मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 58 ☆ फुलं ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता  “फुलं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 58 ☆

☆ फुलं ☆

 

हसतात फुलं, डोलतात फुलं

काट्यांच्या सोबतीत वाढतात फुलं

निरागस नि कोमल असतात फुलं

रोजच रंगपंचमी खेळतात फुलं

भेटेल त्याला आनंद वाटतात फुलं…

कळ्या फुलतात, यवंनात आलेल्या मुलींसारख्या

नाचतात माणसांच्या तालावर

कुणी एखादा घरी घेऊन जातो फुलं

घर सुवासानं भरून टाकावं म्हणून

कुणी त्यांना देवाच्या पायावर वाहतो

तर कुणी माळतो प्रेयसीच्या केसात

कुणी फुलांच्या शय्येवर पोहूडतात

एखादा करंटा मनगटावर बांधून

घेऊन जातो त्यांना कोठीवर

वापरून झाल्यावर

पायदळी तुडवली जातात फुलं

कुणाच्याही अंतयात्रेवर उधळली जातात फुलं

सारा आसमंत दरवळू टाकतात फुलं

तरीही नशिबावर कुठं चिडतात फुलं…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 13 – रात्र – चित्र २ ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘रात्र – चित्र २ 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 13 ☆ 

☆ रात्र – चित्र २ 

रात्र

चंद्रबनातून

अलगद उतरणारी

मोगरीच्या सतेज ताटव्यात

घमघमणारी

पानांच्या चित्रछायेतून

तरंगत जाणारी

पुळणीवर जरा विसावणारी

हातांशी लगट करणारी

कानांशी कुजबुजणारी

आलीआलीशी

म्हणता म्हणता

पार…क्षितिजापार

होणारी

रात्र

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ !! सावन मनभावन !! ☆ इंजी हेमंत कुमार जैन

इंजी हेमंत कुमार जैन

ई-अभिव्यक्ति में इंजी हेमंत कुमार जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप जिला भूजल सर्वेक्षण ईकाई जबलपुर में अनुविभागीय अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। आपकी हाईकू एवं समकालीन आध्यात्मिक रंग से रची रचनाओं के लेखन में विशेष अभिरुचि है। आपकी रचनाओं को विविध काव्य संग्रहों में स्थान मिला है। हम आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों से साझा कराते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक घनाक्षरी रचना *!! सावन मनभावन !!

☆ !! सावन मनभावन !!

(घनाक्षरी)

सावन मनभावन,

हर्षित है तन मन ।

हरितमा धरनी की,

जी भर निहारिए ।।

 

सावन मनभावन,

व्रत पूजा व अर्चन ।

पिंडी चढ़ा बेल पत्र

शिव को रिझाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

प्रफुल्लित सब मन।

अमुआ की डार पर

झूला तो झुलाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

भीगे बारिश से तन।

भजिया भुट्टे खाने का

मजा तो उठाइए ।।

 

© इंजी.हेमंत कुमार जैन

संपर्क – 522 P-97, जगदंबा कॉलोनी , विकास नगर जबलपुर मो -7000770620

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 58 – सीख की गाँठ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  एक  सार्थक लघुकथा  “सीख की गाँठ।  वास्तव में सीख की गाँठ तो सौ टके की है ही, यह लघुकथा भी उतनी ही सौ टके की है।  नवीन पीढ़ी को ऐसी ही कई गांठों की आवश्यकता है जो उचित समय पर बांधना ही सार्थक है। संभवतः सभी पीढ़ियां इस दौर से एक बार तो जरूर गुजरती हैं। इस  सार्थक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 58 ☆

☆ लघुकथा – सीख की गाँठ

 

एक भव्य शादी समारोह लगभग सभी पढ़े लिखे शिक्षित परिवार से लग रहे थे।

बिटिया जिसकी शादी हो रही थी ” सुरीली” । बाहर पढ़ने गई हुई थी। लालन पालन भी आज की आधुनिकता भरे वातावरण में हुआ था।

घर पर सभी मेहमान आए हुए थे और बिटिया के बाहर रहने के कारण सभी सुरीली को कुछ ना कुछ समझा रहे थे।

शायद इसलिए कि वह इन रीति-रिवाजों को नहीं जान रही है और घर से दूर अकेली स्वतंत्र हॉस्टल की जिंदगी में पली बढ़ी है। हॉस्टल की जिंदगी अलग होती है।

समय निकलता जा रहा था सभी रस्में  एक के बाद एक होते जा रहे थे। सुरीली नाक चढ़ा मजबूरी है कहकर निपटाना समझ रही थी।

दादी जो कि सत्तर साल की थी। सब बातों को बड़े ध्यान से एक किनारे बैठ कर भापं रही थी क्योंकि कोई उन्हें पूछं भी नहीं रहा था और उनकी अपनी पांव की तकलीफ के कारण वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।

कभी-कभी बीच-बीच में बेटा और पोता, बहू आ कर पूछ जाते कुछ चाहिए तो नहीं??? परंतु दादी लगातार नहीं कह… कर खुश हो जाती और कहती… तुम सब अपना काम करो। बस मुझे विदाई के समय सुरीली की ओढ़नी पर गांठ बांधनी है।

सभी को लगा कि विदाई में शायद दादी कुछ भारी-भरकम चीज देंगी। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं था।

विवाह संपन्न हुआ और धीरे-धीरे विदाई का समय आया। पिताजी ने सुरीली से कहा… कि दादी का आशीर्वाद ले लो सुरीली ने थोड़ा मुंह बना लिया जिसे दादी देख रही थी। सुरीली निपटाना है कहकर… आगे बढ़ी और दादी के पास गई।

दादी ने बड़े प्यार से सुरीली और दामाद के सिर पर हाथ रखा और ओढ़नी के  पल्लू पर एक गांठ बांधते हुए बोली… मैं जान रही हूं तुम्हें संयुक्त परिवार की आदत नहीं है और जहां शादी होकर जा रही हो संयुक्त परिवार में जा रही हो।

यह गांठ मैं तुम्हें बांध रही हूं घर से निकलते समय बड़ों से पूछ कर जाना और उनके पूछने से पहले घर के अंदर आ जाना  बस इतना सा ही कहना है। सुरीली की आंखें नम हो गई। दादी को कसकर गले लगा लिया और हां में सिर हिला दिया।

दादी की ‘सीख गांठ’ के लिए सभी ने तालियों से स्वागत किया। और अपनी पुरानी काया के साथ अनुभव को अपनी नातिन को बांटते हुए दादी फूली नहीं समा रही थी। सभी की आंखें चमक उठी। सभी ने कहा दादी ने सौ टके की बात कही। दादी  की गांठ का सभी ने लोहा माना।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – सावन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सावन पर अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – सावन  ✍

 

सावन की ऋतु आ गई ,आंखों में परदेश।

मन का वैसा हाल है, जैसे बिखरे केश।।

 

सावन आया गांव में, भूला घर की गैल।

इच्छा विधवा हो गई ,आंखें हुई रखैल।।

 

महक महक मेहंदी कहे ,मत पालो संत्रास ।

अहम समर्पित तो करो, प्रिय पद करो निवास।।

 

सावन में सन्यास लें, औचक उठा विचार ।

पर मेहंदी महक गई ,संयम के सब द्वार।।

 

सावन के संदेश का, ग्रहण करें यह अर्थ ।

गंध हीन जीवन अगर, वह जीवन  है व्यर्थ ।।

 

जलन भरे से दिवस हैं ,उमस भरी है रात ।

अंजुरी भर सावन लिए ,आ जाए बरसात ।।

 

मेहंदी, राखी ,आलता, संजो रहा त्यौहार।

सावन की संदूक में, महमह करता प्यार।।

 

डॉ राजकुमार सुमित्र

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

मो 9300121702

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 10 – चेहरे के समाज से  ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “चेहरे के समाज से”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 10 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ चेहरे के समाज से  ☆

 

चित्र :: आमुख

 

बिखर गईं मुस्काने

होंठों की दराज से

माँगा जिनको सबने

चेहरे के समाज से

 

चित्र :: एक

 

मौसम डरा -डरा सा

बाहर को झाँका है,

मौका परदे के विचार

से भी बाँका है

 

चुपके पूछ रहा-

कपड़े क्या सस्ते हैं कुछ?

“तो खरीद लूँगा मैं”

कस्बे के बजाज से

 

चित्र :: दो

 

पेड़ों के पत्तों में

हलचल बढ़ने  वाली

शाख -शाख पर फैली

केसर उड़ने वाली

 

फैल रही खुशबू अब

चारों ओर सुहानी

हवा लुटाती है अपनापन

इस लिहाज से

 

चित्र :: तीन

 

वहीं ज्योति सी प्रखर

धूप की बेटी के मुख

अंग -अंग पर, छाया

रंग से बदल गया रुख

 

दोनों हाथों से घर में

वह सगुन स्वरूपा

डाल रही सगनौती है

छत पर अनाज से

 

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 58 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – अन्न की मौत ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 58

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – अन्न की मौत ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय –

आपके गद्य लेखन को व्यंगमूलक मानने के बावजूद इधर कुछ महत्वपूर्ण आलोचकों ने उसमें भाव के प्रामाश्य को रेखांकित किया है। व्यंग्य मूलतः एक आक्रामक या संहारक रचना शैली है, इसमें करुणा जैसे विरोधी भाव का अंतरयोग सिद्धांतत: बहुत कठिन है। व्यंग्य की रचना शैली के विशिष्ट अनुशासन के भीतर आप करुणा भाव को कैसे चरितार्थ कर पाते हैं ?

हरिशंकर परसाई –

ऐसी स्थितियां होतीं है जो करुण स्थितियां होती हैं, मेरी रचनाओं में आयी हैं। जैसे कि “अन्न की मौत” मेरा एक निबंध है, उसमें जब बहुत कठिनाई है आटा मिलने में, तो कहीं से मुझे आधा बोरा आटा मिल जाता है,जब उसे खोलते हैं तो उसमें मरा हुआ चूहा निकलता है,तो हम भाई-बहन चारों उस बोरे के आसपास बैठ जाते हैं और हमें याद आता है कि जब हमारे चाचा मरे थे तब भी हम इसी तरह बैठे थे, तो ये “अन्न” मरा है।तब भी हम इसी तरह बैठे हैं।अब ये स्थिति तो बहुत करुण है…न…। ये बहुत करुण स्थिति है, लेकिन मैंने पूरे के पूरे निबंध को जिस स्थिति में लिखा उसमें व्यंग्य ही व्यंग्य आता है।उस बोरे के आसपास उदास बैठना, इसमें कुछ विनोद ही ज्यादा है, फिर मैंने लिखा है कि “यहां तो अमेरिका से आयेगा गेहूं, तब मिलेगा” ।

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी का साहित्य # 51 – ये मेरी धरती माँ ☆ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है आपकी प्रथम हिंदी रचना   ” ये मेरी धरती माँ ”। आपका इस अभिनव प्रयास के लिए अभिनन्दन ।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी का साहित्य # 51 ☆

☆ ये मेरी धरती माँ ☆

 

ये मेरी धरती माँ सबसे पावन है।

सितारा दुनियाँ का सबको मनभावन है।।धृ।।

 

चरण रज माँ तेरी जलधि नित धोता है।

उन्नत माथे पे हिमालय रहता है।

नदियों  की धाराओं से हर गली उपवन है।।१।।

 

घनेरे जंगल ये घटाये लाते हैं।

सुनहरे झरने तो तराने गाते हैं।

खेत खलिहानो में मचलता सावन है।।२।।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम कही रघुनंदन है।

नटखट राधा के देवकीनंदन है।

रुप इन दोनों के सभी घर आंगण है।।३।।

 

वेद उपनिषदों  की अमृत गाथा है

कुरान और धम्मदीप सबको मन भाता है।

सहिष्णु भूमि  के चरणों में वंदन है।।४।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆  सावन का मौसम ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक समसामयिक रचना  “ सावन का मौसम”।  कुछ अधूरी कहानियां  कल्पनालोक में ही अच्छी लगती हैं। संभवतः इसे ही फेंटसी  कहते हैं। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #5 ☆ 

☆  सावन का मौसम ☆ 

ये सावन का मौसम

ये ठंडी-ठंडी हवायें

चलो आज हम तुम

कहीं दूर घूम आयें

ये गुपचुप का ठेला

ये लोगों का मेला

ये गरमागरम चाट

खायें, एक दूसरे को खिलायें

गार्डन में देखो बच्चों की टोली

ऊधम मचाती बिंदास बोली

कूद कूदकर खेलें हैं होली

छींटो  से खुदको कोई कैसे बचायें

ये दिलकश नज़ारा

ये जल की बहती धारा

ये बिखरी हुई बूंदें

ये धुंध  में लिपटा किनारा

ये दृश्य तो आंखों से

दिल में उतर जायें

हरी भरी वसुंधरा

प्रणय गीत गायें

अंबर के मेघों को

मिलने बुलायें

प्रकृति का ये खेल देखो

दौड़कर घिर आई

काली घटाएं

चलो रिमझिम फुहारों में

हम तुम भी भींगें

हृदय पटल पर

प्रेम गीत लिखें

भीगा – भीगा  तन-मन हों

भीगी  हों सांसें

ऐसे सावन को भला

कोई कैसे भूल पाएं ?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 9 ☆ किमया… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता किमया…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 9 ☆ 

☆ किमया…

कोरड्या नदीला

अपेक्षा पावसाची

ओरडणाऱ्या पावश्याला

आशा एक पर्जन्य थेंबाची..

 

स्वाती नक्षत्र पाऊस

थेंब अगणित पडती

तरी एकाच थेंबाचे

शुभ्र वेधक मोती बनती..

 

गाईच्या कासेला

गोचीड बिलगती

सोडून पय अमृत

रक्त प्राशन करिती..

 

पडला साधा पाऊस

ओढ्यास पूर येई

उन्हाळ्यात महानदी

रखरखीत वाळवंट होई..

 

कुणास मिळे पुरणपोळी

कुणास चटणी भाकर

कुणी उपाशी तसाच

असाध्य दुःखाचा डोंगर..

 

गरीब गरीब राहिले

श्रीमंत, पैश्यात लोळले

नाहीच काही जवळ धन

कुणी मरण समीप केले..

 

खूप विचित्र गड्या

निसर्गाची माया

आलोत जन्मास भूवरी

साधू काही छान किमया..

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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