हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 147 ☆ शठे शाठ्यं समाचरेत्… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका कीhttps://www.e-abhivyakti.com/wp-admin/post.php?post=53412&action=edit# प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “शठे शाठ्यं समाचरेत्…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 147 ☆

☆ शठे शाठ्यं समाचरेत्

अक्सर लोग शीर्ष पर पहुँचने की चाहत में अपनों का साथ खो देते हैं, और जब उल्लास का समय आता है तो बनावटी भीड़ इक्कठी करके उत्सव मनाने लगते हैं।

क्या आपने कभी गौर किया कि वास्तविक शुभचिंतक व अवसरवादी शुभचिंतक में क्या अंतर है। ऐसे लोग जो सामने कड़वा बोलकर रास्ता दिखाते हैं वे ही हमारा हित चाहते हैं। अतः ऐसे रास्तों का चुनाव करें जो सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास पर आधारित हो जिससे सबका कल्याण हो।

कहते हैं जैसी सोच होगी वैसे ही परिणाम मिलेंगे। हमेशा देखा जाता है कि सामान्य लोग कई बार ऐसे कार्य कर बैठते हैं, जो बड़े- बड़े लोगों द्वारा भी सम्भव नहीं होता। उसका कारण भाग्यशाली होना नहीं होता वरन ये सब उनकी इच्छा शक्ति का कमाल होता है, जो उन्होंने ऐसे विचारों को अपनाकर न केवल कल्पना के घोड़े दौड़ाए वरन उसे अमलीजामा भी पहनाया और समाज के प्रेरक बन कर उभरे।

किसी से सम्बन्ध बनाना जितना सरल होता है, उसका निर्वहन उतना ही कठिन होता है। हर मुद्दे पर सबकी राय एक नहीं हो सकती तब कार्य के दौरान खासकर प्रशासकीय कार्यों में मतभेद पनपने लगते हैं और गुटबाजी के रूप में लोग मजबूत व्यक्ति की ओर झुक जाते हैं जिसका असर सुखद नहीं होता है।कार्य की गुणवत्ता धीरे- धीरे कम होने लगती है। समय पास ही साधन और साध्य बनकर उभरता है।

कटु वचन और धूर्तता पूर्ण व्यवहार सबको समझ में आता है पर लोग विरोध नहीं करते क्योंकि वे सोचते हैं यदि मेरे साथ ऐसा होगा तब देखा जायेगा और इसी चक्रव्यूह में एक एक कर सारे सम्बन्ध दम तोड़ देते हैं। इस सम्बंध में संस्कृत की ये कहावत तर्क संगत प्रतीत होती है-

कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।

तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥

(विदुर नीति)

अर्थात जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। खग जाने खग ही की भाषा। महाभारत इसी को आधार मानते हुए अधर्म पर धर्म का युद्ध था।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 210 ☆ आलेख – महिला व्यंग्यकारों का अवदान… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख – महिला व्यंग्यकारों का अवदान…

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 210 ☆  

? आलेख – महिला व्यंग्यकारों का अवदान?

विश्व की आबादी आठ सौ करोड़ पार होने को है, कमोबेश इसमें महिलाओ की संख्या पचास प्रतिशत है. यद्यपि भारत में स्त्री पुरुष के इस अनुपात में स्त्रियों की सँख्या अपेक्षाकृत कम है. पितृसत्तात्मक समाज होने के चलते प्रायः सभी क्षेत्रों में लंबे समय से पुरुष स्त्री पर हावी रहा है.सिमोन द बोउवार का कथन है, “स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है”, समाज अपनी आवश्यकता के अनुसार स्त्री को ढालता आया है. उसके सोचने से लेकर उसके जीवन जीने के ढंग को पुरुष नियंत्रित करता रहा है और आज भी करने की कोशिश करता रहता है. किंतु अब महिलाओ को पुरुषों के बराबरी के दर्जे के लिये लगातार संघर्षरत देखा जा रहा है. विश्व में नारी आंदोलन की शुरुवात उन्नीसवीं शताब्दि में हुई. नारी आंदोलन लैंगिक असमानता के स्थान पर मानता है कि स्त्री भी एक मनुष्य है. वह दुनिया की आधी आबादी है. सृष्टि के निर्माण में उसका भी उतना ही सहयोग है जितना कि पुरुष का. स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री विमर्श से जन चेतना जागी हैं. अब जल, थल, नभ, अंतरिक्ष हर कहीं महिलायें पुरुषों से पीछे नहीं रही हैं.

विभिन्न भाषाओ के साहित्य में भी महिला रचनाकारों ने महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया है. अनेक महिला रचनाकारों को नोबल पुरस्कार मिल चुके हैं. 2022 का नोबल फ्रेंच लेखिका एनी एनॉक्स को मिला है. 82 वर्षीय एनॉक्स साहित्य का नोबेल पाने वाली सत्रहवीं महिला हैं.पूरी दुनियां में हर साल आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य की पंक्ति है कि “दिवस कमजोरों के मनाए जाते हैं, मजबूत लोगों के नहीं. “ सशक्त होने का आशय केवल घर से बाहर निकल कर नौकरी करना या पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना भर नहीं है. वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता साहित्य और खास कर किसी पर व्यंग्य कर सकने की क्षमता और स्वतंत्रता में निहित है. भारत में ऐसी ढ़ेर विसंगतियां हैं जिनसे सीधे तौर पर महिलायें प्रभावित होती हैं, उदाहरण के लिये सबरीमाला या अन्य धर्म के स्थलों पर महिलाओ के प्रवेश पर रोक, धर्म-जाति के गठजोड़, रूढ़ि व अंधविश्वास ने महिलाओं को लगातार शोषित किया है. इन मसलों पर जिस तीक्ष्णता से एक महिला व्यंग्यकार लिख सकती है पुरुष नहीं. कहा गया है जाके पांव न फटे बिवाई बा क्या जाने पीर पराई. किंतु विडम्बना है कि लम्बे समय तक व्यंग्य पर पुरुषों का एकाधिकार रहा है. यह और बात है कि लोक जीवन और लोकभाषा में व्यंग्य अर्वाचीन है. सास बहू, ननद भौजाई के परस्पर संवाद या, बुन्देलखण्ड, मिथिला, भोजपुरी में बारात की पंगत को सुस्वादु भोजन के साथ हास्य और व्यंग्य से सम्मिश्रित गालियां तक देने की क्षमता महिलाओ में ही रही है. हिमाचल में ये विवाह गीत सीठणी काहे जाते हैं जिनमें यहि भाव भंगिमा और व्यंग्य सजीव होता है. साहित्यिक इतिहास में भक्ति आंदोलन के समय में महिला रचनाकारों ने खूब लिखा, मीरा बाई की रचनाओ में व्यंग्य के संपुट ढ़ूंढ़े भी जा सकते हैं.

