(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नमः शिवाय साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय लघुकथा – ज़मीर –।)
☆ लघुकथा ☆ ज़मीर ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
धर्मपाल चौधरी गाँव के बड़े किसान थे। वे हर साल अपना खेत चौथे या पाँचवें हिस्से पर जोतने के लिए देते थे। इस बार रबी की फ़सल आई ही थी कि घर के उस हिस्से में आग लग गई, जिसमें अनाज रखा हुआ था। सारा अनाज जल गया। ज़ाहिर है कि चौधरी धर्मपाल बहुत दुखी थे। पूरे गाँव के लोग उनके घर सहानुभूति में जमा हो गए थे। इन्हीं में सुरजा राम भी था, जिसने बारह साल तक चौधरी की ज़मीन जोती थी। यह हालत देखकर उसका मन रो रहा था। सारी गेहूँ जल गई, अब घर में रोटी कैसे बनेगी? सुरजा राम ने कुछ दिन पहले ही सुना था कि चौधरी के पल्ले पैसा नहीं है। एक मुक़द्दमे में वह न केवल सारी पूँजी खो चुका है, बल्कि उस पर लाखों रुपये का कर्ज़ चढ़ा हुआ है।
जब वहाँ आठ-दस लोग रह गए तो सुरजा राम ने चौधरी को थोड़ा अलग ले जाकर कहा,” चौधरी साहब, होनी के आगे किसका बस चलता है। हुई तो बहुत बुरी, पर आप घबराओ मत। मेरे पास साठ सत्तर हज़ार रुपये हैं। आप ले लो, अगली फ़सल पर या उससे अगली फ़सल पर दे देना।” इतना सुनते ही धर्मपाल चौधरी के भीतर का सामंत जाग गया। वे वहाँ मौजूद लोगों को सुनाते हुए बोले, “देखो रे, अब यह चौथिया जलायेगा हमारे घर का चूल्हा! बड़ा आया धन्ना सेठ। लड़के सड़कों पर मज़दूरी करते फिरते हैं और यह मेरी फ़िक्र कर रहा है। वाह, तू जा, अपना घर सम्भाल।” सुरजा राम के पाँव जैसे पत्थर हो गए थे। उसे वहीं खड़ा देख चौधरी गरजा, “अब तू जायेगा या पहले तेरे पैर पकड़ कर शुक्रिया अदा करूँ?” सुरजा राम धीरे-धीरे क़दम उठाता चौधरी के घर से बाहर निकल आया। उसका मन हुआ कि वह चौधरी को बद्दुआ दे कि ऐसी आग तेरे घर रोज़ लगती रहे, पर तुरंत उसे पश्चाताप होने लगा कि उसने यह सोच भी कैसे लिया। बेशक वह बेज़मीन है, बेज़मीर तो नहीं।
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक अति सुंदर व्यंग्य – “सोशल मीडिया पर जन्मदिन”।)
☆ व्यंग्य ☆ बैठे ठाले – सोशल मीडिया पर जन्मदिन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆
अच्छे दिन आने वाले हैं ऐसा सोचकर कितना अच्छा लगता है। दुःख, परेशानियां, मुसीबतों के बीच जब खूब सारे लोग बधाईयां और शुभकामनाएं देने लगते हैं तो अच्छा तो लगता है, वो दिन अच्छा लगता है ये दिन झूठ मूठ का भले हो। साल भर में दो चार बार अच्छे दिन लाने को लिए आजकल सोशल मीडिया बड़ा साथ दे रहा है। आजकल अच्छे दिन का अहसास कराने के लिए अपन झूठ-मूठ के लिए फोटो लगाकर अपना अवतरण दिवस या जन्मदिन की घोषणा कर देते हैं ये बात अलग है कि लोग इस झटके को हैप्पी बनाने के लिए हैप्पी बर्डे का नाम दे देते हैं, जैसे आज मेरा सरकारी जन्मदिन है और अगर इस दुनिया में किसी नकली चीज़ पर भी सरकारी मुहर लग जाए तो वही असली हो जाती है।
मेरा जन्मदिन मेरे बच्चों के अलावा किसी को याद नहीं रहता। घरवाली अक्सर इग्नोर करती है,पर बच्चे मुझे याद दिला देते हैं, फिर भी मै भी भूलने की कोशिश करता हूं। मोबाइल में खामखां केक और लड्डुओं का इतना ढेर लग जाता है कि अगर सब सजा दूं तो लोग घर को मिष्ठान भंडार समझ लें। मुश्किल ये कि आप इन्हें न खा सकते हैं और न पड़ोसी के यहां भिजवा सकते हैं। सबके सब मोबाइल से बाहर निकलते ही नहीं है। जब बहुत दिन हो जाते हैं तो फिर मन में कुलबुलाहट होने लगती है और अचानक दादी असली वाले जन्मदिन की याद दिला देती है मैं सोचता हूं अभी चार महीने पहले तो झूठ मूठ की इतनी बधाई और शुभकामनाएं बटोरीं थीं फिर पोल न खुल जाए पर मौसी उधर देहरादून से फेसबुक में हैप्पी बर्डे की पोस्ट डाल देती है फिर दिन भर बधाई और शुभकामनाओं का तांता लग जाता है हालांकि कि कुछ लोग फोन पर कटाक्ष करने लगते हैं कि यार बताओ कि तुम साल में कितने बार पैदा हुए हो…. अब आप ही बताओ कि बहुत लोगों को यदि अलग माह में मेरा हैप्पी बर्डे मनाने को इच्छा है तो किसी को मैं रोक सकता हूं कई बार तो ऐसा भी होता है कि मगरमच्छ जैसे निष्क्रिय रहने वाले समूह सदस्य भी जन्मदिन का मैसेज पढ़कर तुरंत तैयार शुदा बधाई प्रेषित करने में देरी नहीं करते, तुरंत फारवर्ड वाला रेडीमेड मैसेज भेज देते हैं, फिर मुझे एक एक सदस्य को अलग अलग धन्यवाद प्रेषित करना ही पड़ता है,डर लगता है कि यदि धन्यवाद नहीं दिया तो सामने वाला नाराज होकर अगली बार बधाई और शुभकामनाएं न भेजे। समूह के कुछ सदस्य तो समूह के अलावा अलग से भी बधाई का मैसेज भेज देते हैं,अब आप ही बताओ कि मैं अपनी इज्जत कैसे बचाऊं।
