ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–17     

मेरे पास जितनी भी रचनाएँ आपसे साझा करने के लिए e-abhivyakti में आती हैं वास्तव में वे रचनाएँ साहित्य के सागर में किसी भी प्रकार से मोतियों से कम नहीं हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है कि मैं उन मोतियों को सूत्रधार की भांति एक माला में पिरोकर इस माध्यम से आप तक प्रेषित कर दूँ। प्रत्येक रचनाकार अपने पाठकों तक अपने हृदय के सारे उद्गार उन रचना रूपी मोतियों में सजा चमका कर मुझे प्रेषित कर देते हैं। फिर उन मोतियों से भी चुनिन्दा मोतियों को चुनकर प्रतिदिन आप तक पहुँचने का प्रयास बड़ा ही सुखद होता है। यह संवाद तो कदाचित उन मोतियों के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो मुझे आप से जोड़ती है।

मेरा तो सदैव यह प्रयास रहता है कि प्रतिदिन आपको चुनिन्दा रचनाएँ प्रस्तुत करूँ। आपका रुचिकर स्नेह मुझे साहित्य में नित नवीन प्रयोगों को आपसे साझा करने हेतु प्रोत्साहित करता है। प्रत्येक दिन आपको कुछ नया दूँ बस यही लालसा मुझे एवं e-abhivyakti के माध्यम से संभवतः मेरे-आपके साहित्य तथा साहित्यिक जीवन जीने की लालसा को जीवित रखती है।

अब आज की रचनाएँ देखिये न। दैनिक स्तंभों में श्री मदभगवत गीता के एक श्लोक के अतिरिक्त श्री जगत सिंह बिष्ट जी का गंगाजी के तट एवं हिमालय श्रंखलाओं के मध्य प्रकृति के गोद में शांतचित्त बैठ कर “निर्वाण” जैसे विषयों पर रचित रचना आपके मस्तिष्क के आध्यात्मिक तारों को निश्चित ही झंकृत कर देंगी।

इसी क्रम में श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की कविता “सावली” मुझे चमत्कृत करती है। मराठी शब्द “सावली” का अर्थ “छाया” होता है। उनकी प्रथम दो पंक्तियाँ “अपनी ही छाया में जब उलझ जाता हूँ कभी कभी, तो सूर्य भी मुझ पर हँसता है कभी कभी।“ यह रचना श्री अशोक जी के गंभीर एवं दार्शनिक मनोभावों को अभिव्यक्त करती है।

इस बार बतौर प्रयोग आपके समक्ष नारी की भावनाओं पर दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ। आप स्वयं रचनाओं की साहित्यिक तुलना किए बगैर निर्णय लें कि यदि नारी के मनोभावों को एक कवियित्रि डॉ भावना शुक्ल लिखती हैं और एक कवि श्री माधव राव माण्डोले “दिनेश” लिखते हैं तो उनकी दृष्टि, संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति कैसी होती है। मैं तो आपको मात्र दोनों कवियों की अंतिम दो पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूँगा।

स्त्री है सबसे न्यारी

है वो हर सम्मान की अधिकारी।

  • डॉ भावना शुक्ल

 

पता नहीं पिंजरे में,

“मैं हूँ या मेरी भावनाएं ….?”

  • माधव राव माण्डोले दिनेश

 

इस संदर्भ में मुझे मेरी कविता कि निम्न पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

 

कहते हैं कि –

स्त्री मन बड़ा कोमल होता है

उसकी आँखों में आँसुओं का स्रोत होता है।

 

किन्तु,

मैंने तो उसको अपनी पत्नी की विदाई में

मुंह फेरकर आँखें पोंछते हुए भी देखा है।

 

श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी कि प्रसिद्ध पुस्तक “सफर रिश्तों का” पर आत्मकथ्य एवं उनकी चर्चित  कविता “मृत्युबोध” अवश्य आपको जीवन के शाश्वत सत्य “मृत्यु” के “बोध” से अवश्य रूबरू कराएगी।

 

इस संदर्भ में भी मुझे मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

 

जन्म के पश्चात

मृत्यु

सुनिश्चित है।

और

जन्म से मृत्यु का पथ ही

परिभाषा है

जीवन की।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

2 अप्रैल 2019

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Aarushi Date

Nice