हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ पति और पुत्र के बीच ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “पति और पुत्र के बीच “.)

☆ लघुकथा – पति और पुत्र के बीच ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

एक पिता अपने पुत्र को बुरी तरह डांट फटकार रहा था – बड़े गैर जवाबदार इंसान हो जी तुम। तुम्हारे कारण मेरा लाखों का धंधा चौपट हो गया। बाजार में मेरी साख धराशायी हो गई अलग से। मुझे तो मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा है तुमने।

उधर पोता तालियां बजाकर आनंद ले रहा था। अपनी मां से बोला – मजा आ गया, दादू ने पापा की आज क्लास ले ली। मुझे भी कितना डांटते हैं पापा। मैं कितना असहाय हो जाता हूं तब। आप भी मेरी कुछ मदद नहीं कर पाती हो।

मां बोली- यह पीढ़ियों का भुगतान है पुत्र, पिता जब चाहे पुत्र को ठोका करें ढोल की नाईं।

उसे तो बस पिता के सामने हमेशा नतमस्तक बने रहना चाहिए बस।

‘नो, नेवर मम्मी, कम से कम मैं तो ऐसा पिता कभी नहीं बनूंगा। हमारे बीच प्यार का रिश्ता होगा। अलगाव की खाई खुदने ही नहीं दी जाएगी।’

उधर मां सोच रही थी – काश ऐसा होता तो औरत को पति और पुत्र के बीच बटकर नहीं रहना पड़ता। उसे जीवन भर दोनों के बीच कठपुतली बनी रहने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता।

🔥 🔥 🔥

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 203 – इनबिल्ट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 203 इनबिल्ट ?

अपने दैनिक पूजा-पाठ में या जब कभी मंदिर जाते हो,  सामान्यतः याचक बनकर ईश्वर के आगे खड़ा होते हो। कभी धन, कभी स्वास्थ्य, कभी परिवार में सुख-शांति, कभी बच्चों की प्रगति तो कभी…, कभी की सूची लंबी है, बहुत लंबी।

लेकिन कभी विचार किया कि दाता ने सारा कुछ, सब कुछ पहले ही दे रखा है। ‘जो पिंड में, सोई बिरमांड में।’ उससे अलग क्या मांग लोगे? स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारे भीतर हैं। अपनी आँखों को अपने ही हाथों से ढककर हम ‘अंधकार, अंधकार’ चिल्लाते हैं। कितना गहन पर कितना सरल वक्तव्य है। ‘एवरीथिंग इज इनबिल्ट।’…तुम रोज़ मांगते हो, वह रोज़ मुस्कराता है।

एक भोला भंडारी भगवान से रोज़ लॉटरी खुलवाने की गुहार लगाता था। एक दिन भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा, ‘बावरे! पहले लॉटरी का टिकट तो खरीद।’

तुम्हारा कर्म, तुम्हारा परिश्रम, तुम्हारा टिकट है। ये लॉटरी नहीं जो किसी को लगे, किसी को न लगे। इसमें परिणाम मिलना निश्चित है। हाँ, परिणाम कभी जल्दी, कभी कुछ देर से आ सकता है।

उपदेशक से समस्या का समाधान पाने के लिए उसके पीछे या उसके बताए मार्ग पर चलना होता है। उपदेशक के पास समस्या का सर्वसाधारण हल है।  राजा और रंक के लिए, कुटिल और संत के लिए, बुद्धिमान और नादान के लिए, मरियल और पहलवान के लिए एक ही हल है।

समुपदेशक की स्थिति भिन्न है। समुपदेशक तुम्हारी आंतरिक प्रेरणा को जाग्रत करता है। यह प्रेरणा बताती है कि अपनी समस्या का हल तलाशने का सामर्थ्य तुम्हारे भीतर है। तुम्हें अपने तरीके से अपना प्रमेय हल करना है। प्रमेय भले एक हो, हल करने का तरीका प्रत्येक की अपनी दैहिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।

समुपदेशक तुम्हारे इनबिल्ट को एक्टिवेट करने में सहायता करता है। ईश्वर से मत कहो कि मुझे फलां दे। कहो कि हे प्रभो,  फलां हासिल करने की मेरी शक्ति को जाग्रत करने में सहायक हो। जिसने ईश्वर को समुपदेशक बना लिया, उसने भीतर के ब्रह्म को जगा लिया….और ब्रह्मांड में ब्रह्म से बड़ा क्या है?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 117 ⇒ जे सी बी (Joseph Cyril Bamford)… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  व्यंग्य – “जे सी बी (Joseph Cyril Bamford)।)  

? अभी अभी # 117 ⇒ जे सी बी (Joseph Cyril Bamford)? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

सृष्टि के सर्जक, पालक और संहारक भले ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश हों, कलयुग में निर्माण और विध्वंस का कार्य जेसीबी ने अपने जिम्मे ले लिया है। आपातकाल में बुलडोजर का आतंक था, अमृत काल में यह जेसीबी विकास रथ को देश के नव निर्माण की ओर अग्रसर कर रही है।

आप केबीसी को कौन बनेगा करोड़पति कह सकते हैं, केवायसी(KYC) को know your customer कह सकते हैं, लेकिन जेसीबी, जैसी भी है, वैसी ही कहलाएगी।

स्कूल की बसों की तरह इसका रंग भी पीला ही कर दिया गया है। भरे बाजार में जब यह भीमकाय यंत्र चलता है तो किसी आवारा सांड अथवा पागल हाथी से कम खतरनाक प्रतीत नहीं होता। शुक्र है, इसका महावत एक कुशल ड्राइवर होता है, फिर भी हादसे तो हो ही जाते हैं।।  

हमारे देश में कई क्रांतियां हुई हैं। जेपी की संपूर्ण क्रांति के बाद अब जेसीबी पूरे देश में समृद्धि की क्रांति ला रही है। बड़ी बड़ी हाइड्रोलिक मशीनें मेट्रो और रेलवे ट्रैक का निर्माण कर रही हैं। किसान के खेत से लगाकर स्मार्ट सिटी तक आज जेसीबी का ही राज है।

आजकल गणित में पहले जैसे सवाल नहीं पूछे जाते! बीस मजदूर एक कुएं को दस दिन में खोदते हैं, तो पचास मजदूर कितने दिनों में खोदेंगे। मजदूर की तो कब की छुट्टी हो गई है। ड्रिलिंग मशीन चार घंटे में चार सौ फीट नीचे पाताल से पानी निकाल लाती है। बोल मजूरा हल्ला बोल की तो अब बोलती ही बंद है।।  

विकास की धारणा हमारे यहां देशी विदेशी का कॉकटेल है। हम विदेशों से ज्ञान भी अर्जित करते हैं और तकनीक भी लेकर आते हैं, जो हमें आगे चलकर स्वावलंबन का पाठ पढ़ाती है। एक बच्चा भी पहले माता पिता की उंगली का सहारा लेता है, और बाद में अपने पांव पर खड़ा ही नहीं होता, बुढ़ापे में अपने माता पिता का सहारा बनता है।

आज बच्चे पढ़ लिखकर विदेश में बस रहे हैं, और ये श्रवणकुमार और कुमारियां अपने माता पिता को तीर्थाटन नहीं, अपने पास बुलाकर वर्ल्ड टूर करवाते हैं। फिर भी अगर आपको हमारे देश में कहीं वृद्धाश्रम नजर आते हैं, तो समझिए, अभी ग्लास आधा खाली है, और आधा भरा है।