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सीमा पार का खेल“।)
अभी अभी # 101 ⇒ सीमा पार का खेल… श्री प्रदीप शर्मा
प्यार कोई खेल नहीं ! लेकिन जब खेल खेल में प्यार हो जाए, तो फिर उसे उम्र की सीमाओं और सरहदों में नहीं बांधा जा सकता। शर्मिला इतनी भी शर्मीली नहीं थी कि नवाब पटौदी की कप्तानी कुबूल ना कर ले। अगर उम्र की सीमा होती तो क्या दिलीप सायरा की जोड़ी बन पाती। हमारे शरद भाई ने भी इरफाना आपा को कुबूल किया कि नहीं।
प्यार की कोई हद नहीं होती, कोई सरहद नहीं होती। फिल्म के रुपहले पर्दे पर अपने जलवे बिखेरने वाली अभिनेत्री रीना रॉय सीमा पार क्रिकेट खिलाड़ी मोहसिन खान को दिल दे बैठी, जब कि वह जानती थी, शीशा हो या दिल हो, आखिर टूट जाता है। कभी जमाना दुश्मन हो जाता है, तो कभी सनम बेवफ़ा। आज दोनों जुदा जुदा हैं, खफा खफा।।
टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा ने शायद ही कभी मिर्जा ग़ालिब को पढ़ा हो, लेकिन उर्दू का, ढाई आखर इश्क का, उसने जरूर पढ़ लिया होगा और शायद इसीलिए उसके टेनिस के रैकेट को पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी शोएब मलिक के बल्ले से प्यार हो गया। बस दोनों की बल्ले बल्ले हो गई। दुश्मन है जमाना ठेंगे से।
ऊंची ऊंची दुनिया की दीवारें और सभी बाधाएं, प्यार में अक्सर तोड़ दी जाती हैं, लेकिन हद तो तब होती है, जब प्यार में पागल कोई २७ साल की लड़की चार चार बच्चों के साथ बिना कागजात और पासपोर्ट वीजा के, दुश्मन देश से हमारे देश में प्रवेश कर जाती है। ।
यह प्रेम कहानी नोएडा के सचिन और कराची की सीमा हैदर की है, जो लॉक डाउन में PUBG खेलते खेलते आपस में ऐसे लॉक हुए, कि समाज के सभी बंधन बेकार साबित हुए, दोनों देशों का कानून देखता ही रह गया, और ये दोनों सदा के लिए एक दूसरे के हो गए।
मीडिया ने उसकी छवि एक फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली, और अन्य कई भाषाओं की जानकार, एक सुशील और संस्कारी हिंदू महिला की बना दी है।
घोषित रूप से दोनों हिंदू हैं, सीमा हैदर तलाकशुदा है, मियां बीवी राजी तो क्या करे काजी तो ठीक, लेकिन हमारी देश की सरकार अब क्या करे। दिल में घुसपैठ कोई जुर्म नहीं, अपराध नहीं लेकिन देश कायदे कानून से चलता है, महज भावना से नहीं। इस तरह के घुसपैठियों को दुश्मन का जासूस कहा जाता है और उनकी जगह सिर्फ जेल की सलाखें होती हैं। बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए।।
यहां संकट और धर्मसंकट दोनों ने हाथ मिला लिया है। सीमा पार सीमा हैदर और इस पार सचिन का प्यार एक तरफ, और दोनों देशों का इस बारे में रवैया और नजरिया एक तरफ। इसे हिम्मत नहीं, दुस्साहस कहते हैं। मूल रूप से, सबसे पहले वह एक अपराधी है।
फिलहाल तो सीमा सचिन की कहानी रंग ला रही है। देखना है, रंग में भंग होता है, या फिर पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है। हम तो फुर्सत में हैं ही, अच्छी खासी राष्ट्रीय बहस चल रही है, इन दोनों को लेकर आजकल।।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# जन्म-मरण… #”)
माझ्या पाटनूर गावच्या पंचक्रोशीतील दोन तरुण, पुण्याच्या कोर्टात अधिकारी म्हणून रुजू झाले. त्यांना भेटण्यासाठी मी त्या दिवशी गेलो होतो. दोघे कामात होते. दोघांनीही थांबा थोडा वेळ, असा इशारा केला. मी कोर्टाच्या बाहेर आलो. बाहेर येणारे- जाणारे कैदी, भेटायला येणारे नातेवाईक, पोलिस, त्या कोर्टातली गर्दी किती मोठी… बापरे!
रागाच्या आणि इगोच्या, अहंकाराच्या भरात कायदा हाती घेणाऱ्या त्या प्रत्येकाला वाईट वाटत असेल; पण वेळ निघून गेल्यावर काही होणारे नव्हते. कैद्यांचे, सतत कोर्टाच्या पायऱ्या चढून सुकलेले डोळे आता वेळ निघून गेली, असेच सांगत होते. ते वातावरण कोर्टाची पायरी कुणीही चढू नये, असेच सांगत होते.
कोर्टात मागच्या बाजूला माझी नजर गेली. एक लहान मुलगी एका मुलाला राखी बांधत होती. माझ्या मनात विचार आला आता जवळपासही राखी पोर्णिमा नाही; तरीही ही मुलगी राखी का बांधत असेल? बाजूला एक चहावाला ते सारे दृश्य पाहून खांद्यावर टाकलेल्या रुमालाने, स्वतःचे डोळे पुसत होता. मी अजून बारकाईने पाहिले. एका बाजूने एक माणूस आणि दुसऱ्या बाजूला एक महिला दोघेजण बसले होते.
मी त्या चहावाल्याला विचारले “का रडताय तुम्ही? काय झाले?”
तो म्हणाला, “काय व्हायचे आहे साहेब, आम्ही दिवसभर कोर्टात असतो ना, आम्हाला पावलोपावली कलियुगाचे दर्शन होते.”
