मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ सेवा परमो धर्म: – लेखक – श्री विनीत वर्तक ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ सेवा परमो धर्म: – लेखक – श्री विनीत वर्तक ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

१४ जानेवारी २०२३ चा दिवस होता. एकीकडे देश मकरसंक्रांती साजरी करण्याची तयारी करत होता. तर तिकडे मेघा इंजिनिअरिंग इंडस्ट्री लिमिटेडचे कामगार झोझीला बोगद्याचे काम करत होते. संध्याकाळी साधारण ५:४० च्या सुमारास अचानक हिमस्खलन झालं, त्यासोबत तिकडे काम करणारे तब्बल १७२ कामगार त्यात अडकले. त्यांचा संपूर्ण जगाशी संपर्क तुटला. 

हे हिमस्खलन इतकं भीषण होतं की सुटकेचा कोणताच मार्ग दिसत नव्हता. परिस्थितीचं गांभीर्य आणि तब्बल १७२ लोकांच्या जीवाची जबाबदारी ओळखून मेघा इंजिनिअरिंग इंडस्ट्री लिमिटेडच्या प्रोजेक्ट इंजिनिअरने तात्काळ भारतीय सेनेशी संपर्क साधला. समोर आलेल्या प्रसंगाची व्याप्ती लक्षात घेऊन भारतीय सेनेने तात्काळ प्रशिक्षित सैनिकांची एक तुकडी रवाना केली. त्या भीषण परिस्थितीत संपूर्ण बर्फातून आपल्या जीवाची तमा न बाळगता त्यांनी रात्रीच्या अंधारात त्या १७२ लोकांना बर्फातून शोधून काढलं. त्यांना शांत करून भारतीय सेना आपल्या  ‘सेवा परमो धर्म:’ या आपल्या कर्तव्यात कुठेही कमी पडणार नाही, असं सांगून आश्वस्त केलं. 

१५ जानेवारीचा सूर्य उगवताच भारतीय सेनेच्या आसाम रायफल्स रेजिमेंटने त्या अडकलेल्या कामगारांना सोडवण्यासाठी युद्ध पातळीवर मिशन हाती घेतलं. अश्या वातावरणाची सवय असलेले प्रशिक्षित स्पेशल कमांडो, हत्यारे आणि प्रशिक्षित कुत्रे त्यांनी या मिशनसाठी रवाना केले. त्याशिवाय यात अडकलेल्या लोकांच्या तब्यतेची काळजी घेण्यासाठी मेडिकल टीमही पाठवण्यात आली. 

भारतीय सेनेने एकाही कामगाराला इजा न होऊ देता तब्बल १७२ कामगारांची त्या भीषण परिस्थितीतून सुखरूप सुटका केली. एकीकडे देश जिकडे संक्रांतीचा सण साजरा करत होता, तिकडे दुसरीकडे भारतीय सेनेने १७२ जणांच्या जीवावर आलेल संकट दूर केलं होतं. 

भारतीय सेनेच्या त्या अनाम वीर सैनिकांना माझा कडक सॅल्यूट… 

जय हिंद!!!

लेखक – श्री विनीत वर्तक

( फोटो शोध सौजन्य :- गुगल )

संग्रहिका – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ ATM बद्दल थोडंसं — ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ ATM बद्दल थोडंसं — ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

प्लीज हे वाचा…

तुम्हाला माहित आहे का?

जर का तुमच्या एटीएम (ATM) कार्डासहीत तुमचं कोणी अपहरण केलं, तर काही काळजी करू नका !

 तुम्ही त्यांना अजिबात विरोध करू नका,

अपहरणकर्त्याच्या सांगण्यानुसार ATM मशीनमध्ये तुमचं ATM कार्ड टाका. तुम्ही काळजी करण्याचं

काहीही कारण नाहीये .फक्त तुम्ही अपहरणकर्ते सांगतील, त्याप्रमाणे पैसे काढण्याचे काम करा !

—-पण तेव्हा, आपल्या ATMचा PIN उलटा टाईप करा—

समजा, जर का आपला PIN १२३४ असेल, तर त्या जागी ४३२१ असा टाईप करा.

आणि मग त्यानंतर पाहा काय होतं ते. तुम्ही PIN क्रमांक उलटा टाईप केल्याने ATM मशीनला कळेल की,

तुम्ही काही तरी अडचणीत आहात. त्यामुळे तुम्ही फारच अडचणीत आहात हे जाणवल्याने ATM मशीन तुमच्या बँकेला आणि जवळच्या पोलीस स्टेशनलाही सूचना देईल. आणि त्याचबरोबर ATM चा बँकेचा दरवाजा देखील लगेचच बंद होईल.—- आणि अपहरणकर्त्याला काहीही न कळता तुम्ही सुरक्षितरित्या वाचू शकता.

 

ATM मध्येपहिल्यापासूनच सिक्युरिटीबाबत अशी सोय करण्यात आली आहे. याबाबत फारच थोड्या लोकांना माहिती आहे — तर तुम्ही अपहरणकर्त्याला सहजपणे पकडून देऊ शकता.

तुमच्या मित्रांना पण ह्याबद्दल सांगा…

From…Mumbai Police, Maharashtra Police

संग्राहिका :सौ. गौरी गाडेकर

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – आत गोडवा वर काटेरी – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?आत गोडवा वर काटेरी – ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

वरवरचे हे रूप तुझे रे

ऊगा कशाला असे दावशी ?

बाहेरून तू ओबडधोबड

पोटी तुझ्या रे अमृत  राशी

काही चांगले हवे असे तर

कष्टायाची करा तयारी

हेच सांगते रूप तुझे रे

आत गोडवा वर काटेरी

मिळवायास्तव गरे आतले

हवीच असते शक्ति युक्ति

सहज लाभे तुझा गोडवा

प्रयत्नांवर असावी भक्ति

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – “यह घर किसका है ?” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – “यह घर किसका है ?” ☆ श्री कमलेश भारतीय

(जिस लघुकथा को पढ़कर मित्र डॉ रामकुमार घोटड़ ने पूरा लघुकथा संग्रह संपादित कर डाला – विभाजन को लघुकथाएं, वही लघुकथा – यह घर किसका है ? – कमलेश भारतीय)

अपनी धरती , अपने लोग थे । यहां तक कि बरसों पहले छूटा हुआ घर भी वही था । वह औरत बड़ी हसरत से अपने पुरखों के मकान को देख रही थी । ईंट ईंट को , ज़र्रे ज़र्रे को आंखों ही आंखों में चूम रही थी । दुआएं मांग रही थी कि पुरखों का घर इसी तरह सीना ताने , सिर उठाये , शान से खड़ा रहे ।

उसके ज़हन में घर का नक्शा एक प्रकार से खुदा हुआ था । बरसों की धूल भी उस नक्शे पर जम नहीं पाई थी । कदम कदम रखते रखते जैसे वह बरसों पहले के हालात में पहुंच गयी । यहां बच्चे किलकारियां भरते थे । किलकारियों की आवाज साफ सुनाई देने लगीं । वह भी मुस्करा दी । फिर एकाएक चीख पुकार मच उठी । जन्नत जैसा घर जहन्नुम में बदल गया ।परेशान हाल औरत ने अपने कानों पर हाथ धर लिए और आसमान की ओर मुंह उठा कर बोली-या अल्लाह रहम कर । साथ खडी घर की औरत ने सहम कर पूछा-क्या हुआ ?

– कुछ नहीं।

– कुछ तो है। आप फरमाइए।

– इस घर से बंटवारे की बदबू फिर उठ रही है। कहीं फिर नफरत की आग सुलग रही है। अफवाहों का धुआं छाया हुआ है। कभी यह घर मेरा था। एक मुसलमान औरत का। आज तुम्हारा है। कल… कल यह घर किसका होगा ? इस घर में कभी हिंदू रहते हैं तो कभी मुसलमान। अंधेर साईं का, कहर खुदा का।  इस घर में इंसान कब बसेंगे???

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #174 – 60 – “तुम छुपाते रहो अपने गुनाहों को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…”)

? ग़ज़ल # 60 – “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़  इस  तरह से  जताना तुम्हारा,

सियासी  लगे  दिल  लगाना तुम्हारा।

अगर  कोई  पूछे बता दो  ये  उनको,

मेरा दिल नहीं  अब  ठिकाना तुम्हारा।

तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को,

इतिहास  कहेगा   फ़साना   तुम्हारा।

सुनेगा   भला  कौन  मेरी   यहाँ  पर,

है  अदालत  तेरी  ओ  थाना  तुम्हारा।

तुम्हारी  खुदाई  का   इतना  असर है,

‘आतिश’ हो गया  है  दिवाना  तुम्हारा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – पैसा ??

पैसा कमाता है आदमी,

पैसे के पहियों पर

दौड़ने लगता है आदमी,

आदमी और पैसा कमाता है,

पैसे को लग जाते हैं पंख,

उड़ने लगता है आदमी,

आदमी बहुत पैसा कमाता है,

आदमी ढेर पैसा कमाता है,

निगाहों में चढ़ने लगता है आदमी!

अब पैसा खाता है आदमी,

अब पैसा पीता है आदमी,

पर पैसे की सवारी अब

नहीं कर नहीं पाता थुलथुला आदमी !

ज्यों-ज्यों ज़बान पर चढ़ता है पैसा,

त्यों-त्यों निगाहों से उतरता है आदमी !

इससे उस तक,

आदि से इति तक,

न कहानी बदलती है,

न नादानी बदलती है,

पैसा, आदमी की

नादानी पर हँसता है,

कवि,

पैसे और आदमी की

कहानी पर हँसता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:06 बजे, 2.11.20

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆ मुक्तक ।। हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हमें    इस बात  का    बहुत गुमान है।

कि हमारी   मातृ भूमि    हिंदुस्तान  है।।

सूर्य सा आलोकित  है  सारे  संसार में।

विश्व   गुरू भारत  वास्तव में महान है।।

[2]

शांति मसीहा है भारत सारे जहान का।

बस ध्यान रहे भारत मां मानसम्मान का।

हर दिल में इक हिंदुस्तान बसना चाहिए।

प्रश्न है करोड़ों  जन के   स्वाभिमान का।।

[3]

इस वतन ने इंकलाब से आजादी पाई है।

शहीदों ने मर मिट कर  तस्वीर बनाई है।।

आंच न आने देगें इस बलिदानी धरती पर।

हर बाजू बनेगा तलवार आंख गर उठाई है।।

[4]

ये भाग्य राम कृष्ण की धरा पर जन्म पाया है।

इस देश ने रामायण  गीता संदेश सुनाया है।।

यह धरती है  विविधता में एकता का संगम।

पूरे विश्व वसुधैव कुटुंबकम् पाठ पढ़ाया है।।

[5]

इस गुलशन का पत्ता पत्ता जार न होने देना।

अमर शहीदों कीअमानत बेकार न होने देना।।

अभी तो आगाज हुआ मंजिल दूर बाकी है।

भारतमाता कीअस्मत कभी बेजार न होने देना।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 117 ☆ ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #117 ☆  ग़ज़ल  – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बुराई बढ़कर भी आई हारती हर काल में

मकड़ियां फँसती रही नित आप अपने जाल में।।

 

समझता हर व्यक्ति खुद को सदा औरों से भला

पर भला वह है जो हो वैसा सबों के ख्याल में।।

 

वे बुरे जन जो हैं जीते आज ऊंची शान से

कल वही जाते हैं देखे भटकते बद हाल में।।

 

कर्म से किस्मत बनाई जाती है अपनी स्वतः

है नहीं सच यह कि सब कुछ लिखा सब के भाल में।।

 

प्रकृति देती पौधों को सुविधाएं प्रायः एक सी

बढ़ते हैं लेकिन वही, जीते हैं जो हर हाल में।।

 

धूप, आँधी, शीत, वर्षा, उमस सह लेते हैं जो

फूल सुन्दर सुरभिमय खिलते उन्हीं की डाल में।।

 

सत्य, श्रम, सद्कर्म मानव धर्म है हर व्यक्ति का

आदमी लेकिन फंसा है व्यर्थ के जंजाल में।।

 

मन में जिनके मैल, अधरों पै कुटिल मुस्कान है

तमाचा पड़ता सुनिश्चित कभी उनके गाल में।।

 

चाहते जो जिन्दगी में सुख यहाँ संसार में

स्वार्थ कम, चिन्ता अधिक सब की करें हर हाल में।।

 

विश्व भौतिक है मगर आध्यात्मिक है जिंदगी

ध्यान ऐसा चाहिये हम सब को हर आमाल में।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 1 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(ई-अभिव्यक्ति ने समय-समय पर श्रीमदभगवतगीता, रामचरितमानस एवं अन्य आध्यात्मिक पुस्तकों के भावानुवाद, काव्य रूपांतरण एवं  टीका सहित विस्तृत वर्णन प्रकाशित किया है। आज से आध्यात्म की श्रृंखला में ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री हनुमान चालीसा के अर्थ एवं भावार्थ के साथ ही विस्तृत वर्णन का प्रयास किया है। आज से प्रत्येक शनिवार एवं मंगलवार आप श्री हनुमान चालीसा के दो दोहे / चौपाइयों पर विस्तृत चर्चा पढ़ सकेंगे। 

हमें पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध एवं विद्वान पाठकों से स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। आपके महत्वपूर्ण सुझाव हमें निश्चित ही इस आलेख की श्रृंखला को और अधिक पठनीय बनाने में सहयोग सहायक सिद्ध होंगे।)   

☆ आलेख ☆ श्री हनुमान चालीसा – विस्तृत वर्णन – भाग – 1 ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

दोहा :  

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

अर्थ :- श्री गुरु के चरण कमल की पराग रूपी धूल से अपने मन रूपी दर्पण को निर्मल करके रघुवर की विमल यश गाथा का वृतांत कह रहा हूँ, जो चार प्रकार के फल देने वाला है।

बुद्धिहीन मैं, हनुमान जी का सुमिरन कर रहा हूँ। हनुमान जी से प्रार्थना है कि वे मुझे बल बुद्धि एवं विद्या प्रदान कर मेरे सारे क्लेश एवं विकारों का हरण करें।

भावार्थ :- मेरा मन एक मैले दर्पण की तरह है। इसके ऊपर माया मोह, मत्सर, लोभ, विषय वासना आदि की मैल लगी हुई है। यह साधारण साबुन और पानी से साफ होने वाली नहीं है। इसको साफ करने के लिए मैंने अपने गुरुदेव के चरण कमलों के पराग रूपी कणों को लिया है और उससे मैंने अब अपने मन को साफ कर लिया है।

अपने मन को साफ करने के उपरांत अब मैं भगवान शंकर और गुरुदेव की कृपा से रघुवर के सुयश का वर्णन करूंगा जो चारों प्रकार के फल अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष को देने वाली है।

संदेश – यह दोहा यही संदेश देता है कि जब आप हनुमान चालीसा का पाठ करने बैठें तो पहले अपने  गुरुदेव को स्मरण कर मन को पूरी तरह से पवित्र कर लें। अपने इष्ट का स्मरण करें और मन को साफ रखें। भगवान श्री राम की महिमा का वर्णन करने पर आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी, इसलिए खुद को राम भक्त हनुमान जी को समर्पित करते हुए उनकी कृपा से बल, बुद्धि और विद्या पाएं और अपने जीवन के हर कष्ट से मुक्ति पा लें।

दोहे को बार-बार पढ़ने से होने वाला लाभ:-

दोहा क्र.-1

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

हनुमान चालीसा के इस दोहे के पाठ से गुरु कृपा प्राप्त होती है।

दोहा क्र.- 2

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

हनुमान चालीसा के इस दोहे के बार-बार पाठ से बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है।

विवेचना:-

इस दोहे की सबसे पहली पंक्ति में महाकवि तुलसीदास जी ने सबसे पहले अपने गुरुवर की वंदना की है। तुलसीदास जी की इस कृति के अतिरिक्त उनकी किसी भी अन्य कृति के आरंभ में गुरु वंदना का उल्लेख नहीं मिलता है। उदाहरण स्वरूप रामचरितमानस के प्रारंभ में कवि ने सबसे पहले वाणी की देवी सरस्वती और गणेश जी की वंदना की है। उसके उपरांत शिव और पार्वती की वंदना की है। कवितावली दोहावली आदि अन्य ग्रंथों में भी सबसे पहले गुरु की वंदना नहीं है। प्रायः अन्य कवियों ने भी अपने ग्रंथों में सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना की है। गुरु की सबसे पहले वंदना यह भी दर्शाती है कि हनुमान चालीसा लिखते समय तुलसीदास जी पर सबसे ज्यादा प्रभाव उनके गुरु का था। यह छात्र जीवन में ही संभव है। प्रथम पंक्ति से ही हम हनुमान चालीसा लिखने के समय के बारे में अनुमान लगा सकते हैं। इस पंक्ति से यह स्पष्ट है कि गोस्वामी जी ने यह रचना अपने छात्र जीवन अर्थात किशोरावस्था में की थी।

तुलसीदास जी लिखते हैं रघुवर के विमल यश के गायन से हमें चार फलों की प्राप्ति होगी। यह चार फल कौन से हैं उन्होंने यह नहीं बताया है। ऐसा मानना है कि सृष्टि के निर्माण में संख्या चार का बहुत योगदान है। आप ध्यान दें भगवान विष्णु की चार भुजाएं हैं, ब्रह्मा जी भी चतुर्भुज है। उनके चार मुख हैं जिससे चार वेदों की उत्पत्ति हुई है। विश्व के सभी प्राणियों को 4 वर्ग अंडज, जरायुज, स्वेदज एवं उद्भिज्ज में बांटा गया है। प्राणियों की जीवन की चार अवस्थाएं हैं जिन्हें जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय कहा जाता है। काल अर्थात समय को भी चार भागों में बांटा गया है, सतयुग, त्रेता, युग द्वापर युग और कलियुग। हमारे चार धाम है बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका धाम और जगन्नाथ। उत्तराखंड में भी चार ही धाम कहे जाते हैं यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने चतुर्भुज रूप धारण कर भक्तों को चार तत्व धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे सनातन धर्म में चार का बड़ा महत्व है।

गुरुवाणी में भी इसी प्रकार का कुछ लिखा हुआ है।

चारि पदारथ लै जगि जनमिया सिव सकती घरि वासु धरे।

(गुरूवाणी-1/1013)

जिस समय एक बच्चा माता के उदर में आता है तो उसे चार पदार्थों का ज्ञान होता है किन्तु जन्म के पश्चात् वह ज्ञान भूल जाता है। पूर्ण सद्गुरु की कृपा से उसे पुनः ज्ञान की प्राप्ति होती है।

चार पदार्थों का वर्णन हमें कई स्थानों पर मिलता है परंतु वे चार पदार्थ कौन-से हैं इससे हम अनभिज्ञ हैं।

चार पदार्थों के बारे में कहा गया है-

संसार में जब जन्म लिया तो चारों पदार्थों को साथ लेकर आए तो विचार करना है कि क्या धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को साथ लाए हैं? वे कौन से चार पदार्थ हैं जिन्हें लेकर संसार में जन्म लिया है। और यदि धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष को ही हम चार पदार्थ मान लें तो इसका भाव है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हमारे साथ ही आए हैं। लेकिन फिर इनकी प्राप्ति के लिए क्यों कहा है कि-

सतिगुरु कै वसि चारि पदारथ। तीनि समाए एक क्रितारथ।

(गुरूवाणी-1/1345).

चारों पदार्थ सतगुरु के वश में हैं। जब यदि हम चारों पदार्थ साथ लेकर आए हैं तो वे सतगुरु के पास कैसे हैं? यही जानना है कि वे चारों पदार्थ वास्तव में कौन से हैं जिन्हें मीरा ने कहा-

गली तो चारों बंद हुई, मैं हरि से मिलु कैसे जाय।

गलियाँ तो चारों ही बंद पड़ी हैं, मैं प्रभु से कैसे मिलूँ?

वास्तव में, ये तो- अभिव्यक्तिकराणि योगे – पूर्ण योग (ब्रह्मज्ञान) के सूचक और लक्षण हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि वहाँ प्रभु प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी को ‘चतुष्पदी भागवत’ का ज्ञान प्रदान किया।

बौद्ध धर्म में महात्मा गौतम बुद्ध ने जिन्हें ‘चार आर्य सत्य’ कहा है एवं महावीर ने जिन्हें ‘चार घाट’ कहा है, इस प्रकार ये कौन-सी चार उपलब्धियाँ हैं जिनकी चर्चा संत, महापुरुषों, ऋषि, गुरु, अवतारों ने अपनी वाणी में की है।

सभी धार्मिक ग्रंथ भी चार पदार्थों की महिमा गाते है। इन मुक्ति प्रदान करने वाले चारों पदार्थों को भक्त गुरु कृपा से ही प्राप्त कर पाते हैं, इसलिए हमें ज़रूरत है ऐसे सतगुरु की जो हमें ब्रह्मज्ञान प्रदान कर चार पदार्थों का बोध करवा दें।

एक :-

क्या पहला पदार्थ ब्रह्म ज्ञान का प्रकाश है, दूसरा अनहद नाद है, तीसरा ईश्वर का नाम और और चौथा ब्रह्म ज्ञान का अमृत है। आइए इस पर भी विचार कर लेते हैं।

हम जो दीपक मंदिरों में प्रज्वलित करते है, वह इसी अर्थात ब्रह्म ज्ञान के प्रकाश की अभिव्यक्ति है। जिसे कोई बिना आँख वाला व्यक्ति भी देख सकता है।

 गुरु वाणी में कहा गया है :-

कासट महि जिउ है बैसंतरु मथि संजमि काढि कढीजै।

राम नामु है जोति सबाई ततु गुरमति काढि लईजै।।

(गुरवाणी-1/1323)

जिस प्रकार लकड़ी में आग छिपी हुई है जो युक्ति के द्वारा प्रकट होती है। ठीक उसी प्रकार सभी जीवों में प्रभु के नाम की ज्योति समाई हुई है। जरूरत है गुरु के द्वारा उस युक्ति को जानने की, जिससे हम परम् ज्योति (Divine Light) का दर्शन कर सकें।

गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है-

ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्मतस: परमुच्यते।

ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।।

अर्थात् परमात्मा जो कि ज्योतियों की भी परम् ज्योति है जिसे अंधकार से परे कहा जाता है। वह परम ज्ञान (Divine Knowledge) के द्वारा ही जानने योग्य है। यह ज्ञान केवल गुरु ही प्रदान कर सकता है।

दो :-

क्या दूसरा फल या पदार्थ अनहद नाद है। हम मंदिरों में घंटियाँ बजाते है, वह इसी अनहद नाद की अभिव्यक्ति है। जिसे कोई बधिर भी सुन सकता है। जब अनहद नाद सुषुम्ना में प्रवेश कर ऊपर की ओर उठता है, तो इस प्रक्रिया में अनहद नाद का प्रकटीकरण होता है। इससे पहले साधक इस नाद को सुन या प्राप्त नहीं कर सकता। जिसे बजाया नहीं जाता, जो स्वतः अपने आप ही बजता है। लेकिन उस संगीत की प्राप्ति गुरु के द्वारा ही सम्भव है। उसके लिए गुरु वाणी में कहा गया है-

निरभउ कै घरि बजावहि तुर। अनहद बजहि सदा भरपूर।

(गुरूवाणी-971)

उस प्रभु के घर में अर्थात् इस मानव शरीर में वह संगीत बज रहा है जो अनहद है। जिसकी कोई सीमा नहीं है, वही अनहद है।

ऋग्वेद में इस नाद के बारे में कहा गया है कि-

ऋतस्य श्लोको बधिराततर्द कर्णा बुधानः शुचमान आयोः।।

(ऋ.-4/23/8)

सत्य को जगाने वाली देदीप्यमान ध्वनि बधिर को भी सुनाई देती है। इसी प्रकार जैसे हम शिव के हाथों में डमरू देखते हैं, बिष्णु के हाथ में शंख और सरस्वती के हाथ में वीणा है। यह सब कुछ अनहद नाद के लिए ही है।

तीन:-

तीसरा पदार्थ है ईश्वर का नाम और उसका जाप करना। शास्त्रों में कहा गया है- जब एक शिशु माँ के गर्भ में होता है तो वह ईश्वर नाम का जाप करता है। फिर क्या है नाम-सुमिरन? जिससे मन वश में आए। कबीर जी कहते हैं –

सुमिरन सूरत लगाई के मुख से कछु न बोल।।

बाहर के पट देइ के अन्तर के पट खोल।।

सुमिरन ऐसा कीजिये कि शरीर के बाहरी पट या द्वार बंद कर मन के द्वार खुल जाएँ।

कबीर दास जी कहते है-

सतगुरु ऐसा कीजिए पड़े निशाने चोट।

सुमिरन ऐसा कीजिए जीभ हिले न होठ।।

सुमिरन वही करना है जिसे करने के लिए न जुबान हिलानी पड़े न ही होंठ।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-

चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका।

भए नाम जपि जीव बिसोका।

 (रा.च.मा.-1/27/1)

चारों युगों में, तीनों लोकों में और तीनों कालों में केवल ईश नाम का सुमिरन करने से ही जीव शोक से रहित हो जाता है।

जब पूर्ण सतगुरु मिलते हैं तो उस अव्यक्त अक्षर को बता देते हैं जो मनुष्य के ह्रदय में पहले से ही रमा हुआ है।

चार:-

क्या चौथा पदार्थ या फल अमृत है। सभी शास्त्रों में अमृत की चर्चा की गई है। यह अमृत कहां है। क्या यह चरणामृत में है। परंतु चरणामृत को हम अमृत कैसे कह सकते हैं। चरणामृत तो हमारे अधरों पर लगने के उपरांत अपवित्र हो जाता है। अमृत को तो सदैव पवित्र रहना चाहिए। शिवलिंग पर कलश से बूँद-बूँद जल निरंतर बरसता रहता है। यह एक गूढ़ आध्यात्मिक मर्म को समेटे हुए है। हमारे सूक्ष्म जगत में सिर के ऊपरी भाग याने शिरोभाग में एक स्थल है, जिसे सहस्त्रार चक्र, ब्रह्मरंध्र या सहस्त्रदल कमल कहते हैं।

गगन मंडल अमृत का कुआ तहाँ ब्रह्मा का वासा।

सगुरा होवे भर भर पीवे निगुरा मरत प्यासा।।

गगन में उल्टा कुँआ है, जहाँ वह परमात्मा स्वयं विराजमान है। अब यदि हम आकाश में खोजने लग जाएँ तो सारी जिंदगी यह कुआं नहीं मिलेगा। क्योंकि यहाँ सांसारिक कुएँ की नहीं बल्कि उस ‘कुएँ’ की बात की गई है जो शरीर के अंदर ही है।

उपनिषद् में इस स्थल की स्पष्ट व्याख्या की गई है-

अब्जपत्रमधः पुष्पमुर्ध्वनालमधोमुखम्।

अर्थात् ऊपर की ओर नाल वाला तथा अधोभाग (नीचे) की ओर मुख किए पुष्पित एक कमल ब्रह्मरंध्र में स्थित है।

एक अन्य सरस वाणी में संत दरिया ने गाया- ‘बुन्द अखंडा सो ब्रह्मंडा’ – हमारे सिर में व्याप्त अन्तर्गगन या ब्रह्माण्ड से निरंतर, अखण्ड रूप में अमृत की बूँदे टपकती रहती हैं।

पर इस अमृत की अनुभूति केवल ब्रह्मज्ञान की दीक्षा और उसकी साधना के द्वारा ही की जा सकती है। अमृत का यह रसमय पान ही जीवात्मा की जन्म-जन्मांतर की प्यास बुझाता है।

इस प्रकार इन चार फल का अर्थ  अत्यंत गूढ़ है जो कि बगैर गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान के प्राप्त नहीं हो सकता है।

अंत में यह कहना उचित होगा कि आपको सबसे पहले गुरु का महत्व समझना है फिर गुरुवर की ही आज्ञा से उनके ही आशीर्वाद से आपको आगे बढ़ना है और ताकि हनुमान जी का स्मरण करने से आपको बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और सभी कष्टों को दूर करेंगे।

चित्र साभार – www.bhaktiphotos.com

© ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आवेग… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्री शरद कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आवेग… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

कृष्णमेघ पावसाचे,

नभात जमले होते.

इतिवृत्त पावसाचे,

वार्‍यास ज्ञात होते.

बेबनाव पावसाचे,

पूर्वनियोजित होते.

अंदाज पावसाचे,

माझेच चुकले होते.

वाटेत एकटा मी,

अनभिज्ञ पुरता होतो.

गनिम पावसाने मज,

चाैफेर घेरले होते.

या थरारनाट्यांनी,

मी थिजून गेलो होतो.

आंधळ्या आवेगांनी,

चिंबचिंब भिजलो होतो.

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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