श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मूकदर्शक।)

☆ लघुकथा – मूकदर्शक ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अपने ही चेहरे को दर्पण के सामने खड़ी होकर मैं देख रही हूं – पाषाणवत स्तब्ध   अपने से ही संवाद करती।

इतनी ठंडी में भी माथे से पसीना जो चुहचुहा रहा था। हृदय पर एक भारी बोझ का अनुभव हो रहा था ।

क्या हो गया मेरे साथ?

किसी तरह से इस जिंदगी में चैन नहीं मिल रहा है पुरानी यादों की किरचें चुभ रही धी।

नहीं, ना वह मुझे छोड़ कर जा सकता है, न ही मैं उसे छोड़ सकती?

हे विधाता यह तूने क्या किया?

ऐसे अगणित सवाल मन में गूंज रहे थे।

सीधे सच्चे पथ के हमराही को कोई डर नहीं होता किसी अनुबंध के टूटने का डर कुटिल और दुष्ट को होता है।

समाज में तो सभी लोग ढाढस बनाने की बजाय अनभिज्ञ होने का स्वांग रचाते हैं और बार-बार वही बातों को दोहराते हैं, छल पूर्वक एक दूसरे के साथ झूठी हंसी का स्वांग रचाते हैं।

हृदयाघात होने के कारण अचानक चल बसे।

समझ नहीं आ रहा था कि विधाता ने कैसा खेल रचा?

क्या कोई हल निकालेंगे।

मेरे पति राम की प्राइवेट नौकरी थी और मेरे पास अब जीवन जीने का कोई सहारा नहीं है पढ़ाई लिखाई भी नहीं की है ?

5 साल के बेटे को अच्छे से पढ़ा सकूं समाज की हमदर्दी से क्या मेरा घर चलेगा?

काश 12वीं के बाद पढ़ाई की होती।

लेकिन कोई बात नहीं, मुझे अच्छा खाना बनाना आता है, और सिलाई भी आती है।

बेटे के सहारे ही अपना जीवन काट दूंगी। समाज का क्या उसकी हमदर्दी भी 4 दिन की है। कोई किसी का नहीं होता, आज इस सच को जान लिया, सब मूर्ख बनाते हैं, सब मूक दर्शक हैं।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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