हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 137 ☆ संस्कृति से जुड़ाव… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “संस्कृति से जुड़ाव…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 137 ☆

☆ संस्कृति से जुड़ाव ☆

बसंत की बहार से तो सभी परिचित हैं, किंतु जब बात इससे आगे बढ़े तो मन फागुन के रंगों से सराबोर हो उठता है, कानों में फाग का राग सुनाई देना कोई नयी बात नहीं होती। वास्तव में ये सब बदलाव का संकेत होता है। आजकल जिस तेजी के साथ घटनाक्रम घटित हो रहे हैं, उससे सबसे ज्यादा प्रभावित मीडिया होता है। एक न्यूज को हाइलाइट करने के चक्कर में, सारे अन्य छोटे- बड़े घटनाक्रमों को अनजाने ही छोड़ देता है। बात तर्क – वितर्क तक हो तो अच्छा है किंतु जब टी आर पी का चक्कर भारी पड़ने लगता है तो जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हों उन्हीं पर टी. व्ही. चैनल भी फोकस कर लेता है। अब तो चाहें मोबाइल चलाओ चाहे टी. व्ही. एक ही मुद्दा मिलेगा।

कर लो दुनिया मुट्ठी में, ये नारा सचमुच दूरगामी दृष्टिकोण का उदाहरण है। एक क्लिक पर सब कुछ हाजिर हो जाना क्या किसी अलाद्दीन के चिराग़ से कम लगता है?

इन सबमें यदि कुछ खटकता है तो वो –

अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।

पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।

ये श्लोक मनुष्यता के भावों को बखूबी दर्शाता है, इसका अर्थ है – ये आठ गुण मनुष्यों को सुशोभित करते हैं-

बुद्धि, चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषी, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता।

बस यही सब भाव डिजिटल की भेंट चढ़ने लगे हैं। अभी भी समय है, हमें अपनी संस्कृति को समझने हेतु अपने वैदिक ग्रन्थों से जुड़ना होगा, जो वैज्ञानिकता की दृष्टि से भी सही सिद्ध होते जा रहे हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 129 – “तंत्र कथा” – श्री कुमार सुरेश ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री कुमार सुरेश जी के उपन्यास “तंत्र कथा” पर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 129 ☆

☆ “तंत्र कथा” – श्री कुमार सुरेश ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆

तंत्र कथा, उपन्यास

कुमार सुरेश

सरोकार प्रकाशन, भोपाल

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

सरकारी तंत्र से किसका पाला नहीं पड़ता. सफेद पोश बने रहते हुये अधिकारियों एवं हर स्तर पर कर्मचारियों की भ्रष्टाचार में लिप्तता, कार्यालयीन प्रक्रिया में राजनीति की दखलंदाजी के आम आदमी के अनुभवों के साथ ही कार्यालयों की खुद अपनी अंतर्कथायें अनन्त हैं. जिन पर कलम चलाने का साहस कम ही लोग कर पाते हैं. मैं कुमार सुरेश को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, वे यह बेबाक बयानी कर सके हैं क्योकि वे स्वयं सरकारी तंत्र का हिस्सा रह चुके हैं और उन्होने सब कुछ कमरे के भीतर से देखा और समझा है और उससे असहमत होते हुये उच्च पद से सरकारी नौकरी छोड़ कर लेखन को अपनाया है. इस उपन्यास का हर हिस्सा यथार्थ है, उसे अपने लेखन सामर्थ्य से कुमार सुरेश ने रोचक बना दिया है. कुछ टुकड़े बानगी के लिये उधृत हैं…

” जाहिर है सफेद बगुले की तरह दिख रहे सज्जन ही दुबे जी थे “

…. दुबे जी इस कार्यालय के बड़े बाबू थे, महीने में दो तीन दिन थोड़ी देर के लिये आफिस आते और उपस्थिति रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर चले जाते थे. वो सत्ता पक्ष के प्रभावशाली मंत्री श्री कटारिया जी के बंगले पर देश की उन्नति में अपना योगदान दे रहे थे.

… आजकल जिन राष्ट्र निर्माताओ को शिक्षाकर्मी का पवित्र नाम दिया गया है उन्हें उस जमाने में निम्न श्रेणि शिक्षक कहा जाता था.

…. निकृष्ट प्रकार का दौरा तब होता है जब अफसर अपने पूरे परिवार के साथ पर्यटन के लिये निकलता है और इस यात्रा को सरकारी दौरे का स्वरूप दे दिया जाता है.

… अपर कलेक्टर को निकट भविष्य में प्रमोशन की आशा थी, उन्हें कलेक्टर से अभी अपनी सी आर भी लिखवानी थी, इसलिये उन्हे शहर की शांति व्यवस्था से अधिक कलेक्टर को खुश करने की चिंता थी, उन्होने कहा द्वापर में भगवान श्री कृष्ण की प्रशासनिक क्षमतायें इतिहास प्रसिद्ध हैं, मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि कलेक्टर साहब के रूप में हमें हमारा कृष्ण मिल गया है.

…डाकबंगले पर बिना पैसा दिये लंच डिनर करने वाले अधिकारियों और नेताओ के बिलों का भुगतान आखिर करता कौन है ?

… अपनी हैंडराइटिंग में उन्होंने जिले के कर्मचारियों के ट्रांसफर की एक सूची बनाई और उसे टेबल पर छोड़कर टूर पर चले गये, आफिस से दूर जाकर उन्होने स्टेनो को फोन किया कि वह सूची उठाकर रख ले, रीडर ने सूची पढ़कर सुरक्षित रख ली, थोड़ी ही देर में सभी कर्मचारियों तक संभावित ट्रांस्फर की खबर पहुंच गई, और ट्रांसफर न हों जो कभी होने ही न थे के लिये पैसे आने लगे….

… हे मित्र किसी सरकारी अधिकारी को निलंबित करवाने या उसका कहीं दूर स्थानांतरण करवाने के कया उपाय हैं, कृपा करके मुझे कहें… 

… इसी उपन्यास से अंश ( यूं लिखना चाहता हूं की उपन्यास का हर पृष्ठ कोट किए जाने योग्य उद्दरनो से भरा हुआ है)

मेरी तरह जिन्होंने भी बड़े या छोटे पदों पर सरकारी नौकरी की है, वे मीटिंग, योजनाओ की समीक्षायें, प्रगति प्रतिवेदन, मंत्रियों और अफसरों के दौरों, गोपनीय चरित्रावली,  प्रमोशन, स्थानांतरण, प्रशासनिक अधिकारियों के तथा उनके परिवार जनों की वास्तविकता बखूबी समझते हैं. उन्हें तंत्र कथा के रूप में आईना देखकर हंसी भी आती है और मजा भी आता है. कार्यालयों की गुटबाजियां, यूनियन बाजी, मातहत कर्मचारियों की मानसिकता, पीठ पलटते ही किये जाते कटाक्ष, फोन, सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग, आदि आदि… इतनी सूक्ष्म दृष्टि से कथानक बुनने, उपन्यास के पात्र चुनने, कार्यालयों के दृश्य प्रस्तुत करने के लिये कुमार सुरेश की जितनी प्रशंसा की जाये कम है.

लेखक ने सरकारी मुहकमों का ऐसा वर्णन किया है मानो कोई गुप्तचर किसी संस्था का हिस्सा बनकर लंबे समय वहां रहने के बाद बाहर निकलकर वहां के किस्से बता रहा हो. यूं तो लोकतंत्र में सरकारी कार्यालय कार्यपालिका के वे मंदिर होने चाहिये जहां समाज के अंतिम आदमी की पूजा की जाये, पर वास्तविकता यह है कि प्रशासनिक पुजारियों ने सारी व्यवस्था हथिया ली है,जनता को चढ़ाये जाने वाले  प्रसाद के बजट मंत्रालयों और राजनेताओ की भेंट चढ़ गये हैं. इन विसंगतियों को लेकर सरकारी अमले पर ढ़ेर सा लिखा गया है, लगातार लिखा जा रहा है, किंतु भोगे हुये यथार्थ का मनोरंजक हास्य तथा तंज भरा चित्रण तंत्र कथा में है.

मैं इस किताब के नाट्य रूपांतरण, फिल्मांकन की व्यापक संभावनाये देखता हूं. मैं कतई तंत्रकथा की कहानी नहीं बताने वाला, यह मजे लेकर पढ़ने वाला उपन्यास है.

चलते चलते उपन्यास से एक छोटा सा अंश और पढ़ लीजीये…

” भीड़ में एक गांधी वादी टाइप बाबू जी भी थे, साथी उन्हें सत्यवादी हरिशचन्द्र की औलाद कहते थे…. उन्होने अपने नैतिक विचार व्यक्त किये.. हम तो इतना ही समझते हैं कि आनेस्टी इज द बेस्ट पालिसी, पहले भी सही थी  और आज भी सही है….

मैं इसी आशा और भरोसे में हूं कि आनेस्टी की यह पालिसी सचमुच सही साबित हो और फिर फिर से किसी कुमार सुरेश को तंत्रकथा लिखने की आवश्यकता न पड़े. तंत्रकथा कार्यालयीन कथानक पर रागदरबारी के बाद मेरे पढ़ने में आया पहला जोरदार उपन्यास है, जिसका समुचित मूल्यांकन व्यंग्य जगत में होना जरुरी है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल साहित्य – ‘गुलाबी कमीज़’ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास– सुश्री कामना सिंह ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री कामना सिंह जी  की पुस्तक  “गुलाबी कमीज़” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘गुलाबी कमीज़’ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास– सुश्री कामना सिंह ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

उपन्यास – गुलाबी कमीज़ 

उपन्यासकार – कामना सिंह 

प्रकाशक – भारतीय ज्ञानपीठ, 18- इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोधी रोड, नई दिल्ली- 110033 मोबाइल नंबर 93505 36020

पृष्ठ संख्या – 135 

मूल्य – ₹270

समीक्षक – ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ गुलाबी कमीज़ रहस्य रोमांच से भरपूर उपन्यास – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

बच्चों के लिए उपन्यास लिखना टेढ़ी खीर है। इसको लिखते समय बहुतसी बातों का ध्यान में रखना पड़ता है। उसका कथानक बड़ों से अलग होता है। उसकी कहानी सीधी, सरल व सहज हो। भाषा शैली सरल हो। इसमें प्रवाह और रोचकता का ध्यान रखा गया हो।

बच्चों में लिखे उपन्यास का आरंभ रोचक प्रसंग से किया गया हो। ताकि उपन्यास का आरंभ पढ़कर बच्चा उसे उपन्यास को पूरा पढ़ने को लालयित हो जाए। यह बात दीगर है कि यह शर्त बड़ों के उपन्यास पर भी लागू होती है। मगर उनके उपन्यास में यह नियम शिथिल हो जाए तो भी चल सकता है।

दूसरी बात, बच्चों उपन्यास तभी निरंतर आगे पढ़ते हैं जब उनको उसमें एक के बाद एक नई रोचक कहानी मिले। उसी के साथ उपन्यास की मूल कहानी आगे बढ़ती रहे। यानी हरेक भाग में रहस्य के साथ अंत में उसका समाधान होने के साथ एक नया रहस्य का सृजन हो। तभी बच्चे उपन्यास पढ़ते हैं।

इस परिपेक्ष में देखे तो उपन्यासकार कामना सिंह का समीक्ष्य उपन्यास- गुलाबी कमीज़, इस कसौटी पर कितना खरा बैठता है? उपन्यासकार ने यह उपन्यास वैश्विक महामारी कोरोनाकाल के दौरान लिखा था। जब लॉकडाउन के दौरान अनेक मजदूरों का काम छिन गया था। वे रोजी रोटी से मोहताज हो गए थे।

इसी पृष्ठभूमि पर इसके कथानक का निर्माण किया गया था। इसका कथानक इतना भर है कि इसका नायक हीरा 11 साल का मासूम बच्चा है जो कोरोना के भयंकर संत्रास से रूबरू होकर दिल्ली से अपने गांव की यात्रा करता है पुनः दिल्ली लौट आता है।

इसी भयंकर त्रासदी को झेलते हुए में पैदल ही निकल पड़ते हैं। इस कथानक पर उपन्यास की कथावस्तु का सृजन किया गया है। 

उपन्यासकार कामनासिंह ने 14 भाग के इस उपन्यास का आरंभ रोचक ढंग से किया है। उपन्यास के आरंभ में वे लिखती हैं- 24 मार्च 2020। पूर्वी दिल्ली की कमला बस्ती। रात के 10:00 बज रहे हैं। इसी रोचक पंक्ति से उपन्यास में उत्सुकता जगाती उपन्यास का आरंभ करती है।

उपन्यास की कहानी इतनी है। हीरा के अपने कुछ सपने हैं। वह उसे देखते हुए पैदल ही माता-पिता के साथ चल देता है। यह उन सपनों को रास्ते में पूरा करते हुए मंजिल पर पहुंचता है। आखिर उसे अपने सपनों की मंजिल मिल ही जाती है या नहीं? यह उपन्यास के अंत में पता चलता है।

उपन्यास की भाषा, सरल, सहज व रोचक है। उपन्यासकार ने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया है। वाक्य सरल व रोचक हैं। भाषा में प्रवाह बना हुआ है। कहानी रोचकता से आगे बढ़ती है।

उपन्यास की मूल कहानी के साथ-साथ कई सहायक कहानियां भी चलती है। रास्ते में कई कठिनाइयां आती है। उसका समाधान होता है तो दूसरी समस्या आ जाती है।

कहने का तात्पर्य है कि बच्चों के उपन्यास की कसौटी पर यह उपन्यास खरा उतरता है। इसकी पृष्ठ सज्जा अच्छी है। त्रुटि रहित मुद्रण ने उपन्यास की गुणवत्ता में श्रीवृद्धि की है। उपन्यास का आवरण आकर्षक है। उपन्यास का मूल्य ₹270 बच्चों के मान से अधिक है। मगर बढ़ते मुद्रा मूल्य के कारण इसे वाजिब कह सकते हैं।

इस समीक्षक को आशा है कि बाल साहित्य में इस उपन्यास का जोरदार स्वागत किया जाएगा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

19-02-2023

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 148 ☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 148 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

याद बहुत करते हैं आर्यन

     मीठी – मीठी बात हैं करते।

नाना भी कम याद न करते

      फूलों की बरसात हैं करते।।

 

वीडियो कॉल मिलाएं नाना

    आर्यन मीठी बात बताए।

नाना के फोटो से पूँछें

     नाना जल्दी क्यों न आए।।

 

काम क्या ऐसा लगा आपको

     खेल खिलौने हमें न लाए।

खेलें – कूदें साथ – साथ हम

       बार – बार है याद सताए।।

 

 जो फोटो से मैंने पूछा

     सब बातें आप तक पहुँची थीं।

मुझे आज बतलाओ सच – सच

     क्या सपनों से भी ऊँची थीं।।

 

नाना ने कहा प्यारे आर्यन

  प्यारा संदेशा मुझे मिला है।

रोम – रोम मेरा हर्षित है

     कोमल मन से ह्रदय खिला है।।

 

 लाएँगे हम बहुत खिलौने

       याद मुझे भी बहुत सताती।

खेल करेंगे मिलकर दोनों

     छुक – छुक हमको रेल घुमाती।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

 रोहिदास महाराज

सुधारक संत कवी.

भक्ती गीते चळवळ

अध्यात्मिक दिशा नवी…! १

 

वाराणसी सीर गावी

गोवर्धन पुरामध्ये

जन्मा आले रोहिदास

चर्मकार कुलामध्ये… ! २

 

रविदास रोहिदास

अन्या सोळा उपनावे

महाराष्ट्र राजस्थान

पंजाबात नांव गाजे…! ३

 

देशहित जपणारे

रोहिदास संत कवी

दिली रहस्य वादाची

वैचारिक शक्ती नवी..! ४

 

कवी संत रोहिदास

अध्यात्मिक व्यक्तीमत्व

सुफी संत सहवास

सामाजिक ज्ञान तत्व…! ५

 

लक्षणीय योगदान

गुरू ग्रंथ साहिबात

रोहिदास साहित्याचा

समावेश जगतात…! ६

 

भेदाभेद टाळुनीया

दिला समता संदेश

कष्टकरी समाजात

मेहनत परमेश…! ७

 

भगवंत अंतरात

नको मग दुजे काही

सामाजिक सलोख्यात

सुख माणसांचे राही…! ८

 

मनुष्यास धर्म केंद्र

 दिशा वैचारिक मना

सर्व सुख प्राप्ती साठी

केला उपदेश जना…! ९

 

एकजूट समाजाची

समानता अधिकार

संत रोहिदास सांगे

श्रमशक्ती  मुलाधार…! १०

 

मन निर्मळ ठेवावे

ज्ञान गंगा अंतरात

केला निर्भय समाज

बोली भाषा अभंगात..! ११

 

संत मानवतावादी

देश आणि देव भक्ती

केले समाज कल्याण

दिली बंधुभाव शक्ती…! १२

 

पायवाट जीवनाची

नको असत्याचा संग

संत रोहिदास वाणी

ईश सेवेमध्ये दंग…! १३

 

चैत्र वैद्य चतुर्दशी

रोहिदास पुण्यतिथी

आहे चितोड गडात

पादत्राणे आजमिती…! १४

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – फुल किंवा पक्षी – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?फुल किंवा पक्षी ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

कळीचे हळुवार 

झाले फुल

फुल  इवले

झाडाचे मुल

पक्षापरी हे

फुल पाहूनी

आपसूक मना

पडते भुल

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #170 – कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बहुत हुआ बुद्धि विलास…”)

☆  तन्मय साहित्य  #170 ☆

☆ कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… 

लिखना-दिखना बहुत हुआ

अब पढ़ने की तैयारी है

जो भी लिखा गया है,उसको

अपनाने की बारी है।

 

खूब हुआ बुद्धि विलास

शब्दों के अगणित खेल निराले

कालीनों पर चले सदा

पर लिखते रहे पाँव के छाले,

क्षुब्ध संक्रमित हुई लेखनी

खुद ही खुद से हारी है…..

 

आत्म मुग्ध हो, यहाँ-वहाँ

फूले-फूले से रहे चहकते

मिल जाता चिंतन को आश्रय

तब शायद ऐसे न बहकते,

यश-कीर्ति से मोहित मन ये

अकथ असाध्य बीमारी है….

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 56 ☆ स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता कुत्ता बेहतर है इंसान से…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 56 ✒️

?  स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

आओ पाले ,

कुत्ते का बच्चा ,

बहुत प्यारा,वफ़ादार

और सच्चा—-

 

रोटी के सूखे

टुकड़े की आस

बैठा तक रहा है

देहरी के पास —-

 

मालिक से ग़द्दारी की ,

इसमें नहीं शक्ति ,

सभी ने स्वीकारी है ,

इसकी स्वामी भक्ति —-

 

रात भर भौं भौं

की सदाएं ,

शायद दे रहा है

मालिक को दुआएं —

 

और आदमी ???

नाम लेने से भी ,

लगता है पाप ।

दोस्त के मुंह पर

डालता है तेज़ाब ,

जिसका खाता है

उसकी आस्तीन का

बनता है सांप —-

 

इस दो पाए

जानवर से रखना दूरी

वरना मौक़ा पाते ही ,

भौंकेगा छूरी —-

 

आजकल के दोस्त भी

हो रहे हैवान से ,

आधुनिक युग में कुत्ता ,

बेहतर है इंसान से —-

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भक्ती – शक्ती ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

☆ भक्ती – शक्ती ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

(शिवराय आणि रामदास गुरु शिष्य जोडीवर आधारित कविता)

भक्ती शक्तीचा इतिहास सांगतो,

      महाराष्ट्र माझा !

सह्यगिरीच्या खोऱ्यात गर्जतो,

       छत्रपती राजा !

 

पावनभूमी महाराष्ट्राची,

      संत महंतांची !

जिथे जन्मली ज्ञानेश्वरी,

     अन् गाथा तुकयाची!

 

दासबोध निर्मिती झाली,

  सह्य गिरी कंदरी !

ज्ञान न् बोधाची शिदोरी,

   जनास मिळाली खरी !

 

 शिवरायांनी शौर्याने त्या,

   गडकिल्ले घेतले !

हिंदूंचा राजा बनुनी ,

   छत्रपती  जाहले !

 

 राज्य घातले झोळीमध्ये,

   राजा शिवरायांने ,

 आशीर्वादे समर्थ हाते,

   शिवबास दिले गुरुने !

 

 रामदास – शिवराय जोडीची,

   अपूर्व गाठ पडली!

 आनंदवनभुवनी गुरु शिष्य,

    समर्थ जोडी गाजली!

 

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 170 ☆ मिळे सन्मान शब्दांना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 170 ?

मिळे सन्मान शब्दांना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

मला सांगायचे आहे जरासे

इथे थांबायचे आहे जरासे

किती दुष्काळ सोसावा धरेने

अता बरसायचे आहे जरासे

नदीला पूर आल्याचे कळाले

तिला उसळायचे आहे जरासे

कधी बेधुंद जगताना मलाही

जगा विसरायचे आहे जरासे

मिळे सन्मान शब्दांना स्वतःच्या

तिथे मिरवायचे आहे जरासे

मला या वेढती लाटा सुनामी

मरण टाळायचे आहे जरासे

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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