(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “समन्वय कर…”।)
☆ तन्मय साहित्य #214 ☆
☆ कविता – समन्वय कर…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “जीवन दर्शन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 38 ☆ जीवन दर्शन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)
We present his awesome poem ~ Supreme Lord’s Cynosure… ~We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji, who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages for sharing this classic poem.
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा…“)
नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गम्मत…“।)
अभी अभी # 261 ⇒ गम्मत… श्री प्रदीप शर्मा
ज्यादा दिमाग पर जोर मत डालिए, यह शब्द हिंदी और उर्दू का नहीं, मराठी भाषा का है। आम तौर पर हमारी बोलचाल की भाषा में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, गुजराती और संस्कृत शब्दों का समावेश हो ही जाता है। मौसम की तरह ही हमारा मूड अच्छा और बुरा होता रहता है। ढाई आखर का अगर प्रेम होता है, तो हुस्न और इश्क भी होता है। सुबह सुबह ठंडे पानी से स्नान करते ही, मुंह से अनायास ही ॐ नमः शिवाय निकलने लगता है।
हमें पता ही नहीं चलता बाजार, अफसर और जंगल किस भाषा के शब्द हैं।
वैसे तो मुख्य रूप से हमारे देश की आधिकारिक भाषाएं तो केवल २२ ही हैं, लेकिन १३० करोड़ लोगों की जनसंख्या में कम से कम १२१ भाषाएं बोली जाती हैं। यहां तो हर एक सौ किलोमीटर में भाषा बदलती रहती है।
केम छे कब शेम छे हो जाता है, पता ही नहीं चलता।।
आप अगर हरियाणा के हैं तो आपकी हरियाणवी भाषा अलवर तक आते आते राजस्थानी हो जाती है, और मथुरा में प्रवेश करते ही आप बृजवासी हो जाते हो। पंजाब का भांगड़ा गुजरात में डांडिया हो जाता है तो घरों में सुबह इडली डोसा और शाम को छोले भटूरे बनने लग जाते हैं। बस तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की दाल इतनी आसानी से नहीं गल पाती। प्रेम करूं छूं और आमी तोमाके भालोमाशी तो हमें फिल्मी गाने ही सिखला देते हैं।
बचपन मराठी भाषी मोहल्ले में गुजरने के कारण कुछ पुरानी यादें समय समय पर उभर आती हैं। हम मोहल्ले के बच्चों में गम्मत शब्द बहुत अधिक प्रचलित था। पंजाबी के गल की ही तरह मराठी में एक शब्द है गोष्ट ! मैं तुम्हें एक मज़ेदार बात बताता हूं। मी तुम्हाला एक चांगळी गोष्ट सांगते। यहां यह सांग अंग्रेजी वाला सॉन्ग नहीं है। हां यह गोष्ट जरूर कुछ कुछ हमारी गोष्ठी से मिलता जुलता है, लेकिन केवल शाब्दिक रूप से, लेकिन अर्थ थोड़ा अलग है। बस यही तो गम्मत है।
यानी कोई भी मजेदार बात गम्मत कहला सकती है।।
मुंबई और पुणे में वैसे कई ऐसे मराठी शब्द प्रचलित हैं, जिन्हें हम बोलचाल में भी अक्सर प्रयोग करते रहते हैं। हमारा संदेश, उनके लिए अगर निरोप है तो हमारा पाहुना उनका भी पाहुणा ही है।
मराठी की टीवी न्यूज़ बातम्या कहलाती है।
हमारा मानस, गुजराती का मानुस और मराठी का माणुस आसानी से बन जाता है। हमारा द्वार मराठी का दार हो जाता है। गुजराती में गांडा छे, बेवकूफ और नासमझ माणस को कहते हैं। एक भाषा के शब्द को दूसरी भाषा में बड़ा संभलकर प्रयोग में लाना पड़ता है।
एक पुराना टेलीग्राम का किस्सा, आज भी इसका एक जीता जागता उदाहरण है ;
तब टेलीग्राम में हिंदी का प्रयोग नहीं होता था। दादा आज मर गए, जब तार बनकर उस ओर सुदूर गांव पहुंचा तब तक तो DADA AAJ MER GAYE हो गया था। पढ़ने वाला अंग्रेजी का काला अक्षर था। उसने किसी तरह पढ़ ही लिया, दादा आज मेर गए, यानी मर गए। गम का फसाना बन गया अच्छा। काय गम्मत झाली।।
मराठी की बोलचाल में आज भी यह शब्द प्रयोग में लाया ही जाता होगा।
अफसोस, ऐसे शब्द हिंदी जैसी समृद्ध भाषा के आज तक अंग नहीं बन सके। विद्वतजन आगे आएं, ऐसे मजेदार शब्दों को हमारी बोलचाल की भाषा का हिस्सा बनाएं।
हिंदी में इसका दिलचस्प तरीके से वाक्य में प्रयोग कैसे हो सकता है, शांतता, चिंतन चालू आहे। आप मराठी नहीं जानते, फिर भी प्रत्युत्तर में इतना तो कह ही सकते हैं, खरी गोष्ट।।
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख “देशभक्ति और राष्ट्रहित…“।)
☆ आलेख # 91 – देशभक्ति और राष्ट्रहित…☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
एक देशभक्ति वो होती है जिसके जज्बे में खुद की परवाह न कर जवान देश के लिये रणभूमि में शहीद होते हैं.
एक देशभक्ति वह भी होती है जंहा आप अपने परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य और अपने कलेजे का टुकड़ा देश को समर्पित करते हैं और जिसके शहीद होने पर असीमित दुख और तकलीफों के बावजूद हमेशा गर्वित ही होते हैं, कभी पछतावा नहीं होता.
एक देशभक्ति वह भी है जंहा आपको लगता है कि ईमानदारी और समर्पण की भावना से जहां हैं जैसे हैं, अगर देश के लिये कुछ कर सकें तो ये खुद का सौभाग्य ही है.
पर देशभक्ति वो तो नहीं है और हो भी नहीं सकती जहां ये खुद को लगने लगे कि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति या किसी दल का समर्थन कर आप खुद को देशभक्त समझने लगें और बाकी अन्य विचार रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगें, लांछन लगाने लगें.
कम से कम अभी तक ऐसा नहीं हुआ है कि देश के सर्वोच्च और अतिमहत्वपूर्ण व जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनयिकों की निष्ठा पर सवाल खड़े किये गये हों. देश की नीतियों में जरूर समयानुसार परिवर्तन हुये हैं पर राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण सदा अखंड ही रहा है. नेतृत्व की क्षमता विभिन्न मापदंडों पर अलग अलग हो सकती है पर हर नेतृत्व, राष्ट्रहित और राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर खरा उतरा है.
इसलिये मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से टारगेटेड दुष्प्रचार कुल मिलाकर ओछेपन और असुरक्षा की भावना ही दर्शाता है. मात्र चुनाव के नाम पर अगर राजनीति का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो आम नागरिक की बात तो छोड़ दीजिये, सीमा पर युद्ध के लिये प्राणोत्सर्ग तक करने को तैयार सैनिक इनसे क्या प्रेरणा पायेगा. बेहतर यही है कि राजनैतिक शुचिता इतनी तो रहे कि लोग राजनेताओं से कुछ तो प्रेरणा पा सकें, उन की निष्पक्ष प्रशंसा कर सकें.
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(मावफ्लांग का पवित्र जंगल)
लेखक-डॉ. मीना श्रीवास्तव
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
पिछले भाग में मैंने वादा किया था कि, हम चलेंगे मावफ्लांग (Mawphlang) के सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में! आइये तैयार हो जाइये एक रोमांचक और अद्भुत प्रवास के लिए! सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स अर्थात पवित्र जंगलों या उपवनों को कुछ विशिष्ट संस्कृतियों में विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है| पूरे विश्व की विविध संस्कृतियों में ये पवित्र उपवन उनके विशेषताओं समेत आज भी अपनी गहन हरीतिमा से भरपूर वैभव के साथ अस्तित्व में हैं| हालाँकि हमें वे सुंदर लॅण्डस्केप्स (सिर्फ देखने योग्य या चित्र या फोटो खींचने के पर्यटन के मात्र सुन्दर साधन) के रूप में दिखते हों, लेकिन कुछ पंथियों या धर्मियों के लिए इन सबसे परे वे बहुत ही महत्वपूर्ण पवित्र स्थल हैं| इसमें भी खासमखास कुछ विशिष्ट वृक्ष तो अत्यंत पवित्र माने जाते हैं| इस समुदाय के लोग इस वनदेवी को प्राणों से भी बढ़कर जतन करते हैं| इसी देखभाल के कारण यहाँ की वृक्षलताएँ हजारों वर्ष पुरातन होकर भी सुरक्षित हैं|
इस पर्वतीय राज्य के वनवैभव में कुछ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्पत्ति है| खासी समाज को अतिप्रिय इस मावफ्लांग के पवित्र जंगल ने प्राचीन गुह्य इतिहास, रहस्यमय दंतकथाएं और विद्याओंको को अपनी विस्तीर्ण हरितिमा में छुपाकर रखा है| यहाँ की ऊँची नीची प्राकृतिक सीढ़ियां और पगडंडियां, छोटे बड़े वृक्ष-समूह, उनके बाहुपाश में घिरकर लिपटी लताएं, चित्रविचित्र पुष्पभार, पेड़ों पर और उनके नीचे फैले हुए फल, विस्तीर्ण पर्णराशी, जगह जगह बिखरे पाषाण (एकाश्म/ मोनोलिथ), बीच में ही विविध सप्तकों में कूजन से वन की शांति भंग करने वाले पंछी, यहाँ वहां स्वछंद हो उड़ने वाली रंग-बिरंगी तितलियाँ, यत्र तत्र तथा सर्वत्र जल के प्रवाही प्रवाह, हर कोई जैसे किसी रहस्यमयी उपन्यास के पात्र के समान, मानों प्रत्येक पात्र कहना चाहता हो, “मुझे कुछ कहना है”! यहाँ के आदिवासियों का सारा जीवन इन्हीं जंगलों में निहित है, इनका रक्षक और इन्हें भयभीत करने वाला जंगल एक ही है!