आज साहित्य में व्यंग्य स्वतंत्र विधा के रूप में सुस्थापित है. समाज की विसंगतियों, भ्रष्टाचार, सामाजिक शोषण अथवा राजनीति के गिरते स्तर की घटनाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से तंज किया जाता है. लघु कथा की तरह संक्षेप में घटनाओं पर व्यंग्य होता है, जो हास्य, और आक्रोश भी पैदा करता है. विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल से ही साहित्य में व्यंग्य की उपस्थिति मिलती है. चार्वाक के ‘यावद जीवेत सुखं जीवेत, ॠणं कृत्वा घृतम् पिवेत् ’ के माध्यम से स्थापित मूल्यों के प्रति प्रतिक्रिया को इस दृष्टि से समझा जा सकता है. सर्वाधिक प्रामाणिक व्यंग्य की उपस्थिति कबीर के ‘पात्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार’ तथा ‘ कांकर पाथर जोड़ कर मस्जिद दयी बनाय ता चढि़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा भया खुदाय’ आदि के रूप में देखी जा सकती है. हास्य और व्यंग्य का नाम साथ साथ लिया जाता है पर उनमें व्यापक मौलिक अंतर है. साहित्य की शक्तियों अभिधा, लक्षणा, व्यंजना में हास्य अभिधा, यानी सपाट शब्दों में हास्य की अभिव्यक्ति के द्वारा क्षणिक हंसी तो आ सकती है, लेकिन स्थायी प्रभाव नहीं डाल सकती. व्यंजना के द्वारा प्रतीकों और शब्द-बिम्बों के द्वारा किसी घटना, नेता या विसंगितयों पर प्रतीकात्मक भाषा द्वारा जब व्यंग्य किया जाता है, तो वह अपेक्षकृत दीर्घ कालिक प्रभाव छोड़ता है. श्रेष्ठ साहित्य में व्यंग्य की उपस्थिति महत्वपूर्ण है. व्यंग्य सहृदय पाठक के मन पर संवेदना, आक्रोश एवं संतुष्टि का संचार करता है. स्वतंत्रता पूर्व व्यंग्य लेखन की सुदीर्घ परंपरा मिलती है.

भारतेंदु हरिशचंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालकृष्ण भट्ट तथा अन्य लेखकों का बड़ा व्यंग्य समूह था, इनमें बाबू बालमुकुंद गुप्त के धारावाहिक ‘शिव शंभू के चिट्ठे’ युगीन व्यंग्य के दिग्दर्शक हैं. वायसराय के स्वागत में उस समय उनका साहस दृष्टव्य है- “माई लार्ड, आपने इस देश में फिर पदार्पण किया, इससे यह भूमि कृतार्थ हुई. विद्वान, बुद्धिमान और विचारशील पुरुषों के चरण जिस भूमि पर पड़ते हैं, वह तीर्थ बन जाती है. आप में उक्त तीन गुणों के सिवा चौथा गुण राज शक्ति का है. अतः आपके श्रीचरण स्पर्श से भारत भूमि तीर्थ से भी कुछ बढ़कर बन गई. भगवान आपका मंगल करे और इस पतित देश के मंगल की इच्छा आपके हृदय में उत्पन्न करे. ऐसी एक भी सनद प्रजा-प्रतिनिधि शिव शंभु के पास नहीं है, तथापि वह इस देश की प्रजा का, यहां के चिथड़ा पोश कंगालों का प्रतिनिधि होने का दावा रखता है. गांव में उसका कोई झोंपड़ा नहीं, जंगल में खेत नहीं…. हे राज प्रतिनिधि, क्या उसकी दो-चार बातें सुनिएगा?”… इसमें अंतर्निहित कटाक्ष व्यंग्य की ताकत हैं. रचना के इस व्यंग्य कौशल को आधुनिक व्यंग्य काल में परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्र नाथ त्यागी, शंकर पुणतांबेकर, नरेंद्र कोहली, गोपाल चतुर्वेदी, विष्णुनागर जैसे लेखको ने आगे बढ़ाया है.

डा शैलजा माहेश्वरी ने एक पुस्तक लिखी है ” हिंदी व्यंग्य में नारी” इस किताब की भूमिका सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक और संपादक यशवंत कोठारी ने लिखी है. इस भूमिका आलेख में उन्होंने आज की सक्रिय महिला व्यंग्यकारो का उल्लेख किया है. डा प्रेम जनमेजय व्यंग्य पर सतत काम कर रहे हैं, उन्होने पत्रिका “व्यंग्य यात्रा” का जनवरी से मार्च २०२३ अंक ही ” हिन्दी व्यंग्य में नारी स्वर ” पर केंद्रित किया है. मैं लंबे समय से पुस्तक चर्चा करता आ रहा हूं और विगत कुछ वर्षो में प्रकाशित व्यंग्य की प्रायः किताबें मेरे पास हैं, इन सीमित संदर्भों को लेकर कम शब्दों में आज सक्रिय व्यंग्य लेखिकाओ के कृतित्व के विषय में लिखने का यत्न है. यद्यपि मेरा मानना है कि व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप और अवदान पर शोध ग्रंथ लिखा जा सकता है. जिन कुछ सतत सक्रिय महिला नामों का लेखन पत्र, पत्रिकाओ, सोशल मीडिया में मिलता रहा है उनकी किताबों के आधार पर संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास है.

 स्नेहलता पाठक… शंकर नगर, रायपुर की निवासी स्नेहलता पाठक की व्यंग्य की किताबें ” सच बोले कौआ काटे”, द्रौपदी का सफरनामा, एक दीवार सौ अफसाने, प्रजातंत्र के घाट पर, बाकी सब ठीक है, बेला फूले आधी रात, लोनम् शरणम् गच्छामी, व्यंग्यकार का वसीयतनामा, उन्होने उपन्यास लाल रिबन वाली लड़की भी लिखा है, और “व्यंग्य शिल्पी लतीफ घोंघी” किताब का संपादन भी किया है. उन्हें छत्तीसगढ़ की पहली गद्य व्यंग्य लेखिका सम्मान मिल चुका है. वे निरंतर स्तरीय लेखन में निरत दिखती हैं.

सूर्य बाला जी ने बहुत व्यंग्य लिखे हैं, उनकी व्यंग्य की पुस्तकें ” यह व्यंग्य कौ पन्थ”, ‘अजगर करे न चाकरी’, ‘धृतराष्ट्र टाइम्स’, ‘देशसेवा के अखाड़े में’, ‘भगवान ने कहा था’, ‘झगड़ा निपटारक दफ़तर’, आदि चर्चित हैं. वे बड़ी कहानीकार हैं और इतनी ही ज़िम्मेदारी तथा गम्भीरता से व्यंग्य भी लिखती हैं. कलम के पैनेपन से उन्होंने व्यंग्य को भी तराशा है वे व्यंग्य की सारी शर्तों को, अपनी ही शर्तों पर पूरा करनेवाली मौलिकता का दामन किसी भी व्यंग्य रचना में कभी नहीं छोड़तीं. उनका सफल कहानीकार होना उनको एक अलग ही क़िस्म का व्यंग्य शिल्प औज़ार देता है. व्यंग्य के परम्परागत विषय भी सूर्यबाला के क़लम के प्रकाश में एकदम नये आलोक में दिखाई देने लगते हैं। विशेष तौर पर, तथाकथित महिला विमर्श के चालाक स्वाँग को, लेखिकाओं का इसके झाँसे में आने को तथा स्वयं को लेखन में स्थापित करने के लिए इसका कुटिल इस्तेमाल करने को उन्होंने बेहद बारीकी तथा साफ़गोई से अपनी कई व्यंग्य रचनाओं में अभिव्यक्त किया है.

शांति मेहरोत्रा ने भी काफी लिखा है. वे पिछली सदी के पाँचवें-छठे दशक में सामने आईं कवयित्री, कथाकार, लघुकथा और व्यंग्य की सशक्त हस्ताक्षर रही हैं. ठहरा हुआ पानी उनका नाटक है

सरोजनी प्रीतम की हंसिकाएं काव्य भी खूब पढ़ी गयीं. लौट के बुद्धू घर को आये, श्रेष्ठ व्यंग्य, सारे बगुले संत हो गये आदि उनकी चर्चित पुस्तके हैं.

समीक्षा तैलंग.. मुझे स्मरण है तब मैं अपने पहले वैश्विक व्यंग्य संग्रह ” मिली भगत” पर काम कर रहा था. इंटरनेट के जरिये अबूधाबी में समीक्षा तैलंग से संपर्क हुआ. फिर जब उन्होंने उनकी पहली किताब छपवाने के लिये पान्डुलिपि तैयार की तो ” जीभ अनशन पर है ” यह नामकरण करने का श्रेय मुझे ही मिला, इस किताब में मेरी टीप उन्होने फ्लैप पर भी ली है. उसके बाद उनकी दूसरी किताब व्यंग्य का एपीसेंटर, संस्मरण की किताब कबूतर का केटवाक आदि आई हैं. वे निरंतर उत्तम लिख रही हैं.

मीना अरोड़ा हल्द्वानी से हैं. उन्होने पुत्तल का पुष्प बटुक व्यंग्य उपन्यास लिखा है, जिसकी चर्चा करते हुये मैने लिखा है कि “पुत्तल का पुष्प वटुक ” बिना चैप्टर्स के विराम के एक लम्बी कहानी है.जो ग्रामीण परिवेश, गांव के मुखिया के इर्द गिर्द बुनी हुई कथा में व्यंग्य के संपुट लिये हुये है. उनकी कविताओ की किताबें “शेल्फ पर पड़ी किताब” तथा ” दुर्योधन एवं अन्य कवितायें ” पूर्व प्रकाशित तथा पुरस्कृत हैं. मीना अरोड़ा की लेखनी का मूल स्वर स्त्री विमर्श है.

डा अलका अग्रवाल सिंग्तिया, का “मेरी तेरी सबकी” व्यंग्य संग्रह प्रकाशित है, इसके सिवा अनेक सहयोगी संग्रहों में उन्होने शिरकत की है, उनका उल्लेख इस दृष्टि से महत्व रखता है कि उन्होने हाल ही परसाई पर पी एच डी मुम्बई विश्व विद्यालय से की है.

अनिला चारक जम्मू कश्मीर से हैं. जम्मू कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने इनके कविता संग्रह ‘नंगे पांव ज़िन्दगी’ को बेस्ट बुक के अवार्ड से सम्मानित किया है. इनकी व्यंग्य की पुस्तक ‘मास्क के पीछे क्या है’ प्रकाशित हुई है.

अनीता यादव का व्यंग्य संग्रह ” बस इतना सा ख्वाब है ” आ चुका है, इसके सिवा कई संग्रहो मे सहभागी हैं तथा फ्री लांस लिखती हैं.

चेतना भाटी – साहित्य की विभिन्न विधाओ व्यंग्य – लघुकथा – कहानी – उपन्यास, कविता में लिखने वाली श्रीमती चेतना भाटी की अब तक कई कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं. जिनमें व्यंग्य संग्रह – दिल है हिंदुस्तानी, दुनिया एक सरकारी मकान है, विक्रम – बेताल का ई – मेल संवाद प्रमुख हैं. इसके सिवाय कहानी संग्रह – एक सदी का सफरनामा, नए समीकरण, जब तक यहाँ रहना है, ट्रेडमिल पर जिंदगी, एवं लघुकथा संग्रह – उल्टी गिनती, सुनामी सड़क, खारी बूँदें और उपन्यास – चल, आ चल जिंदगी, चंद्रदीप, बिग बॉस सीजन कोरोना प्रकाशित है.

सुनीता शानू…एक व्यंग्य संग्रह. “फिर आया मौसम चुनाव का(प्रभात प्रकाशन-1915)”, एक कविता संग्रह…मन पखेरू फिर उड़ चला (हिंद युग्म-1913), कई सांझा कविता एवं व्यंग्य संग्रह, वे पुरानी हिन्दी ब्लागर हैं.

डा नीरज सुधांशु.. आप वनिका प्रकाशन की संस्थापिका हैं. लिखी तो व्यथा कही तो लघुकथा आदि उनकी कृतियां हैं, मूलतः लघुकथा लिखती हैं जिनमें व्यंग्य के संपुट पढ़ने मिलते हैं. वे पेशे से डाक्टर हैं.

सीमा राय मधुरिमा का व्यंग्य संग्रह ” खरी मसखरी”, ” ब्लाटिंग पेपर” डायरी लेखन और कविता संग्रह मुखर मौन तथा मैं चुनुंगी प्रेम आ चुके हैं.

डा शशि पाण्डे,किताबें हैं चौपट नगरी अंधेर राजा (संग्रह), मेरी व्यंग्य यात्रा (संग्रह), व्यंग्य की बलाएं (संपादन), बकैती गंज ( हास्य साक्षात्कार संपादन)

नीलम कुलश्रेष्ठ.. महिला चटपटी बतकहियाँ (व्यंग्य संग्रह) के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करती हैं.

कीर्ति काले का संग्रह “ओत्तेरेकी” तैंतीस व्यंग्य लेखों का संकलन है. वे व्यंग्य जगत में जानी पहचानी लेखिका हैं.

वीणा वत्सल सिंह प्रतिलिपि डाट काम पर जाना पहचाना सक्रिय नाम हैं वे कहानियां लिखती हैं और अपने लेखन में व्यंग्य प्रयोग करती हैं.

नुपुर अशोक… पचहत्तर वाली भिंडी उनका व्यंग्य संग्रह है और मेरे मन का शहर उनकी कविता की प्रकाशित पुस्तकें हैं.

आरिफा एविस अपने व्यंग्य उपन्यास नाकाबन्दी के संदर्भ में लिखती हैं ” पिछले दिनों कश्मीर में जो हुआ उसे लेकर भारतीय मीडिया की अलग-अलग राय है. ऐसे में कश्मीर के जमीनी हालात को करीब से देखना, जहाँ फोन नेटवर्क बंद हो, कर्फ्यू लगा हुआ हो एक मुश्किल काम था. मैं कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर लेख, व्यंग्य, कहानी लिखने की सोच रही थी लेकिन उपरोक्त माध्यमों से पूरी बात कहना बड़ा ही मुश्किल था. इसलिए मैंने कश्मीर के नये हालात और उनसे उपजी कश्मीर की राजनीतिक, आर्थिक और मनोस्थिति बयान दर्ज करते हुए इसे उपन्यास की शक्ल में लिखा है. मास्टर प्लान उनका एक और उपन्यास है. राजनीतिक होली, जांच जारी है उनके व्यंग्य संग्रह हैं.

अनीता श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह – बचते- बचते प्रेमालाप, कविता संग्रह- जीवन वीणा, कहानी संग्रह- तिड़क कर टूटना, बालगीत संग्रह- बंदर संग सेल्फी छप चुके हैं. वे संभावनाशील व्यंग्यकार हैं.

अंशु प्रधान का व्यंग्य संग्रह हुक्काम को क्या काम, उपन्यास रक्कासा और कहानी संग्रह कफस प्रकाशित है.

इंद्रजीत कौर का संग्रह ” चुप्पी की चतुराई” प्रकाशित है, मठाधीशी और कठमुल्लापन के विरोध में लिखना साहस पूर्ण होता है. वे स्वयं सिक्ख धर्म से होते हुये भी अपने ही धर्म की कमियों पर बहुत साहस के साथ पंजाबी पत्रिका ‘पंजाबी सुमन ‘ में स्तम्भ लिखती रहीं हैं. उन्होंने एक अन्य व्यंग्य संग्रह ईमानदारी का सीजन, तथा पंचतंत्र की कथायें भी लिखे हैं.

अनामिका तिवारी जबलपुर से हैं…उन का प्रकाशित व्यंग्य संग्रह एक ही है ‘ दरार बिना घर सूना ‘ 2005 में दिल्ली शिल्पायन से प्रकाशित हुआ था. नाटक ‘ शूर्पनखा ‘ भी उन्होंने लिखा है.

अलका पाठक की पुस्तक – किराये के लिए खाली है.

पल्लवी त्रिवेदी पुलिस अधिकारी हैं. उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘तुम जहाँ भी हो’ (कविता-संग्रह)। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रही हैं। लेखन के अतिरिक्त वे यात्राओं, संगीत व फ़ोटोग्राफ़ी का शौक रखती हैं. ‘तुम जहाँ भी हो’ पुस्तक के लिए उन्हें 2020 में मध्यप्रदेश के ‘वागीश्वरी सम्मान’ से सम्मानित किया गया.

साधना बलवटे ने समिक्षात्मक कृति “शरद जोशी व्यंग्य के आर पार ” लिखी है. उनका व्यंग्य संग्रह ” ना काहू से दोस्ती हमरा सबसे बैर ” सदयः प्रकाशित है.

अर्चना चतुर्वेदी का व्यंग्य उपन्यास गली तमाशे वाली बहू चर्चित है.

कांता राय मूलतः लघुकथायें लिखती हैं. जिनमें वे व्यंग्य का सक्षम प्रयोग करती हैं. उनकी विभिन्न विधाओ की कई किताबें प्रकाशित हैं.

शेफाली पाँडे, दलजीत कौर,सक्रिय बहुपठित लेखिकायें हैं. सुषमा व्यास राजनिधि की यद्यपि व्यंग्य केंद्रित किताब अब तक नहीं है पर वे व्यंग्य मंचो पर सक्रिय रहती हैं, मेधा झा स्फुट व्यंग्य लिखती हैं,वे अनेक संग्रहों में सहभागी हैं. सारिका गुप्ता स्फुट व्यंग्य लिख रही युवा व्यंग्यकार हैं, वे कानूनी विषय पर एक किताब लिख चुकी हैं. डा.शांता रानी ने हिंदी नाटकों में हास्य तत्व पुस्तक लिखी है. लक्ष्मी शर्मा मूलतः व्यंग्यकार नहीं हैं पर उनके उपन्यास, एकांकी में व्यंग्य की झलक है.सिधपुर की भक्तिनें, स्वर्ग का अंतिम उतार,उपन्यास, कथा संग्रह आदि लिखे हैं.

डा शैलजा माहेश्वरी ने ” हिंदी व्यंग्य में नारी ” किताब लिखी है. यह पुस्तक हिंदी व्यंग्य में नारी के योगदान पर गंभीर समालोचनात्मक कृति है. बीकानेर की मंजू गुप्ता के संपादन में भी एक पुस्तक व्यंग्य समालोचना पर आई है. जबलपुर में महाविद्यालय में हिन्दी की विभागाध्यक्ष डा स्मृति शुक्ल ने व्यंग्य आलोचना सहित, साहित्यिक समालोचना के क्षेत्र में बहुत काम किया है. उन्हें म प्र साहित्य अकादमी से आलोचना पर पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्होंने ” विवेक रंजन के व्यंग्य समाज के जागरुख पहरुये के बयान ” शोध आलेख लिखा है. स्वाति शर्मा, जबलपुर डा नीना उपाध्याय के निर्देशन में विवेक रंजन के व्यंग्य के सामाजिक प्रभाव पर जबलपुर विश्वविद्यालय से शोध कार्य कर रही हैं. आशा रावत की पुस्तक – हिंदी निबंध-स्वतंत्रता के बाद शीर्षक से प्रकाशित है जिसमें महिला व्यंग्य समालोचना पर भी लिखा गया है.

दीपा गुप्ता ने अब्दुल रहीम खानखाना पर विस्तृत कार्य किया है. उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं. यद्यपि व्यंग्य केंद्रित पुस्तक अभी तक नहीं आई है. इसके अतिरिक्त भारती पाठक, गरिमा सक्सेना, पूजा दुबे, ऋचा माथुर,आदर्श शर्मा, अनीता भारती, विभा रश्मि, जयश्री शर्मा, पुष्प लता कश्यप, निशा व्यास, मीरा जैन, प्रभा सक्सेना, रेनू सैनी, डा निर्मला जैन, उषा गोयल, पूनम डोगरा, नीलम जैन, ललिता जोशी, अर्चना सक्सेना, कुसुम शर्मा, सीमा जैन, विदुषी आमेटा, दीपा स्वामिनाथन, आदि लेखिकायें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सोशल मीडीया प्लेटफार्मस् एवं पत्र पत्रिकाओ में जब तब स्फुट रूप से सक्रिय मिलती हैं. भले ही इनमें से कई पूर्णतया व्यंग्य संधान नहीं कर रही किन्तु अपनी विधा कविता, कहानी, ललित लेख, लघु कथा आादि में व्यंग्य प्रयोग करती हैं.

 व्यंग्य-लोचन पुस्तक में डा.सुरेश महेश्वरी ने रीतिकालीन कवियों के मार्फत उपालम्भ के रूप में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले व्यंग्य को विस्तार दिया है. इसी प्रकार व्यंग्य चिन्तना और शंकर पुणताम्बेकर विषयक पुस्तक में भी काफी विस्तार से महिला व्यंग्य की चर्चायें की गई है. डा.बालेन्दु शेखर तिवारी ने भी महिला व्यंग्य लेखन पर अपने विचार दिए हैं.

अस्तु, सीमित संदर्भों को लेकर कम शब्दों में आज सक्रिय व्यंग्य लेखिकाओ के कृतित्व के विषय में यह आलेख एक डिस्क्लैमर चाहता है, मैने यह कार्य निरपेक्ष भाव से महिला व्यंग्य लेखन को रेखांकित करने हेतु सकारात्मक भाव से किया है, उल्लेख, क्रम, कम या ज्यादा विवरण मात्र मुझे सुलभ सामग्री के आधार पर है, त्रुटि अवश्यसंभावी है जिसके लिये अग्रिम क्षमा. कई नाम जरूर छूटे होंगे जिनसे अवगत कराइये ताकि यह आलेख और भी उपयोगी संदर्भ बन सके.

महिला व्यंग्य लेखन स्वच्छंद रुप से विकसित हो रहा है, और संभावनाओ से भरपूर है. महिला व्यंग्यकार राजनीती, घर परिवार,मोहल्ला, पड़ोस, रिश्ते नाते, बच्चे, परिवेश, पर्यावरण, स्त्री विमर्श, लेखन, प्रकाशन, सम्मान की राजनीति आदि सभी विसंगतियों पर लिख रही हैं. महिला लेखन में विट है ह्यूमर है, आइरनी है, कटाक्ष, पंच आदि सब मिलता है. हर लेखिका की रचनाओं का कलेवर उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता और अनुभव के अनुरूप सर्वथा विशिष्ट है. व्यंग्य लेखन को ये लेखिकायें पूरी संजीदगी से निभाती नजर आती हैं. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि महिला व्यंग्य लेखन में कहीं प्राक्सी नहीं है जैसा महिलाओ को लेकर अन्य क्षेत्रो मे प्रायः होता दिखता है उदाहरण के लिये गांवों में महिला सरपंच की जगह उनके पति भले ही सरपंचगिरी करते मिेलें किन्तु संतोष है कि महिला व्यंग्य लेखन में पूर्ण मौलिकता है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सार्वकालीन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सार्वकालीन ??

मेरा समय

क्षुब्ध है मुझसे,

निरर्थक बिता देने से

क्रुद्ध है मुझ पर,

पर यह केवल

मेरा सत्य नहीं है,

स्वयं को कर्ता समझ कर

जब कभी इस कविता को बाँचोगे,

इसमें प्रयुक्त ‘मेरा’ को

स्वयं पर भी लागू पाओगे,

इसलिए कहता हूँ,

अपने समय का

और हर समय का

सार्वभौम यथार्थ कहती है,

कविता समकालीन होती है,

कविता सार्वकालीन रहती है!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 12:10 बजे,28.4.22

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी ⇒ प्यारा मौसम… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्यारा मौसम।)  

? अभी अभी ⇒ प्यारा मौसम? श्री प्रदीप शर्मा  ?  

प्यार करने वाले मौसम नहीं देखते। काहे की सर्दी, गर्मी बरसात, उनके लिए तो, हर मौसम प्यार का होता है, लेकिन मौसम खुद भी बड़ा प्यारा होता है। हैं ऐसे कई प्रकृति – प्रेमी, जिन्हें मौसम से प्यार होता है। जो मौसम से करते प्यार, वो इंसान से प्यार करने से कैसे करें इंकार।

बच्चे किसे प्यारे नहीं होते ! ठीक बच्चों ही की तरह मौसम भी बड़ा प्यारा होता है। बच्चे अगर शैतान होते हैं, तो मौसम भी बेईमान होता है। अगर कभी कभी बच्चों के मारे नाक में दम होता है, तो मौसम भी किसी बच्चे से कम नहीं। सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार भी नाक में दम नहीं लेने देते। बार बार डॉक्टर के पास जाओ, तो वह भी यही कहता है, मौसम ही ऐसा है। ।

नवजात शिशु जब पहली बार पल्टी खाता है, तो कितनी खुशी होती है। बच्चे बड़े सब, बड़े खुश नज़र आते हैं, आज बबलू ने अपने आप पल्टी खाई। लेकिन जब मौसम एकदम पलट जाता है, तो बड़ा सावधान होना पड़ता है। मौसम हो या इंसान, दोनों का कोई भरोसा नहीं, कब पलटी खा जाए।

जिस तरह बच्चा हर मौसम में प्यारा लगता है, हर मौसम भी हमें बड़ा प्यारा लगता है। लेकिन बदमाशी में भी मौसम, बदमाश बच्चों से बहुत आगे है। अभी कुछ दिनों पहले तक हम सर्दी के कहर से परेशान थे। सूरज का मुंह देखने को तरस गए थे। थोड़ा कोहरा पड़ा, ठंड बढ़ी और बिना किसी बुरी आदत के मुंह से धुआं निकलना शुरू। बच्चे बूढ़े सभी, अलाव के पास नज़र आते थे।।

रोता बच्चा, एक खराब मौसम की तरह होता है। आप एक बार बच्चे को मना सकते हो, मौसम किसी की नहीं मानता। उसे बच्चों की ही तरह मनमानी करने की आदत है। बिगड़े बच्चे को सुधारना इतना आसान नहीं होता, लेकिन मौसम में एक अच्छी आदत है, वह अपने आप सुधर जाता है।

नया वर्ष और नवागत खुशियां लेकर आता है। आजकल मौसम मेहरबान होने लग गया है। आसमान में पतंगें उड़ाने का मौसम आ गया है। अब आपको सूर्य देवता के भी दर्शन होंगे और आसमान भी खुला मिलेगा। अब आप आसानी से खुली हवा में सूर्य नमस्कार कर सकते हो, पतंग उड़ा सकते हो, किसी की पतंग काट सकते हो।।

बहुत प्यारा मौसम है। सबको गले लगाने की इच्छा होती है। तिल गुड़ और मकर सक्रांति का पर्व भी यही संदेश लेकर आता है। मीठा खाएं और मीठा बोलें। बच्चों और मौसम से हम कम से कम इतना तो सीख ही सकते हैं।

बच्चों का स्वभाव बिल्कुल मौसम जैसा होता है। मौसम भी बच्चा ही है। हम कभी उससे परेशान रहते हैं तो कभी वह हमें प्यारा लगने लगता है। बच्चा बनने का मौसम आ गया है। मौसम भी तो बच्चा बन गया है। हम भी बचपना छोड़ें, मौसम की तरह  अपना स्वभाव सुधारें। प्यार लें, प्यार दें। एक प्यारे बच्चे की तरह ही, मौसम भी, बड़ा प्यारा है।।

    ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ – “Don’t blink through” – ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

 

?️ Poetry ?️

 ? – “Don’t blink through” – ? ☆ Shri Ashish Mulay 

What makes you think

that you are not rich enough

have you ever cared

to see what’s near enough

 

Have you ever seen

what he has given

have you ever touched

the necklace he has woven

 

The necklace of constellation

that you don’t care

but it’s mere the stones

that you seek to wear

 

In forests of jades

he makes rubies blossom

in skies of stars

galaxies smile wholesome

 

All of this is for you

but oh you, can’t see through

feel his love, that’s for you

life’s short, don’t blink through!

Photo Credit : Archana Nijapkar

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #136 – लघुकथा – “रहस्य” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक लघुकथा “रहस्य”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 136 ☆

 ☆ लघुकथा- “रहस्य” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’   

अ ने चकित होते हुए कहा, “यह तो चमत्कार हो गया!”

इस पर ब ने कहा, “यह तो होना ही था।”

“मगर कैसे?” अ ने पूछा, “ये हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाते हैं। सोचते हैं कि प्राथमिक शाला के शिक्षक कुछ नहीं जानते हैं। इस कारण नमस्कार तक नहीं करते हैं।”

ब ने कुछ नहीं कहा।

“आपने ऐसा क्या किया जो ये हमारा नमस्कार करके आदर करने लगे हैं।”

“कुछ नहीं। इनका स्वार्थ है इसलिए,” ब ने कहा तो अ ने  पूछा, “क्या स्वार्थ है जिसकी वजह से ये नमस्कार करने लगे हैं।”

“12वीं बोर्ड की परीक्षा में पर्यवेक्षक के रुप में मेरी ड्यूटी लगी हुई है इस कारण,” कहते हुए ब ने अपने मुंह को झटका दिया। मानो नमस्कार रुपी चांटे के दर्द को दूर करना चाह रहा हो, इसलिए अपने मुंह को एक ओर झटके से उचका दिया।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-04-2023

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 158 ☆ बाल गीत – बादल जी हैं बड़े चितेरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 158 ☆

☆ बाल गीत – बादल जी हैं बड़े चितेरे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बादल जी हैं बड़े चितेरे।

आसमान में चित्र उकेरे।।

 

कहीं चलाते घोड़ा गाड़ी

कभी चलाते हल और बैल।

कभी भागते ट्रैक्टर लेकर

करते नित्य अनोखे खेल।।

 

कभी – कभी तो सूर्य को घेरें

जल्दी आकर बड़े सवेरे।।

 

शेर कभी भालू बन जाते

कभी बनें चितकबरे जिराफ।

कभी उड़ें पर्वत के ऊपर

कभी निकालें मुख से भाप।।

 

सोनी , मौनी , जॉनी खुश हैं

जादूगर बादल को  टेरे।।

 

कभी मौसमी वर्षा लाते

खूब बरसते झम – झम – झम – झम।

कभी ठंड में ठंड बढ़ाते

कभी बरसते बिल्कुल कम – कम।।

 

कभी – कभी ओले बरसाते

खूब बर्फ के लगते डेरे।।

 

काम करें वह बड़ी लगन से

बुझती है धरती की प्यास।

पौधे – पेड़ प्रफुल्लित होते

हरी – भरी हो जाती घास।।

 

बिन स्वार्थ के वह तो बरसें

सच में लगते बड़े कमेरे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मराठी भाषा… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

श्री रवींद्र सोनावणी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मराठी भाषा… ☆ श्री रवींद्र सोनावणी ☆

नाही कुणी म्हटलंय

खुशाल इंग्रजी शिका

पण असं कुणी सांगितलंय

मराठी बाहेर फेका ?

 

मराठी मायबोली

तिला मायेचा ओलावा

तिच्या भव्य मंदिराला

नको इंग्रजी गिलावा.

 

बाळ आई बाबा

हा नात्यामधला गाभा

त्याला डॅडी मम्मी पप्पा

काय आणतील का  शोभा?

 

शिरा गेला पोहे गेले

तिथे आला पिझ्झा

नूडल्स आणि चायनीज फूड

यातच वाटते मज्जा

 

शुद्ध स्वच्छ बोला

आणि मराठीच बोला

साऱ्या विश्वामध्ये तिचा

होऊ द्या बोलबाला

 

© श्री रवींद्र सोनावणी

निवास :  G03, भूमिक दर्शन, गणेश मंदिर रोड, उमिया काॅम्पलेक्स, टिटवाळा पूर्व – ४२१६०५

मो. क्र.८८५०४६२९९३

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #159 ☆ संत मीराबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 159 ☆ संत मीराबाई☆ श्री सुजित कदम ☆

कृष्णभक्त मीराबाई

 थोर भक्ती परंपरा

बारा तेराशे भजने

भक्तरस वाहे झरा…! १

 

जन्मा आली संत मीरा

रजपूत कुटुंबात

मातृवियोगात गेले

बालपण   आजोळात…! २

 

सगुणाची उपासक

कृष्ण मुर्ती  पंचप्राण

हरी ध्यानी एकरूप

वैराग्याचे  घेई वाण….! ३

 

एका एका अभंगात

वर्णियले कृष्णरूप

प्रेम जीवनाचे सार

ईश्वरीय हरीरुप….! ४

 

कृष्ण मुर्ती घेऊनी या

मीराबाई वावरली

भोजराज पती तिचा

नाही संसारी रमली..! ५

 

कुल दैवताची पूजा

कृष्णा साठी नाकारली 

कृष्ण भक्ती करताना

नाना संकटे गांजली…! ६

 

अकबर तानसेन

मंत्र मुग्ध अभंगात

दिला रत्नहार भेट

मीरा भक्ती गौरवात…! ७

 

आप्तेष्टांचा छळवाद

पदोपदी  नाना भोग

कृष्णानेच तारीयले

साकारला भक्तीयोग…! ८

 

राजकन्या मीरा बाई

गिरीधर भगवान

भव दु:ख विस्मरण

नामजप वरदान…! ९

 

नाना वाद प्रमादात

छळ झाला अतोनात

वैरी झाले सासरचे

मीरा गांजली त्रासात…! १०

 

खिळे लोखंडी लाविले

दृष्टतेने बिछान्यात

गुलाबाच्या पाकळ्यांनी

दूर केले संकटास…! ११

 

दिलें प्रसादात विष

त्याचे अमृत जाहले

भक्त महिमा अपार

कृष्णानेच तारियले…! १२

 

 लपविला फुलांमध्ये

जहरीला नागराज

त्याची झालीं फुलमाळा

सुमनांचा शोभे साज….! १३

 

गीत गोविंद की टिका

मीरा बाईका मलार

शब्दावली पदावली 

कृष्ण भक्तीचा दुलार..! १४

 

प्रेम साधना मीरेची

स्मृती ग्रंथ सुधा सिंधू

भव सागरी तरला

फुटकर पद बिंदू….! १५

 

भावोत्कट गेयपदे

दोहा सारणी शोभन

छंद अलंकारी भाषा

उपमान चांद्रायण….! १६

 

विसरून देहभान

मीरा लीन भजनात

भक्ती रूप  झाली मीरा

कृष्ण सखा चिंतनात….! १७

 

कृष्ण लिला नी प्रार्थना

कृष्ण विरहाची पदे

भाव मोहिनी शब्दांची

संतश्रेष्ठ मीरा वदे…! १८

 

गिरीधर नागरही

नाममुद्रा अभंगात

स्तुती प्रेम समर्पण

दंग मीरा भजनात…! १९

 

द्वारकेला कृष्णमूर्ती

मीराबाई एकरूप

समाधीस्थ झाली मीरा

अभंगात निजरूप….! २०

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “वाचनवेड…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ “वाचनवेड…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

…नव्याची नवलाई खरच आगळीवेगळीच असते हे काही खोट नव्हे. सगळं कसं अप्रुप, कौतुकाचं. माझं जरा बरं नसणं पण मी नवलाईने एन्जॉय करतेयं. हा आता मोबाईल, वाचन ह्या आवडत्या गोष्टींवर आलाय खरा थोडा अंकुश पण त्याजागी मस्त आराम,लाड कौतुक हे मिळतयं हे पण विसरून चालणार नाही. त्यामुळे कधी नवीन पोस्ट लिहीणं तर कधी जुन्या पोस्ट मध्ये अजून भर टाकून वरणात पाणी घालून वरण वाढवण्यासारखे सुरू आहे. अर्थात नवीन आजाराचं कौतुक पण खूप वाटतयं, त्या औषधांच्या,उपचारांच्या वेळा पाळणे, आज नवीन जागी कुठं दुखतयं कां ह्याचा शोध घेणे,आणि नोकरी वगळून उर्वरित वेळात मस्त आवडता आराम, ताणून देणं छान उपभोगतेयं. डॉ. म्हणलेत एवढी आजाराबाबत सकारात्मकता असल्यामुळे आजार चुटकीसरशी पळतोय,थोडक्यात काय तर हे आरामाचे दिवसही उरकत येताहेत.असो.

…नुकताच वाचनदिन झाला. त्या निमीत्ताने एक लता मंगशकरांवरील द्वारकानाथ सांझगिरी लिखित एक मस्त पुस्तक वाचायला हाती घेतलयं.आता हे पुस्तक हळूहळू सावकाश वाचावे लागणार, पुर्वीसारखे फडशापाडल्यागत वाचन आता करता येणार नाही.

वाचनाचं आणि माझं एक अलवार,सुंदर पण घट्ट जुळलेलं नातं. ना ह्या नात्यात कोणता स्वार्थ ना कुठलाही वेळेचा दुरूपयोग,असलीच तर ती फक्त चांगल्या गोष्टींची वैचारिक देवाणघेवाण. पुस्तक दिनाच्या निमित्ताने ह्या आमच्या अऩोख्या बंधांच्या आठवणींना उजाळा मिळाला.

प्रत्येक पुस्तकाची वेगवेगळीच खासियत असते बघा. काही पुस्तकात समाविष्ट असलेलं कथानक, विषय हा बाजी मारून जातो तर कधी त्या पुस्तकाच्या लेखकाची लेखनशैली भाव खाऊन जाते. कधीकधी हे कथानक पटणारं असतं म्हणून आवडून जातं तर कधीतरी न पटणारं कथानक पण आपण ह्या अँगलने कधी विचारच केला नाही हे शिकवून जातं. काही पुस्तकांतील अलंकारिक,नटवलेली भाषा मेंदूत ठसते तर कधीकधी अगदी सहज साध्या सोप्या भाषेत मांडलेले विचार अगदी आपल्या मनात घर करून राहतात.काही वेळा पुस्तकात ह्या दोन्ही भट्टी एकदम जमून येतात मग तर ते पुस्तक म्हणजे क्या कहना. अगदी हातातून सोडवत नाहीत अशी पुस्तकं.

वाचनासारखी मनं रमवणारी, चांगल्या गोष्टी शिकवणारी,नवनवीन माहितीचे भांडार खुली करून देणारी दुसरी कुठलिही गोष्ट नाही. अर्थातच मी हे म्हणायचं, लिहायचं म्हणून नाही तर स्वानुभवाने मनापासून सांगतेयं.

वाचनाइतका दुसरा चांगला मित्र नाही. फक्त हवा मात्र ह्या मैत्रीचा मनापासून स्विकार, आवडीने जवळीक. फक्त एक नक्की ह्या मित्राची निवड जरा दर्जेदार आणि चोखंदळपणे करावी लागते. आपण जे मनापासून वाचतो नं ते आपल्या मनातून मेंदूपर्यंत थेट झिरपत जाऊन वसतं. ह्या वाचनवेडा वरुन मला वपुंच एक वाक्य आठवलं,”प्रत्येकाला कसलतरी वेड हे हवचं,वेड असल्याशिवाय शहाणी व्यक्ती होऊच शकत नाही”.

जशी झाली बघा अक्षरओळख

तशी हाती आली मस्त अंकलिपी

बघून त्यातील अंक ,अक्षरे आणि चित्रं

गावला मला त्या रुपाने एक सच्चा मित्रं ।।।

 

शालेय अभ्यासक्रमातील पुस्तकं

खरतरं वाटतं होती जराशी निरस,

पण त्यांनीच तर  केले अवघे

सगळ्यांचे उत्तरायुष्य खरे सरस।।।

 

किशोरावस्थेत अभ्यासला इतिहास

वाचनातून उमगले हिंदवी स्वराज्याचे तोरण,

ऐतिहासिक पुस्तके बनली

चढविण्या देशप्रेमाचे स्फुरण ।।।

 

ज्ञानसंपत्ती मध्ये नित्य करावी वृद्धी

पुस्तकांनी बहाल केली आपल्याला समृध्दी

पुस्तकांनीच बहाल केली खरी समृद्धी ।।।

 

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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