योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – Recipe for Happiness – Shri Jagat Singh Bish

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

When asked for his recipe for happiness, Sigmund Freud gave a very short but sensible answer: “Work and love.”

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

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योग-साधना/Yoga
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्ता जी के मुक्तक  ☆ –डा. मुक्ता

डा. मुक्ता

मुक्ता जी के मुक्तक 

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है  डॉ मुक्ता जी के अतिसुन्दर एवं भावप्रवण मुक्तक – एक प्रयोग।)

 

दुनिया में अच्छे लोग

बड़े नसीब से मिलते हैं

उजड़े गुलशन में भी

कभी-कभी फूल खिलते हैं

बहुत अजीब सा

व्याकरण है रिश्तों का

कभी-कभी दुश्मन भी

दोस्तों के रूप में मिलते हैं

◆◆◆

मैंने पलट कर देखा

उसके आंचल में थे

चंद कतरे आंसू

वह था मन की व्यथा

बखान करने को आतुर

शब्द कुलबुला रहे थे

क्रंदन कर रहा था उसका मन

परन्तु वह शांत,उदारमना

तपस्या में लीन

निःशब्द…निःशब्द…निःशब्द

◆◆◆

मेरे मन में उठ रहे बवंडर

काश! लील लें

मानव के अहं को

सर्वश्रेष्ठता के भाव को

अवसरवादिता और

मौकापरस्ती को

स्वार्थपरता,अंधविश्वासों

व प्रचलित मान्यताओं को

जो शताब्दियों से जकड़े हैं

भ्रमित मानव को

◆◆◆

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहे ☆ – सुश्री शारदा मित्तल

सुश्री शारदा मित्तल

दोहे

(सुश्री शारदा मित्तल जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप महिला काव्य मंच चड़ीगढ़ इकाई  की संरक्षक एवं वूमन टी वी की पूर्व निर्देशक रही हैं। प्रस्तुत हैं उनके दोहे। हम भविष्य में उनकी और रचनाओं की अपेक्षा  करते हैं।) 

 

कंकर पत्थर सब सहे, मैंने तो दिन रात  ।

सागर सी ठहरी रही, मैं नारी की जात ।।

 

साथ निभाया हर घड़ी, मन की गाँठें  खोल।

रिश्तों को महकाऐं हैं,  तेरे मीठे बोल ।।

 

मानवता देखें नहीं, सब देखें औकात ।

इस सदी ने दी हमें, ये कैसी सौगात ।।

 

अड़ियल कितना झूठ हो, सब लेते पहचान ।

खामोशी भी बोलती, सच में कितनी जान ।।

 

मात-पिता का हाथ यूँ, ज्यूँ बरगद की छाँव ।

तू जन्नत को खोजता, जन्नत उनके पाँव ।।

 

बौराया जग में फिरे, कैसे आऐ हाथ ।

तू बाहर क्यूँ  खोजता, वो है तेरे साथ ।।

 

खुद पर, तुझ पर, ईश पर, है इतना विश्वास ।

तूफ़ा कितने हों मगर, छू लूँगी आकाश ।।

 

शाखों से झरने लगे, अब हरियाले पात ।

शायद अपनों ने दिया, इनको भी आघात ।।

 

तुझे स्मरित जब किया, झुक जाता है शीश ।

प्रभु हमेशा ही मिले, बस तेरा आशीष ।।

 

नदी किनारे बैठकर कब बुझती है प्यास।

बिना भरे अंजलि यहाँ, रहे अधूरी आस।।

 

© शारदा मित्तल 

605/16, पंचकुला

 

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कविता
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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ?  अनोखे नाते ? – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

अनोखे नाते ?

