनात नाना शंकांचे काहूर माजले होते. मंजिरी शांत असली तरी तिचीही अवस्था फार वेगळी नव्हती. एवढ्या वेळ उभ्या मंजिरीने पटकन भिंतीला टेकत खाली बसणे पसंत केले.
काकांनी सोबतच्या पिशवीमधून पत्र बाहेर काढले. कार्यालय सुटले तरी कार्यालयातील कामकाजाची पद्धत सुटली नव्हती. आणि म्हणूनच पत्र अगदी खाकी लिफाफ्यामध्ये वरती छान अक्षरात अगदी नाव तारीख घालून ठेवले होते. काकांनी आधी पत्र सुहासला दाखवले. वडिलांचे अक्षर त्याने सहज ओळखले. ते सुबक नक्षीदार असले तरी शेवटच्या काळात थरथरत्या हातांनी नक्षी थोडी बिघडली होती.
काकांनी पत्र वाचायला सुरूवात केली. वरचा मायना वाचला तसे सर्वांचेच डोळे पाणावले. अधिक वेळ न दवडता त्यांनी पुढचे वाचायला घेतले.
“मला कल्पना आहे की, या वाड्याची वास्तू पाडून ही जागा एखाद्या व्यावसायिक इमारत विकासकाला द्यायची तुझी इच्छा अनेक वर्षांपासून आहे. तू माझ्याकडे थेट विषय काढला नसलास तरी कधी ताई तर कधी मंजिरीच्या आडून तो माझ्या पर्यंत पोहचवत राहिलास. माझ्या पाठीमागे या वाड्यावर तुझा व बहिणीचा समसमान हक्क आहे हे मी वेगळे सांगायला नको.”
“पण काका मला यातले काहीच नको आहे. माझे घर केव्हाच झाले आहे. तुम्हा सर्वांच्या आशीर्वादाने गाठीला बक्कळ पैसाही आहे. ताईने हवे तेव्हा या वाड्याचा ताबा घ्यावा, मी हसत माझ्या घराकडे निघून जाईन.”, काकांचे पत्र वाचन मधेच तोडत सुहास तावातावाने बोलला. तसा त्याचा हात दाबत मंजिरीने त्याला शांत केले.
“अरे मला पत्र तर पूर्ण वाचू देत.”, असे म्हणत काकांनी पुढे पत्र वाचायला सुरूवात केली.
“माझ्या आजोबांपासूनचा म्हणजेच तुझ्या पणजोबांपासूनचा हा वाडा. इथे काही बिऱ्हाडे पिढ्यान् पिढ्या राहात आहेत. जशी तुझी माझी नाळ जुळली आहे तशीच या बिऱ्हाडांच्या पुढच्या पिढ्यांशी माझी नाळ जुळली आहे. तू जागा विकसकाला देताना ताईचा विचार घेशीलच याची खात्री आहे पण सोबत या बिऱ्हाडांचाही एकदा विचार घ्यावा एवढीच माझी विनंती आहे, त्यांची योग्य व्यवस्था करावी एवढीच माझी शेवटची इच्छा आहे.”
पुढची पत्राच्या समारोपाची वाक्ये वाचायची गरजच नव्हती. त्यांची पत्र लिहिण्याची पद्धत, त्यातली भाषा, सुरूवात व समारोप आताशी साऱ्यांच्या परिचयाचे झाले होते. काकांनी पत्र सुहासच्या हाती सुपूर्त केले. पुढची काही मिनिटे तो नुसताच पत्रावरून हात फिरवत होता. “मी आत जाऊन चहा टाकते.”, त्यांची तंद्री तोडत मंजिरी म्हणाली आणि झपझप आत गेलीही.
बाहेर फक्त साठे काका, सुहास आणि वडिलांचे पत्र राहिले होते.
वाडा तसा खरेच जुना होता. अनेक बिऱ्हाडे आधीच सोडून गेली होती. काही खोल्या वारसा हक्क राहावा म्हणून कुलुपे आणि जळमटांसह बंद होत्या. न मागता दर महिना खात्याला भाडे म्हणून नाममात्र रक्कम जमा होत होती. पण सुहासच्या चटकन लक्षात आले की ज्यांच्यासाठी वडिलांचा जीव अडला होता किंवा त्यांनी एवढा पत्र प्रपंच केला होता, ते जोशी मास्तर वाड्याच्या मागच्या अंगणातील खोल्यांमध्ये आपल्या पत्नीसह राहात होते. पंख फुटले तशी मुले केव्हाच उडून गेली होती. पाठीमागे दोन जीर्ण देहांसह जीर्ण घरटे राहिले होते.
त्यांची जुजबी व्यवस्था करून सुहासला हात काढता आले असते, किंबहुना विकसकाने तसे सुचविले देखील होते. ना जोशी मास्तरांमध्ये लढायची ताकद होती ना त्यांच्या बाजूने कोणी लढायला उभे राहिले असते. काही शिक्षक दुर्लक्षिले जातात हेच खरे.
विकसकाला जागा ताब्यात द्यायला अद्याप पुष्कळ वेळ होता. सुहासने जोशी मास्तरांच्या मुलांशी संपर्क करून पाहिला. अपेक्षेप्रमाणे समोरून काहीच प्रतिसाद आला नाही.आता मात्र एक वेगळीच कल्पना सुहासच्या मनात आली आणि ती त्याने आधी मंजिरीला मग ताईला बोलून दाखविली. साठे काकांना यातले काहीच सांगायचे नाही असे त्याने दोघींना बजावले होते. जोशी मास्तरांशी तो व मंजिरी स्वतः जाऊन बोलले. त्याची कल्पना ऐकून तर मास्तर ढसाढसा रडले.
इकडे साठे काका लांबूनच पण वाड्यात घडणाऱ्या घडामोडींवर लक्ष ठेवून होते. सुहास सामानाची बांधाबांध करीत असल्याचे त्यांच्या लक्षात आले. पण त्याने जोशी मास्तरांचे काय केले याचा काही थांग पत्ता लागत नव्हता. त्याला वडिलांच्या पत्राची आठवण करून द्यावी असे काकांना खूपदा वाटले, पण त्यांनी धीर धरला. एके दिवशी वाड्याच्या दारात ट्रक उभा असल्याचे त्यांना कोणाकडून तरी कळाले आणि हातातली सगळी कामे टाकून त्यांनी वाडा गाठला.
“अरे सुहास तू निघालास वाटतं. ते जोशी मास्तर कुठे दिसत नाहीत, त्यांचे काय ठरवले आहेस? तुझ्या वडिलांचे पत्र लक्षात आहे ना?” काहीसे रागात काहीसे नाराजीने पण एका दमात साठे काका बोलून गेले.
“ते तर पुढे गेले.”, ओठांवर हसू आलेले असतानाही कसेबसे ते दाबत सुहास थोडा कर्मठपणे बोलला.
“पुढे गेले म्हणजे? कुठे गेले?” साठे काकांचा पारा चढला.
“माझ्या घरी, माझे स्वागत करायला.” सुहासने अगदी संयमाने प्रतिउत्तर दिले.
“तुझ्या घरी म्हणजे? तू मला नीट सांगणार आहेस का? हे बघं तुझ्या वडिलांची अंतिम इच्छा होती की …” साठे काकांचे वाक्य पूर्ण होऊ न देताच सुहासने त्यांना वाड्याच्या पायऱ्यांवर बसवले.
“काका मी त्यांना दत्तक घेतले आहे. लोक मूल दत्तक घेतात तसे मी आई वडील दत्तक घेतले आहेत आणि आता अगदी शेवटपर्यंत मी त्यांचा संभाळ करणार आहे.” एखाद्या मुलाने वडिलांच्या खांद्यावर डोके ठेवावे तसे सुहासने साठे काकांच्या खांद्यावर डोके ठेवले आणि म्हणाला, “तसेही आई बाबांच्या पाठीमागे आम्हाला तरी आधार कोण आहे.” साठे काकांच्या डोळ्यांतून अश्रूधारा वाहात होत्या आणि आज त्या पुसायचे भानही त्यांना राहिले नव्हते.
लेखक : म. ना. दे.
(श्री होरापंडीत मयुरेश देशपांडे)
C\O श्री मंदार पुरी, पहिला मजला, दत्तप्रेरणा बिल्डिंग, शिंदे नगर जुनी सांगवी, पुणे ४११०२७
+९१ ८९७५३ १२०५९
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