आपने स्वराज पॉल का नाम तो सुना ही होगा, लॉर्ड स्वराज पॉल! वे भारतीय मूल के एक ब्रिटिश उद्योगपति हैं। स्वराज माजदा ट्रक हो अथवा स्वराज ट्रैक्टर, पूरे देश में इनका जाल बिछा हुआ है। देश में हों या विदेश में, नाम तो हमारे देश का ही रोशन कर रहे हैं।।  

जेसीबी को बेकहो लोडर्स भी कहते हैं। 92 HP की ताकत, इसका खुद का वजन करीब 7460 किलो और इसकी वजन उठाने की क्षमता आठ हजार किलो।

मेरे आवास के पास एक बहुमंजिला आवासीय इमारत बन रही है। रोज सुबह ९ बजे जेसीबी आ जाती है, बेचारी काम पर लग जाती है। यहां गड्ढा खोदा, मिट्टी निकाली, कहीं दूर जाकर फेंकी। सभी तरह का बोझा भी ढो ले। कभी कलपुर्जे ढीले हो जाएं तो काम ठप पड़ जाए। बस जैसी भी है, बेचारी मशीन है। उसे आदेश मिलेगा तो चंद मिनटों में किसी का मकान भी तोड़फोड़ देगी। ईश्वर करे इसका उपयोग विकास में ही हो, विनाश और विध्वंस में नहीं।।  

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 151 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 151 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 151) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 151 ?

☆☆☆☆☆

जब  लबों  पर

जगह नहीं मिलती,

तब  लफ़्ज़  आँखों

में  रहने  लगते  हैं…

☆☆

When there is no

space on the lips,

Then the words start

living in the eyes…

☆☆☆☆☆

थी मिलावट इस कदर

अपनों की चाहत में कि

आखिर तंग आकर हम  

दुश्मनों के पास चले गए..!

☆☆ 

So much of adulteration was

there in the love of loved ones

that I got disheartened, forcing

me  to  go  to  the  enemies..!

☆☆☆☆☆

क्या कोई नई बात नजर 

आती  है  हममें ?

आईना हमें देख कर

हैरान सा  क्यूँ  है ?

☆☆

Do you see anything 

new  in  me…

Why is the mirror

surprised to see me?

☆☆☆☆☆

यूं तो सब, कुछ रूठे-रूठे

से रहते  हैं  मुझसे,

पर बचपन की मासूमियत

कुछ ज्यादा  खफा  है…

☆☆

As such, everyone remains

sullen  only  with  me,

But the innocence of childhood

is a bit more upset with me!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ The Grey Lights# 10 – “Over the Time…” ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

? The Grey Lights# 10 ?

☆ – “Over the Time…” – ☆ Shri Ashish Mulay 

Over the time

my buds will grow flowers

flowers will bear fruits

fruits will steer seeds

 

Over the time

my blood will turn thick

heart will miss the blink

in the wisdom, my passion will flip

 

Over the time

my blade will rust

rust will settle in dust

with wind the dust will burst

 

BUT

 

Over the time

my words will make sense

sense will make story

story will turn the dust to glory…

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 149 ☆ व्यंग्य गीत – “न्याय-अन्याय” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य गीत बंदर मामा न्याय करे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 148 ☆

☆ व्यंग्य गीत ☆ न्याय अन्याय  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

बंदर मामा

चीन्ह -चीन्ह कर

न्याय करे

*

जो सियार वह भोगे दण्ड

शेर हुआ है अति उद्दण्ड

अपना & तेरा मनमानी

ओह निष्पक्ष रचे पाखण्ड

जय जय जय

करता समर्थ की

वाह करे

*

जो दुर्बल वह पिटना है

सच न तनिक भी पचना है

पाटों बीच फँसे घुन को

गेहूं के सँग पिसना है

सत्य पिट रहा

सुने न कोई

हाय करे

*

निर्धन का धन राम हुआ

अँधा गिरता खोद कुँआ

दोष छिपा लेता है धन

सच पिंजरे में कैद सुआ

करते आप 

गुनाह रहे, भरता कोई 

विवश मरे

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ ✒️ तितिक्षा इंटरनॅशनल–राष्ट्रीय ग्रंथ पुरस्कार– अभिनंदन – ✒️ ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌺 अधिक आनंदाचा मास  अभिनंदन – 🌺

तितिक्षा इंटरनॅशनल या संस्थेतर्फे साहित्य क्षेत्रातील उल्लेखनीय कामगिरीबद्दलचे 2023 साठीचे राष्ट्रीय ग्रंथ पुरस्कार नुकतेच जाहीर  झाले आहेत. या पुरस्कार  विजेत्यांमध्ये ई-अभिव्यक्ती मराठीमध्ये लेखन करणा-या साहित्यिकांचा मोठ्या प्रमाणात समावेश आहे. आम्हाला याचा अभिमान वाटतो आणि कौतुकही वाटते. या सर्व  पुरस्कार विजेत्यांचे ई-अभिव्यक्ती समुहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि शुभेच्छा !💐

सर्वांचे माहितीसाठी पुरस्कार विजेते व त्यांच्या कलाकृती याप्रमाणे :–  

1  डाॅ.सोनिया कस्तुरे – सर्वोत्कृष्ट काव्यसंग्रह : नाही उमगत ती अजूनही.

2 सुश्री वीणा रारावीकर – उत्कृष्ट काव्यसंग्रह : गुजगोष्टी शतशब्दांच्या.

3 श्री रवींद्र सोनवणे – गझलसंग्रह : प्रथम पुरस्कार : जाणीवांची आवर्तने.

4 श्री विश्वास विष्णु देशपांडे –  विशेष प्रेरणादायी व्यक्तीकथा: अष्टदीप.

5  सुश्री राधिका भांडारकर  – जीजी : आत्मानुभव व्यक्तीकथा.

6 सुश्री वंदना हुळबत्ते – बालकथासंग्रह : गांडुळाशी मैत्री.

7 श्री सुजीत कदम – बालकाव्यसंग्रह : अरे अरे ढगोबा 

8 सुश्री संध्या बेडेकर – सहज मनातलं शब्दात.

सर्व  पुरस्कार  प्राप्त  साहित्यिकांचे पुनःश्च  अभिनंदन ! ✒️ 🌺

संपादक मंडळ

 ई-अभिव्यक्ती मराठी.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भलरी गीत… ☆ सौ.मंजुषा आफळे

सौ.मंजुषा आफळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ भलरी गीत… ☆ सौ. मंजुषा आफळे ☆

भलरी दादा भलरी

भलरी दादा भलरी

 

आल्या रिमझिम सरी

पेरणीला या लई भारी

खाचरात भरे पाणी

गाऊ या पाऊस गाणी

 

मनाला येई तरतरी

सपान आलं सामोरी

चिखलात माझी राणी

करते भात लावणी

 

मायेत भिजल्या पोरी

चमकती चंद्रकोरी

आनंदात ही धरणी

पहा देवाची करणी

 

दिवस आज भाग्याचा

गंध श्रावणसरींचा

रोपे खोचून भाताची

पूजा करूया लक्ष्मीची

 

प्रसन्न ती होईल गं

भरभरून  देई गं

घास खाऊ या सुखाचा

भ्रतार माझ्या प्रितीचा

 

भलरी दादा भलरी

भलरी दादा भलरी.

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ओढ पावसाची… ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

☆ ओढ पावसाची… ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

आतुरले मन माझे,

    घनाने बरसावे !

तुझ्या जलधारात,

   मी चिंब चिंब भिजावे!

 

किती ओढ घेई तू,

  तृषार्त मी, तृषार्त मी!

एक एक थेंबासाठी,

  मनी झुरत आहे मी!

 

 तुझ्या मनाची मर्जी,

   सत्त्व पाहते सर्वांचे !

 आभाळाकडे डोळे लावून

    सुकले गं डोळे त्यांचे!

 

  हिरवाई बहराचे दिवस,

    असे दिसती सुकलेले !

 एकेक दिवस जाई ,

    मन माझे मिटलेले !

 

 लवकर ये सत्वरी,

   वाट पाही भूवरी!

शांतव तू जीवाला,

   हीच ओढ अंतरी !

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ म्हण बदलायची वेळ आली ? ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

🌸 विविधा 🌸 

😅 म्हण बदलायची वेळ आली ? 🌧️🤣 श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

“गर्जेल तो पडेल काय ?” ही दरवर्षी पावसाळ्यात कानावर पडणारी म्हण, यावर्षीपासून इतिहास जमा होणार की काय, अशी मला पावसात न भिजताच ओली भीती वाटायला लागली आहे मंडळी ! असं वाटायच कारण म्हणजे यंदा पाऊस आला पण नेहमीसारखं त्याचं आगमन सुरवातीला विशेष जाणवलं नाही. नंतर नंतर त्यानं अनेक राज्यात हैदोस घातला ही बाब आलाहिदा, पण यंदा त्याच आगमन जणू निसर्गाने ढगाला सायलेंसर लावला आहे अशा स्वरूपातच होतंय, हे आपण पावसात न भिजताच मान्य कराल याची मला कांदा भजी खाता खाता खात्री आहे !  या मागची वैज्ञानिक कारण काय आहेत यावर हवामान खाते विजेसारखा प्रकाश टाकेल न टाकेल, पण आपल्या सारख्या सुज्ञ लोकांच्या, पावसात ओल्या झालेल्या सुपीक डोक्यातून याच काय उत्तर असेल ते आपण म्या पामराला लवकरात लवकर कळवले तर बरं होईल. नाहीतर काय होईल, आत्ता कांदा भजी खायला कितीही कुरकुरीत लागत असली तरी एखाद्याच्या ओल्या डोक्यातून आलेलं एखादं या मागच भन्नाट कारण माझ्या जिभेची चव बीघडवायला पुरेसं आहे, होय की नाही ? आणि ती व्यक्ती माझ्यासारखा कांद्या भज्या बरोबर गरमा गरम आल्याचा चहा न घेता इतर काही “अमृततुल्य पेय” पीत असेल तर मग माझं रक्षण धो धो पडणाऱ्या पावसात वरचा छत्रीधारी सुद्धा करू शकणार नाही, याची मला बालंबाल खात्री आहे !

हे ढगांच असं मूकं राहणं, विजांच न कडकडणं मला अजिबातच आवडलेलं नाही मंडळी.  त्यामुळे होत काय, खरखुरा पावसाळा यंदा आला आहे असं वाटतच नाही माझ्या सारख्या सामान्य माणसाला. मग पावसाळी पिकनिक ठरवायचा मूडच जातो माझा !

मंडळी मी जेंव्हा माझ्या नसलेल्या डोक्याला थोडा ताण दिला तेंव्हा याच एक उत्तर माझ्या डोक्यात चमकून गेलं, बघा तुम्हांला पटतंय का !  सध्या सर्वपक्षीय नेत्यांचा, या नां त्या कारणाने जो घोषणारुपी गडगडाट चालला आहे त्याला घाबरून मेघांचा घसा तर बसला नसेल ना? हे माझं कारण मलाच पटलं आणि मी डोक्यावर पांघरूण घेऊन झोपी गेलो !

जाता जाता सुज्ञ वाचकांना एक इशारा – कुठल्याही निसर्ग कोपाला लागू असलेलं “हा ग्लोबलवार्मिंगचा परिणाम आहे” हे घासून गुळगुळीत झालेलं उत्तर देवून माझ्या डोक्याची आणखी शकलं करू नयेत ! कारण हा निसर्ग कोप नक्कीच नाही !

© प्रमोद वामन वर्तक

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares