हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘सफर अहसासों का’ – सुश्री लीना खेरिया ☆ समीक्षा – श्री शंभु शिखर ☆

श्री शंभु शिखर

(आज  प्रस्तुत है सुश्री लीना खेरिया जी की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘सफर अहसासों का ‘पर सर्वाधिक लोकप्रिय हास्य कवि श्री शंभु शिखर जी  की पुस्तक चर्चा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘सफर अहसासों का ‘’ – सुश्री लीना खेरिया ☆ समीक्षा – श्री शंभु शिखर ☆

पुस्तक का नाम – सफर अहसासों का

रचयिता – लीना खेरिया

प्रकाशक – स्टोरीमिरर इंफोटेक प्रा. लि

पृष्ठ संख्या ‏ – ‎ 154 पेज

मूल्य- ₹ 225 ( पेपरबैक)

मूल्य- ₹ 99 (किंडल एडिशन)

अमेज़न लिंक 👉 सफर अहसासों का

☆ अनुभूतियों का नया संसार रचती कविताएँ.. – श्री शंभु शिखर 

चार वर्षों के अंतराल के बाद लीना खेरिया का दूसरा काव्य संग्रह सफर अहसासों का मार्च 2022 में सतहे आम पर आया है। इस अंतराल में उनकी अनूभूतियों की व्यापकता, चिंतन की गहराई और विषयों की विविधता का विस्तार स्पष्ट दिखाई देता है। प्रकृति के साथ अंतरंगता, अध्यात्म के प्रति रूझान, रिश्तों और संबंधों का खट्टा-मीठा स्वाद, सामाजिक विडंबनाओं के प्रति चिंता की झलक कुछ ज्यादा स्पष्ट आकार बनाता दिखता है। इनमें अहसासों का चार वर्षों का सफरनामा साफ परिलक्षित होता है। संग्रह में 100 काव्य रचनाएँ हैं जिनमें कविताओं के अलावा कुछ ग़ज़लें भी शामिल हैं।

संग्रह की एक कविता अंधाधुंध धुआं ड्रग्स के नशे में अपने और राष्ट्र के भविष्य को बर्बादी की ओर ले जाती युवा पीढ़ी पर केंद्रित है। निःसंदेह यह वर्तमान समय में गहन वैश्विक चिंता का विषय है। हमारे देश में भी नशे के सौदागरों का जाल महानगरों से लेकर कस्बों तक बिछा हुआ है। हजारों-हजार करोड़ के ड्रग्स समुद्री और सड़क मार्ग से ले जाये जा रहे हैं। कुछ पकड़े जाते हैं, कुछ पकड़ में नहीं आते हैं। युवा वर्ग को नशे का गुलाम बनाने की साजिश रची जा रही है। इस विषय पर फिल्में तक बन चुकी हैं लेकिन साहित्यिक विधाओं में इसका उतना समावेश नहीं हो पाया है जितना संवेदनाओं को झकझोरने के लिए होना चाहिए था। कवयित्री चकाचौंध भरी गलियों में सिर्फ धुँआ-धुआँ और अंधाधुंध धुआँ देखती है और खुद से पूछती है कि हमसे कहाँ पर चूक हुई, क्या गलत हुआ कि नये पौधों की नींव और जड़ें अंदर से पूरी खोखली होती गईं। कवयित्री कहती है-

सफेद जहर की हमारी युवा पीढ़ी 

न जाने क्यों इतनी आदी हो गई

सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे

और नाक के नीचे ये बर्बादी हो गई…

चक्रवात शीर्षक कविता में कवयित्री जीवन की जटिलताओं को महसूस करती हुई मन के अथाह सागर में उठते चक्रवात देखती है, खुद को भंवर में डूबता हुआ पाती है लेकिन नाउम्मीद नहीं होती। कहती है-

ये उम्मीद का लालटेन

है तो कुछ धुंधला सा ही

पर तसल्ली है कि 

कम से कम

अब तक रौशन तो है.

यह कविता घोर निराशाओं के बीच भी जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की सीख देती है। लीना खेरिया के काव्य संसार की यह खूबी है कि जीवन के अंधेरे पक्ष को उजागर करने में संकोच नहीं करती लेकिन रौशनी की किरनों के आसपास होने का भरोसा भी दिलाती है। अगर रात है तो उसके आसपास सवेरा भी मौजूद है जिसका क्षितिज पर उभरना उतना ही तय है जितना रात का आना। यह भारतीय दर्शन का शाश्वत सूत्र है जो मनुष्य को कभी निराश नहीं होने देता। धैर्य को बनाए रखता है।

सुश्री लीना खेरिया 

(मॉं की ममता पिता का  त्याग  और ना जाने कितनी ही भावनाओं के खूबसूरत शाख बोयें हैं मैनें इस सफ़र के रास्तें पर जिनको छू कर गुजरती बयार आपके भी मन को अवश्य ही महका जायेगी…)

