सूचनाएँ/Information ☆ पाथेय की आयोजना – अलंकरण सम्मान/कलासाधिका शिक्षाविद मीनाक्षी शर्मा ‘तारिका’ की काव्य कृति “सत्व” विमोचित ☆

सूचनाएँ/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ पाथेय की आयोजना – अलंकरण सम्मान / कलासाधिका शिक्षाविद मीनाक्षी शर्मा ‘ तारिका ‘ की काव्य कृति “सत्व” विमोचित  ☆

पाथेय संस्था द्वारा गुरुवार 12 मार्च 2020 को अलंकरण एवं कृति विमोचन अवसर पर “वर्तिका साहित्यिक संस्था” जबलपुर को सम्मानित  किया।

मुख्य अतिथि – महामहोपाध्याय डॉ हरिशंकर दुबे, अध्यक्ष – डॉ राजकुमार सुमित्र, वरिष्ठ पत्रकार, विशष्ट अतिथि – श्री बसंत शर्मा, सीनियर डी सी एम, रेलवे, श्रीमती गीता शरत तिवारी, वरिष्ठ समाजसेवी, श्रीमती पलक तिवारी गायकवाड़ आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

इस अवसर पर डॉ हरिशंकर दुबे जी को जीवनश्री अलंकरण सम्मान से अलंकृत किया गया। कलासाधिका शिक्षाविद मीनाक्षी शर्मा “तारिका” की काव्य कृति “सत्व” का विमोचन संपन्न हुआ।

श्री विजय नेमा अनुज, विवेक रंजन श्रीवास्तव, विजय तिवारी ,राजेश पाठक प्रवीण,सुशील श्रीवास्तव, राजेन्द्र मिश्र,मनोज शुक्ल, इन्द्रबहादुर श्रीवास्तव, दीपक तिवारी, सन्तोष नेमा, गणेश श्रीवास्तव , श्रीमती सलमा जमाल, प्रभा विश्वकर्मा, निर्मला तिवारी, अर्चना मलैया, रत्ना ओझा आदि संस्था के सभी सदस्य इस अवसर पर मंच पर उपस्थित रहे।

पाथेय संस्था को संस्था के संयोजक विजय नेमा अनुज ने ऐसे प्रशंसनीय कार्य के लिये साधुवाद एवं बधाई दी।

प्रस्तुति – श्री विजय नेमा ‘अनुज’ 

ई-अभिव्यक्ति द्वारा  पाथेय एवं वर्तिका को हार्दिक बधाई।

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा. . . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर  आदरणीय महात्मा ज्योतिबा फुले जी पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता  “क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा. . . . !” )

 ☆ क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा . . . . ! ☆

समाज नारी साक्षर करण्या

झटली माता साऊ रे .

क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा

खुल्या दिलाने गाऊ रे . . . !

 

सक्षम व्हावी,  अबला नारी

म्हणून झिजली साऊ रे

ज्योतिबाची समता यात्रा

पैलतीराला नेऊ रे . . . . !

 

कर्मठतेचे बंधन तोडून

शिकली माता साऊ रे

शिक्षण, समता,  आणि बंधुता

मोल तयाचे जाणू रे. . . . !

 

कधी  आंदोलन, कधी प्रबोधन

काव्यफुलांची गाथा रे

गृहिणी मधली तिची लेखणी

वसा क्रांतीचा घेऊ रे. . . . !

 

दीन दलितांसाठी जगली

यशवंतांची आऊ रे

दुष्काळात धावून गेली

हाती घेऊन खाऊ रे . . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कृष्णा के दोहे ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर विशेष  “कृष्णा के दोहे ।  इन अतिसुन्दर विशेष दोहों के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)

☆ कृष्णा के दोहे ☆

 

अबीर

हुरियारे के वेश में , कान्हा जमुना तीर।

सखियों के सँग चल पड़ीं, राधा लिए अबीर।

 

रंग

लाल, हरा, पीला हुआ, मौसम का परिवेश।

रँग होली के रंग में, हँसे समूचा देश।

 

गुलाल

हुरियारे चारों तरफ, करते फिरें बवाल।

गालों पर हैं मल रहे, मोहक लाल गुलाल।

 

बरसाना

बरसाना, गोकुल गया, होकर भाव – विभोर।

भीगें पावन प्रेम में, राधा सँग चितचोर।

 

फाग

हुरियारे गाते फिरें, गली-अटारी फाग।

ढोल मंँजीरा साज ले, गावें रसिया राग।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #17 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #17 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म न हिन्दू बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन । 

धर्म चित्त की शुद्धता, धर्म शांति सुख चैन ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – एकादश अध्याय (7) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन )

 

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌ ।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ।। 7।।

मेरी एक ही देह में जड – जंगम सब रूप

जो चाहो सो देख लो अर्जुन ,सभी अनूप ।। 7।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख (गुडाकेश- निद्रा को जीतने वाला होने से अर्जुन का नाम ‘गुडाकेश’ हुआ था)।। 7।।

 

Now behold,  O  Arjuna,  in  this,  My  body,  the  whole  universe  centred  in  the one-including the moving and the unmoving-and whatever else thou desirest to see!।। 7।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 28 – Growing up ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Growing up.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 28

☆ Growing up  ☆

 

I need to grow up.

 

My body needs to stoop,

My hair needs to grey,

My hairlines need to recede,

My veins need to come out

From the back of my hands,

My feet need to tremble

While walking,

My skin needs dryness

That refuses the moisturiser;

But more than that

I need to learn

To let go.

 

Yes,

I need to grow up!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली की हुड़दंग मेरे देश मे….. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज प्रस्तुत है अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की  एक समसामयिक कविता  “होली की हुड़दंग मेरे देश मे…..। )

☆ कविता – होली की हुड़दंग मेरे देश मे….. ☆ 

बड़ी जोर से मची हुई है, होली की हुड़दंग

मेरे देश में ।

वैमनस्य, अलगाव, मज़हबी, राजनीति के रंग

मेरे देश में।।

 

कोरोना के कहर से ज्यादा

राजनीति जहरीली

कुर्सी के कीड़े ने कर दी

सबकी पतलुन ढीली,

कभी इधर औ कभी उधर से

फुट रहे गुब्बारे

गुमसुम जनता मन ही मन में

हो रही काली-पीली

आवक-जावक खेल सियासी

खा कर भ्रम की भंङ्ग

मेरे देश में।।

 

विविध रंग परिधानों में

देखो प्रगति की बातें

आश्वासनी पुलावों की है

जनता को सौगातें,

भाषण औ’आश्वासन सुन कर

दूर करो गम अपने

इधर विरोधी अलग अलग,

संसद में राग सुनाते,

लोकतंत्र या शोकतंत्र के, कैसे-कैसे ढंग

मेरे देश में

भूख गरीबी वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।

 

रक्तचाप बढ़ गए,

धरोहर मौन मीनारों के

सिमट गई पावन गंगा,

अपने ही किनारों से,

झांक रहे शिवलिंग,

बिल्व फल फूल नहीं मिलते

झुलस रहा आकाश

फरेबी झूठे नारों से,

बैठ कुर्सियों पर अगुआ, लड़ रहे परस्पर जंग

मेरे देश में

भूख गरीबी, वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।

 

ये भी वही औ’ वे भी वही

किस पर विश्वास करें

होली पर कैसे, किससे

क्योंकर, परिहास करें,

कहने को जनसेवक

लेकिन मालिक बन बैठे हैं

इन सफेदपोशों पर

कैसे हम विश्वास करें,

मुंह खोलें या बंद रखें, पर पेट रहेगा तंग

मेरे देश में

भूख गरीबी वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ त्रिकाल /Trikaal – श्री संजय भारद्वाज ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा श्री संजय भारद्वाज जी की कविता “त्रिकाल ”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “Trikaal” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

आइए…हम लोग भी इस कविता के मूल हिंदी  रचना के साथ-साथ अंग्रेजी में भी आत्मसात करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  को परिचित कराएँ।

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – त्रिकाल  ☆

☆ श्री संजय भरद्वाज जी  की मूल रचना – त्रिकाल ☆

 

कालजयी होने की लिप्सा में

बूँद भर अमृत के लिए

वे लड़ते-मरते रहे,

उधर हलाहल पीकर

महादेव, त्रिकाल हो गए!


©  संजय भारद्वाज

रात्रि 10:55 बजे, 11 मार्च 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆  “Trikal – by Captain Pravin  Raghuwanshi 

In the lust of

being immortal

They kept fighting

and perishing

for a drop of nectar…

 

While, the Mahadev

became Trikal,

the timeless entity

After consuming

Halahal, the poison!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 37 ☆ व्यंग्य – हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  व्यंग्य  “हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा ”।  वैसे इस व्यंग्य के रंग को चोखा बनाने के लिए उन्होंने हर्र भी लगाया है और फिटकरी भी । यदि विश्वास न  हो तो पढ़ कर देख लीजिये। अपनी बेहतरीन  व्यंग्य  शैली के माध्यम से श्री विवेक रंजन जी सांकेतिक रूप से वह सब कह देते हैं जिसे पाठक समझ जाते हैं और सदैव सकारात्मक रूप से लेते हैं ।  श्री विवेक रंजन जी  को इस बेहतरीन व्यंग्य के लिए बधाई। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 37 ☆ 

☆ व्यंग्य – हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा ☆

हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आये. इस कहावत का अर्थ है कि बिना मेहनत व लागत के ही  किसी काम में उसका बेहतर परिणाम मिल जाना. संसाधनो की कमी के वर्तमान समय में यह मैनेजमेंट फंडा है कि हर्र और फिटकरी की बचत के साथ चोखे रंग के लिये हर संभव प्रयास हों.

दलाली के धंधे को इसी मुहावरे से समझाया जाता है. जिसमें स्वयं की पूंजी के बिना भी  लाभार्जन किया जा सकता है.   इन दिनो  नेता, मीडियाकर्मी, डाक्टर सभी इसी मुहावरे से प्रेरित लगते हैं. लोगों की ख्वाहिशें है कि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही हैं. एक मांग पूरी नही हो पाती दूसरी पर दावा किया जाने लगता है.  इसलिये नेताओ को हर्र लगे न फिटकरी वाले मुहावरे पर अमल कर लोगो को प्रसन्न करने के नुस्खे अपनाना शुरू किया है.

इस दिशा में ही बसे बसाये शहर का नाम बदलकर लोगो की ईगो  सेटिस्फाई करने के प्रयास हो रहे हैं. नया शहर बसाना तो पुराने लोगों का पुराना फार्मूला था. अब सब कुछ वर्चुएल पसंद किया जाता है. इसलिये कही शहरो के नाम बदलकर लोगो को खुश करने के प्रयास हो रहे हैं, तो कही गुमनाम निर्जन  द्वीप को ही ऐतिहासिक अस्मिता से जोड़कर उसका नामकरण करके  वाहवाही लूटने के सद्प्रयास हो रहे हैं.

केवल ७ वचन देकर दूल्हा भरी महफिल से दहेज सहित दुल्हन ले आता है, हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आये इस मुहावरे का यह सटीक उदाहरण है, शायद इससे ही प्रेरित होकर घोषणा पत्र को वचन पत्र में बदल दिया गया. परिणाम में जनता ने सरकार ही बदल दी . लोकतंत्र भी इंटरेस्टिंग है, केवल एक सीट कम या ज्यादा हो जाये तो, ढ़ेरो योजनायें शुरू या बंद हो सकती हैं.

अनेको योजनाओ का नाम बदल सकता है, आनंद परमानंद में बदल जाता है. जो कल तक दूसरो की जांच कर रहे थे वे ही जांच के घेरे में आ जाते हैं.

वैसे हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा वाले मुहावरे का एक और सशक्त तरीका है, आरोप लगाना. एक बारगी तो लकड़ी की हांडी चढ़ ही जाती है.  सही मौके पर झूठा सच्चा आरोप पूरी ताकत से गंगाजल हाथ में लेकर लगा दीजीये, और अपना मतलब सिद्ध कीजीये.  बाद में सच झूठ का फैसला जब होगा तब होगा, वैसे भी अदालतो में तो इन दिनो इस बात पर सुनवाई होती है कि सुनवाई कब की जाये.

वर्चुएल प्यार की तलाश में प्रेमी बिना वीसा पासपोर्ट देश विदेश भाग जाते हैं, मतलब ये कि वर्चुएलिटी में भी दम तो होता है.  इसीलिये कहीं व्हाटसअप पर लिखी कविता पर  वर्चुएल पुरस्कार बांटे जा रहे हैं, तो कहीं सोशल मीडीया पर पोस्ट डालकर देश प्रेम जताया जा रहा है.  ये सब बिना हर्र और फिटकरी के व्यय के चोखे रंग लाने की तरकीबें ही हैं. वादे पूरे करने के दावे पूरे जोर शोर से कीजीये, आसमान में सूराख करने वाली शायरी पढ़िये और महफिल लूट लीजिये. इसके विपरीत जो बेचारा अपनी उपलब्धियों के बल पर महफिल लूटने के मंसूबे पालेगा, अव्वल तो उसे उपलब्धियां अर्जित करनी पड़ेंगी, फिर जो काम करेगा उससे गलतियां भी होंगी, लोग काम में मीन मेख निकालेंगे  वह सफाई देता रह जायेगा इसलिये केवल वचन देकर या आरोप लगाकर या शहरो का योजनाओ का नाम बदलकर, माफी देकर, बिना हर्र या फिटकरी के ही चोखा रंग लाना ही बेहतर है.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 9 ☆ ऑन लाइन सम्बंधो का दौर ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “ऑन लाइन सम्बंधो का दौर।  इस समसामयिक एवं सार्थक व्यंग्य के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 9 ☆

☆ ऑन लाइन सम्बंधो का दौर

मनुष्य सामाजिक प्राणी है सो जैसे ही मौका मिला कालोनियों का निर्माण शुरू कर देता है । मजे की बात हर व्यक्ति ऐसी जगह बसाहट चाहता है जहाँ शांति हो । इसी शांति की खोज में न जाने कितने जंगल तबाह हो गये । जंगलों को उजाड़ कर अपना आशियाना बनाना प्राचीन काल से चला आ रहा है । पांडवों ने भी खांडव वन उजाड़ कर इंद्रप्रस्थ बनाया था । जिसका दर्द भगवान श्रीकृष्ण को आखिरी समय तक रहा ।

एकांत वास व सबसे दूर रहने की एक वज़ह और भी है । सबसे मिलने जुलने में स्वागत सत्कार करना पड़ता है । आज की तकनीकी ग्रस्त पीढ़ी के पास इतना समय कहाँ कि वो सम्बंधो को ढोते फिरे । आने- जाने में चाय – नाश्ता करवाओ ,फिर इधर – उधर की बातें सो फ़ायदा कम कायदा ही ज्यादा नजर आता है ।  अब तो यही बेहतर है कि ऑन लाइन सम्बंधो को निभाया जाये , बधाई संदेशों से लेकर सारे पकवान व उपहार सब के सिंबल मौजूद हैं बस इधर से उधर करते रहिए और त्योहारों की गहमा- गहमी से बचे रहिये ।

संस्कार और संस्कृति को बचाने की ऑन लाइन मुहिम तो जोर- शोर से चल रही है बस उसके मुखिया बनने की देर है । जिसके पास समय हो वो इस पद पर आसीन हो सकता है । मुखिया की बात से तुलसी दास जी द्वारा रचित ये दोहा याद आता है –

मुखिया मुह सो चाहिए …..खान – पान सो एक ।

पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।

अब सच्ची बात तो ये है कि ये पद उसी को मिल सकता है जिसका मुह  सबको एक समान जानकारी प्रदान करे ; बिना भेदभाव के । हाँ एक बात और है कि मुह देखी तो बिल्कुल न करे ; सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ और । वो मन से ईमानदार हो , बुद्धिमान हो तभी तो सारे समाज को एक सूत्र में पिरोकर रख सकेगा ।

ऑन लाइन सम्बंधो की सबसे बड़ी खूबी  है कि –  ये पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर सकते हैं । सबको एक साथ जानकारी फॉरवर्ड कर जागरूक बनाना इसका मुख्य लक्ष्य है । एक तरफ जहाँ लोग ये कह रहे हैं कि अब रिश्तों में वो गर्माहट नहीं बची जो पहले थी तो दूसरी ओर ऑन लाइन सम्बंध सभी रिश्तों को बखूबी निभा रहे हैं । इतनी आत्मीयता व उचित संबोधनों से बातचीत होती है कि इस मिठास के आगे तो शहद भी फीका पड़ जाता है ।  और सबसे बढ़िया बात कि इन मुलाकातों में कोई संक्रमण का डर भी नहीं होता । समय- समय पर जो बीमारियाँ हमको डराती रहतीं हैं वो भी इससे खुद डरकर भाग जाती हैं ; न दवा – दारू की झंझट, न कोई साइड इफ़ेक्ट  । सो अब तो हर त्योहार ऑन लाइन ही मनाइये आखिर परम्पराओं को हम लोग ही तो  बचायेंगे । एक दूसरे को शुभकामनाएँ, बधाई व शुभाशीष देते रहें लेते रहें ।

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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