हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 40 – कहाँ खो गई सच में वह… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “कहाँ खो गई सच में वह … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 40 ।। अभिनव गीत ।।

कहाँ खो गई सच में वह…  ☆

अब तो बेशक नहीं बीनती

मुन्नू की बीबी है पन्नी

ना  ही अब वह कटे बाल की

लड़की काटा करती  कन्नी

 

शर्मा चाची के घुटनों में

गठिया आकर बैठ गई है

और मौसमी जंतर मंतर

के कामों से ऐंठ गई है

 

हर गुनिया चबूतरे वाला

कमर सम्हाले दोहरा होकर

कहता ईश्वर मुझे उठा ले

क्या आया था मोती बो कर

 

पता नहीं है कहाँ खो गया

नहीं बेचने हींग आता है

लगता उसका नहीं रहा

इस मिर्च मसाले से नाता है

 

मिस्सी वाली भी मर खप कर

चली गई ईश्वर के घर में

गाँव और उसकी बातों की

याद बच गई एक अठन्नी

 

नही आ रहा इधर बेचने

खालिश भेड़ ऊन का कम्बल

नाही हरियाणे की खेसें

और नहीं पंजाबी चावल

 

कहाँ खो गई बुढलाडा की

संतति देती प्रेम पियारी

कहाँ खो गई सागर की

फरमाइश करती राम दुलारी

 

लील गई महगाई वर्तन

कलईदार मुरादाबादी

घर में बची रह गई केवल

रमुआ से बुनवाई खादी

 

आँखों से कमजोर हुई है

वही साहसी धनिया नाइन

गा पाती अब नही पुराने

सधे गले से बन्ना बन्नी

 

कहाँ खो गई सच में वह

केसर कस्तूरी वाली मुनिया

और कहाँ बेचा करती है

अपनी चूड़ी, भौजी रमिया

 

नहीं दिखाई देती है वह

कंता छींके- रस्सी वाली

और कहाँ मर गया बिचारा

रंगोली वाला बेताली

 

कहाँ खो गई निपटअकेली

फल वाली वह दुर्बल चाची

जिसकी साल गिरह पर अपनी

सारी बस्ती मिलकर नाची

 

देख नहीं पाती आँखों से

दुर्जन की दुबली सी दादी

जो बचपन में दे देती थी

मुझको पीली एक इकन्नी

 

कहाँ खो गया  जुगत भिड़ाता

अपना वह अर्जुन पटवारी’

कहाँ गई तकनीक बताती

लछमन की भोली- महतारी

 

कहाँ गया तुलसी की माला

पहने वैद्य लटेरी वाला

कहाँ गया सिद्धांत बताता

उसका, संग में आया साला

 

कहाँ गये परसाद बांटते

चौबे जी चन्दापुर वाले

कहाँ गई जो रही वेचती

अलीगढ़ी ,मनसुखिया ताले

 

इन्हें तपेदिक ले डूबा है

सबसुख ,निरपत, गनपत ,भूरे

जगपरसाद, निरंजन, भगवत

रज्जन, निर्भय,ओमी, धन्नी

 

निपट गया इस कोरोना में

वह काना कल्लू पनवाड़ी

रोज रोज डाला करता था

पानों में वह सड़ी सुपाड़ी

 

जस्सू की बिटिया रामू संग

भाग गई है चुपके पटना

नहीं बच सका जस्सू बेशक

हुई जान लेवा यह घटना

 

ठाकुर के गुण्डों ने पिछले

दिनों जला डाली थी फसलें

किंकर ने मागी थी माफी

सोचा शायद इससे बच लें

 

दिया उजाड़ सभी कुछ उसका

नहीं बचा पाया वह अपनी

जायदाद का तिनका-तिनका

रात कह गई ,संध्या बिन्नी

 

नहीं बनाया करता है अब

गुड़-बिसवार-घी-डले लड्डू

मरा चिकनगुनिया से सनकी

मेंढक सा दिखता वह डड्डू

 

महराजिन जो सुबह सुबह आ

पुड़ी-परांठे तलती घर के

उसको गुण्डे उठा ले गये

क्या बतलायें इसी शहर के

 

छम्मू का अपहरण हो गया

केवल एक चेन के कारण

दो दिन बाद लाश खेतों में

मिली मरा वह नहीं अकारण

 

उसकी चेन रही पीतल की

बदमाशों को पता चला जब

गला दबाकर उसको फेंका

बतलायी थी मौसी चन्नी

 

पूरा गाँव पिया करता है

चुप महुये की कच्ची दारु

निर्थन क्या, अमीर  क्या सारे

मानुष क्या और क्या मेहरारू

 

बाकी लोग जुये सट्टे में

गाफिल रहते हैं सारे दिन

बचे रहे जो मोबाइल पर

रखे हुये हैं उसकी ही धुन

 

चुप है सभी समाज वेत्ता

चेतन के पुरजोर समर्थक

साबित हुये सभी विद्वत्‌ जन

झूठे, निष्क्रिय और निरर्थक

 

सुधर सके ये काश बदल

जायेगा ग्राम हमारा बेशक

हम उम्मीद रखा करते है

रुपये में बस एक चवन्नी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

05-12-2-20

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – महिला दिवस विशेष – भोर भई ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – महिला दिवस विशेष – भोर भई ☆

सृजन तुम्हारा नहीं होता। दूसरे का सृजन परोसते हो। किसीका रचा फॉरवर्ड करते हो और फिर अपने लिए ‘लाइक्स’ की प्रतीक्षा करते हो। सुबह, दोपहर, शाम अनवरत प्रतीक्षा ‘लाइक्स’ की।

सुबह, दोपहर, शाम अनवरत, आजीवन तुम्हारे लिए विविध प्रकार का भोजन, कई तरह के व्यंजन बनाती हैं माँ, बहन या पत्नी। सृजन भी उनका, परिश्रम भी उनका। कभी ‘लाइक’ देते हो उन्हें, कहते हो कभी धन्यवाद?

जैसे तुम्हें ‘लाइक’ अच्छा लगता है, उन्हें भी अच्छा लगता है।

….याद रहेगा न?

? महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ?

©  संजय भारद्वाज

(भोर 5.09 बजे,4.8.2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 86 ☆ कविता – जीतने वाले…. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता जीतने वाले….। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 86

☆ कविता – जीतने वाले…. ☆

कविता__

 

जीत के

अक्षर में

शब्द हंसते हैं,

 

शब्द हमेशा

टटोलते हैं

जीत का मतलब,

 

जीतने वाले

शब्दों से

खेलते नहीं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मान देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मधुर बनाते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

हंसी देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

नये अर्थ देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

आत्मसात करते हैं,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ महिला दिवस विशेष – सुनो बेटियों, बहनों, सखियों पढ़ो लिखो बढ़ो ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव 

(आज  प्रस्तुत है  डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी  की महिला दिवस पर एक भावप्रवण रचना सुनो बेटियों, बहनों, सखियों पढ़ो लिखो बढ़ो।  

☆ महिला दिवस विशेष – सुनो बेटियों, बहनों, सखियों पढ़ो लिखो बढ़ो  ☆

उन्नति के शीर्ष  पर चढ़ो

नए आयाम गढ़ो

तुम्हें समान अधिकार है

तुम निकल सकती हो पुरुषों से भी आगे

बस इतना ध्यान रहे

टूटने ना पाए संस्कृति के धागे

अभागे लोग नहीं मानते संस्कृति संस्कार

उनके मन में नहीं उठता विचार

उठता है केवल विकार बल

बिना दायित्व के अधिकार

ये विकार नहीं तो क्या है?

अब कहने को क्या बचा है?

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव

मो 9479774486

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #33 ☆ वो सुनती रही ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महिला दिवस पर सार्थक एवं भावप्रवण कविता “वो सुनती रही ”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 33 ☆

☆ महिला दिवस विशेष – वो सुनती रही ☆ 

बचपन से वो

दादा -दादी, नाना -नानी

माता-पिता की सुनती रही

स्कूल मे टीचर की सुनती रही

युवावस्था मे

सहेलियों की सुनती रही

यौवन की पहली सीढ़ी पर

जमाने की सुनती रही

विवाह के बाद

पति की सुनती रही

ससुराल मे  सास-ससुर की

सुनती रही

बच्चे हुये तो

बच्चो की सुनती रही

बच्चो के विवाह के बाद

बेटे-बहू की सुनती रही

अब प्रोढ़ावस्था मे जब

उसने मुँह  खोला

तर्क देकर मनका भेद  बोला

तो घर हो या  बाहर

सबने  कहा –

वोतो सठीया गई है

उसमें तर्क संगत बात करने की

बुध्दि कहां रही है

उसका  जीवन सुनते सुनते ही बीता है

ना जाने हर युग मे

क्यों वनवास मे सिर्फ सीता  है ?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.६॥ ☆

 

मन्दाकिन्याः सलिलशिशिरैः सेव्यमाना मरुद्भिर

मन्दाराणाम अनुतटरुहां चायया वारितोष्णाः

अन्वेष्टव्यैः कनकसिकतामुष्टिनिक्षेपगूढैः

संक्रीडन्ते मणिभिरमरप्रार्थितया यत्र कन्याः॥२.६॥

 

मंदाकिनी नीर शीतल पवन संग

जिनके सदा रंगरेली मनाता

तट पर लगे पुष्प मंदार की छाँह

से अंग जिनका नहीं धूप पाता

उसी के निकट स्वर्ण कदली विपिन वृत्त

है केलि गिरि , इन्द्रमणि से रचित श्रंग

औत्सुक्य दुख से मिली याद आती

उसी की तुम्हें देख प्रिय, दामिनी संग

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ जागतिक महिला दिन 2021 – सम्पादकीय निवेदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? जागतिक महिला दिन 2021 ?

8 मार्च.  जागतिक महिला दिन. या निमित्ताने महिला जगताशी संबंधित साहित्य पाठवावे असे आवाहन आम्ही केले होते. त्याला उत्तम प्रतिसाद मिळाला आहे.जास्तीत जास्त साहित्य आपल्या समोर यावे या उद्देशाने हा विशेषांकही अन्य विशेषांकांप्रमाणे आम्ही दि. 8, 9 व 10 असा तीन दिवस काढण्याचे आम्ही ठरवलेआहे. सर्वांनी असेच व्यक्त होत रहावे व ‘अभिव्यक्ती’ ला फुलवावे, ही विनंती.

?जागतिक महिला दिना निमित्त समस्त महिला वर्गाला खूप खूप शुभेच्छा आणि अभिनंदन. आपापल्या क्षेत्रातील कार्यकतृत्व बहरत जावो हीच सदिच्छा!?

तसेच

? स्त्रियांच्या कर्तृत्वाचे भान असणा-या, त्यांच्या कर्तृत्वाला वाव देणा-या, त्यांच्याविषयी समानतेचा भाव बाळगणा-या, पुरूष बांधवांनाही महिला दिनाच्या निमित्ताने विनम्र अभिवादन?

चित्र सौजन्य – विपुल श्री  -मार्च 2021

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती.मराठी.

श्रीमती उज्ज्वला केळकर 

Email- [email protected] WhatsApp – 9403310170

श्री सुहास रघुनाथ पंडित 

Email –  [email protected]WhatsApp – 94212254910

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कर्मयोगिनी ☆ प्रा. अशोक दास

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ कर्मयोगिनी ☆ प्रा. अशोक दास ☆ 

आता निवृत्तीत सेवा

असा कालखंड आला

तिच्या राबण्याचा जेव्हा

मला साक्षात्कार झाला.

 

सूर्य उगवण्याआधी

तिच्या दिवसाचा आरंभ

सारी निजानीज झाली

तरी राबण्यात दंग.

 

दोन मुले एक दूर

एक जवळ नांदतो

हिच्या मनामध्ये मात्र

दोघांसाठी ओले नेत्र.

 

सारे शेजारी पाजारी

हिचा त्यांच्यावरी जीव

लेकी बाळी खेळायाला

हिच्याशीच पाठशीव.

 

नाही थकत कधीही

नाही सांगत दमलेली

तृप्त शांत झोपलेली

कर्मयोगिनी वाटली.

चित्र सौजन्य – विपुल श्री – मार्च 2021 

© प्रा.अशोक दास

इचलकरंजी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ काटे कुटे पचवत…. ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार

प्रा. सौ. सुमती पवार

कवितेचा उत्सव ☆ काटे कुटे पचवत…. ☆ प्रा. सौ. सुमती पवार ☆ 

बाई असे ग कसे पायी चाळ बांधायचे

आणि साऱ्यांच्याच तालावर नाचायचे

आई बा च्या घरी ही धाकातच डोळ्यांच्या

आहे पोरीची ही जात नजरा साऱ्यांच्या…

 

भाऊ खेळी विटीदांडू आम्ही भातुकली

चूल बांधली गळ्यात पहा तेव्हा चिमुकली

खोटाखोटा भातपोळ्या खऱ्याच होतात

आणि तव्यावरती पहा चटके देतात….

 

विहिणी विहिणी भातुकलीत पहा भांडत

मानपान रूसवे फुगवे तेव्हा रूजतात

संस्कारांची घडीच काही अशी बसवली

मानेवरती दिले “जू” नि पहा हाकलली…

 

ओढ ओढ बैला  तू गाडा संसाराचा

मिळो नाही मिळो तुला शब्द प्रेमाचा

बंड केले तर नाही, कुठे ही रस्ता

इथे कर किंवा मर काढना मग खस्ता…

 

जगी सारेच पुरुष पहा आहेत सारखे

बायको वाचून त्यांचे पहा थोडे ना धके

तरी चिरडली तिला पायातली वहाण

नशिबचं बायकांचे पहा आहे हो भयाण….

 

नाही मिळणार न्याय, इथे कधी ही

काटे कुटे पचवत….

वाहिल ही…. नदी…..

 

© प्रा.सौ.सुमती पवार ,नाशिक

दि: ०९/०९/२०२०

वेळ:  दुपारी ४:२५

(९७६३६०५६४२)

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ वचनपूर्ती… ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ वचनपूर्ती… ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

नित्यनेमे करितो रे

तुझ्या जन्माचा सोहळा

आनंदाने रंगूनिया

फुले भक्तीचाच मळा  ||

 

आम्ही सारे फक्त तुझ्या

पालखीचे होतो भोई

मस्त नाचता नाचता

रंगू भजनाचे ठाई ||

 

तूच फक्त नाही देवा

बाकी सारी तीच कथा

नित्य कानावर येई

द्रौपदीची नवी व्यथा ||

 

वाट बघतोस का रे

शंभर अपराधांची

नाही कुणालाच भीती

वाढ होते माजोऱ्यांची ||

 

धर्म संस्थापनेसाठी

अधर्माला निर्दालून

विश्‍वाच्या कल्याणास्तव

दिले येण्याचे वचन ||

 

द्रौपदीचा पाठीराखा

धर्माचा रक्षणकर्ता

धाव घेई आम्हास्तव

होऊनी सहाय्यकर्ता ||

 

पुरे झाली तुझी लीला

आता प्रत्यक्ष प्रकट

सांग पुन्हा नवी गीता

हाक आमुचा शकट ||

 

© सौ. ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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