हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 128 ☆ “एक्जिट पोल का खेला” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर विचारणीय व्यंग्य  “एक्जिट पोल का खेला”।)  

☆ व्यंग्य # 128 ☆ “एक्जिट पोल का खेला” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

बेचारी गंगू बाई बकरियां और भेड़ चराकर जंगल से लौट रही थी और गनपत  चुनावी सर्वे (एक्जिट पोल) का बहाना करके नाहक में गंगू बाई को परेशान कर रहा है, जब गंगू बाई ने वोट ही नहीं डाला तो इतने सारे सवाल करके उसे क्यों डराया जा रहा है। गंगू बाई की ऊंगली पकड़ पकड़ कर गनपत बार बार देख रहा है कि स्याही क्यों नहीं लगी। परेशान होकर गंगू बाई कह देती है लिख लो जिसको तुम चाहो। गंगू बाई को नहीं मालुम कि कौन खड़ा हुआ और कौन बैठ गया। गंगू बाई से मिलकर सर्वे वाला गनपत भी खुश हुआ कि पहली बोहनी बढ़िया हुई है। 

सर्वे वाला गनपत आगे बढ़ा।  कुछ पार्टी वाले मिल गये, गनपत भैया ने उनसे भी पूछ लिया। काए भाई किसको जिता रहे हो? सबने एक स्वर में कहा – वोई आ रहा है क्योंकि कोई आने लायक नहीं है। गनपत को लगा कि एक्जिट पोल का अच्छा मसाला मिल रहा है। 

सामने से एक चाट फुल्की वाला आता दिखा, बोला -कौन जीत रहा है हम क्यों बताएं, हमने जिताने का ठेका लिया है क्या ?  पिछली बार तुम जीएसटी का मतलब पूछे थे तब भी हमने यही कहा था कि आपको क्या मतलब   …..! गोलगप्पे खाना हो तो बताओ… नहीं तो हम ये चले। 

अब गनपत को प्यास लगी तो एक घर में पानी मांगने पहुँचे…तो मालकिन बोली –  फ्रिज वाला पानी, कि ओपन मटके वाला …….

खैर, उनसे पूछा तो ऊंगली दिखा के बोलीं – वोट डालने गए हते तो एक हट्टे-कट्टे आदमी ने ऊंगली पकड़ लई, हमें शर्म लगी तो ऊंगली छुड़ान लगे तो पूरी ऊंगली में स्याही रगड़ दई। ऐसी स्याही कि छूटबे को नाम नहीं ले रही है। सर्वे वाले गनपत ने झट पूछो – ये तो बताओ कि कौन जीत रहो है। हमने कही जो स्याही मिटा दे, वोईई जीत जैहै। 

पानी पीकर आगे बढ़े तो पुलिस वाला खड़ा मिल गया, पूछा – क्यूँ भाई, कौन जीत रहा है ……? वो भाई बोला – किसको जिता दें आप ही बोल दो। गनपत समझदार है कुछ नोट सिपाही की जेब में डाल कर जैसा चाहिए था बुलवा लिया। पुलिस वाले से बात करके गनपत दिक्कत में पड़ गया। पुलिस वाले ने डंडा पटक दिया बोला – हेलमेट भी नहीं लगाए हो, गाड़ी के कागजात दिखाओ और चालान कटवाओ, नहीं तो थोड़ा बहुत और जेब में डालो।

कुछ लोग और मिल गए हाथ में ताजे फूल लिए थे, गनपत ने उनसे पूछा ये ताजे फूल कहां से मिल गए…… उनमें से एक रंगदारी से बोला – चुरा के लाए है बोलो क्या कर लोगे, …….. 

सुनिए तो थोड़ा चुनाव के बारे में बता दीजिये ……?

बोले – तू कौन होता बे…. पूछने वाला।  नेता जी नाराज नहीं होईये हम लोग आम आदमी से चुनाव की बात कर एक्जिट पोल बना रहे हैं। 

सुन बे ‘आम आदमी’ का नाम नहीं लेना, और ये भी नहीं पूछना कि पंजाब में क्या आम आदमी की सरकार बन रही है।

थक गए तो घर पहुंचे, पत्नी पानी लेकर आयी, तो पूछा – काए  किसको जिता रही हो …..? पत्नी बड़बड़ाती हुई बोली – तुम तो पगलाई गए हो  …! पैसा वैसा कुछ कमाते नहीं और राजनीति की बात करते रहते हो। कोई जीते कोई हारे  तुम्हें का मतलब….. 

