हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 58 ☆ व्यंग्य – उनके वियोग में ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘उनके वियोग में ’।  आप ‘वियोग’ पर इस बेहतरीन व्यंग्य को पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दिए बिना नहीं रह पाएंगे। इस अतिसुन्दर व्यंग्य  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 58 ☆

☆ व्यंग्य – उनके वियोग में 

शादी को प्राप्त होने के बाद वे पहली बार मायके जा रही थीं, यानी एक साल बाद। मैं उनके एक साल के निरन्तर संपर्क के बाद एकदम घरेलू प्राणी बन गया था। सींग और दाँत झड़ गये थे और शायद दुम निकल आयी थी।

स्टेशन पर मैं बहुत दुखी था। उनसे पहली बार विछोह हो रहा था। दिल कैसे कैसे तो हो रहा था। रेलगाड़ी बैरिन जैसी लग रही थी और उनकी बगल में डटा साला बैरी जैसा।

उन्हें विदा करके लौटा तो घर भाँय भाँय कर रहा था। यह पढ़ी हुई भाषा है, अन्यथा घर भाँय भाँय कैसे करता है, मुझे नहीं मालूम। मैंने किसी घर को भाँय भाँय करते नहीं सुना।

थोड़ी देर बिस्तर पर पड़ा रहा। हालत उस कुत्ते सी हो रही थी जिसका मालिक खो गया हो। जब चैन नहीं पड़ा तो स्कूटर लेकर मल्लू के घर पहुँच गया। मल्लू पालू के साथ रहता है। दोनों छड़े हैं। शादी के बाद से उनके साथ मेरा उठना बैठना कम हो गया था।

मल्लू ने मेरी शकल देखी तो कैफियत मांगी, और कारण जानते ही वह मुझ पर टूट पड़ा। बोला, ‘बीवी के जाने से अगर तुझे दुख हो रहा है तो तू गधेपन की इन्तहा को प्राप्त हो गया। भगवान ने यह मौका दिया है, कुछ दिन के लिए आदमी बन जा।’

वह मुझे पकड़कर सदर बाज़ार ले गया। हम लोग देर रात तक घूमते, खाते पीते रहे। मुझे लगा धीरे धीरे मेरे दिल की गिरह खुल रही है। थोड़ी देर में मेरा दिल गुब्बारा हो गया। हम लोग खूब मस्ती करते रहे।

दूसरे दिन वे दोनों सबेरे ही मेरे घर आ गये। आराम से चाय-नाश्ता हुआ, फिर हम ग्वारीघाट चले गये। शाम को सिनेमा देखा और फिर रात को सड़कों पर आवारागर्दी करते रहे।

मुझे लगा हे भगवान, मैं एक साल तक कहाँ दफन हो गया था और कैसे एकाएक कब्र में से उठ खड़ा हुआ? यों समझिए कि मेरा नया जन्म हो गया।

तीसरे दिन मैंने अपने घर पर ताला मार दिया और उन्हीं लोगों के साथ फिट हो गया। फिर तो जैसे दिनों को पंख लग गये। रात को बारह-एक बजे तक हुड़दंग मचाते, फिर सबेरे दस ग्यारह बजे तक सोते।

कभी कभी ज़रूर जब रात के सन्नाटे में आँख खुल जाती तो बीवी की याद आ जाती। मन कहता, ‘अरे कृतघ्न, वह उधर गयी और तू उसे भूल कर गुलछर्रे उड़ाने लगा? चुल्लू भर पानी में डूब मर बेशर्म।’ लेकिन सच कहूँ, ये विचार पानी में खींची लकीर जैसे होते थे।

उन दो महीनों में ही मालूम हुआ कि एक साल में हमारा शहर कितना सुन्दर हो गया है और मनोरंजन की सुविधाएं कितनी बढ़ गयी हैं। समझो कि शहर मेरे लिए नया हो गया। यह भी पहली बार मालूम हुआ कि हमारा शहर एक साल में कितना बड़ा हो गया है।

फिर एक दिन उनका फोन आ गया कि वे आ रही हैं। मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे स्वर्ग से लात मार दी हो। हम तीनों मित्र एक दूसरे से लिपट कर खूब रोये।

उदास मुख लिये मैं स्टेशन पहुँचा। वे उतरीं तो मेरा मुख देखकर द्रवित हो गयीं। बोलीं, ‘लो, मैं आ गयी। अब खुश हो जाओ।’ मैंने दाँत निकाल दिये। रेलगाड़ी मुझे उस दिन भी बैरिन लग रही थी जिस दिन वे गयी थीं, और आज भी।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #55 ☆ इनबिल्ट ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच – इनबिल्ट ☆

अपने दैनिक पूजा-पाठ में या जब कभी मंदिर जाते हो,  सामान्यतः याचक बनकर ईश्वर के आगे खड़ा होते हो। कभी धन, कभी स्वास्थ्य, कभी परिवार में सुख-शांति, कभी बच्चों का विकास तो कभी…, कभी की सूची लंबी है, बहुत लंबी।

लेकिन कभी विचार किया कि दाता ने सारा कुछ, सब कुछ पहले ही दे रखा है। ‘जो पिंड में, सोई बिरमांड में।’ उससे अलग क्या मांग लोगे? स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारे भीतर है। अपनी आँखों को अपने ही हाथों से ढककर हम ‘अंधकार, अंधकार’ चिल्लाते हैं। कितना गहन पर कितना सरल वक्तव्य है। ‘एवरीथिंग इज इनबिल्ट।’…तुम रोज मांगते हो, वह रोज मुस्कराता है।

एक भोला भंडारी भगवान से रोज लॉटरी खुलवाने की गुहार लगाता था। एक दिन भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा,’बावरे! पहले लॉटरी का टिकट तो खरीद।’

तुम्हारा कर्म, तुम्हारा परिश्रम, तुम्हारा टिकट है। ये लॉटरी नहीं जो किसी को लगे, किसी को न लगे। इसमें परिणाम मिलना निश्चित है। हाँ, परिणाम कभी जल्दी, कभी कुछ देर से आ सकता है।

उपदेशक से समस्या का समाधान पाने के लिए उसके पीछे या उसके बताये मार्ग पर चलना होता है। उपदेशक के पास समस्या का सर्वसाधारण हल है।  राजा और रंक के लिए, कुटिल और संत के लिए, बुद्धिमान और नादान के लिए, मरियल और पहलवान के लिए एक ही हल है।

समुपदेशक की स्थिति भिन्न है। समुपदेशक तुम्हारी अंतस प्रेरणा को जागृत करता है कि अपनी समस्या का हल तलाशने का सामर्थ्य तुम्हारे भीतर है। तुम्हें अपने तरीके से अपना प्रमेय हल करना है। प्रमेय भले एक हो, हल करने का तरीका प्रत्येक की अपनी दैहिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।

समुपदेशक तुम्हारे इनबिल्ट को एक्टिवेट करने में सहायता करता है। ईश्वर से मत कहो कि मुझे फलां दे। कहो कि फलां हासिल करने की मेरी शक्ति को जागृत करने में सहायक हो। जिसने ईश्वर को समुपदेशक बना लिया, उसने भीतर के ब्रह्म को जगा लिया….और ब्रह्मांड में ब्रह्म से बड़ा क्या है?

 

© संजय भारद्वाज

परमसत्य की यात्रा मंगलमय हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 15 ☆ गीत हूँ मैं ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना गीत हूँ मैं. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 15 ☆ 

☆ गीत हूँ मैं ☆ 

 

सावनी मनुहार हूँ मैं

फागुनी रसधार हूँ मैं

चकित चंचल चपल चितवन

पंचशर का वार हूँ मैं

विरह में हूँ, मिलन में हूँ

प्रीत हूँ मैं

 

तीर हूँ, तलवार हूँ मैं

ऊष्ण शोणित-धार हूँ मैं

हथेली पर जान लेकिन

शत्रु काँपे काल हूँ मैं

हार को दूँ हार, जय पर

जीत हूँ मैं

 

सत्य-शिव-सुंदर सृजन हूँ

परिश्रम कोशिश लगन हूँ

आन; कंकर करूँ शंकर

रहा अपराजित जतन हूँ

शुद्ध हूँ, अनिरुद्ध शाश्वत

नीत हूँ मैं

 

जनक हूँ मैं-जननि लोरी

भ्रात हूँ मैं, भगिनि भोरी

तनय-तनया लाड़ हूँ मैं

सनातन वात्सल्य डोरी

अंकुरित पल्लवित पुष्पित

रीत हूँ मैं

 

भक्त हूँ, भगवान हूँ मैं

भगवती-संतान हूँ मैं

शरण देता, शरण लेता

सगुण-निर्गुण गान हूँ मैं

कष्ट हर कल्याणकर्ता

क्रीत हूँ मैं

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 14 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 14/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 14 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

उनके हाथों में मेहंदी लगाने

का यह फायदा हुआ

कि रात भर हम उनके

चेहरे से ज़ुल्फ हम हटाते रहे..

  

 The advantage of applying mehndi 

On her hands was that I kept on

Removing the tufts of hair from 

Her face throughout the night…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 अगर इश्क़ करो तो

अदब ए  वफ़ा भी सीखो

ये चंद दिनों की बेकरारी

मोहब्बत नहीं होती..

  

  If you love someone then

Learn to practise loyalty too

A few days of restlessness

Is not construed as love…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 उनके हाथों में मेहंदी लगाने का

ये फायदा हुआ…

की रात भर उनके चेहरे से

ज़ुल्फ हम हटाते रहे…

  

 Reward of applying mehndi on her

Hands was that I was privileged 

To remove the bangs of hair from 

Her face throughout the night…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 तेरी एक झलक ही काफ़ी 

है जीने के लिए पर दिल का 

मोह ही है सारी उम्र मिल 

जाये तो भी कम है

 

Your one glimpse alone is

Just enough to live for but it’s the 

Fascination of heart that finds

It less even if it get entire lifetime

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2 – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  जनसामान्य  के  ज्ञानवर्धन के लिए भारतीय ज्योतिष विषय पर एक शोधपरक आलेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2  – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व . भारतीय ज्योतिष शास्त्र के दोनों आलेखों के सम्पादन  सहयोग के लिए युवा ज्ञाता  श्री आशीष कुमार जी का हार्दिक आभार।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2  – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखाओं का अलग ही महत्व है, व्यक्ति के कार्यशील हाथों तथा उसकी बनावट को देख कर बहुत कुछ जाना तथा समझा जा सकता है, हाथ व्यक्ति के शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है, पौराणिक मान्यता केअनुसार हमारे दिन की सुरूआत ही हाथों के दर्शन से होती है तथा हाथों के द्वारा किये गये शुभ कर्मों की शुरुआत ही दान धर्म से होती है जो जीवन में सुख शांति और समृद्धि के साथ-साथ सौहार्द का वातावरण भी सृजित करती है श्रद्धा से जुड़े हुए हाथ और झुके सिर विनम्रता सौम्यता तथा श्रद्धा का बोध कराते हैं जो हमारी संस्कृति के संवाहक है उनमें अलग ही आकर्षण होता है। पौराणिक नियम के अनुसार सर्वप्रथम व्यक्ति को निद्रा से जागने के बाद अपने हाथों को ही देखना चाहिए इससे व्यक्ति  मुखदर्शन के दोष से बच  सकता है इसलिए व्यक्ति को सुबह अपना हाथ ही देखना चाहिए।

कर दर्शन का मंत्र है—-

कराग्रे वसते लक्ष्मी ,कर मध्ये सरस्वती।

करमूले स्थितो ब्रह्मा  प्रभाते कर दर्शनम्।

अथवा

ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानूसषि भूमि सुतौ बुधश्च।

गुरूश्चशुक्रौ शनिराहु केतव: सर्वे ग्रहा शांतु कराभवंते।।

अर्थात् हाथ में धन की देवी लक्ष्मी विद्या की देवी सरस्वती तथा सृष्टि कर्ता ब्रह्मा का निवास है। तथा हाथ में ही नवग्रहों का निवास है उनकी आराधना से ग्रहों के कोप का समन होता है। इसीलिए भारतीय ज्योतिष में ये बड़ा महत्व पूर्ण हो जाता है एक कुशल हस्तरेखा विशेषज्ञ हाथों की बनावट रंग रूप आकृति प्रकृति तथा उनमें बनने मिटने वाली रेखा देख कर बहुत कुछ भविष्यवाणी कर सकता है। मणिबंध रेखा से ही हस्तनिर्माण की शुरुआत मानी जाती है हाथों में नवग्रहों का स्थान भी ज्योतिष विज्ञानियों द्वारा निर्धारित किया गया है। तथा हाथों में ही हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और आयु रेखा होती है, जिसे देखकर मानव का जीवन काल हृदय की भावना तथा बुद्धिमत्ता का आकलन किया जाता है।

एक चतुर हस्तरेखा विशेषज्ञ ही ठीक-ठाक भविष्य वाणी हाथ देख कर कर सकता है,रेखायें समय के साथ बनती तथा मिटती रहती है जो बहुत कुछ संकेत देती है। इनका संबंध मनोविज्ञान से भी बहुत गहराई से जुड़ा है। हाथों में स्थित नवग्रहों के उभरे अथवा दबे क्षेत्र तथा अनेक चिन्ह बहुत कुछ संकेत करते हैं उन्हें पढ़ना एक विशेषज्ञ हस्तरेखा विज्ञानी के लिए बहुत ही आसान है। जिस प्रकार जातक के जन्म के समय की खगोलीय स्थिति जन्मकुंडली में कालखंडों के ग्रहों नक्षत्रों के स्वभाव प्रभाव का अध्ययन करने में सहायक होती है। उसी प्रकार हस्तरेखा भी जातक के भूत भविष्य वर्तमान को दर्शाती है। इसका निर्धारण हस्तरेखा ही करती है। व्यक्ति बुद्धिहीन है अथवा बुद्धिमान यह तो हस्तरेखा विषेषज्ञ देखते भांप लेता है,क्योकि बुद्धिमान व्यक्ति का हाथ कोमलता युक्त लालिमा लिए होता है, वहीं मोटी बुद्धि वाले व्यक्ति का हाथ कठोर होता है तथा उसके हाथों की रेखाएं अस्पष्ट होती है। उसी प्रकार शारीरिक बनावट आदि भी हस्तरेखाओं के द्वारा भविष्य वाणी के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभातीं है जो विषय विशेषज्ञों के शोध की विषय वस्तु है।

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

विशेष – प्रस्तुत आलेख  के तथ्यात्मक आधार ज्योतिष शास्त्र की पुस्तकों पंचागों के तथ्य आधारित है भाषा शैली शब्द प्रवाह तथा विचार लेखक के अपने है, तथ्यो तथा शब्दों की त्रुटि संभव है, लेखक किसी भी प्रकार का दावा प्रतिदावा स्वीकार नहीं करता। पाठक स्वविवेक से इस विषय के समर्थन अथवा विरोध के लिए स्वतंत्र हैं, जो उनकी अपनी मान्यताओं तथा समझ पर निर्भर है।

 

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 19 ☆ राणी ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है  उनका एक श्रृंगारिक रचना  “राणी“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 19 ☆

☆ राणी

 

अगं नाव काय तुझं ये राणी

तुझा बिल्लोर चांदणीवाणी

तुझ्या नखऱ्यावरी,

वाहिन दुनिया सारी

चंद्र पुनवेचा देईन निशाणी।।

 

राग आलाय राणीला लटका

नको मारु गं  मानेला झटका

कर झटका दुरी,

हास गं पळभरी

तुझ्या हास्यात मी,पाणी पाणी।।

 

झोके कमरेला देऊ नको नाना

होई कलिजाचा खजिना रिकामा

पाहुनी सिंहकटी,

माझी फिरली मती

तुझ्या कमरेत,जादू दिवाणी।।

 

तुझ्या गजऱ्यात मन माझं अडलं

तुझ्या पिरमात  मन  माझं  पडलं

तुझ्या मनावरी,

तुझ्या तनावरी

राज्य करीन,मी राजावाणी।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ नामकरण ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

आज प्रस्तुत है एक सार्थक लघुकथा  नामकरण । कृपया आत्मसात करें।

☆ लघुकथा : नामकरण    

 

कच्चे घर में जब दूसरी बार भी कन्या ने जन्म लिया तब चंदरभान घुटनों में सिर देकर दरवाजे की दहलीज  बैठ गया । बच्ची की किलकारियां सुनकर पड़ोसी ने खिड़की में से झांक कर पूछा -ऐ चंदरभान का खबर ए ,,,?

-देवी प्रगट भई इस बार भी ।

-चलो हौंसला रखो ।

-हां , हौसला इ तो रखेंगे बीस बरस तक । कौन आज ही डिग्री की रकम मांगी गयी है । डिग्री ही तो आई है । कुर्की जब्ती के ऑर्डर तो नहीं ।

-नाम का रखोगे ?

-लो । गरीब की लड़की का भी नाम होवे है का ? जिसने जो पुकार लिया सोई नाम हो गया । होती किसी अमीर की लड़की तो संभाल संभाल कर रखते और पुकार लेते ब्लैक मनी ।

दोनों इस नाम पर काफी देर तक हो हो करते हंसते रहे । भूल गये कि जच्चा बच्चा की खबर सुध लेनी चाहिए ।

पड़ोसी ने खिड़की बंद करने से पहले जैसे मनुहार करते हुए कहा -ऐ चंदरभान, कुछ तो नाम रखोगे इ । बताओ का रखोगे?

-देख यार, इस देवी के भाग से हाथ में बरकत रही तो इसका नाम होगा लक्ष्मी । और अगर यह कच्चा घर भी टूटने फूटने लगा तो इसका नाम होगा कुलच्छनी ।

पड़ोसी ने ऐसे नामकरण की उम्मी द नहीं की थी । झट से खिड़की के दोनों पट आपस में टकराये और बंद हो गये ।

 

©  कमलेश भारतीय

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ दीनानाथा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “दीनानाथा।)

☆ दीनानाथा ☆

 

नाही झाली भेट तुझी

नाही वाचली मी गीता

माय बापाच्या चरणी

फक्त ठेवला मी माथा

 

तेथे भेट तुझी झाली

गाली हसला तू होता

माझ्या हाताला लागली

जणू तुकयाची गाथा

 

नाही व्हायचे वाल्मिकी

राम नाम गाता गाता

होवो श्रावणा सारखी

माझ्या आयुष्याची कथा

 

माझ्या भाग्याची थोरवी

कीर्ति आई यश पिता

हात त्यांचे डोईवरी

काय मागू दीनानाथा

 

माया मोहाची पायरी

नको घराला रे दाता

लालसेचा घडा मनी

त्याला घाततो पालथा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 12 – केदार शर्मा – 2 ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : केदार शर्मा – 2 पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 12 ☆ 

☆ केदार शर्मा -2 ☆

उनकी आत्मकथा, द वन एंड लोनली केदार शर्मा को मरणोपरांत 2002 में प्रकाशित किया गया था, जिसे उनके बेटे विक्रम शर्मा ने संपादित किया था।

जिसमें उन्होंने पृथीराज कपूर के साथ सम्बंधों का खुलासा किया है।

मुंबई के रंजीत स्टूडियोज के लिए 1942 में केदार शर्मा ‘विषकन्या’ बना रहे थे। इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, साधना बोस और सुरेंद्र नाथ प्रमुख भूमिका में थे। केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर में कलकत्ता (अब कोलकाता) के दिनों से बहुत गहरी दोस्ती थी और दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के साथी थे। बाद में दोनों कोलकाता से मुंबई आ गए थे। ‘विषकन्या’ की शूटिंग के दौरान केदार शर्मा ने इस बात को नोटिस किया कि पृथ्वीराज कपूर जब भी शूटिंग के लिए सेट पर पहुंचते तो वो बहुत उदास रहते हैं। शूटिंग के पहले और बाद में भी गुमसुम रहते हैं और सेट पर किसी से बातचीत नहीं करते। केदार शर्मा लगातार इस बात को नोट कर रहे थे लेकिन पृथ्वीराज कपूर से पूछ नहीं पा रहे थे।

एक दिन अवसर मिल ही गया। पृथ्वीराज कपूर शॉट देने के बाद सेट के एक कोने में जाकर बैठ गए। केदार शर्मा उनके पास पहुंचे, उनका हाथ पकड़कर बोले कि अगर इसमें बहुत व्यक्तिगत कुछ न हो तो मैं आपकी उदासी का कारण जानना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आप किसी खास वजह से बेहद परेशान हैं। आप मुझ पर भरोसा रखकर उदासी की वजह बताइए, मैं उसको दूर करने की कोशिश करूंगा। इतना सुनकर पृथ्वीराज कपूर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके और जोर से केदार का हाथ पकड़कर बोले, ‘केदार! मैं अपने बेटे राजू को लेकर बहुत चिंतित हूं। किशोरावस्था की उलझनों में वो मुझे भटकता हुआ लग रहा है, मैंने उसको पढ़ने के लिए कॉलेज भेजा लेकिन वहां पढ़ाई से ज्यादा वो लड़कियों में खो गया है।’ इतना बोलकर पृथ्वीराज कपूर चुप हो गए।

केदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘अपने बेटे को मुझे सौंप दो लेकिन एक वादा करो कि मेरे और उसके बीच दखलअंदाजी नहीं करोगे। मैं उसको रास्ते पर ले आऊंगा, ठीक उसी तरह जिस तरह से कोई गुरू अपने चेले को लेकर आता है। मैं उसको अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनाने के लिए तैयार हूं।’ यह सुनकर पृथ्वीराज कपूर का दुख कुछ कम हुआ।

अगले दिन वो अपने बेटे राजू को लेकर केदार शर्मा के पास पहुंचे। कपूर खानदान की परंपरा के मुताबिक राजू ने केदार शर्मा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। केदार शर्मा ने राजू को उनके बचपन के दिनों की याद दिलाई, जब वो कोलकाता में रहते थे और पिता के साथ स्टूडियो आते थे। एक दिन जब केदार शर्मा रील देख रहे थे तो राजू ने उनसे जानना चाहा था कि रील में कैद चित्र पर्दे पर चलने कैसे लगते हैं। तब केदार शर्मा ने राजू को कहा था कि एक दिन मैं तुम्हें इसका रहस्य बताऊंगा। अब केदार शर्मा ने राजू से कहा, ‘रील का रहस्य जानने का समय आ गया है। तुम अब मेरे साथ काम करो। आज से तुम मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर हो।’

केदार शर्मा 1945 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा जो इंग्लैंड और हॉलीवुड की यात्रा की और चार्ली चैपलिन, वॉल्ट डिज्नी और सेसिल बी डीमिल से मिले।

  • बेस्ट चिल्ड्रन्स फिल्म, अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह वेनिस में 1957 में जलदीप के लिए मिला था।
  • 1956: सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: जलदीप
  • भारतीय फिल्म निर्देशकों का एसोसिएशन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
  • भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 1982 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा स्वर्ण पुरस्कार
  • महाराष्ट्र सरकार का राज कपूर पुरस्कार (उनकी मृत्यु के बाद 1999 में सम्मानित)

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( हम गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के  हृदय से आभारी हैं जिन्होंने  ई- अभिव्यक्ति के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य धारा के लिए हमारे आग्रह को स्वीकारा।  अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं  आपकी कालजयी रचना  शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा.  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆

☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆

 

शासक वर्ग जहाँ  नैतिक आचरणवान नहीं होगा

जनता से नैतिकता की आषा करना है धोखा।

 

देष गर्त में दुराचरण के नित गिरता जाता है,

आषा के आगे तम नित गहरा घिरता जाता है।

 

क्या भविष्य होगा भारत का है सब ओर उदासी,

जन अषांति बन क्रांति न कूदे उष्ण रक्त की प्यासी।

 

अभी समय है पथ पर आओं भूले भटके राही,

स्वार्थ सिद्धि हित नहीं देष हित बनो सबल सहभागी।

 

नहीं चाहिए रक्त धरा को, तुम दो इसे पसीना,

सुलभ हो सके हर जन को खुद और देष हित जीना।

 

मानव की सभ्यता बढ़ी है नहीं स्वार्थ के बल पर,

आदि काल से इस अणुयुग तक श्रमरथ पर ही चलकर।

 

स्वार्थ त्याग कर जो श्रम करते वें ही कुछ पाते है,

भूमिगर्भ से हीरे, सागर से मोती लाते है।

 

त्याग राष्ट्र का स्वास्थ्य शक्ति है, स्वार्थ बड़ी बीमारी,

सदा स्वार्थ से ही उठती है भारी अड़चन सारी।

 

अगर देष को अपने है उन्नत समर्थ बनाना,

स्वार्थ, त्याग, उत्तम, चरित्र सबको होगें अपनाना।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares