हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण # 112 ☆ पढ़ो लिखो, सोच बदलो और परिवर्तन करो – 5 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक ☆

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण कुमार डनायक जी ने अपनी सामाजिक सेवा यात्रा को संस्मरणात्मक आलेख के रूप में लिपिबद्ध किया है। आज प्रस्तुत है इस संस्मरणात्मक आलेख श्रृंखला की अगली कड़ी – पढ़ो लिखो, सोच बदलो और परिवर्तन करो)

☆ संस्मरण # 112 – पढ़ो लिखो, सोच बदलो और परिवर्तन करो – 5 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गुलाबवती बैगा एक ऐसी लड़की की कहानी है जो बिना खिले ही मुरझा जाती अगर दो प्रेरक व्यक्तित्व उचित समय पर हस्तक्षेप न करते। यह दो व्यक्तित्व हैं उसकी अनपढ़ नानी, हर्राटोला निवासिनी भुलरिया बाई बैगा और दूसरे व्यक्ति हैं कलकत्ता से घूमते फिरते अमरकंटक पहुंचे डाक्टर प्रवीर सरकार जो पेशे से होम्योपैथिक चिकित्सक हैं, स्वभाव से साधू हैं और मन विवेकानन्द के भक्त। डाक्टर सरकार जब  1995में अमरकंटक आए और यहां के बैगा आदिवासियों की व्यथा, विपन्नता देखी तो फिर यहीं बस गए। पहले लालपुर और फिर पोडकी में उन्होंने एक कच्चे मिट्टी और घांस-फूस के मकान में चिकित्सालय और बैगा बच्चियों के लिए 1996में स्कूल खोला और उसमें भर्ती होने को, अपनी नानी के साथ सबसे पहले आई गुलाबवती बैगा, जिसकी मां का बचपन तो बगल के गांव हर्राटोला में बीता पर ब्याह हुआ सलवाझोरी में जो आजकल छत्तीसगढ में है। यह बच्ची जब 2001में पांचवीं कक्षा पास करने के बाद जब अपने पितृगृह गई तो पिता ने फरमान जारी किया कि बहुत पढ़ लिया चलो सरपंच के पास तुम्हें कोई नौकरी दिलवाएंगे और तुम्हारा ब्याह करेंगे। बैगा आदिवासियों की बिरादरी में सरपंच या मुखिया की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और अपने टोले या मोहल्ले के निवासियों के जीवन-यापन संबंधित फैसले वहीं करता है। अबोध बालिका मन ही मन घुटती, पिता से विरोध में कुछ कह न पाती और मां से अपना दुःख व्यक्त करती पर पिता कहां सुनता वह तो अपने समाज की मर्यादाओं से बंधा था। ईश्वर ने शायद बालिका की आर्त पुकार सुन ली और उसकी नानी अचानक ही वहां पहुंच गई। मां बेटी ने मिलकर नानी को सब हाल सुनाया और नानी भी अड़ गई कि गुलाब आगे पढेगी। पिता के तमाम तर्क की ज्यादा पढ़ लिख जाएगी तो कुलक्षणी हो जाएगी, घर के काम-काज कब सीखेगी, इससे बियाह कौन करेगा, नानी को झुका न सके। नानी भी जिद्द कर बैठी की गुलाब को वह पढ़ाएगी। पिता कहते पढ़ाने लिखाने रुपैया कहां से आएगा, नानी और नातिन कहते बाबूजी यानि डाक्टर सरकार देंगे। लेकिन पुरुष शक्ति के आगे कभी नारी का अड़ना सफल हुआ है? शायद नहीं। पर इस बार हो गया, पिता नहाने गए और बैगाओं को नहाने के लिए तीन चार किलोमीटर दूर किसी जंगली झरने पर ही पानी नसीब होता है तो नानी ने मौका देखा, नातिन से कहा चल गुलाब मेरे साथ तुझे मैं आगे पढ़ाऊंगी। पितृगृह से आई बालिका उसके बाद डाक्टर सरकार के संरक्षण में रही। उन्होंने भी गुलाब के पिता और गांव के सरपंच को समझाया थोड़ी दम भी दी कि बाल विवाह यानी पुलिस कोर्ट कचहरी आदि की झंझट। खैर सब गुस्से में पांव पटकते चले गए और गुलाब भर्ती हो गई पोडकी स्थित शासकीय माध्यमिक विद्यालय में।  जहां से वह 2004में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण हुई। फिर नौवीं और दसवीं की पढ़ाई उसने समीपस्थ ग्राम भेजरी से उत्तीर्ण की और हायर सेकंडरी स्कूल अमरकंटक से बारहवीं 2008में उत्तीर्ण हो गई। डाक्टर सरकार उसके अभिभावक बने रहे। कपड़े भोजन और पुस्तकों की व्यवस्था डाक्टर सरकार द्वारा संचालित श्रीरामकृष्ण विवेकानन्द सेवाश्रम पोडकी करता, गुलाब का काम सिर्फ पढ़ना था। बारहवीं होते होते अबोध बालिका से किशोरी बन चुकी गुलाब के सपने तो ऊंची उड़ान भरने लगे। वह  इस क्षेत्र में स्थापित हो रहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के निर्माण कार्यों को देखती और वहां पढ़ाते प्राध्यापकों को कभी अमरकंटक में तो सेवाश्रम में डाक्टर सरकार से चर्चा करते देखती। इच्छा हुई मैं भी ग्रेजुएट बनूंगी। और हिम्मतवाले कभी हारते नहीं है। डाक्टर सरकार कन्याहट के आगे फिर नतमस्तक हुए और उसे विश्वविद्यालय ले गए बीए में दाखिला कराने। इस विश्वविद्यालय से गुलाबवती बैगा, नानी के गांव वालों की गुलबिया जब 2011में स्नातक की उपाधि धारण कर बाहर निकली तो वह अमरकंटक क्षेत्र की पहली बैगा महिला बनी बीए पास । सरकार ने उसके प्रयासों का सम्मान किया और प्राथमिक शाला धमगढ में उसे शिक्षिका बना दिया। और अभी 20जनवरी 2021को मुख्यमंत्री ने भी सम्मानित किया।गुलाबवती बैगा के पुरुषार्थ की कहानी और उसके भविष्य निर्माण में नानी के योगदान की बात जब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी ने सुनी तो उन्होंने सपत्नीक गुलाबवती बैगा व उसकी नानी वे मां के साथ फोटो खिंचवाई और मदनलाल शारदा फैमिली फाउंडेशन पुणे ने भी उसे पुरस्कृत करते हुए सम्मानित किया।

नौकरी पश्चात 2012में गुलाबवती का जब विवाह हुआ तो उसे मनचाहा वर मिला जो उसी के समान स्नातक है। अब दो बच्चों की मां, 2013में राजवीर व 2017में अर्नव बैगा की जननी, जब स्कूटी पर सवार होकर, करीने से तैयार होकर  साफ सुथरे कपड़े पहनकर स्कूल पढ़ाने जाती है तो बहुत सी आदिवासी बालिकाएं उसे घेर लेती हैं और उसकी राम कहानी उत्साह से सुनती हैं। उसकी कहानी उन बच्चियों को प्रेरणा देती है क्योंकि गुलाबवती न तो राजकुमारी है और न तो कोई परी  वह तो उनके समुदाय से बाहर निकली एक बहादुर स्वयंसिद्धा है।

मैंने उससे पूछा तुम तो पढ़ गई पर बाकी लोगों को क्या सिखाती हो तो वह थोड़ा झिझकते हुए बोलती हैकि दादा मैं तो बाबूजी की सीख सबको देती हूं कि पढ़ो लिखो, सोच बदलो और परिवर्तन करो। वह कहती है कि बैगा आदिवासियों में खान पान को लेकर कई बुराइयां हैं वे चूहा तक मारकर खा जाते हैं, मद्यपान बहुत करते हैं और पौष्टिक आहार नहीं लेते, शौच वगैरह भी नहीं करते, नहाना धोना तो बहुत कम करते हैं, महिलाओं का पहनावा भी पुरातनपंथी है। यह सब बदलना चाहिए और वह अपने लोगों इन परिवर्तनों को स्वीकार करने को कहती है । मैंने कहा फिर तो उनका बैगापन ही खत्म हो जाएगा तो उसका जवाब है कि बैगापन तो हमारे भोलेपन में है वह तो गोदने की तरह हमारे तन-मन में व्याप्त है। बैगानी संस्कृति को हमें बचाना है पर उन भावनाओं और परम्पराओं को तो त्यागना ही होगा जो हमें डरपोक बनाती है। वह कहती हैं आज भी बैगा मोटरसाइकिल पर अंजान व्यक्ति को देखकर जंगल भाग जाते हैं। बीमार पड़ते हैं तो दवाई नहीं करवाते वरन टोना टोटका करते फिरते हैं। बैगा लड़के लड़कियां पढ़ेंगे लिखेंगे तो डर खत्म होगा और वे अपनी बात खुलकर कह पाएंगे, स्वच्छता से रहना सीखेंगे तो बीमार नहीं पड़ेंगे। डाक्टर सरकार के लिए उसके मन में अगाध श्रद्धा है, वह कहती है कि बाबूजी ने उसे बस जन्म भर नहीं दिया बाकी उसके मां-बाप तो वहीं हैं। वह बताती है कि हमारे पिता की जो आमदनी थी उससे तो बस गुजर बसर लायक व्यवस्था बनती थी, नानी भी मेहनत मजदूरी कर बस अपना पेट भरने लायक कमाती थी। ऐसी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में मेरा पढ़ पाना तो नामुमकिन ही था। लेकिन बाबूजी ने बहुत सहारा दिया। उन्होंने मुझे इसी सेवाश्रम के छात्रावास में रखा  और भोजन, कपड़ों और किताबों की व्यवस्था की। जब कभी गाँव के लोग ताने देते मेरे पढने स्कूल जाने का मजाक उड़ाते तो बाबूजी उन्हें डांटते और मुझे समझाते मेरा मनोबल बढाते।आज अगर मैं सुखी जीवन बिता रही हूँ तो यह सब कुछ बाबूजी के कारण ही संभव हो सका। अगर वे इस क्षेत्र में न आते तो मेरे जैसी अनेक बैगा लडकियाँ परिपाटी और परम्पराओं की बलि चढ़ गई होती।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 135 ☆ गाव आठवांचा एक… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 135 ?

☆ गाव आठवांचा एक… ☆

गाव आठवांचा एक

रोज स्वप्नात दिसतो

दिसे डोंगर साजिरा

सूर्य जाताना हसतो

 

सूर्य जाताना हसतो

पश्चिमाही लालेलाल

सांज सावळी होताना

वारा पुसे हालचाल

 

वारा पुसे हालचाल

वृक्ष वेली धुंदावती

आल्या गेल्या पाहुण्यांशी

चूली पेटत्या बोलती

 

चूली पेटत्या बोलती

येतो गंध भाकरीचा

बेत फक्कड असावा

वास छान ओळखीचा

 

 वास छान ओळखीचा

येते दाटून ही भूक

माय प्रेमाने वाढते

याला म्हणतात सुख

 

याला म्हणतात सुख

ओटी भरून घेतले

आणि गावाच्या बाहेर

    नवे शहर गाठले

 

नवे शहर गाठले

परी गाव खुणावते

त्या पाण्यात पाटाच्या

अनवाणी घोटाळते

 

अनवाणी घोटाळते

कधी बोरी बाभळीशी

सांगा विसरू कशी मी

 आहे नित्य हृदयाशी !

 

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- sonawane.prabha@gmail.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग १ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग १ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ एक जिद्दी देश— इस्त्रायल  ✈️

जॉर्डनची राजधानी अम्मान इथून दोन तासांचा बस प्रवास करून ‘शेख हुसेन ब्रिज’ हा जॉर्डन नदीवरील पूल ओलांडला. इथे जॉर्डनची सरहद्द ओलांडून इस्त्रायलमध्ये प्रवेश केला.

‘इस्त्रायल म्हणजे काय’? याची झलक चेकपोस्टपासूनच दिसायला लागली. आमच्या दहा जणींचा इस्रायलचा व्हिसा चेकपोस्टवर दाखवला. यांत्रिक तपासणी झाली तरी प्रत्येकीवर प्रश्नांची फैर झडत होती. ‘कशासाठी आलात? तुम्हाला कोणी काही गिफ्ट इथे द्यायला दिली आहे का? बॅगेत काही घातक वस्तू आहे का? तुमची बॅग तुम्हीच भरली आहे का? तुम्ही सर्वजणी एकमेकींना किती वर्षं ओळखता?’ अशा तऱ्हेचे प्रश्न विचारले गेले. प्रत्येकीला स्वतःच्या बॅगा उघडून दाखवाव्या लागल्या.त्या अधिकाऱ्यांचे समाधान झाल्यावरच प्रवेश परवाना मिळाला. ‘आव- जाव घर तुम्हारा’ असा ढिला कारभार कुठेही नव्हता.

गाईड बरोबर बसने यारडेनीट या ठिकाणी गेलो. इथे जॉर्डन नदी ‘सी ऑफ गॅलिली’तून बाहेर पडते. नदीच्या पाण्यात उभे राहिल्यावर अनेक छोटे मासे पायाशी भुळभुळू लागले. जगभरातील अनेक देशांतून आलेले ख्रिश्चन भाविक इथे पांढरे स्वच्छ अंगरखे घालून धर्म गुरूंकडून बाप्तिस्माचा विधी करून घेत होते. नदीकाठच्या छोट्या हॉटेलात पोटपूजा केली.

तिथून ‘सी ऑफ गॅलिली’ इथे गेलो. नाव ‘सी ऑफ गॅलिली’  असले तरी हा समुद्र नाही. याला ‘लेक टिबेरियस’ असेही नाव आहे. समुद्रसपाटीपासून ७०० फूट खाली असलेले हे एक गोड्या पाण्याचे सरोवर आहे. याचा परीघ ५३ किलोमीटर (३३मैल ),लांबी २१ किलोमीटर आणि रुंदी १३ किलोमीटर  आहे. या सरोवराची खोली शंभर ते दीडशे फूट आहे. इस्त्रायलच्या उत्तरभागातील डोंगररांगातून येणारे काही झरे, नद्या या सरोवराला मिळतात पण या सरोवराचा मुख्य स्रोत म्हणजे उत्तरेकडून दक्षिणेकडे वाहणारी जॉर्डन नदी!

या सरोवरात दोन तासांचे बोटिंग करायचे होते. ती लाकडी बोट चांगली लांबरुंद, स्वच्छ होती. बोट सुरू झाल्यावर गाईडने ग्रुपमधील सर्वात ज्येष्ठ म्हणून मी व आमची ग्रुप लीडर शोभा असे आम्हा दोघींना बोलावले व बोटीच्या चार पायर्‍या चढून  थोड्या वरच्या डेकवर नेले. बोटीवरचा एक स्टाफ मेंबर आपल्या भारताचा तिरंगा झेंडा घेऊन आला. तो त्याने तिथे असलेल्या  काठीच्या दोरीला लावला. त्याने सांगितले की ‘आता आम्ही तुमच्या राष्ट्रगीताची धून सुरू करणार आहोत. तुम्ही दोरी ओढून झेंडा फडकवा’. त्याक्षणी थरारल्यासारखे झाले. आम्ही व समोर उभ्या असलेल्या बाकी साऱ्या मैत्रीणी उजव्या हाताने सॅल्युट  करून उभ्या राहिलो. राष्ट्रगीताची धून सुरू झाली.  झेंडा फडकविला. अनपेक्षितपणे एका वेगळ्याच अनुभवाला सामोरी गेले.

आधुनिक तंत्रज्ञानामुळे या प्रसंगाचे फोटो व्हाट्सॲप वरून लगेच घरी पाठविले गेले. ट्रीप संपवून घरी आल्यावर सतेज म्हणजे आमचा नातू म्हणाला,’ आजी, तू झेंड्याची दोरी अशी काय ‘टग् ऑफ वॉर’ ( रस्सीखेच ) सारखी खेचून धरली आहेस?’ ‘अरे काय सांगू? अजिबात ध्यानीमनी नसताना आयुष्यात पहिल्यांदाच भारताचा तिरंगा झेंडा फडकविण्याचं भाग्य लाभलं आणि तेसुद्धा परदेशात! भर पाण्यात असल्याने, बोट चांगली हलत होती. भरपूर वारा सुटला होता. कुठल्याही परिस्थितीत राष्ट्रगीताची धून पूर्ण होईपर्यंत फडकविलेला झेंडा खाली येता कामा नये असं मनाने ठरविले आणि मी हातातली दोरी गच्च आवळून धरली.’

झेंडा वंदनानंतर  त्यांनी आम्हाला त्यांच्या एका हिब्रू गाण्यावरच्या चार स्टेप्स शिकविल्या व हिब्रू गाणे लावले.   त्यावर आम्ही त्यांनी दाखविल्याप्रमाणे नाचण्याचा प्रयत्न केला. झेंडा उभारण्याचा, झेंडावंदनाचा हृद्य कार्यक्रम आयुष्यभराची ठेव म्हणून मनात जपला.

आम्ही बोटीतून उतरल्यावर एक जपानी ग्रुप बोटीत चढण्यासाठी सज्ज होता. मला खात्री आहे की त्यांनी जपानी ग्रुपसाठी नक्की जपानी राष्ट्रगीत व त्यांचा झेंडा लावला असेल. टुरिझम म्हणजे काय व टुरिझम वाढविण्यासाठी काय काय करता येऊ शकते याचे हे एक उत्कृष्ट उदाहरण समजायला हरकत नाही. ज्या चिमुकल्या देशाची एकूण लोकसंख्या साधारण ८२ लाख आहे त्या इस्त्रायलला दरवर्षी तीस लाखांहून अधिक पर्यटक भेट देतात . ज्यू धर्मियांबरोबरच ख्रिश्चन व मुस्लिम धर्मियांसाठी इस्त्रायल हे पवित्र ठिकाण आहे. धार्मिक कारणासाठीही इस्त्रायलमध्ये पर्यटकांचा ओघ असतो.

राजकीय परिस्थितीमुळे ज्यू लोक जगभर विखुरले गेले होते. त्यांचा जर्मनीमध्ये झालेला अमानुष छळ सर्वज्ञात आहे. इसवी सन १९४८ साली ब्रिटिशांच्या मदतीने जॉर्डन नदीच्या प्रदेशात इस्त्रायल या राष्ट्राचा जन्म झाला. जगभरचे राष्ट्रप्रेमाने भारावलेले ज्यू इस्त्रायलमध्ये आले.जॉर्डन,लेबोनान, सिरिया, इजिप्त अशा सभोवतालच्या अरबी राष्ट्रांच्या गराड्यात अनेक लहान- मोठ्या लढायांना तोंड देत इस्त्रायल ठामपणे उभे राहिले आणि बारा-पंधरा वर्षात एक विकसित राष्ट्र म्हणून त्यांनी जगाच्या नकाशावर मानाचे स्थान मिळविले. अत्यंत कष्टाळू,कणखर, देशप्रेमी ज्यू नागरिकांनी प्रथम त्यांची अर्थव्यवस्था बळकट केली. प्रत्येक क्षेत्रात सतत संशोधन, अत्याधुनिक तंत्रज्ञानाचा शोध व त्याचा परिणामकारक वापर हे इस्त्रायलचे एक मोठे वैशिष्ट्य आहे. इस्त्रायलचा दक्षिण भाग हा निगेव्ह आणि ज्युदियन वाळवंटाचा प्रदेश आहे तर उत्तरेकडील डोंगररांगा व पश्चिमेकडील भूमध्य समुद्र यामुळे तिथल्या गॅलिली खोऱ्यात समशीतोष्ण हवामान आहे. नैसर्गिक साधनसंपत्ती नसूनही इस्त्रायलने शेती,फळे व दुग्ध व्यवसायात आश्चर्यकारक प्रगती केली आहे.

दुसर्‍या दिवशी आम्ही एक ‘किबुत्स’बघायला गेलो. एका छोट्या गावासारख्या वस्तीने एकत्रितपणे केलेली शेती आणि दुग्ध व्यवसाय  याला ‘किबुत्स’ असे नाव आहे. इथल्या ४३० हेक्टरच्या अवाढव्य शेती व दुग्ध व्यवसायामध्ये फक्त पाचशे माणसे कामाला होती. हजारो संकरित गाई होत्या. त्यांच्यासाठी पत्र्याच्या मोठ्या मोठ्या शेडस् बांधलेल्या होत्या. गाईंच्या डोक्यावर खूप मोठ्या आकाराचे पंखे सतत फिरत होते. मध्येच पाण्याच्या फवार्‍याने त्यांना अंघोळ घातली जात होती. आम्ही इस्त्रायलला गेलो तेंव्हा उन्हाळा होता म्हणून ही व्यवस्था असावी. प्रत्येक गाईच्या कानाला तिचा नंबर पंच केलेला होता आणि एका पायात कॉम्प्युटरला जोडलेली पट्टी होती. दररोज तीन वेळा प्रत्येक गायीचे दूध काढले जाते. या गाई दिवसाला ४० लिटर दूध देतात.आचळांना सक्शन पंप लावून दूध काढले जात असताना त्यांच्या नंबरप्रमाणे सर्व माहिती कॉम्प्युटरमध्ये जमा होते. त्यावरून त्या गाईच्या दुधाचा कस व त्यात बॅक्टेरिया आहेत का हे  तपासले जाते. लगेच सर्व दूध स्टीलच्या नळ्यांतून कुलींगसाठी जाते. दूध, दुधाचे पदार्थ व चीझ यांची मोठ्या प्रमाणावर निर्यात केली जाते. उत्तम बीज असलेले, जरुरी पुरेसे वळू निगुतीने सांभाळले जातात. बाकीच्यांची रवानगी कत्तलखान्यात होते. एवढेच नाही तर गाईंची दूध देण्याची क्षमता कमी झाली, दुधाचा कस कमी झाला, दुधात बॅक्टेरिया आढळले तर त्यांचीही रवानगी कत्तलखान्यात होते.

या सगळ्या गाई अगदी आज्ञाधारक आहेत. गोठ्यामध्ये लांब काठीसारखा सपाट यांत्रिक झाडू सतत गोल फिरत होता. त्यामुळे जमिनीवरील शेण, मूत्र गोळा केले जात होते . यांत्रिक झाडू आपल्या पायाशी आला की गाई शहाण्यासारखा पाय उचलून त्या झाडूला जाऊ देत होत्या.  दूध काढण्यासाठी त्यांच्या ठरलेल्या ठिकाणी जाऊन उभ्या राहत होत्या व त्यांचे सक्शन पंप सुटले की लगेच पुन्हा वळून आपल्या जागेवर जाऊन राहत होत्या. गोळा केलेले शेण व मूत्र खत बनविण्यासाठी जात होते.

जवळच लालसर आंब्यांनी लगडलेली दहा फूट उंचीची झाडे एका लाइनीत शिस्तीत उभी होती. प्रत्येक झाडाच्या बुंध्यात ड्रीप इरिगेशनने ठराविक पाणी देण्यात येत होते. त्यातूनच योग्य प्रमाणात खत देण्यात येत होते. अशीच रसदार लिचीची झाडे होती. ॲव्हाकाडो, ऑलिव्ह भरपूर प्रमाणात पिकवितात. झाडाची फळे हातांनी किंवा शिडी लावून काढता येतील एवढीच झाडाची उंची ठेवतात.केळींवर भरपूर संशोधन केले आहे.टिश्शू कल्चर पध्दतीने केळीच्या अनेक  जाती शोधून त्याचे भरपूर पीक घेतले जाते. कुठेही पाण्याचा टिपूससुद्धा जमिनीवर नव्हता. सर्व पाणी व खत ड्रीप लाईन्समधूनच दिले जाते. इस्त्रायलमधून मधून मोठ्या प्रमाणावर ऑलिव्ह व फळे निर्यात होतात.

इस्त्रायल भाग १ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 36 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 36 – मनोज के दोहे

(पनघट, कुआँ, जेठ, ताल, पंछी)

पनघट बिछुड़े गाँव से, टूटा घर संवाद।

सुख-दुख की टूटी कड़ी, घर-घर में अवसाद।।

 

कुआँ नहीं अब शहर में, ट्यूबबैल हैं गाँव।

पीने को पानी नहीं, दिखती कहीं न छाँव।।

 

जेठ दुपहरी की तपन, दिन हो चाहे रात।

उमस बढ़ाती जा रही, पहुँचाती आघात।।

 

ताल सभी बेहाल अब, नदी गई है सूख।

तरुवर झरकर ठूँठ से, नहीं रहे वे रूख।।

 

प्रकृति हुई अब बावली, बदला है परिवेश।

पंछी का कलरव नहीं, चले गए परदेश।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 162 ☆ जीवन-यात्रा – जन-जागरण अभियान, अविष्कार व तकनीकी लेखन – इं. हेमन्त कुमार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है बिजनौर, उत्तर प्रदेश के अभियंता इं हेमन्त कुमार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित प्रेरकआलेख  “जन-जागरण अभियान, अविष्कार व तकनीकी लेखन – इं. हेमन्त कुमार “।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 162 ☆

? जीवन-यात्रा – जन-जागरण अभियान, अविष्कार व तकनीकी लेखन – इं. हेमन्त कुमार  ?

सिंचाई के लिए “कंट्रोल्ड वाटर एंड एयर डिस्पेंसर फॉर इनडोर एंड आउटडोर प्लांट्स”  आविष्कार का पेटेंट मिला  इं. हेमन्त कुमार को

नवाचार, शोध, विज्ञान लेखन, हरियाली विस्तार, भवन कला, रेखा चित्रण, तथा स्थानीय इतिहास संवर्धन के क्षेत्र में लम्बे समय से कार्य कर रहे इंजी हेमंत कुमार बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। हैं। इन क्षेत्रों में विधिवत और परिणामपरक कार्य करने के लिए हेमन्त कुमार ने वर्ष 2002-03 में भवन निर्माण तकनीक जन-जागरण अभियान, वर्ष 2016 में क्षेत्रीय इतिहास संकलन एवं लेखन अभियान जनपद बिजनौर तथा वर्ष 2016-17 में हरियाली विस्तार हेतु पेड़ जियाओ अभियान की स्थापना की। इनके कार्यों की एक बड़ी विशेषता है कि वे सीधे जनता के सरोकार से जुड़े हैं। इनके माध्यम से हेमन्त कुमार ने कई महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

भवन निर्माण तकनीक जन-जागरण अभियान व तकनीकी लेखन

मकान समाज की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। परंतु बहुत कम लोग ही इसका मनमुताबिक निर्माण करा पाते हैं क्योंकि इसका निर्माण महँगा और तकनीकी कार्य है। दुर्भाग्य से जनसाधारण को भवन निर्माण तकनीक का बहुत कम ज्ञान है। सिविल इंजीनियर और आर्किटेक्ट की सुविधाएँ भी साधन-संपन्न और धनी लोग ही उठा पाते हैं। गरीब और आम जनता को भवन कारीगर जैसा बना देता है वही उसके लिए सब कुछ होता है। इन कारणों से भवनों में अनेक कमियाँ रह जाती हैं। जिससे व्यक्ति की गाढ़ी कमाई का एक हिस्सा व्यर्थ चला जाता है। राष्ट्रीय संसाधनों का भारी नुकसान होता है और भवनों की आयु भी कम हो जाती है। आम जनता से जुड़ा हुआ मुद्दा होने के बावजूद भी इस पर कोई  जन-जागरण कार्य नही हुआ। इस विषय पर  इं. हेमंत कुमार ने ‘भवन निर्माण तकनीक जन-जागरण अभियान’ की शुरूआत की। इस अभियान के अंतर्गत हेमन्त कुमार सरल हिंदी में दो पुस्तकें लिख चुके हैं। इस अभियान के अंतर्गत आपने जरूरतमंद लोगों को अभी तक लगभग एक हजार नक्शे बनाकर निस्वार्थ भाव से उपलब्ध कराए हैं। साथ ही अनेक जन-जागरण गोष्ठी आयोजित कर जनता को सीधे लाभ पहुँचाया है।

भवन निर्माण क्षेत्र में जन-जागरण के लिए हेमंत कुमार ‘मकान बनवाते समय ध्यान रखने वाली 125 बहुत जरूरी बातें’ तथा ‘विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक्शे’ नामक दो पुस्तकें लिख चुके हैं। जनहित में इन्होंने इन दोनों पुस्तकों का ई-संस्करण विमोचन के समय से ही निशुल्क कर दिया, जो कि बौद्धिक रूप से एक बहुत बड़ी समाज सेवा है। इनकी पुस्तक ‘विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक्शे’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने वर्ष 2019 के लिए सम्पूर्णानन्द नामित पुरस्कार और पचहत्तर हजार की धनराशि देकर सम्मानित किया।  इस पुस्तक का विमोचन आई.आई.टी. रूड़की में स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सभागार में हुआ था।

भवन कला चित्रांकन

हेमन्त कुमार ने भवन कला से सम्बंधित लगभग एक हजार चित्र बनाए। जिनमें से अनेक सोंदर्यबोध की दृष्टि से उच्च कोटि के हैं। इन चित्रों में कुछ की कला का मूल्यांकन डॉ. श्याम बिहारी अग्रवाल (पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष दृश्यकला विभाग इलाहबाद विश्वविद्यालय) के द्वारा किया गया है। इनकी पुस्तक ‘विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक्शे’ में भवन कला से जुड़े और इनके बनाए अनेक उत्कृष्ट चित्र लगे हैं। 

भवन निर्माण तकनीक जन-जागरण अभियान के अंतर्गत जनोपयोगी व लोक हितकारी कार्यों के लिए श्री हेमन्त कुमार लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश के मा. राज्य मंत्री श्री चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय के हाथों सम्मान पत्र पा चुके हैं । 

जनोपयोगी शोध एवं नवाचार

अंतर्राष्ट्रीय शोध जनरल में हेमन्त कुमार के तीन तकनीकी शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। वर्ष 2018 में हेमंत कुमार का लिखा ‘HK MODE’ FOR DETERMINATE THE SAFETY LEVEL OF RIVER EMBANKMENTS नामक एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ। यह शोधपत्र बस्तियों तथा उपजाऊ खेती को बाढ़ से बचाने के लिए नदियों के किनारे बनाए जाने वाले तटबंधों की सुरक्षा का स्तर ज्ञात करने के लिए लिखा गया था।  पूर्वी उत्तर प्रदेश में राप्ती नदी की बाढ़ से भारी नुकसान होता है। बाढ़ की विभीषिका को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने इन नवीनतम तकनीकों का प्रयोग कर नदी जल धारा के विस्थापन का पूर्वानुमान लगाने हेतु कंप्यूटर एप्लीकेशन आधारित कार्य कराए थे।  इन कार्यों में हेमंत कुमार के इस शोधपत्र का भी सन्दर्भ लिया गया। नदी की जलधारा के स्थान परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाते हुए उससे तटबंधों को होने वाले नुकसान के संबंध में तथा बाढ़ के प्रति उनकी सुरक्षा का स्तर ज्ञात करने में इस शोधपत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस शोधपत्र का उल्लेख कार्य करने वाली दोनों फर्मो ने अपनी-अपनी फाइनल रिपोर्ट में किया है। नदी तटबंध की सुरक्षा ज्ञात करने का यह अपनी तरह का पहला और मौलिक शोधपत्र है। तीन शोधपत्रों के अलावा विज्ञान और तकनीक पर इनके लिखे अनेक लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

आविष्कार-

सन 2016-17 में श्री हेमन्त कुमार ने पौधों की स्वतः सिंचाई के लिए कंट्रोल्ड वाटर एंड एयर डिस्पेंसर फॉर इनडोर एंड आउटडोर प्लांट्स नामक आविष्कारक किया। वर्ष 2021 में इस आविष्कार के क्रियाकारी सिद्धांत को भारत सरकार के बौद्धिक सम्पदा केंद्र ने पेटेंट प्रदान किया गया है। इसका पेटेंट नंबर 370026 है। इस सिद्धांत पर बना उपकरण गमले में लगे पौधे की महीनों तक स्वतः सिंचाई कर सकता है। जमीन में लगे पाँच-छः फीट तक ऊँचाई के पौधों के लिये भी यह उपयोगी है। उपकरण में पानी हाथ से भरा जाता है। यह उपकरण एक सप्ताह में पानी को 200 मिलीलीटर से लेकर एक लीटर तक पौधों की जड़ में भेज सकता है। आयु, किस्म तथा मौसम के अनुसार पौधे की जरुरत के मुताबिक भेजे जाने वाली पानी की मात्रा उपकरण में लगे नाब द्वारा सेट कर दी जाती है। इसके बाद यह उपकरण पानी की तय मात्रा को खुद-ब-खुद पौधों तक पहुँचता रहता है। इस उपकरण से पानी सीधे पौधे के जड़ क्षेत्र में पहुँचता है। इस खासियत के चलते लगभग 20 प्रतिशत पानी भी बचता है। इस उपकरण को एक लीटर से लेकर कितनी भी क्षमता का बनाया जा सकता है। बड़ी टंकी से युक्त यह उपकरण एक बार पानी से भरे जाने के बाद सामान्य पौधे की दो महीने तक सिंचाई कर सकता है। इसलिये जो लोग 15-20 दिन या एक-दो महीनों के लिये बाहर जाने के कारण सिंचाई नहीं कर पाते उनके लिये यह बहुत फायदेमंद है। जितनी बड़ी टंकी होगी उतने ही अधिक दिनों तक यह काम करता रहता है। पहाड़ों या दुर्गम क्षेत्रों में जहाँ नव रोपित पौधों की सिंचाई के लिये बार बार जाना मुश्किल होता है वहाँ के लिये भी यह उपयोगी है। इसमें पानी हर समय जड़ों में नहीं पहुँचता बल्कि बीच-बीच में तीन-चार दिनों के लिए रुकता भी है जिससे लगातार पानी के संपर्क में रहने से गल जाने वाली जड़ों के पौधे इसके प्रयोग से नहीं मरते। बगीचों में नव रोपित पौधों की स्वतः सिंचाई के लिए यह आविष्कार बहुत उपयोगी है। रेगिस्तानी इलाकों के लिये भी यह आविष्कार बहुत उपयोगी है। इस उपकरण को बिजली या सेल या अन्य किसी बाहरी उर्जा की जरूरत नहीं पड़ती, यह पानी स्थैतिक उर्जा से कार्य करता है। उक्त आविष्कार के अलावा हेमन्त कुमार के सात अन्य नवाचार भी पेटेंट के लिए आवेदित हैं।

डिजाइन श्रेणी में नवाचार-

हेमंत कुमार रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाले उपकरणों के विकास और उन्नतीकरण में भी माहिर हैं। आप किसी नई आवश्यकता के लिए नए उपकरण का विकास तथा पहले से मौजूद उपकरणों को उन्नत भी कर लेते हैं। इस योग्यता और रूचि के कारण आप अभी तक विभिन्न वस्तुओं और चीजों के अनेक नवीन डिजाइन बना चुके हैं। इनमें से इन्होंने तीन डिजाइनों को भारत के बौद्धिक संपदा केंद्र/पेटेंट ऑफिस में मान्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन किया हुआ है। इसमें से एक नूतन डिजाइन को पेटेंट ऑफिस ने मान्यता प्रदान की है। हेमंत कुमार ने अपने विभिन्न नवाचार, नए डिजाइन तथा आविष्कार के वर्किंग माडल्स को घरों में पाई जाने वाली सामान्य घरेलू वस्तुओं को जोड़-तोड़ करके तैयार किया है। सामान्य घरेलू वस्तुओं की सहायता से आपने डेढ़ साल के निरंतर प्रयासों से एक ‘30 स्टेप रोबोटिक एनालॉग सिग्नल कंट्रोलर’ भी बनाया था।

व्यक्तिगत श्रेणी में बौद्धिक संपदा केंद्र के विविध क्षेत्रों में तीन प्रमाण पत्र

भारत सरकार आविष्कार करने पर ‘पेटेंट सर्टिफिकेट’, नया डिजाइन तैयार करने पर ‘डिजाइन सर्टिफिकेट’ तथा मौलिक पुस्तक लिखने पर ‘कॉपीराइट सर्टिफिकेट’ प्रदान करती है। भारत में गिने-चुने लोग ही हैं जिनके पास ये तीनों सर्टिफिकेट हैं। इंजीनियर हेमंत कुमार ने वर्षों की अथक मेहनत, जीवटता और निरंतर प्रयास करके इन तीनों श्रेणियों में सर्टिफिकेट हासिल किए हैं।

विविध लेखन कार्य

वर्ष 2021 के अंत तक श्री हेमन्त कुमार की लिखी छह पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- 1) मकान बनवाते समय ध्यान रखने वाली 125 बहुत जरूरी बातें 2) विविध प्रकार के भवनों का परिचय एवं नक्शे 3) विचार मंजरी 4) पुस्तक विमोचन के सचित्र संस्मरण 5) भवन निर्माण तकनीक जनजागरण अभियान परिचय, उपलब्धि, संस्मरण और नक्शे 6) ग्राम फीना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनकी संघर्ष गाथा। इन सभी छह पुस्तकों को आई.एस.बी.एन. नंबर प्राप्त है। आप राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘दी कोर’ के पूर्व अतिथि सम्पादक रहे। ‘दी कोर’ के लिए आपने निरंतर लिखा। आप इस पत्रिका में सह-संपादक एवं वरिष्ठ सह संपादक भी रहे।

