हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल कहानी संग्रह ‘जादुई बगीचा ‘ – सुश्री उषा सोमानी ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री उषा सोमानी जी  के बाल कहानी संग्रह जादुई बगीचा” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ बाल कहानी संग्रह ‘जादुई बगीचा’ – सुश्री उषा सोमानी ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

पुस्तक- जादुई बगीचा (बालकहानी-संग्रह)

कहानीकार-  सुश्री उषा सोमानी

प्रकाशक- साहित्यकार, धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 

मोबाइल नंबर 93142 02010

पृष्ठ संख्या- 120

मूल्य- ₹200

समीक्षक ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ समीक्षा- जादुई बगीचे में फूलों से सजी कहानियां☆

आपको कहानी सुनाना आना चाहिए। लिखना अपने आप आ जाता है। कहानी, कहानी सुनाने में छुपी रहती है। कहानी कब मस्तिष्क में चढ़कर बोलने लगती है, कहा नहीं जा सकता हैं। जी हां। आपने ठीक समझा। एक ऐसी ही कहानीकारा है उषा सोमानी जी।

इन्होंने कहानी सुनाते-सुनाते कहानी लिखना शुरू किया। फिर लिखती ही चली गई। जिसकी परिणीति ‘जादुई बगीचा’- बालकहानी संग्रह के रूप में हुई। इस बालकहानी संग्रह में 23 कहानियों का गुलदस्ता सजाकर उन्होंने हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।

बहुत ही सुंदर आकर्षक कवर से सजे इस कहानी संग्रह की बढ़िया कहानी हैं- गुम हुए जुगनूओं की चमक। यह पर्यावरण का संदेश देती हुई बेहतरीन कहानी है। इसमें वर्णित दृश्यांकन का चित्रण बहुत ही बढ़िया किया गया है।

इस संग्रह की दूसरी बढिया कहानी है- फड़फड़ भूत। सरल, सहज और रोचक शब्दों में कही गई यह एक अच्छी कहानी है। इसमें जिज्ञासा है। प्रवाह है। सरलता है और कहानी कहने का बहुत ही रोचक ढंग है।

गिरगिट रेस जीत गया- कहानी में बच्चों की गप को आधार बनाकर एक बहुत ही बढ़िया कहानी लिखी है। इसमें रोचकता और प्रवाह अंत तक बना रहता है।

ओल्ड इज गोल्ड- इस कथानक पर डाइनिंग टेबल के बहाने आपने बहुतसी भावनात्मक यादों को बच्चों के समक्ष रखने में सफलता प्राप्त की है।

नारियल की गवाही-शीर्षक कहानी हमारे मन में पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाती है। इस उत्सुकता में पाठक कहानी को अंत तक पढ़ जाता है। तब उसे मालूम होता है नारियल ने गवाही कैसे दी?

जहां चाह, वहां राह- एक आदिवासी बच्चे की मदद को प्रेरित करती हुई बढ़िया कहानी। बदलाव- कहानी में शरारती प्रवृत्ति को प्रमुखता से उठाया गया है। बच्चे अक्सर स्कूल में शरारत करते हैं। मगर शरारत का आप का प्रयोग अभिनव व नया है।

कुदरत का करिश्मा- में बच्चों की एक अनोखी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है। आजकल बच्चे मुहावरे भूलते जा रहे हैं। उन्हें मुहावरे का अर्थ और मुहावरें याद नहीं रहते हैं। आपने -कुदरत का करिश्मा, कहानी में मुहावरा का अच्छा प्रयोग किया है।

सूझबूझ ने बचाई जान- कहानी में एक यादगार जानकारी अनोखे रूप से दी गई है। इस कारण वह जानकारी स्थाई रुप से दिमाग में बैठ जाती है। आपने इसी का उपयोग करके 108 एंबुलेंस की जानकारी को कहानी में पिरोया है। आपका यह प्रयास अति उत्तम है।

खिल गए रंग- किसी दूसरे के चेहरे पर खुशियों की मुस्कान लाने की शानदार कौशिश है। आज की भागमभाग युग में यह अब नहीं हो पा रहा है। इसी को सीख देती बेहतरीन कहानी के लिए हार्दिक बधाई।

जादुई बगीचा- बच्चे जादू को बहुत पसंद करते हैं। उन्हें खेलना, कूदना और रेस लगाना अच्छा लगता है। इसी भाव को पिरोते हुए आपने अच्छी कहानी कही है।

देख कर जी ललचाए- गिन्नी बिल्ली की यह शुद्ध मनोरंजन कहानी बहुत ही अच्छी बनी है। इससे बच्चों का अच्छा मनोरंजन होता है।

लौट के घर आई राजकुमारी- बच्चों को कल्पना की उड़ान कराती बहुत ही अच्छी कहानी कही है। इसमें परंपरागत रूप से जादू का बहुत ही अच्छा उपयोग किया है।

जलपरी से मुलाकात- इस कहानी में बच्चों में जलपरी से मुलाकात की जिज्ञासा को जागृत किया है। यह होती भी है या नहीं? बहुत कुछ जानने को उत्सुक जगाती कहानी है।

दोहरी फसल- धान की रोपाई के साथ दोस्ती की फसल। एक अनोखा संगम। बहुत बढ़िया कहानी हैं।

महंगी पड़ी शरारत- शरारत को दर्शाती यह कहानी जानदार और जानकारी पूर्ण है। कैटरपिलर और उसके काँटे के बारे में आपने बहुत खूब लिखा है।

