श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌।

मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌।।38।।

 

शासक का मैं दण्ड हूँ, विजयेच्छु की नीति

गोपनीय का मौन हूँ ज्ञानी की हूँ प्रतीति।।38।।

भावार्थ :  मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ।।38।।

 

Among the  punishers  I  am  the  sceptre;  among  those  who  seek  victory  I  am statesmanship; and also among secrets I am silence; knowledge among knowers I am.।।38।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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