मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – विटेवरती हरित शहारे – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? – विटेवरती हरित शहारे  ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के 

फरशीखाली  माती दबली

माती नाही माता  गाडली

कट्ट्यावरती उघडी रहाता

त्या मातीवर विट ठेवली

थोडी तिजला मिळता जागा

बीज अंकुरून येई वरती

सजीवांच्या कल्याणास्तव

सृजनशील ही झटते धरती

इवले इवले सृजन पाहुनी

विटेवरती हरित शहारे

विट मनाशी हसून  म्हणते

या सृजनाने मीही सजले

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ हीच शुभेच्छा… ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

? वाचताना वेचलेले ?

☆ हीच शुभेच्छा… ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

बाहेर दिवाळीची धामधूम सुरु असताना  वेटिंग रूम मध्ये बसून ICU मध्ये ऍडमिट असलेल्या नातेवाईकांच्या टेन्शनमध्ये जे कोणी बसलेत, त्यांचा नातेवाईक लवकर पूर्ण बरा होऊन घरी सुखरूप यावा ही शुभेच्छा….!

फटाक्यांच्या दुकानातली गर्दी  पाहूनही जे बालगोपाळ आपल्या बाबांच्या बजेटमुळे मनसोक्त खरेदी करू शकत नाहीत त्यांना भरपूर फटाके खरेदी करता यावेत ही शुभेच्छा…..!

शेजारणीच्या घरचा भरगच्च दिवाळी फराळ नुसता पाहून घरी परत आलेल्या गरीब गृहिणीला मनासारख्या लाडू, करंज्या, चिवडा करून आपल्या कुटुंबाला तृप्त करता यावं ही शुभेच्छा…..!

काचेमागच्या मिठाईला नुसता डोळ्यांनी स्पर्श करून सुखवणाऱ्या गरीब डोळ्यांना आता चवीचं सुखही जिभेला मिळावं ही शुभेच्छा…..!

बायकोला एखादा सोन्याचा दागिना करावा ही अनेकांची अनेक वर्षाची अपूर्ण राहिलेली इच्छा पूर्ण व्हावी ही शुभेच्छा…..!

गेली दोन वर्ष एकही नवा ड्रेस न शिवलेल्यांना यंदा मनासारखा ड्रेस शिवता यावा ही शुभेच्छा…..!

आपल्या खिशाला कात्री लावून आपल्या कुटुंबाची आनंदाची दिवाळी साजरी व्हावी यासाठी स्वतःकरता काही न घेता मन मारुन दिवाळी  साजरी करतात अशा वडलांना मन न मारून दिवाळी साजरी करता  यावी त्याबद्दल शुभेच्छा..!

सर्वांच्या इच्छा पूर्ण होऊ दे आई जगदंबे—-  हीच इच्छा…

संग्राहक –  श्री अनंत केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#156 ☆ कविता – नारद व्यथा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता नारद व्यथा…)

☆  तन्मय साहित्य # 156 ☆

☆ नारद व्यथा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

एक बार नारद जी व्याकुल हो

बोले भगवान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।

 

अब तो हमें लगे हैं डर

विचरण करते आकाश में

चश्मा दूरबीन नहीं

न पैराशूट हमारे पास में

शोर मचाते हुए विमान

भटकते रहते इधर-उधर

कब वे टकरा जाए हमसे

मन में शंका खास है

डर है वीणा टूट न जाए

मानव वायुयान से

हमें बचा लो हे नारायण….

 

धरती पर जाऊँ तो

वन-पेड़ों का नाम निशान नहीं

सूख गए तालाब सरोवर

नदी कुओं में जान नहीं

कहाँ करूँ विश्राम घड़ी भर

किस पनघट जलपान करूं

पिज्जा बर्गर की पीढ़ी में

राम नहीं रहमान नहीं

देव! न भिक्षा मिलती है

अब नारायण के गान से

मुझे बचा लो हे नारायण ….

 

लोहे कंक्रीट और सीमेंट से

जनता सब बेहाल है

कृषि भूमि पर सड़क भवन

बाजार दमकते मॉल है

हे प्रभु तुम्हीं बताओ

कैसे पृथ्वी पर में भ्रमण करूं

जितने खतरे हैं ऊपर

उतने नीचे भ्रम जाल हैं

कब तक आँखें मूँदे बैठें

नव विकसित विज्ञान से

मुझे बचा लो हे नारायण….

 

बड़े-बड़े घोटाले होते

इंसानों के देश में

डाकू और अय्याश घूमें

फ़क़ीर संतो के वेश में

जिसकी लाठी भैंस उसी की

यही न्याय अब होता है

रहा नहीं विश्वास परस्पर

इस बदले परिवेश में

अब तो यूँ लगता है भगवन

छूटा तीर कमान से

मुझे बचा लो हे नारायण

धरती के इंसान से।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 46 ☆ गीत – गीत गुनगुनाऐंगे… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत गीत गुनगुनाऐंगे…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 45 ✒️

? गीत – गीत गुनगुनाऐंगे…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

शब्द थरथराऐंगे ,

भाव जाग जाएंगे ।

डूब के हम अश्कों में ,

गीत – गुनगुनाऐंगे ।।

 

तुमको मान देवता ,

पूजा किए हैं उम्र भर ,

पत्थरों के बुत पे हम ,

अब ना सिर झुका आएंगे ।।

शब्द…

 

सेज पर बिछी कली ,

तुम ना चैन पाओगे ।

पक्षी अर्धरात्रि को ,

मिलकर चहचहाऐंगे ।।

शब्द…

 

अध खुली आंखों के ,

स्वप्न टूट जाए ना ।

वहीं घरोंदे रेत पर ,

फ़िर से हम बनाएंगे ।।

शब्द…

 

लौट आओ एक बार ,

तुम मेरी पुकार पर ।

ले लो आज इम्तहां ,

ना कभी सताएंगे ।।

शब्द…

 

खींच कर ले आएगी ,

सलमा प्यार की लगन ।

उन हसीन लम्हों में ,

मिलकर मुस्कुराएंगे ।‌।

शब्द…

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – गीलापन☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री महालक्ष्मी साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – लघुकथा – गीलापन ??

‘उनके शरीर का खून गाढ़ा होगा। मुश्किल से थोड़ा बहुत बह पाएगा। फलत: जीवन बहुत कम दिनों का होगा। स्वेद, पसीना जैसे शब्दों से अपरिचित होंगे वे। देह में बमुश्किल दस प्रतिशत पानी होगा। चमड़ी खुरदरी होगी। चेहरे चिपके और पिचके होंगे। आँखें बटन जैसी और पथरीली होंगी। आँसू आएँगे ही नहीं।

उस समाज में सूखी नदियों की घाटियाँ संरक्षित स्थल होंगे। इन घाटियों के बारे में स्कूलों में पढ़ाया जाएगा ताकि भावी पीढ़ी अपने गौरवशाली अतीत और उन्नत सभ्यता के बारे में जान सके। अशेष बरसात, अवशेष हो जाएगी और ज़िंदा बची नदियों के ऊपर एकाध दशक में कभी-कभार ही बरसेगी। पेड़ का जीवाश्म मिलना शुभ माना जाएगा। ‘हरा’ शब्द की मीमांसा के लिए अनेक टीकाकार ग्रंथ रचेंगे। पानी से स्नान करना किंवदंती होगा। एक समय पृथ्वी पर जल ही जल था, को कपोलकल्पित कहकर अमान्य कर दिया जाएगा।

धनवान दिन में तीन बार एक-एक गिलास पानी पी सकेंगे। निर्धन को तीन दिन में एक बार पानी का एक गिलास मिलेगा। यह समाज रस शब्द से अपरिचित होगा। गला तर नहीं होगा, आकंठ कोई नहीं डूबेगा। डूबकर कभी कोई मृत्यु नहीं होगी।’

…पर हम हमेशा ऐसे नहीं थे। हमारे पूर्वजों की ये तस्वीरें देखो। सुनते हैं उनके समय में हर घर में दो बाल्टी पानी होता था।

..हाँ तभी तो उनकी आँखों में गीलापन दिखता है।

…ये सबसे ज्यादा पनीली आँखोंवाला कौन है?

…यही वह लेखक है जिसने हमारा आज का सच दो हजार साल पहले ही लिख दिया था।

…ओह ! स्कूल की घंटी बजी और 42वीं सदी के बच्चों की बातें रुक गईं।

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 55 – कहानियां – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  कथा श्रंखला  “ कहानियां…“ की अगली कड़ी ।)   

☆ कथा कहानी  # 55 – कहानियां – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

ये बैंक में प्रमोशन और फिर ट्रांसफर का किस्सा है, हकीकत भी तो यही है. किसी शहर मे रहने के जब आप आदतन मुजरिम बन जाते हैं, आपके अपने टेस्ट के हिसाब से दोस्त बन जाते है, पत्नी की सहेलियां बन जाती हैं और किटी पार्टियां अपने शबाब पर होती हैं, बच्चे उनके स्कूल से और दोस्तों से हिलमिल जाते हैं. आप ये जान जाते हैं कि डाक्टर कौन से अच्छे हैं, रेस्टारेंट कौन सा बढ़िया है, चाट कौन अच्छी बनाता है और आप समझदार हैं कि बाकी चीज़ें कंहा कहां अच्छी मिलती हैं, डिटेल में जाने की जरूरत नहीं है, तब बैंक प्रमोशन टेस्ट की घोषणा कर देता है. मंद मंद गति से बहती, हवा और चलती ट्रेन रुक जाती है. कई तरह की प्रतिक्रियायें होना शुरु हो जाता है.

शायद यह शाश्वत सत्य है कि प्रमोशन का अविष्कार पत्नियों ने किया है. ईमानदारी की बात तो ये भी है कि कोई भी समझदार पर विवाहित पुरुष प्रमोशन चाहता नहीं है क्योंकि बाद में होने वाली  खौफनाक पोस्टिंग से उसको भी डर लगता है पर पत्नी जी का क्या? और अगर आप किसी बैंक कालोनी में रह रहे हैं तो जाहिर है कि कैसे कैसे ताने, उलाहने, चुनोतियों का सामना करना पड़ता है. “देखिये जी ! इस बार अच्छे से तैयारी करना, फेल मत हो जाना हर बार की तरह, वरना आपका क्या आप तो हो ही बेशरम, मुझे तो कालोनी में सबको फेस करना पड़ता है, या तो अच्छे से पढ़कर पास होना वरना फिर मकान बदल लेना. आप करते क्या हो बैंक में. सबसे पहले बैंक जाते हो, सबसे बाद में आते हो फिर आपका क्यों नहीं होता प्रमोशन. वो देखिये, शर्मा जी अभी दो साल पहले तो आये थे और फिर प्रमोट होकर जा रहे हैं. आप भी कुछ सीखो, भोले भंडारी बने बैठे हो. काम करने से कुछ नहीं होता, बॉस को भी खुश रखना पड़ता है. याने बैंक में काम करने वाले पतियों से बेहतर उनकी पत्नियों को मालुम रहता है कि बैंक में प्रमोशन कैसे लिया जाता है. “

प्रमोशन प्रक्रिया में पहले लिखित परीक्षा होती है. पहले तो स्केल 5 तक के लिये written test होते थे. हमारे बैंक में लोग परीक्षा के लिये पढ़ाई करते थे तो दूसरे बैंक इस cooling period में नये बिजनेस एकाउंट कैप्चर कर लेते थे. समझ से बाहर था कि बीस साल की नौकरी के बाद भी साबित करो कि आप बैंकिंग जानते हो. खैर बाद में ये सुधार हुआ और बैंक ने बिज़नेस को priority दी. प्रमोशन होने के बाद और पोस्टिंग के पहले के दिन उसी तरह तनाव मुक्त होते हैं जैसे शादी के बाद और गौने के पहले वाले दिन. ब्रांच में आपको भी काबिल मान लिया जाता है हालांकि पीठ पीछे की कहानी अलग होती है. ” कैसे हो गया यार, आजकल कोई भी हो जाता है, मुकद्दर की बात है वरना अच्छे अच्छे लोग रह गये और इनकी लाटरी निकल गई, कोई बात नहीं, हम तो कहते हैं अच्छा ही हुआ, कम से कम ब्रांच से तो जायेगा. इस सबसे बेखबर खुशी में मिठाई बांटी जाती हैं, दो तीन तरह की पार्टियां दी जाती हैं. फिर आता है पोस्टिंग का टाईम और फिर शुरु होता है जुगाड़ या फरियाद का दौर. यूनियन, ऐसोसियेशन, मैनेजमेंट हर तरफ कोशिश की जाने लगती है. ऐसे नाज़ुक वक्त पर सबसे ज्यादा मजे लेते हैं HR वाले केकयी बनकर. उनके डायलाग, “देखो इंटर माड्यूल की तो पालिसी है, प्रमोटी तो रायपुर ही जाते हैं और फिर वहां से बस्तर रीज़न”, आप निराश होकर और बस्तर को अपना राज्याभिषेक के बाद अपना वनवास मानकर फिर फरियाद जब करते हैं कि आप की तो वहां पहचान है कुछ ठीक ठाक पोस्टिंग करवा दीजिये तो मंथरा की मुस्कान के साथ आश्वस्त करते हैं कि यार 300 किलोमीटर के बाद तो सर्किल ही बदल जाता है, उससे आगे तो चाहेंगे तो भी नहीं कर पायेंगे. फिर तो लगने लगता है कि बैंक में हैं या Border Security Force में. जबलपुर के सदर के इंडियन काफी हाउस में वेज़ कटलेट और फिल्टर काफी का सेवन करने वाला बंदा सुकमा या बीजापुर पोस्टिंग के शुरुआती दौर में वहां भी इंडियन काफी हाउस ढूंढता है, फिर कुछ वहां के स्टाफ के समझाने से ये समझ पाकर कि इंडियन तो हर जगह हैं, काफी बाजार से खरीद कर अपने जनता आवास में खुद बनाकर पीता है और किशोर कुमार का ये गाना बार बार सुनता है “कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन”.

जारी रहेगा…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ अंबाला के श्री विजय कुमार एवं सुश्री अंजलि सिफर ‘लघुकथा सेवी सम्मान’ से सम्मानित – अभिनंदन ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 अंबाला के श्री विजय कुमार एवं अंजलि सिफर ‘लघुकथा सेवी सम्मान’ से सम्मानित – अभिनंदन 🌹

अंबाला : 30 अक्टूबर को सिरसा में हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच सिरसा के तत्वावधान में हरियाणा हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन संयोजक डॉ. शील कौशिक एवं संरक्षक प्रोफेसर रूप देवगुण के द्वारा किया गया। चार सत्रों में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में अंबाला से विजय कुमार, रितु विजय, अंजलि सिफर और पंकज शर्मा ने भाग लिया।

इस अवसर पर अंबाला से पिछले 50 वर्षों से नियमित प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘शुभ तारिका’ तथा अंजलि सिफर की पुस्तक ‘हेलो जिंदगी’ का लोकार्पण किया गया। सम्मेलन में लघुकथा जगत के जाने-माने साहित्यकारों की उपस्थिति में विजय कुमार एवं अंजलि सिफर को ‘लघुकथा सेवी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में विजय कुमार एवं अंजलि सिफर ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ भी किया। लघुकथा पाठ के बाद इनकी लघुकथाओं पर पटियाला से आए हुए साहित्यकार श्री योगराज प्रभाकर द्वारा समीक्षात्मक टिप्पणी भी की गई। कार्यक्रम में देश के अनेक राज्यों से आए हुए साहित्यकारों ने भाग लिया।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी के मुख्य आतिथ्य में नेपाल-भारत हिंदी शिक्षक एवं साहित्यकार सम्मेलन २०२२ संपन्न – अभिनंदन ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी के मुख्य आतिथ्य में नेपाल-भारत हिंदी शिक्षक एवं साहित्यकार सम्मेलन २०२२ संपन्न – अभिनंदन 🌹

नेपाल की राजधानी काठमांडू में 1 नवंबर 2022 को नेपाल भारत हिंदी शिक्षक एवं साहित्य सम्मेलन संपन्न हुआ। जिसका उद्घाटन एवं मुख्य अतिथ्य आदरणीय हिरा चंद्रा जी स्वास्थ एवं जनसंख्या मंत्री – नेपाल सरकार, विशेष अतिथि आदरणीय सतेंद्र दहिया अताशे (हिंदी एवं संस्कृति) भारतीय दूतावास, काठमांडू, सम्मेलन की अध्यक्षता आदरणीय डॉ. मंचला कुमारी झा केंद्रीय हिंदी विभाग – त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, प्रमुख अतिथि आदरणीय -लोकेंद्र सेर्पाली, सेंट्रल कमिटी मेंबर- पी. एस.पी, नेपाल, आदरणीय डॉ. नंदलाल चौधरी संचालक – द रॉयल गोंडवाना पब्लिक स्कूल, नागपूर – भारत, आदरणीय श्रीमान प्रभाकर ढगे, संपादक – इन गोवा 24×7 न्यूज चैनल – गोवा भारत, आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय, बाल साहित्यकार मध्यप्रदेश- भारत के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में 80 भारतीय और 50 नेपाली शिक्षक व साहित्यकारों ने भाग लिया। जिसमें मध्यप्रदेश आमंत्रित श्रीमती गीता क्षत्रिय को शिक्षा भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। साथी श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश को प्रमुख अतिथि के रूप में शाल, रुद्राक्ष माला द्वारा सम्मानित किया गया

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 156 ☆ लावणी – 1 ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 156 ?

☆ लावणी – 1 ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

कार्तिकातली थंडी गुलाबी अंगावर काटा आला

अन् राया मला प्रीतीचं पांघरुण घाला ॥

 

सुना गेला दिवाळी सण

कानी आली अशी कुणकुण

अटकाव झालाय चहूबाजूनं

सणासुदीला नाही आला

माझा शिणगार वाया गेला ॥

 

हाती हिरवीगार कांकणं

पायी रूणझुणते पैंजण

मी हिरकण तुम्ही कोंदण

जीव वेडापिसा हा झाला

धाडला सांगावा तरी नाही आला ॥

 

लाखमोलाचं तुमचं येणं

माझं एवढंच एक सांगणं

नाही शोभत असं वागणं

मी पैठणी अन तुम्ही शेला

गाठ बांधलेली विसरून गेला ॥

 

काय नातं तुमचं नी माझं

तुम्ही तुमच्या मनाचं राजं

येण होईल का आजच्या आज?

जणू गुन्हाच की हो घडला

हा जीव तुम्हावरी जडला ॥

 

कार्तिकातली थंडी गुलाबी अंगावर काटा आला

अन राया मला प्रीतीचं पांघरुण घाला ॥

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ काही कविता… ☆ श्री राजकुमार कवठेकर ☆

श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ काही कविता… ☆ श्री राजकुमार कवठेकर ☆

पावसाची शक्यता

वा-याने आधीच होती वर्तवली

भिजली.. कुडकुडली.. ज्यांनी दुर्लक्षिली…

***

नकोश्या पाना-फुलांना

झाडाने वा-यावर सोडलं

धरतीने पदरात घेतलं….

***

क्षणभर पक्षी

खिडकीच्या गजांवर बसला

घराचा खोपा झाला…

***

हिरवळ; कितीही

अन् कुणीही तुडवा

पावलांना देतच रहाते गारवा….

***

भर वस्तीतला

तो एक वाडा पडका

भरल्या घरातला जणू म्हातारा पोरका…

***

क्षणभर मासोळी

पाण्याच्या पृष्ठभागावर आली

चाणाक्ष पक्षाने पट्कन टिपली…

***

पुराच पाणी

काठोकाठ असतं वहात

म्हणून त्यात कोणी बसत नाही नहात…

***

शांत आत्ममग्न डोह

दिसायला समाधिस्त दिसतो

इवलसं पान पडताच थरथरतो…

***

अंधारात पक्षी किलबिलू लागले

की उजाडणार हे समजावे

असे नाही की सूर्यानेच दिसावे…

***

कितीही उंची गाठली तरी

उतार मिळताच धावू लागत पाणी

मग त्याला अडवू शकत नाही कोणी…

***

कच-याच्या ढिगावर

मोहक रंगीत पक्षी बसला

कचरा लक्षवेधी बनला…

***

पक्षाचा खोपा

टांगता अधांतरीच असतो

पक्षाचा फांदीवर गाढ विश्वास असतो…

***

© श्री राजकुमार दत्तात्रय कवठेकर

संपर्क : ओंकार अपार्टमेंट, डी बिल्डिंग, शनिवार पेठ, आशा  टाकिज जवळ, मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares