श्री शंभु शिखर

(आज  प्रस्तुत है सुश्री लीना खेरिया जी की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘सफर अहसासों का ‘पर सर्वाधिक लोकप्रिय हास्य कवि श्री शंभु शिखर जी  की पुस्तक चर्चा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘सफर अहसासों का ‘’ – सुश्री लीना खेरिया ☆ समीक्षा – श्री शंभु शिखर ☆

पुस्तक का नाम – सफर अहसासों का

रचयिता – लीना खेरिया

प्रकाशक – स्टोरीमिरर इंफोटेक प्रा. लि

पृष्ठ संख्या ‏ – ‎ 154 पेज

मूल्य- ₹ 225 ( पेपरबैक)

मूल्य- ₹ 99 (किंडल एडिशन)

अमेज़न लिंक 👉 सफर अहसासों का

☆ अनुभूतियों का नया संसार रचती कविताएँ.. – श्री शंभु शिखर 

चार वर्षों के अंतराल के बाद लीना खेरिया का दूसरा काव्य संग्रह सफर अहसासों का मार्च 2022 में सतहे आम पर आया है। इस अंतराल में उनकी अनूभूतियों की व्यापकता, चिंतन की गहराई और विषयों की विविधता का विस्तार स्पष्ट दिखाई देता है। प्रकृति के साथ अंतरंगता, अध्यात्म के प्रति रूझान, रिश्तों और संबंधों का खट्टा-मीठा स्वाद, सामाजिक विडंबनाओं के प्रति चिंता की झलक कुछ ज्यादा स्पष्ट आकार बनाता दिखता है। इनमें अहसासों का चार वर्षों का सफरनामा साफ परिलक्षित होता है। संग्रह में 100 काव्य रचनाएँ हैं जिनमें कविताओं के अलावा कुछ ग़ज़लें भी शामिल हैं।

संग्रह की एक कविता अंधाधुंध धुआं ड्रग्स के नशे में अपने और राष्ट्र के भविष्य को बर्बादी की ओर ले जाती युवा पीढ़ी पर केंद्रित है। निःसंदेह यह वर्तमान समय में गहन वैश्विक चिंता का विषय है। हमारे देश में भी नशे के सौदागरों का जाल महानगरों से लेकर कस्बों तक बिछा हुआ है। हजारों-हजार करोड़ के ड्रग्स समुद्री और सड़क मार्ग से ले जाये जा रहे हैं। कुछ पकड़े जाते हैं, कुछ पकड़ में नहीं आते हैं। युवा वर्ग को नशे का गुलाम बनाने की साजिश रची जा रही है। इस विषय पर फिल्में तक बन चुकी हैं लेकिन साहित्यिक विधाओं में इसका उतना समावेश नहीं हो पाया है जितना संवेदनाओं को झकझोरने के लिए होना चाहिए था। कवयित्री चकाचौंध भरी गलियों में सिर्फ धुँआ-धुआँ और अंधाधुंध धुआँ देखती है और खुद से पूछती है कि हमसे कहाँ पर चूक हुई, क्या गलत हुआ कि नये पौधों की नींव और जड़ें अंदर से पूरी खोखली होती गईं। कवयित्री कहती है-

सफेद जहर की हमारी युवा पीढ़ी 

न जाने क्यों इतनी आदी हो गई

सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे

और नाक के नीचे ये बर्बादी हो गई…

चक्रवात शीर्षक कविता में कवयित्री जीवन की जटिलताओं को महसूस करती हुई मन के अथाह सागर में उठते चक्रवात देखती है, खुद को भंवर में डूबता हुआ पाती है लेकिन नाउम्मीद नहीं होती। कहती है-

ये उम्मीद का लालटेन

है तो कुछ धुंधला सा ही

पर तसल्ली है कि 

कम से कम

अब तक रौशन तो है.

यह कविता घोर निराशाओं के बीच भी जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की सीख देती है। लीना खेरिया के काव्य संसार की यह खूबी है कि जीवन के अंधेरे पक्ष को उजागर करने में संकोच नहीं करती लेकिन रौशनी की किरनों के आसपास होने का भरोसा भी दिलाती है। अगर रात है तो उसके आसपास सवेरा भी मौजूद है जिसका क्षितिज पर उभरना उतना ही तय है जितना रात का आना। यह भारतीय दर्शन का शाश्वत सूत्र है जो मनुष्य को कभी निराश नहीं होने देता। धैर्य को बनाए रखता है।

सुश्री लीना खेरिया 

(मॉं की ममता पिता का  त्याग  और ना जाने कितनी ही भावनाओं के खूबसूरत शाख बोयें हैं मैनें इस सफ़र के रास्तें पर जिनको छू कर गुजरती बयार आपके भी मन को अवश्य ही महका जायेगी…)

कवयित्री की चेतना साकार से निराकार की ओर निरंतर यात्रा करती है। चंपई बनारसी साड़ी शीर्षक कविता में कवयित्री दांपत्य जीवन की मधुरिमा में ईश्वरीय चेतना की अनुभूति करती है। वह प्रियतम से उपहार में मिली उसकी पसंदीदा बनारसी साड़ी पहनकर दर्पण में स्वयं को निहारती है तो उसकी छुअन से उसे महसूस होता है जैसे अस्सी घाट की निचली सीढ़ी पर पैर लटका कर बैठी हुई गंगा मैय्या की उजली कोमल लहरों का पावन शीतल स्पर्श कर रही हो। अपने कानों में अपने प्रियतम की आवाज़ की गूंज को बाबा विश्वनाथ के मंदिर की असंख्य घंटियों की ध्वनि और उनकी प्रतिध्वनि की खनखनाती स्वर लहरी में रस घोलती सी महसूस करती है जो समूचे वातावरण को और उसके मन तथा अंतर्मन को भी झंकृत कर रही हो। कहते हैं कि प्रेम की भावना जब मन में तरंगित होती है तो इंसान को अध्यात्म की गहराइयों की ओर ले जाती है। इसीलिए कवयित्री को बनारसी साड़ी सिर्फ एक मोहक परिधान नहीं दिखता बल्कि उसके अंदर काशी-विश्वनाथ का पूरा धाम दिखाई देता है। 

प्रेम और अध्यात्म के अंतर्संबंधों की भाव यात्रा के पड़ाव लीना खेरिया की अधिकांश श्रृंगार रस की कविताओं में दृश्यमान हैं। ताबीज शीर्षक कविता में वह अपने प्रियतम को संबोधित करती हुई कहती हैं कि उन्होंने उसे अपनी सपनीली आंखों में बसे काजल की काली डोरी में पिरोकर किसी पाकीज़ा ताबीज़ की तरह गले में धारण कर रखा है जो हर मुसीबत, हर बला से उसकी रक्षा करता है और यह बेहद बेशकीमती ताबीज़ किसी पीर, फकीर या मौलवी से नहीं ख़ुद खुदा से हासिल हुआ है। 

नारी मन की पीड़ा की जबर्दस्त अभिव्यक्ति कब आएंगे मेरे राम शीर्षक कविता में हुई है। कवयित्री को नारी समाज के प्रतिनिधि के रूप में अपने अंदर एक अहिल्या दिखाई देती है जो किसी और की भूल और अनाचार के कारण श्रापित होकर सदियों से पाषाण बनी पड़ी हुई है। जिसकी सारी वेदनाएं, संवेदनाएं जड़वत हो गई हैं और जिसे अपनी मुक्ति के लिए किसी राम के आगमन का इंतजार है। वह अपने आप से पूछती है कि क्या एक दिन उसके राम आएंगे जिनके स्पर्श मात्र से वह फिर से अहिल्या की तरह जी उठेगी। दरअसल पुरुष प्रधान पारंपरिक समाज में नारी रीति रिवाजों और मर्यादाओं के बंधन से इस तरह जकड़ दी जाती है कि अहिल्या की तरह पाषाण की मूरत बनी रहती है। उसे अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करने के लिए, अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह उभारने के लिए किसी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के स्पर्श का इंतजार रहता है। यह कविता दुनिया भर में चल रहे नारी मुक्ति आंदोलनों की ओर इशारा करती है। इसी कड़ी में एक कविता है-उद्धार करो जिसमें वह राम से विनती करती है कि आओ और अपने दिव्य स्पर्श से मेरा उद्धार कर दो। लिंग भेद पर केंद्रित संग्रह की एक कविता है नारी जीवन। कवयित्री पूछती है-

अगर बेटा अपना खून है तो

होती बेटी आखिर पराई क्यूं

जब साथ में दोनों पले बढ़े तो

होती बेटी की आखिर विदाई क्यूं

दिल के रिश्तों में दूरी कोई मायने नहीं रखती। जो दिल के करीब होता है वह दूर रहकर भी हमेशा अपने आसपास ही प्रतीत होता है। तुम जाकर भी नहीं जाते शीर्षक कविता में वह हर जगह अपने प्रियतम की झलक महसूस करती है। वह कहती है-

और घर में घुसते ही

दाहिनी ओर लगे

शो केस की दराज में

मुंह छुपाए…न जाने कबसे

छुपी बैठी है तुम्हारी खुशबू

जो दराज़ खोलते ही

अक्सर ले लेती है मुझे

अपनी गिरफ्त में

और कर देती है मुझे

बिल्कुल…बदहवास…

घर के बाहर और घर के अंदर हर जगह प्रियतम की यादें उसका पीछा करती हुई प्रतीत होती हैं और अंत में वह प्यार से कहती है-

अरे बाबा…

मेरा पीछा करना छोड़ दो

अब जाओ ना

जाओ ना…

इसी तरह संग्रह की सभी कविताएं भावों और संवेदनाओं का अपना संसार रचती प्रतीत होती हैं। सीधे मन की गहराइयों में उतरकर ह्रदय को उद्वेलित करती हैं। इनके बीच से होकर गुजरना अनूभूतियों के महासमुद्र में गोते लगाने सा प्रतीत होता है। उनकी कविताओं का शिल्प, विषय और उसके अनुरूप प्रतीकों का चयन स्वाभाविक प्रवाह में मगर सावधानी का संकेत देता है। उनमें रस भी है और प्रवाह भी। हिंदी कविताओं की भीड़ में लीना खेरिया एक अलग रस, अलग रंग और अलग तेवर के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। 

चित्र साभार – Shambhu Shikhar- Comedian, Hasya Kavi, Poet, Actor, Official Website

समीक्षक – श्री शंभु शिखर

संपर्क – A-428, छतरपुर एन्क्लेव, फेज-I, नई दिल्ली – 110074

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Leena Kheria

अपनी पत्रिका e-abhivyakti में मेरे काव्य संकलन “सफ़र एहसासों का “ पर पुस्तक चर्चा के तहत पुस्तक पर देश के सर्वाधिक लोकप्रिय हास्य कवि श्री शंभु शिखर जी द्वारा लिखी समीक्षा के खूबसूरत प्रकाशन के लिए मैं पत्रिका के संपादक आदरणीय हेमंत बावनकर जी को हार्दिक आभार प्रेषित करती हूँ 🙏🏻