English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 96 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 96 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 96) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 96 ?

☆☆☆☆☆

उम्र ने एक दिन तलाशी ली…

तो  जेब से कुछ लम्हे बरामद हुए

कुछ गम के थे

कुछ नम से थे

और कुछ टूटे-फूटे…

बस कुछ ही सलामत मिले

जो बचपन के थे..!

One day, the age

searched my life

Found some moments,

recovered from the pocket

Some were sad

Some were bad

And some, broken…

Only a few were intact

Those were of

the childhood..!

☆☆☆☆☆ 

ना ही गुजरे लम्हों का था ख्याल,

ना आने वाले वक्त का कोई इल्म,

नादानियों में जो यूँही गुज़र गया,

क्या वक्त  वो कमाल का था…!

Neither was any thought of the time bygone

Nor any premonition of the coming moments…

The time just passed away in doing spirited follies,

What an amazing time of the life, it used to be…!

☆☆☆☆☆ 

क्या ग़ज़ब का रिश्ता हो

गया है ये तेरा मेरा…

बात दोनों ही नहीं करते

 याद दोनों ही कराते हैं…!

What an inexplicable relationship

has become, yours and mine…

Both of us do not talk but

we both remember each other…!

☆☆☆☆☆

जाते जाते ही सही…

ये मलाल रह गया,

क्या उसे भी इश्क़ था…

ये सवाल रह ही गया…!

This anguish kept on lingering

even while being separated,

Was she also in love with me,

this ambiguity remained only…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 96 ☆ मुक्तिका…क्या बताएँ कौन हैं… ? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित मुक्तिका…क्या बताएँ कौन हैं… ? )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 96 ☆ 

☆ मुक्तिका… क्या बताएँ कौन हैं?

क्या बताएँ कौन हैं?

कुछ न बोले मौन हैं।

 

आँख में पानी सरीखे

या समझ लो नौन हैं।

 

कहीं तो हम नर्मदा हैं

कहीं पर हम दौन हैं।

 

पूर्व संयम था कभी पर

आजकल यह यौन है।

 

पूर्णता पहचान अपनी

नहीं अद्धा-पौन हैं।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-५-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #127 ☆ विश्वगुरू भारत ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 127 ☆

☆ ‌कविता – विश्वगुरू भारत ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

आर्यावर्त था देश हमारा,

विश्व गुरु था जग से न्यारा।

गौरवशाली इसकी शान,

अतुलनीय इतिहास महान।

इसने विश्व को ज्ञान दिया,

और दशमलव मान दिया।

अंतरिक्ष की दूरी नापी,

भरत नाम पहचान है काफी। ।1।।

 

प्यारा भारत देश हमारा,

ये है सारे जग से न्यारा।

ऋषि मुनियों की तपस्थली है,

दयाधर्म की हृदयस्थली है।

सत्यधर्म है इसकी आन,

शूर वीरता है पहचान।

ऋषिकुलो के वंशज हैं हम,

मानव कुल के अंशज है हम।।2।।

 

एक बार फिर त्याग से अपने,

धर्मध्वजा फहरायेंगे।

विश्वगुरु बन भारतवासी,

राष्ट्र का मान बढायेंगे।

एक बार फिर सारे जग में,

ज्ञान की जोत जलायेंगे।

अपने सत्कर्मो से फिर

हम विश्व गुरु कहलायेंगे।।3।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में प्रतिपादित पारिवारिक आदर्श – भाग – 2॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में प्रतिपादित पारिवारिक आदर्श – भाग – 2 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

महाराज दशरथ के व्यवहार में अगाध पुत्र प्रेम, माता कौशल्या, सुमित्रा के व्यवहार में वत्सलता, भरत और लक्ष्मण के कार्यकलापों में भ्रातृ प्रेम और भ्रातृनिष्ठा तथा सीता में पत्नी के उच्चादर्श और पति के मनसा, वाचा, कर्मणा निष्ठा के आदर्श प्रस्तुत हैं। राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ही उनके सबके साथ चाहें वे परिवार के सदस्य हो, गुरु हों, परिजन हो, पुरजन हों या  निषाद, कोल, किरात, सेवक या शत्रु राक्षस ही क्यों न हो उनके प्रति भी ईमानदारी और भक्ति वत्सलता स्पष्ट हर प्रसंग में सर्वाेपरि है। मानस तो नीति प्रीति और लोक व्यवहार का अनुपम आदर्श प्रस्तुत करता है जिस का रसास्वादन और आनंद तो ग्रंथ के अनुशीलन से ही प्राप्त हो सकता है किन्तु सिर्फ बानगी रूप में कुछ ही प्रसंग उद्धृत कर मैंने लेख विस्तार और समय सीमा को मर्यादित रखकर कुछ संकेत करने का प्रयास किया है जिससे पाठक मूल ग्रंथ को पढऩे की प्रेरणा पा सकें। मानस कार ने कहा है –

जहाँ सुमति तँह संपत्ति नाना। जहाँ  कुमति तँह विपति निदाना।

यह कथन राजा दशरथ के परिवार पर अक्षरश:  सत्य भाषित होता है। कैकेयी की कुमति ने सुख से भरे और सम्पन्न परिवार पर विपत्ति का वज्राघात किया- राजा दशरथ और रानी कैकेयी के  दाम्पत्य प्रेम, विश्वास और कैकेयी की स्वार्थपूर्ण कुमति की झलक-

दशरथ-

झूठेहु हमहि दोष जनिदेहू: दुई के चार माँग कि न लेहू,

रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाँहि बरु वचन न जाई।

कैकेयी-         

सुनहु प्राणप्रिय भावत जीका, देहु एक वर भरतहिं टीका

मांगऊँ दूसरि वर कर जोरी, पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी।

तापस बेष विशेष उदासी, चौदह बरस राम वनवासी॥

यह सुन दशरथ सहम गये-

सुन मृदु बचन भूप हिय सोचू,

शशिकर छुअत विकल जिमी कोकू।

किन्तु राम का माता कैकेयी के प्रति स्नेहभाव-

मोहि कहु मात तात दुख कारण,

करिअ जतन जेहि होहि निवारण।

कैकेयी का उत्तर-

सुनहु राम सब कारण ऐहू राजहि तुम पर अधिक सनेहू

सुत सनेह इत वचन उत, संकट परेउ नरेश,

सकहु तो आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेश॥

राम की विनम्रता-

सुनु जननी सुत सोई बड़भागी, जो पितुमात चरण अनुरागी

तनय मातु-पितु तोषण हारा दुर्लभ जननि सकल संसारा॥

वनवास तो सब प्रकार हितकर होगा-

मुनिगण मिलन विशेष वन, सबहि भाँति हित मोर,

तेहि महुँ पितु आयसु बहुरि सम्मत जननी तोर।

भरत प्राणप्रिय पावहिं राजू विधि सब विधि मोहि संमुख आजू,

जोन जाऊँ  वन ऐसेऊ काजा, प्रथम गण्हि मोंहि मूढ़ समाजा॥

कैकेयी का राम के प्रति कथन-

तुम अपराध जोग नहि ताता जननी जनक बंधु सुखदाता

राम सत्य सब जो कछु कहहू, तुम पितुमात वचनरत रहहू।

पितहि बुझाई कहहु बलि सोई, चौथेपन जेहि अजसु न होई,

तुम सम सुअन सुकृत जिन्ह दीन्हे, उचित न तासु निरादर कीन्हे।

राम प्रसन्न हैं। कवि कहता है-

नव गयंद रघुवीर मन राज अलान समान

छूट जान बन गवन सुनि, उर अनंद अधिकान॥

राम का पितृ प्रेम

धन्य जनम जगदीतल तासू पिताहि प्रमोद चरित सुन जासू

चार पदारथ करतल ताके प्रिय पितुमात प्राण सम जाके ॥

दशरथ प्रेम विह्वल हो-आँखें खोलते हैं-

सोक विवस कछु कहे न पारा हृदय लगावत बारहिंबारा,

विधिहिं मनाव राऊ उर माही, जेहि रघुनाथ न कानन जाहीं॥

अवधवासी पर दुख

मुख सुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाय,

मनहुँ करुण रस कटकई उतरी  अवध बजाय॥

नारियाँ कैकेयी को समझाती हैं-

भरत न प्रिय तोहि राम समाना।

सदा कहहु यह सब जन जाना॥

करहु राम पर सहज सनेहू,

केहि अपराध आज बन देहू?

संकेत :

सीय कि प्रिय संग परिहरिहिं, लखन कि रहहहिं धाम

राज की भूंजब भरत पुर, नृप कि जिअहि बिनु राम।

कौशल्या का कथन-

पति के प्रति प्रेम व विश्वास दर्शाता है।

राज  देन  कहि  दीन्ह बन  मोहि  सो  दुख  न लेस

तुम बिन भरतहि भूपतिहि, प्रजहि, प्रचंड कलेश।

जो केवल पितु आयसु ताता तो जनि जाहु जानि बडि़ माता

जो पितुमात कहेऊ बन जाना तो कानन सत अवध समाना॥

पूत परम प्रिय तुम सबहीके प्राण प्राण के जीवन जीके

ते तुम कहहु मात बन जाऊँ, मैं सुनि बचन बैठ पछताऊँ।

सीता-  

समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाय,

जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिर नाय।

पति प्रेम-

जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते, प्रिय बिन तियहि तरनिते ताते

तन, धन, धाम, धरनि, पुर, राजू, पति विहीन सब शोक समाजू।

जिय बिन देह, नदी बिन बारी तैसेहि नाथ पुरुष बिन नारी

नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे, सरद विमल बिधु बदन निहारे।