“तुम्ही ज्या मुलांकडे बघून रडताय ती कोण आहेत?”
चहावाला म्हणाला, “ते बाजूला एकमेकांच्या तोंडाकडे न पाहणारे नवरा-बायको आहेत ना, त्यांची ही मुले आहेत. यांच्या भांडणापायी या मुलांचा त्रास पाहवत नाही.” माझ्याशी एवढे बोलून चहावाला आपल्या कामात गुंतला.
त्या मुलांकडे बघून मलाही खूप वाईट वाटत होते. ती महिला उठली आणि चहा घ्यायला मी जिथे थांबलो होतो तिथे आली. तिने चहा घेतला आणि तिथूनच मुलाला ‘चल आता निघायचे,’ असा आवाज देत होती. त्या महिलेने त्या चहावाल्याकडे पहिले आणि त्याला म्हणाली, “कारे चहा चांगला करता येत नाही का? फुकट पैसे घेतोस का?” त्या बाईचे बोलणे ऐकून त्या चहावाल्याचा चेहरा एकदम पडला.
मलाही त्या बाईला काहीतरी बोलायचे होते; पण हिंमत होईना. त्या बाईसोबत एक म्हातारी बाई होती. जेव्हा ती बाई फोनवर होती तेव्हा मी त्या म्हाताऱ्या बाईला म्हणालो, “आजी, तुम्ही त्या ताईच्या आई का?”
त्या ‘हो’ म्हणाल्या. हळूहळू मी तिला बोलते केले. तो मुलगा, मुलगी आजीकडे आले. आजीने मुलीच्या पाठीवरून हात फिरवत जा म्हणत निरोप दिला. आता तो मुलगा, जाणार इतक्यात मी त्या चहावाल्याच्या बरणीतले दोन चॉकलेट बाहेर काढले आणि त्या मुलांच्या हातात ठेवले.
मुलगी नम्र होती. मुलगा जरा बेशिस्त होता. कोर्टात त्या दोघांनाही पुकारा झाला, त्या मुलांचे आईवडील दोघेही कोर्टात गेले. त्यांच्यासोबत त्यांचे वकीलही होते.
ते गेल्याचे पाहताच मी, त्या आजी, ती दोन मुले, मध्येमध्ये तो चहावाला, असे आम्ही बोलत होतो. ‘देव देतो आणि कर्म नेते’ अशी कहाणी या कुटुंबाची होती. त्या आजी सांगत होत्या आणि आम्ही ऐकत होतो.
डॉ. मीरा देशमुख, डॉ. रमेश कांबळे (दोघांची नावे बदलली आहेत) या दोघांनी कॉलेजला असताना पळून जाऊन लग्न केले. लग्नाला दोघांच्याही घरच्यांचा प्रचंड विरोध होता. दोन मुले झाली तोपर्यंत यांचे चांगले होते; पण पुढे छोट्या छोट्या कारणावरून भांडणे व्हायला लागली. ही भांडणे जीव घेण्यापर्यंत गेल्यावर दोघांनी विभक्त होण्याचा निर्णय घेतला.
विभक्त झाल्यावर पोटगी देण्यावरून खूप वादंग झाले, ते
आजही कोर्टात सुरू आहेत. मुलगी सरिता बापाकडे राहते आणि मुलगा सचिन आईकडे. त्या आजीने बोलता बोलता अगदी थोडक्यात सारी कहाणी सांगितली.
ती आजी माझ्याशी बोलत असताना ती मुले एकमेकांशी बोलत होती. मुलगी म्हणाली, ‘दादा तू मला घरी भेटायला येशील ना?
मुलगा ‘मी नाही सांगू शकत, मम्मी काय म्हणेल, सुट्टी मिळेल का नाही, माहिती नाही’.
बिचारी मुलगी त्या मुलाचा नकारार्थी सूर ऐकून एकदम नाराज झाली. तो मुलगा जाग्यावरून उठला, त्या मुलीजवळ जाऊन म्हणाला, “अगं तायडे नाराज नको होऊ. मी येण्याचा प्रयत्न करीन ना?”
मुलगी पुन्हा म्हणाली, “मागेतर वर्षभर आला नाहीस ना?”
त्या दोघांचा तो भावनिक संवाद आणि संवादाशेवटी एकमेकाला मिठी मारत रडलेला तो क्षण पाहून आता काळजाचे ठोके बंद पडतात की काय, असे वाटत होते. ती मुले, आणि आम्ही सारे अक्षरशः रडत होतो.
ती आजी म्हणाली, “या कोर्टाच्या चकरा मारून खूप कंटाळा येतो. अगोदर माझी मुलगी आणि जावई या दोघांच्याही पाया पडून सांगितले होते, लग्न करू नका. आता यांनी केले, तर ते निभावून तरी दाखवावे ना..! यांची रोज होणारी भांडणे, पाहून मुले पोटाला येऊच नाही, असे वाटते.
मुलीने दुसऱ्या जातीचा नवरा केला म्हणून आमचे नाक कापले, दोन मुले झाली आता दुसरे लग्न करायचे आहे, असे दोघेही म्हणतात, पहिल्या लग्नाला न्याय देता आला नाही, दुसऱ्याला काय देणार.
आम्ही अडाणी माणसे. लग्नाच्या वेळी एकमेकांना पहिलेदेखील नव्हते. ही जेवढी शिकलेली आहेत, तेव्हढी ही माणसे वेड्यासारखी वागतात. लग्नामध्ये विधीच केल्या नाहीत, संस्कृती, परंपरा पाळल्या नाहीत, यांचे लग्न टिकणार कसे?” आजी अगदी पोटतिडकीने सांगत होत्या.
कोर्टात गेलेले ते दोघेजण पडलेला चेहरा घेऊन बाहेर येताना दिसताच त्या दोन्ही लहान मुलांनी एकमेकांचे हात घट्ट पकडले. आता आपण एकमेकांना सोडून जाणार, याची खात्री त्यांना झाली. त्या दोघांनी एकमेकांना घट्ट मिठी मारली. ते दोघे जसे त्या मुलांजवळ आले, तसे ती महिला त्या मुलाला आणि त्या माणसाने त्या मुलीला धरून ओढले. त्या दोन्ही मुलांची ती ताटातूट पाहवणारी नव्हतीच. ते दृश्य पाहून चहावाला मामा पुन्हा रडताना मला दिसला.
