हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजातशत्रु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अजातशत्रु ? ?

उगते सूरज को

अर्घ्य देता हूँ;

पश्चिम रुष्ट हो जाता है,

डूबते सूरज को

नमन करता हूँ;

पूरब विरुद्ध हो जाता है,

मैं कितना भी चाहूँ

रखना समभाव,

कोई न कोई

पाल ही लेता है वैरभाव,

तब कालचक्र ने सिखाया,

अनुभव ने समझाया-

प्रथम या मध्यम पुरुष

निर्धारित नहीं कर सकता,

उत्तम पुरुष की आँख में

बसती है अजातशत्रुता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆जब सारा विश्व राममय हो रहा है, तब प्रासंगिक कृति – “रघुवंशम” – श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆ पुस्तक चर्चा – आचार्य कृष्णकांत चर्तुवेदी ☆

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 269 ⇒ स्वांतः सुखाय… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “स्वांतः सुखाय।)

?अभी अभी # 269 ⇒ स्वांतः सुखाय… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मुझे ढाई अक्षर प्रेम के आते हैं, और एक दो शब्द संस्कृत के भी आते हैं। पंडित बनने के लिए बस इतना ही काफी है। कुछ शब्द पूरे वाक्य का भी काम कर जाते हैं,  जब कि होते वे केवल दो शब्द ही हैं। जय हो। नमो नमो और वन्दे मातरम्।

संस्कृत के दो शब्द जो मुझे संस्कृत का प्रकांड पंडित बनाते हैं,  वे हैं स्वांतः सुखाय और वसुधैव कुटुंबकम् ! वैसे इन शब्दों का हिंदी संस्करण भी उपलब्ध है,  लेकिन वह प्रचलन के बाहर है। जो अपने कपड़े स्वयं धोकर सुखाए,  वह स्वावलंबी कहलाता है और जो जगत को कृष्णमय देखता है,  उसके लिए वासुदेव कुटुंबकम् है।।

कौन सुख के लिए नहीं जीता ! सुख की खोज ही मनुष्य का गंतव्य है। वह कर्म कैसे भी करे,  वह जीता भी स्वर्गिक सुख के लिए है और मरने के बाद भी स्वर्ग की ही इच्छा रखता है। केवल सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। राही मनवा दुख की चिंता क्यूं सताती है,   दुख तो अपना साथी है।

पंडित भीमसेन जोशी तो कह गए हैं,   जो भजे हरि को सदा,   वो ही परम पद पाएगा ! हां अगर वे यह कहते,  जो भजे हरि को सदा,  वो ही प्रधानमंत्री का पद पाएगा,  तो सभी राजनीतिज्ञ छलकपट,  राग द्वेष और उठापटक छोड़ हरि का भजन करने लग जाते। वे यह अच्छी तरह से जानते हैं,   प्रधानमंत्री का पद,  परम पद से बहुत बड़ा है।।

जो अपने सुख की चिंता नहीं करते,   वे सभी कार्य सर्व जन हिताय करते हैं ! उनका जीना,   मरना,  उठना बैठना,   सब देश की अमानत होता है। वे अपने सुख की कभी परवाह नहीं करते। अपना पूरा जीवन चुनावी दौरों,  विदशी दौरों,  और सूखा और बाढ़ग्रस्त इलाकों के दौरों में गुजार देते हैं। न उनका कोई परिवार होता है,  न सगा संबंधी।

अपने लिए,   जीये तो क्या जीये,  तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए। होते हैं कुछ सहित्यानुरागी,  जिनका सृजन समाज को अर्पित होता है। वे अपने सुख के लिए नहीं लिखते,  उनके लेखन में आम आदमी का दर्द झलकता है।

यही दर्द इन्हें विदेशों में हो रही साहित्यिक गोष्ठियों की ओर ले जाता है।जहां केवल आम आदमी की चर्चा होती है। वे किसी पुरस्कार के लिए नहीं लिखते। लेकिन अगर उन्हें पुरस्कृत किया जाए,  तो वे पुरस्कार का तिरस्कार भी नहीं करते।।

पसंद अपनी अपनी,  खयाल अपना अपना ! आप अपने सुख के लिए ज़िन्दगी जीयें,  अथवा समाज के लिए,  सृजन आपका स्वयं के सुख के लिए हो या जन कल्याण के,  आप अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं। बस इतना जान लें,   स्वांतः सुखाय में कोई प्रसिद्धि नहीं है,  कोई पुरस्कार नहीं है,  तालियां और हार सम्मान नहीं है …!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #32 ☆ कविता – “शिकस्त-ए-गुलशन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 32 ☆

☆ कविता ☆ “शिकस्त-ए-गुलशन…☆ श्री आशिष मुळे ☆

न जाने क्यों आजकल

हिंमत नहीं होती हैं

हार और जीत में

ग़म या ख़ुशी नहीं होती हैं

 *

चाहत की राह पर

जिंदगी चलती है

मुकाम पर न जानें

हसीं क्यों गायब होती हैं

 *

उम्र उम्र की

कहानी अलग अलग है

न जानें क्यों इस मुकाम पर

किताबों के पन्ने खाली है

 *

सोचू उन खाली पन्नों में

कही छिपे गुल खिलेंगे

वो उन्हें मगर अभी खिलने नहीं देंगे

कफ़न पर मेरे सैकड़ों उछालेंगे

 *

कैसी तेरी दुनियां, कैसी राह-ए-जिंदगी

या इलाही…ये कैसी उम्र शिकस्ती

जब इश्क था तब समझ नहीं

और आज समझ है, तो मोहब्बत नहीं…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 192 ☆ गीत – सर्दियाँ अब आ गई हैं  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 192 ☆

☆ गीत – सर्दियाँ अब आ गई हैं ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

धूप पाकर मन खिलेगा,

सर्दियाँ अब आ गई हैं।

याद बचपन की मिली है,

मस्तियाँ – सी छा गई हैं।।

 *

ओढ़ चादर दूधिया – सी

खिलखिलाता आज मौसम।

भोर हल्की बर्फ लेकर

झिलमिलाता आज मौसम।

 *

लौट जाएँ रश्मियाँ जब,

मन लगे बहला गई हैं।।

 *

मौन व्रत की साधना में

ये हवाएँ लवलीन हैं।

प्रियतमा की याद में या,

सच हो रहीं गमगीन हैं।।

 *

प्रकृति सुधामय हो रही,

बुलबुलें कुछ गा गई हैं।।

 *

दिन हैं छोटे , रात लंबी

बढ़ते चलें अपने सफर ।

मौन रातें सरसरातीं

थरथराती है हर डगर।

 *

रंग बदले रोज मौसम

चन्द्र-किरणें भा गई हैं।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #159 – लघुकथा – “गंदगी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – गंदगी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 159 ☆

 ☆ लघुकथा- गंदगी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

” गंदगी तेरे घर के सामने हैं  इसलिए तू उठाएगी।”

” नहीं! मैं क्यों उठाऊं? आज घर के सामने की सड़क पर झाड़ू लगाने का नंबर तेरा है, इसलिए तू उठाएगी।”

” मैं क्यों उठाऊं! झाड़ू लगाने का नंबर मेरा है। गंदगी उठाने का नहीं। वह तेरे घर के नजदीक है इसलिए तू उठाएगी।”

अभी दोनों आपस में तू तू – मैं मैं करके लड़ रही थी। तभी एक लड़के ने नजदीक आकर कहा,” मम्मी! वह देखो दाल-बाटी बनाने के लिए उपले बेचने वाला लड़का गंदगी लेकर जा रहा है। क्या उसी गंदगी से दाल-बाटी बनती है?”

यह सुनते ही दोनों की निगाहें साफ सड़क से होते हुए गंदगी ले जा रहे लड़के की ओर चली गई। मगर, सवाल करने वाले लड़के को कोई जवाब नहीं मिला।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-11-2021

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ जुझारू साहित्यकार डॉ.राजकुमार शर्मा अनंत में विलीन ☆ विनम्र श्रद्धांजलि ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🙏 💐 जुझारू साहित्यकार डॉ.राजकुमार शर्मा अनंत में विलीन – विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

28/1/24 को शाम 8 बजे,  डॉ. राजकुमार शर्मा, जो प्रयागराज के विख्यात साहित्यकार थे, हमें छोड़कर चले गए। उन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित किया और उनका योगदान अविस्मरणीय है। हमें एक महान साहित्यिक की कमी महसूस होगी, परंतु उनकी यादें हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी।

डॉ राजकुमार शर्मा प्रयागराज के उन वयोवृद्ध साहित्यकारों में से थे जिन्होने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया। देवबंद सहारनपुर से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए संभवत: 1956 में आए थे, इनको इलाहाबाद का साहित्यिक वातावरण इतना रुचा कि फिर यहीं के होकर रह गए।  उन्होंने त्रिवेणी प्रकाशन की स्थापना की और अनेक लेखकों साहित्यकारों की पुस्तकों का प्रकाशन किया।

उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के संस्मरण पुस्तक लिखी। इसके अलावा देवता नहीं हूं मैं, मुक्तक शतक, रावण की निगाहें उनकी कहानियों और कविताओं के  संकलन भी प्रकाशित हुये । वे जीवन पर्यन्त निःस्वार्थ भाव से साहित्यसेवा में निरंतर लगे रहे।

उन्होंने अखिल भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान की स्थापना की जिसके माध्यम से वे अनेक वर्षो से इलाहाबाद में साहित्यिक कार्यक्रमों के आयोजन करते रहे। महादेवी वर्मा के साथ साहित्यकार पत्रिका का सम्पादन भी किया।

उनकी धर्मपत्नी, श्रीमती सरोज शर्मा, भी एक उत्कृष्ट कवयित्री और लेखिका थीं। गत वर्ष 5 अक्टूबर को उनका भी देहांत हो गया था। उनके परिवार तीन बेटियां और एक पुत्र है। 

🙏 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ राजकुमार शर्मा जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मला माफ करशील का? ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? कवितेचा उत्सव ? 

मला माफ करशील का? ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

मला माफ करशील का?

      हे कविते, मला माफ करशील का?

 

अल्लडशा चिमुकल्या शैशवात

नव्हती माझ्या अजाण बुद्धीजवळ

कसलीच अनुभवांची शिदोरी

तेव्हापासून माझ्या निर्व्याज निरागस बोटाला

आपल्या तरल कलात्मक हातात धरून

मोठ्या मायेने घेऊन गेलीस मला

मराठी सारस्वताच्या घनदाट काननात

ओळख करून द्यायला

जीवनाच्या सौंदर्याची अन् गर्भितार्थाची

कोण आपुलकीने

तरीही मी तुला विसरलो

मला मार्ग दाखविणाऱ्या माझ्या कविते

मला माफ करशील का?

 

काव्याचे विविधरंगी मार्ग चोखाळतांना मी

अवखळ प्रेयसीसारखी

कधी मुक्तछंदात नाचलीस

तर एखाद्या पतिव्रतेसारखी

कधी माझ्या गीतांना भावसुरात गायलीस

कधी माझंप्रेम आळविलेस आर्तपणे

तर कधी विरहगीतांना ढसढसून रडलीस

चिंतनाला माझ्या

तत्वज्ञानाचे प्रवचन बनून उतरलीस

माझ्या रसिक वाचकांच्या हृदयात अलगदपणे

तरीही आपत्प्रसंगी मी मात्र

त्याग केला तुझा कृतघ्नपणे

      हे माझ्या सखी कविते

मला माफ करशील का?

 

जाणून घे ग मला माझ्या कविते

कधी नैराश्याच्या खाईत

झालो विलक्षण उद्विग्न

तर कधी नशिबाच्या  पडलेल्या

विपरित फाशांनी

केले मला भग्न छिन्न विच्छिन्न

मला मात्र तशातच

नव्हती परवा कशाची

ना जाण होती आसमंताची

वेळ आली होती

होत्याचं नव्हते व्हायची

आणि मला विसर पडला तुम्हा सगळ्यांचाच ग!

निशिगंधासारखी गंधित होऊन फुलणारी

माझी कथा गेली कोमेजून

सर्वांना सामावून घेणारी

माझी कादंबरी गेली आकसून

माझ्या मनाच्या पिल्लांना उघडं करणाऱ्या फडताळाची

बंद झाली कवाडं अकस्मात

आणि तुझ्यासारखी

मृद्गंधी कविता गळून गेली

निर्घृणतेने, निष्ठुरतेने

मनाच्या विमनस्क अवस्थेत

दोष कोणाचा काहीच कळेना

तरीही झाली आहे आता

अग्नीपरीक्षेत होरपळलेली उपरती

      हे परमेश्वरस्वरूपी माझ्या क्षमाशील कविते

मला आता तरी माफ करशील का?

 

सुखदुःखाच्या सारीपाटावर

आणि यशापयशाच्या हिंदोळ्यांवर

आयुष्याच्या प्रत्येक सोप्या अवघड वळणावर

मातेच्या वात्सल्याने,

गुरुजनांच्या कर्तव्यभावनेने

आणि

प्रेयसीच्या आर्त प्रेमाने

सदैव मला साथ देणाऱ्या

माझ्या विशालहृदयी प्रीय कविते

            पुन्हा माझे बोट धरशील का?

            मला माफ करून

पुन्हा तुझ्या पदरात घेशील का?

© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 207 ☆ दैवी वारसा…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 207 – विजय साहित्य ?

दैवी वारसा…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते  ☆

भारत नाही, फक्त देश हा

भारत आहे, आदर्श व्यक्ती

मातृतुल्यही,पितृतुल्यही

अतूट नाते, जडली भक्ती…१

*

जन्मा आलो, झालो जाणता

अनुभवली, ममता माया

सदा सर्वदा, माझे वंदन

कुशीत याच्या,वत्सल छाया…२

*

हिमाचलाचे, मस्तक याचे

गौरी शंकर, विशाल अहा

काश्मिर आहे, शिरोभुषण

कुटुंब कर्ता,सौंदर्य पहा..३

*

चार दिशांचे, चार कोन हे

पुर्व पश्चिमी,प्रकाश दृष्टी

उत्तर आणि,दक्षिण प्रांती

देई भारत, विकास सृष्टि…४

*

विशाल बाहू, ऐक्य साधती

मानवतेचे, सुंदर धाम

सृजनशील , भारत माझा

भक्ती शक्तीचे, उज्वल नाम..५

*

कला संस्कृती,जरी वेगळी

पंजाब असा,बंगाल तसा

स्वर्ग धरेचा, गगनी दृष्टी

पेरीत जाई, संस्कार ठसा…६

*

रवी शशिचा, प्रकाश ठेवा

सागर आहे, याचे कोंदण

नर रत्नांचा, दैवी वारसा

देशभक्तीचे, लाभे गोंदण…७

*

भारत माझा,‌जन्मभूमी‌ ही

तना मनाचे, केले तर्पण

महाराष्ट हा,माहेर माझे

अवघ्या इच्छा,त्याला अर्पण..८

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

हकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “माझ्या मनांतील राम” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? विविधा ?

“माझ्या मनांतील राम” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर 

22 जानेवारी 2024 हा ऐतिहासिक दिवस म्हणून संपूर्ण विश्वात नोंदवला गेला. पाचशे वर्षापासून प्रलंबित असलेले राममंदिर अखेर पूर्ण होऊन त्यात प्रभू श्रीरामचंद्रांच्या मनमोहक, सुहास्यवदन, राजीव लोचन असलेली रामलल्ला बालमूर्तिची प्राणप्रतिष्ठा करण्यात आली.या अशा एका ऐतिहासिक क्षणाने दाखवून दिले आहे की धर्म आणि श्रध्दा कधीही तसूभर कमी होत नाही.सत्य आणि न्याय यांचाच विजय होत असतो.

ज्याला शब्दरूपी चित्रित केलं महर्षी वाल्मिकींनी, ज्याला मोठ्या कौतुकाने, प्रेमानं गायलं तुलसीदासांनी, समर्थांनी ज्याला आळवलं असा प्रभू श्रीराम, ज्याने शबरीची उष्टी बोरं खाल्ली, रावणाचा तसाच कित्येक राक्षसांचा वध केला असा प्रभू श्रीरामचंद्र, सृष्टीवरच्या अवघ्या जीव-जंतुना ज्याने कृतार्थ केले आणि करत राहतो असा प्रभू श्रीरामचंद्र. कित्येक जणांनी त्यावर लिहिलं, गायलं, चित्रित केलं, त्यावर लिहिण्याचा, त्याचा नाम गाण्याचा, त्याच रूप चितरण्याचा तसा कित्येक माध्यमातून अनेक प्रकारे अनुपम आनंद लुटला, तरी तो नेहमीपेक्षा फार फार वेगळा उरतो. त्याच्या नामाची ओढ खुणावत राहते, रूपाची माधुरी भुरळ घालत राहते. दरवेळी नव्याने…

ज्याची तुलनाच होऊ शकत नाही अस सौंदर्य, पराक्रम, कृपा, असणारा प्रभू श्रीरामचंद्र तो मुळी दिसतोच रामासाररखा…

अनेक संत, महात्मे, भक्तांच्या मांदियाळीने ही रामकथा ओघवती प्रवाही नि जीवंत ठेवली. त्यात तुलसीराम, एकनाथ भागवत, समर्थ रामदास, गोंदवलेकर महाराज या सारखे अनेक रामभक्तांचं अपूर्व योगदान आहे.श्री प्रभू रामचंद्रांच्या जीवनावर तर अनेक ग्रंथ पूर्वीपासून उपलब्ध आहेत आणि आजही त्यात नव्याने भर पडत असतेच.आजच्या काळाशी, समाजमनाशी, त्यांच्या जीवनव्यवहाराशी सुसंगत जोडली जाते.ते अभ्यासक, लेखक, संशोधक, प्रवचनकार, कीर्तनकार, प्रभूर्ती आपआपले विचार जेव्हा मांडतात तेव्हा तुमच्या आमच्या जीवनाला एक निश्चित आयाम, दिशा मिळून जाते.इतकच नाही तर त्या प्रभावाने काही वेळा तर जीवनाची दिशा सुध्दा बदलते.आता माझीच बदललेली पहाना…

सर्वसामान्य माणसांप्रमाणेच मी देखील सर्व षड्ररिपुयुक्त, शीघ्रकोपी, संयमाचा अभाव…तरी बर्‍यापैकी वाचन, मनन, असून मन अशांत, अस्वस्थ राहिले होते. एक दिवस सद्गुरुंच्या दर्शनाचा योग आला, त्यांच्या सानिध्यात असताना श्री प्रभू रामचंद्रांच्या जीवनातल्या अनेक घटनां ते सांगताना म्हणाले,

“सात हजार वर्षानंतरही रामाचे स्मरण केले जात आहे, कारण त्यांनी हजारो पिढ्यांपासून लोकांना चांगुलपणा जोपासण्यासाठी, सत्याला धरून राहण्यासाठी आणि एकमेंकासोबत प्रेमाने राहण्यासाठी प्रेरित केले. रामाचे जीवन आपत्तींची एक शृंखलाच होती. तरी देखील तो अविचल राहिला. त्याने कधीही कोणत्याही परिस्थितीत त्याच्या आत राग, संताप, किंवा द्वेष येऊ दिला नाही. राम जगात कृतीशील होता, लढाई देखील लढला, त्यात त्याने हेच दाखवून दिले. त्याच्या याच गुणापुढे आपण नतमस्तक आहोत.म्हणूनच त्याला एक अतिशय श्रेष्ठ मनुष्य, ‘मर्यादा पुरोषत्तम’ म्हणतो, देव म्हणत नाही.त्याचे गुण असे आहेत की तुम्हाला त्याचा आदर करावाच लागेल . तुम्ही सुध्दा तुमच्या जीवनात असे होऊ शकलात, तर तुम्हीही मर्यादा पुरुषोत्तम व्हाल. ही एक अशी संस्कृती आहे जिथे कोणीही स्वर्गातून उतरले नाही, जिथे मानव दैवी बनू शकतो. कुठेतरी एक देव आहे जो आपल्या सगळ्या गोष्टींची काळजी घेईल.या ढोबळ विश्वास प्रणालीपासून मनुष्यानी स्वतःच्या मुक्तीसाठी प्रयत्न करण्यासाठी आपल्या शारीरिक आणि मानसिक मर्यादा ओलांडण्याचा प्रयत्न केल्यास तुम्हीही मर्यादा पुरुषोत्तम व्हाल. राम आणि रामायण भारतीय परंपरेचे अविभाज्य भाग आहेत. ही अशी एक संस्कृती आहे जिने मुक्तीला सर्वोच्च महत्व दिले आहे. याचा अर्थ जिवंत असताना सर्व गोष्टीपासून मुक्त होणे.तुम्ही रोजच्या जीवनातून माघार घेतली आहे असे नाही, तुम्ही सक्रिय आहात पण मुक्त आहात, तुम्ही संरक्षित कोषामध्ये नाही.’

कालपर्यंत रामायाणातील ढोबळ कथानक ऐकून नि वाचून माहीत असलेल्या माझ्या मनाला या सद्गुरूंच्या आश्वासक विचारांनी मोहिनी घातली नाही तरच नवल.माझ्यासारख्या कैक दिशा भरकटलेल्या युवकांना देशापुढे असलेली आव्हाने पेलण्याची शक्ति आणि बुध्दी श्रीराम देवो.राष्ट्रधर्म, कर्तव्य, नेतृत्व, संवेदनशीलता,

स्वपराक्रम, स्वाभिमान याबाबत तत्वाला मुरड घालून क्षणिक लाभासाठी स्वत्व पणाला लावण्याचा धोका पत्करत असेल, तर तेथे श्री.रामांच्या प्रामुख्याने वनवास काळातील जीवनाचा अभ्यास, युवा पिढीला योग्य मार्गावर आणू शकेल हा माझ्या मनातल्या रामाने दिलेला संदेशच आहे असच म्हणायला हवं.

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470 ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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