कवयित्री की चेतना साकार से निराकार की ओर निरंतर यात्रा करती है। चंपई बनारसी साड़ी शीर्षक कविता में कवयित्री दांपत्य जीवन की मधुरिमा में ईश्वरीय चेतना की अनुभूति करती है। वह प्रियतम से उपहार में मिली उसकी पसंदीदा बनारसी साड़ी पहनकर दर्पण में स्वयं को निहारती है तो उसकी छुअन से उसे महसूस होता है जैसे अस्सी घाट की निचली सीढ़ी पर पैर लटका कर बैठी हुई गंगा मैय्या की उजली कोमल लहरों का पावन शीतल स्पर्श कर रही हो। अपने कानों में अपने प्रियतम की आवाज़ की गूंज को बाबा विश्वनाथ के मंदिर की असंख्य घंटियों की ध्वनि और उनकी प्रतिध्वनि की खनखनाती स्वर लहरी में रस घोलती सी महसूस करती है जो समूचे वातावरण को और उसके मन तथा अंतर्मन को भी झंकृत कर रही हो। कहते हैं कि प्रेम की भावना जब मन में तरंगित होती है तो इंसान को अध्यात्म की गहराइयों की ओर ले जाती है। इसीलिए कवयित्री को बनारसी साड़ी सिर्फ एक मोहक परिधान नहीं दिखता बल्कि उसके अंदर काशी-विश्वनाथ का पूरा धाम दिखाई देता है। 

प्रेम और अध्यात्म के अंतर्संबंधों की भाव यात्रा के पड़ाव लीना खेरिया की अधिकांश श्रृंगार रस की कविताओं में दृश्यमान हैं। ताबीज शीर्षक कविता में वह अपने प्रियतम को संबोधित करती हुई कहती हैं कि उन्होंने उसे अपनी सपनीली आंखों में बसे काजल की काली डोरी में पिरोकर किसी पाकीज़ा ताबीज़ की तरह गले में धारण कर रखा है जो हर मुसीबत, हर बला से उसकी रक्षा करता है और यह बेहद बेशकीमती ताबीज़ किसी पीर, फकीर या मौलवी से नहीं ख़ुद खुदा से हासिल हुआ है। 

नारी मन की पीड़ा की जबर्दस्त अभिव्यक्ति कब आएंगे मेरे राम शीर्षक कविता में हुई है। कवयित्री को नारी समाज के प्रतिनिधि के रूप में अपने अंदर एक अहिल्या दिखाई देती है जो किसी और की भूल और अनाचार के कारण श्रापित होकर सदियों से पाषाण बनी पड़ी हुई है। जिसकी सारी वेदनाएं, संवेदनाएं जड़वत हो गई हैं और जिसे अपनी मुक्ति के लिए किसी राम के आगमन का इंतजार है। वह अपने आप से पूछती है कि क्या एक दिन उसके राम आएंगे जिनके स्पर्श मात्र से वह फिर से अहिल्या की तरह जी उठेगी। दरअसल पुरुष प्रधान पारंपरिक समाज में नारी रीति रिवाजों और मर्यादाओं के बंधन से इस तरह जकड़ दी जाती है कि अहिल्या की तरह पाषाण की मूरत बनी रहती है। उसे अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करने के लिए, अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह उभारने के लिए किसी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के स्पर्श का इंतजार रहता है। यह कविता दुनिया भर में चल रहे नारी मुक्ति आंदोलनों की ओर इशारा करती है। इसी कड़ी में एक कविता है-उद्धार करो जिसमें वह राम से विनती करती है कि आओ और अपने दिव्य स्पर्श से मेरा उद्धार कर दो। लिंग भेद पर केंद्रित संग्रह की एक कविता है नारी जीवन। कवयित्री पूछती है-

अगर बेटा अपना खून है तो

होती बेटी आखिर पराई क्यूं

जब साथ में दोनों पले बढ़े तो

होती बेटी की आखिर विदाई क्यूं

दिल के रिश्तों में दूरी कोई मायने नहीं रखती। जो दिल के करीब होता है वह दूर रहकर भी हमेशा अपने आसपास ही प्रतीत होता है। तुम जाकर भी नहीं जाते शीर्षक कविता में वह हर जगह अपने प्रियतम की झलक महसूस करती है। वह कहती है-

और घर में घुसते ही

दाहिनी ओर लगे

शो केस की दराज में

मुंह छुपाए…न जाने कबसे

छुपी बैठी है तुम्हारी खुशबू

जो दराज़ खोलते ही

अक्सर ले लेती है मुझे

अपनी गिरफ्त में

और कर देती है मुझे

बिल्कुल…बदहवास…

घर के बाहर और घर के अंदर हर जगह प्रियतम की यादें उसका पीछा करती हुई प्रतीत होती हैं और अंत में वह प्यार से कहती है-

