हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 150 ☆ क्यों दाता बनें विधाता…? ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆
श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “क्यों दाता बनें विधाता...?”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 150 ☆
☆ क्यों दाता बनें विधाता...? ☆
प्रचार- प्रसार के माध्यमों से लोक लुभावन सपने दिखाना तो एक हद तक सही हो सकता है, किंतु मुफ्त में सारी सुविधाओं को देने से कामचोरी की आदत पड़ जाती है। जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, अशक्त हैं उन्हें मजबूत करने के प्रयास हों। पर जाति, धर्म, अल्पसंख्यक के नाम पर समाज को विभाजित करके सुविधाओं का...