मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 74 ☆ तप्त उन्हाच्या झळा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 74 ? 

☆ तप्त उन्हाच्या झळा… ☆

हे शब्द अंतरीचे…

तप्त उन्हाच्या झळा

 

तप्त उन्हाच्या झळा

चैत्र महिना तापला

पळस फुलून गळाले

होळीचा सण आटोपला…०१

 

तप्त उन्हाच्या झळा

जीव अति घाबरतो

थंड पाणी प्यावे वाटे

उकाडा बहू जाणवतो…०२

 

तप्त उन्हाच्या झळा

शेतकरी घाम गाळतो

अंग भाजले उन्हाने

तरी राब राब राबतो…०३

 

तप्त उन्हाच्या झळा

फोड आला पायाला

अनवाणी फिरते माय

चारा टाकते बैलाला …०४

 

तप्त उन्हाच्या झळा

सोसाव्या लागतील

थोड्या दिसांनी मग

मृगधारा बरसतील…०५

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 3 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 3 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

५.

तुझ्या चरणकमळाजवळ निवांत बसावे

असे  आज मला वाटते

हातात असलेली कामं नंतर करता येतील

 

किनारा नसलेल्या सागरासारखी असंख्य

निरर्थक कामं मी करीत राहतो

पण तुझ्या दर्शनावाचून माझ्या मनाला

ना विश्रांती ना आराम

 

गाणी गात वसंत ॠतू  माझ्या गवाक्षाशी

रुंजी घालतो आहे.

फुलपाखरं बागडणारी आणि

पुष्पगुच्छांचा सुवास हवेत दरवळत आहे

 

जीवन समर्पणाचं गीत गात,

शांत मनानं तुझ्या समोर

विसावा घ्यावा असा हा क्षण आहे

 

६.

कोमेजून आणि धुळीत मिसळून जाण्याअगोदर

हे छोटेसे फूल तू खुडून घे l आता विलंब नको

 

तुझ्या गळ्यातल्या हारात त्याला स्थान नसेलही,

पण तू ते खुडताना त्याला होणाऱ्या

यातना  त्याचे गौरवगीत आहेत.

मला समजण्याअगोदरच समर्पणाचा

हा दिवस कधीच निघून गेला असेल.

 

फिकट रंगाचे आणि मंद वासाचे हे फूल

तुझ्या चरणसेवेतच यावे.

अजून वेळ आहे, तोवर ते खुडून घे.

 

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #132 ☆ व्यंग्य – स्वर्ग और पुनर्जन्म के लिए सेटिंग ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘स्वर्ग और पुनर्जन्म के लिए सेटिंग’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 132 ☆

☆ व्यंग्य – स्वर्ग और पुनर्जन्म के लिए सेटिंग

चार छः दिन से चुन्नीलाल को तबियत गड़बड़ लग रही थी। छाती की बायीं तरफ हल्का दर्द और भारीपन था।काम करने में जल्दी थकान आती थी।बेटों ने डॉक्टर को दिखाने को कहा तो उनका जवाब था, ‘आजकल कोई डाक्टर पाँच सौ से कम फीस नहीं लेता।जरा सी तकलीफ के पाँच सौ कौन देगा? मौसम का असर लगता है। दो चार दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा।’

रात को सोते सोते कुछ खटपट सुनाई पड़ी तो आँख खुल गयी। देखा, दो आदमी अजीब से वस्त्र पहने पलंग के पास खड़े थे। चुन्नीलाल डर कर बोले, ‘कौन हो भाई? अंदर कैसे आये? चोरी करने का इरादा है क्या?’

उन दोनों में से एक हँसकर बोला, ‘हम तुम्हारी आत्मा की चोरी करने यमलोक से आये हैं। तुम्हारा टाइम हो गया।’

चुन्नीलाल घबराकर पलंग पर बैठ गये। बोले,  ‘अरे, अभी तो हमारे हाथ पाँव दुरुस्त हैं। अभी कैसे ले जाना है?’

यमदूत बोला, ‘बाहर से ठीक-ठाक है, लेकिन भीतर तो सब गड़बड़ हो गया है। जिन्दगी भर दूकान की गद्दी पर धरे रहे, हाथ पाँव चलाये नहीं, इसीलिए यह नौबत आयी।’
उनकी बातचीत सुनकर चुन्नीलाल के दोनों बेटे आ गये। यमदूतों की बातें सुनकर वे अवाक थे।

चुन्नीलाल गुस्से में बोले, ‘तुम्हारे यहां का सिस्टम इतना खराब है। बिना सूचना दिये चाहे जब आ धमकते हो। कोई नोटिस मिल जाये तो आदमी घरवालों को जरूरी जानकारी दे दे।’

यमदूत बोला, ‘इस सबसे हमें कुछ लेना देना नहीं। यह शिकायत ऊपर चल कर करना।’

तभी दूसरा यमदूत सीलिंग की तरफ आँखें टिका कर बोला, ‘स्वर्ग की सेटिंग करना हो तो कर लो।’

चुन्नीलाल चौंके, बोले, ‘क्या कहा?’

वह वैसे ही बोला, ‘स्वर्ग की सेटिंग करना हो तो हो जाएगा। यहां के हिसाब से करीब बीस तोला सोना लगेगा। सोना तो वहां भी चलता है। सभी लोग सोने के आभूषण पहनते हैं।’

चुन्नीलाल खुश होकर बोले, ‘हो जाएगा।’ फिर बेटों से बोले, ‘जाओ, अम्माँ से सोना ले आओ। कम पड़े तो बहुओं से ले लेना।’

पहला यमदूत बोला, ‘पहले यह सब नहीं होता था। यहाँ से एक इंस्पेक्टर मातादीन गये, जो कभी चाँद पर गये थे। उन्हें चित्रगुप्त जी का असिस्टेंट नियुक्त किया गया है।

उन्हींने धीरे धीरे यह व्यवस्था बनायी ताकि सभी को अपनी मेहनत का कुछ फल मिल सके।’

चुन्नीलाल बोले, ‘लेकिन हमें तो यह बताया गया है कि पुण्य करने वालों को ही स्वर्ग मिलता है।’

यमदूत बोला, ‘पहले मिलता था। अब सेटिंग वालों से जो जगह बचती है उसी में पुण्य वालों का नंबर लगता है।’

सोना समेटने के बाद दूसरा यमदूत बोला, ‘चाहो तो दूसरे जनम की सेटिंग भी हो जाएगी, लेकिन उसमें करीब दुगुना सोना लगेगा।’

चुन्नीलाल फिर चौंके,बोले, ‘क्या मतलब?’

यमदूत बोला, ‘मतलब यह कि अगला जनम जिस खानदान में भी लेना चाहो उसका इंतजाम भी हो जाएगा।’

चुन्नीलाल आश्चर्य से बोले, ‘अरे वाह!’

यमदूत बोला, ‘अभी यहाँ जो दस बीस सबसे बड़े घराने हैं उनकी बुकिंग तो हो गयी। फिर भी बहुत से करोड़पति घराने बाकी हैं। कई दो नंबर वाले हैं जो अपनी कमाई छिपाकर रखते हैं। हमारे पास सब की जानकारी है, जहाँ कहोगे वहाँ भेज देंगे। लेकिन इसके लिए अभी टाइम है। ऊपर चल के बता देना। हम पहले यहाँ आकर तुम्हारे बेटों से सोना वसूल कर लेंगे।’

पहला यमदूत बोला, ‘सेटिंग कर लेना, नहीं तो क्या पता कुत्ते-बिल्ली की योनि में ढकेल दिये जाओ।’

चुन्नीलाल बोले, ‘लेकिन हमने तो पढ़ा था कि अच्छे कर्म करने से ही अगला जन्म सुखी होता है।’

यमदूत बोला, ‘ये बातें पुराने जमाने में राजाओं ने अपने पुरोहितों के साथ मिलकर फैलायी थीं ताकि प्रजा उनके खिलाफ विद्रोह न करे, अपना पुनर्जन्म सँवारने में लगी रहे। इसीलिए राजा को भगवान का रूप घोषित किया जाता था।’

इतनी जानकारी देकर चुन्नीलाल और उनके परिवार को प्रसन्न करके दोनों यमदूत चुन्नीलाल की आत्मा के साथ यमलोक को प्रस्थान कर गए।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 84 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

English translation of Urdu poetry couplets of Pravin ‘Aftab’ # 84 ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of Pravin Aftab # 84 ☆

(Today, enjoy some of the Urdu poetry couplets written and translated in English by Pravin ‘Aftab’.  Pravin ‘Aftab’ is nick name of Capt. Pravin Raghuvanshi.)

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

रिश्ते सुलगते रहते हैं

कुछ सवाल जेहन में,

आजकल के रिश्ते

बुझे-बुझे से क्यूँ रहते हैं…

 

Some questions keep

simmering in the mind

Why do today’s relationships

remain so low-spirited…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

वक़्त तो जरूर लगा,

पर मैं संभल गया…

क्योंकि, मैं ठोकरों से गिरा था

किसी की नज़रों से नहीं…!

 

It did take time, but

I managed to hold on

Because, I’d stumbled, and

Not fallen in someone’s eyes…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

जिस घड़ी चाहे उलझ जाये

मेरे ख़्यालों से…,

इतनी हिम्मत तेरी यादों

के सिवाय किसकी  है…!

 

Any time that can clash

willfully with my thoughts…

Who else can dare doing

other than your memories…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

फुर्सत मिले तो आना कभी

दिल की गलियों तक

हम धड़कनों में अपनी

तुम्हारा नाम सुनायेंगे …!

 

If you get time, come to

the streets of hearts

I’ll make you hear your

name in my heart…!

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

Pravin ‘Aftab’

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच# 130 ☆ उड़ गई गौरैया… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 130 ☆ उड़ गई गौरैया… ?

तोता उड़, मैना उड़, चिड़िया उड़.., सबको याद तो होगा बचपन का यह खेल। विडंबना देखिए कि खेल में गौरैया उड़ाने वाले मनुष्य ने खेल-खेल में चिड़िया को अनेक स्थानों से हमेशा के लिए उड़ा दिया।

आज विश्व गौरैया दिवस है। अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझती गौरैया पर औपचारिकतावश विमर्श नहीं अपितु  यथासंभव जानकारी एवं जागृति इस आलेख का ध्येय है।

पर्यावरणविदों  के अनुसार भारत में गोरैया की 5 प्रजातियाँ मिलती हैं। एक समय था कि गौरैया हर आँगन, हर पेड़, हर खेत में बसेरा किये मिलती थी। पिछले तीन दशकों में विशेषकर महानगरों में गौरैया की संख्या में 70% से 80% तक कमी आई है। महानगरों में  बहुमंज़िला गगनचुंबी इमारतों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इन इमारतों की प्रति स्क्वेयर फीट की ऊँची कीमतों ने औसत 14 सेंटीमीटर की चिड़िया के लिए अपने पंजे टिकाने की जगह भी नहीं छोड़ी।

गौरैया फसलों पर लगने वाले कीड़ों को खाती हैं। अब खेती की ज़मीन बेतहाशा बिक रही है। जहाँ थोड़ी-बहुत बची है, वहाँ फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है। घास का बीज चिड़िया का प्रिय खाद्य रहा है। घास भी हमने कृत्रिम कर डाली। छोटे झाड़ीनुमा पेड़ चिड़िया के बसेरे थे, जो हमने काट दिए। सघन वृक्ष काटकर डेकोरेटिव पेड़ खड़े किए। हमने केवल अपने लिए उपयोगी या अनुपयोगी का विचार किया। हमारी स्वार्थांधता ने प्रकृति के अन्य घटकों को दरकिनार कर दिया।

सुपरमार्केट और मॉल के चलते पंसारी की दुकानों में भारी कमी आई है। खुला अनाज नहीं बिकने के कारण चिड़िया को दाना मिलना दूभर हो गया। चिड़िया जिये तो कैसे जिये? और फिर मोबाइल टॉवर आ गये। इन टॉवरों के चलते दिशा खोजने की गौरैया की प्रणाली प्रभावित होने लगी। साथ ही उनकी प्रजनन क्षमता पर भी घातक प्रभाव पड़ा। अधिक तापमान, प्रदूषण, वृक्षों की कटाई और मोबाइल टॉवर के विकिरण से गौरैया का सर्वनाश हो गया।

कदम-कदम पर दिखनेवाली गौरैया के विलुप्त होने के संकट का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अनेक महानगरों में इनकी संख्या दो अंकों तक सीमित रह गई है।

हमारे पारम्परिक जीवनदर्शन की उपेक्षा ने भी इस संकट को बढ़ाया है।  हमारे पूर्वजों की रसोई में गाय, और कुत्ते की रोटी अनिवार्य रूप से बनती थी। हर आँगन में पंछियों के लिए दाना उपलब्ध था। हमने उनका भोजन छीना। हमने कुआँ, तालाब सब पाट कर अपने-अपने घर में नल ले लिये पर चिड़िया और सभी पंछियों के लिए पानी की व्यवस्था करना ज़रूरी नहीं समझा।

घर के घर होने की एक अनिवार्य शर्त है गौरैया का होना। गौरैया का होना अर्थात पंख का होना, परवाज़ का होना। गौरैया का होना जीवन के साज का होना, जीवन की आवाज़ का होना।

पंख, परवाज़, साज, आवाज़ के लिए सबका साथ वांछनीय है। अनुरोध है कि साल भर चिड़ियों के लिए अपनी बालकनी या टेरेस पर दाना-पानी की व्यवस्था करें। अपने परिसर में चिड़ियों के घोंसला बना सकने लायक वातावरण बनाएँ। यदि पौधारोपण संभव है तो भारतीय प्रजाति के पौधे लगाएँ।

स्मरण रहे कि गौरैया को उड़ाया हमने है तो उसे लौटा लाने का दायित्व भी हमारा ही है।

 

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह #85 ☆ सॉनेट गीत – स्वागत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट गीत – स्वागत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 85 ☆ 

☆ सॉनेट गीत – स्वागत ☆

लाल गुलाल भाल पर शोभित।

तरुणी सरसों पियराई रे।

महुआ लख पलाश सम्मोहित।।

मादकता तन-मन छाई रे।।

 

छेड़ें पनघट खलिहानों को।

गेहूँ की बाली निहाल है।

फिक्र न कुछ भी दीवानों को।।

चना-मटर की एक चाल है।।

 

मग्न कपोत-कपोती खुद में।

आग लगाता आया फागुन।

खोज रहे रे! एक-दूजे के

स्वर में खुद  को बंसी-मादल।।

 

रति-रतिपति हैं दर पर आगत।

आम्र मंजरी करती स्वागत।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१९-३-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #114 ☆ होली के रंग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 114 ☆

☆ ‌होली के रंग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

भंग की तरंग हो,

होली का रंग हो।

जीजा हो साली हो,

साथ ही घर वाली हो।

हल्ला हुड़दंग हो,

यारों का संग हो।

पुआ मिठाई हो,

गुझिया नमकीन हो।

आंखों में सपने हो,

मौका रंगीन हो।

।। होली का रंग हो।।1।।

 

रंगों की बारात हो,

प्यार की बरसात हो।

खींचा हो तानी हो,

हमजोली से मनमानी हो।

चाहे हाथ तंग हो,

उत्सव उमंग हो।

भरपूर प्यार हो,

जीवन में बहार हो।

चाहत हसीना की,

सपने हसीन हों।

मेल हो मिलाप हो,

गायब संताप हो।

।।होली का रंग हो।।2।।

 

भंग की तरंग में,

सबका मन डूबा हो।

चेहरे ‌रंगीन हो,

लगते अजूबा हों।

भूल कर के दुश्मनी,

गले मिले प्यार से।

गिले शिकवे दूर हो,

होली की बहार से।

अबीर उड़े महफ़िल में,

गाल पे गुलाल हो।

भंग की तरंग हो,

होली का ऱंग हो।।3।।

 

– सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – तरंग ☆ सुश्री उषा जनार्दन ढगे ☆

सुश्री उषा जनार्दन ढगे

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? तरंग  ? ☆ सुश्री उषा जनार्दन ढगे 

टाकताच खडा पाण्यात

जलाशयात तरंग उमटती

सागरातील उत्तुंग लहरी

किनार्‍यावरी येऊनी शमती..

सूर्यकिरण पडताच

चमचमती जलतरंग

अंतरडोहातूनी डोकाविती

अंतरंगातील आत्मरंग..

निसर्गात चौफेर दिसती

विविध छटांचे मोहीत रंग

सुखद कधी व्यथित करती

विचारांचे असीम भावतरंग..

तरंग असले हे मनातले

कुणास नाही दिसले

किनारी उभी राहता

मम मनाशीच जाणवले..!

चित्र साभार – सुश्री उषा जनार्दन ढगे 

© सुश्री उषा जनार्दन ढगे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता #133 – “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।

आज से प्रस्तुत है परमपूज्य पिताजी की स्मृति में रचित श्रद्धांजलि स्वरुप एक भावप्रवण कविता “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…”)

? कविता – “मैं पुत्र वो मेरा पिता है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

(पिताजी उस्ताद शंकर लाल पटवा ने 18 मार्च 2018 के दिन यमलोक प्रस्थान किया था। उनकी पुण्य तिथि पर सादर नमन ?)

जिस तरह वे जिए

बहुत कम जीते हैं

चषक जी भर पिया

अब प्याले रीते हैं

 

कल आज और कल

ये अतीत का नजारा,

सिमटा इसमें हमारा कल

बीत गया रीत गया,

 

कल कल बहता

काल का झरना,

नही हमेशा किसी को रहना

अटल सत्य

मैं पुत्र वो मेरा पिता है

सामने काल बनकर

खड़ा चिता है

 

बनाया जिसने

काल को वो

सबका पिता है

खुद आया नौ बार

तीन बार दूत भेजे

क्या खुद या दूत

काल के गाल से

गराल से

मार से बचा है !

 

बता

क्यों ये खेल

तूने रचा है ?

 

(केदार नाथ यात्रा के समय का फ़ोटो)

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा#73 ☆ गजल – ’’बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 73 ☆ गजल – ’बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

लोकतंत्र का बना जब से देश में मन्दिर निराला

बड़े श्रद्धा भाव से क्रमशः उसे हमने सम्हाला।

 

किन्तु अपने ढंग से मन्दिर में घुस पाये जो जब भी

बेझिझक करते रहे वे कई तरह गड़बड़ घोटाला।

 

जनता करती रही पूजा और आशा शुभ की

राजनेताओं को पहनाती रही नित फूल माला।

 

पर सभी पंडे-पुजारी मिलके मनमानी मचाये

भक्तों की श्रद्धा को आदर दे कभी मन से न पाला।

 

हो निराश-हताश भी सहती रही जनता दुखों को

पर किसी ने कभी मुँह से नही ’उफ’ तक भी निकाला

 

देखकर दुख-दर्द, सहसा, दुर्दशा कठिनाइयों को

आये ’अन्ना’ लिये दृढ़ता दिखाने पावन उजाला।

 

राज मंदिर से कि जिससें मिले शुद्ध प्रसाद सबकों

कोई मंदिर में न जाये, जिस किसी का मन हो काला।

 

फिर वह मंदिर जिसका रंग मौसम ने कर डाला है धूमिल

नये रंग से नयी सजधज से पुनः जाये सम्हाला।।

 

दिखती है जन जागरण की आ गई है मधुर वेला

बन सके जनतंत्र का मंदिर परम पावन शिवाला ।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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