डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  गुरु पर्व  पर प्रस्तुत है एक कविता  “गुरु पर्व पर विनम्र नमन…..। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 7 ☆

 

☆ गुरु पर्व पर विनम्र नमन…..  ☆  

 

क्या कहें आपको, अध्यापक

टीचर, शिक्षक जी, या गुरुवर

या कहें, शिक्षकों के शिक्षक

दीक्षा दानी, हे पूण्य प्रवर।

 

क, क-कहरा से शुभारम्भ

ज्ञ, ज्ञान प्राप्ति ,करवाते हो

य, योग, गुणनफल, गुण अनेक

भ, भाग-बोध सिखलाते हो।

 

जीवन के लक्ष्य प्राप्ति में, गुरुवर

सहचर तुम बन जाते हो

बाधाओं से,  संघर्ष करें

साहस के मंत्र, सिखाते हो।

 

कहते हैं कि, है शब्द – ब्रह्म

तो, ब्रह्म ज्ञान के, हो दाता

गुरु-गोविंद में से पूज्य कौन

गुरुवर ही है, विद्या दाता।

 

हो ज्ञानी, तुम सम्माननीय

हे वंदनीय, है नमन् तुम्हें

अभिलाषा है, अनवरत,गुरु-

मुख से, अमृत रसधार बहे।

 

आशीष आप के बने रहें

गुण-ज्ञान की, प्रीत फुहार रहे

सद्भाव, शांति, करुणा, मन में

जन-जन से, मधुमय प्यार रहे।

 

है नमन् तुम्हें, सादर प्रणाम

शिक्षक गुरुजन का,अभिनंदन

अन्तर्मन, भक्ति भाव से,शीष

झुका कर, करते हैं, वन्दन।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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