हौसले की उड़ान- चिंकी के हौसले की उड़ान को आपने क्रिकेट की कहानी में बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है।

पेड़ों का रसोईघर- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बहुत ही सीधे, सरल सहज व सीधे ढंग में समझाया गया है। यह कहानी की एक बहुत ही बड़ी विशेषता है।

फूल फिर मुस्कराने लगे- परी के द्वारा बगीचे और फूलों को लेकर एक बहुत ही बढ़िया कथानक बुना गया है। इसमें फूलों की चिंता और उनके मनोरंजन को बहुत खूबसूरती से उल्लेख किया गया है।

मिस मुर्गी की दुकान- यह बहुत ही मनोरंजक और दिलचस्प कहानी है। ऐसी कहानियां बच्चे बहुत पसंद करते हैं। मित्र की पहचान- मुसीबत में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। इसी कथानक को लेकर बुनी गई आपकी यह कहानी बिल्कुल सरल, सहज व अच्छी है।

गधे का सपना- अपनी उपयोगिता सिद्ध करने को लेकर लिखी गई बहुत ही अच्छी कहानी। हरेक की अपनी उपयोगिता और सर्व श्रेष्ठता होती है। यही कहानी दर्शाती है। डॉ राधाकृष्णन- डॉक्टर राधाकृष्णन पर शिक्षक दिवस पर लिखी गई सार-संक्षिप्त और बढ़िया कहानी है।

उत्तम आवरण से सजे इस कहानी संग्रह में बीच-बीच में रेखा चित्र दिए गए हैं। उत्तम साजसज्जा एवं त्रुटिरहित छपाई ने कहानी संग्रह की पठनीयता में वृद्धि की है। इस संग्रह के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

26-03-2023

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़,  जिला- नीमच (मध्य प्रदेश), पिनकोड-458226 

मोबाइल नंबर 7024047675, 8827985775

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 153 ☆ बाल कविता – मोर और गुड़िया ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 153 ☆

☆ बाल कविता – मोर और गुड़िया ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

मोर अकेला गुड़िया के सँग

बातें करता बड़ी निराली।

धरा , गगन भी हैं मुस्काए

भगवान कर रहे रखवाली।।

 

गुड़िया बोली प्रिय मोर तुम

मेरे प्यारे दोस्त बने।

कितना सुंदर रूप रंग है

अनुपम अदभुत रंग भरे।।

 

दाना तुमको रोज खिलाऊँ

मुझको नृत्य दिखाओ तुम।

दोनों ही हम भोले – भाले

मीठा गीत सुनाओ तुम।।

 

सैर कराओ बाग बगीचे

सैर कराओ घर – परिवार।

राष्ट्रीय पक्षी तुम हो प्यारे

तुमसे खुश रहता संसार।।

 

मोर बोला यूँ प्यारी गुड़िया

सैर करो मेरे संग – संग।

कहना मानो सभी बड़ों का

मन में भर लो नई उमंग।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कविता… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ कविता… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆ 

धरू पाहता दूर धावते

पुन्हा परतुनी हळूच येते

एकांती तर खूप बहरते

अशी निरागस कविता असते

 

भावार्थाला साद घालते

 साजलेवुनी नटून बसते

चपला होऊन कधी विहरते

अशी निरागस कविता असते

 

शांत मनाने जगा निरखते

सुखदुःखाच्या बिया वेचते

भिजते रुजते मग अंकुरते

अशी निरागस कविता असते

 

परंपराना निवडत बसते

आदर्शना नित्य सजवते

समाजात ती पुन्हा मिरवते

अशी निरागस कविता असते

 

मार्दवतेने विकसीत होते

निर्दयतेवर खूप बरसते

आठवणींचा झुला झुलवते

अशी निरागस कविता असते

 

समतेसाठी किती झगडते

भाव मनातील सदा फुलवते

उन्मादाने  हसते  रडते

अशी निरागस कविता असते

 

ती सत्याचे स्वागत करते

लबाडास पण खूप ठेचते

चिरशांतिचा मार्ग दावते

अशी निरागस कविता असते

 

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #154 ☆ संत तुकाराम महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 154 ☆ संत तुकाराम महाराज… ☆ श्री सुजित कदम 

 माघ मासी पंचमीस

जन्मा आले तुकाराम

जन्मदिन शारदेचा

संयोगाचे निजधाम…! १

 

ऋतू वसंत पंचमी

तुकोबांचा जन्मदिन

जीभेवर ‌सरस्वती

नाचतसे प्रतिदिन…! २

 

साक्षात्कारी संत कवी

विश्व गुरू तुकाराम

संत तुकाराम गाथा

अभंगांचे निजधाम…! ३

 

सतराव्या शतकाचे

वारकरी संत कवी

अभंगात रूजविली

भावनांची गाथा नवी…! ४

 

जन रंजले गांजले

त्यांना आप्त मानियले

नरामधे नारायण

देवतत्व जाणियले…! ५

 

तुकोबांची विठुमाया 

कुणा कुणा ना भावली

एकनिष्ठ अर्धांगिनी

जणू अभंग आवली…! ६

 

सामाजिक प्रबोधन

सुधारक संतकवी

तुकोबांचे काव्य तेज

अभंगात रंगे रवी…! ७

 

विरक्तीचा महामेरू

सुख दुःख सीमापार

विश्व कल्याण साधले

अभंगाचे अर्थसार…! ८

 

केला अभंग चोरीचा

पाखंड्यांनी वृथा आळ 

मुखोद्गत अभंगांनी

दूर केले मायाजाल…! ९

 

एक एक शब्द त्यांचा

संजीवक आहे पान्हा

गाथा तरली तरली

पांडुरंग झाला तान्हा..! १०

 

नाना अग्निदिव्यातून

गाथा  प्रवाही जाहली

गावोगावी घरोघरी

विठू कीर्तनी नाहली…! ११

 

जातीधर्म उतरंड

केला अत्याचार दूर

स्वाभिमानी बहुजन

तुकाराम शब्द सूर…! १२

 

रूजविला हरिपाठ

गवळण रसवंती

छंद शास्त्र अभंगाचे

शब्द शैली गुणवंती..! १३

 

दुष्काळात तुकोबांनी

माफ केले कर्ज सारे

सावकारी पाशातून

मुक्त केले सातबारे….! १४

 

प्रपंचाचा भार सारा

पांडुरंग शिरावरी

तुकोबांची कर्मशक्ती

काळजाच्या घरावरी…! १५

 

कर्ज माफ करणारे

सावकारी संतकवी

अभंगात वेदवाणी

नवा धर्म भाषा नवी…! १६

 

प्रापंचिक जीवनात

भोगियले नाना भोग

हाल अपेष्टां सोसून

सिद्ध केला कर्मयोग…! १७

 

परखड भाषेतून

केली कान उघाडणी

पांडुरंग शब्द धन

उधळले सत्कारणी…! १८

 

अंदाधुंदी कारभार

बहुजन गांजलेला

धर्म सत्ता गुलामीला

जनलोक त्रासलेला…! १९

 

साधी सरळ नी सोपी

अभंगाची बोलगाणी

सतातनी जाचातून

मुक्त झाली जनवाणी…! २०

 

संत तुकाराम गाथा

वहुजन गीता सार

एका एका अभंगात

भक्ती शक्ती वेदाकार…! २१

 

सांस्कृतिक विद्यापीठ

इंद्रायणी साक्षीदार

प्रवचने संकीर्तनी

पांडुरंग दरबार…! २२

 

संत साहित्यांची गंगा

ओवी आणि अभंगात

राम जाणला शब्दांनी

तुकोबांच्या अंतरात. २३

 

साक्ष भंडारा डोंगर

कर्मभूमी देहू गाव 

ज्ञानकोश अध्यात्माचा

नावं त्याचे तुकाराम…! २४

 

सत्यधर्म शिकवला

पाखंड्यांना दिली मात

जगायचे कसे जगी 

वर्णियले अभंगात…! २५

 

युग प्रवर्तक संत

शिवराया आशीर्वाद

ज्ञानगंगा विवेकाची 

तुकोबांच्या साहित्यात…! २६

 

सांप्रदायी प्रवचनी 

नामघोष  ललकार

ज्ञानदेव तुकाराम

पांडुरंग जयकार…! २७

 

नाना दुःख सोसताना

मुखी सदा हरीनाम

झाले कळस अध्याय

संतश्रेष्ठ तुकाराम…! २८

 

तुकोबांच्या शब्दांमध्ये

सामावली दिव्य शक्ती

तुका म्हणे नाममुद्रा

निजरूप विठू भक्ती…! २९

 

नांदुरकी वृक्षाखाली

समाधीस्थ तुकाराम

देह झाला समर्पण

गेला वैकुंठीचे धाम…! ३०

 

फाल्गुनाच्या द्वितीयेला

पुण्यतिथी महोत्सव

संत तुकाराम बीज

अभंगांचा शब्दोत्सव..! ३१

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ कविवर्य ग्रेस ☆ श्री मिलिंद रतकंठीवार ☆

?विविधा ?

☆ कविवर्य ग्रेस ☆ श्री मिलिंद रतकंठीवार ☆

(26 मार्च :स्मृतीदिनानिमित्त)

ग्रेस(फुल)कवी

मला आठवते, स्व आई मॉरिस कॉलेज नागपूरला मराठीत एम ए करीत होती. रोज आई घरी आली की, वैचारिक मेजवानी बाबांसह आम्हाला मिळत असे. ती बाबांचे संस्कृत श्लोक प्रसंगोचीत असत. त्यामुळे आई बाबांचे संवाद हे सुसंस्कारित उच्च दर्जाचे असत. कधी कधी बाबांचे वैदर्भीयन उच्चार, शब्द आईचे पुणेरी उच्चार अन् शब्द यांची जुगलबंदी होत असे. तो अनुभव देखील आम्हा भावंडांसाठी एक संस्कारच होता. बाबांचे लिखाण मी फारसे कधी वाचले नाही. अर्थात गणित, विज्ञान या चौकटीत त्यांच्या साहित्य विषयक जाणिवा किंचित बोथट झाल्या असाव्यात. पण आणीबाणीच्या तुरूंगवासात, गजाआड गणित विज्ञानाच्या चौकटी शिथील झाल्या.

आईला मॉरिस कॉलेज नागपुर येथे द. भि. कुलकर्णी, माणिक गोडघाटे  शिकवित असत. कामठी येथून बस प्रवास करून नागपूरला येऊन शिक्षण घेणाऱ्या एका विवाहितेला विद्यार्थिनी म्हणून आपण शिकवतो, याचे ह्या दोघांना खूप अप्रूप होते. अर्थातच आईचे साहित्य विषयक आकलन, उत्तम होते तेंव्हापासून ग्रेस  आणि दभि या नावांचे गारूड माझ्या मनावर आरूढ झाले. ग्रेस आईला म्हणत की,  तुमचे माझे नाव एकसारखेच आहे.. हो! माझ्या आईचे नाव माणिकच होते. लग्नापूर्वीचे आईचे नाव हिरा होते, बाबांनी ते प्रथेपणे बदलून माणिक केले.. ( परंतु अमूल्य रत्न, हा अर्थ कायम राखूनच)

प्राध्यापक ग्रेस आणि दभी यांची आई आवडती विद्यार्थिनी होती.

तसे माझे शालेय वयच होते ते!

ट ला ट, री ला री जोडून, ओढून ताणून कविता (?) मी करत असे.. एकदा कां कविता लिहिण्याचा निर्णय झाला मी डाव्या बाजूला एकसारखे शब्द (शेखर, ढेकर, येणे, जाणे, गाणे, नाणे, बुध्द वृध्द, सिध्द, बद्ध इत्यादी ) लिहून ते कवितेचे धृपद म्हणून एक लांबलचक कविता (?) लिहित असे.

आईने त्याला बडबड गीता पेक्षा अधिक मानण्यास नकार दिला. कविता तर नाहीच नाही. “अरे, ही काय कविता आहे? ” तेंव्हापासून, काव्य प्रकार हा माझा प्रांत नाही, या निष्कर्षाप्रत मी आलो. माझे शब्द भांडार हे किती अपुरे आहे, हे मला जाणवले. कल्पनेची देखील मर्यादा मला जाणवली. एकदा असाच सॉनेट (सूनित) लिहिण्याचा मी घाट घातला. पण आशय ना विषय, ते आरंभ शौर्य मनातल्या मनातच विरले.  प्राध्यापक कविवर्य माणिक गोडघाटे यांचे विषयी, आई  भरभरून बोलत असे. तेंव्हा एक अगम्य, गूढ, दुर्बोध, शब्द बंबाळ, अनाकलनीय लिहिणारे ( आईच्या शब्दात,  ग्रेसफुल लिहिणारे ग्रेस ) कवी ग्रेस !. ही प्रतिमा माझ्या मनात रुजली. त्यांच्या प्रतिमांची उकल माझ्या क्षमतेच्या परीघा बाहेरची आहे. अनेक समीक्षकांनी त्यांच्या त्यांच्या प्रतिभेने ग्रेस यांच्या प्रतिमांची उकल केली..  ती देखील माझ्या आकलनाच्या पल्याड आहे.

पण त्यामुळे मी अधिकच या कवीच्या, व्यक्तिमत्त्वाच्या प्रेमात पडलो. आज ग्रेस यांचा स्मृतिदिन, शब्दांची उणीव रेषांनी भरून श्रध्दांजली अर्पण करण्याचा हा प्रयत्न !

© श्री मिलिंद रथकंठीवार

पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆☆ रामनवमी दिना निमित्त – कर्तव्यदक्ष, आदर्श, पुरुषोत्तम श्रीराम ☆☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

सौ. विद्या वसंत पराडकर

?विविधा ?

☆ रामनवमी दिना निमित्त – कर्तव्यदक्ष, आदर्श, पुरुषोत्तम श्रीराम ☆☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

भारतीय संस्कृतीचे श्रीराम एक व्यवच्छेदक वैशिष्ट्य आहे.परब्रम्हाचा तो सातवा अवतार आहे.पृथ्वीवर ज्यावेळी अत्याचार माजतो,मानवी जीवन विस्कळीत होते,दैत्याचे तांडव अमर्याद सुरु असते त्यावेळी पृथ्वीला हे  सर्व सहन न होऊन ती गाय रुपाने वैकुंठात जगाच्या पालन कर्त्या कडे जाते.वत्याला विनवणी करते.या संकटातून मला वाचव.तेव्हा दुष्टांचा संहार व सृष्टांचे पालन करण्याकरता प्रभू पृथ्वीतलावर अवतार घेतात. श्रीरामांनी त्रेतायुगात भगवान विष्णूच्या दशावतारात सातव्या क्रमांकावर अवतार घेतला.तो दिवस होता चैत्र शुद्ध नवमीचा.पुष्य नक्षत्र,कर्क रास हा दिवस श्रीरामाच्या जन्माचा होय.भारतीय संस्कृतीच्या एका दैदिप्यमान हिर्याच्या तेजाने सर्व    पृथ्वी चमकून गेली.एका आज्ञाधारक कर्तव्य दक्ष,आदर्श व्यक्तिमत्वाचा जन्म झाला..

त्रेतायुगानंतर व्दापार व नंतर आजचे कलियुग आहे.श्रीराम हे युगपुरूष आहे.रामायणाचा नायक श्रीराम आहे. आजही श्रीराम नवमी ठिकठिकाणी मोठ्या आनंदाने साजरी करतात.

रामायणाच्या कथेचा मध्यवर्ती बिंदू श्रीराम.गुरू वशिष्ठ यांचेकडून विद्या घेऊन पुढे ते विश्र्वास इतरांच्या मग रक्षणासाठी गेले.तेथे त्यांनी असुरांना आपल्या विद्येची चांगलीच चुणूक दाखवली.व आपल्या गुरुचे रक्षण केले.

आज्ञा शिरसावंद्य या न्यायाने आई व वडील यांच्या आज्ञेचे पालन केले.चौदा वर्षाचा वनवास पत्करला व राज्याचा त्याग केला.केवढी ही नि:स्वार्थी वृत्ती.

अंजनीसुत वीर हनुमान हा रामाचा प्रिय भक्त  होता.श्रीरामाच्या संकट काळी तो वेळोवेळी कामास आला. लंकाधिपतीने जेव्हा सीतेचे हरण केले तेव्हा सीतेचा शोध लावण्यात हनुमानाला यश मिळाले.पुढे आपल्या विराट रुपाने लंकादहन केले. असा हा चिरंजीव हनुमान चारी युगात कार्यरत होता. व  आहे.

रावण हे अंहकाराचे प्रतीक असलेला दुष्ट असूर.राम रावण युध्दात आपल्या युध्द नीतीने रावणाला पराभूत केले. ते श्रीरामानेच.

श्रीरामाचे अनेक गुण हे  वाखाणण्यासारखे आहेत.तो एक  अत्यंत प्रजादक्ष राजा, उत्कृष्ठ शासक, कर्तव्य निष्ठ राजा होता. आईवडिलांची आज्ञा पाळणारा आज्ञाधारक पूत्र ,एक पत्नीत्वाचा पुरस्कर्ता होता.एक बाणी,एक वचनी  होता.

शुद्ध व निर्मळ मनाचे श्रीराम होते याचे उदाहरण म्हणजे वनवासातुन परत आल्यावर त्यांनी कैकयीच्या चरणावर प्रथम माथा ठेवला.

आज आपण कलियुगाच्या मध्यावर उभे आहोत.आजचा समाज बदलत आहे.संस्कृतीपासून लांब चालला आहे.संस्कृतीची मुल्ये लोप पावत आहे.

अशा परिस्थितीत भारतीय तत्वज्ञान व मुल्यांची जोपासना करण्यासाठी  युगपुरुषांची गरज आहे.या भवसागरातून तरुन जाण्यासाठी श्रीराम व्यक्तीमत्व ही एक नौका आहे

आजच्या दिनी युगपुरूषाचे स्मरण  कृती युक्त अंत:कर्णाने केल्यास देशासमोर असणार्या बर्याचशा समस्यांचे निराकरण होऊ शकते.

 

© सौ. विद्या वसंत पराडकर

वारजे, पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘भय…’ – भाग – 2 ☆ श्री आनंदहरी ☆

श्री आनंदहरी

?जीवनरंग ?

 ☆ ‘भय…’ – भाग – 2 ☆ श्री आनंदहरी  

का कुणास ठाऊक पण  तिचे ते बोलणं ‘ रात गई, बात गई ‘ अशात मोडणारं नाही असा विचार त्याच्या मनात सारखा येत होता. सारखा तोच विचार त्याच्या मनात घोळत होता. त्याने तो मनोमन अस्वस्थ ही झाला होता. दुसऱ्या दिवशी पहाटे गजर न लावताही त्याला जाग आली. बाबा उठलेले होतेच. ती जागीच आहे असे त्याला वाटलं पण तिच्याशी काहीही न बोलता तो किचनमध्ये गेला आणि चहाचं पातेलं घेऊ लागला.

“ काय चिरंजीव, आज लवकर उठलाय ? … आणि हे काय चिरंजीव ?  तुम्ही चक्क चहा ठेवताय ? अरे कशाला? मी करतो माझा चहा. तू जा झोप जा हवंतर. की चहा घेणार आहेस ? माझ्या हातचा फक्कड चहा घेऊन तर बघ.”

बाबांच्या या वाक्यावर तो हसून काहीतरी बोलून चहाचे आदण गॅसवर ठेवायला वळणार इतक्यात ती आत येत म्हणाली,,

“ हे हो काय? मला नाही का उठवायचं ? जाग आली पण पुन्हा जरा डोळा लागला माझा. सरका बाजूला.. मी असताना तुम्ही कुणी नाही हं काही काम करायचं ..“

“ नको. आज मी करतो…आणि माझ्या हातचा चहा तू पिऊन तर बघ…   तुझ्याइतका चांगला नाही पण तसा बरा करतो हं मी चहा..”

“ खरंच, आज करू दे त्याला चहा. त्याच्या हातचा चहा पिऊन तर बघू ? “

तिने  ‘ नाही हं बाबा..’ म्हणत त्याला बाजूला करून स्वतः चहा केला. बाबा ‘आपल्याला किती चांगली सून मिळालीय.. ‘ अशा विचारानं समाधानानं आणि अभिमानानं तिच्याकडे पहातच राहिले होते.

तो मात्र मनातून अस्वस्थ झाला होता. त्याला तिच्या वागण्याचं कोडे काही सुटेनासे झालं होतं .

बाबा चहा घेऊन फिरायला बाहेर पडले. ती बेडरूममध्ये गेली तरी तो बराच वेळ तिच्या वागण्या-बोलण्याचा विचार करीत तिथंच हॉल मध्ये बसून राहिला होता. तिने बेडरूममधूनच त्याला हाक मारली तसा तो दचकला आणि झटकन आत गेला.

“ कसला विचार करतोयस ?”

“ कसला नाही ..असाच बसलो होतो.”

“ असाच म्हणजे..?  तुला सांगितलं होतं ना मी ..  की मी नाही म्हणले तरी चहा तूच करायचास म्हणून.. मग..? “

“ पण तू कुठे करून दिलास ?… आणि अशी का वागतेस ? माझे काही चुकलंय काय? “

“ लक्षात ठेव..मला गृहीत धरण्याचा, माझ्यावर नवरेपणा गाजवण्याचा विचारही मनात आणू नकोस..”

“ अगं पण मी कधी नवरेपणा गाजवलाय ? मी तसा कधी वागलोय  का तुझ्याशी..?”

“  कधी वागलोय का म्हणजे ? तसे वागायचा विचार आहे की काय ? तसा विचार मनात असेल तर तो काढून टाक मनातून. माझ्याजवळ चालणार नाही ते कधीच. आधीच सांगून ठेवतेय.. “

ती म्हणाली तसे तो काहीच न सुचून तिच्याकडे पहातच राहिला.

” काय रे तुला चारशे अठठ्यांणव कलम माहीत आहे ना ? नसेल तर माहीत करून घे लगेच. “

तो काहीसा दचकला. काहीच प्रत्युत्तर न देता, काहीही न बोलता तिच्याकडे फक्त पहातच राहिला होता. मनात विचारांचे वादळ उठले होते.. त्याला  चारशे आठठयांण्णव कलमच काय इत्तर अनेक गोष्टी या फक्त वाचून, ऐकूनच ठाऊक होत्या. तिच्या वाक्क्याने भयाची एक थंडगार  लाट त्याच्या पूर्ण मनाला गिळून गेली. क्षणभर वाटले,सारं काही बाबांना सांगावं ..पण त्यांचा विश्वास बसेल आपल्या बोलण्यावर..? तिचे बेडरूम बाहेरचं वागणे, बोलणे असे होते की बाबाच काय जगातलं कुणीच त्याच्यावर विश्वास ठेवण्याची सुतराम शक्यताच नव्हती.

बऱ्याचदा ती त्यांच्याशीही चांगली वागायची पण मधूनच कधीतरी  कायदा स्त्रीच्या बाजूने असल्याची जाणीव ती त्याला करून द्यायची. ती कधी कसे वागेल याचा काहीच अंदाज त्याला यायचा नाही. ती अधूनमधून अशी का वागते ? का धमकावते ? याचं कोडं खूप विचार करूनही त्याला सुटत नव्हतं. आपण तिचा विश्वास संपादन करायला कमी पडलो काय?  हा प्रश्न  त्याच्या मनात रुंजी घालत होता. त्याला तिचे ते वागणं सहन होत नव्हते आणि त्याला त्याबद्दल कुणाला सांगताही येत नव्हतं.. त्याचा आत्मविश्वासही दिवसेंदिवस कमी होत चालला होता.. तो मनोमन खचत चालला होता.

               क्रमशः…

© श्री आनंदहरी

इस्लामपूर जि. सांगली – मो  ८२७५१७८०९९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ सुंदरता… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆

? मनमंजुषेतून ?

☆ सुंदरता… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆ 

स्त्रियांना नेहमी असं वाटतं की, 

आपण हे नेसल्यावर सुंदर दिसू, ते घातल्यावर सुंदर दिसू. 

एक जाहिरात आहे, त्यात विनोदकन्या भारती म्हणते, “ मुझे कभी ब्यूटिफुल बनना ही नहीं था, क्यों कि मैं हमेशा से जानती थी की मैं ब्यूटिफुल हूँ. सिर्फ अपनी सुंदरता को मेन्टेन करती हूँ। “ 

फार छान ओळी आहेत या कि, मला नेहमीच माहीत होतं, मी सुंदर आहे.

आपल्यापैकी किती जणींना हे माहीत असतं?

आपल्यातलं सौंदर्य कशात आहे, हेच आपल्याला माहीत नसतं. कारण सौंदर्य म्हणजे काय, हेच आपल्याला कळत नाही. 

आपले सौंदर्याचे आणि प्रेमाचे मापदंड आपण लहान किंवा मोठ्या पडद्यावरच्या तारकांकडे पाहून ठरवत असतो.

जाहिरातीतल्या बाईचा मेकअपने झाकलेला हजार वॅटमध्ये चमकणारा चेहरा म्हणजे आपण सौंदर्य समजतो. पाठ उघडी टाकणारं प्रचंड मोठ्या गळ्याचं ब्लाउज म्हणजे सौंदर्य समजतो.

पण तुम्ही कधी आपल्या बाळाला पाजताना स्वत:चा चेहरा पाहिलाय का? वात्सल्यानं चमकणाऱ्या त्या चेहऱ्याचं सौंदर्य उजळण्यासाठी कधीच हजार वॅटच्या फोकसची गरज लागत नाही. 

दिवसभर घरकाम करून थकल्यावर संध्याकाळी तोंडावर पाणी मारून साध्या टॉवेलने पुसलेला चेहरा पाहिलाय का? त्यावरचे स्वत:च्या जबाबदाऱ्या व्यवस्थित पार पाडल्यामुळे येणारे कर्तव्यपूर्तीचे भाव किती सुंदर दिसतात, ते कधी न्याहाळलेत का? 

सकाळी उठून सडा-रांगोळी झाल्यावर स्वत:च काढलेली रेशीमरेषांची रांगोळी पाहिली तर तुम्हाला तुमच्या बोटातली सुंदरता दिसेल. 

स्वच्छ-सुंदर आवरलेलं स्वयंपाकघर तुम्हाला तुमच्या गृहिणीपणाचं सौंदर्य सांगेल.

तुम्ही शिक्षिका असाल तर तुमचं सौंदर्य फळ्यावर नीटपणे लिहिलेल्या अक्षरात आहे. विषयाचं आकलन झाल्यावर दिसणारे मुलांचे आनंदी चेहरे ही तुमची सुंदरता आहे. 

तुम्ही इंटिरिअर डेकोरेटर असाल तर तुम्ही सजावट केलेल्या जागेतून तुमचं सौंदर्य डोकावेल. 

तुम्ही संपादक असाल तर तुम्ही निवडलेले लेख आणि त्यांची सुबक मांडणी तुमचं सौंदर्य आहे. 

तुम्ही विणलेल्या भरघोस गजऱ्यात तुमचं सौंदर्य आहे. तुम्ही काढलेल्या अक्षरात तुमचं सौंदर्य आहे.

सौंदर्य कपड्यात नाही, कामात आहे.

सौंदर्य नटण्यात नाही, विचारात आहे. 

सौंदर्य भपक्यात नाही, साधेपणात आहे.

सौंदर्य बाहेर कशात नाही, मनात आहे.

आपण करत असलेलं प्रत्येक काम म्हणजे सौंदर्याचं सादरीकरण असतं. आपल्या कृतीतून सौंदर्याची निर्मिती करता आली पाहिजे.

प्रेमाने बोलणं म्हणजे सुंदरता, 

आपलं मत योग्य रीतीनं व्यक्त करता येणं म्हणजे सुंदरता.

नको असलेल्या गोष्टीला ठाम नकार देण्याची हिंमत म्हणजे सुंदरता. 

दुसऱ्याला समजावून घेणं म्हणजे सुंदरता.

आपल्या हाती आलेला प्रत्येक क्षण रसरशीतपणे जगण्यात खरी सुंदरता आहे. 

आपल्या वर्तनातून, विचारातून आपलं सौंदर्य बाहेर येऊ द्या.

मेरी कोमचं सौंदर्य तिच्या ठोशात आहे. इंदिरा गांधींचं सौंदर्य कणखर निर्णयक्षमतेत राहिलं आहे. 

आपण करत असलेल्या कामात कौशल्य प्राप्त झालं की, आत्मविश्वास मिळतो. आत्मविश्वास आला की, आत्मसन्मानाची जाणीव येते. अशी आत्मविश्वासाने जगणारी बाई आपोआप सुंदर दिसते. 

गौरवर्ण, सडपातळ बांधा, काळे-दाट केस या वर्णनातून आता बाहेर पडलं पाहिजे. त्याऐवजी असेल तो वर्ण, दणकट बांधा, सुदृढ मन आणि संतुलित विचार या मापदंडाचा विचार करून पाहूया. 

तुम्ही जशा जन्माला आल्या आहात तशाच सुंदर आहात, 

ही खूणगाठ मनाशी बांधून टाका. 

जशा आहात तशाच अगदी सुंदर आहात, याची खात्री बाळगा. 

आपल्यातील सुंदरता ओळखून स्वत:वर विश्वास ठेवायला शिका. 

म्हणजे आपलं सौंदर्य अजूनच खुलेल. 

लेखक – अज्ञात

प्रस्तुती : सुश्री मीनल केळकर 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ अतिशय घातक असणारी कबुतर विष्ठा… श्री योगेश पराडकर ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆

?इंद्रधनुष्य?

 ☆ अतिशय घातक असणारी कबुतर विष्ठा… श्री योगेश पराडकर ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆

कबुतर हा पक्षी दिसायला खूप साधा असला तरी तो आपल्याला फक्त ६ महिन्यात मरणाच्या दारात उभे करू शकतो.– यावर विश्र्वास बसत नाही ना…! पण हे खरे आहे.

२ आठवड्यापूर्वी कबुतर विष्ठा या कारणे, ठाणे इथे राहणारा माझा जवळचा मित्र मी गमावला. मित्र राहत असलेल्या फ्लॅटच्या खिडकीखाली ग्रिलमधे AC च्या duct unite च्या आजूबाजूस कबुतर निवास आणि विष्ठा जवळ जवळ 3 महिने होती. दुर्लक्षित कबुतरे, अंडी पिल्ले, काटक्या- विष्ठा यात राहत होती.

AC मधून जी हवा घरात येते, त्यातून सुकलेल्या विष्ठेमधील सूक्ष्म जंतूयुक्त धूळ घरात जाईल याची तिळमात्र कल्पना त्या कुटुंबाला नव्हती.

कबुतर उडते तेव्हा ही विष्ठा धूळ AC च्या बाहेरच्या outlet च्या मागच्या बाजूने, जाळीमार्गे आतमधे जाते आणि तेथून आत येणाऱ्या पाईपमधून हे जंतू बंद AC तून आत प्रवेश करतात. त्यामुळे खिडक्या घट्ट बंद असतील तरी जंतूसंसर्ग होतोच.

हे जंतू पाणी, फिनेल, एसिड, डेटॉल यामधेही जिवंत राहतात हे नवल आहे… रिपोर्टमधे हे लिहिलेले होते.

Report मधे लिहिलेली लक्षणे —- अशक्तपणा, सुका खोकला, ताप, पोटशुल, सहजच घाम येणे,

अंगाला सूज येणे–जाणे, ऑक्सिजन लेव्हल कमी होणे, चिडचिड.होणे. एक विशेष लक्षण म्हणजे अचानक श्वास लागून हायपर होणे, ही आहेत.  हे सगळे त्या  report मधे वाचून हादरलोच.

जेमतेम पंचेचाळीशीचा  मित्र २ महिने आजापणामुळे त्रस्त होऊन, एक्सरे आणि इतर टेस्ट करायला गेला.

(योगायोग असा की ज्या डॉक्टरकडे ट्रीटमेंट साठी गेला आणि उपचार चालू केले, ते डॉक्टर कपूर हे हल्लीच स्वतः वृद्धापकाळाने निवर्तले).

—अक्यूट हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस हे रोगाचे निदान झाले. (हा रोग कबुतर विष्ठा यापासून होतो)

Doctor Kapoor हा दुवा  गेल्यावर उपचार पद्धती आणि हॉस्पिटल दोन्ही बदलावी लागली.

Lungs आणि श्वास नलिका पूर्ण infected झाली होती… Report आले त्यात 60 % lungs निकामी झाले होते हे नमूद केले होते. चौकशी करता या विषया संदर्भात माहिती समोर आली. पण फार उशीर झाला होता आणि “यावर काहीच उपचार नाही पेशंट जगेल तितका जगवा” हे डॉक्टर जेव्हा म्हणाले, तेव्हा तो मित्र हादरला.

एक्यूट हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस मधे नक्की होते काय…???—– Lungs मधील आतला भाग आकुंचित होत जातो आणि कार्यक्षमता हळूहळू कमी होत जाते. रुग्णाला ऑक्सिजन द्यावा लागतो. विशेष म्हणजे हा रोग लवकर समजत नाही. प्रतिकार शक्ती कितीही चांगली असो, effect होतोच.

Lungs प्रत्यारोपण ही सहज होऊ शकले नाही. कारण उपलब्धता नाही आणि costly आहे.

शेवटी म्हणता म्हणता मागील आठवड्यात त्या मित्राला मृत्यूने गाठले. आम्ही सर्व मित्र २ मास्क नाकातोंडावर बांधून वैकुंठ यात्रेत सामील झालो.

— कबुतर हा शांतीदुत नसून यमदुत आहे हे मित्राच्या मृत्यूने शाबीत केले.

आता त्या घरातील सर्व व्यक्तींना वर सांगिल्याप्रमाणे फूफुसाचा रोग कमी जास्त प्रमाणात झालेला आहे.

उपचार सुरू आहेत. पण पुढचा पूर्ण जन्म हा श्वसनाच्या रोगाने त्रस्त असलेले ते उर्वरित कुटूंब

मी पाहिले.— वाईट वाटले पण क्षुल्लक कबुतर किती मोठा घात करू शकते यावर विश्र्वास बसला…

— SO साद। BUT REALITY.

या विषयसंदर्भात जाणकार व्यक्तीकडून माहिती घेऊन हे लिहिण्याचा खटाटोप केला…कबुतर या विषयास थारा देऊ नये…कारण इतर पक्षी प्राणी हे पाणी आणि माती mud bath याची आंघोळ  करतात म्हणून ते स्वच्छ असतात. पण कबुतर हे फार गलिच्छ आहे. त्यामुळे रोग संकर पूर्ण अंगभर घेऊन ते वावरत असते. काळ्या रंगाच्या पिसवा कबुतर विष्ठेतून निर्माण होतात, आणि त्या सुईच्या टोकापेक्षा सूक्ष्म असतात.

मुंबई (zoo) प्राणी संग्रहलय आणि पुणे सर्प उद्यान मधील माझे मित्र डॉक्टर आणि डॉक्टर मैत्रीण यांनी कबुतर याबाबत अधिक खुलासा केला. इतर पशू पक्षी हे दाणे आणि नैसर्गिक खाद्य खात असल्याने त्यांच्या मल मूत्र यातून संसर्ग होत नसतो आणि ती विष्ठा खत म्हणून झाडाला पूरक असते.

पण कबुतर, वटवाघूळ, गिधाड, तरस, आणि कमोडो द्रेगोन यांची लाळ आणि विष्ठा Acidic आणि घातक असते.

— शक्यतो कबुतर आसपास वास्तव्य करणार नाही  हाच यावर एक जालीम उपाय आहे.

— अपने गुलाब चाचा की प्यारीसी देन शांतीदूत होकर मौत को बुलावा देती है…यह अपने आंखों से देखा है… मामुली कबुतर से जुडी इक आखों देखी सत्य घटना…

लेखक : योगेश पराडकर.

संग्राहक : माधव केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ “काही सुविचार” ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ “काही सुविचार” ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

The correct temperature of home is maintained by warm hearts and cool minds, not by heaters, and air conditioners.

सगळ्यांचे सगळे करूनही सगळे ज्याच्यावर नाराज होत असतात, तोच घरातील खरा कर्ता असतो.

आपल्या सावलीपासून  आपणच शिकावे, कधी लहान तर कधी मोठे होऊन जगावे, प्रत्येक नाते मात्र आपुलकीने जपावे.

जीवनात थोडेसे प्रेम, थोडीशी आपुलकी, थोडीशी काळजी आणि थोडीसी विचारपूस एवढे जरी मिळाले तरी आयुष्य सुखावह होते.

माझे म्हणून नाही तर आपले म्हणून जगता आले पाहिजे, जग  कितीही चांगले असले तरी आपल्याला चांगले वागता आले पाहिजे.

जिंदगी तब अधिक खूबसूरत बन जाती, जब अपनी जिंदगी के कुछ पल हम दूसरों की खुशी के लिये जिये ।

कभी कभी मजबूत हाथों से पकडी हुई उंगलियां भी छूट जाती है, क्योंकि रिश्ते ताकत से नही, दिल से निभाये जाते है ।

संग्राहिका : सौ उज्ज्वला केळकर 

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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