हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 17 ☆ कविता – ये अपना  नूतन वर्ष है ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  ये अपना  नूतन वर्ष है.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 17 ☆

☆ ये अपना  नूतन वर्ष है ☆ 

 

शस्य श्यामला धरती पर

हरषे नर्तन की शहनाई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

ये सर्द कुहासा छँटने दो

रातों का पहरा हटने दो

धरती का रूप निखरने दो

फागों के गीत थिरकने दो

 

कुछ करो प्रतीक्षा और अभी

प्रकृति को दुल्हन बनने दो

खुशियों में गाए अमराई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

प्रतिप्रदा चैत की आने दो

धरती को सुधा लुटाने दो

चहुँदिश को ही महकाने दो

तन-मन में फाग सुनाने दो

 

ये कीर्ति सदा है आर्यों की

ये आर्यावर्त की प्रीत रही

जब धरा दुल्हन-सी मुस्काई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगन्ध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

युक्ति प्रमाण से स्वयंसिद्ध

नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध

ब्रह्माण्ड रचे कुछ नव नूतन

तब होती जग में रिद्धि-सिद्धि

 

तितली फूलों पर मँडराएँ

भौंरे फागों को गुंजाएँ

उल्लास उमंगें मन भाईं

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 39 – बेबस ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  एक व्यावहारिक लघुकथा  “बेशर्म । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं  #39 ☆

☆ लघुकथा – बेबस ☆

धनिया इस बार सोच रही थी कि जो 10 बोरी गेहूँ  हुआ है उस से अपने पुत्र रवि के लिए कॉपी, किताब और स्कूल की ड्रेस लाएगी जिस से वह स्कूल जा कर पढ़ सके. मगर उसे पता नहीं था कि उस के पति होरी ने बनिये से पहले ही कर्ज ले रखा है.

वह आया. कर्ज में ५ बोरी गेहूँ ले गया. अब ५ बोरी गेहूँ बचा था. उसे खाने के लिए रखना था. साथ ही घर भी चलाना था. इस लिए वह सोचते हुए धम्म से कुर्सी पर बैठ गई कि वह अब क्या करेगी ?

पीछे खड़ा रवि अवाक् था. बनिया उसी के सामने आया. गेहूँ भरा. ले कर चला गया. वह कुछ नहीं कर सका.

“अब क्या करूँ? क्या इस भूसे का भी कोई उपयोग हो सकता है ? ” धनिया बैठी- बैठी यही सोच रही थी.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 37 – एकटी…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है  उनकी एक भावप्रवण  एवं संवेदनशील  कविता “एकटी…! ”।  यह अकेली चिड़िया जीवन के  कटु सत्य को  अकेली अनुभव करती है , साथ ही अपने बच्चों को स्वतंत्र आकाश में उड़ते देखकर उतनी ही प्रसन्न भी होती है। यह कविता पढ़ कर आप निश्चित ही विचार करेंगे, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है । आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #37☆ 

☆ एकटी…! ☆ 

आली बघ चिऊताई आज माझ्या परसात

दाणे टिपुनिया नेई पिल्लांसाठी घरट्यात…!

 

पिल्लासाठी घरट्यात सदा तिचे येणे जाणे

घास मायेचा भरवी चोचीतून मोती दाणे…!

 

चोचीतून मोतीदाणे पिल्ले रोज टिपायची

झाली लहानाची मोठी आस आता उडण्याची…!

 

आस आता उडण्याची आकाशात फिरण्याची

झाले गगन ठेंगणे पिल्ले उडाली आकाशी…!

 

पिल्ले उडाली आकाशी नवे जग शोधायला

एकटीच जगे चिऊ घरपण जपायला…!

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #16 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #16 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

काया कर्म सुधार ले, वाणी कर्म सुधार ।

मन के कर्म सुधार ले, यही धर्म का सार ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (6) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन )

 

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।

बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ।। 6।।

 

मरूत रूद्र आदित्य वसु अश्विनी विविध प्रकार

अचरज पूर्ण अपूर्व सब नये विभिन्न आकार ।। 6।।

 

भावार्थ :  हे भरतवंशी अर्जुन! तू मुझमें आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्विनीकुमारों को और उनचास मरुद्गणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख।। 6।।

 

Behold the Adityas, the Vasus, the Rudras, the two Asvins and also the Maruts; behold many wonders never seen before, O Arjuna!।। 6।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 38 – मनाएंगे कैसे होली…… ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की  हमें जीवन के कटु सत्य से रूबरू कराती  होली पर्व पर एक विचारणीय कविता  “मनाएंगे कैसे होली……। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 38 ☆

☆ मनाएंगे कैसे होली…… ☆  

 

मुंह से निकल रही है आह

नीति पथ हुये जा रहे स्याह

शील नीलाम हो रहे हैं

सुबह और शाम हो रहे हैं

हर तरफ से आशंकायें

कहां कब क्या कुछ हो जाये

और ऐसे मे फिर से आज

पहिन कर मंहगाई का ताज

साथ ले धूर्तों की टोली

आ गई सजधज कर होली…..

 

सभी पांडव बैठे हैं मौन

विदुर धृतराष्ट्र भिष्म गुरू द्रोण

अनेकों द्रोपदियों की लाज

लूटते हैं दुशासन आज

कृष्ण, मथुरा में सोये हैं

मधुर सपनों में खोये है

टेर, लिखकर पहुंचाई है

नहीं कोंई सुनवाई है

बहन है भी तो मुंहबोली

आ गई सजधज कर होली……

 

हो रहे हैं, अजीब गठजोड़

मची है,  एक दूजे में होड़

कुर्सियों पर, जो बैठे हैं

नशे में, ऐंठे -ऐंठे है,

चोर,सब मौसेरे भाई

अंधेरी है,गहरी खाई

मजूर-मेहनतकश है बेहाल

प्रपंचों का फैला है जाल,

पुते कौए, बदरंगी ये

कोयलों की बोले बोली

आ गई सज-धज कर होली…..

 

भ्रष्ट फागें चलती है रोज

सजीव नव रागिनियों की खोज

चापलूसी के लगा गुलाल

हो रहे हैं कुछ मालामाल

रंग का कहीं अलग उन्माद

कहीं छाया घर में अवसाद

मनाए वे कैसे होली

नहीं है रंग अबीर रोली

यहाँ फाकों की फागें है

फटी जर्जर तन पर चोली

आ गई सजधज कर होली…..

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #40 ☆ नेह का नवांकुरण ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 40 – नेह का नवांकुरण

क्यों बाहर रंग तलाशता मनुष्य
अपने भीतर देखो  रंगों का इंद्रधनुष।

जिसकी अपने भीतर का इंद्रधनुष देखने की दृष्टि विकसित हो ली, बाहर की दुनिया में उसके लिए नित मनती है होली। रासरचैया उन आँखों में  हर क्षण रचाते हैं रास, उन आँखों का स्थायी भाव बन जाता है फाग।

फाग, गले लगने और लगाने का रास्ता दिखाता है पर उस पर चल नहीं पाते। जानते हो क्यों? अहंकार की बढ़ी हुई तोंद अपनत्व को गले नहीं लगने देती। वस्तुत:  दर्प, मद, राग, मत्सर, कटुता का दहन कर उसकी धूलि में नेह का नवांकुरण है होली।

नवांकुरण भीतर भी होना चाहिए। शब्दों को  वर्णों का समुच्चय समझने वाले असंख्य आए, आए सो असंख्य गए। तथापि जिन्होंने शब्दों का मोल, अनमोल समझा, शब्दों को बाँचा भर नहीं बल्कि भरपूर  जिया, प्रेम उन्हीं के भीतर पुष्पित, पल्लवित, गुंफित हुआ। शब्दों का अपना मायाजाल होता है किंतु इस माया में रमनेवाला मालामाल होता है। इस जाल से सच्ची माया करोगे, शब्दों के अर्थ को जियोगे तो सीस देने का भाव उत्पन्न होगा। जिसमें सीस देने का भाव उत्पन्न हुआ, ब्रह्मरस प्रेम का उसे ही आसीस मिला।

प्रेम ना बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा, परजा जेहि रुचै, सीस देइ ले जाय।

बंजर देकर उपजाऊ पाने का सबसे बड़ा पर्व है धूलिवंदन। शीष देने की तैयारी हो तो आओ सब चलें, सब लें प्रेम का आशीष..! खेलें होली, मिलें होली…!..शुभ होली।

©  संजय भारद्वाज

धूलिवंदन, प्रात: 9:33 बजे, मंगलवार 10 मार्च 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहा-दोहा अलंकार ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आज  प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की  होली  पर्व पर विशेष रचना  ‘ दोहा-दोहा अलंकार‘।)

☆ दोहा-दोहा अलंकार ☆

 

होली हो ली अब नहीं, होती वैसी मीत

जैसी होली प्रीत ने, खेली कर कर प्रीत

*

हुआ रंग में भंग जब, पड़ा भंग में रंग

होली की हड़बोंग है, हुरियारों के संग

*

आराधा चुप श्याम को, आ राधा कह श्याम

भोर विभोर हुए लिपट, राधा लाल ललाम

*

बजी बाँसुरी बेसुरी, कान्हा दौड़े खीझ

उठा अधर में; अधर पर, अधर धरे रस भीज

*

‘दे  वर’ देवर से कहा, कहा ‘बंधु मत माँग,

तू ही चलकर भरा ले, माँग पूर्ण हो माँग

*

‘चल बे घर’ बेघर कहे, ‘घर सारा संसार’

