हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – ☆ मौत का खेल ☆ – श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘निसार’

श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘निसार’

 

(श्री गोपाल सिंह सिसोदिया  ‘निसार ‘ जी एक प्रसिद्ध कवि, कहानीकार तथा अनेक पुस्तकों के रचियता हैं। इसके अतिरिक्त आपकी विशेष उपलब्धि ‘प्रणेता संस्थान’ है जिसके आप संस्थापक हैं। आज प्रस्तुत है  बाल मनोविज्ञान एवं माता पिता की मानवीय संवेदनाओं को उकेरती भावुक कथा  “मौत का खेल”।  आज सोशल मीडिया पर ऐसे विडियो गेम्स आ गए हैं जो बच्चों की मनोवृत्ति को किस तरह अपने कब्जे में कर लेते हैं इसकी जानकारी माता पिता को होना अत्यंत आवश्यक है। यह एक दुखांत किन्तु शिक्षाप्रद कहानी है जिसे प्रत्येक अभिभावक को अवश्य पढ़नी चाहिए। ऐसे विषयों पर साहित्यिक रचना के लिए श्री सिसोदिया जी  बधाई के पात्र हैं।) 

☆ मौत का खेल ☆

“मम्मी, मैं खेलने जा रहा हूँ, ओके बाय!” अंकुर ने दूध का गिलास सिंक में फेंकते हुए कहा और दरवाज़ा खोल कर बिना अपनी माँ के उत्तर की प्रतीक्षा किये घर से बाहर भाग गया।

“अरे! अपने पापा के घर आने से पहले ज़रूर आ जाना, वरना वे बहुत गुस्सा होंगे!” अंदर से सुमन ने बाहर भागते अपने पुत्र को लगभग चिल्लाते हुए हिदायत दी। परन्तु सुमन की आवाज़ जैसे अंकुर ने सुनी ही नहीं। वह तो अपने मित्रों की ओर भागा जा रहा था। वह सोच रहा था कि आज भी उसके साथी उसका मज़ाक बनाएंगे कि वह तो लड़कियों की तरह घर में ही घुसा रहता है। वह हाँफता हुआ कॉलोनी के पार्क में पहुँच गया। उसे यह देख कर अपार खुशी हुई कि आज वह अपने साथियों में सबसे पहले पहुँचा था। वह उनकी प्रतीक्षा करने लगा । तभी उसे सामने से आता हुआ गौरव दिखाई दिया। आज अंकुर की बारी थी।

उसने ऊँची आवाज़ में गौरव को लक्ष्य करके कहा,

“अबे यार, मैं कब से तुम लोगों का वेट कर रहा हूँ और वह गोलू कहाँ है?”

“अच्छा बेटा, आज जल्दी आ गया तो इतना इतरा रहा है! अभी तो चार भी नहीं बजे। यह देख गोलू भी आ गया।” गौरव ने नज़दीक पहुँचते हुए उत्तर दिया।

“अबे, आज तो ढीलू भी टाइम पर आ गया”, दूर से ही गोलू ने हँसते हुए चुटकी ली।

दरअसल अंकुर को उसके साथी इसी नाम से पुकारते थे।  कारण यह था कि वह समय पर कभी नहीं पहुँचता था।  जब उसके पापा घर पर होते थे, तब तो उसका घर से निकलना ही नहीं हो पाता था।  यदि वे उसे बुलाने जाते तो अंकुर के पापा शर्मा जी, उन्हें ही डाँट कर भगा दिया करते थे। कुछ ही देर में वे सारे इकट्ठे हो गये  और क्रिकेट खेलने लगे।  गोलू बल्लेबाजी कर रहा था और सुमित गेंदबाजी।  अंकुर बाउन्ड्री बचाने के लिए सीमा रेखा पर तैनात था।

गोलू ने सुमित की एक ढीली गेंद को उछाल दिया।  अंकुर ने हवा में डाईव लगाते हुए गेंद को लपकना चाहा, किंतु वह गेंद तक नहीं पहुँच सका और पार्क की रेलिंग पर जा गिरा।  रेलिंग की नुकीली सलाखों ने उसके शरीर को लहुलुहान कर दिया।  सभी लोग इकट्ठे हो गये।  बच्चे अंकुर की छाती और गर्दन से रक्त बहता देख कर घबरा गये।  तभी कुछ सज्जन पुरुष जो पार्क में मौजूद थे, वहाँ पहुँच गये और तत्काल अंकुर को उठा कर अस्पताल ले गये और अंकुर के घर खबर भिजवा दी। शर्मा जी भी अपने दफ्तर से तुरंत अस्पताल पहुँच गये और घर से सुमन भी।

अंकुर की मरहम-पट्टी करके दवाइयाँ लिख दी गयीं और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी।  उसे पूरी तरह ठीक होने में एक सप्ताह लग गया। लेकिन शर्मा जी ने पुत्र तथा पत्नी सुमन को सख्त हिदायत दी कि अब से अंकुर का बाहर जाना बिल्कुल बंद है। हालाँकि सुमन ने पति को बहुत समझाया कि खेलकूद में बच्चों को चोट तो लगती ही रहती है, पर शर्मा जी पर सुमन के समझाने का कोई असर न हुआ, उलटे सुमन को ही चार बातें सुननी पड़ीं।

अगले दिन शर्मा जी पुत्र के लिए लैपटॉप तथा महंगा मोबाइल ले आए।

उन्होंने उसे ये उपकरण देते हुए कहा,  “ले, मैंने तेरे लिए घर में ही खेलने का प्रबन्ध कर दिया है, अब से बाहर जा कर उन आवारा लड़कों के साथ खेलने की ज़रूरत नहीं है, समझे!”

अंकुर पहले पहल उपकरणों को देखकर चहक उठा था, लेकिन पापा की शर्त सुनकर उसका दिल बुझ गया। खुले गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने वाले पंछी को सोने के पिंजरे में कैद कर दिया गया था। आखिरकार अंकुर को हालात से समझौता करना पड़ा। उसे भी अब मोबाइल तथा लैपटॉप पर गेम खेलने में आनंद आने लगा। कुछ दिन तक उसे बहुत छटपटाहट महसूस हुई, किंतु कुछ दिन बाद उसकी दुनिया ही इंटरनेट हो गयी।

अब वह विद्यालय से आते ही गेम खेलने बैठ जाता और फिर उठने का नाम न लेता। उसे इतना भी होश न रहता कि गृहकार्य भी करना है। विद्यालय से अब उसकी शिकायतें आने लगीं थीं। अभी तक प्रत्येक विषय में वह अव्वल आया करता था, लेकिन अब उससे सभी अध्यापक परेशान रहने लगे थे। लगभग प्रतिदिन ही विद्यालय के किसी-न-किसी अध्यापक का सुमन के पास फोन आया करता। उसके पश्चात् सुमन विद्यालय जाती और अध्यापकों तथा प्रधानाचार्य की डाँट खाकर लौट आती। वह करती भी क्या, अंकुर को वह समझा-समझा कर थक चुकी थी, परन्तु उस पर अब कहने का कोई असर होता ही नहीं था। वह सुमन की बात एक कान से सुनता और दूसरी से निकाल देता। उसके पास उसकी बात सुनने का समय ही कहाँ था।

वह तो हर समय मोबाइल अथवा लैपटॉप पर लगा रहता। कानों में इयरफोन ठुसा रहता और आँखों के सामने स्क्रीन। उसके इंटरनेट गेम की दीवानगी का आलम ये हो गया कि वह खाना-पीना सब कुछ गेम खेलते हुए ही करता। सुमन शर्मा जी से उसकी शिकायत करती तो वह यह कह कर टाल जाते कि बच्चे ऐसा करते ही रहते हैं। कुछ दिनों बाद हालत यह हो गयी कि उसे पेशाब आ रहा होता, पर वह न उठता और उसके कपड़े गीले हो जाते। सुमन बहुत चिंतित थी अपने पुत्र की इस दशा को देख कर, पर वह बेचारी क्या करती, शर्मा जी उसकी एक न सुनते थे। उसने चोरी-छुपे एक-दो बार मनोचिकित्सकों से भी सम्पर्क किया, जिन्होंने अंकुर की हालत बहुत चिंताजनक बतायी।

जब सुमन ने पति को इस विषय में शीघ्र कुछ करने के लिए कहा तो वे उस पर बहुत बिगड़े। कहने लगे, “सुमन, मुझे लगता है कि तुम मुझे समाज में उठने-बैठने लायक भी नहीं छोड़ोगी। क्या तुम जानती नहीं कि मेरी समाज में क्या पोज़ीशन है? यदि अंकुर को मनोचिकित्सक के पास दिखाने ले गये तो लोग क्या कहेंगे? वे समझेंगे कि शर्मा जी का बेटा पागल है। क्या तुम चाहती हो कि हमारे बेटे को लोग पागल कहें? तुम ने तो तिल का ताड़ बना डाला। वह मेरा बेटा है, एकदम स्वस्थ और तन्दुरुस्त समझी! अब से इस तरह की ऊट-पटांग बातें मेरे सामने कभी मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।”

एक दिन की बात है। अंकुर विद्यालय से घर आ गया था। उसने माँ द्वारा दिया भोजन गेम खेलते हुए ही किया। उसके पश्चात् सुमन सब्जियाँ लेने के लिए बाजार चली गयी। लेकिन जब लौटी तो उसकी आँखें फटी रह गयीं। वह दहाड़ें मार कर रो पड़ी। उसकी चीखों ने घर ही नहीं पूरे मोहल्ले को हिला कर रख दिया।

पल भर में ही आसपास के महिला-पुरुषों से घर भर गया। अंकुर ने स्वयं को फाँसी लगा ली थी और मोबाइल पर एक गेम की विन्डो खुली हुई थी, जिस पर लिखा था,

“कॉंग्रेचुलेशन अंकुर! आज तुम्हारी बारी है। जाओ और खुद को फाँसी लगा कर खत्म कर दो!”

अंकुर ने उत्तर में लिखा था,

 “ओके गाइज्, आई ऐम गोइंग टू डाई। गुडबाय!”

 

© श्री गोपाल सिंह सिसोदिया  ‘निसार’ 

दिल्ली

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ श्री गंगा दशहरा पर विशेष – गंगा की उत्पत्ति ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

☆ श्री गंगा दशहरा पर विशेष ☆

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(प्रस्तुत है श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की श्री गंगा दशहरा  पर विशेष आलेख।)

 ☆ गंगा की उत्पत्ति ☆
हिन्दुओं के लिए सारी रचनाएं ईश्वरीय है। इस लिए प्रकृति में मौजूद हर कण पूजनीय है। पेड़, पौधे, जानवर, नदिया, पहाड़ों, चट्टानों के अलावा मानव निर्मित वस्तुएं जैसे बर्तन, मूसल, ओखली में भी भगवान ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं होती। ईश्वर ने ब्रह्मा के रूप में विश्व की रचना की है। विष्णु के रूप में इसका पालन पोषण करते हैं। शिव के रूप में इसका संहार करते हैं। पौराणिक कथा है एक दिन शिव ने गाना शुरू किया, उनका गाना सुन कर इतने द्रवित हुए की पिघलने लगे।  ब्रह्मा जी ने पिघले हुए जल को एक पात्र में जमा किया और इसे धरती पर भगीरथ की तपस्या के बाद शंकर जी की जटा से धरती पर उड़ेल दिया गया। माँ गंगा पृथ्वी पर आ  गईं और पृथ्वी तृप्त हुई। गंगा स्नान का मतलब है साक्षात ईश्वर से मिलना।
हर हर गंगे??

गंगा माँ के लिये मेरी रचना – – -एक 

 

गंगा के रूप में जल की धार देखिये।

देवी का स्वर्ग लोक से अवतार देखिये।

मोक्षदायिनी गंगा हैं मोक्ष का आधार ।

इसके जैसी नहीं कोई भी जल की धार ।

 

पितरों का करे तर्पण ले गंगा की धार।

ऋषि मुनि भी करते हैं जिसका सत्कार।

ब्रह्मलोक से गंगा को लिया धरती पर उतार।

भागीरथ ने दिया इसे मोक्ष का आधार।

 

सारा जगत करें हैं पूजा वो है गंगा की धार।

सदियों से चली आई है गंगा जल की धार।

मानव करें व्यवहार गंगा करें उपकार।

कूड़ा करकट भी बहाए दूषित करे व्यवहार।

 

नहीं बदली है गंगा ये कैसा है उपकार।

गंगा से करें प्यार बने सभी दिलदार।

इसके जैसी नहीं कोई  भी जल की धार ।

माँ गंगा का उपकार सदियों तक रहे याद।…….

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात #3 – कवितेवरची कविता ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात”  में  उनकी गजल यात्रा का एक और पड़ाव  “कवितेवरची कविता“। अब आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं । )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 3 ☆

 

 ☆ कवितेवरची कविता☆

कवितेमधला गझल हा प्रकार मनाला खुप भावला. १९९२ साली अनिल तरळे या अभिनेत्याने बालगंधर्व परिसरात गझलकार इलाही जमादार यांची ओळख करून दिली, कॅफेटेरियात आमची कविता-गझल अशी मैफल जमली,इलाहींच्या गझलांनी मी खुपच भारावून गेले, असे वाटले कविता लिहिणं सोडून द्यावं,वरचेवर इलाहींशी भेटी होत होत्या, इलाहींनी गझलतंत्र, गझलची बाराखडी या विषयी काहीच सांगितलं नाही, ते म्हणाले तुम्ही, “आपकी नजरोने समझा प्यारके काबील मुझे”.. ही ओळ गुणगुणत रहा, त्या मीटर मध्ये तुम्हाला गझल सुचेल! पण तसं काही झालं नाही!
बरेच दिवसांनी अचानक शब्द आले…गझल पूर्ण झाली! शरद पाटील हा कवी त्या काळात झपाटल्यासारखी गझल लिहित होता, त्याला दाखवली,त्यानी सांगितलं होतं पहिल्या शेरात गडबड आहे बाकी सगळे शेर बरोबर आहेत, पहिला शेर मी सुरूवातीला असा लिहिला होता,

“यायचे स्वप्नी तसे हे गाव नाही
ओळखीचा एकही पहेराव नाही”

काय गडबड आहे हे त्यालाही सांगता आलं नाही आणि मलाही समजलं नाही, एका खाजगी मैफलीत इलाही, दीपक करंदीकर यांच्या समोर सादर केली,त्यांनी ही ईस्लाह वगैरे केलं नाही, माझ्या पहिल्या संग्रहात मी तशीच छापली आहे, पुढे डाॅ. राम पंडितांचे लेख वाचून गझलची लगावली समजली मग मी सानी मिसरा बदलला….घेतलेले राज्य अन तो डाव नाही…आणि लक्षात आलं हे मंजुघोषा वृत्त आहे, अचानकच हातून लिहिलं गेलेलं!
पुढे गझलेवरची गझल ही झाली… *आज अचानक लेखणीस गवसली गझल, स्नेहभराने काळजात उतरली गझल*

माझी पहिली गझल

यायचे स्वप्नी तसे हे गाव नाही
घेतलेले राज्य अन तो डाव नाही

आज मज हाका नका मारू कुणीही
जे तुम्ही घेताय माझे नाव नाही

का असे डोळ्यात पाणी पावलांनो
स्वैर आभाळी तुम्हा का वाव नाही

जायचे वस्तीत चोरांच्या कशाला
सोबती येथे कुणीही साव नाही

सोनियाचे मुकुट डोई देवतांच्या
भक्तिला आता कुठेही भाव नाही

जाहल्या जखमा किती या काळजाला
मारणारा एकही मज घाव नाही

झुरत अंधारात आहे एकटी मी
सावलीला ही इथे शिरकाव नाही

संपता आयुष्य माझे भेटण्या ये
मरणयात्रेला कुणा मज्जाव नाही

 

(१९९३ साली रचलेली गझल आहे )

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Can Humor Cure Tumor? ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆  Can Humor Cure Tumor?

Five years ago, Desmond Nicholas, a brave cancer survivor based in Melbourne, visited Indore and stayed with us. I have very fond memories of Des. He was a rather quiet person for an Australian but had a keen sense for humour, sports and politics. We went out for long walks in the evening and talked all of these three topics.

He had undergone the pain of chemotherapy twice. When colon cancer was detected for the third time, he didn’t want to take it anymore.

One of his acquaintances told him about Laughter Yogaand its benefits. He found the concept amusing but went ahead to give it a try. He joined a laughter club there and took private sessions with the laughter leader.

Des was a basketball player in his younger days. He told me that he eventually started enjoying laughter exercises like the game of basketball and continued with it for hours together.

After a few months he went for a check-up. The doctor looked up to him and asked where he had got himself treated as there was no trace left in the report. Des mimicked, with a wink, the expression he had seen on the doctor’s face when he told him that he had tried laughter yoga. We had a good laugh!

Des shared his story in a blog which I am reproducing in toto for the benefit of the readers:

“Greatly inspired by Laughter Yoga Clubs, I started to laugh all by myself every day after meditation. The laughter exercises include chants of Ho Ho, Ha Ha and deep breathing. I also do these exercises even while walking. I allow myself to be spontaneous and childlike and make funny movements. I even sing some positive affirmations like: I am happy tee hee hee; I am healthy tee hee hee; I am strong tee hee hee..

“Regular practice of laughing alone has had a tremendous effect on my health condition. Though suffering from a tumor for some time, I can feel it getting smaller. Even my specialist was amazed when he realized it had shrunk remarkably. He cancelled the radiotherapy and said, ‘I am happy to keep an eye on it for now. I really believe that its laughter, meditation and positive affirmations that have worked so wonderfully together.’

“I also think laughter is anti-ageing. Though I’m 60, I feel very energetic, there is less pain and I can easily do a lot of things. People remark that I look much better and younger!”

Yes, Des, I agree, you are sweet-sixty, yet as mischievous as a sweet-sixteen!

Des’ story also supports Dr Otto Warburg’s finding: ‘Deep breathing techniques increase oxygen to the cells and are the most important factors in living a disease-free and energetic life. When cells get enough oxygen, cancer will not and cannot occur.’ Warburg, President, Institute of Cell Physiology, is the only person to ever win the Noble Prize for Medicine twice and was nominated for a third.

In his book ‘Laugh for No Reason’, Dr Madan Kataria, the founder of Laughter Clubs Movement has rightly said that those suffering from life threatening diseases not only go through physical pain; they also face immense psychological trauma. Not just the patient, but family, friends and care givers all need positive reinforcement. Having a positive mental attitude greatly influences the course of the disease.

We have had many members suffering from cancer, immune disorders, multiple sclerosis and other chronic diseases who have reported relief from their symptoms, thereby reducing their medication.

In the past, inspired by the research on laughter, many cancer patients tried to use humor in order to laugh away their tumor. But, it is not easy to laugh when someone has a disease like cancer.

This is where Laughter Yoga has an advantage. Since it is a physical method, it is ideally suited for cancer groups who can practice laughter as a form of exercise with no need of any humorous intervention. It may not cure the disease but definitely help in enhancing one’s ability to cope with and maintain a positive attitude.

(The blogger is a Laughter Yoga Master Trainer and expresses his willingness to conduct laughter yoga and meditation sessions for the benefit of cancer patients.)

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (31) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।

श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः ।।31।।

 

श्रद्धा रख जो ,दोष दृष्टि तज,सदा कर्म निज करते है

मेरे मत से दोष मुक्त हो वे निश्चिंत बरतते हैं।।31।।

      

भावार्थ :  जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं।।31।।

 

Those men  who  constantly  practise  this  teaching  of  Mine  with  faith  and  without caviling, they too are freed from actions. ।।31।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – #3 सेव पापड़ी ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  उनकी  पौराणिक कथा पात्रों पर आधारित  शिक्षाप्रद लघुकथा  “सेव पापड़ी ”। )

 

हमें यह सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आदरणीया श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने  राजन वेलफेयर एवं डेवलपमेंट संस्थान, जोधपुर एवं लघुकथा मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में प्रथम स्थान  प्राप्त किया है। ई-अभिव्यक्ति की ओर से हमारी सम्माननीय  लेखिका श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ  ‘शीलु’ जी को हार्दिक बधाई। 

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 3 ☆

 

☆ सेव पापड़ी ☆

 

गरीब परिवार की सुंदर सी बिटिया नाम था ‘सेवती’। दुबली पतली सी मगर नाक नक्श बहुत ही सुंदर। पिताजी गंभीर बीमारी से दुनिया से जा चुके थे। मां पडोस में बरतन चौका का काम कर अपना और अपनी बच्ची गुजारा करती थी। बिटिया की सुंदरता और चंचलता सभी मुहल्ले वालो को बहुत भाती थी। सब का कुछ न कुछ काम करती रहती। बदले में उसको खाना और पहनने तथा पढने का सामान मिल जाया करता था।

पास में ही लाला हलवाई की दुकान थी। हलवाई दादा उसे बहुत प्यार करते थे। उसकी कद काठी के कारण सेवती की जगह वे उसे सेव पापड़ी कह कर बुलाते थे। अब तो सब के लिये सेव पापड़ी हो गई थी। अपना नाम जैसे वह भूल ही गई थी। धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। पढ़ाई में भी बहुत तेज थी और मन लगा कर पढ़ाई करती थीं। मां अच्छे घरों में काम करती थी सभी सलाह देते कि बिटिया को पढ़ाना। हमेशा गरीबी का अहसास कर कहती मैं इसे ज्यादा नहीं पढा सकुगीं। पर हलवाई दादा हर तरफ से मदद कर रहे थे। कभी कहते नहीं पर सभी आवश्यकताओं को पूरा करते जाते थे।

सेव पापड़ी भी उन्हें अपने पिता तुल्य मानती थी। उनके घर का आना जाना लगा रहता था। धीरे-धीरे वह बारहवीं कक्षा पास कर ली। अब तो मां को और ज्यादा चिंता होने लगी थी। पर हलवाई दादा कहते इतनी जल्दी भी क्या है। मां बेचारी बडों का कहना मान चुप हो जाती थी।। कालेज में दाखिला हो गया और आगे की पढ़ाई कर सेवती स्कूल अध्यापिका बन गई। मां अब तो और भी परेशान होने लगी ब्याह के लिए।

हलवाई दादा ने कहा अब तुम विवाह की तैयारी करो लड़का हमने देख लिया है। मुहल्ले में सभी तरफ खुशी खुशी सेव पापड़ी की शादी की बातें फैल गई। बिटिया की मां दादा को कुछ न बोल सकी। काडॅ छप गये* सेव पापड़ी संग रसगुल्ला *। ये कैसा काडॅ छपवाया दादा ने। बात करने पर कहते मै तुम्हारा कभी गलत नहीं करूंगा। तुम्हें बहुत अच्छा जीवन साथी मिलेगा। घर सज चुका था सारी तैयारियाँ हो चुकी। मुहल्ले वाले सभी अपनी सेव पापड़ी बिटिया के लिए उत्साहित थे कि दुल्हा कहा का और कौन हैं। सेव पापड़ी भी बहुत परेशान थीं। पर बडों की आज्ञा और कुछ अपने भाग्य पर छोड़ शादी के लिए तैयार होने लगी। बारात ले दुल्हा बाजे और बारातियों के साथ चला आ रहा था।

सेहरा बंधा था और कुछ जान बुझ कर दूल्हे ने अपना चेहरा छुपा रखा था। द्वार चार पूजा पाठ और फिर वरमाला। सेव पापड़ी की धडकन बढते जा रही थीं। पर ज्यो ही दुल्हे ने वरमाला पर अपना सेहरा हटाया सब की निगाहें खुली की खुली रह गई। दुल्हे राजा कोई और नहीं हलवाई दादा का अपना बेटा रमेश जो बाहर इंजीनियर बन नौकरी कर रहा था। सबने खुब ताली बजाकर उनका स्वागत किया। दादा सेवपापडी के लिये अपने ही बेटे जो मन ही मन सेवती को बहुत प्यार करता था और सारा खेल उसी ने बनाया था। अब सेव पापड़ी सदा सदा के लिए (मिठाई) दुल्हन बन हलवाई दादा के घर चली गई। सारे घराती बरातियों को आज सेवपापडीऔर रसगुल्ला बहुत अच्छा लग रहा था। सभी चाव से खाते नजर आ रहे थे। और हलवाई दादा के आंखों में खुशी के आंसू। मां भी इतनी खुश कुछ बोल न सकी पर हाथ जोड़कर हलवाई दादा के सामने खड़ी रही। सेवती (सेवपापडी) अपने रमेश (रसगुल्ला) की दुल्हन बन शरमाते हुये बहुत खुश दिखने लगी।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य / वैज्ञानिक आलेख – ☆ भारतीय युवा वैज्ञानिक अमिताभ श्रीवास्तव का आविष्कार – ‘प्रोग्रेमेबल एयर’ अर्थात हृदय की तरह का पंप ☆

☆  ई-अभिव्यक्ति के अंतर्गत प्रथम वैज्ञानिक अभिव्यक्ति ☆

श्री अमिताभ श्रीवास्तव

(संस्कारधानी जबलपुर के युवा वैज्ञानिक श्री अमिताभ श्रीवास्तव जी ने टिश स्कूल ऑफ डिजाइन, न्यूयार्क  यूनिवर्सिटी के छात्र ने प्रोग्रामेबल एयर प्रोजेक्ट प्रस्तुत किया है। इस प्रोजेक्ट की विस्तृत जानकारी इस वैज्ञानिक आलेख में दी गई है। )

विज्ञान के क्षेत्र में  श्री अमिताभ जी के ढ़ेरो आविष्कार व उपलब्धियां   https://tinkrmind.me/  पर देखी जा सकती हैं. इसके अतिरिक्त  हम आप सब से  अपेक्षा कराते हैं कि उनके अनुसंधान  कार्य के लिए व्यक्तिगत/आर्थिक/वैज्ञानिक सहयोग के लिए इस लिंक पर क्लिक करें >> 

https://www.crowdsupply.com/tinkrmind/programmable-air#details-top

? भारतीय युवा वैज्ञानिक अमिताभ श्रीवास्तव का आविष्कार – “प्रोग्रेमेबल एयर” अर्थात हृदय की तरह का पंप  ?

 

श्री अमिताभ श्रीवास्तवजी ने  टिश स्कूल आफ डिजाइन, न्यूयार्क युनिवर्सिटी ,न्यूयार्क से मास्टर्स इन प्रोफेशनल डिजाइन के प्रतिष्ठित कोर्स के दौरान असाधारण उपलब्धि अर्जित करते हुये प्रोग्रामेबल एयर प्रोजेक्ट प्रस्तुत किया है, साधारण शब्दो में इसका अर्थ यह है कि उनके द्वारा बनाई गई डिवाइस से जब जैसा कमांड कम्प्यूटर द्वारा दिया जाता है तब, प्रोग्राम्ड समय अंतराल पर वह उपकरण जिस मात्रा में प्रोग्राम किया जाता है उतनी मात्रा में हवा लेती या छोड़ती है. यह उपकरण बहुत कम कीमत पर बनाने में अमिताभ को सफलता मिली है. इस उपकरण का उपयोग एयर रोबोटिक्स में तरह तरह से किया जा सकता है.

उदारमना अमिताभ ने बतलाया कि वे इसका कोई पेटेंट नही करवायेंगे, उनका मानना है कि जब हम ओपन सोर्स नालेज का उपयोग करके नये आविष्कार करते हैं तो हमारा यह नैतिक कर्तव्य  है कि हम भी अपने आविष्कार अधिकाधिक लोगो को उपयोग के लिये ओपन सोर्स पर ही सुलभ करवायें जिससे मानवता के कल्याण के लिये विज्ञान का अधिकाधिक प्रयोग हो सके.

शालेय जीवन में हीअमिताभ श्रीवास्तव  नेशनल टेलेंट सर्च व विज्ञान और तकनीकी विभाग द्वारा आयोजित किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना में चयनित हुये. आई आई टी में सेलेक्शन के बाद भी , भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलोर  से चार्टर्ड कोर्स में  अति उच्च अंको के साथ उन्होने बी एस की उपाधि प्राप्त की.  इजराईल में युवा वैज्ञानिको की ६ वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होने आई आई एस सी का प्रतिनिधित्व किया. आई ए पी टी द्वारा आयोजित फिजिक्स ओलम्पियाड में अमिताभ ने देश में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर गोल्डन मेडल प्राप्त किया. बोस्टन विश्वविद्यालय से उन्होने इंटर्नशिप पूरी की.

कालेज के दिनो में ही अमिताभ खुद बनाये हुये रिचार्जेबल इलेक्ट्रिक स्केट बोर्ड पर बंगलोर की सड़को पर सफर करते दिखते और सबके कौतुहल का विषय बन जाते, आईबीएन-7 टी वी चैनल ने उनके इस प्रोजेक्ट पर शाबास इण्डिया कार्यक्रम में फिल्म भी दिखलाई थी.

बिना पास गये जंगली हाथियो की ऊंचाई नापने के लिये अमिताभ ने इलेक्ट्रानिक डिवाईस बनाई है. खेतो के भीतरी हिस्सो में फसलो का हाल जानने के लिये अमिताभ ने ड्रोन बनाया. ड्रिप इरीगेशन के इलेक्ट्रानिक कंट्रोल पर अमिताभ को हैकेथान में बेस्ट एंट्री का पुरस्कार दिया गया.

बी एस के तुरंत बाद भारत सरकार से देश के सर्वोच्च १० इनोवेटर्स के रूप में सम्मानित मैडरैट्स गेम्स में अमिताभ ने अपनी आविष्कारी प्रतिभा का परिचय देते हुये विश्व में पहली बार वियरेबल इलेक्ट्रानिक गेम सुपर सूट बनाने में सहयोग किया. इस सूट को मोबाइल की तरह चार्ज किया जा सकता है . इसमें जलती बुझती बत्तियां, अनोखी आवाजें और तरह तरह के गेम्स लोड किये जा सकते हैं. सेनफ्रांसिसको में आयोजित मेकर्स फेस्ट में डिस्कवरी चैनल के  अडेम सेवेज ने भी अमिताभ की अनोखी कल्पना की बहुत प्रशंसा की.

लोकस लाजिस्टिक्स के लिये अमिताभ ने कनसाइनमेंट के मेजरमेंट,  इलेक्ट्रानिकली रिकार्ड करने हेतु उपकरण व प्रोग्राम विकसित करने का काम किया.

देश से युवा वैज्ञानिको का विदेश पलायन एक बड़ी समस्या है. इजराइल जैसे छोटे देश में स्वयं के इनोवेशन हो रहे हैं किन्तु, हमारे देश में हम ब्रेन ड्रेन की समस्या से जूझ रहे हैं.  अब देश में छोटे छोटे क्षेत्रो में भी मौलिक खोज को बढ़ावा  दिया जाना जरूरी है. वैश्विक स्तर की शिक्षा प्राप्त करके भी युवाओ को देश लौटना बेहद जरूरी है. इसके लिये देश में उन्हें विश्वस्तरीय सुविधायें, रिसर्च का वातावरण देश में ही दिया जाना आवश्यक है.

श्री अमिताभ श्रीवास्तव

द्वारा  इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

मो ७०००३७५७९८, [email protected]

 

Shri Amitabh’s Important Links : 

ई-अभिव्यक्ति श्री अमिताभ श्रीवास्तव जी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों  एवं भविष्य  में  सतत सफलता के लिए  हार्दिक शुभकामनायें देता है । 

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #3 – गझल गीत गाण्यासाठी ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है अप्रतिम मराठी गीत गझल गीत गाण्यासाठी जिसे प्रख्यात गायक एवं संगीतकार श्री  राजेश दातार जी ने स्वरबद्ध किया है। इसके साथ ही प्रस्तुत है स्थिर-चित्र आडियो /वीडियो  यूट्यूब लिंक । )

 

☆ अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 3 ☆

? गझल गीत गाण्यासाठी ?

 

 

(Please Click ⇑⇑⇑⇑  to hear song or click on YouTube Link  >> गझल गीत गाण्यासाठी

 

पाखरात कोकिळ गातो तसे गाऊ दे रे गजल गीत गाण्यासाठी सूर लावू दे रे

 

शब्दफुलांच्या या बागा नकोना पहारे तिच्या मोरपंखी ओळी आणती शहारे

अभिषेक कानावरती रोज होऊ दे रे

 

गोटीबंद आहे गजला परि जीव घेण्या एक एक शब्दांच्या या शेकडो कहाण्या दु:ख असे भळभळणारे मला पाहू दे रे

 

दु:ख सुखाच्या रे येथे किती येरझारा कधी शब्द घुसमटणारे कधी थंड वारा ब्रीद जीवनाचे सारे मला मांडू दे रे

 

शब्द कोण घेऊन आले पहाट पहाटे कोवळीच सुमने येथे नसे तिथे काटे

हाच वसा आनंदाचा मला घेऊ दे रे

 

रचना : अशोक श्रीपाद भांबुरे

गायक आणि संगीतकार : राजेश दातार

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ ☆ Relax & Recharge in 10 minutes ☆ ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Relax & Recharge in 10 minutes

YOGA NIDRA IN SITTING POSTURE

If you remain busy during the day, and feel fatigued any time, this, very short, guided relaxation is especially designed for you.
Sit comfortably for a while and just follow the instructions. You will feel relaxed and recharged in less than ten minutes. Give it a try!

YOGA NIDRA IN A SITTING POSTURE

If you remain busy during the day, and feel fatigued any time, this, very short, guided relaxation is especially designed for you.

Sit comfortably for a while and just follow the instructions. You will feel relaxed and recharged in less than ten minutes. Give it a try!

YouTube link: ⇓⇓⇓⇓

Yoga Nidra is a systematic method of inducing complete physical, mental and emotional relaxation. Fifteen minutes of the practice gives you the same comfort as one of sleep.

Usually the practice is done while lying down. This short version is especially designed for those who want to relax and recharge in a sitting posture at their workplace, airport or park in the quickest possible time during the course of their busy day.

Yoga nidra, in it’s present form, is a beautiful gift to humanity by Swami Satyananda Saraswati who founded the Bihar School of Yoga.

 

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – तृतीय अध्याय (30) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

तृतीय अध्याय

( अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा )

 

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा ।

निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ।।30।।

 

मुझमें हो अध्यात्म चित्त तू कर्म सभी मम अर्पण कर

आशा,ममता त्याग दुःख तज युद्ध के लिेये समर्पण कर।।30।।

 

भावार्थ :  मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर॥30॥

 

Renouncing all actions in Me, with the mind centred in the Self, free from hope and egoism, and from (mental) fever, do thou fight.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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