श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 127 ☆
☆ कविता – विश्वगुरू भारत ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
आर्यावर्त था देश हमारा,
विश्व गुरु था जग से न्यारा।
गौरवशाली इसकी शान,
अतुलनीय इतिहास महान।
इसने विश्व को ज्ञान दिया,
और दशमलव मान दिया।
अंतरिक्ष की दूरी नापी,
भरत नाम पहचान है काफी। ।1।।
प्यारा भारत देश हमारा,
ये है सारे जग से न्यारा।
ऋषि मुनियों की तपस्थली है,
दयाधर्म की हृदयस्थली है।
सत्यधर्म है इसकी आन,
शूर वीरता है पहचान।
ऋषिकुलो के वंशज हैं हम,
मानव कुल के अंशज है हम।।2।।
एक बार फिर त्याग से अपने,
धर्मध्वजा फहरायेंगे।
विश्वगुरु बन भारतवासी,
राष्ट्र का मान बढायेंगे।
एक बार फिर सारे जग में,
ज्ञान की जोत जलायेंगे।
अपने सत्कर्मो से फिर
हम विश्व गुरु कहलायेंगे।।3।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266