हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #163 ☆ प्रार्थना और प्रयास ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख प्रार्थना और प्रयास। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 163 ☆

☆ प्रार्थना और प्रयास ☆

प्रार्थना ऐसे करो, जैसे सब कुछ भगवान पर निर्भर है और प्रयास ऐसे करो कि जैसे सब कुछ आप पर निर्भर है–यही है लक्ष्य-प्राप्ति का प्रमुख साधन व सोपान। प्रभु में आस्था व आत्मविश्वास के द्वारा मानव विषम परिस्थितियों में कठिन से कठिन आपदाओं का सामना भी कर सकता है…जिसके लिए आवश्यकता है संघर्ष की। यदि आप में कर्म करने का मादा है, जज़्बा है, तो कोई भी बाधा आपकी राह में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती। आप आत्मविश्वास के सहारे निरंतर बढ़ते चले जाते हैं। परिश्रम सफलता की कुंजी है। दूसरे शब्दों में इसे कर्म की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘संघर्ष नन्हे बीज से सीखिए, जो ज़मीन में दफ़न होकर भी लड़ाई लड़ता है और तब तक लड़ता रहता है, जब तक धरती का सीना चीरकर वह अपने अस्तित्व को साबित नहीं कर देता’– यह है जिजीविषा का सजीव उदाहरण। तुलसीदास जी ने कहा है कि यदि आप धरती में उलटे-सीधे बीज भी बोते हैं, तो वे शीघ्रता व देरी से अंकुरित अवश्य हो जाते हैं। सो! मानव को कर्म करते समय फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कर्म का फल मानव को अवश्य प्राप्त होता है।

कर्म का थप्पड़ इतना भारी और भयंकर होता है कि जमा किया हुआ पुण्य कब खत्म हो जाए, पता ही नहीं चलता। पुण्य खत्म होने पर समर्थ राजा को भी भीख मांगने पड़ सकती है। इसलिए कभी भी किसी के साथ छल-कपट करके उसकी आत्मा को दु:खी मत करें, क्योंकि बद्दुआ से बड़ी कोई कोई तलवार नहीं होती। इस तथ्य में सत्-कर्मों पर बल दिया गया है, क्योंकि सत्-कर्मों का फल सदैव उत्तम होता है। सो! मानव को छल-कपट से सदैव दूर रहना चाहिए, क्योंकि पुण्य कर्म समाप्त हो जाने पर राजा भी रंक बन जाता है। वैसे मानव को किसी की बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए, बल्कि प्रभु का शुक्रगुज़ार रहना चाहिए, क्योंकि प्रभु जानते हैं कि हमारा हित किस स्थिति में है? प्रभु हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हैं। इसलिए हमें सदैव सुख में प्रभु का सिमरन करना चाहिए, क्योंकि परमात्मा का नाम ही हमें भवसागर से पार उतारता है। सो! हमें प्रभु का स्मरण करते हुए सर्वस्व समर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि वही आपका भाग्य-विधाता है। उसकी करुणा-कृपा के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। दूसरी ओर मानव को आत्मविश्वास रखते हुए अपनी मंज़िल तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इस स्थिति में मानव को यह सोचना चाहिए कि वह अपने भाग्य का विधाता स्वयं है तथा उसमें असीम शक्तियां संचित हैं।  अभ्यास के द्वारा जड़मति अर्थात् मूढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है, जिसके अनेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं। कालिदास के जीवन-चरित से तो सब परिचित हैं। वे जिस डाली पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। परंतु प्रभुकृपा प्राप्त होने के पश्चात् उन्होंने संस्कृत में अनेक महाकाव्यों व नाटकों की रचना कर सबको स्तब्ध कर दिया। तुलसीदास को भी रत्नावली के एक वाक्य ने दिव्य दृष्टि प्रदान की और उन्होंने उसी पल गृहस्थ को त्याग दिया। वे परमात्म-खोज में लीन हो गए, जिसका प्रमाण है रामचरितमानस  महाकाव्य। ऐसे अनगिनत उदाहरण आपके समक्ष हैं। ‘तुम कर सकते हो’– मानव असीम शक्तियों का पुंज है। यदि वह दृढ़-निश्चय कर ले, तो वह सब कुछ कर सकता है, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सो! हमारे हृदय में शंका भाव का पदार्पण नहीं होना चाहिए। संशय उन्नति के पथ का अवरोधक है और हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। हमें संदेह, संशय व शंका को अपने हृदय में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए।

संशय मित्रता में सेंध लगा देता है और हंसते-खेलते परिवारों के विनाश का कारण बनता है। इससे निर्दोषों पर गाज़ गिर पड़ती है। सो! मानव को कानों-सुनी पर नहीं; आंखिन- देखी पर विश्वास करना चाहिए, क्योंकि अतीत में जीने से उदासी और भविष्य में जीने से तनाव आता है। परंतु वर्तमान में जीने से आनंद की प्राप्ति होती है। कल अर्थात् बीता हुआ कल हमें अतीत की स्मृतियों में जकड़ कर रखता है और आने वाला कल भविष्य की चिंताओं में उलझा लेता है और उस व्यूह से हम चाह कर भी मुक्त नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में मानव सदैव इसी उधेड़बुन में उलझा रहता है कि उसका अंजाम क्या होगा और इस प्रकार वह अपना वर्तमान भी नष्ट कर लेता है। सो! वर्तमान वह स्वर्णिम काल है, जिसमें जीना सर्वोत्तम है। वर्तमान आनंद- प्रदाता है, जो हमें संधर्ष व परिश्रम करने को प्रेरित करता है। संघर्ष ही जीवन है और जो मनुष्य कभी बीच राह से लौटता नहीं; वह धन्य है। सफलता सदैव उसके कदम चूमती है और वह कभी भी अवसाद के घेरे में नहीं आता। वह हर पल को जीता है और हर वस्तु में अच्छाई की तलाशता है। फलत: उसकी सोच सदैव सकारात्मक रहती है। हमारी सोच ही हमारा आईना होती है और वह आप पर निर्भर करता है कि आप गिलास को आधा भरा देखते हैं या खाली समझ कर परेशान होते हैं। रहीम जी का यह दोहा ‘जै आवहिं संतोष धन, सब धन धूरि समान’ आज भी समसामयिक व सार्थक है। जब जीवन में संतोष रूपी धन आ जाता है, तो उसे धन-संपत्ति की लालसा नहीं रहती और वह उसे धूलि समान भासता है। शेक्सपीयर का यह कथन ‘सुंदरता व्यक्ति में नहीं, दृष्टा की आंखों में होती है’ अर्थात् सौंदर्य हमारी नज़र में नहीं, नज़रिए में होता है इसलिए जीवन में नज़रिया व सोच को बदलने की शिक्षा दी जाती है।

जीवन में कठिनाइयां हमें बर्बाद करने के लिए नहीं आतीं, बल्कि हमारी छुपी हुई सामर्थ्य व  शक्तियों को बाहर निकालने में हमारी मदद करती हैं। ‘कठिनाइयों को जान लेने दो कि आप उनसे भी कठिन हैं। कठिनाइयां हमारे अंतर्मन में संचित सामर्थ्य व शक्तियों को उजागर करती हैं;  हमें सुदृढ़ बनाती हैं तथा हमारे मनोबल को बढ़ाती हैं।’ इसलिए हमें उनके सम्मुख पराजय नहीं स्वीकार नहीं चाहिए। वे हमें भगवद्गीता की कर्मशीलता का संदेश देती हैं। ‘उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने/ औरों के वजूद में नुक्स निकालते- निकालते/ इतना ख़ुद को तराशा होता/ तो फ़रिश्ते बन जाते।’ गुलज़ार की ये पंक्तियां मानव को आत्मावलोकन करने का संदेश देती हैं। परंतु मानव दूसरों पर अकारण दोषारोपण करने में प्रसन्नता का अनुभव करता है और निंदा करने में उसे अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वह पथ-विचलित हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि ‘अगर ज़िन्दगी में सुक़ून चाहते हो, तो फोकस काम पर रखो; लोगों की बातों पर नहीं। इसलिए मानव को अपने कर्म की ओर ध्यान देना चाहिए; व्यर्थ की बातों पर नहीं।’ यदि आप ख़ुद को तराशते हैं, तो लोग आपको तलाशने लगते हैं। यदि आप अच्छे कर्म करके ऊंचे मुक़ाम को हासिल कर लेते हैं, तो लोग आपको जान जाते हैं और आप का अनुसरण करते हैं; आप को सलाम करते हैं। वास्तव में लोग समय व स्थिति को प्रणाम करते हैं; आपको नहीं। इसलिए आप अहं को जीवन में पदार्पण मत करने दीजिए। सम भाव से जीएं तथा प्रभु-सत्ता के सम्मुख समर्पण करें। लोगों का काम है दूसरों की आलोचना व निंदा करना। परंतु आप उनकी बातों की ओर ध्यान मत दीजिए; अपने काम की ओर ध्यान दीजिए। ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती/ लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती।’ सो!  निरंतर प्रयासरत रहिए– मंज़िल आपकी राहों में प्रतीक्षारत रहेगी। प्रभु-सत्ता में विश्वास बनाए रखिए तथा सत्कर्म करते रहिए…यही जीवन जीने का सही सलीका है।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #162 ☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “हे मां मातृभूमि तुझे नमन।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 162 – साहित्य निकुंज ☆

☆ आजाद हिन्द फ़ौज ध्वजारोहण दिवस विशेष – हे मां मातृभूमि तुझे नमन ☆

(30 दिसंबर, 1943 को पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर के रॉस द्वीप में आजाद हिंद फौज का झंडा फहराया था। अब इस स्थान को सुभाष दीप कहा जाता है।)

हे मां मातृभूमि तुझे नमन

शत शत नमन मेरे वतन

तेरे स्नेह में किए अर्पित

किए तुमने प्राण समर्पित।

 

सन तेतालीस पोर्ट ब्लेयर में

आजादी का झंडा लहराया।

भारत माता विजय दिवस

दिसंबर 30  याद आया।

 

याद आते हरदम सुभाष

उन्हें थी बस वतन की आस

पराक्रमी देशभक्त को था

आजादी मिलने का विश्वास।

 

 सुभाष पर वतन को गुमान

बच्चे बच्चे पर है इनका नाम

कहां खो गए ये भी भान नहीं

याद कर वतन करता सम्मान।

 

वतन आज आजाद नहीं

कहीं तबाही कहीं आतंकी

कहीं सुलगता है इन्सान

दे रहे कितने शहीद बलिदान।

 

तुम मुझे खून….किया जयघोष।

स्वाधीनता का किया उदघोष

वतन याद कर रहा आज भी

आजादी के लिए किया संघर्ष

 

तेरे लहू का कतरा कतरा

वतन के काम है आया ।

जो आप कह गए सुभाष

वहीं देश ने बार बार दोहराया।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शेड्स ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – शेड्स ??

पहले आठ थे,

फिर बारह हुए,

सोलह, बत्तीस,

चौंसठ, एक सौ अट्ठाइस,

अब दो सौ चौंसठ होते हैं,

रंगों के इतने शेड

दुनिया में कहीं नहीं मिलते हैं,

रंगों की डिब्बी दिखाता

दुकानदार बता रहा था..,

मेरी आँखों में

आदमी के प्रतिपल बदलते

अगनित रंगों का प्रतिबिम्ब

आ रहा था, जा रहा था…!

© संजय भारद्वाज 

27.10.2018, प्रातः 8:44 बजे।

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #149 ☆ संतोष के दोहे – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 149 ☆

☆ संतोष के दोहे  – अहसास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

 

अपनों ने ही कर दिया, घायल जब अहसास

गैरों पर करते भला,  हम कैसे विश्वास

 

मुँह पर मीठा बोलते, मन कालिख भरपूर

ऐसे लोगों से रहें, सदा बहुत हम दूर

 

कथनी करनी में नहीं, जिनकी बात समान

कभी भरोसा न करें, उन पर हम श्रीमान

 

दिल के रिश्तों में सदा, कभी न होता स्वार्थ

मतलब के संबंध बस, होते हैं लाभार्थ

 

रिश्ते-नाते हो रहे, आज एक अनुबंध

जब दिल चाहा तोड़ते, रहा न अब प्रतिबंध

 

प्रेम समर्पण में रखा, शबरी ने विश्वास

कुटी पधारे राम जी, रख कायम अहसास

 

तकलीफें मिटतीं मगर, रह जाता अहसास

छीन सके न कोई भी, जो दिल के है पास

 

रहता है जो सामने, पर हो ना अहसास

उस ईश्वर को समझिए, जिसका दिल में वास

 

पकड़ न पायें जिसे हम, जिसकी ना पहचान

मैं अंदर की चीज हूँ, समझो तुम नादान

 

गलती को स्वीकारिये, हो जब भी अहसास

मिलता है संतोष तब, कभी न हो उपहास

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी – 23 – राइट हैंड ड्राइव/लेफ्ट हैंड ड्राइव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं. तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है. आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है. आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”.)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी – 23 – राइट हैंड ड्राइव/लेफ्ट हैंड ड्राइव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

लक्ष्य की ओर बढ़े चलना जीवंतता है । अमेरिका सहित अधिकांश पश्चिमी देशों में गाडियां सड़क के दायीं ओर चलती हैं और कार की स्टेयरिंग बायीं ओर होती है जबकि भारत में अंग्रेजी शासन के चलते इंग्लैंड के ही नियम लागू रहे, अर्थात भारत में गाड़ियों की स्टेयरिंग दायीं ओर होती है (Right hand driving in India) और गाड़ियाँ सड़क की बायीं ओर चलायीं जातीं हैं.

यूनाइटेड नेशंस आर्गनाइजेशन यूक्रेन युद्ध या कश्मीर समस्या जैसी बड़ी समस्याएं तो सुलझा नहीं पाता कम से कम सारी दुनियां में एक सी ड्राइविंग, एक से बिजली साकेट, एक सरीखी वोल्टेज पर बिजली प्रदाय, एक से मोबाइल चार्जर, वगैरह पर ही कोई सर्वमान्य योजना ले आए तो भी इस वैश्विक दुनियां में आम लोगों को कुछ राहत मिले और यूएनओ अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सके। इंटरपोल के जमाने में यदि ग्लोबल ई-वीजा बनने लगें तो युवा पीढ़ी को विज्ञान, व्यापार के सिलसिले में दुनियां एक कर रही है उसे लाभ हो सकता है.

अस्तु, आज नहीं तो किसी दिन यह होगा, इस आशा में प्रसन्न रहना चाहिए.

1792 में सर्वप्रथम अमेरिका के पेन्सिल्वेनिया प्रान्त में सड़क पर दायीं ओर चलने के नियम को लागू किया गया और 18वीं शताब्दी के अंत तक यह नियम पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में अनुसरण किया जाने लगा.

आज दुनियां भर अधिकांश क्षेत्रों में यही दाहिने ओर से चलने का नियम है, इससे भारत, इंग्लैंड या अन्य बाईं ओर से चलने वाले देशों के लोगों को यहां ड्राइविंग में कठिनाई होती है. यद्यपि भारत सहित अन्य देशों के ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर यहां कार चलाने की वैधानिक अनुमति है. रेंटल कार सहजता से मिल जाती हैं. एक शहर से कार लेकर दूसरे शहर में ड्राप किए जाने की सुविधाएं भी आसान हैं. ज्यादातर गाडियां आटोमेटिक गेयर वाली हैं, मतलब बिना क्लच पैडल के केवल दाहिने पैर से ही एक्सेलटर   और ब्रेक के नियंत्रण से कार मजे में दौड़ती हैं. टोल पर कोई बैरियर नहीं है, यदि बिना ई पास के गाड़ी टोल पार करती हैं तो कैमरा नंबर प्लेट की फोटो लेकर ई बिल बना देता है. सड़के चिकनी चौड़ी हैं. लेन पर सभी नियम पूर्वक पर्याप्त दूरी बनाकर चलते हैं. रेलवे क्रासिंग पर भी बैरियर नहीं मिला, केवल लाइट सिग्नल ही हैं. भले ही कोई ट्रैफिक न हो पर कोई भी लाइट सिग्नल की अनदेखी नहीं करता. यहां ड्राईविंग आनंद देती है.

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है । देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

बद्रीनारायण को साहित्य अकादमी सम्मान : चर्चित लेखक बद्रीनारायण को साहित्य अकादमी के सम्मान हेतु चुना गये है । साहित्य अकादमी पुरस्कार हर वर्ष विवादों में भी रहते हैं । बद्रीनारायण को दिये जा रहे सम्मान को लेकर भी आलोचना हो रही है लेकिन सम्मान तो सम्मान है । बद्रीनारायण को बधाई ।

राजकुमार राकेश को आधार पुरस्कार : शिमला ( हिमाचल) के चर्चित लेखक राजकुमार राकेश को पंजाब कला भवन , चंडीगढ़ में आधार प्रकाशन की ओर से सम्मानीय किया गया । बधाई ।

हरियाणा लेखक मंच : हरियाणा के युवा रचनाकारों अजय सिंह राणा , ब्रह्म दत्त शर्मा , पंकज शर्मा और राधेश्याम भारतीय ने अपनी कोशिशों से हरियाणा लेखक मंच का गठन किया बेशक अध्यक्ष कमलेश भारतीय और उपाध्यक्ष डाॅ अशोक भाटिया हैं लेकिन इसके पीछे सारी मेहनत इन युवाओं की है । करनाल में इसका प्रथम सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें पूरे एक सौ लेखक पहुंचे । इसमें दो सत्र रखे गये । कथा सत्र में प्रसिद्ध कथाकार ज्ञानप्रकाश विवेक ने कथा की बारीकियों और हरियाणा के कथाकारों के योगदान पर बहुत गंभीर चर्चा की । डाॅ कमलेश मलिक विशिष्ट अतिथि रहीं तो डाॅ लाल चंद मंगल गुप्त ने भी कथा पर अपने अनुभव साझा किये । दूसरे सत्र में हरियाणा की कविता पर चर्चित कवि हरभगवान चावला ने अपने अनुभव बताये । डाॅ स्मिता मिश्र और डाॅ कंवल नयन कपूर ने भी कविता की बारीकियों पर बात रखी । इसके आकर्षण रहे पुस्तक विमोचन और पुस्तक प्रदर्शनी । हरियाणा के रचनाकारों के नये प्रकाशनों का विमोचन किया गया ।

पंजाब से नयी पत्रिका : पंजाब बेशक अहिंदी यानी गैर हिंदी राज्य है लेकिन यहां हिंदी का प्रचार प्रसार भी खूब होता है और जालंधर को तो सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है । पंजाब के छोटे से शहर फगवाड़ा से डाॅ अनिल पांडेय ने रचनावली नाम से पत्रिका शुरू की है और बिम्ब प्रतिबिम्ब प्रकाशन भी शुरू किये है जिसका नवीनतम प्रकाशन अजय सिंह राणा का कथा संग्रह मक्कड़जाल है । इसी प्रकार पंजाब से सशक्त हिंदी कवि मनोज शर्मा का नया काव्य संग्रह आवाज की खनक आया है । सभी को शुभकामनाएं ।

बूमरैंग की स्क्रीनिंग : पगड़ी-द ऑनर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हरियाणवी फिल्म के निर्देशक राजीव भाटिया ने प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद की कहानी कफन पर हरियाणवी शाॅर्ट फिल्म बूमरैंग बनाई है जिसे कांस के फिल्म फेस्टिवल में भी सम्मान मिल चुका है । इसकी स्क्रीनिंग की गयी हिसार में । इसमें राजीव भाटिया व इनकी रंगकर्मी पत्नी वंदना भाटिया के प्रयासों की सराहना की गयी । राजीव भाटिया ने पगड़ी-द ऑनर व बूमरैंग दोनों फिल्मों में हिसार के ही कलाकारों को अवसर प्रदान किया । इसकी कलाकारों ने सराहना की । गुरुग्राम की आबकारी व कराधान अधिकारी डाॅ पूनम परिणीता व हिसार से डाॅ सत्या सावंत मुख्यातिथि रहीं । अनेक कला प्रेमी मौजूद रहे ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ दिलासा… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

 कवितेचा उत्सव ?

☆ दिलासा… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

गाठोडे प्रारब्धाचे

सोबतीला आणले

घुसमटता जीव

प्रवासी ते रडले

 

आईच्या कुशीतच

दिलासा ही मिळाला

इथे सापशिडीचा

तो खेळ सुरू झाला

 

पडलेल्या दानात

कोलांट्या मारताना

पहावेच लागते

शेजारी तुटताना

 

सुखदुःखाचे कोडे

उकलण्यात गुंतला

रहस्य रोज नवे

पाहून हरखला

 

नवल भूवरीचे

एकांतात पहावे

जन्म अपुरा आहे

हेच मान्य असावे

 

जगा आणि जगू द्या

मंत्र हा गिरवावा

श्रीरामास वंदूनी

आनंद जागवावा

 

प्रभूचीच रचना

आईची पाठराखण

आशीर्वाद कृपेचा

दुःखाची बोळवण

 

निराळ्या रूपांतच

आसपास भेटते

माऊली जगतास

मायेने सांभाळते

 

सुकर्म करण्यात

समय सजवावा

मिळाला जन्म असा

सार्थकीच लावावा.

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #155 ☆ निरोप…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 155 – विजय साहित्य ?

☆ निरोप…! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

मनस्पर्शी जाणिवांची

आठवांची पत्रावळ

दूर जाते कुणी एक

मागें उरे सणावळ…!  १

 

डोळ्यातील मोती माला

निरोपाचे मूर्त रूप

नको चिंता नि काळजी

तन मन सुखरूप….! २

 

काढ माझी आठवण

घाल ईरसाल शिवी

निरोपाच्या खुशालीत

त्याची होईल रे ओवी…! ३

 

आभाळाच्या आरशात

आठवांची पानगळ

निरामय संवादाने

दूर कर मरगळ…! ‌४

 

भेट नसतो शेवट

भेट प्रवास आरंभ

निरोपाने जोडलेला

जीवनाचा शुभारंभ…! ५

 

गुरू,मित्र, आप्तेष्टांचा

असे निरोप हळवा

हात हलता सांगतो

वेळ येण्याची कळवा…! ६

 

नाही टळले कुणाला

निरोपाचे देणें घेणे

दिनदर्शिकेचे पानं

नियोजित शब्द लेणे…! ७

 

निरोपाचा हेतू सांगे

आला भावनिक क्षण

हासू आणि आसू तून

वाहे खळाळते मन…! ८

 

दुरावते कधी तन

कधी दुरावते नाते

श्रृती स्मृती येणे जाणे

मन निरोपाचे जाते…! ९

 

जुन्या वर्षाला निरोप

नव्या वर्षाचे स्वागत

ध्येय संकल्प इच्छांचे

हळवेले मनोगत…!  १०

 

निरोपाचा येता क्षण

मन राहिना मनात

शब्द शब्द कवितेचा

एका एका निरोपात..! ११

 

कधी बाप्पाला निरोप

कधी कुणा श्रद्धांजली

होतो स्थानात बदल

अंतरात स्नेहांजली….! १२

 

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆☆ (आपण) लोक सिरियल्स का बघतात (बघतो)? – भाग 2 ☆ सुश्री साधना प्रफुल्ल सराफ ☆

सुश्री साधना प्रफुल्ल सराफ

? विविधा ?

(आपण) लोक सिरियल्स का बघतात (बघतो)? – भाग 2 ☆ सुश्री साधना प्रफुल्ल सराफ

(आणि हल्ली परत परत नव्याने त्यांच्या नवीन आवृत्त्या निघत असतात. पण त्या नव्या बघितल्यावर मात्र त्या जुन्या कितीतरी चांगल्या होत्या, असं म्हणायची वेळ येते!  पुढे चालू…)

आता आणखी नवीन प्रकार म्हणजे, वेब सिरियल्स आणि ओटीटी यांचीही भर पडलेली आहे, करमणूक क्षेत्रात. बहुतेक तरुण पिढीतले लोक यातल्या इंग्लिश, हिंदी सिरियल्स बघत असतात. या तरुण पिढीला रहस्यमय, थरारक काहीतरी बघायला आवडते. रोजच्या रुटीनमुळे वैतागून गेलेले असताना त्यांना या मालिका बघायला आवडणं स्वाभाविक आहे. आणि टी. व्ही. वरच्यासारखा जाहिरातींचा व्यत्यय पण नसतो ओटीटी वर. आम्ही पण मध्यंतरी ओटीटी वर ‘बंदिश बॅन्डीट’ ही सिरीयल पाहिली होती. खरोखरच सुरेख होती, आणि दहाच भागात संपवल्यामुळे शेवटपर्यंत उत्सुकता टिकून होती. शास्त्रीय संगीताच्या एका घराण्याची कहाणी दाखवलेली होती यात. सध्या ‘God Freinded Me’ ही मालिका बघतोय. अर्थातच, अमेरिकेत घडणारी. त्यात एका तरुण आफ्रिकन अमेरिकन मुलाला फेसबुक वर देवाची फ्रेंड रिक्वेस्ट येते, हा मुलगा असतो नास्तिक, त्याचे वडील एका चर्चमधे रेव्हरंड असतात. तो ही रिक्वेस्ट बघून गडबडून जातो, ती स्वीकारावी की नाही, अशा गोंधळात पडतो. पण त्याचा मित्र असतो एक भारतीय मुलगा. तो त्याला ती स्विकारायला तयार करतो. आणि मग या ‘गॉड अकाउंट’ वरून त्याला एकेक फ्रेंड रिक्वेस्ट येत रहातात. आणि कर्म धर्म संयोगाने ते लोक याला भेटतात, आणि त्या प्रत्येकाच्या आयुष्यातले काहीतरी प्रॉब्लेम सोडवायला हे दोघे मित्र त्यांना मदत करतात. याच प्रवासात त्याला एक मैत्रीण पण मिळते. प्रत्येक गोष्ट वेगळी. प्रत्येक एपिसोडमधे एकेक गोष्ट. प्रत्येकाचा वेगळा प्रॉब्लेम. बघताना आपण रंगून जातो अगदी! अजिबात कंटाळा येत नाही. अशा काही वेगळ्या थीमवर आपल्याकडच्या लोकांना का मालिका बनवता येऊ नयेत? आपले काही मराठी तरुण हल्ली खूप वेगळे विषय घेऊन चित्रपट काढतात. मग मालिका का नाही?

सध्या चालू असलेल्या काही मराठी मालिका, उदा. ‘राजा राणीची गं जोडी’ आणि ‘सुंदरा मनामधे भरली’ यात थोडा वेगळा विषय जोडलेला आहे, नेहमीच्या कौटुंबिक मालिकेला, पण यातही नायक नायिकेची अती छळणूक चालूच आहे! काय होतं, एका ठराविक वेळेला ते बघायची आपल्याला सवय लागलेली असते, आणि मग, ‘धरलं तर चावतं, आणि सोडलं तर पळतं’ अशी गत झाल्यामुळे आपल्याला ते बघवतही नाही, आणि सोडवतही नाही! असे आपण त्या मालिकेच्या जाळ्यात अडकतो आणि त्यांना TRP मिळत राहिल्याने, तेही मालिका बंद न करता, कथानकात पाणी घालून वाढवत रहातात! असं हे एक दुष्टचक्र आहे!  अशीच एक हिंदी मालिका, ‘बॅरिस्टर बाबू’ नावाची. स्वातंत्र्यापूर्वीच्या काळातली. बंगालमधे घडणारी, त्यात इंग्लंड मधे शिकून, बॅरिस्टर बनून आलेला एक तरुण एका सात आठ वर्षाच्या मुलीला, म्हाताऱ्या माणसाशी होत असलेल्या लग्नातून वाचवायला जातो आणि त्याच्यावर नाईलाजाने तिच्याशी लग्न करायची वेळ येते. आणि मग त्याच्या जमीनदार कुटुंबातून त्या लग्नाला विरोध, त्या छोट्या मुलीला येणाऱ्या अडचणींमधून तिला वाचवण्याची त्याची धडपड अशी खूप छान सुरुवात केली होती. पण ही पण मालिका भरकटत जाऊन आजही तिचं दळण चालूच आहे!

या मालिकांशिवाय वेगवेगळ्या चॅनल्सवर ‘रिअॅलिटी शो’ पण चालू असतात अधून मधून. हे शो पण जेंव्हा चालू झाले, तेंव्हा खरे वाटायचे. गाण्याच्या कार्यक्रमात गाण्यालाच महत्व असायचं. परीक्षक नामवंत गायक, संगीतकार आणि स्पर्धकही चांगले गाणारे असायचे. खूप चांगली जुनी, क्लासिकल गाणी ऐकायला मिळायची. हे कार्यक्रम खूप आनंद द्यायचे. नृत्याचे असे स्पर्धात्मक कार्यक्रमही चांगले असायचे. पण आताशा गायनाच्या परिक्षकात सिनेमात कोरिओग्राफी करणारे, काव्य लिहिणारे, आणि नृत्याचे परीक्षक म्हणून लेखक असा सगळा विचित्र मामला सुरु झालेला आहे! आणि स्पर्धकांच्या गाण्यापेक्षा, त्यांच्या वैयक्तिक आयुष्यावर जास्त फोकस, स्पर्धकांच्या किंवा परीक्षकांच्या खोट्या नाट्या प्रेमकहाण्या रंगवणं यातच अधिक वेळ घालवणं, एखाद्या स्पर्धकाच्या गरिबीचा तमाशा मांडणं हेच सुरु झालेलं आहे. या मागे त्यांची काय कारणं असतात, ते त्याचं त्यांना माहीत! पण गाण्याची आवड असलेल्यांचा मात्र रसभंग होतो आणि त्या कार्यक्रमातला इंटरेस्ट कमी होतो, हे कळत नाही का या लोकांना? पूर्वी या कार्यक्रमात परीक्षकांकडून स्पर्धकांना त्यांच्या काय चुका होताहेत, काय सुधारणा करता येतील, हे सांगितलं जायचं. आणि काही परीक्षक तर त्या स्पर्धकांचा आत्मविश्वासच खच्ची होईल, इतकी नावं ठेवत असत त्यांच्या गाण्याला. हे अर्थात चुकीचंच होतं, पण हल्ली त्याच्या उलट, प्रत्येक स्पर्धकाची वारेमाप स्तुती करत असतात परीक्षक! आणि त्या स्पर्धकांपुढे काही आव्हानं ठेवण्याची पद्धतही बंदच केलेली आहे. प्रत्येक जण आपला जो ठराविक प्रकार किंवा शैली हातखंडा आहे, त्यातलीच गाणी प्रत्येक वेळी सदर करून वाहवा मिळवत असतो. सगळ्यांनी सगळे प्रकार सादर करावेत म्हणजे त्यांची खरी गुणवत्ता पारखली जाऊ शकते. या सगळ्या गोष्टींमुळे एखादा सवंग मनोरंजनाचा प्रकार असं स्वरुप आलेलं आहे या कार्यक्रमांना! 

त्याचमुळे हल्ली टी. व्ही. पेक्षा OTT वरचे कार्यक्रमच अधिक पहावेसे वाटतात. अजून तरी ते दर्जेदार असतात आणि भरकटण्याआधीच संपवले जातात. टी. व्ही. वाल्यांनी याची दखल घेतली नाही, तर त्यांची अधोगती आणि विनाश अटळ आहे!

– समाप्त –

© सुश्री साधना प्रफुल्ल सराफ

संपर्क – 1565, सदाशिव पेठ, ‘लक्ष्मी सदन’, पी. जोग क्लास लेन, पुणे, ४११०३०. मो. 7709014058.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ मात… भाग – 4 (भावानुवाद) – सुश्री भावना ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर☆

सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

? जीवनरंग ❤️

☆ मात… भाग – 4 (भावानुवाद) – सुश्री भावना ☆ सौ. गौरी सुभाष गाडेकर ☆

(पूर्वसूत्र: अक्षय शालिनीला शाळेची नोकरी सोडून पांड्याजींची सेक्रेटरी व्हायला सांगतो. गरजेच्या वेळी ते मदत करतील, असंही सांगतो…. आता पुढे….)

आणि मग पुन्हा मासा गळाला लागला. ती सेक्रेटरी झाली.

हेही सांगितलं पाहिजे की माझ्या आग्रहावरून तिने आधीच तिचे लांब केस कापले होते. खूप प्रयत्नांनंतर ती स्लीव्हलेस ब्लाऊझ आणि हाय हिल सॅन्डल्स घालायला लागली होती. शेवटी तिचं रूपयौवन कोणाच्या खुशीसाठी होतं? माझ्याच ना? आता सगळेच खूश राहतील. मीही आणि पांड्याजीही.

दोन-चार दिवस सगळं व्यवस्थित चाललं. मी श्वास रोखून ज्या क्षणाची प्रतीक्षा करत होतो, तो आला एकदाचा.

माझ्या खांद्यावर डोकं ठेवून शालिनी ओक्साबोक्सी रडू लागली. पांड्याच्या गलिच्छ वागण्याने ती एवढी वैतागली होती, की मरण्यामारण्याच्या गोष्टी करू लागली. कितीतरी वेळ ती बोलत होती आणि मी ऐकत होतो.

किती मागासलेले संस्कार! आजकालच्या मुली एवढ्या बोल्ड आणि बिनधास्त असतात आणि माझ्या नशिबात साली ही काकूबाई लिहिलीय. कोणी नुसता स्पर्श केला, तरी कलंकित होणारी. माय फूट!

किती वेळ मी तिचं पावित्र्यावरचं लेक्चर ऐकत बसणार? शेवटी बोललोच, ” जराशी तडजोड करून जर आपलं आयुष्य सुधारणार असेल, तर काय हरकत आहे? जरा थंड डोक्याने विचार कर, शीलू. आपल्याला पांड्याची गरज आहे. त्याला आपली गरज नाहीय. या बारीकसारीक गोष्टींनी असा काय फरक पडतोय? “

ती विदीर्ण नजरेने बराच वेळ माझ्याकडे बघत राहिली. मग दाटलेल्या कंठाने बोलली, ” हो. काय फरक पडतोय!”

तिची नजर, तिचा स्वर यामुळे मी अस्वस्थ झालो. तरीही हसून बोलणार, तेवढ्यात तीच म्हणाली, “तू चांगले दिवस यायची किती वाट बघितलीस! आता येतील ते. असंच ना?”

माझ्या मनातलं तिच्या तोंडून ऐकल्यावर मी झेलपाटलोच. तरी स्वतःला सावरत म्हटलं, ” मला असं नव्हतं म्हणायचं, शीलू. तुझं सुख….. “

मला अर्ध्यावरच तोडत ती म्हणाली, “काही गोष्टी न बोलताही समजतात, अक्षय. तर पैशासाठी मी एखाद्या म्हाताऱ्याला गटवायचं, हेच ना?”

आता तुम्हीच सांगा, इतक्या दिवसांच्या प्रेमाची हिने अशी परतफेड करावी? प्रेम असं निभावतात? स्वार्थी!विश्वासघातकी बाई! जीवनाच्या वाटेवर चालताचालता मध्येच माझा हात सोडून दिला. शेवटी मीही तिचाच होतो ना? काय म्हणालात? मीच हात दाखवून अवलक्षण…..

आता काय सांगू? तिने माझ्या बापाशी लग्न केलं. आज ती माझी आई आहे. आणि माझ्या बापाला बोटांवर नाचवतेय. आत्ताच्या माझ्या या दशेला तीच कारणीभूत आहे. विश्वास नाही बसत?

क्रमशः ...

मूळ हिंदी  कथा – सुश्री भावना  

भावानुवाद –  सौ. गौरी सुभाष गाडेकर

संपर्क –  1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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