अरे बाबा…

मेरा पीछा करना छोड़ दो

अब जाओ ना

जाओ ना…

इसी तरह संग्रह की सभी कविताएं भावों और संवेदनाओं का अपना संसार रचती प्रतीत होती हैं। सीधे मन की गहराइयों में उतरकर ह्रदय को उद्वेलित करती हैं। इनके बीच से होकर गुजरना अनूभूतियों के महासमुद्र में गोते लगाने सा प्रतीत होता है। उनकी कविताओं का शिल्प, विषय और उसके अनुरूप प्रतीकों का चयन स्वाभाविक प्रवाह में मगर सावधानी का संकेत देता है। उनमें रस भी है और प्रवाह भी। हिंदी कविताओं की भीड़ में लीना खेरिया एक अलग रस, अलग रंग और अलग तेवर के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। 

चित्र साभार – Shambhu Shikhar- Comedian, Hasya Kavi, Poet, Actor, Official Website

समीक्षक – श्री शंभु शिखर

संपर्क – A-428, छतरपुर एन्क्लेव, फेज-I, नई दिल्ली – 110074

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 144 ☆ वारी – लघुता से प्रभुता की यात्रा – भाग – 1 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 144 ☆ वारी – लघुता से प्रभुता की यात्रा – भाग – 1 ?

श्रीक्षेत्र आलंदी / श्रीक्षेत्र देहू से पंढरपुर तक 260 किलोमीटर की पदयात्रा है महाराष्ट्र की प्रसिद्ध वारी। मित्रो, विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि-  वारी की जानकारी पूरे देश तक पहुँचे, इस उद्देश्य से 11 वर्ष पूर्व वारी पर बनाई गई इस फिल्म और लेख ने विशेषकर गैर मराठीभाषी नागरिकों के बीच वारी को पहुँचाने में टिटहरी भूमिका निभाई है। यह लेख पचास से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका है। अधिकांश मित्रों ने पढ़ा होगा। अनुरोध है कि महाराष्ट्र की इस सांस्कृतिक परंपरा को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। 🙏

डॉक्यूमेंट्री फिल्म का यूट्यूब लिंक (कृपया यहाँ क्लिक करें) 👉  वारी-लघुता से प्रभुता की यात्रा

निर्माण – श्री  प्रभाकर बांदेकर 

लेखन एवं स्वर – श्री संजय भारद्वाज  

भारत की अधिकांश परंपराएँ ऋतुचक्र से जुड़ी हुई एवं वैज्ञानिक कसौटी पर खरी उतरने वाली हैं। देवता विशेष के दर्शन के लिए पैदल तीर्थयात्रा करना इसी परंपरा की एक कड़ी है। संस्कृत में तीर्थ का शाब्दिक अर्थ है-पापों से तारनेवाला। यही कारण है कि  तीर्थयात्रा को मनुष्य के मन पर पड़े पाप के बोझ से मुक्त होने या कुछ हल्का होने का मार्ग माना जाता है। स्कंदपुराण के काशीखण्ड में तीन प्रकार के तीर्थों का उल्लेख मिलता है-जंगम तीर्थ, स्थावर तीर्थ और मानस तीर्थ।

स्थावर तीर्थ की पदयात्रा करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। महाराष्ट्र की प्रसिद्ध वारी इस परंपरा का स्थानीय संस्करण है।

पंढरपुर के विठ्ठल को लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले  महाराष्ट्र के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में मान्यता मिली। तभी से खेतों में बुआई करने के बाद पंढरपुर में विठ्ठल-रखुमाई (श्रीकृष्ण-रुक्मिणी) के दर्शन करने के लिए पैदल तीर्थ यात्रा करने की परंपरा जारी है। श्रीक्षेत्र आलंदी से ज्ञानेश्वर महाराज की चरणपादुकाएँ एवं श्रीक्षेत्र देहू से तुकाराम महाराज की चरणपादुकाएँ पालकी में लेकर पंढरपुर के  विठोबा के दर्शन करने जाना महाराष्ट्र की सबसे बड़ी वारी है।

पहले लोग व्यक्तिगत स्तर पर दर्शन करने जाते थे। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, स्वाभाविक था कि संग से संघ बना। 13 वीं शताब्दी आते-आते वारी गाजे-बाजे के साथ समारोह पूर्वक होने लगी।

वारी का शाब्दिक अर्थ है-अपने इष्ट देवता के दर्शन के लिए विशिष्ट दिन,विशिष्ट कालावधि में आना, दर्शन की परंपरा में सातत्य रखना। वारी करनेवाला ‘वारीकर’ कहलाया। कालांतर में वारीकर ‘वारकरी’ के रूप में रुढ़ हो गया। शनैःशनैः वारकरी एक संप्रदाय के रूप में विकसित हुआ।

अपने-अपने गाँव से सीधे पंढरपुर की यात्रा करने वालों को देहू पहुँचकर एक साथ यात्रा पर निकलने की व्यवस्था को जन्म देने का श्रेय संत नारायण महाराज को है। नारायण महाराज संत तुकाराम के सबसे छोटे पुत्र थे। ई.सन 1685 की ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी को वे तुकाराम महाराज की पादुकाएँ पालकी में लेकर देहू से निकले। अष्टमी को वे आलंदी पहुँचे। वहाँ से संत शिरोमणि ज्ञानेश्वर महाराज की चरण पादुकाएँ पालकी में रखीं। इस प्रकार एक ही पालकी में ज्ञानोबा-तुकोबा (ज्ञानेश्वर-तुकाराम) के गगन भेदी उद्घोष के साथ वारी का विशाल समुदाय पंढरपुर की ओर चला।

अन्यान्य कारणों से भविष्य में देहू से तुकाराम महाराज की पालकी एवं आलंदी से ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी अलग-अलग निकलने लगीं। समय के साथ वारी करने वालों की संख्या में विस्तार हुआ। इतने बड़े समुदाय को अनुशासित रखने की आवश्यकता अनुभव हुई। इस आवश्यकता को समझकर 19 वीं शताब्दी में वारी की संपूर्ण आकृति रचना हैबतराव बाबा आरफळकर ने की। अपनी विलक्षण दृष्टि एवं अनन्य प्रबंधन क्षमता के चलते हैबतराव बाबा ने वारी की ऐसी संरचना की जिसके चलते आज 21 वीं सदी में 10 लाख लोगों का समुदाय बिना किसी कठिनाई के एक साथ एक लय में चलता दिखाई देता है।

हैबतराव बाबा ने वारकरियों को समूहों में बाँटा। ये समूह ‘दिंडी’ कहलाते हैं। सबसे आगे भगवा पताका लिए पताकाधारी चलता है। तत्पश्चात एक पंक्ति में चार लोग, इस अनुक्रम में चार-चार की पंक्तियों में अभंग (भजन) गाते हुए चलने वाले ‘टाळकरी’ (ळ=ल,टालकरी), इन्हीं टाळकरियों में बीच में उन्हें साज संगत करने वाला ‘मृदंगमणि’, टाळकरियों के पीछे पूरी दिंडी का सूत्र-संचालन करनेवाला विणेकरी, विणेकरी के पीछे सिर पर तुलसी वृंदावन और  कलश लिए मातृशक्ति। दिंडी को अनुशासित रखने के लिए चोपदार। 

क्रमश:…

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी   ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 98 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 98 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 98) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 98 ?

 ☆

माना कि तुम्हें याद न करने

की  जिद  हमारी  थी…,

पर  भूल  जाने  में  तो,

आप भी कमाल निकले…

 

Agreed that it was my  

obstinacy not to miss you…

But you amazingly surpassed  

everyone in forgetting…

 जिंदगी में मंजिलों का

फितूर ही नहीं,  

कुछ सफर का

सुरूर भी जरूरी है…

 

Why alone the obsession of

the destinations in life,

Some euphoric inebriation of

the journey is also a must…

नीचे आ गिरती है

हर  बार  दुआ  मेरी,

पता नहीं किस ऊँचाई

पर  रब  रहता  है…

My benedictive prayers

kept crashing down…

Knoweth  not  at  what

height the Lord resides..!

कुछ इस तरह खूबसूरत

रिश्ते टूट जाया करते हैं,

जब दिल भर जाता है तो

लोग रूठ जाया करते हैं…

When heart gets satiated,

the people sulk away…

Some beautiful relations

break up like this also…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 98 ☆ मुक्तिका…अचेतन है ज़िंदगी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित मुक्तिका…अचेतन है ज़िंदगी… )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 98 ☆ 

☆ मुक्तिका…अचेतन है ज़िंदगी… ☆

 ​.

बँधी नीलाकाश में

मुक्तता भी पाश में

.

प्रस्फुटित संभावना

अगिन केवल ‘काश’ में

.

समय का अवमूल्यन

हो रहा है ताश में

.

अचेतन है ज़िंदगी

शेष जीवन लाश में

.

दिख रहे निर्माण के

चिन्ह व्यापक नाश में

.

मुखौटों की कुंडली

मिली पर्दाफाश में

.

कला का अस्तित्व है

निहित संगतराश में

.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

११.५.२०१६, ६.४५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #130 ☆ गरूड़ पुराण – एक आत्मकथ्य ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 130 ☆

☆ ‌आलेख – गरूड़ पुराण – एक आत्मकथ्य ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

वैसे तो  भारतीय संस्कृति मे हमारी जीवन शैली संस्कारों से आच्छादित है, जिससे हमारा समाज एक आदर्श समाज के रूप में स्थापित हो जाता है क्योंकि जो समाज संस्कार विहीन होता है, वह पतनोन्मुखी हो जाता है।  

संस्कार ही समाज की आत्मा है, संस्कारित समाज सामाजिक रिश्तों के ताने-बाने को मजबूती प्रदान करता है, अन्यथा यह समाज पशुवत जीवनशैली अपनाता है और सामाजिक आचार संहिता के सारे कायदे कानून तोड़ देता हैं।

ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जो हिंदू जीवन पद्धति का मूल है, जिसके कारण हमारे सामाजिक तथा पारिवारिक जीवन में दया करूणा प्रेम सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्य विकसित होते हैं। इसी क्रम में हमारे जीवन में कर्म कांडों का महत्व बढ़ जाता है। क्योंकि इन सारे कर्म काण्डों के मूल में हमारे शास्त्रों पुराणों उपनिषदों तथा वेदों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुल चार वेद, छः शास्त्र, अठ्ठारह पुराण तथा उपनिषद है, और हर पुराण के मूल में कथाएं हैं, जो हमारे आचरण आचार विचार आहार विहार तथा व्यवहार पक्ष को निर्धारित करती है। संरचना के हिसाब से सारे पुराण अध्यायों तथा खंडों में विभाजित है तथा उनके आयोजन का एकमेव उद्देश्य है, मानव का कल्याण।

इस क्रम में श्रीमद्भा गवत कथा को मोक्ष की प्राप्ति कामना से श्रवण किया जाता है, जहां जिसका श्रवण मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर प्राणी के मोक्ष हेतु आयोजन का विधान है, तो गरूण पुराण कथा का श्रवण का परिजनों की मृत्यु के बाद लोगों को अपने प्रिय जनों की बिछोह की बेला में दुख और पीड़ा से आकुल व्याकुल परिजनों को कथा श्रवण के माध्यम से दुःख सहने की क्षमता विकसित करता है। और दुखी इंसान को धीरे-धीरे गम और पीड़ा के असह्य दुख से उबार कर सामान्य सामाजिक जीवन धारा में वापस लौटने में मदद करता है। इसके पीछे मन का मनोविज्ञान छुपा है क्योकि जहां जन्म है वहीं मृत्यु भी है। प्राय:इस कथा का आयोजन हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार मृत्यु के पश्चात मृतक शरीर की कपाल क्रिया अन्त्येष्टि संस्कार के बाद मृतक के परिजनों द्वारा आयोजित किया जाता है।

तब जब सारे मांगलिक आयोजन वर्जित माने जाते हैं। गरूण पुराण की कथा की बिषय वस्तु पंच तत्व रचित शरीर को मृत्यु के बाद जला देने तथा इसके बाद में इस शरीर में समाहित सूक्ष्म शरीर की परलोक यात्रा के विधान का वर्णन है। हमारे स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर होता है, जो मन के स्वभाव से आच्छादित होता है क्योकि मृत्यु शैय्या पर पडे़ व्यक्ति में कामनाएं शेष रहती है उस सूक्ष्म शरीर जिसे यमदूत लेकर धर्मराज की नगरी की यात्रा पर निकलते हैं, उसी यात्रा के वृतांत का वर्णन है। गरूण पुराण में जिसमें जिज्ञासु गरूण जी श्री नारायण हरि से प्रश्न करते हैं। और उनकी हर शंका समाधान भगवान विष्णु के द्वारा किया जाता है। उस जीव के भीतर व्याप्त मन जो  दुख और सुख की अनुभूति करता है के कर्मो का पूरा लेखा जोखा प्रस्तुत करते हैं तथा उस यात्रा के दौरान पड़ने वाले पड़ावों का मानव की सूक्ष्म शरीरी यात्रा व शुभ अशुभ कर्मों के परिणाम तथा दंड के विधान की झांकी प्रस्तुत की गई है जिसे देखकर कर सूक्ष्मशरीरी जीव कभी सुखी कभी भयभीत होता है।

इन कथा के श्रवण के पीछे भी लोक कल्याण का भाव समाहित है ताकि हमारा समाज अशुभ कर्मों के अशुभ परिणाम से बच कर, अच्छा कर्म करता हुआ सद्गति को प्राप्त हो अधोगति से बचें। इस कथा में कर्मफल तथा उसके भोग का विधान वर्णित है। इसके साथ ही  साथ ही साथ सामाजिक जीवन आदर्श आचार संहिता के पालन का दिशा निर्देश भी है। शांति पूर्ण ढंग से जीवन जीने की गाइडलाइन भी कह सकते हैं।

# ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन: #

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में भ्रातृ-प्रेम – भाग – 1 ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में भ्रातृ-प्रेम – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

महाराजा दशरथ के चार पुत्र- राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न में बचपन से ही अत्याधिक पारस्परिक प्रेम था। राम सबसे बड़े थे अत: सभी छोटे भाई उन्हें प्रेम से आदर देते थे। उनकी आज्ञा मानते थे और उनसे कुछ सीखने को तैयार रहते थे। राम भी सब छोटे भाईयों के प्रति प्रीति रखते थे और उनके हितकारी थे।

राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती, नाना भाँति सिखावहिं नीती।

छोटे भाई उनकी आज्ञा मानने को सदा तत्पर रहते थे-

सेवहिं सानुकूल सब भाई, रामचरन रति अति अधिकाई।

प्रभु मुख कमल विलोकत रहहीं, कबहुँ कुपाल हमहिं कछु कहहीं॥

जनकपुर में धनुष यज्ञ के अवसर में गुरु की आज्ञा से राम ने शिव धनुष को चढ़ाया। धनुष टूट गया। राजा जनक के प्रण के अनुसार राम-सीता का विवाह हुआ। उसी मण्डप में चारों भाइयों का विवाह भी सपन्न हुआ। जनक जी के परिवार से सीता जी की अन्य बहिनों के साथ विवाह संपन्न हुये- लक्ष्मण-उर्मिला, भरत-माण्डवी, शत्रुघ्न-श्रुतकीर्ति।

शिवधनुष के टूटने पर परशुराम जी क्रोध में उपस्थित हो धनुष तोडऩे वाले को लांछित करने लगे। यह लक्ष्मण को अच्छा न लगा। लक्ष्मण जी ने परशुराम जी को शान्त रहने के लिए कड़े शब्दों में कहा-

मिले न कबहु सुभट इन गाढ़े, द्विज देवता धरहिं के बाढ़े।

लक्ष्मण को ऐसा कहने से रोकते हुये राम स्नेहवश बोले-

नाथ करिय बालक पर छोहू, सूध दूध मुख करिय न कोहू।

दोनों भाई पारस्परिक प्रेमवश एकदूसरे को परशुरामजी के क्रोध से बचाने का प्रयास करते हैं।

राजा दशरथ अपनी वृद्धाावस्था को नजदीक देख अपने गुरु, मंत्री और समस्त प्रजा की सहमति से राम का राज्याभिषेक करने का निश्चिय करते हैं। राम को जब यह ज्ञात हुआ तो वे विचार करते हैं-

जनमे एक संग सब भाई, भोजन, सयन, केलि लरिकाई।

विमल वंश यह अनुचित एकू, बंधु बिहाय बड़ेहि अभिषेकू।

इस विचार से राम का भ्रातृप्रेम उनके मन की उदारता के भाव प्रकट होते हैं। राज्याभिषेक के स्थान पर परिस्थितियों के उलटफेर से राम को बनवास दिया गया और भरत जो तब ननिहाल में थे को गुरु वशिष्ठ ने शीघ्र बुलवाया क्योंकि भरत की माता कैकेयी के द्वारा दो वरदान पाने से राम को वन जाना पड़ा और भरत को राजगद्दी प्राप्त हुई थी। अत: उनका राज्यतिलक किया जाना था। राम के वियोग में राजा दशरथ का प्राणान्त हो गया था। उनका अंतिम संस्कार भी किया जाना था। भरत ने अयोध्या में आकर जो कुछ होते देखा उससे अत्यंत क्षुब्ध हो माता को बुरा भला कहा। पिता का अंतिम संस्कार किया। खुद को सारे अनर्थ का कारण जानकर प्रायश्चित की दृष्टि से वन में राम से मिल कर अपना मन हल्का करने का सोचा। सबने उन्हें राजपद स्वीकारने का आग्रह किया पर उन्हें राम के प्रेमवश यह सबकुछ स्वीकार नहीं था। वे सब की इच्छानुसार सबजन समुदाय और राजपरिवार तथा गुरु वशिष्ठ की अगुवाई में राम के पास जाने को चित्रकूट में जहां राम थे चलने को तैयार हुये। उधर राम को वन में छोडक़र जब मंत्रि सुमंत दुखी मन से वापस हुये तो मातृप्रेम से भरे हुये राम ने उनसे संदेश भेजा-

कहब संदेश भरत के आये, नीति न तजिब राज पद पाये।

पालेहु प्रजहिं करम मन बानी, सेएहि मातु सकल समजानी।

क्रमशः…

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २६ जून – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २६ जून – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर -ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

व. पु. काळे

वसंत पुरुषोत्तम काळे (25 मार्च 1932 – 26 जून 2001) हे ख्यातनाम लेखक, कादंबरीकार, कथाकथनकार होते.

ते पेशाने वास्तुविशारद होते व मुंबई महानगरपालिकेत नोकरीला होते.

वपुंनी 60 पेक्षा जास्त पुस्तके लिहिली आहेत.त्यांची ‘पार्टनर’, ‘वपुर्झा’, ‘ही वाट एकटीची’, ‘ठिकरी’,’आपण सारे अर्जुन’, ‘घर हरवलेली माणसं ‘ वगैरे पुस्तके  विशेष लोकप्रिय आहेत.

त्यांचे कथाकथनाचे 1600पेक्षा जास्त कार्यक्रम झाले होते. ध्वनीमुद्रणाच्या माध्यमातून रसिक वाचकांना भेटणारे ते पहिले मराठी लेखक होते.

त्यांच्या कथा- कादंबऱ्यांत जागोजागी जीवनाचे तत्त्वज्ञान सांगणारे, प्रेरणादायी विचार आढळून येत.

वपुंवर ओशो रजनीशांचा प्रभाव होता.

वपुंना महाराष्ट्र शासनाचा उत्तम लेखकाचा सन्मान, पु. भा.भावे पुरस्कार, फाय फाउंडेशनचा पुरस्कार मिळाला होता.

अमेरिकेत भरलेल्या साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

आज वपुंचा स्मृतिदिन आहे. त्यानिमित्त त्यांना नम्र अभिवादन. 🙏

☆☆☆☆☆

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकिपीडिया 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सदाफुली ☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

डॉ.सोनिया कस्तुरे   

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सदाफुली ☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

साधेपणा तुझा हा विविधरंगी बहरतो.

प्रतिकूल समयी जीवन आस खुलवितो..!

 

जमीन खडकाळ पाषाण,पाणी कमी

तू उगवत राहतेस घेऊन अनोखी उर्मी

 

केसात माळून घेण आवडलं नसेल तुला

चरणी कुणाच्या बसणं,रुजलं नसेल तुला

 

फुलदाणीतही तू कधी दिसलीच नाहीस

सजवण्यासाठी वापर, तुला पटलेच नाही

 

स्वागतासाठी कुणाच्या सवड तुला नाही

कौतुकाची देखील तुला खबरबात नाही

 

ताठ मानेचे हिरवे लेणे,स्वाभिमानाने मिरवते

कोणाशी स्पर्धा नाही, मनोमनी सुखावते

 

सदाफुली तुझ्या जगण्यास,समरुप व्हावे,

सदा बहरत राहून,नित्य आनंद लूटावे..!

© डॉ.सोनिया कस्तुरे

5 जून 2021

विश्रामबाग, जि. सांगली

भ्रमणध्वनी:- 9326818354

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ टेक ऑफ… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ टेक ऑफ… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆ 

टेकऑफ घेण्या ,

हीच योग्य वेळ.

बाकी सर्व खेळ,

संपुष्टात .

जपावी ही नाती,

अंतर राखून .

क्वारंटाईन व्हावे,

ज्याचेत्याने.

इदंन ममचा,

झाला साक्षात्कार .

केला स्वाहाकार ,

कोरोनाने.

कोरोनाने केले,

महाग जगणे.

स्वस्त झाले फक्त ,

मरणसरण.

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ तुम्ही श्रीमंत आहात की गरीब? ☆ मेघःशाम सोनवणे ☆

? विविधा ? 

☆  तुम्ही श्रीमंत आहात की गरीब? ☆ मेघःशाम सोनवणे ☆ 

तुम्ही श्रीमंत आहात की गरीब!

माझी मुलगी गरीब माणसाशी लग्न का करू शकत नाही? -एलोन मस्क.

एलोन मस्क सांगतात की त्यांची मुलगी गरीब माणसाशी लग्न का करू शकत नाही.

काही वर्षांपूर्वी अमेरिकेत ‘वित्त आणि गुंतवणूक’ या विषयावर एक परिषद झाली होती. वक्त्यांपैकी एक होते एलोन मस्क आणि प्रश्नोत्तराच्या सत्रादरम्यान त्यांना असा प्रश्न विचारण्यात आला की सर्वजण हसले. प्रश्न होता, “तुम्ही जगातील सर्वात श्रीमंत व्यक्ती आहात, तुमच्या मुलीने गरीब किंवा शामळू पुरुषाशी लग्न केले तर तुम्ही ते मान्य कराल का?.”

त्यांनी दिलेले उत्तर आपल्या प्रत्येकामध्ये काहीतरी बदल घडवू शकते.

एलोन मस्क म्हणाले, “सर्वप्रथम हे समजून घ्या की, ‘संपत्ती’ म्हणजे आपल्या बँकेच्या खात्यात खूप पैसे असणे नव्हे. संपत्ती ही प्रामुख्याने संपत्ती निर्माण करण्याचे एक साधन असते.

उदाहरणार्थ लॉटरी किंवा जुगार जिंकणारी व्यक्ती. जरी त्याने शंभर कोटी जिंकले तरी तो श्रीमंत माणूस होत नाही: तो खूप पैसा असलेला गरीब माणूस आहे. कारण लॉटरी चे बक्षीस मिळाल्याने करोडपती झालेले नव्वद टक्के लोक पाच वर्षांनंतर पुन्हा गरीब झालेले आढळून आले आहे.

आपल्याकडे पैसे नसूनही श्रीमंत असलेल्या अनेक व्यक्तीही आहेत. उदाहरण द्यायचे झाले तर बहुतेक उद्योजकांचे देता येईल. त्यांच्याकडे पैसा नसतानाही ते संपत्तीच्या मार्गावर अग्रेसर आहेत, कारण ते त्यांची आर्थिक बुद्धिमत्ता विकसित करत आहेत आणि ती म्हणजे संपत्ती होय.

श्रीमंत आणि गरीब कसे वेगळे आहेत? सोप्या भाषेत सांगायचे तर: श्रीमंत अजून श्रीमंत होण्यासाठी मरतात, तर गरीब हे श्रीमंत होण्यासाठी मारू शकतात.

जर तुम्हाला एखादी तरुण व्यक्ती प्रशिक्षण घेण्याचा, नवीन गोष्टी शिकण्याचा निर्णय घेतांना, जो सतत स्वतःमध्ये सुधारणा करण्याचा प्रयत्न करतो, तर समजून घ्या की तो/ती एक श्रीमंत व्यक्ती आहे.

जर तुम्ही एखादी तरुण व्यक्ती बघाल जी सतत सरकार ला दोष देते, आणि श्रीमंत असलेले सगळे चोर आहेत असे समजणारा आणि सतत टीका करत रहाणारा तरुण दिसला तर तो गरीब माणूस आहे हे समजून चला.

श्रीमंतांना खात्री आहे की त्यांना उड्डाण भरण्यासाठी फक्त माहिती आणि प्रशिक्षण आवश्यक आहे, गरीबांना वाटते की प्रगती साधण्यासाठी इतरांनी त्यांना पैसे दिले पाहिजेत.

शेवटी, जेव्हा मी म्हणतो की माझी मुलगी गरीब माणसाशी लग्न करणार नाही, तेव्हा मी पैशांबद्दल बोलत नाही. मी त्या माणसामधील संपत्ती निर्माण करण्याच्या क्षमतेबद्दल बोलत आहे.

हे बोलल्याबद्दल मला माफ करा, पण बहुतेक गुन्हेगार हे गरीब लोक असतात. जेव्हा त्यांना समोर पैसे दिसतात तेव्हा त्यांचे डोके फिरते, म्हणूनच ते लुटतात, चोरी वगैरे करतात … ते याच्याकडे एक संधी म्हणून बघतात कारण ते स्वतःहून पैसे कसे कमवू शकतील हे त्यांना माहित नसते.

एके दिवशी एका बँकेच्या सुरक्षा रक्षकाला (गार्ड) पैशांनी भरलेली बॅग सापडली, ती बॅग घेऊन तो बँक मॅनेजरकडे द्यायला गेला.

लोक या माणसाला मूर्खशिरोमणी म्हणाले, पण प्रत्यक्षात हा स्वतःकडे पैसे नसलेला असा एक श्रीमंत माणूस होता.

एका वर्षानंतर, बँकेने त्याला स्वागतकक्षात रिसेप्शनिस्ट म्हणून नोकरीची संधी दिली, तीन वर्षांनंतर तो ग्राहक व्यवस्थापक (कस्टमर मॅनेजर) झाला होता आणि दहा वर्षांनंतर तो या बँकेचा प्रादेशिक व्यवस्थापक (रिजनल मॅनेजर) म्हणून काम पहात आहे. त्याच्या हाताखाली शेकडो कर्मचारी आहेत आणि ती सापडलेली बॅग त्याने चोरली असती तर त्यातील रकमेपेक्षा त्याच्या वार्षिक बोनसची रक्कम जास्त आहे.

‘संपत्ती’ ही सर्वप्रथम मनाची एक अवस्था मात्र असते!

तर…  तुम्ही श्रीमंत आहात की गरीब? स्वतःच ठरवा.

मुळ इंग्रजी लेखाचा स्वैर मराठी अनुवाद करून मी हा लेख तयार केला आहे. आवडल्यास शेअर करतांना लेखात बदल न करता नावासह शेअर करा ही विनंती.

-मेघःशाम सोनवणे

इंग्रजी लेखाचे लेखक – अनामिक.

मराठी अनुवाद – मेघःशाम सोनवणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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