डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक सत्य घटना पर आधारित  उनकी लघुकथा वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए जिए।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को  संस्कृति एवं मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 48 ☆

☆  लघुकथा – वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए जिए ☆

फेसबुक पर उसकी पोस्ट देखी – ‘ कोरोना चला जाएगा, दूरियां रह जाएंगी’ यह क्यों लिखा इसने? मन में चिंता हुई, क्या बात हो गई? कोरोना का  दुष्प्रभाव लोगों के मानसिक स्वास्थ्य  पर भी पड़ रहा है। गलत क्या कहा उसने? समझ सब रहे हैं उसने लिख दिया।उसकी लिखी बात मेरे मन में गूँज रही थी कि व्हाटसअप पर उसका पत्र  दिखा –

यह पत्र आप सबके लिए है, कोई फेसबुक पर भी पोस्ट करना चाहे तो जरूर करे।मैं जानता हूँ कि कोरोना महामारी ने हमारा जीने का तरीका बदल दिया है।मास्क पहनना,बार–बार हाथ धोना, और सबसे जरूरी,दो गज की दूरी, जिससे वायरस एक से दूसरे तक नहीं पहुँचे।इन बातों को मैं  ठीक मानता हूँ और पूरी तरह इनका पालन भी करता हूँ।लेकिन इसके बाद भी कोरोना हो जाए तो कोई क्या कर सकता है?

मेरे साथ ऐसा ही हुआ, सारी सावधानियों के बावजूद मैं कोविड पॉजिटिव हो गया। मैं तुरंत अस्पताल में एडमिट हुआ और परिवार के सभी सदस्यों का कोविड  टेस्ट करवाया। भगवान की कृपा कि सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई, मैंने राहत की साँस ली, वरना क्या होता—- कहाँ से लाता इतने पैसे और  कौन करता हमारी मदद? लगभग पंद्रह दिन बाद मैं  अस्पताल  से घर आया। मेरे पूरे परिवार के लिए यह बहुत कठिन समय था। घर आने के बाद मैंने  महसूस किया कि सबके चेहरे पर उदासी  छाई है।ऐसा लगा जैसे कोई बात मुझसे छिपाई जा रही हो।बच्चे कहाँ हैं मैंने पूछा।पत्नी ने बडे उदास स्वर में कहा – बेटी खेल रही है, बेटे को नानी के पास भेज दिया है। उसे इस समय वहाँ क्यों भेजा? मैं पूरी तरह स्वस्थ नहीं था इसलिए वह मुझे सही बात बताना नहीं चाह रही थी, मेरे ज़्यादा पूछने पर वह रो पडी, उसने बताया – ‘ मेरे कोविड पॉजिटिव  होने का पता चलते ही आस –पडोसवालों का मेरे परिवार के सदस्यों के प्रति रवैया ही बदल गया। किसी प्रकार की मदद की बात तो दूर उन्होंने पूरे परिवार को उपेक्षित –सा कर दिया।स्कूल बंद थे, दोनों बच्चे मोहल्ले में अपने दोस्तों  के साथ खेला करते थे, अब सब जैसे थम गया।उनको हर समय घर में  रखना मुश्किल हो गया।बेटी तो छोटी है पर बेटे को यह सब सहन ही नहीं हो रहा था। किसी समय वह चुपचाप थोडी देर के निकला तो पडोसी ने टोक दिया – अरे, तेरे पापा को कोरोना हुआ है ना, जाकर घर में बैठ, घूम मत इधर –उधर, दूसरों को भी लगाएगा बीमारी। वह मुँह लटकाए घर वापस आ गया। घर में पडा, वह अकेले रोता रहता, धीरे- धीरे उसने सबसे बात करना, खाना -पीना छोड दिया।उसकी हालत इतनी बिगड गई  कि उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाना पडा। उसका किशोर मन यह स्वीकार  ही नहीं कर पाया कि जिन लोगों के साथ रहकर  बडा हुआ है आज वे सब उसके साथ अजनबी जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

जिन आस पडोसवालों को हम सुख – दुख का साथी समझते हैं उनकी बेरुखी से मुझे भी बहुत चोट पहुँची। एक पल के लिए मुझे भी लगा कि फिर समाज में रहने का क्या फायदा? कोरोना महामारी से हम सब जूझ रहे हैं, हमें देह से दो गज की दूरी रखनी है, इंसानियत से नहीं। डॉक्टर्स, नर्स और अस्पताल के कर्मचारी यदि ऐसी ही अमानवीयता कोरोना के रोगी के साथ दिखाएं तो? वे भी तो इंसान हैं, उन्हें भी तो अपनी जान की फिक्र है, उनके भी परिवार हैं?

इतना ही कहना है मुझे कि मेरा बेटा और  मेरा परिवार जिस मानसिक कष्ट से गुजरा है वैसा किसी और के साथ ना होने दें। वैक्सीन बनेगी, दवाएं आएंगी, कोरोना आज नहीं तो कल चला ही जाएगा। इंसानियत बचाकर  रखनी होगी हमें, कहीं भरोसा ही ना रहा एक-दूसरे पर तो?  ना खुशी में साथ मिलकर ठहाके लगा सकें, ना गम बाँट सकें, कितना नीरस होगा जीवन—  ।आज तक कोई ऐसी वैक्सीन बनी है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए रखे,  संवेदनशीलता ही मनुष्य की पहचान है, हाँ फिर भी वैक्सीन हो तो बताइयेगा जरूर।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Abhay kumar

बेहद खूबसूरत।??
अति उत्तम।

richa sharma

अभय धन्यवाद

Dr. Vandana Mukesh Sharma

True, सच , विचारणीय है यह ।

richa sharma

धन्यवाद वंदना