श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समझौते।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 07 ☆ समझौते… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आओ कुछ

पढ़ डालें चेहरे

फेंक दें उतार कर मुखौटे।

 

पहचानें पदचापें

समय की

कुल्हाड़ी से काटें जंजीरें

तमस के चरोखर में

खींच दें

उजली सी धूप की लकीरें

 

सूरज से

माँगें पल सुनहरे

तोड़ें रातों से समझौते ।

 

पत्थरों पर तराशें

संभावना

सूने नेपथ्य को जगाकर

उधड़े पैबंद से

चरित्रों को

मंचों से रख दें उठाकर

 

हुए सभी

सूत्रधार बहरे

जो हैं बस बोथरे सरौते।

 

ऊबड़-खाबड़ बंजर

ठूँठ से

उगते हैं जिनमें आक्रोश

बीज के भरोसे में

बैठे हैं

ओढ़ एक सपना मदहोश

 

चलो रटें

राहों के ककहरे

गए पाँव जिन पर न लौटे।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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