 

(संभवतः विश्व में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं होगा जिसका पुस्तकों से परोक्ष या अपरोक्ष न रहा हो। सुश्री ज्योति हसबनीस जी e-abhivyakti के प्रारम्भिक साहित्यकारों में से एक हैं,  जिनका साहित्यिक सहयोग अविस्मरणीय है। आपकी यह कविता हमें बचपन से हमारे पुस्तकों से निर्बाध सम्बन्धों का स्मरण कराती हैं।)

 

पुस्तकांशी नातं लहानपणीच जडलं

चांदोबा वेताळ कुमार ने घट्ट घट्ट केलं

 

पऱ्यांच्या राज्यात मुक्त संचार

तर कधी जादुच्या सतरंजीवर होऊन स्वार किर्र जंगल घातले पालथे तर ऐटीत चढलो डोंगरमाथे ,

 

कधी मैफल जमली हिमगौरी अन् सात बुटक्यांची

तर चाखली गंमत फास्टर फेणेच्या सायकल शर्यतीची

 

तिरसिंगरावाच्या कुस्तीत हरवून गेलो

तर मॅंड्रेकच्या संमोहनात हरखून गेलो

ब. मों. नी साकारलेल्या शिवशाहीने मोहून गेलो

तर ह. ना. आपटेंच्या सूर्यग्रहणाने दु:खी झालो

 

बोकिल द. मांच्या मिष्कीलीत खळाळून हसलो तर पुलंच्या हसवणूकीत पार विरघळलो

 

विंदा, बोरकर, शांताबाईंच्या कवितेचे सूरच आगळे होते

कुसुमाग्रजांच्या कुंचल्याचे देखील आगळेच रूप होते

 

पुस्तकांतलं जग, जगातल्या जाणीवा

झिरपत झिरपत तनामनात रूजल्या

चराचराशी अनोखं नातं जोडत्या झाल्या

 

आजही माझ्या एकांती मी एकटी कधीच नसते

पुस्तकाची मला लाखमोलाची सोबत असते

 

तीच माझा सखा सोबती प्रियकर होतात

आणि जीवनाचे अनोखे धडे मला देतात

 

माझे अश्रू, माझे हास्य,

माझे कुतूहल, माझी खळबळ

सारं काही ह्या पुस्तकांभोवतीच

 

माझी जिज्ञासा, माझी ज्ञानलालसा

माझा लळा, माझा विरंगुळा

सारं काही ह्या पुस्तकांच्या संगतीच

 

अंतरीचे मळभ असो,

की मनमोराचा झंकार

पुस्तकांचा त्यांस तत्पर रूकार

 

वाटते ही सोबत जन्मजन्मांतरी लाभावी

पुस्तक वाचता वाचता पल्याडची हाक यावी ….!

 

©  सौ. ज्योति हसबनीस

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆ अळवाचं पाणी ☆ – श्रीमति सुजाता काले

श्रीमति सुजाता काले

अळवाचं पाणी

 

(प्रस्तुत है  श्रीमति सुजाता काले जी  की एक भावप्रवण  कविता  अळवाचं पाणी ।)

 

प्रिये,

तू चांदणी चमचमणारी !
मी टिमटिमणारा तारा ….

 

तू वादळ घोंघावणारं !
मी मंद वाहणारा वारा …..

 

तू धुक्यातील सकाळ,
मी दवबिंदू गवतावरचे….

 

तू मोती शिंपल्यातील,
मी पाणी अळवावरचे…!!

 

© सुजाता काले ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (29) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(सांख्ययोग का विषय)

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः ।

आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्‌।।29।।

 

अचरज से कोई देखता,कहता सुनता कोई

किन्तु बडा आश्चर्य यह जान न पाया कोई।।29।।

 

भावार्थ :   कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता।।29।।

 

One sees This (the Self) as a wonder; another speaks of It as a wonder; another hears of It as a wonder; yet, having heard, none understands It at all. ।।29।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – The Happiness Mantra – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Everyone wants to be happy. Here are some simple happiness mantras:

  • Every morning, do yoga and meditation – or walk and exercise.
  • During the day, smile and be kind to all.
  • In the evening, look back at 3 things that went well in the day.
  • During the week-end, spend quality time with your family and friends.
  • Engage deeply in work, studies, play, love and parenting.
  • Devote yourself to a meaningful humanitarian or social cause.
  • Share an occasional ice-cream or chocolate with a child.
  • Be happy and make others happy.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
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[email protected]
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

 

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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-17 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–17     

मेरे पास जितनी भी रचनाएँ आपसे साझा करने के लिए e-abhivyakti में आती हैं वास्तव में वे रचनाएँ साहित्य के सागर में किसी भी प्रकार से मोतियों से कम नहीं हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है कि मैं उन मोतियों को सूत्रधार की भांति एक माला में पिरोकर इस माध्यम से आप तक प्रेषित कर दूँ। प्रत्येक रचनाकार अपने पाठकों तक अपने हृदय के सारे उद्गार उन रचना रूपी मोतियों में सजा चमका कर मुझे प्रेषित कर देते हैं। फिर उन मोतियों से भी चुनिन्दा मोतियों को चुनकर प्रतिदिन आप तक पहुँचने का प्रयास बड़ा ही सुखद होता है। यह संवाद तो कदाचित उन मोतियों के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो मुझे आप से जोड़ती है।

मेरा तो सदैव यह प्रयास रहता है कि प्रतिदिन आपको चुनिन्दा रचनाएँ प्रस्तुत करूँ। आपका रुचिकर स्नेह मुझे साहित्य में नित नवीन प्रयोगों को आपसे साझा करने हेतु प्रोत्साहित करता है। प्रत्येक दिन आपको कुछ नया दूँ बस यही लालसा मुझे एवं e-abhivyakti के माध्यम से संभवतः मेरे-आपके साहित्य तथा साहित्यिक जीवन जीने की लालसा को जीवित रखती है।

अब आज की रचनाएँ देखिये न। दैनिक स्तंभों में श्री मदभगवत गीता के एक श्लोक के अतिरिक्त श्री जगत सिंह बिष्ट जी का गंगाजी के तट एवं हिमालय श्रंखलाओं के मध्य प्रकृति के गोद में शांतचित्त बैठ कर “निर्वाण” जैसे विषयों पर रचित रचना आपके मस्तिष्क के आध्यात्मिक तारों को निश्चित ही झंकृत कर देंगी।

इसी क्रम में श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की कविता “सावली” मुझे चमत्कृत करती है। मराठी शब्द “सावली” का अर्थ “छाया” होता है। उनकी प्रथम दो पंक्तियाँ “अपनी ही छाया में जब उलझ जाता हूँ कभी कभी, तो सूर्य भी मुझ पर हँसता है कभी कभी।“ यह रचना श्री अशोक जी के गंभीर एवं दार्शनिक मनोभावों को अभिव्यक्त करती है।

इस बार बतौर प्रयोग आपके समक्ष नारी की भावनाओं पर दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ। आप स्वयं रचनाओं की साहित्यिक तुलना किए बगैर निर्णय लें कि यदि नारी के मनोभावों को एक कवियित्रि डॉ भावना शुक्ल लिखती हैं और एक कवि श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश” लिखते हैं तो उनकी दृष्टि, संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति कैसी होती है। मैं तो आपको मात्र दोनों कवियों की अंतिम दो पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूँगा।

स्त्री है सबसे न्यारी

है वो हर सम्मान की अधिकारी।

  • डॉ भावना शुक्ल

 

पता नहीं पिंजरे में,

“मैं हूँ या मेरी भावनाएं ….?”

  • माधव राव माण्डोले दिनेश

 

इस संदर्भ में मुझे मेरी कविता कि निम्न पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

 

कहते हैं कि –

स्त्री मन बड़ा कोमल होता है

उसकी आँखों में आँसुओं का स्रोत होता है।

 

किन्तु,

मैंने तो उसको अपनी पत्नी की विदाई में

मुंह फेरकर आँखें पोंछते हुए भी देखा है।

 

श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी कि प्रसिद्ध पुस्तक “सफर रिश्तों का” पर आत्मकथ्य एवं उनकी चर्चित  कविता “मृत्युबोध” अवश्य आपको जीवन के शाश्वत सत्य “मृत्यु” के “बोध” से अवश्य रूबरू कराएगी।

 

इस संदर्भ में भी मुझे मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

 

जन्म के पश्चात

मृत्यु

सुनिश्चित है।

और

जन्म से मृत्यु का पथ ही

परिभाषा है

जीवन की।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

2 अप्रैल 2019

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पुस्तक आत्मकथ्य: ☆सफर रिश्तों का ☆ – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

आत्मकथ्य: सफर रिश्तों का – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

 

 

 

 

 

(‘सफर रिश्तों का’ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी का एक अत्यंत भावनात्मक एवं मार्मिक कविताओं का संग्रह है। ये कवितायें न केवल मार्मिक हैं अपितु हमें आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में जीवन की सच्चाई से रूबरू भी कराती हैं। हमें सच्चाई के धरातल पर उतार कर स्वयं की भावनाओं के मूल्यांकन के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं। इतनी अच्छी कविताओं के लिए श्री माथुर जी की कलम को नमन।)

 

आत्मकथ्य: आज के आधुनिक काल में भारतीय संस्कृति में तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में धुंधले पड़ते रिश्तों के मूल्य उनकी महत्वता और घटते मान सम्मान का विभिन्न कविताओं के माध्यम से बहुत भावुक एवं ममस्पर्शी वर्णन  किया गया हैं. रिश्तों पर जो सटीक लेखन  कविताओं के माध्यम से किया गया हैं वो  दिल को छू लेने वाला हैं. “इंसानियत शर्मसार हो गयी “ में बूढ़े माँ बाप की व्यथा का भावुक वर्णन किया हैं. “मृत्यु बोध “ एक बहुत ही भावुक कविता हैं जिसमें मृत्यु होने के बाद  सारे रिश्तेदारों का आपके प्रति कितना लगाव हैं बहुत ही दिल छू लेने वाला वर्णन किया हैं. माता पिता के साथ सिकुड़ते रिश्तों की व्यथा का ममस्पर्शी वर्णन करने का प्रयास किया हैं, सभी कविताऐं बहुत ही भावुक एवं मार्मिक हैं. आज रिश्तो की अहमियत कम होती जा रही हैं रिश्ते पीछे छूट रहे हैं.अन्य कविताए भी बहुत भावपूर्ण एवं शिक्षाप्रद हैं. पुस्तक  हर उम्र के व्यक्तियों के पढ़ने एवं आत्म मनन करने योग्य हैं. यह पुस्तक सामाजिक मूल्यों, माँ बाप और बच्चों के बीच पुनःआत्मीय रिश्ते स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा सकती  हैं.

Excerpts from Author’s Amazon Page : In “Safar Rishto ka,” the author through various poems has made a very touching and heart-rendering description of the decline in the relationship between parents and children in today’s Indian society. In “insaniyat sharmsaar ho gayi” has given an emotional description of the sadness of old parents. “Mrityu bodh” is a very emotional poem in which it is described that after the death how relatives are attached to your heart. Apart from these there are various precise poems on today’s social environment. The book covers for all ages people and must read by them. It is eye opener to the youth.This book can play a vital role in increase of social values and the rebuilt of intimate relationship between parents and children.

पुस्तक खरीदने के लिए लिंक :

Amazon India(paperback and Kindle): सफर रिश्तों का
AMAZON (INTERNATIONAL) : 1।  सफर रिश्तों का  2। सफर रिश्तों का 
AMAZON (KINDLE EDITION INTERNATIONAL) : सफर रिश्तों का  
KOBO.COM : सफर रिश्तों का

सफर रिश्तों का से एक अत्यंत भावुक कविता >>>

मृत्यु बोध

 

आसमान रो रहा था लोगों का जमघट भी मेरे चारो और हो रहा था,

कोई बेसुध, कोई रुआंसा तो कोई उदास था, हर कोई यहाँ रो रहा था ||

 

मैं निष्प्राण सो रहा था, सारा मंजर अपनी आँखों से देख रहा था,

घर पर इतनी भीड़ क्यों है? लोग क्यों रो रहे हैं मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा था ||

 

जो भी आता सबसे गले लग कर दहाड़ मार मार कर रो रहा था,

सब मेरी ही बातें करके अफ़सोस जताते, समझ नहीं आया ये क्या हो रहा है  ||

 

छोटे छोटे झुण्ड में घर के बाहर खड़े लोग मेरे गुण बयाँ कर रहे थे,

कोई मोबाइल पर कुछ समाचार दे रहा तो कोई पूछ रहा टाइम क्या रखा है ||

 

कल तक कुछ लोग जो पानी पी पी कर मुझे कोसते नहीं थकते थे,

वो मुझे हर दिल अजीज बता रहे थे, दोस्त भी गले मिलकर रो रहे थे ||

 

मैंने पूछना चाहा ये सब क्या हो रहा है? माहौल इतना गमगीन क्यों है?

उठने की कोशिश की मगर उठ ना पाया, यमराज मुझे जकड़े हुए बैठे थे ||

 

यमराज बोले तुम्हें पता नहीं तुम्हारी मृत्यु की प्रक्रिया चल रही है ,

मैं तुम्हें लेने आया हूँ, चित्रगुप्तजी ने मुझे अगले आदेश तक रोक रखा हैं ||

 

मैं घबरा गया, ओह ! तो मेरी मृत्यु हो गयी, मुझे ले जाने की तैयारी चल रही है,

मैं जिन्दा हूँ, सबको बताना चाहा मगर देखा यमराज रास्ता रोके खड़ा हैं ||

 

लोगो के दिल में मेरे प्रति इतनी हमदर्दी और प्यार देख मुझे रोना आ गया,

मुझे रोने वालो में कुछ वो थे जो रिश्ता तोड़ गए, कुछ रूठे हुए थे ||

 

मैंने पितरों, पूर्वजों और माता पिता को याद किया, देखा वो भी रो रहे थे,

चित्रगुप्तजी दुबारा लेखा जांच रहे थे, इधर मेरी जीवन लौ मंद थी ||

 

अचानक यमराज बोले हे वत्स ! चित्रगुप्त जी ने मुझे वापिस बुलाया है ,

तुम्हारी जिंदगी तो अभी बाकी हैं, हम तुम्हें  गलतफहमी में ले जा रहे थे ||

 

यह सुन मन ख़ुशी से झूम उठा, मेरे शरीर में तुरंत थोड़ी हलचल शुरू हो गयी,

मुझे जिन्दा देख ख़ुशी छा गयी, सबकी आँखों में ख़ुशी के आंसू बह रहे थे ||

 

गमगीन माहौल जश्न के माहौल में बदल गया, सब मुझ से मिल ख़ुशी जता रहे थे,

मुझे जिन्दा देख पितर, पूर्वज और माता पिता बहुत हर्षित हो रहे थे ||

 

धीरे-धीरे सभी लोग चले गए, कुछ दिनों में जिंदगी पहले जैसी हो गयी,

जो पहले रूठे हुए थे वे फिर रूठ गए, जो नाराज थे वे फिर नाराज हो गए ||

 

अचानक घबरा कर मेरी नींद खुली, खुद को पसीने से तरबरतर पाया,

टटोला खुद को तो जिन्दा पाया, ओह ! कितना भयानक सपना था ||

 

भगवान ने भले ही सपने में मगर जीते जी मुझे मृत्यु बोध करा दिया,

घरवालों रिश्तेदारों सभी का मेरे प्रति अथाह लगाव दिखा, हर एक मेरा अपना था ||

 

हे भगवान सब के साथ आत्मीय रिश्तों का जो अहसास मृत्यु बोध पर कराया,

उसे बनाये रखना, ना कोई रूठे ना टूटे, जैसे मृत्यु बोध पर जैसा हर कोई मेरा अपना था ||

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ स्त्री शक्ति ☆ – डॉ भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

स्त्री शक्ति

 

स्त्री शक्ति स्वरूपा है

जगत रूपा है।

स्त्री की महिमा जग में अपार

थामी है उसने घर की पतवार

उसमे समाया ममता का सागर

जीवन भर भरती सदा स्नेह की गागर।

प्रेम दया करुणा की है मूर्ति

करती है हर रूपों में पूर्ति।

स्त्री ही है पालनहार

उसी से है जन्मा सकल संसार

स्त्री शक्ति की ललकार है

स्त्री

दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती का है अवतार

मां ,बहन, बेटी है जग का सार।

स्त्री है सबसे न्यारी

है वो हर सम्मान की अधिकारी।

 

©डॉ.भावना शुक्ल

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