फोन आ गया,

हां हलो, हलो ……कौन बोल रहे हैं ?

अरे भाई बताओ न कौन बोल रहे हैं ? 

आवाज आयी – साले तुमको चुनाव का सर्वे करने भेजा था  और तुम घर में पत्नी के साथ ऐश कर रहे हो ………..

नहीं साब, प्यास लगी थी पानी पीने आया था, बहुत लोगों से बात हो गई है, 

निकलो जल्दी … बहस लड़ा रहे हो, बहाना कर रहे हो ……….

काम वाली बाई रास्ते में मिल गयी, तो उससे पूछने लगे कि किसको जिता रही हो?  तो उसने पत्नी से शिकायत कर दी कि साहब छेड़छाड़ कर रहे हैं …….

रास्ते में पान की दुकान में गनपत पत्रकार रुके, पान में बाबा चटनी चमन बहार और चवन्नी के साथ तेज रगड़ा डलवाया और कसम खायी कि अगली बार से एक्जिट पोल का काम नहीं करेंगे, क्योंकि ये झटके मारने का खेला है।     

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 72 ☆ # स्त्री # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# स्त्री #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 72 ☆

☆ # स्त्री # ☆ 

सुबह सुबह मैने पत्नी से कहा –

महारानी जी उठिए

बेहतरीन चाय की चुसकियाँ लीजिये

गरमागरम पकोड़े साथ में खाते हैं

मुझे पत्ता है

तुम्हें हरी मिर्च की चटनी के साथ

खूब भाते हैं

पत्नी ने अलसाये से उठते हुये

घड़ी देख समय का जायजा लिया

मुझपे मुस्कुराते हुये कटाक्ष किया

आज यह सूर्य पूरब की जगह पश्चिम से

कैसे निकला है

एक पत्थर दिल पुरुष का

मन कैसे पिघला है

मैने मुस्कुराते हुये कहा –

तुमने मेरे साथ जीवन बिताया है

हर पल मेरा साथ निभाया है

आज आई है मुझे चेतना

समझ पाया तुम्हारी वेदना

तुम्हारे साथ करता रहा-

जीवन भर पक्षपात

भावनाओं पर आघात

अपने पुरुषत्व पर दर्प

मेरे भीतर छुपा हुआ विषैला सर्प

तुम्हें काटता रहा

दर्द बांटता रहा

फिर भी तुम अजर हो गई

शिवानी की तरह अमर हो गई

महिला दिवस पर

तुम्हारे त्याग, अदम्य साहस

द्रुढ़ इच्छाशक्ति, झूजारु प्रवृति को

श्रद्धा से नमन करता हूँ

अपना अहं छोड़

तुम्हारे समक्ष समर्पण करता हूँ

मैं तुम्हारा सहचर हूँ

तुम्हारा पक्षधर हूँ

तुम्हारी अभिव्यक्ति का

स्त्री शक्ति का

शिक्षा का

अधिकारों की रक्षा का

स्वतंत्रता का

समानता का

क्योंकि,

तुम्हारे ममत्व, स्नेह, संवेदनाऔं से जुड़े

ये रिश्ते, ये घरबार है

तुम्हारे दम पर टिका यह संसार है

प्रिये, तुम ईश्वर का वरदान हो

वाकई “स्त्री” तुम महान हो.

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 73 ☆ हाक तुला अंतरीची… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 73 ? 

☆ हाक तुला अंतरीची… ☆

(अष्ट-अक्षरी…)

हाक तुला अंतरीची

ऐक कृष्णा या दीनाची

नसे तुझ्याविना कोणी

आस तुझ्या दर्शनाची…!!

 

दाव तुझे रूप देवा

भावा आहे माझा भोळा

पावा वाजवी कृपाळा

नको अव्हेरू या वेळा…!!

 

दोषी आहे मीच खरा

तुला ओळखलेच नाही

आता करितो विनंती

स्नेह भावे मज पाही…!!

 

राज नम्र शुद्ध भावे

दास म्हणवितो तुझा

प्रेम तुझे अपेक्षित

स्वार्थ पुरवावा माझा…!!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग 8 – आई ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग 8 – आई ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

आपल्या जीवनात आईचं अत्यंत महत्वच स्थान आहे. अनन्यसाधारण महत्व आहे.सोन्याच्या लंकेपेक्षा आणि स्वर्गापेक्षाही  माझी जन्मभूमी अयोध्याच श्रेष्ठ आहे असे श्रीरामचंद्र सांगतात. जन्मभूमीची तुलना ते आपल्या आईशी करतात.

आपल्या मुलाचं/मुलीचं भवितव्य घडविणारे आई आणि वडील दोघेही असतात. पण प्रत्येक व्यक्तिचं चारित्र्य घडविणारी आई असते.तिची भूमिका जास्त महत्वाची असते. जन्मल्यापासून त्याला भाषा शिकविणारी, पहिला घास भरवताना चिऊ काऊ सारख्या पक्ष्यांची ओळख करून देणारी, पहिलं पाऊल टाकताना नीट चालायला  शिकविणारी, शाळेत डबा खाताना सर्वांबरोबर वाटणी करून खाण्याचा, सामूहिक समानता मूल्यांचा संस्कार करणारी, भावंडांमध्ये एकमेकांना समजून घेण्याचे बीज पेरणारी, कुटुंबातली नाती सांभाळण्याचे आणि ती टिकविण्याचे ही संस्कार कळत्या वयात देणारी इथ पासून पुढील आयुष्यात येणार्‍या संकटांना धैर्याने तोंड द्यायला शिकविणारी आणि मुलाला घडवताना त्याच्यात साहित्य, कला, तत्वज्ञान, इतिहास यासाठी योग्य ते कष्ट घेणारी अशी आई असते.

आपला मुलगा ‘यथार्थ’ मनुष्य निपजावा असं प्रत्येक आईलाच वाटत असतं. पण असा माणूस घडवण्याची कला सर्वच मातांजवळ नसते, म्हणूनच स्वामी विवेकानंद यांच्यासारखे चारित्र्यवान व्यक्तिमत्व एखादेच घडत असते. कारण सुसंस्कृत आणि अभिजात माता भुवनेश्वरी देवी पण एखादिच असते.

नरेंद्रनाथांच्या  चारित्र्यात जे जे महान, जे जे सुंदर होतं ते ते सर्व त्यांच्या सुसंस्कृत मातेच्या सुशिक्षणाचं  फळ होतं  असंच म्हणावं लागेल. त्यांनी नरेंद्र ची योग्य ती जोपासना केली. आपल्या मुलांच्या चारित्र्यात कोणत्याही प्रकारचा हिणकसपणा येऊ नये म्हणून त्यांनी डोळ्यात तेल घालून जपले होते. मातृभक्त नरेन्द्रनेही आपल्या आईची आज्ञा कधीही मोडली नव्हती. स्त्री सुलभ गुणांपेक्षाही धैर्य, खंबीरता, असत्य आणि अविचाराचा प्रतिकार करण्याचा बेडरपणा भुवनेश्वरी देवींकडे होता. आपल्या मुलांना उच्च ध्येयं आणि व्रतं अंगिकारण्यासाठी त्या स्फूर्ति आणि उत्तेजन देत असत.

स्वामी विवेकानंदांच्या देहत्यागा नंतर सुद्धा ही माता पुढील नऊ वर्ष हयात होती. तिनं आपल्या लाडक्या नरेंद्रनाथाचे जगप्रसिद्ध ‘स्वामी विवेकानंद’ होताना पाहिले होते. भागीरथीच्या पवित्र तीरावर पुत्राच्या धडधडत्या  चितेजवळ अंतिम प्रार्थनेत सहभागी झालेल्या या दु:खी मातेच्या मनात आले की जर, ‘विवेकानंद आणखी काही दिवस इहलोकी राहिले असते तर, अखिल मानवजातीचे केव्हढे तरी कल्याण झाले असते’.  पुत्रवियोगपेक्षा मानवजातीचे कल्याण हीच भावना तिच्या मनात यावेळी होती.

ती विवेकानंन्दाची आई होती या गौरवाचा सात्विक गर्व तिच्या संयमित,गंभीर आणि शांत चेहर्‍यावर दिसत होता.

खाण तशी माती अशी म्हण आहे. आजकाल मुलांच्या आया म्हणजे माता घरगुती कलागतीत नको ते संस्कार करत असतात. अजाणतेपणी का असेना नको ते मुलांना शिकवीत असतात. (आज मालिका/माध्यमे  सुद्धा असे आदर्श घालून देण्यात अग्रेसर आहेत.)मूल घडविण्याच्या काळात, त्या मुलांमध्ये द्वेष, मत्सर, लोभ पेरत असतात. कौटुंबिक नाती तोडतात. त्यामुळे मोठे होऊन ती मुले दुसर्‍याच्या प्रगतीमुळे जळफळणारी, हलक्या मनाची व कानाची अवलक्षणीच निघातील याची त्यांना कल्पना नसते. त्याचा वाईट परिणाम त्या मुलांच्या भविष्यावर होणार असतो. म्हणून मुलांच्या आई /मातांनी सुशिक्षित आणि सुसंस्कृत असणे फार आवश्यक आहे. चारित्र्यवान मुलं घडवणं सोप्पं नाहीच मुळी !

क्रमशः ….

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #131 ☆ व्यंग्य – नींद क्यों रात भर नहीं आती ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘नींद क्यों रात भर नहीं आती ’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 131 ☆

☆ व्यंग्य – नींद क्यों रात भर नहीं आती

ग़ालिब ने लिखा है— ‘मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती?’ यानी जब मौत का आना निश्चित है तो फिर उसकी चिन्ता में नींद क्यों हराम होती है? अर्ज़ है कि मौत का आना तो निश्चित है, लेकिन उसके आने की तिथि का कोई ठिकाना नहीं है। जब मर्ज़ी आ जाए और आदमी को एक झटके में उसके ऐशो- इशरत, नाम-धाम से समेट कर आगे बढ़ जाए। भारी विडम्बना है।        

सभी धर्मों में यह माना जाता है कि आदमी का जीवन पूर्व नियत है, यानी सब कुछ पहले से ही निश्चित है। यही प्रारब्ध,भाग्य, मुकद्दर, नसीब, ‘फ़ेट’ और ‘डेस्टिनी’ का मतलब है। ‘राई घटै ना तिल बढ़ै, रहु रे जीव निश्शंक।’ तुलसीदास ने लिखा है— ‘को करि तरक बढ़ावे साखा, हुईहै वहि जो राम रचि राखा।’ अर्थात, जीवन मरण सब पूर्व नियत है। हस्तरेखा-शास्त्र और ज्योतिष भी यही बताते हैं।

मौत का दिन मुअय्यन होने के बावजूद नींद इसलिए नहीं आती कि लाखों साल से आदमी की ज़िन्दगी में पूर्ण विराम लग रहा है, लेकिन अभी तक ऊपर वाले के यहाँ मरहूम को नोटिस देने की कोई रिवायत नहीं बनी है। कोई ट्रेन में सफर करते करते अचानक लम्बी यात्रा पर निकल जाता है तो कोई हवाई जहाज़ में उड़ते उड़ते एक पल में और ऊपर उठ जाता है। धरती पर अगर बिना नोटिस के कोई कार्रवाई हो जाए तो अदालतें तुरन्त उसे अन्याय मानकर खारिज कर देती हैं, लेकिन ज़िन्दगी जैसी बेशकीमती चीज़ बिना नोटिस के छिन जाने के ख़िलाफ़ न कोई सुनवाई है, न कोई अपील। इसे दूसरी दुनिया की प्रशासनिक चूक न कहें तो क्या कहें? यह निश्चय ही हमारी ज़िन्दगी की बेकद्री है।

हमारे लोक में बिना नोटिस के कोई कार्रवाई नहीं हो सकती, चाहे वह नौकरी से बाहर करने का मामला हो या किसी की संपत्ति के अधिग्रहण का। जो लोग कुर्सी पर सोते सोते नौकरी पूरी कर लेते हैं उन्हें भी बिना ‘शो कॉज़ नोटिस’ के बाहर नहीं किया जा सकता। कई चतुर लोग मनाते हैं कि उन पर बिना नोटिस के कार्रवाई हो जाए ताकि वे तत्काल कोर्ट से ‘स्टे’ लेकर फिर अपनी कुर्सी पर आराम से सो सकें। अतः इन्तकाल जैसे गंभीर मामले में कोई नोटिस न दिया जाना चिन्ता का विषय है।

मौत से पहले नोटिस मिल जाए तो आदमी अपनी एक नम्बर या दो नम्बर की कमाई का बाँट-बखरा कर सकता है। या यदि वह किसी  को संपत्ति नहीं देना चाहता तो नोटिस की अवधि में उसे फटाफट खा-उड़ा कर बराबर कर सकता है। जिन लोगों ने ज़िन्दगी भर तथाकथित पाप किये हैं वे नोटिस मिलने पर बाकी अवधि में कुछ पुण्य कमा सकते हैं, ताकि उन्हें ऊपर निखालिस पापी के रूप में हाज़िर न होना पड़े। इसके अलावा हुनरमन्द लोग नोटिस मिलने के बाद इष्ट- मित्रों से बड़ी रकम उधार लेकर नोटिस में दी गयी रुख़सती की तारीख के बाद चुकाने का वादा करके अपनी मूँछों पर ताव दे सकते हैं।

नोटिस न मिलने से आदमी के लिए बड़ी दिक्कतें पेश हो जाती हैं। आदमी बिना कोई वसीयतनामा किये अचानक चल बसे तो वारिसों  में सिर फुटौव्वल शुरू हो जाता है। जो जबर और चतुर होते हैं वे संपत्ति का बड़ा हिस्सा ले उड़ते हैं। संपत्ति उन नालायकों को मिल जाती है जिन्हें अचानक दिवंगत हुए पिताजी नहीं देना चाहते थे। अमेरिका के एक खरबपति का किस्सा पढ़ा था जिनका विमान अचानक समुद्र में गुम हो गया था। खरबपति के अचानक जाने के बाद उनकी संपत्ति के अनेक झूठे-सच्चे हकदार खड़े हो गये। ज़रूरत पड़ी डी.एन.ए. मिलाने की, लेकिन मालिक का शरीर तो गुम हो गया था। डॉक्टरों को याद आया कि कुछ दिन पहले उनके शरीर से एक मस्सा निकाला गया था और वह अभी तक सुरक्षित था। उसी मस्से की मदद से तथाकथित वारिसों के डी.एन.ए. का मिलान हुआ और समस्या का हल निकाला गया। अगर खरबपति महोदय को ऊपर से नोटिस मिल जाता तो यह फजीहत न होती।

हमारे लोक में किसी का ट्रांसफर होता है तो उसे बाकायदा महीना-पन्द्रह रोज़ पहले आदेश मिलता है और ‘जॉइनिंग टाइम’ भी मिलता है, लेकिन एक लोक से दूसरे लोक ट्रांसफर में पूर्व- सूचना तो दूर, ‘फ़ेयरवेल पार्टी’ तक का वक्त नहीं मिलता।

इसलिए मेरा तीनों लोकों के स्वामी से विनम्र निवेदन है कि इस लोक से किसी को उठाने से पहले कम से कम छः महीने के नोटिस की तत्काल व्यवस्था की जाए। स्थितियों के अनुसार नोटिस की अवधि एक दो माह बढ़ाने की व्यवस्था भी हो। मेरा तो यह भी सुझाव है कि आदमी को अपनी कमायी संपत्ति को अपने साथ ऊपर ले जाने की व्यवस्था की जाए ताकि उसके रुख़सत होने के बाद उसकी संपत्ति और सन्तानों की बर्बादी न हो।

एक इल्तिजा और। हमारे लोक में बहुत से वी.आई.पी. हैं जिन्हें हर जगह विशेष ट्रीटमेंट मिलता है। लेकिन आखिरी वक्त में सब को लेने के लिए सिपाही के स्तर के यमदूत भेजे जाते हैं। निवेदन है मालदार और रसूखदार लोगों को लेने के लिए कुछ ओहदेदारों को भेजा जाए ताकि वे अपमानित महसूस किये बिना खुशी खुशी रुख़सत हो सकें।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 83 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 83 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 83) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 83☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वो पत्ता आवारा ना

बनता तो क्या करता ..

ना ही हवाओं ने बख्शा,

ना ही टहनियों ने पनाह दी…

 

What else the leaf could’ve done

than turning into a maverick…

Neither did the winds spare it,

nor did branches give it shelter!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम दोनों की ही नीयत

कुछ ठीक नहीं लगती

भला इतना वक्त कब

लगता है बिछड़ने में…!

  

Looks like both of us don’t seem

to have good intentions

When does it take so much

of time to get separated..

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तसददुक इस करम के

मैं कभी तन्हा नहीं रहता

जिस दिन तुम नहीं आते

तुम्हारी याद आती है…

 

As a result of this charity,

I never ever feel lonely

The day you don’t come,

Your memory visits me

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बड़े बुजुर्गों की उँगलियों में कोई

ताकत तो ना थी पर मेरे

झुके सर पे रखते काँपते हाथों ने

जमाने भर की दौलत दे दी…

 

Though the fingers were strengthless,

but the trembling hands of elders

Once placed on my bowed head

bestowed the wealth of lifetime…!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच# 129 ☆ मिलें होली, खेलें होली ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 129 ☆ मिलें होली, खेलें होली ?

क्यों बाहर रंग तलाशता मनुष्य/

अपने भीतर देखो रंगों का इंद्रधनुष..,

जिसकी अपने भीतर का इंद्रधनुष देखने की दृष्टि विकसित हो ली, बाहर की दुनिया में उसके लिए नित मनती है होली। रासरचैया उन आँखों में  हर क्षण रचाते हैं रास, उन आँखों का स्थायी भाव बन जाता है फाग।

फाग, गले लगने और लगाने का रास्ता दिखाता है पर उस पर चल नहीं पाते। जानते हो क्यों? अहंकार की बढ़ी हुई तोंद अपनत्व को गले नहीं लगने देती। वस्तुत:  दर्प, मद, राग, मत्सर, कटुता का दहन कर उसकी धूलि में नेह का नवांकुरण है होली।

नेह की सरिता जब धाराप्रवाह बहती है तो धारा न रहकर राधा हो जाती है। शाश्वत प्रेम की शाश्वत प्रतीक हैं राधारानी। उनकी आँखों में, हृदय में, रोम-रोम में प्रेम है, श्वास-श्वास में राधारमण हैं।

सुनते हैं कि एक बार राधारमण गंभीर रूप से बीमार पड़े। सारे वैद्य हार गए। तब भगवान ने स्वयं अपना उपचार बताते हुए कहा कि उनकी कोई परमभक्त गोपी अपने चरणों को धो कर यदि वह जल उन्हें पिला दे तो वह ठीक हो सकते हैं। परमभक्त सिद्ध न हो पाने भय, श्रीकृष्ण को चरणामृत देने का संकोच जैसे अनेक कारणों से कोई गोपी सामने नहीं आई। राधारानी को ज्यों ही यह बात पता लगी, बिना एक क्षण विचार किए उन्होंने अपने चरण धो कर प्रयुक्त जल भगवान के प्राशन के लिए भेज दिया।

वस्तुत: प्रेम का अंकुरण भीतर से होना चाहिए। शब्दों को  वर्णों का समुच्चय समझने वाले असंख्य आए, आए सो असंख्य गए। तथापि जिन्होंने शब्दों का मोल, अनमोल समझा, शब्दों को बाँचा भर नहीं बल्कि भरपूर  जिया, प्रेम उन्हीं के भीतर पुष्पित, पल्लवित, गुंफित हुआ। शब्दों का अपना मायाजाल होता है किंतु इस माया में रमनेवाला मालामाल होता है। इस जाल से सच्ची माया करोगे, शब्दों के अर्थ को जियोगे तो सीस देने का भाव उत्पन्न होगा। जिसमें सीस देने का भाव उत्पन्न हुआ, ब्रह्मरस प्रेम का उसे ही आसीस मिला।

प्रेम ना बाड़ी ऊपजै / प्रेम न हाट बिकाय/

राजा, परजा जेहि रुचै / सीस देइ ले जाय…

बंजर देकर उपजाऊ पाने का सबसे बड़ा पर्व है धूलिवंदन। शीश देने की तैयारी हो तो आओ सब चलें, सब लें प्रेम का आशीष..!

इंद्रधनुष का सुलझा गणित / रंगी-बिरंगी छटाएँ अंतर्निहित / अंतस में पहले सद्भाव जगाएँ /नित-प्रति तब  होली मनाएँ।….

मिलें होली, खेलें होली! ..शुभ होली।

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह #84 ☆ सॉनेट गीत – तुम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

 

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘सॉनेट गीत – तुम।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 84 ☆ 

☆ सॉनेट गीत – तुम☆

 

ट्रेन सरीखी लहरातीं तुम।

पुल जैसे मैं थरथर होता।

अपनों जैसे भरमातीं तुम।।

मैं सपनों सा बेघर होता।।

 

तुम जुमलों जैसे मन भातीं।

मैं सचाई सम कडुवा लगता।

न्यूज़ सरीखी तुम बहकातीं।।

ठगा गया मैं; खुद को ठगता।।

 

कहतीं मन की बात, न सुनतीं।

जन की बात अनकही रहती।

ईश न जाने क्या तुम गुनतीं।।

सुधियों की चादर नित तहती।।

 

तुम केवल तुम, कोई न तुम सा।

तुम में हूँ मैं खुद भी गुम सा।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

८-३-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख – आत्मानंद साहित्य #113 ☆ स्पर्श एक क्रिया ही नहीं अनुभूतिकोश भी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 113 ☆

☆ ‌आलेख – ‌स्पर्श एक क्रिया ही नहीं अनुभूतिकोश भी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

यूं तो स्पर्श शब्द का शाब्दिक अर्थ मात्र छूने से ही है, यह पढ़ने सुनने में अति साधारण सा शब्द होते हुए भी अपने आप में असाधारण अनुभव की अनुभूतियां समेटे हुए है. इसमें गजब का सम्मोहन समाया हुआ है. यह हृदय को सकारात्मक अनुभव प्रदान करता है. यह सामने खड़े सचेतन जीव जगत के उपर गहरा प्रभाव छोडता है, तथा अबोध बालक से लेकर अबोध जानवरों को भी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए उकसाता है ,आप ने भी अपने जीवन में कभी कभार स्पर्श की दिव्य अनुभूति की होगी. एक मां की लोरी और थपकी में ऐसी क्या अनुभूति है‌ जो अबोध बालक को गहरी नींद में सुला देती है.

हाथों के अंगुलियों का प्रेयसी के बालों को सहलाना जहां प्रेयसी को आपकी बांहों में आने तथा आलिंगन को बाध्य करता है तो वहीं कोमल स्पर्श जानवरों को भी सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए उत्साहित करता है.

यह स्पर्श ही है जो मात्र अलग-अलग ढंग से छूने मात्र से छूने वाले ब्यक्ति के उद्देश्य तथा हृदय की अभिव्यक्ति को दर्शाता है. यह ब्याकरणीय संरचना के अनुसार एक क्रिया है. जिसमें भावों के आदान-प्रदान का गुण गहराई से रचा बसा है आखिर क्या कारण है

कि हम जब किसी मूर्ति अथवा किसी सकारात्मक ऊर्जा वाले व्यक्ति के पैरों को छूकर आशीर्वाद लेते हैं , तो हृदय भावनाओं से ओत-प्रोत हो जाता है और इसकी अंतिम परिणति श्रद्धा भक्ति के रूप में दृष्टि गोचर होती है.  

इस प्रकार स्पर्श का अर्थ मात्र एक क्रियात्मक शब्द बोध ही नहीं, भावनात्मक बोध भी है.

– सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १३ मार्च – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆  १३ मार्च -संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर -ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

दत्तात्रय कोंडो घाटे

दत्तात्रय कोंडो घाटे ऊर्फ कवी दत्त (27 जून 1875 – 13 मार्च 1899). हे मूळचे श्रीगोंद्याचे. त्यांचे शालेय शिक्षण नगरमध्ये, तर महाविद्यालयीन शिक्षण मुंबई, इंदूर, कलकत्ता येथे झाले. नंतर ते पुण्याच्या नू. म. वि.मध्ये शिक्षक होते.

रेव्ह. ना. वा. टिळक, कविवर्य चंद्रशेखर  वि कवी दत्त या तिघांचे सख्य होते.

‘बा नीज गडे ‘ ही कवी दत्तांची लोकप्रिय कविता. त्यांनी 1897-98 मध्ये बहुसंख्य कविता लिहिल्या. त्या वेगवेगळ्या नियतकालिकांतून प्रसिद्ध झाल्या. त्यापैकी 48 कवितांचा ‘दत्तांची कविता ‘हा संग्रह त्यांचे पुत्र शिक्षणतज्ज्ञ व साहित्यिक वि. द. घाटे यांनी 1922 साली प्रसिद्ध केला. डॉ. मा. गो. देशमुखसंपादित संग्रहात त्यांच्या सर्व म्हणजे 51 कविता आहेत.

आकाशानंद

आकाशानंद ऊर्फ आनंद बालाजी देशपांडे (1933-13 मार्च 2014). आकाशानंद हे पूर्वी नागपूर नभोवाणी केंद्रात कार्यक्रम निर्माते होते. नंतर 1972 पासून मुंबई दूरदर्शन केंद्रात आले.1992 साली ते तिथे उपसंचालक पदावरून  निवृत्त झाले.

त्यांनी सादर केलेले ‘ऐसी अक्षरे ‘, ‘शालेय चित्रवाणी’  व ‘ज्ञानदीप ‘हे कार्यक्रम अतिशय लोकप्रिय झाले.

1988मध्ये ‘ज्ञानदीप’ या कार्यक्रमावर बीबीसीच्या एलिझाबेथ स्मिथ यांनी 45 मिनिटांचा लघुपट केला. याच कार्यक्रमावर अमिता भिडे यांनी पीएचडी मिळवली.

‘ज्ञानदीप’वर आधारित असलेले ‘ज्योत एक सेवेची’ हे मासिक त्यांनी 25 वर्षे चालवले.

1992मध्ये निवृत्त झाल्यावर त्यांनी पहिल्या ‘ज्ञानदीप’ मंडळाची स्थापना केली. त्यांचा विस्तार होऊन राज्यात 1500 मंडळे स्थापन झाली.

त्यांनी ‘माध्यम चित्रवाणी’ वगैरे  पाच पुस्तके व बालसाहित्यात 300 गोष्टीची पुस्तके लिहिली.

त्यांच्या ‘माध्यम चित्रवाणी’ या दूरचित्रवाणी या विषयावरील पहिल्या मराठी पुस्तकाला राज्यसरकारचा सर्वोत्कृष्ट पुस्तकाचा पुरस्कार मिळाला.

याशिवाय त्यांना गोंदियाभूषण व सेवाश्री पुरस्कारही मिळाले.

मालतीबाई किर्लोस्कर

मालतीबाई किर्लोस्कर या विख्यात मराठी संपादक व लेखक शंकरराव किर्लोस्करांच्या कन्या.

त्या सांगलीच्या विलिंग्डन कॉलेजमध्ये मराठीच्या प्राध्यापिका होत्या. त्या अतिशय सुंदर शिकवत असत.

पक्की वाङ्‌मयीन व वैचारिक बैठक, भारदस्त व्यक्तिमत्त्व व विपुल व्यासंग ही त्यांची प्रमुख वैशिष्ट्ये. त्या परखड व स्पष्टवक्त्या होत्या.

त्या ‘किर्लोस्कर’, ‘स्त्री’ व ‘मनोहर’ मध्ये अधूनमधून लिहीत असत.

‘भावफुले’ व ‘फुलांची ओंजळ’ हे त्यांचे व्यक्तीचित्रसंग्रह प्रसिद्ध आहेत.

13 मार्च 2017 ला त्यांचे निधन झाले.

रमेश मुधोळकर

बालसाहित्यकार व चित्रकार रमेश मुधोळकर (19.07.1935 – 13.03.2016) यांचा जन्म व प्राथमिक शिक्षण मलकापूर येथे झाले.पुढे ते मुंबईला आले. तिथे माध्यमिक शिक्षण घेतल्यानंतर जे. जे. कला महाविद्यालयातून कमर्शियल आर्टचे शिक्षण घेतले.

1972मध्ये त्यांचे अनुवादित पुस्तक प्रसिद्ध झाले.1974 मध्ये त्यांनी ‘शालापत्रक’ हे मासिक सुरू केले. बालकुमारांवर संस्कार करणारी सुमारे 300 पुस्तके त्यांनी लिहिली. त्यात ‘इसाप’, ‘गलिव्हरच्या गोष्टी’, ‘बिरबल आणि बादशहाच्या 175 गोष्टी’ यांचा समावेश आहे.

जयको पॉकेट बुक्स व अमर चित्रकथा तसंच एको बुक्स या पुस्तक मालिकांच्या निर्मितीत त्यांचा मोठाच वाटा आहे.

देशोदेशीच्या रसाळ कथा, तसंच खगोलशास्त्र, चित्रकला, अक्षरचित्रांसह अंकलिपी, भारतीय विज्ञान सप्तर्षी, भारतरत्न, पक्षी, प्राण्यांचे बंड, बडबडगीत असे बरेच लेखन त्यांनी मराठी व इंग्रजीतून केले. त्याचप्रमाणे शंकरमहाराज व दिगंबरदास महाराज यांच्या गोष्टींमधून त्यांनी संदेशपर लेखन केले.

‘अखिल भारतीय मराठी बालकुमार साहित्य संमेलन’ या संस्थेचे ते संस्थापक -सदस्य होते.

2009मध्ये त्यांच्या लेखनाची नोंद ‘लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड’मध्ये करण्यात आली.

13 मार्च 2016 मध्ये पुणे येथे त्यांचा देहांत झाला.

कवी दत्त, आकाशानंद, मालतीबाई किर्लोस्कर व रमेश मुधोळकर यांना स्मृतिदिनानिमित्त सादर अभिवादन.  ??

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना कऱ्हाड, शताब्दी दैनंदिनी. विकिपीडिया, इंटरनेट. मराठीसृष्टी. कॉम

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print