इतिहास संदर्भ कार्य

श्री हेमन्त कुमार ने  2015 के आसपास अपने गाँव और जिले के इतिहास पर भी कार्य करना शुरू किया।

वर्षों तक निरंतर काम करने के कारण वर्ष 2020-21 में समाचार पत्रों ने इनका नाम कई बार बिजनौर इतिहास के जानकार के रूप दिया गया । अब इनकी पहचान क्षेत्रीय इतिहास अध्येता और लेखक के रूप में भी बन गई है।

राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के द्विवर्षीय ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के दौरान उपलब्धि 

वर्ष 2021 में इनकी ‘ग्राम फीना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनकी संघर्ष गाथा’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जो भारत सरकार द्वारा संचालित द्विवर्षीय अमृत महोत्सव के दौरान गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर प्रकाशित होने वाली राष्ट्रीय स्तर पर पहली पुस्तक है। इस प्रयास में श्री हेमन्त कुमार ने लगभग तीस गुमनाम सेनानियों की खोज की। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और उनसे जुड़ी कई घटनाओं के रेखाचित्र भी बनाए। इनमें से 16 अगस्त 1942 को नूरपुर तिरंगा केस के ऐतिहासिक चित्र का विमोचन एस.पी. सिटी (बिजनौर) ने किया था।

‘नववर्ष चेतना समिति लखनऊ’ द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय गोष्ठी में इन्होंने ‘महाराज विक्रमादित्य की सर्व स्वीकार्यता में अड़चने’ नामक अपने शोधपत्र का वाचन लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में किया था। इसके लिए हेमन्त कुमार को श्री हृदयनारायण दीक्षित (मा. विधानसभा अध्यक्ष उत्तर प्रदेश) के हाथों प्रमाण पत्र मिला था। ‘ग्राम फीना में स्वतंत्रता आन्दोलनों की लहर’ नामक इनके एक अन्य  शोधपत्र के ई-संस्करण का लोकार्पण जिलाधिकारी बिजनौर द्वारा किया गया था।

सेनानियों के गौरव के प्रति जनचेतना और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक का निर्माण-

हेमंत कुमार द्वारा लिखे गए शोध पूर्ण इतिहास लेखों से इनके पैतृक ग्राम फीना में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति लोगों का गौरव भान और जनचेतना उच्च स्तर पर जागृत हुई। हेमंत कुमार की पहल और प्रेरणा से फीनावासियों ने परस्पर आर्थिक सहयोग कर एक अत्यंत भव्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक का निर्माण कराया गया। जिसमें लगभग ग्यारह लाख रूपये की लागत आई।

श्री हेमन्त कुमार के विविध कार्यों पर पुस्तक-

श्री हेमन्त कुमार द्वारा पेड़ जियाओ अभियान, क्षेत्रीय इतिहास संकलन एवं लेखन अभियान जनपद बिजनौर तथा भवन निर्माण तकनीक जन-जागरण जैसे अभियानों की स्थापना व संचालन और विविध क्षेत्रों में किए गए जनोपयोगी कार्यों पर एक पुस्तक लिखी गई है। इस पुस्तक का नाम ग्राम फीना जनपद बिजनौर निवासी इं. हेमन्त कुमार के कार्य है। इस पुस्तक को मलीहाबाद निवासी श्री सुशील कुमार ने लिखा है।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

एफ आई ई , सेवानिवृत मुख्य अभियंता , पूर्व क्षेत्र विदयुत वितरण कंपनी

ए २३३ , ओल्ड मीनाल , भोपाल ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 126 – लघुकथा – दो बाँस… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है यथार्थ के धरातल पर स्त्री विमर्श पर आधारित एक अत्यंत संवेदनशील एवं विचारणीय लघुकथा दो बाँस”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 126 ☆

☆ लघुकथा – दो बाँस 

कमलाबाई गाँव में अपने पति झुमुक लाल के साथ रहती थी। निसंतान होने के कारण सारी जमीन जायदाद उसके छोटे भाई ने अपने नाम लिखवा लिया। खाने के लाले पड़ने लगे, उम्र ज्यादा होने के कारण झुमुक लाल को दिखाई नहीं देता था। आँखों से लाचार फिर भी पत्नी के लिए परेशान रहता था।

किसी तरह खाने-पीने का इंतजाम हो जाता था। आस पड़ोस के लोग कुछ सहायता कर जाते हैं और थोड़ा बहुत अनाज दे जाते थे। एक छोटे से झोपड़ी नुमा घर में रहते थे।

चुनाव चल रहा था। वोट मांगने प्रत्याशी घर-घर दस्तक दे रहे थे। कमलाबाई के घर आने पर पूछा गया…” सब ठीक-ठाक है।” कमलाबाई ने हाथ जोड़कर कहा…. “जैसे तैसे खाने का इंतजाम हो जाता है साहेब, परंतु झोपड़ी में एक तरफ से पानी आएगा अब बरसात भी आने वाली है, आप मुझे दो बड़े बड़े बाँस दिलवा देते तो मैं पन्नी लगाकर घर को बचा लेती।”

मंत्री जी ने बड़े बड़े अक्षरों पर लिखवा लिया कि बाँस दिया जाए। कमला और झुमुक लाल खुश थे कि बाँस मिल जाएगा और घर की टपरिया में पन्नी बांध लेंगे।

वोट देते समय कमलाबाई खुश थीं। अब घर बन जाएगा।

अचानक रात में तेज बारिश और आंधी चली। पति-पत्नी एक कोने का सहारा लिए बैठे थे। सुबह-सुबह एक तरफ से दिवाल गिरी और झुमुक लाल बैठे का बैठा ही रह गया।

प्राण पखेरू उड़ चुके थे। मंत्री महोदय के घर से दो बाँस आ गया कोरे कागज पर कमला का अंगूठा लगाया गया बांस मिल गया।

कितने दयावान है मंत्री जी अंतिम संस्कार के लिए नया बाँस और कुछ रूपया कमलाबाई को दिए हैं।

तस्वीर खींचते देर नहीं लगी। शाम को कमलाबाई को एक बड़ी गाड़ी लेने आई और एक बाँसो से भरी ट्राली भी आई।

कमलाबाई को अनाथ आश्रम के लिए भेजा गया और उस झोपड़ी के चारों तरफ बाँस  की बल्लियां लगाई गई।

कमलाबाई शून्य हो ताकतीं रहीं। झोपड़ी नुमा मकान में चारों तरफ से बल्लियां लगाकर मंत्री जी के नाम की तख्ती लग गई।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ श्वान प्रेम ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख – “श्वान प्रेम।)

☆ आलेख ☆ श्वान प्रेम ☆ श्री राकेश कुमार ☆

कुत्ता शब्द थोड़ा कुत्ता सा लगता हैं।इसलिए विचार किया की इसका प्रयावची शब्द उपयुक्त रहेगा। विगत एक सप्ताह से सभी सामाजिक मंचो पर चर्चाएं चल रही हैं। जब तक कोई और इसी प्रकार की चटपटी घटना नहीं हो जाती, श्वान चर्चा जारी रहेगी।

देश की सबसे बड़ी पशु प्रेमी ने चर्चित श्वान के मालिक के स्थानांतरण परआपत्ति जता कर अपने पशु प्रेम का इज़हार किया है। एक पूर्व महिला अधिकारी ने श्वान मालिक को सजा (स्थानांतरण) देने के दूसरे साधन की सलाह तक दे डाली है।

“जितने मुंह उतनी बातें” वाला सिद्धांत भी यहां सही बैठता हैं।

हमारा श्वान “शेरू” भी हमें कई वर्षो से “प्रातः भ्रमण” पर नियमित रूप से एक सरकारी उद्यान में लेकर जाता हैं वहां पर उसकी जाति के कई साथी मिल जाते हैं, उसी प्रकार से हमारी जाति के कई फुरसतिए भी वहां अपने श्वानों के साथ उपस्थित रहते हैं।

कल सुबह सरकारी उद्यान पर एक दरबान खड़ा था, और कहने लगा श्वान का प्रवेश वर्जित है। ऐसा संदेश ऊपर से आया है। हम सभी श्वान प्रेमी निराश होकर वापिस घरों में आ गए।  अंग्रेजी की एक कहावत है “Bad habits die hard”. आज सुबह भी सभी श्वान प्रेमी उद्यान पहुंच गए। क्या करें, आदत से मजबूर जो हैं। परंतु उद्यान के दरवाज़े पर भीड़ का जमावड़ा देखकर आश्चर्य हुआ। उद्यान में कोई नहीं जा रहा था। पूछने पर पता चला कि कोई पागल श्वान उद्यान में लोगों को काटने के लिए पीछे पड़ जाता हैं। वो एक गली का कुत्ता (street dog),अंग्रेजी  शब्द अच्छा लगता हैं न, इसलिए लिख दिया है, जो उद्यान में घूमता रहता है, सैर करने वाले उसके लिए रोटी, बिस्कुट इत्यादि दे देते थे। लेकिन दो दिन से उद्यान में लगे प्रतिबंधों के कारण वो भूखा है, इसलिए ऐसी हरकतें कर रहा है।

ठीक भी है, भूख जब इंसान को हैवान बना देती है, और ये तो फिर बेजान प्राणी हैं। लोग दरबान को कहने लगे अब इसको बाहर निकाल कर बताओ, हमारे श्वान का प्रवेश तो निषेध कर दिया है। तब दरबान बोला इसको नगर निगम की टीम पकड़ कर ले जायेगी तभी आप लोग उद्यान में जा सकते हैं। तभी भीड़ में से किसी ने अपने साथ लाई हुई दो रोटियां जोर से उद्यान के अंदर फेंक दी और भूखे श्वान ने भी लपक कर अपनी भूख शांत करी और उद्यान की दीवार फांद कर दौड़ लगा दी। उसके बाद वहां खड़े लोग भी उद्यान की तरफ दौड़ पड़े।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #141 ☆ चंद्र काचेचा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 141 ?

☆ चंद्र काचेचा 

लावली शब्दास तूही धार आता

म्यान झाली बघ मुकी तलवार आता

 

पापण्यांखाली लपवले शस्त्र आहे

फक्त नजरेनेच करते वार आता

 

उंबऱ्यातच ती उभी, का भास आहे ?

रात्रभर उघडे घराचे दार आता ?

 

एक नाही दोन नाही तीन नाही

कैक पक्षी तूच केले ठार आता

 

छान झाले संपण्या आधी बहर तू

टाकला देऊन मज होकार आता

 

चंद्र काचेचा इथे जन्मास येता

अंगणातिल संपला अंधार आता

 

सात फेरे घेतले मी सोबतीने

टाकला पदरी तिच्या संसार आता

 

भूल नाही कोणत्याही अत्तराची

घाम हा माझा तिला स्वीकार आता

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

ashokbhambure123@gmail.com

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 91 – गीत – एक लहर कह रही कूल से ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – एक लहर कह रही कूल से।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 91 – गीत – एक लहर कह रही कूल से✍

एक लहर कह रही कूल से बँधे हुए हैं क्यों दुकूल से।

एक किरन आ मन के द्वारे अभिलाषा की अलग सँवारे

संभव कहां अपरिचित रह ना बार-बार जब नाम पुकारे।

सोच रहा हूं केवल इतना, क्या मन मिलता कभी भूल से।

इसी तरह के वचन तुम्हारे अर्थ खोजते खोजन हारे

मौन मुग्ध सा अवश हुआ मैं शब्दवेध की शक्ति बिसारे।

सोच रहा हूं केवल इतना, प्रश्न किया क्या कभी फूल से

भ्रमर बँधे हैं क्यों दुकूल से।

एक लहर कह रही कूल से बने हुए हो क्यों दुकूल से ?

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 93 – “आँखों के झरने सब…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –आँखों के झरने सब…”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 93 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “आँखों के झरने सब”|| ☆

उतरे तपेदिक जो

सूख गये हाड़ से

छोड़ूँ तब झाँकना

हिलगे  किबाड़  से

 

कितने क्या मास-बरस

गुजर गये-बीत गये

आँखों के झरने सब

सूख गये-रीत गये

 

पलकें मलते-मलते

मेंहदी व आलते

बहे सभी पानी में

आँसू की बाढ़ से

 

इधर तेज धूप कभी

तुमने न पहचानी

ग्रीष्म की शिराओं में

बहे पीर अनजानी

 

और धमनियों में भी

रक्त की हरारत का

नमक बहा जाता है

पहले आषाढ़ से

 

पूर्वज,पुराणों में

कहते यही आये

धीरज के फल सबने

मीठे यहाँ पाये

 

संयमित रहो और

चाल समय की देखो

निकलेंगे फूल सदृश

दिन ये पहाड़  से

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

03-06-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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