बना स्वार्थ दे-ले ‘सलिल’, जो वह सच्चा प्यार

*

जितनी पायें; बाँटिए, खुशी आप को आप।

मिटा संतुलन अगर तो, होगा पश्चाताप।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 40 – प्रेम ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनके चौदह वर्ष की आयु से प्रारम्भ साहित्यिक यात्रा के दौरान उनके साहित्य  के   ‘वाङमय चौर्य’  के  कटु अनुभव पर आधारित एक भावप्रवण कविता   “प्रेम”.  सुश्री प्रभा जी  का यह  कविता सात्विक प्रेम पर आधारित अतिसुन्दर कविता है। इस अतिसुन्दर  एवं भावप्रवण  कविता के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 40 ☆

☆  प्रेम ☆ 

 

साजणाची याद आली

प्रेमवेडी हाक आली

 

प्रेमरोगी कोण आहे?

कोण आहे हा सवाली ?

 

स्वास्थ्य, स्फूर्ती, तंदुरूस्ती

प्रेम हे आरोग्यशाली

 

प्रेम लाभे प्रेमवंता

प्रेमिकांचा देव वाली

 

प्रेम केले राधिकेने

क्षेम कृष्णाच्या हवाली

 

प्रेम मीरा, प्रेम राधा

प्रेम भक्ती अन भुपाळी

 

प्रेम रंगी  रंगताना

नित्य होळी अन दिवाळी

 

भाग्य त्यांचे थोर आहे

प्रेम ज्यांच्या हो कपाळी

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 19 – महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह  गाँधी विचार, दर्शन एवं हिन्द स्वराज विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें.  आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अगला आलेख  “महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस”। )

☆ गांधी चर्चा # 19 – महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस

 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1938 में हरिपुरा में हुये काँग्रेस अधिवेशन में निर्विरोध अध्यक्ष चुने गये। वे   भी गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत से पूर्णत: सहमत न थे। त्रिपुरी (जबलपुर)  में अगले वर्ष 1939 में हुये काँग्रेस अधिवेशन में वे गांधीजी के प्रत्याक्षी पट्टाभी सीतारम्मइया को हरा कर पुनः अध्यक्ष चुने गये,  जिसे गांधीजी ने अपनी व्यक्तिगत हार माना। स्वतंत्रता का आंदोलन कमज़ोर न पड़ जाय इस भावना से वशीभूत हो कर सुभाष चन्द्र बोस ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और काँग्रेस के अंदर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना कर डाली। श्री राकेश कुमार पालीवाल, भारतीय राजस्व सेवा से चयनित आयकर विभाग के उच्च अधिकारी हैं व गांधीजी के विचारों के अध्येता हैं, ने अपनी पुस्तक “गांधी जीवन और विचार” में आजाद हिन्द फौज और गांधी सुभाष संबंध पर प्रकाश डाला है वे लिखते हैं- “ गांधी और सुभाष चन्द्र बोस के संबंधो को कुछ लोग अतिरेक के साथ प्रस्तुत कर एक दूसरे के धुर विरोधी की तरह चित्रित कर भ्रम फैलाते रहे हैं। यह सच है कि  गांधी और सुभाष के बीच कुछ वैचारिक मतभेद थे लेकिन यह मतभेद आज़ादी के आंदोलन को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाये उसके तौर तरीकों को लेकर था जिसमे एक दूसरे के प्रति लेशमात्र भी द्वेष नही था अपितु दोनों के मध्य पिता पुत्र जैसी आत्मीयता थी। गांधी विचार की अध्येता सुजाता चौधरी ने ‘गांधी और सुभाष’ कृति में कई ऐतिहासिक तथ्यों एवं दस्तावेजों के आधार पर यह प्रमाणित किया है कि सुभाष चन्द्र बोस गांधी की बहुत इज्जत करते थे और गांधी सुभाष चन्द्र बोस के प्रति स्नेह भाव रखते थे।“

श्री राकेश कुमार पालीवाल  आगे लिखते हैं “जहाँ तक गांधी और सुभाष के मध्य मतभेद का प्रश्न है उसका प्रमुख कारण था कि गांधी आज़ादी के आंदोलन में न हिंसक युद्ध (आज़ाद हिन्द फौज) के समर्थक थे और न जर्मनी और जापान जैसी फासिस्ट ताकतों का सहयोग चाहते थे जबकि सुभाष चन्द्र बोस अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के दुश्मनों का समर्थन लेने और आज़ाद हिन्द फौज के द्वारा सशस्त्र संघर्ष के प्रबल पक्षधर थे। गांधी के प्रति सुभाष चन्द्र बोस का आदर इस तथ्य से भी प्रमाणित होता है कि उन्होने आज़ाद हिन्द फौज की पहली टुकड़ी का नाम गांधी ब्रिगेड रखा था और अपने सिपाहियों को कहा था कि देश की आज़ादी के बाद हम सब गांधी के नेतृत्व में समाज की सेवाकरेंगे।“

आज़ाद हिन्द फौज की हार के बाद जब उसके सैन्य अधिकारियों कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह तथा मेजर जनरल शाहनवाज खान पर लालकिले में मुक़दमा चला तो तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, कैलाश नाथ काटजू जैसे काँग्रेस के नेताओं ने काला चोगा पहन अपने इन देश भक्त साथियों जिनसे उनके तीक्ष्ण वैचारिक मतभेद थे कि सफल पैरवी करी। यह सब गांधीजी की अनुमति से ही हुआ होगा और गांधीजी का यह निर्णय उस जनमत का सम्मान था जिसे देश की आज़ादी के इन दीवानों से अगाध प्रेम था।

रूद्रांक्षु मुखर्जी ने  पंडित जवाहरलाल नेहरु और नेताजी सुभाष के आपसी संबंधों को लेकर एक पुस्तक लिखी है नेहरु बनाम सुभाष। इसमें भी अक्सर उन बातों की चर्चा है जिसमे नेताजी और महात्माजी के बीच मतभेदों पर प्रकाश पड़ता है। नेताजी शुरू से फ़ौजी अनुशासन के प्रेमी थे 1928 में कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष की अगवानी में फौजी वेशभूषा में की थी जिसे गांधीजी ने नापसंद किया था।

‘अंतिम झांकी’ में उस डायरी की बातें दर्ज हैं जिसे महात्मागांधी के चचेरे भाई की पौत्री मनु बेन ने जनवरी 1948 के दौरान लिखा और इस डायरी में दर्ज तथ्यों को गांधी जी नियमित रूप से जांचते व सही करते थे। इस प्रकार यह डायरी महात्मागांधी जो  तब बिरला भवन नई दिल्ली में ठहरे थे कि दैनिक कार्यक्रम का सच्चा विवरण देती है। गांधी जी रोजाना शाम को सर्व धर्म प्रार्थना सभा में लोगों से चर्चा करते थे‌ ।नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिवस की याद दिलाने पर गांधीजी ने 23 जनवरी 1948 को निम्न विचार व्यक्त किए।

“शैलन भाई ने खबर दी कि आज नेताजी (सुभाष बाबू ) का जन्म दिवस है, इसलिए बापू प्रार्थना में उनके बारे में कुछ कहें।”

बापू ने कहा: “आज सुभाष बोस का जन्म दिवस है। यद्यपि मैं किसी का जन्म दिवस कदाचित ही याद रखता हूं, फिर भी आज मुझे इसकी याद करायी गई, इसलिए खुश हूं।”

“सुभाष बाबू हिंसा के पुजारी रहे और मैं अहिंसा का! लेकिन उससे क्या? तुलसीदासजी ने रामायण में लिखा है:

‘संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकारी’

हंस जैसे पानी छोड़ दूध पी जाता है, वैसे ही मानव में गुण दोष होते ही हैं; पर हमें तो गुणों का पुजारी बनना चाहिए। सुभाष बाबू कितने देशभक्त थे, इसका वर्णन करना असामयिक होगा। उन्होंने देश के लिए जिंदगी का जुआं खेलकर दिखा दिया। कितनी बड़ी सेना खड़ी की और वह भी किसी तरह के जात-पात के भेदभाव के बगैर! उनकी सेना में प्रांतीय भेदभाव भी नहीं थि और न रंगभेद ही था। स्वयं सेनापति होने के बावजूद यह बात न थी कि स्वयं विशेष सुख सुविधा होगें और दूसरे कम। सुभाष बाबू सर्व धर्म समभाव रखते थे, इसी कारण उन्होंने सारे देश के भाई बहनों के हृदय जीत लिए थे। स्वयं निर्धारित काम पूरा किया। उनके इन गुणों को याद रखकर हम उन्हें अपने जीवन में उतारें, यही उनकी स्थायी स्मृति होगी।”

अंत में मैं यही निवेदन करूँगा कि हम अक्सर ऐसे विवादों को जन्म देते हैं जिनकी तथ्य परक  जानकारी हमे होती ही नहीं है। प्राय: हम सुनी सुनाई बातों पर कोई भी धारणा बना लेते है व वाद विवाद में उलझ जाते हैं। ऐसे वाद विवादों की शुरुआत व  अंत कटुता से भरा होता है जिसके हिमायती ना तो गरम दल या  नरम दल के कांग्रेसी नेता थे और नाही भगत सिंह जैसे अनेक क्रांतिकारी, गांधीजी तो कटुता को भी एक प्रकार हिंसा मानते थे और ऐसे वाद विवादों के बिल्कुल भी पक्षधर न थे।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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