हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #185 ☆ कथा कहानी – धंधा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  कहानी ‘धंधा ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 185 ☆

☆ कहानी ☆ धंधा

(लेखक के कथा-संग्रह ‘जादू-टोना’ से) 

पम्मी की व्यस्तता का अंत नहीं है। पंद्रह बीस दिन दूकान का फर्नीचर और काउंटर बनने में लगे, अब वस्त्रों को ढंग से सजाना है ताकि वे दूर से ही लोगों का ध्यान खींचें। एक सीधा-सादा दर्जी मिल गया है जो दिन भर बुटीक में बैठेगा। अच्छे ‘प्रॉफिट’ के लिए कर्मचारी का सीधा-सादा और निष्ठावान होना ज़रूरी है। कर्मचारी रोज़ कोई न कोई फरमाइश लेकर खड़े रहें तो फिर मालिक को मुनाफा कहाँ से होगा?

बुटीक के दरवाज़े के ऊपर एक शानदार बोर्ड लग गया है जिसे देखकर हर बार पम्मी मगन हो जाती है। उसे पक्का भरोसा है कि साल दो साल में बुटीक बढ़िया आमदनी देने लगेगा। जो भी परिचित महिला मिलती है उससे पूछती है— ‘जब हम मेनत करेंगे तो मुनाफा क्यूँ नईं होगा?’ और हर बार जवाब मिलता है, ‘क्यूँ नईं होगा? जरूर होगा।’ लेकिन पूछते पूछते मम्मी का मन नहीं भरता।

पाँच दिन बाद बुटीक का उद्घाटन है। एक स्थानीय मंत्री से फीता काटने के लिए स्वीकृति मिल गयी है। पहले राज़ी नहीं हो रहे थे, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से दबाव डलवाया तो मान गये। अब पम्मी फूली नहीं समा रही है कि उसके बुटीक का उद्घाटन मंत्री जी के कर-कमलों से होगा।
पम्मी की सास सवेरे से कपड़ों में कीमत का ‘टैग’ लगाने में लगी थीं और पम्मी सामने लिस्ट रखकर कार्डों पर आमंत्रितों के नाम लिखने की माथापच्ची कर रही थी। निमंत्रण-पत्रों में उन घरों को तवज्जो दी जा रही थी जिनमें फ़ेमिली थोड़ा फैशनेबल थी और युवतियों की संख्या ज़्यादा थी। जेब में पैसा होना चाहिए और सर पर फैशन का भूत सवार होना चाहिए। ‘ओल्ड-फैशंड’ को बुलाने से क्या फायदा? बिना कुछ खरीदे घंटों बिटर-बिटर ताकेंगीं और फिर वापस लौट कर मीन-मेख निकालेंगीं।

नाम लिखते लिखते पम्मी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और ‘हाय रब्बा, मेरे से बड़ी गलती हो गयी’  कह कर लंबी साँस छोड़ी। सास ने परेशान होकर उसकी तरफ देखा,पूछा, ‘क्या हुआ,पुत्तर? कौन सी गलती हो गयी?’

पम्मी हाथ का काम रोक कर बोली, ‘गलती ये हो गयी, माँजी, कि मैंने मिसेज़ सिंह से झगड़ा कर लिया।’

माँजी ने पूछा, ‘कब कर लिया?’

पम्मी बोली, ‘अभी पिछले महीने।’

माँजी ने पूछा, ‘क्यूँ कर लिया झगड़ा?’

पम्मी बोली, ‘उसके कुत्ते की वजह से हुआ। वो सवेरे कुत्ते को घुमाने ले जाती है। मैं उस दिन सैर को निकली थी। उसके बगल से गुज़री तो कुत्ता एकदम मेरे ऊपर भूँक पड़ा। मैं घबरा गयी। मैंने गुस्से में कह दिया कि कुत्ता रखने का शौक है तो उस को कंट्रोल करना सीखो। वो कहने लगी कि मैं फालतू गुस्सा दिखा रही हूँ, कुत्ते ने काटा तो नहीं है। मैंने कहा तुझे मैनर्स नहीं हैं, उसने भी कहा मुझे मैनर्स नहीं हैं। फिर शटप शटप कर हम लोग अपने अपने घर आ गये।’

सास जी बोलीं, ‘तो इसमें क्या गलत हो गया? ठीक ही तो कहा तूने। आगे कुत्ते को कंट्रोल में रखेगी।’

पम्मी फिर माथा ठोक कर बोली, ‘अरे माँजी, सिंह लोगों के तीन रिश्तेदार तो इसी कॉलोनी में हैं। दो घर बगल में विजय नगर में हैं। एक रिश्तेदार स्नेह नगर में है। वो नाराज़ रही तो उसका कोई रिश्तेदार मेरे बुटीक में नहीं आएगा। कॉलोनी के दूसरे लोगों को भड़काएगी वो अलग।’

माँजी पैर फैला कर बोलीं, ‘मरने दे। नहीं आते हैं तो न आयें। तू क्यों दुबली होती है?’

पम्मी गाल पर हाथ रख कर बोली, ‘आप तो कुछ समझतीं नहीं, माँजी। उनके छः घरों में कम से कम बीस पचीस लेडीज़ होंगीं। अगर सब मुझसे रूठ कर बैठ गयीं तो मेरा तो कितना नुकसान हो जाएगा। सब आ जाएँ तो मेरे तो सॉलिड कस्टमर हो जाएँगे।’

माँजी ने सहमति में सिर हिलाया, कहा, ‘बात तो ठीक है, पुत्तर। तूने गलती कर दी। कुत्ते के पीछे क्या लड़ना!’

पम्मी थोड़ी देर चिबुक पर हथेली रखकर चिंतामग्न रही, फिर बोली, ‘अब इस मामले को आप ही ठीक कर सकती हैं, माँजी।’

माँजी ने पूछा, ‘मैं क्या कर सकती हूँ भला?’

पम्मी बोली, ‘आप कल सवेरे कार्ड लेकर उनके घर चली जाओ। आप स्यानी हो, आपके जाने का असर पड़ेगा। आप बोलना कि जरूर आएँ। कोई गलती हो गयी हो तो मन में न रखें।’

माँजी बोलीं, ‘तू कहती है तो चली जाऊँगी।’

पम्मी बोली, ‘आप उनको कार्ड दे आओ। उनके रिश्तेदारों को मैं दे आऊँगी।’

दूसरे दिन माँजी मिसेज़ सिंह का कार्ड लेकर गयीं। उनके घुटनों में दर्द होता था, इसलिए दोनों तरफ झूलती हुई, धीरे-धीरे चलती हुई गयीं।

मिसेज़ सिंह ने उन्हें बैठाया, हाल-चाल पूछे। माँजी कार्ड देकर बोलीं, ‘पम्मी के बुटीक का पंद्रह को उद्घाटन है पुत्तर। जरूर आना।’

मिसेज़ सिंह ने कहा, ‘ज़रूर आऊँगी, माँजी।’

माँजी बोलीं, ‘नईं पुत्तर! पम्मी बता रही थी कि उसने आपसे कुछ बातचीत कर ली थी। नादान है। बहुत पछता रही थी। कहने लगी मैं क्या मुँह लेकर जाऊँ, माँजी। आप चली जाओ, कहना मेरी बात को दिल से निकाल दें और उद्घाटन में जरूर आएँ। वैसे आपकी बहुत तारीफ करती है। कहती है मिसेज़ सिंह बहुत नेकदिल हैं।’

मिसेज़ सिंह ने आश्वस्त किया, ‘कोई झगड़ा नहीं है, माँजी। मैं ज़रूर आऊँगी।’

माँजी चलने के लिए उठीं, दरवाजे़ पर पलट कर बोलीं, ‘पुत्तर, मेरे से वादा किया है तो तोड़ना मत, नईं तो मुझे बहुत दुख होगा।’

मिसेज़ सिंह हँस कर बोलीं, ‘आप भरोसा रखिए माँजी। मैं पक्का आऊँगी।’

माँजी खुश खुश घर लौट गयीं। पम्मी को बताया तो उसने राहत की साँस ली।

उद्घाटन वाले दिन बुटीक के सामने शामियाना लगाकर सौ कुर्सियाँ लगा दी गयीं। मंत्री जी ने फीता काटकर पम्मी जी को ढेर सारी बधाइयाँ दीं और अपने भाषण में कहा कि शहर की सब स्त्रियाँ पम्मी जी की तरह आगे आने लगें तो शहर की तरक्की में देर नहीं लगेगी। फिर सब की फरमाइश पर खूब सारे फोटो खिंचवा कर वे दूसरे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने चले गये।

फिर अतिथियों ने बुटीक को देखना और औपचारिक खरीदारी करना शुरू किया। पम्मी को सबसे बधाइयाँ मिल रही थीं। लेकिन पम्मी की नज़र बार-बार मिसेज़ सिंह को ढूँढ़ती थी जो अभी तक दिखायी नहीं पड़ी थीं। अचानक उसे मिसेज़ सिंह महिलाओं के जत्थे के साथ आती दिखायी पड़ीं और उसकी बाँछें खिल गयीं। आगे बढ़कर उसने उन्हें गले से लगा लिया, बोली, ‘आप आयीं तो कित्ती खुशी हुई। मुझे तो डर लग रहा था कि शायद आप नहीं आएंँगीं।’

मिसेज़ सिंह बोली, ‘क्यों नहीं आती? मैंने माँजी से कहा था कि ज़रूर आऊँगी।’

पम्मी बोली, ‘वो उस दिन मैं आपको उल्टा-सीधा बोल गयी थी, इसलिए मुझे डर लग रहा था। मैंने छोटी सी बात को इतना बड़ा बना दिया। आपका कुत्ता तो बहुत प्यारा है। दरअसल मैं बहुत शॉर्ट टेंपर्ड हो गयी हूँ। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाती हूँ, फिर बाद में पछताती हूँँ कि कैसी बेवकूफी कर दी। आपने उस दिन की बात को भुला दिया न ?’

मिसेज़ सिंह उसकी बाँह पकड़ कर हँस कर बोलीं, ‘ओहो! मैंने तो उस बात को कब का भुला दिया। आप खामखाँ परेशान हो रही हैं। चलिये, आपका बुटीक देखते हैं।। बड़ा शानदार बनाया है। मुझे बेटी के लिए दो-तीन सूट खरीदना है।’

पम्मी उनकी बाँह थामकर उन्हें अन्दर ले गयी। बाकी मेहमान मिसेज़ सिंह को मिल रहे इस ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ को देखकर हैरान थे, लेकिन पम्मी यह सोच सोच कर खुश थी कि उसने धंधे के कुछ जरूरी गुर सीख लिये हैं।

 © डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 132 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 132 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 132) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 132 ?

☆☆☆☆☆

Footprints ☆

अरे नादान, नक्शा-ए-कदम

किधर ढूँढता है तू…

जब तक चलेगा नहीं तब तक तेरे

कदमों के निशान बनेंगे कैसे…!

☆☆

O’ dimwit! What imprints of

your steps you’re looking for

Unless you begin to walk,

how will footprints be made…!

☆☆☆☆☆

हमने ऐसी भी क्या खता कर दी,

जो काबिले माफी नहीं…

तुम्हें देखा नहीं कितने दिनों से,

क्या ये सजा काफी नहीं…

☆☆

What mistake have I committed

That is not firgivable…

Haven’t seen you for so many days,

isn’t this punishment enough…!

☆☆☆☆☆

☆ Effulgent Soul 

सोचो तो तमाम सिलवटों

से भरी है रूह,

देखो तो एक शिकन भी

नहीं है लिबास में …

☆☆

One may envisage that

soul is full of crumples

When envisioned, there’s not

even a wrinkle on attire…

☆☆☆☆☆

हो सकता है हमारे जैसे

हजारों मिल जाएँ तुम्हें

पर अफसोस अब तुम्हें

हम कभी नहीं मिलेंगे…!

☆☆

May be you will find

thousands like me…

But alas! You shall

never find me again…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 181 ☆ शिवोऽहम्… (6) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 181 शिवोऽहम्… (6) ?

आत्मषटकम् के छठे और अंतिम श्लोक में आदिगुरु शंकराचार्य महाराज आत्मपरिचय को पराकाष्ठा पर ले जाते हैं।

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो

विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।

न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः

चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥

मैं किसी भिन्नता के बिना, किसी रूप अथवा आकार के बिना, हर वस्तु के अंतर्निहित आधार के रूप में हर स्थान पर उपस्थित हूँ। सभी इंद्रियों की पृष्ठभूमि में मैं ही हूँ। न मैं किसी वस्तु से जुड़ा हूँ, न किसी से मुक्त हूँ। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ।

विचार करें, विवेचन करें तो इन चार पंक्तियों में अनेक विलक्षण आयाम दृष्टिगोचर होते हैं। आत्मरूप स्वयं को समस्त संदेहों से परे घोषित करता है। आत्मरूप एक जैसा और एक समान है। वह निश्चल है, हर स्थिति में अविचल है।

आत्मरूप निराकार है अर्थात  जिसका कोई आकार नहीं है। सिक्के का दूसरा पहलू है कि आत्मरूप किसी भी आकार में ढल सकता है। आत्मरूप सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित है, सर्वव्यापी है। आत्मरूप में न  मुक्ति है, न ही बंधन। वह सदा समता में स्थित है। आत्मरूप किसी वस्तु से जुड़ा नहीं है, साथ ही किसी वस्तु से परे भी नहीं है। वह कहीं नहीं है पर वह है तभी सबकुछ यहीं है।

वस्तुतः मनुष्य स्वयं के आत्मरूप को नहीं जानता और परमात्म को ढूँढ़ने का प्रयास करता है। जगत की इकाई है आत्म। इकाई के बिना दहाई का अस्तित्व नहीं हो सकता। अतः जगत के नियंता से परिचय करने से पूर्व स्वयं से परिचय करना आवश्यक और अनिवार्य है।

मार्ग पर जाते एक साधु ने अपनी परछाई से खेलता बालक देखा। बालक हिलता तो उसकी परछाई हिलती। बालक दौड़ता तो परछाई दौड़ती। बालक उठता-बैठता, जैसा करता स्वाभाविक था कि परछाई की प्रतिक्रिया भी वैसी होती। बालक को आनंद तो आया पर अब वह परछाई को प्राप्त करना का प्रयास करने लगा। वह बार-बार परछाई को पकड़ने का प्रयास करता पर परछाई पकड़ में नहीं आती। हताश बालक रोने लगा। फिर एकाएक जाने क्या हुआ कि बालक ने अपना हाथ अपने सिर पर रख दिया। परछाई का सिर पकड़ में आ गया। बालक तो हँसने लगा पर साधु महाराज रोने लगे।

जाकर बालक के चरणों में अपना माथा टेक दिया। कहा, “गुरुवर, आज तक मैं परमात्म को बाहर खोजता रहा पर आज आत्मरूप का दर्शन करा अपने मुझे मार्ग दिखा दिया।”

आत्मषटकम् मनुष्य को संभ्रम के पार ले जाता है, भीतर के अपरंपार से मिलाता है। अपने प्रकाश का, अपनी ज्योति की साक्षी में दर्शन कराता है।

इसी दर्शन द्वारा आत्मषटकम् से निर्वाणषटकम् की यात्रा पूरी होती है। निर्वाण का अर्थ है, शून्य, निश्चल, शांत, समापन। हरेक स्थान पर स्वयं को पाना पर स्वयं कहीं न होना। मृत्यु तो हरेक की होती है, निर्वाण बिरले ही पाते हैं।

षटकम् के शब्दों को पढ़ना सरल है। इसके शाब्दिक अर्थ को जानना तुलनात्मक रूप से   कठिन। भावार्थ को जानना इससे आगे की यात्रा है,  मीमांसा कर पाने का साहस उससे आगे की कठिन सीढ़ी है पर इन सब से बहुत आगे है आत्मषट्कम् को निर्वाणषटकम् के रूप में अपना लेना। अपना निर्वाण प्राप्त कर लेना। यदि निर्वाण तक पहुँच गए तो शेष जीवन में अशेष क्या रह जाएगा? ब्रह्मांड के अशेष तक पहुँचने का एक ही माध्यम है, दृष्टि में शिव को उतारना, सृष्टि में शिव को निहारना और कह उठना, शिवोऽहम्…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 131 ☆ – सॉनेट – नूपुर… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ 

~ सॉनेट ~ नूपुर ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नूपुर निखिल देश कर शोभा।

मात भवानी भुवन पधारी।

पाँव परौं, छवि दिव्य निहारी।।

जीव करो संजीव हृदय भा।।

मैया! तोरी करे साधना।

तबई धन्न हो मनु-मन्वन्तर।

तरै प्रियंक पगों पै सर धर।।

मातु सदय हो जेई कामना।।

तुहिना सी निर्मल मति होए।

जस गाऊँ नित रचौं गीतिका।

नव आशा हर श्वासा बोए।।

माँ मावस खों पूनम कर दो।

अर्पित मन राजीव अंबिका!

मति मयंक खों भक्ति अमर दो।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-३-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ विश्व कविता दिवस की धूम

सन् 1999 से विश्व कविता दिवस मनाया जा रहा है । इसका मुख्य उद्देश्य कविता व कवियों को सम्मान देना है । कवियों को सुना जाये और अच्छे से उनकी कृतियों को पढ़ा जाये, यही उद्देश्य है । हिसार के गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय के हिंदी विभाग ने इस दिवस पर एक काव्य गोष्ठी आयोजित की । पहले तो विज्ञान व तकनीकी विश्विद्यालय में हिंदी विभाग का होना ही बहुत खुशी की बात है । इसके नवनियुक्त विभागाध्यक्ष प्रो एन के बिश्नोई ने कविता दिवस मनाने का संकेत विभाग को दिया । हिंदी विभाग को अस्तित्व में आये चार साल हो चुके हैं और इसके पहले अध्यक्ष प्रो किशना राम बिश्नोई अब सेवानिवृत होने जा रहे हैं लेकिन हिदी विभाग की स्थापना के लिये उन्हे याद किया जायेगा । वे भी इस अवसर पर मौजूद रहे । छात्र शिवा ने अच्छे से संचालन किया और कम से कम एक दर्जन छात्र छात्राओं ने काव्य पाठ किया । विभाग की ओर से डाॅ गीतू धवन, अनीता, कल्पना, कोमल व अन्य ने इसे सफल बनाने में खूब सहयोग दिया । एक अन्य कार्यक्रम भी हिसार मे विश्व कविता दिवस की पूर्व संध्या पर हुआ जिसमें प्रसिद्ध नवगीतकार सतीश कौशिक, विनोद मेहता, तिलक सेठी, ऋतु कौशिक, कमलेश भारतीय, सुरेंद्र छिंदा, सौरभ ठकराल, रश्मि, सरोज श्योराण आदि ने काव्य पाठ किया ।

चित्रा मुद्गल को सम्मान दर सम्मान: वरिष्ठ व चर्चित लेखिका चित्रा मुद्गल को सम्मान दर सम्मान मिल रहे हैं । उनकी सबसे नवीनतम कृति है – नकटौरा । उपन्यास जो सामयिक प्रकाशन से आया है । चित्रा मुद्गल को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी और इंडियानेटबुक्स की ओर से सर्वोच्च सम्मान देना बहुत ही श्रेय की बात है । चित्रा मुद्गल को इनसे पहले भी व्यास सम्मान सहित अनेक सम्मान मिल चुके हैं । नये लेखकों को वे प्रोत्साहित करने में आगे रहती हैं ।

जालंधर से हिंदी पुस्तकें :  पंजाब के सांस्कृतिक केंद्र जालंधर की चर्चा पहले की गयी तो बहुत से सुझाव आये और बहुत से नाम स्मरण करने की बात कही गयी । इनमें सुदर्शन फाकिर, जगदीश चंद्र वैद , गजल गायक जगजीत सिंह , विजय निर्बाध, भूमिका , आलोचक डाॅ विनोद शाही , डाॅ सेवा सिंह और भी अन्य अनेक । वैसे कोई चाहे तो पूरी किताब जालंधर पर लिख सकता है । अब भी पंजाब के जालंधर के लेखक हिंदी लेखन में सक्रिय योगदान दे रहे हैं । इन दिनों डाॅ तरसेम गुजराल , डाॅ अजय शर्मा डाॅ विनोद कालरा की नयी पुस्तकें प्राप्त हुई हैं जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक मिठास लिये हुए हैं । सिमर सदोष पंकस अकादमी की स्मारिका के प्रकाशन में डूबे हैं । इन दिनों गीता डोगरा भी पंजाब के हिंदी लेखन के सितारे पुस्तक के संपादन में जुटी है । निधि शर्मा भी पत्रकारिता पर पुस्तक प्रकाशन की ओर अग्रसर है ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ नेपाल भारत साहित्य महोत्सव दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र के साथ संपन्न – डा विजय पंडित ☆ प्रस्तुति  – डॉ निशा अग्रवाल ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 नेपाल भारत साहित्य महोत्सव दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र के साथ संपन्न – डा विजय पंडित 🌹प्रस्तुति  – डॉ निशा अग्रवाल🌹 

विराटनगर, नेपाल में तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव का चतुर्थ संस्करण दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र के साथ संपन्न ।

राम जानकी सेवा सदन में महानगर पालिका बिराटनगर नेपाल और क्रांतिधरा साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में 450 से अधिक नेपाली व भारतीय साहित्यिक व सामाजिक, पत्रकार बंधुओं की सहभागिता रही । 

आयोजन के प्रथम दिवस के मुख्य अतिथि कोसी प्रदेश के पूर्व प्रदेश प्रमुख डा गोविन्द सुब्बा रहे, अध्यक्ष के रूप में विराटनगर महानगरपालिका के मेयर नागेश कोईराला और विशिष्ट अतिथि के रूप में दधिराज सुबेदी, विवश पोखरेल, गंगा सुबेदी , डा बलराम उपाध्याय, भीष्म उप्रेती ,  विभा रानी श्रीवास्तव, जनार्दन अधिकारी धडकन रहे सत्र संचालन डा देवी पंथी और गोकुल अधिकारी द्वारा किया गया। 

द्वितीय सत्र नेपाल भारत साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक संबंधी परिचर्चा रही।

तृतीय सत्र लघुकथा को समर्पित रहा जिसका संचालन सुविख्यात लघुकथाकार डा पुष्कर राज भट्ट ने किया और विभा रानी श्रीवास्तव, नीता चौधरी, सीमा वर्णिका, राजेन्द्र पुरोहित, हेमलता शर्मा ‘भोली बेन’  आदि ने लघुकथा वाचन के साथ विधा पर विमर्श किया। जिसमें से कुछ लघुकथा जो प्रमुख रूप से दर्शकों द्धारा पसंद की गयी यहां प्रकाशित है…

पटना से विभारानी श्रीवास्तव की लघुकथा : कोढ़

कई दिनों पहले से अनेक स्थलों पर बड़े-बड़े इश्तेहार लग गए… ‘नए युग को सलामी : खूँटे की नीलामी’

तय तिथि और निर्धारित स्थल पर भीड़ उमड़ पड़ी थी।

 एक बैनर पर लिखा हुआ था… “जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को उखाड़ फेंकना चाहिए।”

नीलामी में विभिन्न आकार-प्रकार के सजे-सँवरे खूँटे थे और सब पर अलग-अलग तख्ती लटकी हुई थी और लिखा था

नए युग की सलामी : पर्दा उन्मूलन के खूँटे की नीलामी

नए युग की सलामी : भ्रूण हत्या के उखड़े खूँटे की नीलामी

नए युग की सलामी : बाल विवाह के उजड़े खूँटे की नीलामी

नए युग की सलामी : देवदासी पुनर्वास के खूँटे की नीलामी

नए युग की सलामी : नारी शिक्षा के खूँटे की नीलामी

नए युग की सलामी : विधवा विवाह के खूँटे की नीलामी

इत्यादि..!

लेकिन एक बड़े खम्भेनुमा मजबूत भुजंग खूँटे पर तख्ती लटकी हुई थी। जिस पर लिखा था, “अभी नीलामी का समय नहीं आया है..।”

“ऐसा क्यों ?” भीड़ ने पूछा।

“तख्ती पलट कर देख लो!” आयोजक ने कहा

तख्ती के पीछे लिखा था,

‘बलात्कार व भ्रष्टाचार का खूँटा’ ,

इंदौर से हेमलता शर्मा की लघुकथा ‘योग्यता पर भरोसा’

रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी … पता नहीं लोग 24 घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?… उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था- संगीत प्रतियोगिता में… योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है… उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं… बड़े बाप का बेटा जो ठहरा… एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी… तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- “बीबी जी हमार बचवा का एडमिशन बड़े स्कूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के स्कूल वालों ने तो भर्ती च नी किया था…पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था…” कहकर अपने काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई । अब माधवी का मन हल्का हो गया था । उसे अब वह संगीत की ध्वनि पुनः मधुर लगने लगी थी ।      

मीरा प्रकाश, पटना, बिहार की लघुकथा : मातृशक्ति

रेखा ऑटो लिए यात्रियों के इंतजार में चौराहे पर खड़ी सोच रही थी, अब अंतिम फेरा लगाकर, राजेश की दवा लेकर घर को चलूँ।

घर पहुंचते ही राजेश ने लंगड़ाते हुए दरवाजा खोला। और मन ही मन सोचा, अगर रेखा ने जिद करके रिक्शा चलाना नहीं सीखा होता, तो आज दुर्घटना में उसके पाँव टूटने के बाद उसके घर का खर्च कैसे चलता।

लो जी! अपनी दवा! और हां कल प्लास्टर कटवाने अस्पताल चलना है। कहते हुए रेखा ने घर में प्रवेश किया। राजेश ने हंसकर कहा तुमने इस सोच को गलत साबित कर दिया कि स्त्रियां केवल चौका बर्तन करती, घर में ही अच्छी लगती है।

प्रथम दिन का चतुर्थ सत्र कवि सम्मेलन का रहा जिसमें भारत के सभी प्रदेशों से पधारे हुए अतिथियों ने कविता पाठ किया  …… 

रंजिशें हृदय की,

ख्वाहिशें नयनों से अवलोकन की,

इबारतें ख़ुदा की,

जलालतें मानवता की,

नहीं भूलते, करते, सहते हैं सब

आख़िर यह सब क्यों? और कब तक।

अर्पणा आर्या ( ध्रुव ) प्रयागराज  ,

याद रखना, शांति प्यार इंसानियत है राह तुम्हारा।

जिस पर चल तुम हो परमेश्वर से एक।

पर जब-जब भटके हो तुम,

विवश हो सिखाना पड़ा है मुझे ये मार्ग तुम्हें। 

सीमा सैनी, जमशेदपुर, झारखण्ड ,

हिंदी है नाम मेरा हिंदुस्तान धाम है।

गीत, ग़ज़ल, दोहे और छंद को प्रणाम है।  

कोमल प्रसाद राठौर, रायपुर, छत्तीसगढ़,

हे नेटेश्वर बाबा आप कहां चले गए  ।

हमे निराश करके करके आप कहां चले गए।।

न खाना – खाने को मन करता है ।

न कोई काम करने को मन  करता ।।

रात-दिन तेरी यादो मे मुझे तड़पाता है। 

अच्छी खासी आदमीयो को भी मदहोश बना देता है ।।

दस सेकेन्ट गुल हो जाए तो दश बर्ष सा लगाता है ।

सपनो मे भी अन्लाईन जैसा लगाता है।

सागर सापकोटा, असम

जानवर क्या करे बेचारा

जब इंसान ही

खा जाए उसका चारा

इंसानियत को आती नही

रत्ती भर भी शरम

तो मेरे काठ के उल्लू

आइस क्रीम क्यों

नही हो सकती गरम

आइस क्रीम क्यों

नही हो सकती गरम

हरीश रवि, देहरादून, उत्तराखंड

“इक हसीन महफ़िल की सौगात तुम ले आओ ,

मै गीत लिख दूंगा, साज तुम ले आओ।

मेरे कत्ल के लिए असले  और बारुद की जरुरत नही दोस्तों ,

बस अपने चेहरे पर इक हसीन मुस्कुराहट आज तुम ले आओ ।

डॉ जयप्रकाश नागला , नांदेड, महाराष्ट्र

दिल्ली को दर्द हो तो, दिखता नेपाल में

कोई गैर यू ही चप्पल, घिसता नेपाल में

 दौलत नहीं हमारी, न शोहरत नई नई है

रोटी का और बेटी का, रिश्ता नेपाल से।  ….

ओंकार शर्मा कश्यप, नवादा, बिहार

यह उम्र पचास की

बड़ी परेशान करती है ,

जवानी तो गुजर जाती है

बुढ़ापे को अस्वीकार  करती है

यह उम्र पचास की

बड़ी परेशान करती है। 

नीता चौधरी , जमशेदपुर , झारखण्ड

हूं मालवा की छोरी म्हारे संगे मालवी टोली,

म्हारो देस भारत हे, हूं विराटनगर से बोली । 

हेमलता शर्मा इंदौर, मध्यप्रदेश

शीशे के द्वार को खोलकर

स्वागत करता गार्ड था

स्वर्ण आभूषणों की उस बड़ी दुकान में

बेटी के साथ अंदर जाती

सकुचाती हुई माँ थी, डॉ अर्चना तिर्की , रांची

वसंत ऋतु के आते ही, भंवरे कलियां मुस्काते है।

ऐसे ही मानव जीवन में ,यौवन के दिन आते है।।

जैसे ही यौवन आता, अंग प्रस्फुटित हो उठता।

मुख आभान्वित, कजरारी आंखें ,अंग अंग दमक उठता।।

 डा निशा अग्रवाल, जयपुर, राजस्थान

राह तकते हर पल रहती है मां।

रब जाने कब  कैसे सोती है मां।

याद  उसे   मेरी   जब   आती है

हाथ दुआ के लिए उठाती है मां। 

डॉ अलका वर्मा,सुपौल, बिहार

“देवभाषा की जाया हूँ,

संस्कृत की बिटिया,

भारत-माँ के भाल की

सुशोभित बिन्दिया,

हाँ, मैं  हिन्दी हूँ!

भारत की हिन्दी हूँ!!” 

पूनम (कतरियार)  पटना , बिहार

जीवन का संचार करो

हिंदुस्तान सा देश नहीं,ना हिंदी जैसी और भाषा हैं

कामकाज हो हिंदी में,सुरेश छोटी सी अभिलाषा हैं

भारत वासियों से आशा हैं,मातृभाषा का सत्कार करो।

सुरेश कुमार सुलोदिया ‘भिल्ला’, हरियाणा

साथ मिलता है जब तेरा

फिर तो डर नहीं लगता।

तेरी यादों के साथ लिए

आगे बढ़ता रहता हूँ।

तेरे साथ अपने आपको को भी

चाहने लगता हूँ। 

डॉ अकेला भाई , सिवान

हौले हौले हाथों से, फिसले रेत सी जिंदगी।    

खाली खाली आँखों में, भरे अनजानी तिश्नगी।    

सुहाने सपने दिखाए, उम्मीद दिल में जगाए।  

कोई  पुकारे दूर से। 

अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’, प्रयागराज

मैं कविता यहां सुनाऊं।

तो किस-किसको सुनाऊं?

यहां तो सभी वक्ता बैठे हैं।

एक से एक कवि हैं।

जहां न पहुंचे रवि हैं।

ब्रह्मा बन कर लेटे हैं।

यहां तो सभी वक्ता बैठे हैं। 

ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश, रतनगढ़, (मध्यप्रदेश)

आते-जाते, आना-जाना जान गये

हम तेरे दिल का तहखाना जान गये

तेरी बोझिल पलकों से ये लगता है

हम भी शायद नींद उड़ाना जान गये,

डॉ0 अंजनी कुमार सुमन  , मुँगेर (बिहार)

जब- तक जीवित रहती है ,

हमारी तन्हाइयाँ ।

तब- तक बजती रहती है,

प्यार  की शहनाइयाँ ।।

जो जीते हैं दिलों की ,

अपनी जिन्दगानियाँ ।

 छोड़ जाते हैं वो,

अपनी मोहब्बत की निशानियों ।। 

नूतन सिन्हा , पटना , बिहार

साहित्य के हीरों को

नेपाल ने दिल से बुलाया है,

साहित्य महोत्सव आयोजित कर

सब को रिझाया है,

सगा भाई भारत का

धरा पर है अगर कोई,

सिवाय नेपाल के दूसरा,

हो सकता नहीं कोई

समर बहादुर ( सरोज ) ,एडवोकेट हाई कोर्ट , इलाहबाद।

आओ अखबार पढ़ते हैं

जो लिखा है, वही पढ़ते हैं

सुख को सुख और दु:ख को दु:ख पढ़ते हैं

खबरें गली, मुहल्ले और शहर की पढ़ते हैं,

हाल नगर नगर, देश विदेश का पढ़ते हैं

पाठक की चिट्ठी पत्तरी

खबरों का विश्लेषण,

लेखक के विचार और सुविचार पढ़ते हैं

आओ अखबार पढ़ते हैं | 

कमल किशोर कमल

कवि सम्मेलन का संचालन काठमांडू की पौडेल विमुन्श  द्वारा किया गया ।

द्वितीय दिवस में प्रथम सत्र पुस्तक विमोचन व पुस्तक  समीक्षा सत्र रहा जिसमें ममता शर्मा अंचल, लक्ष्मी कांत शर्मा, अंबिका खरेल उप्रेती की पुस्तकों का विमोचन किया गया जिसका सञ्चालन डॉ विजय पंडित द्धारा किया गया।

द्वितीय सत्र साक्षात्कार सत्र  मे भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार Rajkumar Jain Rajan राजकुमार जैन ‘राजन’ ने साक्षात्कार सत्र की  अध्यक्षता करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि ऐसे आयोजन मैत्री सम्बन्धों को मजबूत करते हैं और एक दूसरे देश के साहित्य, संस्कृति, और परम्पराओं को समझने में सहयोग करते हैं। भारत -नेपाल का रिश्ता दो भाइयों जैसा है।

तृतीय सत्र मुशायरा /गज़ल / चारू / राग विराग को समर्पित रहा संचालन डॉ देवी पंथी द्वारा किया गया ।

राग

जम्बू दीपम्!, आर्यवर्तम्! , हिंद! ओ! माँ भारती।

आन की अरु शान की माँ!, ओढ़नी तू धारती।

ये हिमालय, है मुकुट माँ!,  तेरे उन्नत भाल का।

अरु उदिध उत्तल तरंगे, पग को उर में धारती।

जाति,मजहब, प्रांत,भाषा वाद यह सब भूलकर।

राष्ट्रवादी-दीप बन माँ, हम उतारें आरती।

हम सदा बलिदान करते, शीष तेरे वास्ते।

नग्न पांवों दौड़ पड़ते, मातु! जब तू पुकारती।

सरफरोशी की तमन्ना, दिल में थी बिस्मिल के जो।

वह तमन्ना, हर ह्रदय में,भर दे ओ! माँ  भारती।

दीपक गोस्वामी ‘चिराग’, बहजोई  (सम्भल)

“दो अल्हड़ दीवाने घूम रहे कहीं दूर वीराने,

दीन दुनिया से दूर बेखबर अपने में ही मगन,

एक दूजे में सिमटे फिर भी उड़ते आसमान में,

लगी थी उनको अपने अल्हड प्यार की लगन,

मिले थे जब पहली बार ऐसे ही दौरान ए बारिश,

बाहर भी बारिश थी और अंदर दिलों में भी बारिश,

आंखों की आंखों ही आंखों में कब पहचान हुई

आंखों ने आंखों में देखा आंखों आंखों में बात हुई 

राव शिवराज सिंह, जयपुर, राजस्थान

तृतीय दिवस में प्रथम सत्र साहित्य में अनुवाद : एक विमर्श परिचर्चा हुई जिसका संचालन डा विजय पंडित ने किया और वक्ता के रूप में डॉ घनश्याम परिश्रमी, राजेन्द्र गुरागाईं, विभा रानी श्रीवास्तव, राजेन्द्र पुरोहित, डा पुष्कर राज भट्ट, ओंकार शर्मा कश्यप, डॉ अंजनी कुमार सुमन  रहे अपने विचार रखने के साथ साथ दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों के साहित्य में अनुवाद संबंधित प्रश्नों का उत्तर भी दिया।

दस सूत्रीय विराटनगर घोषणा पत्र सभी के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें डॉ विजय पंडित, डा देवी पंथी, राधा पांडेय , ममता शर्मा अंचल, अभय श्रेष्ठ, विभा रानी श्रीवास्तव, ओंकार शर्मा कश्यप, हेमलता शर्मा, डॉ अंजनी कुमार सुमन शामिल रहे।

राव शिवराज सिंह के शोध पत्र वाचन के साथ समापन समारोह आयोजित किया गया । जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में विराट नगर महानगर पालिका के मेयर नागेश कोईराला जी  रहे और विशिष्ट अतिथियों में  गंगा सुबेदी जी , दधिराज सुवेदी जी , कार्यक्रम अध्यक्ष विवश पोखरेल जी रहे, मिन कुमार नवोदित जी , डा. हनीफ, ज्योतिष शिरोमणि डॉ बलराम उपाध्याय रेग्मी पोखरा, डा घनश्याम परिश्रमी, गोकुल अधिकारी और विष्णु भंडारी असम और सिक्किम से राधा पांडे रहे। झारखंड प्रीति सैनी, तनुश्री लेंका, भागलपुर से डा अंजनी कुमार सुमन, दिल्ली से इंदुमती सरकार, कानपुर से सीमा वर्णिका, हरियाणा से डा त्रिलोक चंद फतेहपुरी ,

जयपुर से डॉ निशा अग्रवाल, जोधपुर से राजेन्द्र पुरोहित, प्रेमलता सिंह राजपूत, रंजना सिंह, मीरा प्रकाश और इंदौर से शीतल शैलेन्द्र सिंह राघव देवयानी, नागपुर से रीमा दिवान चड्ढा, राजस्थान से डा दिनेश व्यास ललकार, मध्य प्रदेश से रमा निगम, डा जयप्रकाश नागला महाराष्ट्र सहित उत्तर पूर्व राज्य असम से हेमप्रभा हजारिका, रूनुदेवी बरूआ, लक्ष्मी कांत शर्मा ,  दुर्गा प्रसाद ढकाल, मनमाया गुरूंग, छविलाल ओझा, पंडित केशव खनाल, चक्रपाणि भट्टराई, टोमादेवी पौडयाल, अनीता गुरुंग जैसी जानी मानी साहित्यिक व सामाजिक विभूतियों की सहभागिता रही।

समापन सत्र के मुख्य अतिथि महानगरपालिका के मेयर नागेश कोईराला ने अपने उद्बोधन में दोनों देशों की साझा संस्कृति, कला व साहित्य  को आगे बढ़ाने के लिए भरपूर सहयोग करने का आश्वासन दिया और सभी अतिथियों को सम्मानित भी  किया ।

तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव के चतुर्थ संस्करण में संयोजन के रूप में चारू साहित्य प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डा देवी पंथी और सह संयोजक के रूप में वरिष्ठ पत्रकार वरूण मिश्रा व माला मिश्रा रहे।

तीन दिवसीय नेपाल भारत साहित्य महोत्सव के चतुर्थ संस्करण में सह आयोजक महानगर पालिका विराटनगर, मुख्य सलाहकार व मार्गदर्शक Ganesh Lath गणेश लाठ जी व सहयोगी दीपक अग्रवाल जी, राजेन्द्र गुरागांई जी, करुणा झा जी  व शैलेन्द्र मोहन झा जी , महेश सोनी जी , अम्बिका खरेल उप्रेती जी ,  राधा भटराई जी, सबीना श्रेष्ठ जी,   सहित अन्य सभी सहयोगियों का हम आभार व्यक्त करतें हैं। आयोजन की सफलता में आप सभी ने स्नेहिल सहयोग व हमारा मार्गदर्शन किया है वास्तव में हमारे लिए बहुमूल्य है।

दोस्तों .. साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु दीपक का भी काम करता है जो समाज को एक नई दिशा दिखाता है और हम साहित्यिक महोत्सव के माध्यम से नेपाल और भारत के मध्य एक साहित्यिक सेतु का निर्माण कर रहे हैं ।

वसुद्धैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ हम दोनों देशों के बीच प्रेम, सद्भाव, एकता, परस्पर सहयोग व साहित्य के दायरे का विस्तार करने के साथ वरिष्ठ साहित्यकारों के सानिध्य में नवोदित व गुमनाम कलमकारों को एक अंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध करा रहे हैं ।

डा विजय पंडित

नेपाल भारत साहित्य महोत्सव, विराटनगर, नेपाल

साभार –  डॉ निशा अग्रवाल

जयपुर ,राजस्थान  

 ☆ (ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)  ☆ एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री  ☆

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

? श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई – अभिनंदन ?

💐 संपादकीय निवेदन 💐

आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखिका श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई यांची दोन पुस्तके नुकतीच प्रकाशित झाली आहेत.‘दुसरी बाजू’ हा नवा कथासंग्रह व ‘आभाळमाया’ या पुस्तकाची दुसरी आवृत्ती प्रकाशित झाली आहे.

? ई मराठी समुहातर्फे श्रीमती मीनाक्षी सरदेसाई यांचे साहित्यसेवेबद्दल मनःपूर्वक अभिनंदन  ?

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेच्या उत्सव ☆ रूप ग्रीष्माचे… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

सौ. जयश्री पाटील

? कवितेच्या उत्सव ?

☆ रूप ग्रीष्माचे… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

चैत्र वैशाख महिन्यात

सूर्याची प्रखर उष्णता

रात्र छोटी दिवस मोठा

ग्रीष्माची चाहूल लागता

 

आग ओकतो नारायण

वाढे पृथ्वीचे तापमान

झळा घेऊनी येतो वारा

ग्रीष्माचे होता आगमन

 

रंगीत फुलांचे ताटवे

सुगंधाचा दरवळ

कोवळी पालवी फुटते

कुहू कुहू गातो कोकिळ

 

आम्रतरू मोहरतात

गुलमोहर बहरतो

देतात सावली थंडावा

अंगणी मोगरा फुलतो

 

ग्रीष्माचे रूप मनोहर

येतो रंगीत रूप घेऊन

रणरणत्या उन्हातही

पावसाची आस ठेवून

 

© सौ. जयश्री पाटील

विजयनगर.सांगली.

मो.नं.:-8275592044

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ चिऊ…☆ सौ. मुग्धा कानिटकर ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ चिऊ… ☆ सौ. मुग्धा कानिटकर ☆

चिमुकली  ती चिऊताई

झेपावते खिडकीपाशी

इकडे तिकडे बघे क्षणभरी

मारून चोच मला खुणवी

 

थोडे दुर्लक्ष माझे जरी

जवळ मारते उड्या भारी

कामात गर्क मीअसे जरी

हळूच छान चिवचिव करी

 

येई  क्षणात झाडावरूनी

घेत भरारी येई परतूनी

तिला भिती खुप गोंगाटाची

मात्र स्वच्छतेवर  अतिप्रिती

 

पिते उन्हात नळातील पाणी

सुंदर प्रतिबिंब मजेत पाही

दाणे टिपून घेत भर्रदिशी

पकडते नाजूक फांदी

 

लपतछपत पानोपानी

माझ्या भोवती घाले घिरटी

तिचे येणे असे दिवसाकाठी

आनंदाचा झरा माझ्यासाठी

 

© सौ. मुग्धा कानिटकर

सांगली

फोन 9403726078

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ देव,अल्ला,गाॅड वगैरे… ☆ श्री उमेश सूर्यवंशी ☆

श्री उमेश सूर्यवंशी

? विविधा ?

☆ देव,अल्ला,गाॅड वगैरे… ☆ श्री उमेश सूर्यवंशी ☆

!! शब्दजाणीव !!

मानवी जीवनाची कूस बदलवून टाकणारा तो शब्द …अवघ्या चारपाचशे वर्षात पृथ्वीच्या रंगमंचावर दाखल झाला आणि बघता बघता संपूर्ण मानवी आयुष्य व्यापून टाकले. तो शब्द केवळ शब्द नसून मानवी जीवनाची गुरुकिल्ली म्हणावी इतपत तो महत्त्वाचा बनला आहे. त्या शब्दाचे फायदे अगणित आहेत आणि काही तोटे देखील आहेत.   हा शब्द मानवी जीवनात तंत्रज्ञान म्हणून सत्ता गाजवतो मात्र या शब्दाला मानवी जीवनात जेव्हा “मुल्यात्मक” वजन प्राप्त होईल तेव्हा मानवी जीवनाचा संपूर्ण हितवर्धक कायापालट होईल याची नक्कीच खात्री देता येते. संपूर्ण जगाला खेडे बनवण्याची किमया याच शब्दाच्या प्रभावाने घडवून आणली आणि दुसऱ्या टोकावर संपूर्ण जगाचा विनाश करण्याची ताकद देखील याच शब्दाच्या विकृत वापराने मनुष्याच्या वाट्याला आली आहे.हा शब्द आणि त्याच्या योग्य जाणीवा समजून घेऊन मानवी जीवन फुलवले पाहिजे .

विज्ञान …..एक जादुई शब्द आहे. जादुई याकरिता म्हटले की, जादूची कांडी फिरवल्याचा जो परिणाम कल्पनेत दिसून येतो त्याहून अधिक जादुई परिणाम या शब्दाच्या वापराने मानवी सृष्टीत झाला आहे. अवघ्या चारपाचशे वर्षापूर्वी विज्ञान सर्वार्थाने मानवी नजरेत भरले आणि जगाचे स्वरूप आरपार बदलले. मनुष्याच्या प्रगतीच्या वाटा विज्ञानानेच मोकळ्या केल्या आणि आकाशाला गवसणी घालण्याची कल्पना जवळपास प्रत्यक्षात आणून दाखवली. तंत्रज्ञान ही विज्ञानरुपी नाण्याची एक बाजू आहे. या बाजूने आता मानवी जीवनाचा कोपरा न् कोपरा व्यापलेला आहे. मनुष्याने या तंत्रज्ञान रुपी विज्ञानाचा अतोनात फायदा उपटला आहे. याचबरोबर या तंत्रज्ञान रुपी विज्ञानाची घातक बाजू म्हणून अण्वस्त्ररुपी विनाशकी हत्यारे निर्माण झाली आणि पृथ्वी विनाशाच्या टोकावर उभी राहीली हे देखील काळे सत्य आहे. विज्ञानाची सृष्टी जेवढी मोहक आहे , उपयोगी आहे त्यापेक्षा अधिक सुंदर व बहुपयोगी आहे विज्ञानाची दृष्टी. ही दृष्टी मानवी वर्तनात व्यवहारात आली की … अंधश्रध्दा, कर्मकांडे, धर्मांधता, जातीयता , भयता , प्रांतीयता , वंशवादता , अलैंगिकता अशा कित्येक प्रश्नांची उत्तरे मिळून जातात. विज्ञानाची दृष्टी म्हणजे विज्ञानाला ” मुल्यात्मक जाणीवेने ” मानवी जीवनात प्रतिष्ठीत करणे. विज्ञानाची नेमकी जाणीव म्हणजे विज्ञान तुमच्या मनांत असंख्य प्रश्न उभे करते आणि त्या प्रश्नांची उत्तरे मिळवण्याचा मार्ग देखील ” वैज्ञानिक दृष्टिकोन ” ठेवून मिळवता येतो ही सकारात्मक विधायक भावना रुजवते. विज्ञानाची नेमकी जाणीव हीच की , मनुष्याचे पृथ्वीवरील क्षुद्रत्व समोर ठेवते आणि पुन्हा मनुष्याच्या बुध्दीला उत्तेजना देऊन त्याचे प्राणी सृष्टीहूनचे अधिकचे महत्त्व ठळकपणे समोर आणते. विज्ञानाची जाणीव म्हणजे जादूची कांडी फिरवायला देखील योग्य ध्यास व ध्येय असावे ही भावना प्रबळ करून मनुष्यच पृथ्वी जगवू शकतो असा ठाम आत्मविश्वास मानवी मनांत निर्माण करते. विज्ञानाची ठळक जाणीव म्हणजे जोवर विज्ञान मानवी जीवनाचा अविभाज्य भाग आहे तोवरच माणसाला शक्तीशाली बनण्याची संधी आहे , आव्हान आहे  आणि त्याचबरोबर समस्त सृष्टीची जबाबदारी त्याच्या खांद्यावर असल्याचे भानं देखील उपलब्ध आहे. विज्ञान हा शब्द वगळून मानवी जीवनाचा भूतकाळ नाही …वर्तमानकाळ नाही …अन् भविष्यकाळ अजिबात नाही.

विज्ञानाचा नैतिक दबदबा इतका की, धर्म नावाच्या संघटीत क्षेत्राला बाजूला करण्याची हिंमत बाळगून आहे. धर्माला योग्य पर्याय म्हणून विज्ञानवादी असणे ही एक वैचारिक भुमिका मांडली जात आहे. विज्ञानाएवढा ताकदीचा आणि संपूर्ण मानवी समाज व्यापणारा दुसरा शब्दच उपलब्ध नाही . विज्ञानाची ही किमया अफाट आहे, जादूई आहे, प्रगतीशील आहे. फक्त जाणीव हीच राखली पाहिजे की, विज्ञानाच्या सृष्टीबरोबरच विज्ञानाची दृष्टी मानवी समाजात अधिक फैलावली पाहिजे.

©  श्री उमेश सूर्यवंशी

मो 9922784065

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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