लक्ष्मण की दशा-

कहि न सकत कछु चितवत ठाढ़े, दीन मीन जनु जल ते काढे,

मो कह काह कहब रघुनाथा, रखिहहि भवन कि लैहहिं साथा।

सुमित्रा का कथन लक्ष्मण के प्रति-

अवध तहाँ जहँ राम निवासू, तँहइ दिवस जहँ भानुप्रकासू

जो पै राम-सीय वन जाहीं, अवध तुम्हार काम कछु नाहीं।

राम-प्राण प्रिय जीवन जीके, स्वारथ रहित सखा सब हीके

सकल प्रकार विकार बिहाई, सीय-राम पद सेवहुु जाई

तुम कहँ वन सब भाँति सुपासू, सँग पितु मात रामसिय जासू

सीता का पति प्रेम-

प्रभा जाइ कँह भानु विहाई, कहँ चंद्रिका चंदु तज जाई।

केवट प्रसंग में-

पिय हिय की सिय जाननिहारी, मनिमुंदरी मन मुदित उतारी।

भरत का अयोध्या में आते ही आक्रोश और पश्चाताप-

राम विरोधी हृदय दे प्रकट कीन्ह विधि मोही,

मो समान को पातकी बादि कहहुँ कहु तोही।

कौशल्या भरत को देखते ही-

भरतहि देखि मातु उठिघाई, मुरछित अवनि परी झंई आई।

भरत-

देखत भरत विकल भये भारी, परे चरण तन दशा बिसारी।

कौशल्या-

सरल स्वभाव माय हिय लाये, अतिहित मनहु राम पुनि आये,

भेंटेहु बहुरि लखन लघु भाई, शोक सनेह न हृदय समाई।

भरत-   ते पातक मोहि होऊ विधाता, जो येहि होइ भोर मत माता।

राम ने चित्रकूट में भरत से कहा-

करम बचन मानस विमल तुम समान तुम तात।

गुरु समाज, लघुबंधु गुण कुसमय किमि कहिजात॥

राम आदर्श पति हैं- पत्नी प्रेम में सात्विक भाव से दाम्पत्य जीवन का आनंद भी लेते दिखते हैं-

एक बार चुनि कुसुम सुहाये, निज कर भूषण राम बनाये।

सीतहिं पहराये प्रभु सादर बैठे फटिक शिला अति सुंदर।

मानस में तुलसी दास जी ने राक्षस परिवार की पत्नी और भाई के भी आदर्श संदर्भ प्रस्तुत किये हैं। मंदोदरी की अपने पति रावण को सलाह-

तासु विरोध न कीजिय नाथा, काल, करम जिव जिनके हाथा।

अस विचार सुनु प्राणपति, प्रभुसन बयरु विहाई,

प्रीति करहु रघुवीर पद मम अहवात न जाई।

भाई को (रावण को) विभीषन की सही सलाह-

जो कृपाल पूँछेहु मोहि बाता, मति अनुरुप कहऊ हित ताता

जो आपन चाहे कल्याणा, सुजस सुमति शुभ मति सुख नाना

तो पर नार लिलार गोसाई तजऊ चउथ के चंद की नाई

चौदह भुवन एक पति होई, भूत द्रोह तिष्ठइ नहिं सोई

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत

इस प्रकार मानस में परिवारिक स्नेह के संबंधों के अनुपम आदर्श प्रस्तुत किये गये हैं। जिनका अनुकरण और अनुसरण कर आज के विकृत समाज के हर परिवार को सुख-शांति और समृद्धि प्राप्ति का रास्ता मिल सकता है।

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १२ जून – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १२ जून – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

आज १२ जून —प्रत्येक रसिक मराठी मनावर आपला कायमस्वरूपी ठसा उमटवून गेलेले सर्वांचे लाडके आणि सर्वज्ञात व्यक्तिमत्व म्हणजे श्री. पु . ल. देशपांडे, हे विधान खरोखरच वादातीत आहे. आज त्यांचा स्मृतीदिन.

( ८/११/१९१९ – १२/६/२००० )

त्यांच्याविषयी काय काय आणि किती सांगावे ? – हा खरंच फार कठीण प्रश्न आहे. सर्वोत्तम विनोदी लेखक अशी जरी त्यांची प्रथमदर्शनी ओळख सांगितली जात असली तरी, चित्रपटकथा-लेखक, नाटककार, दिग्दर्शक,  निर्माता, संगीतकार , अभिनेता , हजरजवाबी वक्ता, उत्तम संवादिनी – वादक , संगीतातील दर्दी, एकपात्री नाट्यप्रयोग गाजवणारे श्रेष्ठ कलाकार, अशी स्वतःची अनेकांगी ओळख ज्यांनी स्वतःच्या चतुरस्त्र कलागुणांनी निर्माण केली होती असे “ आपले “ पु. ल. ऊर्फ भाई.

त्यांच्यासारखाच त्यांचा विनोदही चौफेर फटकेबाजी करणारा होता. तो विनोद सर्वसामान्यांना खळखळून हसवणारा तर होताच , पण योग्य तिथे अतिशय मार्मिक होता, खटकणाऱ्या गोष्टी आवर्जून अधोरेखित करणारा होता, समाजासाठी बाधक ठरू शकणाऱ्या गोष्टी नेमक्या हेरून त्याकडे लक्ष वेधायला लावणारा होता —- पण तो कायम फक्त निखळ स्वरूपाचाच असायचा, हे फार महत्वाचे, आवर्जून लक्षात घेण्यासारखे आहे.  विनोदाच्या माध्यमातून त्यांनी केलेले कुठलेही भाष्य कधी कुणाला थेट दुखवणारे नक्कीच नसायचे. पण ते जिथे पोहोचणे अपेक्षित असायचे तिथे नक्की पोहोचत असणार याची जाणकारांना मनोमन खात्री वाटायची. आणि पु. ल. यांच्या विनोदाचे,  त्यांच्या विचारसमृद्धीचे, तसेच वाचा-समृद्धीचे  हे खास वैशिष्ट्य होते असे नक्कीच म्हणावेसे वाटते.

आपल्या बहुतेक सर्व प्रकारच्या लिखाणातून त्यांनी वाचकांसाठी हसू आणि आनंद यांची मुक्तहस्ताने सतत उधळण केली, आणि यापुढेसुद्धा कुणीही जेव्हा केव्हा ते लिखाण वाचेल तेव्हा तेव्हा ती उधळण तशीच सतत होत राहील हे निश्चित. या लिखाणात त्यांनी उभ्या केलेल्या व्यक्तिरेखा तर जणू इतक्या जिवंत आहेत की वाचतांना वाचक त्यांच्यामध्ये स्वतःलाही काही काळ विसरून जातो— ही त्यांच्या लिखाणाची ताकद आहे.   

“इदं न मम“ या भावनेने जोपासलेला त्यांचा दानशूरपणाही आवर्जून लक्षात घेण्यासारखा आहे. आपण समाजाचे नक्कीच काही देणे लागतो हा विचार प्रत्यक्ष कृतीत उतरवणाऱ्या काही मोजक्या लोकांपैकी एक म्हणजे पु. ल., ही गोष्ट तर सर्वज्ञातच आहे. या हिऱ्याचा हा आणखी एक लकाकता पैलू.  

त्यांनी लिहिलेले आणि प्रकाशित झालेले सर्वच साहित्य इतके सुप्रसिद्ध आणि लोकप्रिय झालेले आहे, की त्याची यादी इथे देण्यात औचित्य यासाठी राहिलेले नाही की त्यांच्या बहुतेक सगळ्याच पुस्तकांची कित्येक रसिक वाचकांनी अक्षरशः पारायणे केली असतील. किंबहुना असा एकही मराठी रसिक वाचक नसेल, ज्याने त्त्यांचे कुठलेच लिखाण वाचलेले नाही . त्यांचे कुठलेही पुस्तक आधी वाचलेले असले तरी पुनः पुन्हा वाचावेसे वाटते, दरवेळी नव्याने वाचल्यासारखे वाटते आणि दरवेळी तितकेच उत्स्फूर्त हसवून वाचकाला फ्रेश करून टाकते. 

अशा चिरस्मरणीय पद्मभूषण  पु. ल. यांना आजच्या त्यांच्या स्मृतिदिनी अतिशय भावपूर्ण विनम्र आदरांजली. 🙏

☆☆☆☆☆

“ भाषातज्ञ “ म्हणून ख्यातनाम झालेले श्री. कृष्णाजी पांडुरंग कुलकर्णी यांचा आज स्मृतिदिन.

 ( ५/१/१८९२ – १२/६/१९६४ ) 

एम.ए.बी.टी. झालेले श्री कुलकर्णी हे आधी अहमदाबाद येथे आणि नंतर मुंबईमध्ये संस्कृतचे प्राध्यापक म्हणून कार्यरत होते. पुढे त्यांनी प्राचार्य म्हणून शेवटपर्यंत काम केले. पण विशेष म्हणजे त्याच्या जोडीनेच त्यांनी मराठी भाषेसाठीही भरपूर काम केले. “ मराठी संशोधन मंडळाचे संचालक “, महाराष्ट्र सरकारच्या “ भाषा सल्लागार- मंडळा “चे अध्यक्ष , मराठी शुद्धलेखन समितीचे कार्यवाह, अशा  वेगवेगळ्या पदांची जबाबदारी त्यांनी उत्तम तऱ्हेने  सांभाळली होती. 

१९५२ साली अंमळनेर इथे झालेल्या मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद त्यांनी भूषविले होते. 

त्यांचे वैविध्यपूर्ण प्रकाशित साहित्य पुढीलप्रमाणे —- 

ऐतिहासिक पत्रव्यवहार. 

कृष्णाकाठची माती – आत्मचरित्र ,

पेशवे दप्तर — ४५ खंड. यासाठी सहसंपादक म्हणून काम . 

भाषाशास्त्र व मराठी भाषा . 

मराठी भाषा – उद्गम व विकास 

मराठी व्याकरणाचे व्याकरण 

मराठी व्युत्पत्तिकोश 

महाराष्ट्र-गाथा — यासाठी श्री. प्र. के.अत्रे हे सहसंपादक होते . 

मुकुंदराजाचा विवेकसिंधू— संपादन. 

राजवाडे मराठी धातुकोष —- संपादन . 

शब्द : उगम आणि विकास . 

Sanskrit drama and dramatists — इंग्लिश पुस्तक. 

धर्म : उद्गम आणि विकास – जी. एफ. म्यूर यांच्या “ दि बर्थ अँड ग्रोथ ऑफ रिलिजन “ या ग्रंथाचे भाषांतर. 

श्री. कृष्णाजी पांडुरंग कुलकर्णी यांना आजच्या स्मृतिदिनी मनापासून आदरांजली.🙏

☆☆☆☆☆

संस्कृतचे प्रकांड पंडित असणारे डॉ. केशव रामराव जोशी यांचाही आज स्मृतिदिन. 

( ७/३/१९२८ – १२/६/२०१२ ) 

संस्कृतचे प्राध्यापक म्हणून काम करत असतांना, एकीकडे डॉ. जोशी यांनी ग्रंथलेखनाचेही खूप काम केले होते. काशीला राहून तिथल्या शास्त्री- पंडितांकडून त्यांनी प्राचीन व अर्वाचीन परंपरांचे अध्ययन केले होते. तसेच एम.ए. झाल्यानंतर संस्कृत विषयातच त्यांनी डॉक्टरेट मिळवली होती. पुढे नागपूर विद्यापीठात संस्कृत-विभाग प्रमुख, आणि विद्यापीठाच्या संस्कृत अभ्यास मंडळाचे अध्यक्ष अशा दोन्ही जबाबदाऱ्या त्यांनी सांभाळल्या होत्या. याव्यतिरिक्त, तत्वज्ञान, वेदाभ्यास, शास्त्राभ्यास, व्याकरण अशा विषयांचाही त्यांचा सखोल अभ्यास होता. त्यांना वेगवेगळ्या राज्यांमधून मिळालेल्या वेगवेगळ्या पदव्या हे त्यांच्या या ज्ञानसंपदेचे प्रतीक आहेत. त्या पदव्या अशा होत्या — 

“काव्यतीर्थ“–कलकत्ता , “ साहित्याचार्य “– जयपूर , “ साहित्योत्तम “ – बडोदा , “ संपूर्ण दर्शन मध्यमा “ – वाराणसी . अनेकांना त्यांनी पी.एच.डी. साठी मार्गदर्शन केले होते. 

ललित लेखनावरही त्यांचे प्रभुत्व होते. संस्कृत प्रचारिणी सभेतर्फे प्रकाशित होणाऱ्या “ संस्कृत भवितव्यं  “ या मासिकाचे ते अनेक वर्षं संपादक होते. आपल्या संस्कृत साहित्यातून त्यांनी हुंड्यासारख्या सामाजिक समस्यांचाही उहापोह केला होता. 

त्यांची साहित्य-संपदा अशी —

शारीरिक भाष्यावरील विश्लेषण – पुस्तक   

“ नीळकंठविजयम‘आणि ‘रहस्यमयी “ या नाटिका. 

“ गोष्टीरूप वेदान्त “

“ न्यायसिद्धान्त मुक्तावली “ – संगणक ज्या तर्कशास्त्रावर चालतो, त्या तर्कशास्त्रावर आधारित असलेले आणि खूपच गाजलेले पुस्तक 

“ Post independence Sanskrit literature “ हा ग्रंथ 

“ Problems of Sanskrit education in non- Hindi states.” हे पुस्तक. 

नीलकंठ दीक्षित व त्यांची काव्यसंपदा . 

“ संस्कृतत्रिदलम “ —- ललित लेख आणि प्रवासवर्णने . 

“ अभिनव शास्त्र त्रिदलम “ – शोध-लेख संग्रह. 

काव्यत्रिदलम – काव्यसंग्रह 

“ तीरे संस्कृताची गहने “ – याच ओळीने सुरु होणाऱ्या श्री ज्ञानेश्वरीतील एका श्लोकाच्या संदर्भाने लिहिलेला ग्रंथ. 

डॉ. जोशी यांना अनेक मानाचे सन्मान प्राप्त झाले होते. —–

“ राष्ट्रपती पुरस्कार “. 

“ Man of the year “ – २००५ साली अमेरिकेच्या बायोग्राफिकल इन्स्टिट्यूटने हा पुरस्कार त्यांना त्यांच्या घरी जाऊन सन्मानपूर्वक दिला होता. त्यांच्या कार्याची आंतरराष्ट्रीय पातळीवरही अशी अभिमानास्पद दखल घेतली गेली होती. 

“ संस्कृत पंडित “ हा महाराष्ट्र सरकारने दिलेला पुरस्कार.  

याखेरीज, ज्ञान प्रबोधिनी, पुणे, शृंगेरी पीठ , कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विद्यापीठ, जयपूरची संस्कृत सेवा परिषद या सर्वांतर्फेही त्यांना गौरवपर पुरस्कार देण्यात आले होते. 

डॉ. केशव रा. जोशी यांना आदरपूर्वक श्रद्धांजली.  🙏

☆☆☆☆☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे 

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मी सांगतो कथा जी… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆

श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मी सांगतो कथा जी… ☆ श्री हरिश्चंद्र कोठावदे ☆ 

(वृत्त: शुद्ध सती  मात्रा:८+४)

मी सांगतो कथा जी

तुमचीच रे कहाणी

तुमचेच हुंदके हे

तुमचीच ही विराणी !

 

आमंत्रणाविनाही

येतो कबीर दारी

गीतात नित्य वाजे

त्याचीच एकतारी !

 

ती दूरची तुफाने

त्यांचीहि गाज श्रवणी

वणव्यात दूर राने

त्यांचीहि राख कवनी !

 

तारा अनाम कोणी

माझा प्रकाश होतो

शब्दांस चांदण्याचे

आभाळ एक देतो !

 

त्या पैलपार हाका

भरती शिडात वारा

त्यांचीच ही कृपा की

कधि लाभतो किनारा !

 

मातीतल्या कहाण्या

झाल्या दिगंत काही

त्यांचीच मंत्रबाधा

या अक्षरांस काही !

 

जादू भगीरथांची

ये ओंजळीत गंगा

करी कोरडे निमित्त

घेण्यास श्रेय दंगा !

 

© श्री हरिश्चंद्र कोठावदे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मित्रमूर्ती… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

☆ मित्रमूर्ती…  ☆ श्रीशैल चौगुले ☆ 

नित्य एक मूर्ती

नयनात वसते

हृदयात असते

कुणी बरे,प्रश्न.

 

तोच हात माझे

दृष्टी तोच होई

वेळ काळ माझा

त्याचीयाच ठाई.

 

वाणी वदे सत्य

कर्म जरी तथ्य

श्रवण-मनन

देहाशी निमीत्य.

 

श्वास स्पंद तोची

ज्ञान चेतनात

किती सांगू गाथा

क्रिया अंतरात.

 

अदृश्य प्रसन्न

घडे क्रम भाव

सुख-दुःख ठाव

प्रकृती स्वभाव.

 

आत्म तो संवाद

साधीशी मनात

नाद गुंज मंत्र

जीवाशी ऋणात.

 

तो सखा सतत

सोबती जीवनी

मी सुदाम भोळा

सृष्टी वृंदावनी.

 

प्रेम भक्ती पोहे

आवडीने रुची

तोच घास सत्व

कृष्ण या प्रपंची.

 

© श्रीशैल चौगुले

९६७३०१२०९०

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ लाडकी बाहुली… ☆ सौ. सुचित्रा पवार ☆

सौ. सुचित्रा पवार

?  विविधा  ?

☆ लाडकी बाहुली… ☆ सौ. सुचित्रा पवार ☆

शालेय जीवनात पाठ्यपुस्तकात इयत्ता सातवीत असलेली शांताबाई शेळकेंची ही कविता मला खूप खूप आवडायची. नुसती आवडायचीच नाही तर एक अनामिक हुरहूरही लावून जायची.

लहान मुलांचे एक वेगळेच भावविश्व असते. या भावविश्वात त्यांनी काय काय जपलेले असते!काही समज, भुतांच्या गोष्टी, राजाराणी, परीच्या, राक्षसाच्या गोष्टी, त्यांची खेळणी अन कल्पनाविश्वे !आपण त्यांच्या भावविश्वात डोकावले तर बरेच काही उमगत जाते.

खेळणी त्यांची जिवलग असतात विशेषतः बाहुले, टेडी, बाहुल्या. बाहुलीविना कुठल्याच मुलीचं बाल्य नसेल;अगदी विकतची सुंदर आखीव रेखीव नसेल पण कापडाच्या चिंध्याची घरात शिवलेली का असेना!पण बाहुली असतेच. आपल्या दृष्टीने निर्जीव असलेली खेळणी लहान मुलांना मात्र सजीव असतात. ते त्यांच्याशी बोलतात, भांडतात, परत जवळ घेतात, न्हाऊ माखू घालतात, त्याला सतत आपल्या जवळ ठेवतात, ते जिथं जातील, सोबत घेऊन जातात.

अशीच एक सुंदरशी बाहुली कवयीत्रीला पण लहानपणी आवडायची. दुसऱ्या पण बाहुल्या होत्या तिच्याकडे पण ही खास होती कारण ती अतिशय सुंदर आणि आकर्षक देखील होती.

लाडकी बाहुली होती माझी एक

मिळणार तशी ना शोधून दुसऱ्या लाख

अशी ती लाखात एक होती. पुढे कवयित्री तिच्या सुंदर रूपाचे वर्णन करते.

किती गोरे गोरे गाल गुलाबी फुलले

हसते नाचते केस सुंदर कुरळे

टपोऱ्या गुलांबाप्रमाणे गोबरे गाल, सुंदर कुरळे केस, अंगातला रेशमी लाल झगा अन केसांवर बांधलेली लाल फित अर्थात रिबन यामुळं ती अजूनच देखणी दिसायची. कवयित्री पुढे म्हणते की तिच्याजवळ खूप बाहुल्या होत्या पण तीच माझी अतिशय आवडती बाहुली होती.

एके दिवशी अघटित घडलं बाहुलीचं. बाहुलीला घेऊन कवयित्री माळावर खेळायला गेली असता लपंडाव रंगात आला आणि लपलेली बाहुली काही केल्या मिळेना. उशीर झाल्याने हिरमुसली होऊन ती माघारी घरी आली पण बाहुलीशिवाय तिला चैनच पडेना. ते माळरान आणि बाहुली डोळ्यांपुढं नाचू लागली. मन तिला शोधण्यासाठी धावू लागलं पण शरीराने जाता येईना कारण संततधार पावसाला सुरुवात झाली.

पाऊस उघडल्यावर मात्र ती धावतच बाहुलीच्या शोधात  पळाली. पावसाने सारे रान चिंबले होते आणि ओल्याचिंब गवतावर ती दिसली!

पण हाय !तिची दशा दशा झाली होती.

कुणी गाय तुडवूनी गेली होती तिजला

पाहुनी दशा ती रडूच आले मजला

माळरानावर चरता करता कुण्या गायीने बहुलीला तुडवले होते. तिचे  कुरळे सुंदर केस विस्कटून गेले होते. गोरा गोरा रंग फिका झाला होता. ते भयाण दृश्य पाहून कवयित्रीला रडू आले, मैत्रिणीही चिडवू लागल्या “शी ! काय पण ध्यान!” पण तरीही कवयित्रीने तिला तसेच उचलून हृदयाशी घेतले कारण ती बाहुली तिची लाडकी तर होतीच पण तिच्याशी तिचा अतूट स्नेह, भावना जुळलेल्या होत्या म्हणूनच ती कशीपण असली तरी तिला अतिशय प्रियच  होती.

पण आवडली तशीच मजला राणी

लाडकी बाहुली माझी माझी म्हणुनी

खूपच मनाला भिडणारी ही कविता एक संदेशही नकळत देऊन जाते की जीवापाड जपलेली खेळणी असो, माणसे असो की नाती कोणत्याही परिस्थितीत आपण त्यांना दुरावू देवू नये. सर्वसामान्यपणे मुलं खेळणं खराब झाले की फेकतात, मोडतोड करतात पण कवयित्रीने मात्र असे केले नाही कारण ती बाहुली तिच्या बालविश्वातली सजीवच गोष्ट होती. तिचे भावबंध त्या बाहुलीशी एकरूप झाले होते.

कधी कधी वाटते, लहानपणी खेळण्यांशी खेळुनसुद्धा आपली खेळणी जपून ठेवणारी माणसे पुढे नातीसुद्धा जपत असतील का?

© सौ.सुचित्रा पवार 

तासगाव, सांगली

8055690240

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ लग्न निशाणी… ☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

डॉ.सोनिया कस्तुरे   

? मनमंजुषेतून ?

☆ लग्न निशाणी… ☆ डॉ.सोनिया कस्तुरे ☆

(हेरवाड येथे नुकत्याच घडलेल्या एका अमानुष घटनेवरून – एका संवेदनशील लेखिकेच्या मनात दाटलेले विचार ) 

लग्नानंतर कुंकू कपाळी

त्याला का मिरवावे भाळी ?

बांगड्या,मंगळसूत्र,जोडवी

ताबा असल्याची निशाणी

 

तो मृत्यू पावता, त्याच क्षणी

तीने सोडावी सर्व निशाणी

मंगळसूत्र अमंगल कसे होई

विधवा ती पांढऱ्या कपाळी !

 

हीच परंपरा चालत आली

प्राण वेचले समाज सुधारकांनी

अखेर हेरवाड ग्रामपंचायतीनी

पाऊल उचलले क्रांतिकारी !

 

निसर्ग हिरवा फुटे पालवी

तशीच सखी हिरव्या रानी

सौंदर्य देखणे हिरवाई सजवी

हिरवाई तिची निसर्ग कहानी

 

साज शृंगार हक्क तिचा जरी

नकोच कोणती लग्न निशाणी

नकोत ओझी अंध परंपरेची

त्याच्याविना नाही ती अधुरी 

 

मनोमिलना पुष्षहार घालुनी 

सुरुवात व्हावी नव्या जीवनी

प्रेम, जिव्हाळा, कर्तव्य ध्यानी

अखंड उजळो दोघां मधूनी

 

एकमेकां घेण्या समजूनी

विश्वास सोहळा नव्या संसारी

तो व ती  पुरकत्वात नांदो

आजन्म समता साथ सोबती

 

पती-पत्नी वा नवरा-बायको

जोडीदार म्हणा वा आणीख काही

अनेक संकटे झेलत सांभाळती

आदर प्रेम जपावा सर्वतोपरी

 

ती स्वतंत्र मनुष्य विचारी

नको गणना नात्यांमधुनी

पती असो अथवा नसो

जगणे श्रेष्ठ माणूस म्हणूनी !

जगणे श्रेष्ठ मानव म्हणूनी !!

 

© डॉ.सोनिया कस्तुरे

विश्रामबाग, जि. सांगली

भ्रमणध्वनी:- 9326818354

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ रामप्यारी – भाग – 1 ☆ सौ अंजली दिलीप गोखले ☆

सौ अंजली दिलीप गोखले

? इंद्रधनुष्य ? 

☆ रामप्यारी – भाग – 1 ☆ सौ अंजली दिलीप गोखले

तैमुर आला हे शिकवलं गेलं, पण तो घाबरून पळाला, हे आम्हाला कधीच शिकवलं गेलं नाही ..!! आता, नवीन शिक्षण पद्धतीमध्ये, आम्हाला आमचा ‘खरा’ इतिहास शिकवला जाईल ..!!

वाचा …

समरकंद म्हणजेच सध्याचा उझबेकिस्तान .. तिथला क्रूर शासक तैमूर ..!! भारत जिंकून इथे धर्मप्रसार करावा या उद्देशाने तो भलंमोठं सैन्य घेऊन निघाला ..!!

अफगाणिस्तानातील गझनवी शासकांना त्याने हरवले. सर्वांना माहीतच आहे की, तो अत्यंत क्रूर, निर्दयी, 

दुष्ट होता ..!!

.. त्याच तैमुरला, एका रणरागिणीने अक्षरश: जेरीस आणले होते ..!!

ती होती रामप्यारीबाई चौहान ..!!

तैमुरच्या अत्याचाराचे किस्से वाचून, कुणाचाही थरकाप उडेल ..!! अफगाणिस्तानचा प्रदेश जिंकून, हाच तैमुर, हरिद्वार, हरियाणा, दिल्लीच्या रोखाने, पंजाब उध्वस्त करून निघाला .. वाटेत येणाऱ्या लहान मोठ्या राजांनी प्रतिकार केला देखील .. पण, तैमुरच्या विशाल सेनेपुढे कुणाचाही टिकाव लागू शकला नाही ..!!

राजे महाराजे थकले तरी, भारतीय जनता मात्र हार मानणारी नव्हती ..!!

उत्तर भारतात त्याकाळी असणाऱ्या विविध जातींच्या प्रमुखांनी, देश, धर्माच्या रक्षणासाठी एक समिती तयार केली ..!!

आमने सामने लढून आपला निभाव, तैमुरसमोर लागणार नाही, याची त्यांना पूर्ण कल्पना असल्याने, त्यांनी गनिमी काव्याने लढायचे ठरवले ..!!

जोगराजसिंग परमार ह्यांना त्या सर्वानी आपल्या नवीन सैन्याचे प्रमुख बनवले ..!! गावोगावचे तरुण लढण्यासाठी

 आले ..!!

पण आजपर्यंत कोणीही शस्त्र हाती धरलेले नसल्याने, त्या सर्वांचे प्रशिक्षण जरुरीचे होते ..!!

तरीही त्यांचा आपल्या नेत्यावर पूर्ण विश्वास होता. जोगराजसिंग ह्यांनी, त्या सर्व ‘सेनेला’ प्रशिक्षण देण्यास सुरुवात केली ..!!

इसवी सन 1305 मध्ये, हरिद्वार जवळील कुंजासनहाटी गावात जन्मलेले जोगराजसिंग एक छोटे संस्थानिक होते ..!! इस्लामी आक्रमकांनी त्यांचे संस्थान लुटून, जाळून नष्ट करून टाकले होते ..!!

यामुळे जोगराजसिंग गावोगावी फिरून, ह्या ‘हिरव्या’ संकटाशी लढायला युवकांना प्रेरित करत होते ..!!

यांच्या आवाहनाला प्रतिसाद देत, तब्बल ८०,००० युवकांची सेना, देशभरातून तयार झाली होती ..!!

सर्व जाती-जमातींची महापंचायत, पुन्हा एकदा विचार-विनिमयास बसली .. त्यांच्यासमोर वेगळाच प्रश्न उभा झाला होता .. गावो-गावच्या युवतीही लढायला तयार झाल्या होत्या .. सर्वानी एकमताने ठराव मंजूर केला की, स्त्री सेना तयार करून, त्यांनाही लढण्याचे प्रशिक्षण द्यायचे ..!! अशाप्रकारे, तब्बल ४५,००० युवतींची ‘स्त्री सेना’ तयार 

झाली ..!! त्यांची सेनापती होती रामप्यारीबाई चौहान ..!!

कोण होती ही रामप्यारी बाई चौहान ..??

उत्तरप्रदेश मधील सहारनपूर गावात, रामप्यारीबाई चौहानचा जन्म एका शेतकरी कुटुंबात झाला ..!!

लहानपणापासून इस्लामी आक्रमकांच्या भयकथा ऐकून, रामप्यारीचे मन पेटून उठत होते ..!!

अन्यायाचा प्रतिकार करायचा तर, शरीर मजबूत हवे ..!! शरीर मजबूत करण्यासाठी व्यायाम केला पाहिजे .. त्यासाठी रामप्यारी रोज सूर्योदयापूर्वी आणि सूर्यास्तानंतर, आपल्या शेतात जाऊन, सर्व प्रकारचे व्यायाम करत असे .. व्यायाम करून आपले शरीर तिने दणकट बनवले होते ..!! 

गांवकरी त्याबद्दल तिच्यावर टीका करीत पण तिचे आई-वडील मात्र तिच्यामागे ठामपणे उभे राहिले होते .. एकदा पंचायती समोर तिने गावक-यांना ह्याचे महत्त्व पटवून सांगितले ..!! 

इस्लामी आक्रमकांचा मुकाबला करायचा असेल तर, आपणच आपले शरीर मजबूत केले पाहिजे .. तिने सांगितलेला हा उपाय सहजसाध्य होता, आणि सर्वाना पटला होता ..!!

*मग काय .. गावोगावी अशी व्यायाम शिबिरे होऊ लागली ..!!

सुरुवातीला फक्त आठ मुलींपासून सुरू झालेली ही सेना अल्पावधीतच ४५,००० रणरागिणींपर्यत पोहोचली ..!!

क्रमशः…

 

संग्राहिका : सौ अंजली दिलीप गोखले 

मोबाईल नंबर 8482939011

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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