त्या लहान मुलाला घेऊन ती महिला तिच्या आईला म्हणाली, ‘माझे पैसे वेळेवर दे नाहीतर जेलमध्ये जावे लागेल, असे न्यायालयाने खडसावले त्याला’, असे डोळ्यात अहंकाराचे आव आणून ती सांगत होती.
त्या छोट्या मुलाला घेऊन असलेला तो माणूस त्या तावातावाने बोलणाऱ्या बाईकडे रागारागाने पाहत होता. ती बाई, तिची आई आणि तिचा मुलगा तिथून गेला. तो माणूस आपल्या मुलीला घेऊन त्या चहावाल्याकडे आला त्याने चहा मागितला. तो माणूस एका हाताने चहा पीत होता आणि त्यांच्या दुसऱ्या हातात त्यांची असलेली मुलगी अजून तिचा भाऊ परत येईल, या आशेने तो गेलेल्या त्या वाटेकडे पाहत होती.
मी त्या माणसाला म्हणालो, “मुलांचे फार प्रेम आहे एकमेकांवर.”
मी बोलताच त्या माणसाने माझ्याकडे पाहिले. तो काहीही बोलला नाही, एकदम शांत बसला. मी आणि तो चहावाला एकमेकांशी बोलत होतो. तो चहावाला त्या माणसाकडे बघत म्हणाला, “याची पत्नी जेव्हा जेव्हा येते तेव्हा खूप गोंधळ घालते आणि हे नेहमी शांत बसलेले असतात.”
तो माणूस अगदी शांतपणे म्हणाला, “एक दोन वेळा बोललो होतो. त्यामुळे एवढी स्थिती निर्माण झाली. माझ्या बायकोला काही सांगायचे म्हणजे कठीणच आहे. आमचे भांडण जातीवरून व्हायचे. लग्नाच्या आधी एकमेकांची जात काढायची नाही, असे ठरवले होते; पण छोट्या छोट्या भांडणामध्ये जात निघायची आणि हेच भांडण पुढे वाढत गेले.”
मी म्हणालो “आज न्यायालयात काय झाले साहेब?”
ती व्यक्ती म्हणाली, “न्यायालयाने पोटगी वेळेत द्या, ठरलेली रक्कम का देत नाही, नाही दिली तर शिक्षेला सामोरे जा, असे सांगितले.”
मी पुन्हा म्हणालो, “मग तुम्ही काय म्हणालात?”
“मी काय म्हणणार त्यांना, देण्याचा प्रयत्न करणार एवढे म्हणालो.”
त्या व्यक्तीने मला प्रतिप्रश्न केला “अहो माझ्याकडे नाहीच तर मी देऊ कसे? जे काही होते ते सर्व बायकोच्या नावे होते. मी हे खूप ओरडून सांगितले, पण माझे ऐकले गेले नाही.
पोटगीच्या नावाने मला खूप मोठी रक्कम द्या, असे सांगण्यात आले. गेल्या दोन महिन्यापासून माझी मुलगी आजारी आहे. तिची शाळा, या सगळ्या कामात मी कामच केले नाही, तर पैसे येणार कुठून? माझी बायको मोठी डॉक्टर असून मलाच तिला पैसे द्या, असे सांगण्यात आले. सगळे कायदे महिलांच्या बाजूने आहेत.”
त्या व्यक्तीचे बोलणे ऐकूण मी शांत होतो. तो चहावाला एकदम म्हणाला, “रोज येथे असे अनेक प्रकार पाहायला मिळतात. सगळ्यांचा इगो इथे दिसतो? बाकी काही नाही?”
ती लेक आणि बाप हळुवार पावलांनी तिथून गेले. त्या मुलीच्या डोळ्यात भाऊ आणि आईविषयी प्रचंड प्रेम दिसत होते.
मी ज्या मित्राची वाट पाहत होतो, ते आपाराव आणि संजय एक एक करून दोघेही आले. चहाचा एक एक घोट घेत आज कोर्टात काय झाले, ते सांगत होते. पहिला म्हणाला, “आज पोटगीच्या चार केस आल्या होत्या, कुठे महिलांचा द्वेष; तर कुठे पुरुष. सर्वांचे एकच असते, ते म्हणजे मीच खरा आहे. तिथे माणसे बोलतच नव्हते, त्यांचा इगो बोलत होता.” कोर्टातले ते सर्व वातावरण अत्यंत क्लेशदायक होते. दुसरा म्हणाला, “सर्व माणसे उच्च शिक्षित होती, कोणी नम्रपणे बोलायला तयार नाही. नवरा मुलगा कितीही गरीब असू द्या, त्याची परिस्थिती असो की नसो, पोटगीची रक्कम घेतांना त्याची कुणाला दया येतच नाही. आज दोन प्रकरणे तर अशी होती, अनेक वेळा समन्स पाठवूनही महिलेला पैसे दिले जात नाहीत. इतकी वर्षे सोबत राहून एकमेकांची तोंडे पाहणारच नाही, अशी भूमिका माणसे कशी काय घेऊ शकतात?”
मी दोन दिवसांपूर्वी राज्याचा रेषो पाहिला आणि हैराण झालो. पोटगी आणि घटस्फोट हा विषय सर्वच ठिकाणी गंभीर होऊन बसला आहे. चहावाला म्हणतो, “या कोर्टाची पायरी चढणाऱ्या प्रत्येक माणसाने मागच्या जन्मी अहंकारातून मोठे पाप केले असणार.”
पोटगीसंदर्भात जे काही वातावरण आणि किस्से होते, त्याने मी हादरून गेलो होतो. काय ती माणसे आणि काय त्यांचे जीवन! सर्व काही ईगोच्या रोगाने त्रासून गेलेले होते. आम्ही कोर्टातला तो विषय कट करून बाकी विषयावर बोलत होतो, पण माझे सर्व लक्ष पोटगी या विषयाकडे लागले होते.