शिलॉंग शहर से केवल २६ किलोमीटर दूर है मावफ्लांग का सॅक्रेड ग्रूव्ह! हमारी उपवन /जंगल की कल्पना यानि मजबूत पथरीली, काँक्रीट या संगमरमर की सीढ़ियां, रास्ते, बैठने के लिए बेंच, कृत्रिम फव्वारे, स्विमिंग पूल, रेस्तरां, इत्यादी इत्यादी! प्यारे पाठकों, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं| जंगल जैसे का वैसा! नीचे की पर्णसम्पदा भी अस्पर्श, यहाँ की किसी भी चीज को मानव का स्पर्श वर्जित है! अर्थात हमारे वन में चलने के कारण हुए उसके बेमर्जी से हो उतना ही! मित्रों, यहीं है वह अनामिक, अभूतपूर्व, अप्रतिम, अलौकिक, अनुपम, अनाहत, अनोखा और अस्पर्शित सौंदर्य! हमें हमारे गाईड ने (उम्र २१ वर्ष) इस जंगल का ह्रदयस्पर्शी विलक्षण ऐसा संदेश बतलाया, “यहाँ आइये, यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का वैभव अपने नेत्रों में जी भर कर समाहित कर लीजिये (परन्तु कुछ भी लूटने की कोशिश कदापि मत कीजिये!), यहाँ से लेकर जाना चाहते हैं, तो इस सौंदर्य की स्मृतियाँ ले जाइये और उन्हें जतन कीजिये, हृदय में या अधिक से अधिक कैमरे में! यहाँ से एक सूखी पत्ती तो छोड़िये, एक तिनका भी उठाकर मत ले जाइये! मित्रों, ऐसी सख्ती रहने के उपरांत ‘वनों की कटाई’ जैसे शब्दों का हम सपने में भी स्मरण नहीं करेंगे! पेड़ों की क्या हम ऐसी परवाह करते हैं? पत्तों और फूलों को तोड़ने और पेड़ों को घायल करने का उद्योग इतना सरेआम होता है कि क्या कहें! (हमारे लिए हर महीना सावन होता है, पूजा को पत्ते या फूल नहीं चाहिए क्या!!!)
सेक्रेड ग्रोव्हस में इनके लिये कोई जगह नहीं, उल्टा “ऐसा करोगे तो मृत्यु हो सकती है, से लेकर कुछ कुछ होता है”, यहीं शिक्षा इन जनजातियोंको की पीढ़ी दर पीढ़ी को दी गई है| यहाँ स्थानीय लोग एक सीदे सादे नियम का पालन करते हैं (हमें भी यह करना होगा!), “इस जंगल से कुछ भी बाहर नहीं जाता”| अगर आप मृत लकड़ी या मृत पत्ती चुराते हैं तो क्या होगा, यह प्रश्न आप करेंगे! दंत कथाएं बताती हैं, “जो कोई भी जंगल से कुछ भी ले जाने की हिम्मत करता है, वह रहस्यमय तरीके से बीमार पड़ता है, कभी कभी तो प्राण पखेरू उड़ जाने तक की नौबत आ जाती है|” इसीलिये यहाँ कुछ वृक्ष १००० वर्षों से भी अधिक जीवित हैं, प्राकृतिक ऊर्जा, जल, खाद सब कुछ है उनके पास, सौभाग्य से एक ही चीज़ नहीं, मानव की भूखी और क्रूर नज़र!!!
यह वनसंपदा धार्मिक कारणों से ही सही, सुरक्षित रखी है यहाँ की तीनों जनजातियोंने! यहाँ जैवविविधता उत्तम प्रकार से जतन की गई है, वनस्पती तथा पेड़ों की प्रजातियों की विस्तृत श्रेणियां (यह ध्यान रहे कि, इनमें दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं) फल फूल रही हैं, निर्भय हो कर जी रही हैं! मंत्रमुग्ध करने वाला यह हराभरा पर्जन्य-वन-वैभव इतना कैसे निखरता है? इसका कारण है, इसकी उष्णकटिबंधीय उत्पत्ति, यहाँ बरसात में पवन और पानी दोनों ही दीवाने हो जाते हैं, हर्ष और मोद की मानों बाढ़ आ जाती है! तूफानी हवा का बवण्डर और आसमान से घनघोर घटाओं से बरसती घमासान जलधाराओं का नृत्यविलास! इसी अर्थ का एक मराठी गीत है, “घन घन माला नभी दाटल्या कोसळती धारा!”
प्रिय मित्रों, यहाँ टाइम का ध्यान रखना अत्यावश्यक है (सुबह ९ से शाम ४.३०). देरी से जंगल में जाने वाले और जंगल में से देरी से लौटने वाले को माफ नहीं किया जाता! हमें ऐसे जंगल की आदत नहीं है, इसलिए यहाँ भटकना ठीक नहीं| देखने लायक बहुत कुछ रहकर भी यकीनन आप की आँखें वह देख नहीं पाएगी| यहीं के प्रशिक्षित स्थानिक मार्गदर्शक/ गाईड का कोई विकल्प नहीं| आपका यह गाईड यहाँ की महज समृद्ध वनसंपदा ही नहीं दिखाएगा, परन्तु यह ध्यान रहे कि, वह यहाँ का वनरक्षक और सांस्कृतिक वारिस भी है! यह पथप्रदर्शक रोमहर्षक प्रकार से इस जंगल का राज़ सुलझाकर बताएगा, साथ ही, खासी जनजाति की धार्मिक और सांस्कृतिक श्रद्धा तथा इस जंगल का संबंध विस्तारपूर्वक बतलाएगा! प्रिय पाठकों, वह यहाँ की एक एक पत्ती को देखते हुए यहीं बड़ा हुआ है! यहाँ की दंतकथाएं उसीके प्रभावपूर्ण निवेदन में सुनिएगा मित्रों| मजे की बात यह है कि सभी गाइड एक ही जबानी बोलते हैं (समान प्रशिक्षण!), हमारा युवा गाइड एकदम धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल रहा था| उसने हमें खासी भाषा के बारे में भी कुछ ज्ञान दिया।
अब इस वनसम्पदा की नयनाभिराम और विस्मयकारक चीजें देखते हैं!
नयनरम्य जंगल की पगडंडी (फॉरेस्ट ट्रेल)
यहाँ की टेढ़ी मेढ़ी राहें पर्यटकों को अगोचर लगेगी ऐसी ही हैं! यहाँ पर टहलते हुए वृक्षलताओं के अनायास सजे हुए मंडप या छत के नीचे से जाते जाइये| यह सदाहरित घनतिमिर बन आप के ऊपर अपनी प्रेमभरी छत्रछाया का आँचल फैलाते हुए सूर्यकिरणों का स्पर्श तक होने नहीं देगा! यहाँ की पतझड़ की सुन्दर और अद्भुत रंगावली हरे और हल्दी जैसे पीत वर्ण से सजी होती है! यह घना वनवैभव निरंतर हवा के झोकों के संगीत पर दोलायमान होकर झूमते और लहराते रहता है! ये पगडंडियां हमें लेकर जाती हैं यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा के विश्व में!
वर्षा ऋतु में अगर मूसलाधार बारिश हो रही हो तो, यह यात्रा कई गुना दुर्गम हो जाती है! यहीं सुगम्य राहें अब फिसलन और काई से भर जाती हैं! (हमारे अनुभव के बोल हैं ये!) हम लोगों ने आधे से भी अधिक बन देखा, परन्तु बाद में पगडण्डी पर भी चलना कठिन हुआ, अलावा इसके कि, नदी को लांघकर ही आगे जाना होगा, वापसी का और कोई रास्ता नहीं, ऐसी जानकारी गाइड ने दी और फिर हम वापस आए| प्रिय पाठकों, सितम्बर- अक्टूबर के महीनों में इस परिसर को भेंट देना उत्तम रहेगा!
एकाश्म/ मोनोलिथ्स
इस बन का रहस्य वर्धित करनेवाले अनाकलनीय स्थानोंपर एकाश्म/मोनोलिथ्स (monoliths) स्थित हैं| मोनोलिथ यानि एक खड़ा विशाल पाषाण या एकाश्म/ एकल शिला! गाईडने बतलाया कि, एकाश्म खासी लोगों के पूजास्थान हैं| वे इनका उपयोग पशु बलि देने के लिए करते हैं| हम जिस सहजता से मंदिर में जाकर घण्टी बजाते हैं उसी प्रकार ये लोग पशु बलि देते हैं| यहाँ पर एक मोनोलिथ फेस्टिव्हल (उत्सव) भी होता है, आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत तथा वैभव के दर्शन करने का यह उत्तम अवसर होता है| उस समय ऐसा प्रतीत होता है, मानों यह सकल जंगल जीवंत हो अपनी कहानी खुद बखान कर रहा हो!
खासी हेरिटेज गांव
गांव के लोगों की हस्तकला का दर्शन और उनकी झुग्गी झोपड़ियों से बना यह गांव प्रदर्शन हेतु तैयार किया जा रहा है! इसका काम विविध स्तरों पर जारी है ऐसा गांववालों ने बताया|
लबासा, जंगलकी देवता
लबासा, यह है शक्तिशाली देवता, इसी जंगल में संचार करनेवाली, इस प्रदेश के सकल लोगों का उद्धार करनेवाली और उनका श्रद्धास्थान! इसीलिये देखिये न इसकी कृपा से गांव वालों की समस्त उपजीविका जंगल के इर्द गिर्द घूम रही है| बीमारी हो, नसीब का फेरा हो या रोजमर्रा की कोई भी परेशानी हो, यह देवता उनके विश्वास का प्रमुख आधार हैं। किंवदंती है कि, आदिवासी लोगों की रक्षा के लिए यह देवता बाघ या तेंदुए का रूप ले सकती है। देवता को प्रसन्न करने हेतु मुर्गे या बकरे की बलि दी जाती है। इसी जंगल में गांववाले अपने मृतकों को जलाते हैं|
अगले भाग में चलेंगे एक अत्यंत कठिन ट्रेल पर!
तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei)यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
डॉ. मीना श्रीवास्तव
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|
https://photos.app.goo.gl/nbRv3RzAUpaEY12V7
सेक्रेड ग्रूव्हस- प्रवास का आरम्भ हमारे गाईड के साथ!
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मोल।)
☆ लघुकथा – मोल ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
करुणा भाभी आज आप सैर करने के लिए आई है क्या?
हाँ आज सोचा बहुत दिन हो गया तुम लोगों से मिले तो आज अपने कॉलोनी का ही चक्कर लगा लेती हूँ।
यह घर को जंगल क्यों बना कर रखा है तुमने? मालती ये कद्दू और बरबटी का पेड़ क्यों लगा कर रखा है, क्यों?
आखिर ये चार पाँच वाला कद्दू कितने का होगा।
भाभी आपको लेना है तो ऐसी ले लीजिए, जो पैसे की क्या बात है?
तुम समझ नहीं रही हो मैं तो यह कहना चाह रही हूं कितनी सी सब्जी होगी?
कितने पैसे बचा कर तुम कितनी अमीर होगी?
आप बिल्कुल सच कह रही हैं ।
आपको पता ही है कि मैं सब्जियों के छिलके और सब्जियों को घर के सामने की क्यारी में ही डालती हूँ। मैं अपना पूरा खाली समय पेड़ पौधों के साथ ही रहती हूँ। दुनिया में हर चीज का मोल फायदा और नुकसान देखकर मैं आपकी तरह नहीं करती। इन फूलों की तरह मेरा घर भी हरा भरा है और आप यूं ही खाली सड़कों पर सुबह-शाम भटकती हो ।
तभी अंदर से आवाज आई मां अब बाहर क्या कर रहे हो अंदर आओ किसे जीवन के नफा नुकसान का ज्ञान दे रही हो आंटी बहुत समझदार हैं।
आप तो दिन भर घर में रहते हो आप को दुनिया का क्या पता कि आजकल फैशन में क्या चल रहा है?
तुम सब ठीक ही कह रहे हो आजकल फास्ट फूड का जमाना है मेरी इन सब्जियों को कौन पूछेगा, लेकिन मोल समझने वाला ही समझेगा, क्योंकि खग की भाषा खग ही जानते है।