श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गम्मत।)

?अभी अभी # 261 ⇒ गम्मत… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ज्यादा दिमाग पर जोर मत डालिए, यह शब्द हिंदी और उर्दू का नहीं, मराठी भाषा का है। आम तौर पर हमारी बोलचाल की भाषा में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, गुजराती और संस्कृत शब्दों का समावेश हो ही जाता है। मौसम की तरह ही हमारा मूड अच्छा और बुरा होता रहता है। ढाई आखर का अगर प्रेम होता है, तो हुस्न और इश्क भी होता है। सुबह सुबह ठंडे पानी से स्नान करते ही, मुंह से अनायास ही ॐ नमः शिवाय निकलने लगता है।

हमें पता ही नहीं चलता बाजार, अफसर और जंगल किस भाषा के शब्द हैं।

वैसे तो मुख्य रूप से हमारे देश की आधिकारिक भाषाएं तो केवल २२ ही हैं, लेकिन १३० करोड़ लोगों की जनसंख्या में कम से कम १२१ भाषाएं बोली जाती हैं। यहां तो हर एक सौ किलोमीटर में भाषा बदलती रहती है।

केम छे कब शेम छे हो जाता है, पता ही नहीं चलता।।

आप अगर हरियाणा के हैं तो आपकी हरियाणवी भाषा अलवर तक आते आते राजस्थानी हो जाती है, और मथुरा में प्रवेश करते ही आप बृजवासी हो जाते हो। पंजाब का भांगड़ा गुजरात में डांडिया हो जाता है तो घरों में सुबह इडली डोसा और शाम को छोले भटूरे बनने लग जाते हैं। बस तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की दाल इतनी आसानी से नहीं गल पाती। प्रेम करूं छूं और आमी तोमाके भालोमाशी तो हमें फिल्मी गाने ही सिखला देते हैं।

बचपन मराठी भाषी मोहल्ले में गुजरने के कारण कुछ पुरानी यादें समय समय पर उभर आती हैं। हम मोहल्ले के बच्चों में गम्मत शब्द बहुत अधिक प्रचलित था। पंजाबी के गल की ही तरह मराठी में एक शब्द है गोष्ट ! मैं तुम्हें एक मज़ेदार बात बताता हूं। मी तुम्हाला एक चांगळी गोष्ट सांगते। यहां यह सांग अंग्रेजी वाला सॉन्ग नहीं है। हां यह गोष्ट जरूर कुछ कुछ हमारी गोष्ठी से मिलता जुलता है, लेकिन केवल शाब्दिक रूप से, लेकिन अर्थ थोड़ा अलग है। बस यही तो गम्मत है।

यानी कोई भी मजेदार बात गम्मत कहला सकती है।।

मुंबई और पुणे में वैसे कई ऐसे मराठी शब्द प्रचलित हैं, जिन्हें हम बोलचाल में भी अक्सर प्रयोग करते रहते हैं। हमारा संदेश, उनके लिए अगर निरोप है तो हमारा पाहुना उनका भी पाहुणा ही है।

मराठी की टीवी न्यूज़ बातम्या कहलाती है।

हमारा मानस, गुजराती का मानुस और मराठी का माणुस आसानी से बन जाता है। हमारा द्वार मराठी का दार हो जाता है। गुजराती में गांडा छे, बेवकूफ और नासमझ माणस को कहते हैं। एक भाषा के शब्द को दूसरी भाषा में बड़ा संभलकर प्रयोग में लाना पड़ता है।

एक पुराना टेलीग्राम का किस्सा, आज भी इसका एक जीता जागता उदाहरण है ;

तब टेलीग्राम में हिंदी का प्रयोग नहीं होता था। दादा आज मर गए, जब तार बनकर उस ओर सुदूर गांव पहुंचा तब तक तो DADA AAJ MER GAYE हो गया था। पढ़ने वाला अंग्रेजी का काला अक्षर था। उसने किसी तरह पढ़ ही लिया, दादा आज मेर गए, यानी मर गए। गम का फसाना बन गया अच्छा। काय गम्मत झाली।।

मराठी की बोलचाल में आज भी यह शब्द प्रयोग में लाया ही जाता होगा।

अफसोस, ऐसे शब्द हिंदी जैसी समृद्ध भाषा के आज तक अंग नहीं बन सके। विद्वतजन आगे आएं, ऐसे मजेदार शब्दों को हमारी बोलचाल की भाषा का हिस्सा बनाएं।

हिंदी में इसका दिलचस्प तरीके से वाक्य में प्रयोग कैसे हो सकता है, शांतता, चिंतन चालू आहे। आप मराठी नहीं जानते, फिर भी प्रत्युत्तर में इतना तो कह ही सकते हैं, खरी गोष्ट।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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