श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष
सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है ,नरसिंहपुर मध्यप्रदेश की वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ जी का आलेख “आओ मनाएँ….श्रीकृष्ण जन्मोत्सव”। )
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष
सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है ,नरसिंहपुर मध्यप्रदेश की वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ जी का आलेख “आओ मनाएँ….श्रीकृष्ण जन्मोत्सव”। )
सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं । वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की ऐसी ही एक संवेदनात्मक भावप्रवण मराठी कविता ‘अंगाराची साथ तुला…’।)
☆ अंगाराची साथ तुला…☆
कोण हरतो ! कोण जिंकतो!
इथे कुणाची खंत कुणा,
जो धडपडतो, जो कळवळतो,
रोजच पडतो ही खंत मना..
अंगाराची साथ तुला…
अंधारातुन दिशा काढ तू,
हाच मानवा संदेश तुला,
हृदयातून पेटव मशाल तू,
मार्ग दाखवी रोज तुला..
अंगाराची साथ तुला…
वादळात जरी पडले घरटे,
जोमाने तू बांध पुन्हा,
थरथरणारे हात ही दबतील,
दगडाखालून काढ जरा..
अंगाराची साथ तुला…
सूर्य सोबती नसो तुझ्या,
ना चंद्र सोबती दिमतीला,
काजव्याची माळ ओवून,
बांध तुझ्या तू भाळाला…
अंगाराची साथ तुला…
लखलखणारा तारा नसू दे,
नशीब तारा चमकव ना,
वसंतातल्या रंग छटा या,
पानगळीत ही पसरव ना…
अंगाराची साथ तुला…
वितळूनी पोलाद स्वतःस बनव तू,
अंगाराची साथ तुला,
ढाल नसु दे चिलखताची,
छाती मधूनी श्वास हवा..
अंगाराची साथ तुला…
© सुजाता काळे …
पंचगनी, महाराष्ट्र।
9975577684
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
पंचम अध्याय
(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)
(ज्ञानयोग का विषय)
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ।।19।।
साम्य भाव में रम गया जिनका मन संसार
जन्म मरण से मुक्त वे,प्रभु उनका आधार।।19।।
भावार्थ : जिनका मन समभाव में स्थित है, उनके द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया है क्योंकि सच्चिदानन्दघन परमात्मा निर्दोष और सम है, इससे वे सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही स्थित हैं।।19।।
Even here (in this world) birth (everything) is overcome by those whose minds rest in equality; Brahman is spotless indeed and equal; therefore, they are established in Brahman ।।19।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(श्रीमती विशाखा मुलमुले जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आप कविताएँ, गीत, लघुकथाएं लिखती हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। हम आशा करते हैं कि हम भविष्य में उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर दो कवितायें निरागस जिज्ञासा तथा एकात्मकता )
संक्षिप्त परिचय
☆ दो कवितायें – निरागस जिज्ञासा तथा एकात्मकता ☆
1.
निरागस जिज्ञासा
मुझे तो तेरे मुकुट पर फूल गोकर्ण का
मोरपंख सा लगता है,
कृष्ण बता, तुझे ये कैसा लगता है?
मुझे तो तेरी मुरली की धुन
अब भी सुनाई देती है,
कृष्ण बता अब भी तू क्या
ग्वाला बन के फिरता है?
तुझे तो मैं कई सदियों से
माखन मिश्री खिलाती हूँ,
कृष्ण बता अब भी तू क्या
माखनचोरी करता है?
मुझे तो अब भी यमुना में
अक्स तेरा दिखता है,
कृष्ण बता अब भी तू क्या
कालियामर्दन करता है?
मुझे तो हर एक माँ
यशोदा सी लगती है,
कृष्ण बता अब भी तू क्या
जन्म धरा पर लेता है?
2.
एकात्मता
तू मुझे प्यार करे या मैं तुझे प्यार करूँ
बात एक है ना, प्यार है ना!
तू मेरे साथ चले या मैं तेरे साथ चलूँ,
बात एक है ना ,साथ है ना!
कि दोनों ही ऊर्जा बड़ी सकारात्मक है,
“प्यार” संग “साथ “हो तो पंथ ही दूजा है
वो आत्मा हो जाती है कृष्णपंथी
फिर मुरली हो या पाँचजन्य, बात एक है ना!
कि कृष्ण कहाँ सबके साथ था,
सबमे उनकी अनंत ऊर्जा का निवास था
फिर वो राधा हो या मीरा,
देवकी हो या यशोदा,
बात एक ही है ना!
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र
परसाई स्मृति अंक
हम 22 अगस्त 2019 को www.e-abhivyakti.com द्वारा स्व. परसाई जी के जन्मदिवस पर प्रकाशित विशेषांक की रचनाओं के महत्वपूर्ण लिंक्स उपलब्ध कर रहे हैं जिन्हें आप भविष्य में पढ़ सकते हैं।
परसाई स्मृति अंक में ई-अभिव्यक्ति की प्रस्तुति :-
Ms Neelam Saxena Chandra
(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday Ms. Neelam Saxena Chandra ji is Executive Director (Systems) Mahametro, Pune. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “Ambika’s infuriation”. This poem is from her book “Tales of Eon)
☆ Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 5 ☆
☆ Ambika’s infuriation ☆
(When asked by Satyavati to bear a child with her son, Sage Vyas)
What am I taken to be, great Bhishma!
Taken away from my father by force
O Bhishma I was forced to wed
Not you, the one who brought me here
But Vichitravirya, as you then said.
Disturbed and humiliated was I
But I made no protest, nor dissent
Accepted what fate decreed and so,
Were seven best years of my youth spent!
Have you now heard this, mighty Bhishma,
What mother Satyavati asks of me?
She wishes me to consort with Sage Vyas
Bhishma! What now, I ask of thee?
Sage Vyas is here now, mighty Bhishma
And his awful odour fills the room
O! So terrible and dark his visage is
How do I take his seed in my womb?
The clan may prosper or come to end
No! I just can’t bear a son by him…
Oh! No one listens to me…and so…
My eyes shall remain closed to him…
What am I? I ask you Bhishma!
What did I do for this disgrace…
I have no choice, I give in Bhishma,
It is my end, I hide my face!
© Ms. Neelam Saxena Chandra
(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)
श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी
मोबाइल– 9890122603
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य” में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “मिले दल मेरा तुम्हारा ”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 11 ☆
☆ मिले दल मेरा तुम्हारा ☆
मुझे कोई यह बताये कि जब हमारे नेता “घोड़े” नहीं हैं, तो फिर उनकी हार्स ट्रेडिंग कैसे होती है ? जनता तो चुनावो में नेताओ को गधा मानकर “कोई नृप होय हमें का हानि चेरी छोड़ न हुई हैं रानी” वाले मनोभाव के साथ या फिर स्वयं को बड़ा बुद्धिजीवी और नेताओ से ज्यादा श्रेष्ठ मानते हुये,मारे ढ़केले बड़े उपेक्षा भाव से अपना वोट देती आई है।ये और बात है कि चुने जाते ही, लालबत्ती और खाकी वर्दी के चलते वही नेता हमारा भाग्यविधाता बन जाता है और हम जनगण ही रह जाते हैं। यद्यपि जन प्रतिनिधि को मिलने वाली मासिक निधि इतनी कम होती है कि लगभग हर सरकार को ध्वनिमत से अपने वेतन भत्ते बढ़वाने के बिल पास करने पड़ते हैं, पर जाने कैसे नेता जी चुने जाते ही बहुत अमीर बन जाते हैं।पैसे और पावर ही शायद वह कारण हैं कि चुनावो की घोषणा के साथ ही जीत के हर संभव समीकरण पर नेता जी लोग और उनकी पार्टियां गहन मंथन करती दिखती है।चुपके चुपके “दिल मिले न मिले,जो मिले दल मेरा तुम्हारा तो सरकार बने हमारी ” के सौदे, समझौते होने लगते हैं, चुनाव परिणामो के बाद ये ही रिश्ते हार्स ट्रेडिंग में तब्दील हो सकने की संभावनाओ से भरपूर होते हैं।
“मेरे सजना जी से आज मैने ब्रेकअप कर लिया” वाले सेलीब्रेशन के शोख अंदाज के साथ नेता जी धुर्र विरोधी पार्टी में एंट्री ले लेने की ऐसी क्षमता रखते हैं कि बेचारा रंगबदलू गिरगिटान भी शर्मा जाये।पुरानी पार्टी आर्काईव से नेताजी के पुराने भाषण जिनमें उन्होने उनकी नई पार्टी को भरपूर भला बुरा कहा होता है, तलाश कर वायरल करने में लगी रहती है।सारी शर्मो हया त्यागकर आमआदमी की भलाई के लिये उसूलो पर कुर्बान नेता नई पार्टी में अपनी कुर्सी के पायो में कीलें ठोंककर उन्हे मजबूत करने में जुटा रहता है।ऐसे आयाराम गयाराम खुद को सही साबित करने के लिये खुदा का सहारा लेने या “राम” को भी निशाने पर लेने से नही चूकते । जनता का सच्चा हितैषी बनने के लिये ये दिल बदल आपरेशन करते हैं और उसके लिये जनता का खून बहाने के लिये दंगे फसाद करवाने से भी नही चूकते।बाप बेटे, भाई भाई, माँ बेटे, लड़ पड़ते हैं जनता की सेवा के लिये हर रिश्ता दांव पर लगा दिया जाता है।पहले नेता का दिल बदलता है, बदलता क्या है, जिस पार्टी की जीत की संभावना ज्यादा दिखती है उस पर दिल आ जाता है।फिर उस पार्टी में जुगाड़ फिट किया जाता है।प्रापर मुद्दा ढ़ूढ़कर सही समय पर नेता अपने अनुयायियो की ताकत के साथ दल बदल कर डालता है। वोटर का दिल बदलने के लिये बाटल से लेकर साड़ी, कम्बल, नोट बांटने के फंडे अब पुराने हो चले हैं।जमाना हाईटेक है, अब मोबाईल, लेपटाप, स्कूटी, साईकिल बांटी जाती है।पर जीतता वो है जो सपने बांट सकने में सफल होता है।सपने अमीर बनाने के, सपने घर बसाने के, सपने भ्रष्टाचार मिटाने के।सपने दिखाने पर अभी तक चुनाव आयोग का भी कोई प्रतिबंध नही है।तो आइये सच्चे झूठे सपने दिखाईये, लुभाईये और जीत जाईये।फिर सपने सच न कर पाने की कोई न कोई विवशता तो ब्यूरोक्रेसी ढ़ूंढ़ ही देगी।और तब भी यदि आपको अगले चुनावो में दरकिनार होने का जरा भी डर लगे तो निसंकोच दिल बदल लीजीयेगा, दल बदल कर लीजीयेगा।आखिर जनता को सपने देखने के लिये एक अदद नेता तो चाहिये ही, वह अपना दिल फिर बदल लेगी आपकी कुर्बानियो और उसूलो की तारीफ करेगी और फिर से चुन लेगी आपको अपनी सेवा करने के लिये।ब्रेक अप के झटके के बाद फिर से नये प्रेमी के साथ नया सुखी संसार बस ही जायेगा।दिल बदल बनाम दलबदल, लोकतंत्र चलता रहेगा।
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८
श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा “हाउसवाइफ ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #13 ☆
☆ हाउस वाइफ ☆
वह भरे-पूरे परिवार में रहती थी जहा उसे काम के आगे कोई फुर्सत नहीं मिलाती थी. मगर फिर भी वह उस मुकाम तक पहुच गई जिस की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है.
उस ने कई दिग्गजों को हरा कर “मास्टर शेफ” का अवार्ड जीता था. यह उस की जीवन का सब से बड़ा बम्पर प्राइज था.
“आप अपनी जीत का श्रेय किसे देना चाहती है ?” एक पत्रकार ने उस से पूछा
“मैं एक हाउस वाईफ हूँ और मेरी जीत का श्रेय मेरे भरे- पूरे परिवार को जाता है जिस ने नई-नई डिश की मांग कर-कर के मुझे एक बेहत्तर कुक बना दिया. जिस की वजह से मैं ये मुकाम हासिल कर पाई हूँ.”
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र
ईमेल – opkshatriya@gmail.com
मोबाइल – 9424079675
श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। मैं श्री सुजीत जी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजीत जी की कलम का जादू ही तो है! निश्चित ही श्री सुजित जी इस सुंदर रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है। प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में हृदयस्पर्शी कविता “मी….!”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #13 ☆
☆ मी….! ☆
एकटाच रे नदीकाठी या वावरतो मी
प्रवाहात त्या माझे मी पण घालवतो मी
सोबत नाही तू तरीही जगतो जीवनी
तुझी कमी त्या नदीकिनारी आठवतो मी
हात घेऊनी हातात तुझा येईन म्हणतो
रित्याच हाती पुन्हा जीवना जागवतो मी
घेऊन येते नदी कोठूनी निर्मळ पाणी
गाळ मनीचा साफ करोनी लकाकतो मी.
एकांताची करतो सोबत पुन्हा नव्याने
कसे जगावे शांत प्रवाही सावरतो मी .
©सुजित कदम
मो.7276282626