आम्ही कोर्टातून बाहेर पडलो, ज्याच्या त्याच्या कामाला लागलो. कामात खूप व्यस्त झालो, तरी ती इगोवाली माणसे आणि त्या लहानग्याचा रडका चेहरा काही डोळ्यासमोरून काही जात नव्हता. कधी थांबणार हे कायमस्वरूपी?
(आजचा हा लघुलेख स्वतः लेखक श्री. संदीप काळे, संपादक, मुंबई सकाळ, यांच्या सौजन्याने.)
(मागील भागात आपण पाहिले – कृष्णा मजेत उड्या मारत चालला होता. घरी आल्यावर अवि आईशी वाद घालू लागला. तेव्हा बापट बाईंनी अविला समोर घेऊन सांगितलं – अरे तुझी आई तुझ्या समोर उभी आहे आणि त्या कृष्णाला आई नाही लक्षात घे. तेव्हा उगाच हट्ट करु नकोस. अविच्या रडण्याकडे दुर्लक्ष करुन बाई घरकामाला लागल्या.)
कृष्णा घरी आला. शाळेची बॅग घरात टाकून नारायण मंदिराकडे आला. त्याठिकाणी दादाभोवती बरीच मुलं जमली होती. हात छातीजवळ घेऊन मुलं म्हणत होती –
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
कृष्णा पण त्या मुलांसमवेत छातीजवळ हात घेऊन प्रार्थना म्हणू लागला. त्या मुलांसमवेत कृष्णा तल्लीन होऊन दादाचे म्हणणे ऐकत होता. काळोख पडू लागला तशी मुलं आपआपल्या सायकली घेऊन घरी निघाली. दादापण आपली सायकल घेऊन घरी जाण्याच्या तयारीत असताना कृष्णा पुढे झाला. त्याने दादाला आज बाईंनी घेऊन दिलेली बासरी दाखवली.
‘‘दादा, ही बघ माझ्या बापट बाईंनी बासरी घेतली.’’
‘‘अरे व्वा कृष्णा ! छानच आहे.’’
‘‘पण दादा, मला बासरी वाजीवता येईना, तुला येत का ?’’
‘‘थोडी थोडी येते’’
‘‘मग मला शिकीव नां’’
दादाने बासरी हातात घेतली आणि बासरीचे सहा होल दाखवले. वरच्या तीन होलावर डाव्या हाताची बोट धरुन प्रत्येक होलावरील एक एक बोट कमी करत – सा रे ग म कसे वाजवावे हे त्याने दाखवले. बासरी फुंकावी कशी हे पण दाखवले आणि रोज बाकीची मंडळी घरी गेली की बासरी शिकवायचे मान्य केले. कृष्णा घरी गेला आणि दादाने दाखविल्या प्रमाणे बासरीवर सारेगम वाजवू लागला. बर्याच वेळा सराव केल्यानंतर त्याला थोडा थोडा सारेगम वाजवायला येऊ लागला. दुसर्या दिवशी दादाने खालचे तीन होल हळू हळू उघडून सारेगम उलट कसं वाजवाचं हे शिकवलं आणि कृष्णाचा हा रोजचा कार्यक्रम झाला. शाखेत जायचं, शाखा संपली की दादाकडून बासरी शिकायची.
एका महिन्यात कृष्णाने बापट बाईंना बासरी वाजवून दाखवली तेव्हा त्यांना कमाल वाटली. अविला काहीच वाजवता येत नव्हते. अविने बासरी आणली ती कपाटावर ठेवली ती परत हातातपण घेतली नाही. सहामाही परीक्षेत कृष्णा वर्गात तिसरा आला. बाईंना आनंद झाला. पाच महिन्यापूर्वी वर्गात तोंड न उघडणारा कृष्णा आता वर्गात सर्वांत मिसळू लागला.
दिवाळीत अवीचे बाबा पुण्याहून आले तेव्हा त्यांनी अविसाठी टीशर्ट, फुलपॅन्ट आणली तशीच कृष्णासाठी पण आणली. अर्थात बापट बाईंनी पत्राद्वारे आपल्या नवर्याला तसं कळवलं होत. बापट काकांनापण कृष्णा आवडला. त्याचा अभ्यास, त्याची बासरी याच्या ते प्रेमात पडले. शाळेच्या गॅदरींगमध्येपण कृष्णाने बासरी वाजवली. त्याची सर्वांनी प्रशंसा केली. वार्षिक परीक्षेत कृष्णा संपूर्ण वर्गात पहिला आला. रिझल्ट नंतर मुख्याध्यापक सामंत सरांनी बापट बाईंना बोलावून घेतले.
‘‘बापट बाई, तुम्ही कमाल केलीत, सात-आठ महिन्यापूर्वी ज्या मुलाची तुम्ही काळजी करत होतात तो मुलगा वर्गात पहिला आला.’’
‘‘हो सर, मी खूप आनंदात आहे. तुम्ही म्हणाला होतात – त्याच्या बाई नव्हे आई व्हा, मी आई होण्याचा प्रयत्न केला.’’
‘‘हो बाई, तुम्ही यशस्वी झालात, मी पाहतोय रोज शाळेत येताना जाताना तो तुमच्या बरोबर असतो. माझ्या माहिती प्रमाणे मधला डबा सुध्दा तुम्हीच देता, हे पुण्य आहे बाई.’’
थँक्यू सर म्हणत बापट बाई बाहेर पडल्या. आज सामंत सरांनी त्यांच कौतुक केलं याच त्यांना समाधान वाटलं. कृष्णा सातवीत गेला. अवि पाचवीत गेला. कृष्णाचे रोज लवकर बापटांकडे येणे, न्याहारी, मग बाई आणि अवि समवेत शाळेत जाणे, दुपारी बापट बाईंच्या घरचा डबा, सायंकाळी परत घरी गेल्यावर शाखेत जाणे आणि मग बासरीची प्रॅक्टीस. सातवीतपण कृष्णा पहिला आला. शाळाचा रिझल्ट लागला आणि बापट बाई अविसह पुण्याला गेल्या. पुण्यात अविच्या बाबांनी लहानसा फ्लॅट घेतला होता. त्याची वास्तूपूजा आणि बाईंची तब्येत तपासणीपण करायची होती. बाई कृष्णाला म्हणत होत्या – तू पण चल आमच्या बरोबर. पण कृष्णा म्हणाला – ‘‘बाबा येकटा आय इथं, मी इथं राहतो तुमी जावा’’
बापट बाईंना हल्ली लवकर थकवा येत होता. पुण्यात केलेल्या तपासणीत मधुमेह निघाला. बाईंच्या माहेरी आईलापण मधुमेह होता. डॉक्टरांनी खाण्यावर बंधने आणली आणि औषधे लिहून दिली. दिड महिना पुण्यात राहून बापट बाई आणि अवि पुणे मालवण एसटीने मालवणात आले. जून महिन्याचा पहिला आठवडा होता. मालवणात थोडा थोडा पाऊस सुरु झाला होता. बापट बाई बसमधून उतरल्या, बाईंनी ब्रेड आणि दूध घेतले आणि दोघे भराडावर बिर्हाडी आले. दार उघडून आत आल्या आल्या बाई अविला म्हणाल्या – अवि आंघोळ कर आणि सायकल घेऊन कृष्णाकडे जा. कृष्णाला घेऊन ये. तो पर्यंत मी आंघोळ करते आणि तुमच्यासाठी खाणे करते. बाईंनी नळावरुन पाणी भरले आणि गॅसवर पाणी गरम करुन अविला दिले. अविने आंघोळ केली आणि सायकल घेऊन कृष्णाच्या घरी निघाला. बाहेर पावसाची भूरभूर सुरु होती. तसाच भिजत अवि गेला आणि सात-आठ मिनिटात परत आला. बाईंचे आत-बाहेर सुरु होते. कधी एकदा कृष्णाला पाहते असे झाले होते त्याला. अवि सायकल लावून घरात आला तो सांगत – ‘‘अगं आई त्या घरात दुसरेच कोणीतरी राहत आहेत. कृष्णा आणि त्याच्या बाबांनी हे घर सोडले आणि ते गावाला गेले.’’ बाई आश्चर्यचकित झाल्या.
‘‘काय ? पण कुठल्या गावाला ?’’
‘‘ते माहित नाही, पण त्या घरात आता माने म्हणून रहायला आलेत, ते म्हणाले शिंदेनी ही जागा सोडली आणि मग आम्ही इथे रहायला आलो.’’
बाईंना वाटले मालवणात दुसरीकडे रहायला गेले असतील किंवा आजूबाजूच्या गावात कुठेतरी गेले असतील. दोन वर्षापूर्वी देवबाग सोडून मालवणात कसे आले तसे. पण बाईंना चैन पडेना. थोडा पाऊस कमी झाला तसा त्या म्हणाल्या, ‘‘अवि चल मी येते तुझ्याबरोबर आपण परत एकदा कृष्णाच्या घरी जाऊया.’’ बाई आणि अवि छत्री घेऊन चालू लागले. नारायण मंदिराजवळ बाई आल्या. चाळीच्या खाली मालक भेटले. त्यांना विचारले – ‘‘ओ शिंदे कुठे गेले माहिती आहे का?’’
मालक म्हणाले – ‘‘शिंदे त्यांच्या गावाक गेले. शिंदे म्हणा होते तेंचा लगीन ठरला हा. त्यांच्या गावच्या लोकांनी हेंचा दुसर्यांदा लगीन ठरल्यानी. म्हणून ते झिलाक घेवन गेले. आता ते थयसरच रवतले. झिलाक थयल्याच शाळेत घालतले असा म्हणा होते.’’
‘‘क्काय ?’’ बापट बाई चित्कारल्या.
‘‘ पण कुठल्या शाळेत ?’’
‘‘ता म्हायत नाय ओ, कराड सातारा भागात आसा खयचा तरी खेडेगांव, आता येवचे नाय ते. हयला तेलयाकडचा कामपण सोडल्यानी तेनी’’
‘‘हो का, बरं बरं. पण तुम्हाला त्यांच्याबद्दल काही कळलं तर मला कळवा हां ! मी येथील हायस्कूलमध्ये शिक्षिका आहे – बापट. बरे येते मी.’’
बापट बाई आणि अवि बाहेर पडल्या. तेवढ्यात जोराचा पाऊस सुरु झाला. बाई नारायण मंदिरात येऊन बसल्या. अवि एकसारखा कृष्णा केव्हा येईल गं म्हणून विचारत होता. त्याच्याकडे दुर्लक्ष करत बापट बाई पावसाकडे पाहत विचार करत होत्या.
कुठं असेल हा पोरगा ? कुठल्या शाळेत, कुठल्या गावात ? शिंदेंनी परत लग्न केलयं तर ह्याला धड जेवणतरी मिळत असेल काय? शाळा सुरु असेल ना याची ? एवढा हुशार मुलगा वाया जायचा. विचार करता करता बाईंच्या छातीत थोड थोड दुखू लागलं. त्यांनी अविला एखादी रिक्षा मिळते का पहायला सांगितलं. रिक्षा मिळाली आणि बाई आणि अवि घरी आले. घरी आल्यावर सुध्दा बाईंना अस्वस्थ वाटायला लागले. त्या त्यांच्या घराजवळ असलेल्या झांटयेच्या दवाखान्याकडे गेल्या. डॉक्टरनी त्यांना तपासलं.
‘‘बाई ! ब्लडप्रेशर फार वाढलयं, बर झाल तुम्ही लगेच आलात. आता मी इंजेक्शन देतो आणि एका महिन्याच्या गोळ्या देतो. रोज सकाळी एक गोळी घ्यायची. कसला विचार करताय का?’’
‘‘तसं नाही, आज सकाळीच प्रवास करुन आले ना !’’
‘‘ठिक आहे, काळजी घ्या. दगदग करु नका. आठ दिवसांनी पुन्हा दाखवायला या.’’
बाई बाहेर पडल्या. त्यांना जेवण करण्याचा पण कंटाळा आला. त्यांनी अविला महाजनांच्या खाणावळीत पिटाळलं आणि त्या कॉटवर झोपी गेल्या. सायंकाळी थोड बर वाटल्यावर बाई अविला सोबत घेऊन शाळेचा क्लार्क कांबळी यांच्या घरी गेल्या.
☆ एका वादळाशी झुंज… शब्दांकन : श्री विनीत वर्तक ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆
निसर्गाच्या रौद्र रुपापुढे मानव नेहमीच खुजा ठरत आलेला आहे. आपलं विज्ञान किंवा आपला अभ्यास कितीही प्रगत झाला तरी निसर्गात घडणाऱ्या अनेक विध्वंसक गोष्टींची भविष्यवाणी अजूनही आपल्याला योग्य रीतीने करता येत नाही. त्यामुळेच अश्या नैसर्गिक आपत्तीमधे सगळ्यात महत्वाचे ठरते ते आपत्ती व्यवस्थापन आणि त्या आपत्तीचा मागोवा घेणं. ग्लोबल वॉर्मिंगमुळे जगातील वातावरणात प्रचंड बदल गेल्या काही वर्षात झाले आहेत. तपमानात होणारे उतार-चढाव अधिक तीव्र झाले आहेत. त्यामुळेच वारे, पाऊस आणि एकूणच त्यांची निर्मिती यांच्या चक्रावर याचा खूप मोठा परीणाम होतो आहे. या सर्व बदलांचा परिणाम म्हणजे चक्रीवादळ.
भारताला ७५१६ किलोमीटर लांबीची किनारपट्टी लाभली आहे. एका बाजूला अरबी समुद्र तर दुसऱ्या बाजूला बंगालचा उपसागर तर एका टोकाला हिंद महासागर अश्या तिन्ही बाजूने भारत पाण्याने वेढलेला आहे. साहजिक वातावरणातील बदलांचा प्रभाव हा भारतावर पडणार हे उघड आहे. चक्रीवादळांच्या निर्मितीत अनेक गोष्टी महत्वाच्या ठरतात. त्यातील सगळ्यात महत्वाचं असते ते समुद्राच्या पाण्याचे तापमान. भारताच्या पूर्व किनारपट्टीवरील पाण्याचं तपमान हे पश्चिम किनारपट्टीपेक्षा जवळपास २ ते ३ डिग्री सेल्सिअस ने जास्ती असते. त्यामुळेच आजवर प्रत्येक वर्षी बंगालच्या उपसागरात चक्रीवादळांची निर्मिती होत होती. पण गेल्या काही वर्षात ग्लोबल वॉर्मिंगने अरबी समुद्राचं तपमान हे वाढत चाललं आहे. त्यामुळेच क्वचित येणाऱ्या चक्रीवादळांच्या संख्येत प्रचंड वाढ झाली आहे. गेल्या काही वर्षांचा अभ्यास असं दर्शवतो की अरबी समुद्रावरील वादळांच्या संख्येत ५२% टक्के, तर चक्रीवादळांच्या निर्मितीत तब्बल १५०% टक्यांची वाढ दिसून आली आहे.
एखादं चक्रीवादळ निर्माण झालं तर ते किती संहारक असेल? त्याचा रस्ता कसा असेल? किंवा त्याने किती नुकसान होईल? याचा निश्चित अंदाज आजही बांधता येत नाही. कारण चक्रीवादळ मजबूत किंवा कमकुवत होण्यास मदत करणार्या विशिष्ट चढउतारांमुळे त्याचे मॉडेल्स त्याच्या तीव्रतेचा फारसा आधीच अंदाज लावू शकत नाहीत. जिकडे त्याची निर्मिती होते तिथली अप्पर एअर डायव्हर्जन्स, विंड शीअर आणि कोरडी हवा यावर अनेक गोष्टी अवलंबून असतात. चक्रीवादळ निर्माण झाल्यावर त्याला रोखता येणं अशक्य आहे. ते आपल्या मार्गात येणाऱ्या सर्व गोष्टींची विलेव्हाट लावल्याशिवाय उसंत घेत नाही हे स्पष्ट आहे. त्यामुळेच जेव्हा अशी चक्रीवादळं नागरी वस्तीच्या दिशेने येणार असतील तर त्याचा अंदाज जर आपल्याला आधी बांधता आला तर खूप मोठी मनुष्य आणि वित्त हानी टाळता येऊ शकते.
गेल्या काही दशकात याच कारणांसाठी भारताने अनेक उपग्रह अवकाशात वातावरणाच्या या बदलांचा अभ्यास करण्यासाठी पाठवलेले आहेत. भारताच्या आजूबाजूच्या प्रदेशात वातावरणात होणाऱ्या अनेक बदलांचा वेध घेऊन हे उपग्रह सतत याची माहिती भारतात प्रसारित करत असतात. याच माहितीच्या आधारे चक्रीवादळांची निर्मिती आणि त्यांची दिशा तसेच त्यांच्या शक्तीचा अंदाज लावला जातो.
भारताच्या याच तांत्रिक प्रगतीमुळे ११ जून २०२३ ला भारतीय हवामान विभाग (India Meteorological Department) ने अरबी समुद्रात कमी दाबाच्या पट्ट्याची चक्रीवादळाची निर्मिती झाल्याचं स्पष्ट केलं. १२ जून २०२३ उजाडत नाही तोच भारताच्या उपग्रहांच्या मिळालेल्या माहितीतून या चक्रीवादळाचं रूपांतर (Extremely severe cyclone) अत्यंत तीव्र चक्रीवादळात झाल्याचं स्पष्ट केलं. या तीव्र चक्रीवादळाचं नामकरण ‘चक्रीवादळ बिपरजॉय’ असं करण्यात आलं. बिपरजॉय हे नाव बांगलादेशने दिलेलं होतं. याचा बांगला भाषेत अर्थ होतो ‘आपत्ती’ (disaster). अत्यंत तीव्र चक्रीवादळात एखाद्या वादळाचा तेव्हाच समावेश होतो जेव्हा त्यातील वाहणाऱ्या वाऱ्यांचा वेग ताशी १६८ ते २२१ किलोमीटर / तास इतका प्रचंड वाढलेला असतो.
चक्रीवादळ बिपरजॉय भारताच्या पश्चिम किनारपट्टीला धडक देणार हे लक्षात आल्यावर तातडीने या वादळाच्या ताकदीचा अंदाज केंद्र आणि राज्य सरकारला देण्यात आला. महाराष्ट्र किंवा गुजरात या राज्यांना सगळ्यात जास्त धोका असल्याचं स्पष्ट झालेलं होतं. पण नक्की कुठे ते धडक देणार याबद्दल अंदाज बांधता येणं कठीण होतं. १३ जून आणि १४ जूनला त्याने घेतलेल्या वळणामुळे हे वादळ गुजरात मधील कच्छ, सौराष्ट्र भागात धडक देणार हे स्पष्ट झालं. त्यानंतर वेगाने सर्वच पातळीवर सरकारी आणि प्रायव्हेट यंत्रणांना सावध केलं गेलं. या चक्रीवादळाची तीव्रता लक्षात घेता यात प्रचंड प्रमाणात मनुष्य आणि वित्त हानी होण्याची शक्यता होती. पण केंद्र सरकार ज्यात पंतप्रधानांपासून, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, पंतप्रधान कार्यालय आणि वरिष्ठ सरकारी अधिकारी यांनी राज्य सरकारच्या सहकार्याने वेळीच नागरिकांना सतर्क केलंच, पण त्यापलीकडे एका मोठ्या बचाव मोहिमेला सुरवात केली.
ज्या भागात चक्रीवादळ बिपरजॉय धडकणार होतं तो भाग इंडस्ट्रिअल हब होता. जामनगर मधे जगातील सगळ्यात मोठी रिफायनरी कार्यरत आहे, तर इतर अनेक इंडस्ट्रिअल कंपन्या आणि तेल, वायू क्षेत्रातील ऑइल रीग्स इकडे कार्यरत होत्या. त्या सर्वांना वेळीच सावध करून त्या सर्वांचं काम थांबवण्याचा निर्णय घेण्यात आला. चक्रीवादळ बिपरजॉय साधारण १५ जून २०२३ च्या संध्याकाळी त्या भागात आदळेल असा अंदाज व्यक्त करण्यात आला होता. त्याच्या दोन दिवस आधीच या सर्व कामांना बंद करण्यात आलं. ज्यातून होणारं नुकसान हे तब्बल ५०० कोटी प्रत्येक दिवसाला इतकं जास्त होतं. या शिवाय एकही मनुष्य हानी न होऊ देण्याचं लक्ष्य सर्व सरकारी यंत्रणांना देण्यात आलं होतं. भारतीय सेना, वायूदल, नौदल, तटरक्षक दल यांच्या सह एन.डी.आर. एफ. आणि एस. डी. आर. एफ. च्या सर्व टीम ना सज्ज राहण्याचे आदेश दिले गेले होते. अवघ्या २ दिवसात सुमारे १ लाख लोकांपेक्षा जास्त लोकांना सुरक्षित स्थळी हलवण्यात आलं.
चक्रीवादळ बिपर जॉयच्या येण्याने कोणत्याही नैसर्गिक स्थितीला सामोरं जाण्यासाठी आपत्ती व्यवस्थापन यंत्रणा सर्व स्तरावर कार्यान्वित करण्यात आली. मग तो धुवाधार पाऊस असो वा वारा, पूर असो वा भूस्खलन. ६३१ मेडिकल टीम्स, ३०० पेक्षा अजस्ती ऍम्ब्युलन्स, ३८५० हॉस्पिटल बेड्स कोणत्याही जखमी व्यक्तींना उपचारांसाठी तयार ठेवण्यात आले. तब्बल ११४८ गरोदर महिलांना हॉस्पिटलमधे सुरक्षेच्या दृष्टिकोनातून दाखल करण्यात आलं. त्यातील ६८० जणींची प्रसूती झाली. याशिवाय सर्व स्तरावर अभूतपूर्व अशी उपाय योजना केली गेली. त्यामुळे अत्यंत तीव्र चक्रीवादळ बिपरजॉय ने गुजरातच्या किनारपट्टीला काल रात्री अंदाज लावल्याप्रमाणे धडक दिल्यावर सुद्धा आज हा लेख लिहिला जाईपर्यंत कोणतीही मनुष्य हानी झाल्याचं वृत्त नव्हतं. ( दोन जणांना आपल्या गुरांना वाचवताना मृत्यूला सामोरं झाल्याची घटना घडलेली आहे. पण त्याचा संदर्भ चक्रीवादळाशी आहे का हे स्पष्ट झालेलं नाही.)
भारत इसरो आणि इतर अवकाशीय यंत्रणांवर कोट्यवधी रुपये का खर्च करतो याचं उत्तर द्यायला काल दिलेली वादळाशी झुंज पुरेशी आहे. इसरोच्या आधुनिक उपग्रहांमुळे वातावरणात घडणाऱ्या अश्या घटनांचा योग्य वेळी अंदाज आल्यामुळे योग्य त्या उपाययोजना करण्यात आल्या. भारतीय हवामान विभागाने वर्तवलेला अचूक अंदाज, केंद्र सरकार आणि राज्य सरकराची योग्य वेळेत टाकली गेलेली पावलं, अतिशय सुयोग्य नियोजन, भारताच्या तिन्ही दलांसोबत एन.डी.आर. एफ. आणि एस. डी. आर. एफ. आणि तटरक्षक दलाच्या लोकांनी लोकांना सुरक्षित ठिकाणी पोहचवण्याची जबाबदारी, यामुळे भारताने अत्यंत तीव्र चक्रीवादळ बिपर जॉय ला मात दिली आहे. या वादळाशी एकदिलाने भारतीय होऊन झुंज देणाऱ्या त्या अनामिक लोकांना माझा कडक सॅल्यूट.
जय हिंद!!!
शब्दांकन : श्री विनीत वर्तक
संग्राहिका : सौ. गौरी गाडेकर
संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.
फोन नं. 9820206306
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